रविवार, 30 मई 2010

हेडली से एनआईए की पूछताछ के मायने नहीं!

ओ.पी. पाल
मुंबई के 26/11 आतंकी हमले में शामिल रहे पाकिस्तानी आतंकवादी संगठन का मददगार रहे डेविड कोलमेन हेडली से पूछताछ के लिए भारत की राष्ट्रीय जांच एजेंसी का एक दल कानूनी अधिकारियों के साथ अमेरिका जा रहा है, लेकिन सवाल है कि यदि वह मुंबई आतंकी हमले में अपने आरोपों को वह स्वीकार भी कर लेता है तो क्या अमेरिका उसे अदालती कार्रवाही के लिए भारत के हवाले कर देगा? कानूनविदों एवं रक्षा एवं विदेश मामलों के विशेषज्ञ मानते हैँ कि हेडली के आरोपो का ट्रायल भारत में चलना चाहिए, लेकिन अमेरिका की आतंकवाद पर चल रही दोहरी नीति से ऐसा संभव नहीं लगता और ऐसे में भारत त की राष्ट्रीय जांच एजेंसियों की हेडली तक पहुंच और पूछताछ के कोई मायने नहीं रह जाएंगे।
अमेरिका की नीति हमेशा डेविड कोलमेन हेडली को बचाने की ही रही है। इसलिए ही तो अमेरिका ने लश्कर-ए-तैयबा द्वारा मुंबई के 26/11 आतंकी हमलें में संलिप्त पाये गये डेविड कोलमैन हेडली को भारत की गिरफ्त में आने से पहले ही गिरपतार कर लिया था और उसे बचाने की नीयत से अमेरिकी कानून के तहत उससे मुंबई हमलों में हिस्सेदार बनने का गुनाह भी कबूल कराकर उसकी सजा को भी कम करने की नीति अमेरिका ने अपनाई है। हेडली जिसके बारे में यह पुष्टि हो चुकी है कि वह डबल एजेंट था, जहां वह लश्करे तैयबा के लिए काम कर रहा था तो वहीं अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए का भी एजेंट था। अमेरिका की दोहरी नीति यहां भी इसलिए नजर आई कि एफबीई द्वारा उसके अलावा उसके पाकिस्तानी मूल के कनाडाई साथी तहव्वुर हुसैन राणा को भीगिरफ्त में लिया था, जिसके प्रति ऐसी हमदर्दी अमेरिका ने नहीं दिखाई जो हेडली को बचाने में दिखाई है। यह तो भारत से बेहतर सम्बन्धों को बढ़ाने की नीयत से अमेरिका ने कानूनी दांव-पेंच का हवाला देकर किसी तरह भारतीय जांच एजेंसी को हेडली से पूछताछ की इजाजत दे दी है। लेकिन जहां तक हेडली से पूछताछ के बारे में विशेषज्ञों की राय है कि अमेरिका की नीति है कि ‘सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे’ वाली कहावत को चरितार्थ करते हुए भारत को हेडली तक की पहुंच की इजाजत तो दे दी