सोमवार, 31 जनवरी 2011

भूखों मरने के कगार पर कर्मचारी!

दीदी की तरफ देख रहे हैं कर्मचारी
ओ.पी. पाल
रेलवे बोर्ड द्वारा इंडियन कैटरिंग एंड टूरिज्म कार्पोरेशन यानि आईआरसीटीसी से खानपान का कार्य छीनने की कार्यवाही से हजारों कर्मचारियों पर बेरोजगार होने की तलवार लटक गई है, जिसमें आईआरसीटीसी के 2200 से ज्यादा सोर्स कर्मचारियों की नौकरी भी दांव पर है। रेलवे की इस नीति से आईआरसीटीसी में कार्यरत ऐसे कर्मचारियों में परिवारों के भूखों मरने की नौबत को देखते हुए सड़कों पर आने की संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता।
भारतीय रेल के यात्रियों को खाने पीने और आन लाइन टिकट बुकिंग की सेवायें प्रदान करने वाली सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी भारतीय रेल खान पान एवं पर्यटन निगम से रेलवे ने खानपान का कार्य ऐसे समय वापस ले लिया था, जब आईआरसीटी को मिनी रत्न का दर्जा लेकर गुणवत्ता का कायम रखने वाली एक कंपनी के दायरे में आ चुकी है। सबसे बड़ा आश्चर्य यह है कि आईआरसीटीसी को मिनी रत्न का दर्ज और किसी ने नहीं बल्कि वर्ष 2008 में स्वयं रेल मंत्रालय ने दिया था। इसके अलावा उत्कृष्टता के लिए भी आईआरसीटीसी कई पुरस्कार हासिल कर चुकी है। रेलवे की नीति से बेरोजगार होने की तरफ जाते आईआरसीटीसी कर्मचारियों को उम्मीद है कि रेल मंत्री ममता बनर्जी शायद उनकी समस्या को संज्ञान में ले तो उनके सामने संकट पैदा नहीं होगा। ऐसे में जिन कर्मचारियों ने रेलवे की इस नीति को चुनौती दी थी उसके लिए मध्य क्षेत्र के श्रम आयुक्त ने मामले के संज्ञान में लिया है और आईआरसीटीसी में कार्यरत करीब 2200 आउट सोर्स कर्मचारियों की दांव पर लगी नौकरी को देखते हुए आईआरसीटीसी से जवाब मांगा है। बताया जा रहा है कि नई रेलवे कैटरिंग नीति 2010 के अनुपालन और भारतीय रेलवे के कैटरिंग सेवाओं को आईआरसीटीसी से रेलवे बोर्ड द्वारा वापस लिए जाने से आउट सोर्स कर्मचारियों की नौकरी खतरे में पड़ गई है। आईआरसीटीसी अब तक करीब 115 रेलों में कैटरिंग का काम भारतीय रेलवे को सौंप चुका है और शेष रेलों को भी सौंपने की प्रक्रिया जारी है लेकिन रेलवे के पास पर्याप्त संख्या में कर्मचारी नहीं होने की वजह से यह प्रक्रिया धीमी गति से चल रही है। रेलवे बोर्ड ने कैटरिंग सेवा के संचालन के लिए आईआरसीटीसी से पूरे देश में ग्रेड सी के 1284 कर्मचारी और ग्रेड डी के 3985 कर्मचारी मांगे हैं, लेकिन उसके पास इतने कर्मचारी नहीं हैं। आईआरसीटीसी में अभी करीब 4200 कर्मचारी है जिनमें 2200 आउट सोर्स हैं। छह सौ कर्मचारी प्रतिनियुक्ति पर हैं जबकि 1100 स्थाई कर्मचारी हैं। सूत्रों के अनुसार कर्मचारियों को कैटरिंग के लिए भर्ती करने के लिए आवेदन की अंतिम तिथि पिछले सप्ताह समाप्त हो चुकी है। ऐसे में यदि रेलवे ने आईआरसीटीसी के 2200 आउट सोर्स कर्मचारियों को नजर अंदाज कर दिया तो उनके लिए अपने परिवार के पालन पोषण करने में परेशानी आ जाएगी, जिसके बाद कर्मचारियों ने जिस प्रकार अपने हक को हासिल करने के लिए कदम उठाये हैं उसके लिए वे सड़कों पर भी उतरने से पीछे नहीं हटेंगे। बताया जाता है कि रेलवे के आईआरसीटीसी में उन करीब 600 कार्यरत अधिकारियों व कर्मचारियों की रेलवे में वापसी हो चुकी है जो इस कंपनी में प्रति नियुक्ति पर आए थे। लेकिन सवाल उन दो हजार से ज्यादा कर्मचारियों का है जिनके ऊपर अभी भी तलवार लटकी हुई है।

