मंगलवार, 24 अगस्त 2010

फाइलों में रेलवे के 11 लाख स्वाहा

रेल मंत्रालय से कोलकाता जाती हैं फाइलें
ओ.पी. पाल
रेल मंत्री ममता बनर्जी रेल मंत्रालय में उपस्थित होने के बजाए पश्चिम बंगाल में अधिक समय दे रही हैं यह तो सार्वजनिक है, लेकिन लंबे समय तक रेल मंत्री ममता बनर्जी की रेल मंत्रालय में अनुपस्थिति के कारण एक साल से अधिक समय में सरकारी कोष के 11 लाख रुपए स्वाहा हो चुके हैं। रेल मंत्रालय स्थित रेल मंत्री के कार्यालय में रेल मंत्री की उपस्थिति न होने के कारण रेलवे के अधिकारियों को मंत्रालय में आने वाली फाइलों को मंजूरी दिलाने के लिए ममता के पास कोलकाता ही ले जाने को मजबूर होना पड़ रहा है। यह तो ममता बनर्जी भी संसद में सत्र के दौरान सांसदों के सवालों के जवाब में कह चुकी हैं कि वह दिल्ली में रहे या कोलकाता इससे मंत्रालय के कामकाज पर कोई असर नहीं पड़ रहा है और रेलवे की प्रस्तावित योजनाएं जो मंजूर हो चुकी हैँ उन पर भी कामकाज तेजी से चल रहा है। यह बात तो सही है लेकिन जिस रेल मंत्री ने मंत्रालय में अपना कार्य•ाार ग्रहण करते समय चाय व बिस्कुट भी अपने निजी पैसे से मंगाकर एक मिसाल कायम कर चुकी है, उसी रेल मंत्री की मंत्रालय में अनुपस्थिति के कारण फाइलों की मंजूरी पर एक साल से कुछ ज्यादा समय के दौरान सरकारी कोष से 11 लाख रुपये की निकासी हो चुकी है। यह भी दिग्गर बात है कि मंत्रालय की गोपनीय फाइलों के लिए विशेष अधिकारियों को ही फाइलों को दिल्ली से कोलकाता ले जाना पड़ता है फाइलों के संवाहक बनने वाले ऐसे अधिकारी तत्काल कार्यवाही का हवाला देकर रेल के बजाए हवाई यात्रा करके दिल्ली से कोलकाता आवागमन करने में अधिक विश्वास करते हैं। इन फाइलों को कोलकाता से दिल्ली लाने ओर ले जाने वाले रेलवे के अधिकारियों की बात करें तो उनमें पांच अधिकारियों की दिल्ली और कोलकाता के बीच भाग दौड़ करनी पड़ी हैं, जिस मद में रेलवे के 11,23,550 रुपए खर्च हुए हैं। ये पांच अधिकारी क्रमश: रेल मंत्री के आफिसर आॅन स्पेशल ड्यूटी गौतम सान्याल, निजी सचिव शांतनु बसु, कार्यकारी निदेशक (सार्वजनिक शिकायत) जेके साहा, अतिरिक्त निजी सचिव एस अशोक और एपीएस रतन मुखर्जी हैं। साहा और मुखर्जी की हवाई यात्राओं का किराया रेलवे नहीं दे सकती, लेकिन अन्य तीन अधिकारियों के विमान से एक जुलाई 2009 से 30 जून 2010 तक कोलकाता जाने और वापस आने पर 8,73,964 रुपए खर्च हुए। सूचना के अधिकार के तहत दिए गए एक जवाब में बताया गया है कि इसके अलावा रेलवे को पांचों अधिकारियों को इसी अवधि में ममता से मिलने के लिए कोलकाता जाने पर 2,49,604 रुपए की राशि टीए, डीए के तौर पर देनी पड़ी। आरटीआई कार्यकर्ता एससी अग्रवाल ने ममता बनर्जी से मिलने जाने वाले अधिकारियों और फाइलों को दिल्ली कोलकाता लाने ले जाने के खर्च का ब्यौरा मांगा था। विपक्ष ममता पर रेल मंत्रालय के बजाय अपने गृह राज्य पश्चिम बंगाल पर अधिक ध्यान देने का आरोप लगाता रहा है। बहरहाल ममता ने पिछले सप्ताह संसद में कहा कि दिल्ली में उनकी गैरमौजूदगी का उनके मंत्रालय के कामकाज पर असर नहीं पड़ा है। उनका कहना है कि उनके मंत्रालय का प्रदर्शन पिछले 50 वर्षों में शानदार रहा है। वहीं प्रधानमंत्री भी वैश्विक मंदी के दौरान मंत्रियों से खर्चो पर लगाम लगाने की बात कह चुके थे। वैसे तो ममता बनर्जी भी गरीबों की बात करके सरकारी धन को कम से कम खर्च करने की दुहाई देती हैं, लेकिन सूचना के अधिकार के तहत जो तथ्य सामने आये हैं उससे लगता है कि ममता बनर्जी की मंत्रालय से ज्यादा पश्चिम बंगाल में राजनीति करना प्राथमिकता है भले ही सरकारी कोष से मंत्रालय के कामकाज को निपटाने में लाखों का खर्च ही क्यों न हो जाए।

सोमवार, 23 अगस्त 2010

आईआरसीटीसी की रेलवे बोर्ड को चुनौती!

