मंगलवार, 30 नवंबर 2010

जेपीसी पर गतिरोध में अटके कई महत्वपूर्ण बिल!

वी वांट जेपीसी के साथ ताज बदल जो तख्त बदल दो के नारे
ओ.पी. पाल
2जीस्पेक्ट्रम घोटाले की जांच के लिए जेपीसी की मांग पर अड़िग विपक्ष का सत्तापक्ष के साथ गतिरोध बरकरार है जिसके कारण राज्यसभा में शीतकालीन सत्र के दौरान एक भी दिन सदन की कार्यवाही सुचारू नहीं हो सकी है। यही कारण है कि सरकार के एजेंडे में शामिल कई महत्वपूर्ण बिल संसद में पेश नहीं हो पा रहे हैं। इस सत्र में अभी तक जो नया दिखाई दिया वह केवल विपक्ष के हंगामे में मंगलवार को ‘वी वांट जेपीसी’ के साथ ‘ताज बदल दो तख्त बदल दो’ के नारे भी सुनने को मिले।
गत नौ नवंबर से आरंभ हुए संसद के शीतकालीन सत्र में मामूली कामकाज के अलावा अभी तक जिस प्रकार से दोनों सदनों की कार्यवाही सुचारू रूप से नहीं चल सकी है और आने वाले दिनों में भी संभव नहीं है तो ऐसे में राष्ट्रहित के कामकाज तो प्रभावित हो ही रहा है, वहीं सरकार के एजेंडे में शामिल अत्याचार निवारण विधेयक 2010, शिक्षा प्राधिकरण विधेयक 2010, बीज विधेयक 2004, अपहरण रोधी (संशोधन) विधेयक2010, मुफ्त और अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार(संशोधन) विधेयक संसद में पेश नहीं हो पा रहे हैं, वहीं पुनर्वास विधेयक, महिला आरक्षण बिल, खान व खनिज विकास और नियमन संशोधन विधेयक के अलावा पंचायती राज व शहरी स्थानीय निकायों में महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण देने के लिए दो संशोधन विधेयक भी इसी सत्र में प्रस्तावित थे, जबकि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक बिल को सरकार ने इस सत्र में पेश न करने का फैसला कर लिया है। इसी प्रकार लोकसभा में पारित हो चुके यातना निवारण विधेयक जैसे कई ऐसे बिल हैं जो राज्यसभा में पेश किये जाने थे। लेकिन 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले की जांच के लिए संयुक्त संसदीय समिति के गठन की मांग को लेकर अडिग विपक्ष के हंगामे की भेंट चढ़े अभी तक के 13 दिनों को देखने तथा आने वाले दिनों में यही स्थिति को देखते हुए लगता है कि ये विधेयक इस सत्र में अटके रह जाएंगे। जहां तक शीतकालीन सत्र का सवाल है उसमें केवल पहले दिन लोकसभा में कुछ कार्यवाही चल सकी थी, जिसमें सड़क परिवहन एवं राजमार्ग से संबन्धित केंद्रीय मंत्री कमलनाथ से मात्र एक ही सवाल पूछा जा सका था। इस मामूली कामकाज के अलावा अभी तक संसद