रविवार, 16 जनवरी 2011

2जी स्पेक्ट्रम: कांग्रेस के निशाने पर कैग

रिपोर्ट पर उंगली उठाने से प्रभावित होगी जांच
ओ.पी. पाल
2जी स्पेक्ट्रम आवंटन घोटाले की सीबीआई, पीएसी, प्रवर्तन निदेशालय, आयकर विभाग, एक पूर्व न्यायाधीश समिति समेत करीब सात एजेंसियों द्वारा जांच की जा रही है और मामला सुप्रीम कोर्ट के पास भी है, तो ऐसे में संसद में पेश होने से पहले इस मुद्दे पर कैग की रिपोर्ट के लीक होने के मामले को फोकस करके कांग्रेस ने विपक्ष द्वारा की जा रही जेपीसी की मांग के मुकाबले संघर्ष को तेज करने का इरादा कर लिया है। मसलन यह कि यूपीए सरकार का नेतृत्व करने वाले दल कांग्रेस को अब संवैधानिक संस्था सीएजी भी संदेह होने लगा, जिसके लिए कांग्रेस कैग के खिलाफ विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव लाने की भी कवायद में जुट गई है।2जी स्पेक्ट्रम आवंटन में घोटाले को उजागर करने वाली नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट पर जब केंद्र सरकार का नेतृत्व करने वाली कांग्रेस पार्टी ने उंगलिया उठानी शुरू कर दी हैं तो इससे दूरसंचार मंत्री कपिल सिब्बल के बचाव के संकेत को भी बल मिला है तो वहीं इस संवैधानिक संस्था की 2जी स्पेक्ट्रम मामले पर रिपोर्ट लीक होने के मामले पर भी कांग्रेस गंभीर है। सूत्रों के अनुसार कांग्रेसी सांसद इस संवैधानिक संस्था के खिलाफ विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव पेश करने की तैयारी में जुट गये हैं। दो दिन पहले ऐसे संकेत कांग्रेस की प्रवक्ता जयंती नटराजन ने भी एक संवाददाता सम्मेलन में दिये थे और कैग रिपोर्ट पर उंगली उठाने वाले दूरसंचार मंत्री कपिल सिब्बल का साफतौर से बचाव किया था। सिब्बल के इस बयान को संसदीय लोक लेखा समिति के अध्यक्ष डा. मुरली मनोहर जोशी ने जांच प्रभावित होने की संभावना जताई थी। 2जी स्पेक्ट्रम के मामले पर पिछले सप्ताह 12 जनवरी को जारी कैग की एक विज्ञप्ति को निशाने पर लेते हुए कांग्रेस ने इसे विशेषाधिकार हनन का मामला करार दिया है। कांग्रेस का सवाल है कि संसदीय समिति के समक्ष लंबित मामले पर किसी सांसद को टिप्पणी करने से रोकने के लिए कोई संसदीय प्रक्रिया है या नहीं। कांग्रेस एक संवैधानिक संस्था द्वारा इस प्रकार विज्ञप्ति जारी करने के मामले को विशेषाधिकार का हनन बताया। हालांकि कैग जैसी संवैधानिक संस्था को कम करके आंकने को लेकर हो रहे हमले पर विपक्ष कैग का बचाव करने का प्रयास किया जा रहा है। कांग्रेस ने सिब्बल द्वारा कैग की आलोचना को बिल्कुल उचित ठहराते हुए अन्य को भी कैग पर उंगली उठाने का मौका तो दे ही दिया। यही कारण है कि योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने भी कांग्रेस तथा सत्तारूढ संप्रग के घटकों के सुर में सुर मिलाते हुए 2जी स्पेक्ट्रम की रिपोर्ट को लेकर कैग पर सवाल खड़े कर दिये। अहलूवालिया ने तो यहां तक कहा कि कितना धन जुटाया जा सकता था इस सवाल में जाना परिणामदायी नहीं होगा क्योंकि 1999 से दूरसंचार नीति में अधिकाधिक राजस्व वसूली पर जोर नहीं दिया जा रहा था। यह सर्वविदित है कि कैग ने 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन मामले में सरकारी खजाने को अनुमानित 1.76 लाख करोड़ रूपये के नुकसान की बात कही थी। दूरसंचार मंत्री कपिल सिब्बल ने भी हाल ही में इस मामले में कैग की आलोचना करते हुए उसकी प्रणाली को भारी त्रुटिपूर्ण बताया था।

चंदे से चांदी काट रहे दलों पर गाज!