ओ.पी. पाल
शिरडी (अहमदनगर)। भारतीय रेल खानपान एवं पर्यटन कारपोरेशन लि. ने पर्यटन पैकेज शुरू करके रेलवे बोर्ड के उस फैसले को चुनौती दी है जिसमें रेलवे बोर्ड आईआरसीटीसी से खानपान की जिम्मेदारी वापस लेना चाहता है, हालांकि रेलवे बोर्ड अभी तक इस फैसले को लेकर असमंजस की स्थिति में है। यही कारण है कि रेलवे बोर्ड कोई विकल्प न मिलने पर अभी तक रेलवे की खानपान की जिम्मेदारी आईआरसीटी से वापस लेने की हिम्मत नहीं जुटा सका है।
आईआरसीटीसी ने पर्यटन क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए पर्यटन पैकेज की योजना को तेज कर दिया है, जिसमें शिरडी के विशेष पैकेज में देश के विभि न्न राज्यों से करीब डेढ़ सौ पर्यटकों ने हिस्सा लिया, जो राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से मंगला एक्सप्रेस में आईआरसीटीसी के दो वातानुकूलित चार्टर कोच में सवार होकर शिरडी सांई धाम पहुंचे। आईआरसीटीसी के इस पैकेज में आये पर्यटकों से हरिभूमि की विशेष बातचीत हुई, जिन्हें रेलवे के कारण कुछ कठिनाईयों का तो सामना करना पड़ा, लेकिन पर्यटकों की नजर में आईआरसीटीसी का शिरडी पैकेज में दी गई सुविधाएं संतोषजनक हैं। शिरडी के विशेष पैकेज की सफलता के बाद आईआरसीटीसी के तीर्थ यात्रा के मनभावन रेल टूर पैकेज में वैष्णो देवी तथा भारत दर्शन पैकेज में देशभर के धामों की यात्रा पैकेज की योजना बनाई है। यही नहीं आईआरसीटीसी ने राष्ट्रमंडल खेल के लिए विशेष यात्रा पैकेजों की भी घोषणा की है जिसमें विदेशी पर्यटकों को बेहतर सुविधाएं देने का वायदा किया गया है। शिरडी में साईंबाबा के दर्शन करने के बाद इस विशेष पैकेज में शामिल लखनऊ की डा. शिवांगी गुप्ता ने कहा कि ऐसे पैकेज का उनका अनुभव अच्छा रहा है। शिरडी पैकेज में आईआरसीटीसी की सुविधाओं ने शिरडी की यात्रा को आसान बनाया। उन्होंने रेल यात्रा के दौरान आईआरसीटीसी के खानपान की गुणवत्ता और व्यवस्था को भी सराहा। दिल्ली के महेन्द्र कुमार ने कहा कि वह पहली बार अपने परिवार के साथ इस पैकेज में आये हैँ जिसमें उनका अनुभव अच्छा रहा। दिल्ली से शिरडी तक की यात्रा और यहां सार्इंबाबा के दर्शन जितनी आसानी से हो गये उसकी सुविधा भी उम्मीदों पर खरी उतरी। दिल्ली पुलिस के सेवानिवृत्त निरीक्षण एल.आर. नागर का कहना है कि वह भी पहली बार आईआरसीटसी के टूर पैकेज में अपने परिवार के साथ आए हैं जो अन्य यात्राओं से कहीं बेहतर है। नोएडा के रामप्रकाश ने कहा कि दिल्ली से मनमाड़ रेलवे स्टेशन पर आईआरसीटीसी के दोनों चार्टर कोच को ऐसे रेलवे ट्रेक पर काटकर खड़ा कर दिया गया, जिससे उसमें सवार पर्यटक किसी भी प्लेटफार्म पर जाना संभव नहीं था। इसके लिए जिम्मेदार रेलवे है या आईआरसीटीसी यह कहना मुश्किल है, लेकिन आईआरसीटीसी ने जो पैकेज में कहा था उसमें इस गैरजिम्मेदारान घटना से सभी पर्यटकों को करीब ढ़ाई घंटे वहीं रहना पड़ा। इस पहलू को छोड़ दिया जाए तो यात्रा पैकेज बेहतर है। नोएडा के प्रोपर्टी के व्यवसाय से जुड़े जैन ने आईआरसीटीसी के कार्यो की सराहना करते हुए यह सु­झाव दिया है कि आईआरसीटीसी को हर माह यह पैकेज जारी रखना चाहिए और खाने की भी गुणवत्ता सही है लेकिन उसमें और भी सुधार करने की जरूरत है। आईआरसीटीसी के रेल यात्रा पैकेज शुरू करने की इस नीति को उस लिहाज से भी देखा जा रहा है कि रेलवे बोर्ड ने आईआरसीटीसी से खानपान छीनने का फैसला किया है जिसके कारण आईआरसीटीसी ने पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए पर्यटकों को आकर्षित करने का निर्णय लिया है। यह भी माना जा रहा है कि अभी तक रेल यात्रियों को खाना आईआरसीटीसी द्वारा ही परोसा जा रहा है, इसका कारण है कि रेलवे बोर्ड को किसी अन्य कंपनी से इसका विकल्प नहीं मिल रहा है, जिसके कारण फिलहाल रेलवे आईआरसीटीसी पर ही निर्भर है, लेकिन रेलवे बोर्ड के इस फैसले से आईआरसीटीसी के हजारों कर्मचारियों पर रोजगार छीन जाने की तलवार लटकी हुई है। सूत्रों का कहना है कि रेलवे बोर्ड ने खानपान के काम को फिलहाल आईआरसीटीसी को जारी रखने के लिए कह दिया है, लेकिन माना जा रहा है कि रेलवे बोर्ड के फैसले के बाद आईआरसीटीसी ने अन्य स्रोतों की खोज शुरू कर दी है, जिसमें पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए जारी पैकेजों में तेजी लाने की योजनाओं कोअंजाम दिया है। यानि माना जा सकता है कि आईआरसीटीसी इन पैकेजों के जरिए रेलवे बोर्ड के फैसलें को अप्रत्यक्ष रूप से चुनौती दे रहा है।