के दोनों सदनों लोकसभा व राज्यसभा में एक भी प्रश्नकाल नहीं हो सका है। हां इतना जरूर है कि विपक्ष के हंगामे के बीच सभापीठ से कुछ रिपोर्टे व दस्तावेज सदनों के पटल पर रखवा दिये जाते है, लेकिन सदन की कार्यवाही के नाम पर अभी तक का सत्र शून्य पर टका हुआ है। दोनों सदनों में ही सभापति के बैठने से पहले ही विपक्ष की एकजुटता वेल में नजर आने लगती है और शुरू हो जाता है 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले पर जेपीसी की मांग को लेकर हंगामा। राज्यसभा में शीतकालीन सत्र के 13वें दिन आज जैसे ही सदन की कार्यवाही शुरू हुई तो सभापति मोहम्मद हामिद अंसारी ने विपक्षी दलों की ओर से अग्रणी रहने वाले ओडिसा के सांसद रुद्रनारायण पाणी को सभापति ने सभापीठ पर बैठते ही यहां तक कह दिया कि वह संसद के नियमों का उल्लंघन कर रहे हैं। इसके बाद भी विपक्षी दलों ने ‘वी वांट जेपीसी’ के नारे लगाये, तो वहीं इस नारे में परिवर्तन करते हुए ‘ताज बदल दो तख्त बदल दो’ के नारे भी लगाए। इस नारे पर रुद्रनारायण पाणी का कहना था कि यह नया नारा नहीं है बल्कि पुराना नारा है, लेकिन भाजपा ही नहीं समूचा विपक्ष जेपीसी की मांग से पहले कोई समझौता करने वाला नहीं है। उनका कहना था कि यह विपक्ष का ही रूख नहीं, बल्कि देश की जनता की आवाज है जो 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में 1.70 लाख करोड़ का सरकार से हिसाब मांग रही है। उच्च सदन की तरह ही लोकसभा में जेपीसी को लेकर गतिरोध जारी है। 2जी स्पेक्ट्रम, आदर्श आवास सोसायटी और राष्ट्रमंडल खेलों में हुए भ्रष्टाचार को लेकर कांग्रेसनीत यूपीए सरकार विपक्ष से घिरी हुई है, लेकिन जिस प्रकार से विपक्ष जेपीसी की मांग पर अड़िग है उसी तरह सत्तापक्ष भी जेपीसी गठित न करने की जिद पर अड़ी हुई है, जो संसद के शीतकालीन सत्र की कार्यवाही को सुचारू करने में सबसे बड़ा गतिरोध बना हुआ है। इसके विपरीत सरकार इस सत्र के दौरान कई सर्वदलीय बैठक आयोजित कर विपक्ष से जेपीसी की जिद छोड़ने की अपील जरूर कर रही है, लेकिन सर्वदलीय बैठके सत्ता और विपक्ष के टकरा रहे अहम् के सामने बेनतीजा साबित हो रही हैं। ऐसा भी नहीं लगता कि सरकार संसद के शीतकालीन सत्र को समय से पूर्व अनिश्चितकाल के लिए स्थगित करने पर विचार करेगी? लेकिन सवाल है कि संसद में सत्ता व विपक्ष के बीच जेपीसी को लेकर जारी गतिरोध के कारण राष्ट्रहित के कई विधेयक संसद में पेश नहीं हो पाएंगे।