चाय की दुकान में भी चल रहे हैं कार्यालय
ओ.पी. पाल
केंद्रीय चुनाव आयोग ने ऐसे राजनीतिक दलों पर शिकंजा कसने की तैयारियां कर दी है जो चंदे के बल पर चांदी काट रहे हैं। निर्वाचन आयोग ने जिस प्रकार अध्ययन कराकर खुलासा किया है उसमें चौंकाने वाले तथ्य सामने आ रहे हैं इसलिए ऐसे फर्जी राजनीतिक दलों के पंजीकरण निरस्त करने की कवायद शुरू करने पर बल दिया गया है जिनका लोकतांत्रिक चुनावों के उद्देश्यों से कोई सरोकार नहीं है।मुख्य निर्वाचन आयुक्त डा. एसवाई कुरैशी ने वैसे तो पद संभालते ही चुनाव सुधार के लिए कदम उठाने की मुहिम शुरू कर दी थी, जिनका असर बिहार चुनाव पर भी साफ तौर से नजर आया। इसी चुनाव सुधार की दिशा में निर्वाचन आयोग ने फैसला किया है कि भविष्य में उन्हीं राजनीतिक दलों को चंदे पर कर छूट का लाभ दिया जाएगा जो चुनाव में सक्रिय हिस्सेदारी करके अपनी प्रभावी शक्ति को साबित करेंगे। मुख्य निर्वाचन आयुक्त एसवाई कुरैशी के अनुसार चुनाव आयोग में पंजीकृत राजनीतिक दलों की संख्या 1200 तक पहुंच गई है, जिसके करण कुछ फर्जी दल आयकर कानून के उन प्रावधानों का उल्लंघन कर रहे हैं जिस मकसद से उनके दलों का पंजीकरण किया गया था। ऐसा एक अध्ययन के दौरान पाया गया कि जिसके बाद चुनाव आयोग समझता है कि धन शोधन करने ओर उस पैसे को शेयर बाजार में लगाने एवं आभूषण खरीदने के लिए फर्जी पार्टियां बनाई जा रही हैं। चंदे लेने और देने वाले को आयकर में छूट देने वाले नये कानून के बाद ऐसे अनेक नये राजनीतिक दल सामने आये हैं जिनका लोकतंत्र प्रणाली से कोई सरोकार नहीं है। यह चुनाव आयोग की जांच में एक चौंकाने वाला तथ्य भी सामने आया कि एक राजनीतिक दल का कार्यालय चाय की दुकान में है, तो दूसरा दल आभूषण और शेयर खरीदने में दो से तीन करोड़ रुपये खर्च कर रहा है। इसके अलावा एक पार्टी का कार्यालय तो नियत स्थान पर ही नहीं मिला। अब चुनाव आयोग ने ऐसे राजनीतिक दलों के पंजीकरण निरस्त करने की तैयारियां कर दी हैं। इसके लिए आयोग पहले ही राजनीतिक दलों के पंजीकरण से जुड़े नियमन के कानून में संशोधन करने के लिए सरकार से सिफारिश कर चुका है। मुख्य चुनाव आयुक्त का कहना है उनके विचार से राजनीतिक दलों को अपने खातों का वार्षिक लेखाजोखा प्रकाशित कराना चाहिए, विशेष तौर पर चंदे की राशि पर कर छूट का विवरण देना चाहिए, जिसके बाद ऐसा न कर पाने वाले दलों के पंजीकरण निरस्त करने में सुविधा होगी। आयोग ने चुनाव खर्च के जरिए कराये जाने पर भी विचार किया जा रहा है। निर्वाचन आयोग का मत है कि कर छूट उन दलों को ही दी जानी चाहिए जो चुनाव में हिस्सा लेते हैं और चुनाव में प्रदर्शन के आधार पर अपनी राजनीतिक स्थिति स्पष्ट करते हैं। राजनीतिक दलों के खातों में पारदर्शिता लाने के उद्देश्य से उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग ने अपनी सिफारिशों में कहा है कि सभी राजनीतिक दलों को अपने खातें की कैग या चुनाव आयोग की ओर से नियुक्त पैनल से वार्षिक आडिट करानी चाहिए। इसी प्रावधान से चुनाव की लोकतंत्र प्रणली में सुधार किया जा सकता है।

शनिवार, 15 जनवरी 2011

अंदरूनी झगड़ो की राजनीति में उलझा तेलंगाना

ओ.पी. पाल
छोंटे राज्यो के गठन का पक्ष तो हरेक राजनीतिक दल करता आ रहा है, लेकिन वायदे करने के बावजूद सत्ता में आते ही वह जनता की भावनाओं को समझना तो दूर अपने वायदे को भी ताक पर रख देते हैं। तेलंगाना की मांग इसी राजनीति के चक्रव्यूह में फंसी है। इसी मुद्दे पर राष्ट्रीय लोकदल के प्रमुख चौधरी अजित सिंह से हुई बातचीत के अंश इस प्रकार हैं-