है, लेकिन जब हेडली ने अपराध भारत में किया है तो उसके मामले का ट्रायल भारतीय कानून के मुताबिक भारत की अदालत में चलना चाहिए। अमेरिका यदि आतंकवाद के प्रति इतना ही गंभीर है तो डेविड हेडली और तहव्वुर हुसैन राणा को भारत के हवाले करे, जहां उन पर भारतीय कानून के तहत आरोप तय किये जा सकें। कानूनविद कमलेश जैन का कहना है कि अमेरिका जा रहे राष्ट्रीय जांच एजेंसी के दल को यदि हेडली अनुकूल बयान भी देता है तो उसके कोई मायने नहीं है, क्यों कि उसका मामला भारतीय अदालत में ही चलना चाहिए, लेकिन अमेरिका ने अपने कानून के मुताबिक हेडली से एग्रीमेंट करके उस पर लगे आरोपों का कबूलनामा कराने के बाद उसे बड़ी सजा से बचा लिया है। उनका मानना है कि भारत की डेविड हेडली तक पहुंच और पूछताछ के मायने तभी हैं जब अमेरिका उस पर लगे आरोपों का ट्रायल भारतीय अदालत में चलाने की आजादी दे और उसे भारत को सौँप दे। तभी कहा जा सकता है कि वास्तव में अमेरिका आतंकवाद के प्रति गंभीर है और भारत के साथ बराबरी का रिश्ता रखना चाहता है। वरिष्ठ अधिवक्ता कमलेश जैन का कहना है कि ऐसा नहीं लगता कि करोड़ो खर्च करके भी भारत हेडली का कुछ नहीं बिगाड पाएगा, क्योंकि बोफोर्स कांड के आरोपी ओ. क्वात्रोच्चि को भारत सजा नहीं दे पाया। इसलिए शायद यह भारत की जनता के प्रति जवाबदेही की खातिर हेडली से पूछताछ की केवल औपचारिकता ही बनकर रह जाएगी। विदेश मामलों के जानकार प्रो. कलीम बहादुर भी मानते हैं कि अमेरिका की नीति में कहीं ऐसी सम्भावना नजर नहीं आ रही है कि भारतीय जाँच एजेंसियों की पूछताछ के बाद भी इस हेडली जैसे गुनाहगार को वह भारत को सौँप दे। उनका कहना है कि अमेरिका की आतंकवाद पर हमेशा दोहरी नीति रही है। यही कारण था जा हेडली के मुंबई हमले में भारतीय खुफिया को पुख्ता जानकारी मिली तो उन्हें अमेरिका के साथ साझा किया तो अमेरिकी खुफिया एजेंसी एफबीआई ने उसे गिरफ्तार कर लिया, क्योंकि वह अमेरिका के लिए भी काम करता रहा है। रक्षा विशेषज्ञ सुरेश अरोरा की माने तो भले ही अमेरिका ने हेडली से भारतीय जांच एजेंसियों को पूछताछ करने की इजाजत दे दी हो, लेकिन ऐसा नहीं लगता कि इस पूछताछ के बाद भी भारत उसके खिलाफ भारतीय कानून के तहत कार्रवाई कर सकेगा?