शिरडी सांईबाबा की तिजोरी पर डाका

ओ.पी. पाल
महाराष्ट्र सरकार ने विश्व प्रसिद्ध शिरडी सांई धाम की तिजोरी पर तीखी नजर रखते हुए शिरडी में बनाए जाने वाले हवाई अड्डे की परियोजना में संस्था के कोष से एक सौ करोड़ रुपये परियोजना में भागीदार निजी एंजेंसी को देने का फरमान जारी कर दिया है। सूत्रों ने बताया कि महाराष्ट्र सरकार ने शिरडी में श्रद्धालुओं और पर्यटकों की बढ़ती संख्या को देखते हुए भारतीय विमानन प्राधिकरण को हवाई अड्डे के निर्माण की परियोजना का प्रस्ताव दिया था, जो पहले ही मंजूर हो चुका है। 700 एकड़ क्षेत्र में 250 करोड़ की इस परियोजना में महाराष्ट्र सरकार ने निजी भागीदारी करने का फैसला किया है, जिसमें महाराष्ट्र सरकार ने सांईबाबा विश्वस्त मंडल शिरडी को 100 करोड़ रुपये भागीदार एजेंसी को देने का फरमान जारी किया है, जबकि एजेंसी की मांग केवल 50 करोड़ की थी। इस बात की पुष्टि महाराष्ट्र विमानन प्राधिकरण के वित्त सचिव एवं सलाहकार प्रशासक वीवी नालवाडे ने भी की है। गौरतलब है कि सार्इंबाबा ट्रस्ट को पहले ही महाराष्ट्र सरकार अपने नियंत्रण में ले चुकी थी, जिसके अध्यक्ष कांग्रेस के नेता जयंत ससानी और उपाध्यक्ष राकांपा के शंकरराव काल्हे हैँ। सूत्रों का मानना है कि महाराष्ट्र की कांग्रेस-राकांपा सरकार ने फकीर रहे सार्इं बाबा को भक्तों के धन के जरिए राजनीति करके फिर से उसी हाल में लाने की नीति अपनाई है। राजनीतिक हाथों में आए साईंबाबा ट्रस्ट यह दावा करते नहीं थक रही है कि संस्था के कोष में उनके कारण बढ़ोतरी आई है। सबसे दिलचस्प पहलू यह है कि हवाई अड्डे की परियोजना में साईंबाबा ट्रस्ट का एक सौ करोड़ रुपये निवेश होंगे, लेकिन उसमें साईंबाबा संस्था को कोई लाभ होने वाला नहीं है। यह भी बताया गया है कि संस्था के कोष से ही सरकार ने राज्य में स्कूलों की बैंचों के लिए दस करोड़ रुपये तथा बाईपास मार्ग के लिए ठेकेदारों को 35 करोड़ रुपये का भुगतान किया है। जबकि ट्रस्ट दानदाताओं के जरिए आने वाले धन को शिरडी में भक्तों की सुविधाओं पर खर्च करता है, जिसके लिए सरकार के नियंत्रण में आए ट्रस्ट भक्तों की सुविधाओं के लिए इस धन का चाहते हुए भी उपयोग नहीं कर पा रहा है। साईंबाबा भक्तों में सरकार की इस नीति को लेकर रोष देखा जा रहा है। सूत्रों का मानना है कि साईबाबा ट्रस्ट के कोष में करीब 400 करोड़ रुपये की धनराशि है, लेकिन इस कोष पर महाराष्ट्र सरकार अपनी तीखी नजर गाड़े हुए है जिसे वह सरकारी योजनाओं में खर्च करने में जुटी हुई है। भक्तों का कहना है कि सरकार को शिरडी में आने वाले श्रद्धालुओं की सुविधाओं पर अधिक खर्च करना चाहिए। एक भक्त ने तो 100 करोड़ रुपये यहां भक्त भवन बनाने के लिए दिया, लेकिन सरकार इस दिशा में कोई कदम नहीं उठा रही है, जबकि भक्तों का सरकार से यही सु­झाव है कि वह यहां भक्तों की सुविधाओं को प्राथमिकता देते हुए शिरडी को तीर्थ स्थल के साथ एक आकर्षक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करना चाहिए।

परमाणु दायित्व बिल का रास्ता साफ

ओबामा की यात्रा सरकार का मकसद
ओ.पी. पाल
अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की आगामी प्रस्तावित भारत यात्रा से पहले यूपीए सरकार परमाणु दायित्व विधेयक को जल्द से जल्द संसद के दोनों सदनों में पारित कराना चाहती है, जिसमें प्रमुख विपक्षी दल भाजपा को संतुष्ट करके इस विधेयक पर उसका समर्थन हासिल कर लिया है। भाजपा के इस विधेयक को समर्थन से बड़ी बाधा हटते ही संसद के दोनों सदनों में संसदीय स्थायी समिति की विवादास्पद परमाणु दायित्व विधेयक संबन्धी रिपोर्ट से साफ संकेत हैं कि सरकार इस विधेयक को संसद के इसी सत्र में इस विधेयक को पारित करा लेगी।
संसद के मानसून सत्र के एजेंडे में परमाणु दायित्व विधेयक का विरोध करती आ रही भाजपा और वामदल आदि विपक्षी दलों के कारण यह बिल यूपीए की सरकार के लिए एक प्रतिष्ठा का सवाल बना हुआ था, लेकिन यूपीए सरकार ने इस विधेयक के मसौदे में जो संशोधन किये हैं उनसे प्रमुख विपक्षी दल भाजपा संतुष्ट नजर आई था इस बिल का समर्थन करने का निर्णय ले लिया। हालांकि राजद और लोजपा ने भाजपा के इस समर्थन को परमाणु करार में भाजपा और कांग्रेस डील की संज्ञा देकर संसद के दोनों सदनों में हंगामा भी किया। जहां तक वामदलों का सवाल है वह चाहती है कि देश में परमाणु हादसे की स्थिति में मुआवजे की अधिकतम राशि 500 करोड़ से बढ़ाकर दस हजार करोड़ की जाए, यही कारण है कि फारवर्ड ब्लाक के वरूण मुखर्जी और माकपा के समन पाठक ने संसदीय समिति की सिफारिशों पर असहमति जताते हुए टिप्पणी दर्ज कराई है, जिसका हवाला समिति की रिपोर्ट में भी दिया गया है। लेकिन संसदीय समिति द्वारा 1500 करोड़ रुपये और तीन माह के भीतर इसका निस्तारण करने जैसी सिफारिशों को केंद्र सरकार ने स्वीकार कर लिया है। यह भी माना जा रहा है कि सरकार वामदलों को भी इस दिशा में मनाने का प्रयास कर रही है ताकि इस विधेयक को पारित कराने में उसे किसी प्रकार के राजनीतिक गतिरोध का सामना न करना पड़े। हालांकि सबसे बड़ा गतिरोध प्रमुख विपक्षी दल भाजपा से था जो समाप्त हो गया है। इस बड़े राजनीतिक गतिरोध के समाप्त होते ही दोनों सदनों में राज्यसभा की विभाग संबन्धी विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी, पर्यावरण और वन संबन्धी संसदीय स्थायी समिति के अध्यक्ष डा. टी. सुब्बारामी रेड्डी ने परमाणु दायित्व विधेयक के बारे में एक रिपोर्ट संसद के दोनों सदनों में पेश कर दी है, जिसमें कई ऐसी महत्वपूर्ण सिफारिशों को सरकार ने स्वीकार भी कर लिया है, जिस पर इस विधेयक को पारित कराने का रास्ता साफ हो गया है। यह विधेयक केवल केन्द्र सरकार स्वयं या इसकी ओर से स्थापित किसी प्राधिकरण या निगम या परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1962 में परिभाषित किसी सरकारी कंपनी के माध्यम से उनके स्वामित्व और नियंत्रण वाले परमाणु संयंत्रों पर ही लागू होगा। समिति ने विधेयक में दिए गए मुआवजे के दावे की दस वर्ष की अवधि को भी कम बताते हुए इसे 20 वर्ष करने की सिफारिश की है। परमाणु विधेयक को भाजपा के समर्थन के बारे में भाजपा का कहना है कि इस विधेयक के पहले प्रारूप पर पार्टी को आपत्ति थी लेकिन अब सरकार ने हमारे सुझावों को इसमें शामिल किया है और यह विधेयक पीड़ित समर्थक बन गया है। भाजपा प्रवक्ता गोपीनाथ मुंडे का मानना है कि यह विधेयक पीड़ितों के हित में होगा और इसमें मुआवजे की राशि बढ़ाई गई है, वहीं इसमें अमेरिका के किसी प्रावधान को लागू नहीं किया गया है, बल्कि सरकार के साथ-साथ आपरेटरों और आपूर्तिकर्ताओं को जवाब देह बना दिया जाएगा। वहीं असैन्य परमाणु दायित्व विधेयक के बारे में संसद में रिपोर्ट पेश करने वाले संसदीय समिति के अध्यक्ष डा. टी. सुब्बारामी रेड़डी ने स्प्ष्ट कर दिया है कि किसी भी असैन्य परमाणु ऊर्जा संयंत्र पर आतंकवादी हमला होने या प्राकृतिक आपदा होने पर नुकसान की भरपाई करने का दायित्व आपरेटर का नहीं होगा, जो विधेयक के एक उपबंध में स्पष्ट किया गया है। इस विधेकय में यह भी प्रावधान साफतौर से शामिल है कि यदि कोई असैन्य परमाणु संयंत्र आतंकवादी हमले, प्राकृतिक आपदा आने या गृह युद्ध छिड़ जाने का शिकार होता है तो ऐसे में होने वाले नुकसान की भरपाई का दायित्व प्रत्यक्ष तौर पर सरकार का होगा। दूसरी ओर केंद्र सरकार चाहती है कि भारत-अमेरिका परामाणु करार को देखते हुए परमाणु दायित्व विधेयक को पारित करार इस संबन्धी सभी औपचारिकताएं अमेरिका के राष्ट्रपाति बराक ओबामा की आगामी नवंबर माह में प्रस्तावित यात्रा से पहले ही पूरे कर लिये जाएं। इसलिए सरकार इस बिल को संसद के इसी सत्र में पारित कराना चाहती है, जिसके लिए उसकी दांव पर लगी प्रतिष्ठा को भाजपा के समर्थन ने बचाते हुए उसके लिए रास्ता प्रशस्त कर दिया है।