तेलंगन पर श्रीकृष्ण समिति की रिपोर्ट और सिफारिशों पर आपकी क्या टिप्पणी है? इससे कोई नतीजा निकलता दिख रहा है?
देखिये श्रीकृष्ण समिति की रिपोर्ट पर सभी का मानना है कि जो घोषणा गृह मंत्री ने की थी कि तेलंगाना बनाने की प्रक्रिया शुरू हो गई। इस पर जो प्रतिक्रिया हुई वह ज्यादातर कांग्रेस के अंदरूनी झगड़ो का परिणाम थी, यही मामले की लटकाने को लटकाने के लिए किया गया, इसलिए कहा जा सकता है कि फिलहाल इसका नतीजा निकलता तो कतई नहीं दिख रहा है।
यह माना जा रहा है कि मामले को ठंडा करने और लटकाने की मंशा से ही यह समिति गठित की गई थी। कांग्रेस आंध्र की अंदरूरनी राजनीति में फंस गई है?
मैं कह ही चुका हूं कि श्रीकृष्ण समिति का गठन ही मामले को लटकाने के लिए किया गया था, जिसमें कांग्रेस की आपसी खींचतान वाली राजनीति सबसे बड़ी बाधा बनी रही और आगे भी यही स्थिति नजर आ रही है। जबकि तेलंगाना की मांग कोई नहीं नहीं है यह बहुत पुरानी है जब आंध्र प्रदेश बना था तभी से इसकी मांग उठ रही है। इसके लिए कई बड़े और हिंसक आंदोलन भी हुए। चुनाव के दौरान भी वहां की जनता अपनी मंशा जता चुकी है। 2004 के लोकसभा चुनाव में यूपीए गठबंधन के साझा न्यूनतम कार्यक्रम में भी तेलंगाना बनाने का वादा किया गया, लेकिन जनता की भावनाओं को कांग्रेस अब समझना भी नहीं चाहती वहां गांव-गांव में 9-10 साल बच्चे भी तेलंगाना की बात करते हैं।
दिसंबर 2009 में गृहमंत्री ने अलग तेलंगाना का ऐलान कर दिया था। इसके बाद केंद्र सरकार और कांग्रेस ने यू-टर्न ले लिया। क्या इससे हालात और पेचीदा नहीं हो गये हैं?
बिल्कुल तेलंगाना में हिंसक आंदोलनों के दबाव में कानून व्यवस्था को बिगड़ते देख गृह मंत्री ने तेलंगाना बनाने की प्रक्रिया को शुरू करने की घोषणा की थी, पर जो प्रतिक्रियाएं देखने को मिली वे सब कांग्रेस के आपसी मतभेद और अंदरूनी कलह के कारण हुई, जिसके कारण कांग्रेस इस मामले को लटकाने के लिए तरह-तरह की बातें कर रही है। श्रीकृष्ण समिति की रिपोर्ट में दिये गये छह विकल्पों से भी नहीं लगता कि केंद्र सरकार या कांग्रेस तेलंगाना बनाने के लिए गंभीर है। सरकार यह भी जानती है कि तेलंगाना को लेकर आंध्र प्रदेश में अभी भी अस्थिरता बनी हुई है। ऐसा लगता है कि कांग्रेसनीत सरकार जो भी प्रक्रियाओं को अंजाम दे रही है वह सब मामले को टालने का संकेत है।
ऐसा नहीं लगता कि छोटे राज्यों के मसले पर राजनीति स्वार्थो की भेंट चढ़ रहे हैं? केंद्र और राज्यों में सत्तारूढ़ दल अपने नफे-नुकसान की सोचकर फैसले करते हैं?
जहां तक आंध्रा का सवाल है यदि केंद्र सरकार एक-दो साल पहले ही तेलंगाना बना देती तो शायद आज जिन प्रतिक्रियाओं का सामना करना पड़ रहा है वो सामने न आता। इससे छोटे राज्यों के मामलों पर स्वार्थ की राजनीति स्वाभाविक ही है। यदि आप उत्तर प्रदेश की बात करें तो बुन्देलखंड के लिए कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने समन्वय समिति बनवाई थी और कांग्रेस के कानपुर अधिवेशन में भी राज्य के पुनर्गठन की मांग उठी जिसे कांग्रेस ने प्रस्ताव में भी शामिल किया। जब प्रधानमंत्री बनारस गये तो वे भी इस पर अपनी सहमति जता चुके थे। वहीं देखिये यूपी की मुख्यमंत्री मायावती ने भी छोटे राज्यों का पक्ष लिया और प्रधानमंत्री को कई बार चिट्ठियां भी लिखी, लेकिन अब कांग्रेस या कोई सत्तारूढ़ दल इस मसले पर बोलने को भी तैयार नहीं है।