जगन रेड्डी ने बढ़ाई कांग्रेस की मुश्किलें!

भ्रष्टाचार पर पहले ही घिरी यूपीए सरकार
ओ.पी. पाल
ऐसे समय जब कांग्रेसनीत यूपीए सरकार भ्रष्टाचार और घोटाले के मुद्दे पर चौतरफा घिरी हुई है, तो आंध्र प्रदेश में कांग्रेस के बागी सांसद जगनमोहन रेड्डी ने पार्टी से इस्तीफा देकर कांग्रेस की मुश्किलों को और बढ़ा दिया है। भ्रष्टाचार व घोटालों के मुद्दों पर तो यूपीए सरकार को विपक्ष की एकजुटता ने इस कदर घेर रखा है कि संसद के शीतकालीन सत्र के अभी तक के 12 दिन हंगामें की भेंट चुके हैं और अभी संसद की कार्यवाही चलने के आसान पूरी तरह से क्षीण हैं।
यूपीए के दूसरे शासनकाल में जिस प्रकार 2जी स्पेक्ट्रम, मुंबई का आदर्श आवास सोसायटी घोटाला तथा राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारियों मेंभ्रष्टाचार खासकर कांग्रेस पार्टी के लिए मुश्किलें बढ़ाता जा रहा है। बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे जो कांग्रेस की उम्मीदों के विपरीत आए हैं जो कांग्रेस के भ्रष्टाचार और घोटालों का ही परिणाम है। बिहार चुनाव में सोनिया और राहुल का भी जादू काम नहीं आ सका, जिसे लेकर कांग्रेस के सामने पार्टी जनाधार के भविष्य पर भी सवालिया निशान खड़ा कर गये हैँ। इधर देश के सबसे बड़े घोटाले के रूप में सामने आए 2जी स्पेक्ट्रम के आवंटन घोटाले ने कांग्रेसनीत यूपीए सरकार की नींद हराम कर दी है, जिसमें 1.70 लाख करोड़ रुपये के नुकसान का कैग की रिपोर्ट में खुलासा हुआ है। प्रमुख विपक्षी दल भाजपा के साथ 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले की जांच के लिए संयुक्त संसदीय समिति के गठन की मांग को समूचा विपक्ष एकजुट है। विपक्ष ने कांग्रेसनीत यूपीए सरकार को चौतरफा घेर रखा है जिसके कारण संसद के शीतकालीन सत्र के पहले 12 दिन विपक्ष के हंगामे की भेट चढ़ चुके हैं और सत्तापक्ष की किसी भी अपील और कवायद का विपक्ष की एकजुटता पर कोई प्रभाव नहीं है यानि समूचा विपक्ष बिना जेपीसी के गठन से पहले संसद की कार्यवाही को सुचारू रूप से चलवाने के लिए सहमत न होने की जिद पर अड़िग है। जब संसद में यूपीए सरकार का नेतृत्व कर रही कांग्रेस घोटालों और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर चौतरफा घिरी हुई तो बिहार चुनाव के नतीजों के साथ ही आंध्र प्रदेश में कांग्रेस के सांसद जगनमोहन रेड्डी के इस्तीफे से कांग्रेस कहीं अधिक हलकान है, क्योंकि जगनमोहन रेड्डा राज्य के तीन दर्जन विधायकों के समर्थन का भी दावा कर रहे हैं। कांग्रेस को इस राजनीतिक संकट से आंध्र सरकार के अल्पमत में आने का भय तो सता ही रहा है। भले ही आंध्र प्रदेश के वरिष्ठ कांग्रेस नेता और राज्यसभा सदस्य वी हनुमंत राव यह कह रहे हों कि पूर्व मुख्यमंत्री वाईएस राजशेखर रेड्डी के पुत्र व कडप्पा से पार्टी के सांसद वाईएस जगनमोहन रेड्डी के कांग्रेस से इस्तीफा देने से प्रदेश में कांग्रेस की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ेगा। जबकि दूसरी ओर कानून मंत्री वीरप्पा मोइली ने जगन के पार्टी से इस्तीफा देने को कांग्रेस के लिए दुर्भाग्य करार दिया है। ऐसे में आंध्र प्रदेश में कांग्रेस को पार्टी जनाधार के भविष्य पर भी संकट साफ नजर आ रहा है। दरअसल पूर्व मुख्यमंत्री वाईएस रेड्डी की हैलीकाप्टर दुर्घटना में हुई मौत के बाद उनके बेटे जगनमोहन रेड्डी मुख्यमंत्री बनना चाहते थे, लेकिन कांग्रेस हाईकमान ने के. रसौया को मुख्यमंत्री बना दिया था। तभी से जगन रेड्डी के बागी तेवर सामने आ रहे थे। इस संकट से निपटने के लिए हाल ही में कांग्रेस ने रसौया से इस्तीफा लेकर उनके स्थान पर एन किरण रेड्डी को मुख्यमंत्री बनाया, लेकिन कांग्रेस को यह दांव उल्टा नजर आया और जगनमोहन रेड्डी के बागी तेवर इस कदर आसमान पर गये कि सोमवार को उन्होंने कांग्रेस पार्टी को अलविदा कहकर नई पार्टी बनाने का ऐलान कर दिया। यूपीए सरकार का नेतृत्व कर रही कांग्रेस के चौतरफा घिरे होने से कहा जा सकता है कि कांग्रेस पार्टी की मुसीबतें कम होने के बजाए बढ़ती जा रही है।

शुक्रवार, 26 नवंबर 2010

बिहार विस में बढ़ा दागियों का ग्राफ!