रविवार, 8 अगस्त 2010

अभी भी हैं माधुरी जैसे डबल एजेंट!

सुरक्षा एजेंसियों को डबल एजेंट की तलाश

ओ.पी. पाल
भारतीय सेना की खुफिया इकाई में भी विदेश मंत्रालय की पाकिस्तान स्थित भारतीय उच्चायोग में कार्यरत माधुरी गुप्ता की तरह ऐसे डबल एजेंट हैं जो पाकिस्तान के आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के इशारे पर खुफिया सूचनाओं को पाक के साथ भी साझा कर रहे हैं। ऐसे डबल एजेंटो पर सुरक्षा एजेंसियों की तीखी नजर है ओर ऐसे डबल एजेंटों की तलाश में जुट गई है, जिनमें सैन्य अधिकारियों के शामिल होने की आशंका भी जताई जा रही है।केंद्रीय गृह मंत्रालय को सुरक्षा एजेंसियों द्वारा सौंपी गई उस एक रिपोर्ट ने सरकार को चौकन्ना कर दिया है जिसे गंभीरता से लेते हुए देश की सुरक्षा एजेंसियां अब सेना की खुफिया इकाई के सूत्र के तौर पर काम करते हुए पाकिस्तानी आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के इशारे पर कथित रूप से सूचनाएं साझा करने वाले लोगों की तलाश में जुट गई है। सरकारी सूत्रों के अनुसार एक जांच में इस बात का खुलासा हुआ है कि शब्बीर रेंजू नाम के उस व्यक्ति ने कुछ मामलों में अपने फायदे के लिए सैन्य खुफिया इकाई और लश्कर दोनों में पैठ बनकार दोनों को ही छलने का काम किया है। सुरक्षा एजेंसियों की ओर से केन्द्रीय गृह मंत्रालय के साथ साझा की गई इस रिपोर्ट के तथ्यों पर नजर डाले तो जम्मू-कश्मीर पुलिस द्वारा जावीद उर्फ बिल्ला नाम के एक व्यक्ति से की गई पूछताछ से इस प्रकार देश की गद्दारी करने के मामले की पुष्टि हुई है। बताया जा रहा है कि इस पूछताछ के दौरान जावीद ने पुलिस को बताया कि शब्बीर रेंजू उसे अपने साथ गत 25 अप्रैल को दिल्ली लेकर गया था, जहां उनकी मुलाकात वाहिद मौलवी नाम व्यक्ति से हुई थी। रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि रेंजू, जावीद और वाहिद ने दिल्ली में ही किसी सैन्य खुफिया अधिकारी से मुलाकात की थी। सूत्रों ने बताया कि वे तीनों लोग उस सैन्य अधिकारी के साथ मुम्बई गए थे, जहां से जावीद को कुछ सामान प्राप्त करना था। हालांकि बताया गया कि वहां उसे वह सामान नहीं मिला, जिसकी उसे तलाश थी। बाद में वह मई के पहले हफ्ते में कश्मीर वापस लौट गया। इस जांच में यह भी पाया गया है कि रेंजू ने बटमालू के रहने वाले जावीद, वाहिद और एक अन्य व्यक्ति मुनीर से कहा था कि सैन्य खुफिया अधिकारी के साथ रहते कुछ विस्फोटक सामग्री को दिल्ली पहुंचाया जाना है। उस दौरान वे चारों लोग पाकिस्तान में लश्कर के आतंकवादियों वाहिद कश्मीरी, फुरकान और अहमद के भी सम्पर्क में थे। रिपोर्ट यह भी कहती है कि शब्बीर रेंजू इसके जरिए ज्यादा धन हासिल करने और साधारण कश्मीरी युवकों को फंसाने की फिराक में था। सूत्रों के अनुसार चूंकि यह अंतर्राज्यीय संजाल है और दिल्ली के खासकर कुछ व्यवसायियों के भी इसमें शामिल होने की वजह से मामला संगीन है जिसकी जांच करने की जरूरत है। सुरक्षा एजेंसियां सेना के उस खुफिया अधिकारी से भी पूछताछ करना चाहती हैं जो रेंजू के साथ अभियान को अंजाम दे रहा था। सेना की ओर से अप्रैल में आतंकवादियों की गतिविधियों के बारे में खुफिया सूचनाएं साझा किए जाने के बाद यह मामला सामने आया। इंटरनेशनल मोबाइल आईडेंटिटी नम्बर और इंटरनेशनल मोबाइल सब्सक्राइबर आईडेंटिटी नम्बरों के आधार पर पुलिस ने श्रीनगर के निवासी उमर जारगर को गिरफ्तार किया है। जारगर कथित तौर पर तहरीक-उल-मुजाहिदीन के आतंकवादी उमैर के लिए वाहक के रूप में काम करता था। उसके खिलाफ मुकदमे की कारर्वाई से रेंजू के सैन्य खुफिया इकाई में सम्बन्धों के बारे में पता लगा। इन सूचनाओं को गृहमंत्रालय ने गंभीरता से लेते हुए भारतीय सेना की खुफिया इकाई के ऐसे डबल एजेंटों पर नजर रखने के निर्देश दिये हैं जो पाक के साथ खुफिया सूचनाएं साझा कर रहे हैं। रिपोर्ट में यह जिक्र नहीं किया गया सेना ख़ुफ़िया सूचना पर ऐसे लोगों पर कितना धन खर्च कर चुकी है। जाहिर है क़ि देश के लिया गद्दार सेना के अधिकारी भी पाक आतंकी संगठन से आने वाली रकम में हिस्सेदार होंगे. इसलिए भारत सर्कार को ऐसे लोगो को बेनकाब करके उन्हें कठोर सजा देनी चाहिए।

शनिवार, 7 अगस्त 2010

घाटी में सीमापार की साजिश से बिगड़े हालात!