एक सवाल यह भी पूछा जाता है कि आखिर कितने राज्य बनाए जाएं और इसका आधार क्या हो? क्या नए राज्य बनानेके लिए कोई पैरामीटर होने चाहिए?
छोटे राज्य बनाने का मामला नया नहीं है यह बहुत पुराना है। छोटे राज्यों को बनाने के लिए राज्य पुनर्गठन जो डेटा देता है वह भी सभी जानते हैं। यूपीए जैसे दुनिया के बड़े राज्यों में छठे नंबर पर है जहां अलग-अलग विकास और आर्थिक परिस्थितियों है लोगों की भाषाएं भी अलग हो जाती हैं। जहां तक छोटे राज्यों का आधार और पैरामीटर की बात है तो इन्हीं कारणों को देखकर छोटे राज्यों को बनाने की नीतियां बनाए जाने की जरूरत है।
यह सुझाव भी आया है कि राज्य पुनर्गठन आयोग बनाकर पता लगाया जाए कि वास्तव में कितने और राज्यों की जरूरत है?
राज्य पुनर्गठन आयोग बनाये भी गये हैं और बनाये जाने की जरूरत भी समझी जाती है लेकिन प्रशासनिक या विकास की दृष्टि आंकड़ प्रस्तुत किये जाते हैं, जबकि छोटे राज्यो को वहां के विकास और आर्थित परिस्थितियों के आधार पर बनाया जाना जरूरी है। यदि यूपी में हरित प्रदेश की ही बात करें तो वह देश के कई राज्यों से भी बड़ा हो सकता है।
बड़े राज्यों में किस तरह की प्रशासनिक व राजनीतिक मुश्किलें आप महसूस कर रहे हैं?
पूर्वांचल में छोटे-छोटे राज्य बनाए गये हैं उन्हें प्रशासनिक व राजनीतिक दृष्टि से नहीं बल्कि वहां के लोगों की समस्याओं के समाधान को दृष्टिगत रखते हुए बने, यूपी जैसे बड़े राज्य की स्थिति सबके सामने है, जहां हर क्षेत्र की समस्या अलग-अलग है और प्रशासनिक तथा राजनीतिक कठिनाईयों को देखते हुए सभी महसूस करते हैं कि छोटे राज्य बनने चाहिए।
क्या छोटे राज्य विकास की गारंटी है? झारखंड सहित कुछ राज्य अस्थिर राजनीति और भ्रष्टाचार के पर्याय नहीं बन गये हैं?
विकास के लिए तो मैं छोटे राज्यों की गारंटी की बात नहीं करता, लेकिन छोटे राज्यों में बड़े राज्यों की अपेक्षा विकास की संभावनांए अधिक महसूस की जा सकती है। विकास के लिए प्रशासनिक, राजनीतिक और जनता के बीच संवाद जरूरी है जो छोटे राज्यों में अधिक कारगर हो सकता है। जो भी छोटे राज्य बने हैं उनमें राजनीतिक और भ्रष्टाचार एक सोच समझने की जरूरत पैदा करने का संकेत देती है।
आप इस तर्क से कितना सहमत हैं कि छोटे राज्यों की संख्या बढ़ने से केंद्र कमजोर होगा या राष्ट्र की एकता और अखंडता पर इसका असर पड़ सकता है?
केंद्र कमजोर होने का तो कोई सवाल नहीं है यहां तो राज्यों की बात की जानी चाहिए। राज्य भी एक विशाल देश का ही हिस्सा है जिसके कारण मैं नहीं मानता कि इसका असर राष्ट्र की एकता या अखंडता पर पड़ेगा।
आप हरित प्रदेश के लिए आंदोलन चलाते रहे हैं। एक समय मायावती ने भी यूपी को चार भागों में बांटने पर सहमति दी थी। फिर पेंच कहां है?
हरित प्रदेश में पेंच यही है कि सत्तारूढ़ सरकार प्रजातंत्र में जनता की राय पर मुद्दे उठाने का कोई प्रयास नहीं करती। हरित प्रदेश के लिए आंदोलन भी हुए और सपा को छोडकर सभी राजनीतिक दल भी सहमत हैं, यहां तक कि मायावती भी छोटे राज्यों पक्षधर होने का दावा करती हैं, लेकिन आज तक यूपी सरकार ने केंद्र को हरित प्रदेश का प्रस्ताव तक नहीं भेजा। केंद्र सरकार भी तभी चेतती है जब कानून व्यवस्था बिगड़ने की संभावना नजर आती है।