हेडली से एनआईए की पूछताछ के मायने नहीं!

शनिवार, 29 मई 2010

हादसे के बाद क्यों सचेत होता है रेलवे!

हादसे के बाद क्यों सचेत होता है रेलवे!


ओ.पी. पाल
रेलवे विशेषज्ञों के अनुसार घटना के ााद उठाये जाने वाले कदम रेल हादसों को रोकने का हल नहीं हो सकता, सरकार खासकर रेलवे को पहले से ही सुरक्षा और संरक्षा को मजबूत करने की जरूरत है!
यातायात के सासे बड़े नेटवर्क के रूप में भारतीय रेल को माओवादी नक्सली सरकार पर दबाव बनाने के लिए पिछले दिनों से ही अपना निशाना बनाते आ रहे हैं, लेकिन पश्चिम बंगाल में जिस प्रकार नक्सली हमले के कारण एक  बड़ा रेल हादसा हुआ है तो रेलवे ने नक्सलप्रभावित क्षेत्रों में रात में ट्रेनों का परिचालन स्थगित करने पर विचार शुरू कर दिया है। सवाल है कि रेल हादसों के इस भारत में रेलवें हादसों के बाद ही क्यों चेतता है, जाकि माओवादियों ने काला सप्ताह के रूप में पहले ही आंदोलन का ऐलान किया हुआ था। रेलवे विशेषज्ञों की माने तो रेलवे के घटना के ााद उठाये जाने वाले कदम रेल हादसों को रोकने जैसी इन समस्याओं का हल नहीं हो सकते।
नक्सलवाद के खिलाफ सरकार के चल रहे संयुक्त सुरक्षा अभियान के विरोध में जा पहले से ही माओवादियों ने काला सप्ताह मनाने का ऐलान कर रखा है तो उसे देखते हुए सरकार को रेल यातायात के प्रति सतर्क रहने की जरूरत थी, लेकिन सरकार या रेलवे मंत्रालय जा सचेत हो सका है जा एक माओवादियों द्वारा रेल पटरी पर किये गये विस्फोट के कारण बीती देर रात महाराष्ट्र जा रही ज्ञानेश्वरी एक्सपे्रस की विपरीत दिशा से आ रही एक मालगाड़ी से टक्कर होने से एक बड़ा हादसा सामने आया, जिसमें 65 यात्रियों की मौत हो गयी और 200 अन्य घायल हो गये। जहां तक इस रेल हादसे का सवाल है शायद माओवादियों द्वारा रेल पटरी उखाड़कर दहशत फैलाना ही उनका मकसद था, लेकिन मालगाड़ी के वहां आने का कारण ये नक्सली हमला बड़े रेल हादसे मेंबदल गया, जिसमें रेलवे के परिचालन नेटवर्क की खामियां माना जा सकता है। रेलवे बोर्ड के सेवानिवृत्त मेकेनिकल इंजीनियर वी.के. अग्निहोत्री का मानना है कि पटरी उखाड़ने से दो ट्रेनों की टक्कर नहीं हो सकती और जैसी खारे आ रही हैं उससे रेलवे की परिचालन व्यवस्था की भीचूक रही है, जिसके कारण मालगाड़ी भी उस ट्रेक पर पहुंची। इस घटना के बाद रेलवे ने आनन-फानन में नक्सलवाद ग्रस्त क्षेत्रों में रात्रि के समय रेलगाड़ियों का परिचालन बंदकरने पर विचार किया है उसके बारे में वीके अग्निहोत्री मानते हैँ कि यह इस समस्या का समाधान नहीं हो सकता। हालांकि रात्रि में पहले ही टेÑनों की गति को कम किया हुआ है। रेलवे बोर्ड के सदस्य यातायात विवेक सहाय ने माओवादियों के इस हमले के कारण घटी ाड़ी रेल दुर्घटना को देखते हुए कहा कि नक्सल प्रभावित राज्यों में रात में ट्रेनों का परिचालन रोकने पर विचार किया जा रहा है। इस सांन्ध में रेलवे उड़ीसा, बिहार, पश्चिम बंगाल, झारखंड और छत्तीसगढ़ में रात के समय ट्रेनों के परिचालन को स्थगित करने के लिए शीघ्र ही फैसला करेगा। ऐसे में रेलवे के फैसले इसलिए भी सवालों के घेरे में है कि हमेशा देखा गया है कि घटना के बाद ही रेलवे सचेत होता नजर आ रहा है, जाकि माओवादियों का आंदोलन में काला सप्ताह बनाने की पहले ही घोषणा की हुई थी और सरकार यह भी जानती है कि अपने आंदोलन में माओवादी नक्सली रेल ट्रेक को अपना निशाना जरूर बनाते है फिर भी रेलवे ने इन नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में रेल परिचालन में सतर्कता ारतना गंवारा नहीं समझा, जिसका नतीजा इस रेल हादसे के रूप में सामने है। पिछले सप्ताह ही नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर मची भगदड़ के बाद रेलवे ने प्लेटफार्म टिकट न बेचने का निर्णय लिया था। विशेषज्ञों का मानना है कि इस प्रकार के निर्णयों से समस्या का हल नहीं निकाला जा सकता। सरकार खासकर रेलवे को पहले से ही सुरक्षा और संरक्षा को मजबूत और तर्कसंगत निर्णयों को लागू करने की जरूरत है। रेल हादसों के समय रेल मंत्री ममता बनर्जी ने भी मौके पर पहुंचकर अपनी पुरानी परंपरा के अनुसार मृतकों को मुआवजा देने और मृतक परिवार के एक सदस्य को नौकरी देने की घोषणा कर दी, लेकिन सवाल है कि रेल यात्रियों की संरक्षा और सुरक्षा का मजबूत हो पाएगी, इसके लिए सरकार को ठोस कदम उठाने की अधिक जरूरत है।