अलगाववादी नेताओं ने फिर ठुकराया वार्ता प्रस्ताव
ओ.पी. पाल
जम्मू-कश्मीर में बिगड़े हालातों को सुधारने के लिए जहां केंद्र सरकार राजनीतिक प्रक्रिया को एक बार फिर से सक्रिय करने की नीति के तहत अलगाववादी संगठन के एक गुट ने फिर एक बार सरकार से वार्ता की पेशकश को ठुकरा दिया है। कश्मीर घाटी में कानून और व्यवस्था पूरी तरह से चरमराने पर चिंतित राजनीतिक दलों ने केंद्र सरकार से राजनीतिक प्रक्रिया को शुरू करने पर जोर दिया जिसके लिए सरकार भी राजी हैं, लेकिन बातचीत की पेशकश को ठुकराने वाले अलगाववादी संगठन जम्मू एवं कश्मीर लिबरेशन फ्रंट ने सरकार की वार्ता को पाखंड बताते हुए यह कहकर उनके रूख में कोई बदलाव नहीं है से यह सबूत दे दिया है कि सीमापार की नीतियां ही अलगाववादी संगठनों में कूट-कूटकर भरी हुई हैं।
केंद्र सरकार और भारतीय राजनीतिक दल पहले से ही यह बात कहते आ रहे हैं कि जिस प्रकार से कश्मीर घाटी में हिंसक घटनाओं के लिए युवाओं, बच्चों और महिलाओं को पथराव के लिए आगे किया गया है वह सीमापार की उग्रवादी नीतियों का ही एक बड़ा हिस्सा है जो जम्मू-कश्मीर में शांति और भाईचारे के माहौल को बर्दाश्त नहीं करते। दरअसर अलगाववादी संगठन जिन मांग को लेकर घाटी के लोगों को गुमराह कर रहे हैं उनसे सीमापार के आतंकवादी संगठनों को अपनी गतिविधियों को चलाने में आसानी होगी, जिसे अब कश्मीर घाटी के लोग भी समझने लगे हैं। इसका सबूत जम्मू-कश्मीर की जनता खासकर कश्मीर घाटी के लोगों ने अलगाववादी संगठनों को पिछले एक दशक में हुए लोकसभा एवं राज्य विधानसभा चुनाव में दिया भी है। हाल में ही राज्यसभा में प्रमुख विपक्षी दल भाजपा नेता अरुण जेटली ने कहा है कि जम्मू-कश्मीर के जेकेएलएफ या हुर्रियत जैसे अलगाववादी संगठन जिस प्रकार राज्य में उपद्रव कर रहे हैं उसमें सुरक्षा बलों पर पथराव करने की घटना नई नीति का हिस्सा है जिसके लिए महिलाओं, बच्चों और युवाओं को प्रशिक्षित किया गया है। केंद्र सरकार ने राजनीतिक दलों के सुझाव और राज्य सरकार से बातचीत करके घाटी के हालात को सुधारने की दिशा में जो दृष्टिकोण अपनाया है उसमें सरकार की मंशा एक सर्वदलीय दल को जम्मू-कश्मीर में भेजने और अलगाववादी संगठनों से वार्ता करना भी शामिल है। अलगाववादी संगठनों से सरकार की वार्ता वर्ष 2004 से अटकी हुई है। चार दिन पूर्व ही इसी नीति के तहत रिहा किये गये हर्रियत कांफ्रेंस के कट्टरपंथी धडे के नेता सैयद अली गिलानी की रिहाई हुई, जिसके बाद गिलानी ने कश्मीर घाटी में प्रदर्शन के दौरान तोड़फोड़, आगजनी, पथराव तथा सरकारी संपत्ति को क्षति पहुंचाने वाले तत्वों को अपने संगठन से अलग करार देते हुए अपील की थी कि संगठन के कार्यकर्ता और समर्थक शांतिपूर्ण प्रदर्शन करके अपनी मांगों के प्रति सरकार को चेताने का काम करे। गिलानी के इस बयान से केंद्र सरकार ही नहीं अन्य राजनीतिक दलों को भी लगा कि हुर्रियत जैसे संगठनों ने अपनी नीति में बदलाव किया है? लेकिन जिस प्रकार जम्मू एवं कश्मीर के अलगाववादी नेताओं ने केंद्रीय गृह मंत्री पी. चिदंबरम की वार्ता की पेशकश को तवज्जो नहीं दी है। हुर्रियत कांफ्रेंस के कट्टरपंथी धड़े के नेता सैयद अली गिलानी ने वार्ता की पेशकश यह कहकर ठुकरा दी है और कहा कि वह किसी भी तरह की वार्ता के पक्ष में उस समय तक नहीं हूं जब तक जम्मू-कश्मीर को विवादित क्षेत्र घोषित करके वहां से सेना को वापस नहीं बुलाया जाता और कश्मीर पर संयुक्त राष्ट में पारित प्रस्ताव को लागू नहीं किया जाता। जम्मू एवं कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकेएलएफ) ने तो चिदंबरम की वार्ता के लिए पेशकश को 'सरासर पाखंड' करार दिया है। जबकि राज्य के अलगाववादी संगठन के नरमपंथी धड़े के नेता मीरवाइज उमर फारुक ने अभी चुप्पी साध ली है। हुर्रियत कांफ्रेंस और जेकेएलएफ जैसे अलगाववादी संगठन इस बात पर भी अड़े हुए हैं कि राज्य में लागू सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम को भी खत्म किया जाए। जबकि भाजपा इसका विरोध कर कह चुकी है कि यदि सरकार कश्मीर घाटी से सेना हटाती है और सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम को खत्म करती है तो इससे भारत की संप्रभुता प्रभावित होगी और सीमापार से भारत के खिलाफ गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा। जम्मू-कश्मीर की प्रमुख विपक्षी पार्टी पीपुल्स डेमोक्रेटिक फ्रंट (पीडीपी) की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने सरकार की पहल पर भी कुछ ऐसा ही तर्क दिया है कि वार्ता से पहले केंद्र सरकार को राज्य में विश्वास बहाली पर जोर देते हुए कदम उठाने चाहिए। जम्मू-कश्मीर मामलों के विशेषज्ञ कमर आगा का कहना है कि कश्मीर घाटी में हुर्रियत जैसे अलगाववादी संगठन उसी प्रकार राज्य में शांति को बहाल नहीं होने देना चाहते, जिस प्रकार पाकिस्तान में बैठे आतंकी संगठनों को जम्मू-कश्मीर में शांति पसंद नहीं है। आगा का कहना है कि इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि कश्मीर घाटी में बिगड़ते हालातों के लिए सीमपार की साजिश जिम्मेदार है। केंद्र सरकार को कानून एवं व्यवस्था को बहाल करके राज्य की जनता में विश्वास पैदा करने की अधिक जरूरत है, जिससे अलगावावादी संगठनों के मंसूबों को खत्म किया जा सके, इसके लिए राजनीतिक प्रक्रिया को शुरू करना भी जरूरी है।