धोखाधड़ी में घिरे रेलवे सतर्कता प्रमुख

अधिकारी को फर्जी दस्तावेजों से फंसाने का आरोप
ओ.पी. पाल
राष्ट्रमंडल खेलों मे हुई अनियमितताओं की जांच करने वालों में शामिल रेलवे सतर्कता विभाग के प्रमुख वी. रामाचन्द्रन स्वयं धोखाधड़ी के आरोप में फंसते नजर आ रहे हैं। सीवीसी पद पर रह चुके रामाचन्द्रन पर आरोप है कि उन्होंने एक अधिकारी को फंसाने के लिए सिर्फ एक झूठा आरोप पत्र ही तैयार नहीं किया, बल्कि फर्जी दस्तावेजों के जरिए उक्त अधिकारी को अदालत में भी घसीटने में कामयाब रहे।देश में आजकल घोटालों और भ्रष्टाचार की चर्चाओं के दौर में जब चौतरफा बवाल मचा है तो भ्रष्टाचार पर निगरानी रखने वाले संवैधानिक संगठनों के प्रमुखों पर ही भ्रष्टाचार और धोखाधड़ी के मामले सामने आने लगे हैं। अभी केंद्रीय सतर्कता आयोग के प्रमुख पीजे थॉमस की नियुक्ति को लेकर घिरी केंद्र सरकार का मामला गूंज ही रहा था कि ऐसा ही एक नाम वी.रामाचन्द्रन का सामने आ गया जो भ्रष्टाचार के मामलों पर निगरानी के लिए रेलवे सतर्कता विभाग के प्रमुख हैं और वे सीवीसी भी रह चुके हैं। सूत्रों के अनुसार रेलवे विजिलेंस के प्रमुख रामाचन्द्रन पर आरोप है कि उन्होंने एक अधिकारी को फंसाने के लिए ना सिर्फ झूठी चार्जशीट तैयार की, बल्कि फर्जी दस्तावेजों का सहारा लेकर रामचंद्रन अधिकारी को कोर्ट में घसीट ले गए हैं। सबसे बड़ी आश्चर्य की बात यह भी है कि रामाचन्द्रन कुछ समय पहले तक राष्ट्रमंडल खेल घोटाले की जांच में भी लगाये गये थे। रेलवे सतर्कता विभाग के प्रमुख के खिलाफ धोखाधड़ी का मामला उस समय उजागर हुआ, जब आरटीआई के जरिये पता चला कि रेलवे के ही एक अधिकारी डी.के. श्रीवास्तव को फंसाने के लिये रामचन्द्रन ने फर्जी कागजात का सहारा लिया। डीके श्रीवास्तव के खिलाफ आरोप था कि इन्होंने रेलवे द्वारा अधिकृत कंपनियों से पेंट की खरीदारी नहीं की। इसी आधार पर उनके खिलाफ चार्जशीट करने की मंजूरी ली गई लेकिन आरोप पत्र में इस बात का जिक्र ही नहीं था। आखिरकार श्रीवास्तव ने आरटीआई के तहत इस बात का पता लगाया कि पेंट की खरीद के लिए कोई अधिकृत कंपनी थी ही नहीं। इस मामले की जांच कर रहे महाप्रबंधक ने भी अपनी रिपोर्ट में लिखा कि चूंकि श्रीवास्तव भारतीय सप्लाई सर्विस कैडर से बाहर के अधिकारी थे, लिहाजा जानबूझकर उन्हें फंसाने की कोशिश की गई। एक ही दिन में उनके खिलाफ विजिलेंस के 14 मामले दर्ज किए गए थे और इसमें से कुछ मामलों में तो किसी और ने नहीं यूपीएससी तक ने टिप्पणी की थी कि उन्हें जानबूझकर फंसाया जा रहा है। श्रीवास्तव ने अपनी शिकायत रेल मंत्री ममता बनर्जी और रेलवे बोर्ड के बड़े अधिकारियों तक को भेजी, लेकिन किसी ने भी कोई कार्रवाई नहीं की।