मंगलवार, 3 अगस्त 2010

दलितों का निवाला राष्ट्रमंडल खेलों में झोंका!


ओ.पी. पाल
राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारियों में जहां केंद्रीय सतर्कता आयोग की रिपोर्ट ने अनियमितताओं को उजागर करके केंद्र व दिल्ली सरकार के साथ आयोजन समिति को कटघरे में लाकर खड़ा कर दिया है, वहीं दिल्ली सरकार द्वारा अनुसूचित जाति-जनजाति वर्ग के लिए स्पेशल कम्पोनेन्ट प्लान (एससीपी) की 744.35 करोड़ की राशि को भी राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन में हस्तांतरित कर दी गई है। दलितों का निवाला राष्ट्रमंडल खेलों में झोंक देने का यह मामला संसद के दोनों सदनों की सुर्खियां बनने से नहीं रह सका, बल्कि राज्यसभा में इस मामले पर बहस में विपक्ष ने राष्ट्रमंडल खेलों के नाम पर इस मामले को संवैधानिक दायित्व और दलितों के अधिकारों का हनन करार दिया।

देश के सम्मान के लिए राष्ट्रमंडल खेलों पर जहां प्रतिष्ठा दांव पर हैं वहीं इन खेलों की तैयारियां गड़बड़झालों के चक्रव्यूह में फंसने से केंद्र तथा दिल्ली सरकार और आयोजन समिति कटघरे में खड़ी होती नजर आ रही है। अभी केंद्रीय सतर्कता आयोग द्वारा राष्टÑमंडल खेलों की परियोजनाओं में हजारों करोड़ रुपये की हेराफेरी होने के खुलासे पर बहस छिड़ी हुई थी कि दिल्ली सरकार की पोल खोलने वाला एक और मामले का खुलासा सामने आ गया है जिसमें अनुसूचित जाति-जनजाति वर्ग के उत्थानों के लिए जारी होने वाली कुल 744.35 करोड़ की राशि को राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन में हस्तांतरित किया गया है। दिल्ली की सरकार पर यह आरोप कल ही उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती द्वारा लगाते हुए कांग्रेस नेतृत्व वाली केंद्र व दिल्ली सरकार पर तीखा हमला बोलते हुए कांग्रेस को दलित विरोधी करार दिया था। दलित वर्ग के स्पेशल कम्पोनेन्ट प्लान की राशि दलितों के उत्थान के लिए निर्धारित की जाती है, जिसे दलितों की शिक्षा, स्वास्थ्य, पुनर्वास और अन्य बुनियादी सुधाएं मुहैया कराने के लिए उपयोग की जाती है, लेकिन दिल्ली सरकार ने इस वित्तीय वर्ष समेत पिछले छह सालों में जारी पूरी धनराशि 744.35 करोड़ रुपये राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन के लिए हस्तांतरित करके अपना दलित प्रेम होने की नीयत साफ कर दी है। हालांकि मायावती के इस आरोप को खारिज करते हुए दिल्ली की मुख्यमंत्री श्रीमती शीला दीक्षित का कहना है कि राष्ट्रमंडल खेलों से जुड़ी किसी भी परियोजना के लिए अनुसूचित जाति-जनजाति पुनर्वास कोष से कोई राशि नहीं ली गई। जबकि मायावती के इन आरोपों की गूंज राज्यसभा में इतने जोरशोर से सुनाई दी कि सदन में इस मामले पर चर्चा करानी पड़ी, जिसमें प्रधानमंत्री कार्यालय के राज्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण को इस बहस का विस्तार का जवाब अगले सप्ताह देने का आश्वासन देना पड़ा। जहां तक इस मुद्दे पर राज्यसभा में हुई बहस का सवाल है उसमें समूचे विपक्ष ने मायावती के इस आरोप की सूचना के अधिकार के तहत उजागर हुए तथ्यों के आधार पर पुष्टि की। भाजपा के वेंकैया नायडू ने कहा कि यह तथ्य स्वयं शिवानी चौधरी के आरटीआई सवालों के जवाब में दिल्ली सरकार के नौकरशाहों ने ही उपलब्ध कराए हैं। नायडू का कहना है कि दलितों के उत्थान की दुहाई देने वाली कांग्रेसनीत सरकार ने यह एक संवैधानिक अधिकार को तोड़ने का काम किया है जो बेहद ही दुरभाग्यपूर्ण है। इस मामले को बसपा सांसद सतीश मिश्रा ने उठाया था, जिसमें उन्होंने इस मामले की जांच के लिए संयुक्त संसदीय समिति से कराकर दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की मांग की है। इस मुददे पर हुई बहस में माकपा की वृंदा करात ने तो राष्ट्रमंडल खेलों के नाम पर उनके कोटे की राशि को खर्च करने के काम को दलितों के अधिकार का उल्लंघन और आर्थिक अत्याचार की संज्ञा दी। उन्होंने इस मामले में योजना आयोग पर भी सवाल खड़े किये जिसके अध्यक्ष स्वयं प्रधानमंत्री हैं और योजना आयोग के वर्ष 2005 के एक सर्कुलर का हवाला देते हुए कहा कि आयोग के स्पष्ट दिशानिर्देश हैं कि एससी/एसटी/ओबीसी कोटे की राशि को किसी अन्य मद में खर्च नहीं किया जाना चाहिए। इस चर्चा में भाकपा के डी. राजा, राजद के राजनीति प्रसाद, सपा के महेन्द्र मोहन, लोजपा के साबिर अली, कांग्रेस के जनार्दन द्विवेदी व भालचन्द्र मुंगेकर आदि ने हिस्सा लिया, जिसमें विपक्ष के सभी सदस्यों ने दलित वर्ग के उत्थान के लिए जारी होने वाली इस राशि पर दिल्ली सरकार के साथ केंद्र सरकार पर भी सवालिया निशान खड़े किये। कुछ संसद सदस्यों ने तो इस मामले को संवैधानिक दायित्व का हनन करार देते हुए इस प्रकरण की उच्च स्तरीय जांच कराकर दोषियों के खिलाफ आपराध की श्रेणी में कानूनी कार्यवाही करने की वकालत की है। सवाल यह उठता है कि राष्ट्रमंडल खेलों को पूरा देश राष्ट्र गौरव मानकर चल रहा है, लेकिन इन खेलों की तैयारियों में जिस प्रकार से शर्मनाक ढंग से मामले उजागर हो रहे हैं उसके लिए जवाबदेह कौन है? इसी सवाल को उठाते हुए सदन में अल्पकालिक चर्चा कराई गई ताकि इस मामलें को केंद्र सरकार संज्ञान में लेकर ऐसे ठोस कदम उठाए ताकि राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन के दौरान कोई व्यवधान उत्पन्न न हो सके।

सोमवार, 2 अगस्त 2010

राज्यसभा में तो विपक्ष का ही सहारा!

ओ.पी. पाल
संसद के मानसून सत्र में महंगाई के मुद्दे पर गतिरोध खत्म करने के लिए तो सरकार ने विपक्ष के साथ आम सहमति बना ली है, लेकिन खासकर राज्यसभा में तो सरकार को एजेंडे में शामिल बिलों को पारित कराने के लिए विपक्ष का ही सहारा लेना पड़ेगा, क्योंकि राज्यसभा भी में यूपीए अल्पमत में है। ऐसे में यूपीए सरकार विपक्ष को ज्यादा नाराज भी करने का प्रयास नहीं कर सकती, जिसे कई महत्वपूर्ण बिलों को पारित कराने के लिए आमसहमति बनाने की जरूरत पड़ेगी।
पिछले सप्ताह के चारों दिन संसद के दोनों सदनों में विपक्ष के महंगाई के मुद्दे पर मत विभाजन के साथ चर्चा कराने की जिद के सामने एक भी दिन सुचारू रूप से कार्यवाही नहीं चल सकी। विपक्ष महंगाई के मुद्दे पर लोकसभा में नियम 184 और राज्यसभा में नियम 168 के तहत चर्चा की मांग पर अड़िग था। यदि सरकार संसद में इस गतिरोध को समाप्त करने के लिए बीच का रास्ता न निकालती तो संसद के दोनों सदनों में और भी अधिक समय बर्बादी की भेंट चढ़ जाता। सरकार ने महंगाई के मुद्दे पर तो आम सहमति बनाकर विपक्ष को मना लिया है, लेकिन अभी विपक्ष के सामने कई महत्वपूर्ण मुद्दे हैं जिनके लिए सरकार को विपक्ष के पास बार-बार आना पड़ सकता है। खासकर राज्यसभा में तो महत्वपूर्ण बिलों को पारित कराने के लिए यूपीए सरकार को विपक्ष का सहारा लेना ही पड़ेगा। इसका कारण है कि राज्यसभा के लिए हाल में ही संपन्न हुए द्विवार्षिक चुनाव में अधिकतर सीट जीत जाने के बावजूद कांग्रेस के नेतृत्व वाला सत्तारूढ़ गठबंधन यूपीए उच्च सदन में अभी भी अल्पमत में है। मसलन कि आर्थिक सुधारों सहित अपने अन्य एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए उसे अन्य छोटे दलों के रहमो-करम का सहारा लेना होगा। यदि राज्यसभा में दलगत सीटों पर नजर डाली जाए तो दो सौ पैंतालीस सदस्यीय सदन के लिए कुछ दिन पहले 55 सीटों के लिए हुए द्विवार्षिक चुनाव में कांग्रेस और सरकार में शामिल अन्य दलों की झोली में अधिकतर सीट गई, लेकिन इसके बावजूद कांग्रेस सदस्यों की संख्या 70 को पार नहीं कर पाई। जबकि दूसरी ओर मुख्य विपक्षी दल भाजपा की संख्या 47 से बढ़कर 49 हो गई है। उच्च सदन में तीसरे स्थान की पार्टी बसपा है जिसके 18 सदस्य हैं। वहीं माकपा के सदस्यों की गिनती 16 से घट कर 15 पर आ गई है। सदन में दस सदस्य मनोनीत है जो सत्तारूढ के पक्ष में ही माने जाते हैं। यूपीए के घटक दल तृणमूल के दो, राकांपा की सात, एआईएडीएमके तथा सीपीआई के पांच-पांच सदस्य हैं। जबकि डीएमके व जद-यू के पास सात-सात सदस्यों का आंकड़ा है। राजद की चार व लोजपा की दो सीटें हैं। राज्यसभा में कुल मिलाकर स्थिति यह है कि यूपीए पर विपक्ष भारी है और एक तरीके से वह अल्पमत में हैं। मानसून सत्र में सरकार के एजेंडे में शामिल 59 विधेयकों में से कुछ ऐसे विधेयक हैं जिन पर सरकार की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। इसमें लोकसभा में पारित हो चुके प्रताड़ना निवारक विधेयक 2010, ऊर्जा संरक्षण (संशोधन) विधेयक तथा वक्फ (संशोधन) विधेयक से भी महत्वपूर्ण नागरिक परमाणु दायित्व विधेयक है, जिसमें महिला आरक्षण विधेयक की तरह ही सरकार को विपक्ष खासकर भाजपा के साथ तालमेल करना पड़ेगा। सरकार के सामने इस सत्र के पहले चार दिनों में जाया हुए समय को भी कवर करने की चुनौती है, ताकि संसद में एजेंडे के अनुरूप लक्षित काम हो सके। दरअसल परमाणु दायित्व विधेयक बिल पर भाजपा व वामदल समेत करीब समूचा विपक्ष विरोध करता आ रहा है और सरकार की मंशा इसी सत्र में इस विधेयक को पारित करने की है, जिसके लिए महंगाई के मुद्दे की तर्ज पर ही सरकार को विपक्ष के साथ आम सहमति बनाने की चुनौती का सामना करना पड़ेगा। यह भी तय माना जा रहा है कि राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारी में उजागर हुए भ्रष्टाचार के मुद्दे पर भी सरकार को विपक्ष के सामने दो-चार होना पड़ेगा, भले ही नियम 169 के तहत कैग की रिपोर्ट पर संसद में इस मुद्दे पर चर्चा न होती हो, लेकिन विपक्ष राष्ट्रमंडल खेलों में अनियमितताओं को दूसरे रूप में नोटिस देकर सदन में बहस कराने की मांग कर सकते हैँ। इसलिए यह कहना बेमानी होगा कि सरकार को विभिन्न मुद्दों पर विपक्ष की घेराबंदी से मुक्ति मिल गई हो। इस सत्र में अभी यूपीए सरकार को घेरने के लिए विपक्ष के पास मुद्दों की कमी नहीं है, जो यूपीए सरकार के लिए चुनौती से कम नहीं है।

रविवार, 1 अगस्त 2010

राष्ट्रमंडल:दामन बचाने में जुटी सरकार!