शुक्रवार, 14 जनवरी 2011

एवरेस्ट फतह कर नया रिकार्ड बनायेगा नरेन्द्र

पांच साल पहले ही हासिल हो जाता गौरव....
ओ.पी. पाल
हरियाणा ने खेल के क्षेत्र में देश को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर गौरवान्वित किया है और आने वाले समय में हरियाणा देश के लिए ऐसा पहला रिकार्ड बनाएगा जिसमें कुरुक्षेत्र के युवक नरेन्द्र सिंह के रूप में कोई भारतीय अकेले ही माउंट एवरेस्ट की चोटी पर तिरंगा लहराएगा। हालांकि हरियाणा देश के लिए यह गौरव पांच साल पहले ही हासिल कर सकता था यदि हरियाणा सरकार अंतिम क्षणों में अपने हाथ वापस न खिंचती? जी हां... आगामी मार्च में माउंट एवरेस्ट की चोटी को फतह करने जा रहे हरियाणा के लाल नरेन्द्र सिंह हरियाणा का नाम रोशन करने के लिए अत्यंत उत्साहित हैं जिसका नाम हिमालयन साइकिलिंग में राष्ट्रीय रिकार्ड बनाने पर लिमका बुक में भी नाम दर्ज है।हरियाणा की ऐतिहासिक भूमि कुरूक्षेत्र के बीबीपुर गांव निवासी बलबीर सिंह के 30 वर्षीय पुत्र नरेन्द्र सिंह भी देश के लिए पर्वतारोही संतोष यादव व ममता सौढ़ा के बाद ईको एवरेस्ट अभियान को फतेह करने के लिए पिछले दस साल से जी तोड़ मेहनत कर रहा है जो सहारा गु्रप में पर्वतारोहियों को प्रशिक्षण देने के लिए स्ट्रेक्टर के पद पर कार्यरत है। पर्वतारोही के रूप में अपना नाम एक नये रिकार्ड के रूप में दर्ज कराने सपना संजोय आगामी मार्च माह में नेपाल में शिविर में हिस्सा लेने के बाद माउंट एवरेस्ट की चोटी पर झंडा फहराने के लिए चढ़ाई शुरू करेगा, जिससे 15 मार्च को नई दिल्ली से कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा सौंप कर रवाना करेंगे। बातचीत ले दौरान इस साहसी युवक नरेन्द्र सिंह ने बताया कि इससे पहले वह वर्ष 2004 में श्रीनगर से नेपाल, भूटान होते हुए अरुणाचल प्रदेश में संपन्न हुई 5 हजार किमी की हिमालयन साईकिलिंग रेस को 40 दिन में पूरा करके अपना नाम लिमका बुक में दर्ज करा चुका है। इसके बाद वर्ष 2006 में उसे माउंट एवरेस्ट की चोटी फतेह करने का मौका मिला और हरियाणा की हुड्डा सरकार के आश्वासन के साथ सभी तैयारियां पूरी कर ली गई थी, लेकिन नेपाल रवाना होने से मात्र छह दिन पूर्व ही हरियाणा सरकार ने खजाना खाली होने का हवाला देते हुए उसके सपने को तोड़ दिया, वरना अपने देश और हरियाणा के लिए यह गौरवशाली रिकार्ड तभी बन जाता। राज्य सरकार द्वारा आर्थिक सहायता से अपने हाथ वापस खींच लेने पर संभालखा (पानीपत) के समाजसेवी हवा सिंह छोकर ने उसका हौंसला बढ़ाया और इसके लिए हर सहायता देना शुरू किया, तो उसे फिर अपने अधूरे सपने को पूरा करने का मौका मिला और सभी तैयारियां पूरी हो गई है जिसके लिए उसका प्रशिक्षण चल रहा जिसमें उसे तीन बार एवरेस्ट की चोटी फतह कर चुके बीएसएफ के जवान नवराज के अलावा पर्वतारोही सतेन्द्र राणा उसकी तैयारियों में जुटे हुए हैं। इसके लिए जद-यू के लोकसभा सांसद कैप्टन जय नारायण प्रसाद निषाद ने नरेन्द्र सिंह के हौंसले को बढ़ाते हुए मंत्रालयों तथा अन्य कारपोरेट जगत को भी पत्र लिखे हैँ। इस संबन्ध में निषाद ने कहा कि एक अभियान में कम से कम 25 लाख रुपये का खर्च आता है, जिसको बढ़ावा देने के लिए अन्य खेलों की तरह केंद्र सरकार को नीति बनाने की जरूरत है और प्रायोजकों को भी आगे आकर एडवेंचर स्पोर्ट्स को प्रोत्साहन देना चाहिए। भारत के लिए पर्वतारोहण में एक नया रिकार्ड दर्ज कराने के लिए आत्मविश्वास के साथ नरेन्द्र सिंह का कहना है कि यह पहली बार होगा कि कोई भारतीय अकेले ही माउंट एवरेस्ट पर तिरंगा लहराएगा।