ओ.पी. पाल
आगामी तीन से 14 अक्टूबर तक राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में होने वाले राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारियों में परत दर परत खुलती जा रही पोल से केंद्र व दिल्ली सरकार के साथ आयोजन समिति भी हलकान है। खेलों की तैयारियों के लिए निर्माण का कार्य अभी तक पूरा भी नहीं हुआ कि केन्द्रीय सतर्कता आयोग द्वारा सरकार को सौँपी गई रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि खेलों की तैयारियों के निर्माण में करोड़ों रुपये का खेल खेला जा चुका है। अब सरकार केवल यह कहकर अपना दामन बचाने का प्रयास कर रही है कि आयोग की रिपोर्ट पर निश्चित रूप से कार्रवाई होगी और भ्रष्टाचार में लिप्त कोई भी दोषी बच नहीं पाएगा। दूसरी ओर निर्माण में खामियों का ठींकरा मीडिया के सिर फोड़कर सरकार यह भी दावा करने में पीछे नहीं है कि स्टेडियमों में कोई गड़बड़ी नहीं है। ऐसे में सवाल उठते हैं कि राष्ट्रमंडल खेलों को लेकर दांव पर लगी प्रतिष्ठा को सरकार बचा पाएगी या फिर देश की नाक कटवाएगी?
राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारियों पर सवालिया निशान किसी और ने नहीं बल्कि सत्तारूढ़ कांग्रेस के ही लोगों ने लगाने शुरू किये थे। ऐसा लगता है कि देश के सम्मान का सवाल बन चुके राष्ट्रमंडल खेलों को लेकर कांग्रेस, केंद्र व दिल्ली सरकार और फिर आयोजन समिति से जुड़े लोगों में समन्वय नहीं है। केंद्रीय खेल मंत्री रह चुके कांग्रेस के ही सांसद मणिशंकर अय्यर ने एक बार नहीं कई बार राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारियों पर सवालिया निशान खड़े करके अपनी ही सरकार को कटघरे में लाने का प्रयास किया, जिसमें उनके एक बयान के बाद केंद्रीय सतर्कता आयोग की रिपोर्ट ने आग में घी डालने का काम कर दिया। इस रिपोर्ट में राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारियों के तहत निर्माण कार्यो की गुणवत्ता और खामियों को उजागर करते हुए करोड़ों रुपये के घोटाला भी उजागर किया गया है, जिसको लेकर केंद्र सरकार, दिल्ली सरकार और आयोजन समिति तथा इन खेलों से जुड़ी एजेंसियां हलकान की स्थिति में पहुंच गई है। दरअसल कांग्रेसनीत केंद्र या दिल्ली सरकार का अपने ही दल के लोगों की जुबान पर नियंत्रण करना कठिन हो रहा है। विशेषज्ञ ही नहीं विपक्षी राजनीतिक दल भी चाहते हैं कि राष्ट्रमंडल खेलों की सफलता से भारत की प्रतिष्ठा बढ़ेगी, जिसको तार-तार करने का प्रयास के लिए स्वयं सरकार भी जिम्मेदार है। सरकार को चाहिए था कि यदि सीवीसी की रिपोर्ट खेलों के बाद सार्वजनिक की जाती और कांग्रेस अपने दल के सांसदों या अन्य नेताओं की जुबान को बंद रखने की हिदायत देने का काम करती। जब बात निकलती है तो दूर तक जाती है यानि राष्ट्रमंडल खेलों से पहले जो कुछ गडबड़झाला या बयानबाजी हो रही है उससे खेलों में हिस्सा लेने वाले देशों के भी कान खड़े हो रहे हैं, जिनके किसी भी विपरीत निर्णय से देश की प्रतिष्ठा मिट्टी में मिल सकती है। सीवीसी की रिपोर्ट पर रविवार को केंद्रीय शहरी विकास मंत्री एस जयपाल रेड्डी ने जांच में दोषी पाये जाने वाले लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की बात कही है। रेड्डी ने राष्ट्रमंडल खेलों के लिए जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम परिसर के अंदर भारोत्तोलन आडिटोरियम के उद्घाटन के दौरान अनियमितताओं के मामले को गंभीरता से लेने की बात भी कही है। रेड्डी यह कहने से भी नहीं चूके कि मीडिया की भी भूमिका इन मामलों में सकारात्मक नहीं है, जिससे देश का खुशनुमा माहौल खराब और आलोचनात्मक बनता जा रहा है। उधर केंद्रीय खेल मंत्री एमएस गिल ने तो यहां तक दावा कर दिया है कि राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारियों के लिए नवनिर्मित स्टेडियमों में कोई गड़बड़ी नहीं है, जो भी अनियममिताओं और गड़बड़ियों को गलत तरीके से उजागर किया जा रहा है वह सब मीडिया की देन है। सरकार को खेलों की तैयारियों को लेकर उठते सवालों का हल निकालने के लिए मीडिया के सिर ठींकरा फोड़ने के बजाए अपनी सरकारी एजेंसियों पर लगाम लगाने पर ध्यान देना चाहिए। सवाल है कि जब कोई गड़बड़ी या अनियमितता नहीं है तो सरकार निर्माण कार्यो की जांच कराने की तैयारियों में क्यों उलझी हई है? खेल मंत्री एमएस गिल तो राष्ट्रमंडल खेलों में लग रहे भ्रष्टाचार के आरोपों के मामलों में उचित कारर्वाई होने की बात करते हुए यह भी कहते नजर आए कि सरकार को खेलों से संबंधित सभी अनुबंधों को संसद में पेश करना चाहिए। आयोजन समिति के प्रमुख सुरेश कलमाडी तो खामिया उजागर करने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने की भी चेतावनी देकर मीडिया की और संकेत कर चुके हैं। मसलन यह कि एक तरफ तो सरकार तैयारियों में पारदर्शिता बरतने और सीवीसी की रिपोर्ट में भ्रष्टाचार के हुए खुलासे वाली रिपोर्ट में दोषियों को न बख्शने की बात ताल ठोक कर कह रही है और दूसरी तरफ स्टेडियम या अन्य खेल स्थल के निर्माण में किसी गड़बड़ी होने से इंकार करती है तो इसका तात्पर्य यही हो सकता है कि राष्ट्रमंडल खेलों को लेकर सरकार इस तरह की विरोधाभासी बयानों से अपना दामन बचाने का ही प्रयास कर रही है।