गुरुवार, 13 जनवरी 2011

महंगाई पर माथापच्ची भी बेअसर

खाद्य पदार्थो पर महंगाई डायन का कब्जा
ओ.पी. पाल
महंगाई के मुद्दे पर यूपीए में आपसी टकराव के सामने सरकार द्वारा महंगाई को काबू करने के लिए की जा रही माथापच्ची केबावजूद नहीं लगता कि महंगाई की मार से बेहाल देश की जनता को कोई राहत मिल जाएगी। सरकार महंगाई को नियंत्रण करने के लिए किसी तोड़ को नहीं तलाश पाई है, शायद यही कारण था कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में भी महंगाई पर कोई चर्चा नहीं हो पाई।दरअसल इन दिनों महंगाई अपने चरम पर है, जिसे रोकने के लिए पिछले तीन दिन से कांग्रेसनीत केंद्र सरकार लगातार माथापच्ची कर रही है, लेकिन यूपीए घटक के मंत्रियों में महंगाई को लेकर उजागर हो रहे तकरार ही शायद सरकार को किसी ठोस उपाय तक पहुंचने में बाधक बना हुआ है। गुरुवार को केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में भी महंगाई के मुद्दे पर कोई चर्चा न होना उस संकेत को मजबूत कर रहा है कि यूपीए घटक दलों के मंत्रियों के बीच किसी भी ठोस तरीके पर आम सहमति नहीं बन पा रही है। राहुल गांधी के महंगाई पर कथित तौर पर आये बयान से राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने कांग्रेस पर निशाना साधा है तो प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस को कोसने में कसर नहीं छोड़ रहे हैं। प्याज के दामों समेत सभी खाद्य पदार्थो के दामों में लगातार बेतहाशा बढो़तरी हो रही है और मनमोहन सरकार महंगाई डायन से छुटकारा पाने की जुगत में लगातार उपायों को तलाशने की गरज से माथापच्ची में व्यस्त है, लेकिन पिछले तीन दिन से लगातार केंद्र सरकार के मंत्रियों की अलग-अलग बैठकों में महंगाई पर काबू पाने के लिए सरकार किसी ठोस नतीजे पर पहुंचने में पूरी तरह विफल रही। इसका कारण साफ है कि कृषि मंत्री शरद पवार यूपीए घटक दल राकांपा प्रमुख हैं, जिन्हें महंगाई के लिए कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने तो कथिततौर पर जिम्मेदार ठहराया है, वहीं महंगाई के मुद्दे पर जब प्रधानमंत्री के आवास पर केंद्र के वरिष्ठ मंत्रियों की बैठक के दौरान कृषि मंत्री शरद पवार तथा वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी के बीच हुए तकरार ने भी यही साबित किया है कि महंगाई को रोकने के लिए गठबंधन की यूपीए सरकार में केंद्रीय मंत्रियों की भी किसी उपाय पर आम सहमति नहीं बन पा रही है। हालांकि केंद्रीय मंत्रियों ने महंगाई का ठींकरा राज्यों के सिर फोड़ने के प्रयास में यह तो कहा कि यदि राज्य सरकारें जमाखोरों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करें महंगाई पर नियंत्रण पाया जा सकता है। यह भी कहा जा रहा है कि केंद्र सरकार राज्य सरकारों को जमाखोरों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने का अनुरोध करेगी। केंद्रीय मंत्रियों का मानना है प्याज समेत सब्जियों के आसमान छूते दामों पर तभी रोक लग सकती है जब राज्य सरकारें जमाखोरी व मंडी माफिया के खिलाफ प्रभावी कार्रवाई करने के लिए सख्ती दिखाये। केंद्र सरकार द्वारा महंगाई पर काबू पाने के उपाय तलाशने के लिए की जा रही कवायद के बावजूद बढ़ती कीमतों ने विपक्ष को आलोचना करने का मौका तो दे ही दिया, वहीं लगता है कि प्याज के आंसू रो रहे लोगों के लिए भी फिलहाल राहत की कोई उम्मीद नहीं नजर नहीं आ रही है। सरकार तो महंगाई पर काबू नहीं पा रही है, लेकिन प्याज ही नहीं बल्कि तेल, चीनी और खाद्य पदार्थो को महंगाई डायन ने अपने कब्जे में जरूर कर लिया है। कैबिनेट की बैठक से लोगों को उम्मीद थी कि सरकार महंगाई पर काबू करने के लिए किसी ठोस कदम का ऐलान करेगी लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। हालांकि प्रणव मुखर्जी लगातार सरकार के बचाव में महंगाई को काबू करने के लिए लगातार देश को भरोसा दिलाते नजर आ रहे हैं।