नीतीश का मंत्रिमंडल होगा बाहुबल से सराबोर
ओ.पी. पाल
बिहार विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज करके जिस प्रकार से बाहुबलियों और धनाढ्य विधायकों का प्रवेश विधानसभा में हुआ है, उसे देखते हुए लगता है कि दुनिया के सबसे बड़े इस लोकतांत्रिक देश में चुनाव प्रणाली में सुधार करने की तेजी से की जा रही कवायद पूरी तरह से बेअसर है। मसलन पिछले विधानसभा चुनाव की अपेक्षा बिहार विधानसभा में इस बार ऐसे विधायकों की संख्या में बढ़ोतरी हुई जिनके खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैँ। खास बात यह है कि 243 सदस्यों वाली विधानसभा में पहुंचे 141 दागियों में 116 विधायक सत्तारूढ़ गठबंधन के ही हैं, तो जाहिर सी बात है कि नीतीश कुमार का मंत्रिमंडल भी दागियों से सराबोर रहेगा।
राजनीति के बढ़ते अपराधिकरण को नियंत्रित करने की वैसे तो सभी राजनीतिक दल दुहाई देते हैं लेकिन चुनाव के समय ऐसे ही दल अपराधियों को अपने गले लगाने में पीछे नहीं रहता। बिहार चुनाव की घोषणा के बाद चुनाव में धनबल और बाहुबल की प्रथा को समाप्त करने के लिए भारत निर्वाचन आयोग ने सर्वदलीय बैठक का दौर भी चलाया, ताकि देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव की परंपरा को बढ़ावा दिया जा सके। आश्चर्यजनक बात तो यह है कि केंद्रीय निर्वाचन की इस कदम को सभी राष्ट्रीय और क्षेत्रीय राजनीतिक दलों ने अपना समर्थन तो दिया, लेकिन बिहार विधानसभा चुनाव में प्रत्याशियों के चयन में इस पर अमल करना गंवारा नहीं समझा गया। यही कारण था कि बिहार विधानसभा चुनाव में 748 अपराधी छवि वाले प्रत्याशियों ने जोर अजमाइश की। चुनाव लड़ने वाले इन दागी प्रत्याशियों में 441 प्रत्याशी तो ऐसे रहे जिनके खिलाफ हत्या, लूट, अपहरण, डकैती, हत्या का प्रयास, बलात्कार जैसे संगीन मामले लंबित चल रहे हैं। बिहार विधानसभा चुनाव के सभी छह चरणों के प्रत्याशियों की घोषणा होने के बाद नेशनल इलेक्शन वॉच के राष्ट्रीय समन्वय अनिल बैरवाल और बिहार चुनाव समन्वक अंजेश कुमार द्वारा 2097 प्रत्याशियों द्वारा दाखिल शपथपत्रों का अध्ययन करने के बाद तथ्य उजागर किये। हालांकि जनता ने ज्यादातर दागियों को नकारा है, लेकिन इसके बावजूद 141 दागी प्रत्याशी चुनाव जीतकर विधानसभा में दाखिल हो गये हैँ, जिनमें 85 विधायक ऐसे हैं जिनके खिलाफ संगीन मामले लंबित चल रहे हैं। जबकि वर्ष 2005 की विधानसभा में ऐसे दागी विधायकों की संख्या 117 थी, जिनमें संगीन मामलों में शामिल 68 विधायक थे। इस बार बिहार में जद(यू)-भाजपा गठबंधन को इन चुनावों में प्रचंड बहुमत मिला और शुक्रवार को नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री की शपथ भी ले ली, लेकिन विधानसभा में पहुंचे 141 दागियों में अधिकांश यानि 116 विधायक सत्तारूढ़ दल के ही हैँ, जिनमें जद(यू) व भाजपा के 58-58 एमएलए हैं। यदि संगीन अपराध में लिप्त विधायकों की बात करें तो उसमें जद(यू) के 43 तथा भाजपा के 29 विधायक हैं। ऐसे में जाहिर सी बात है कि नीतीश कुमार का मंत्रिमंडल भी दागियों से सराबोर रहेगा। विधानसभा में राजद के 22 विधायकों में 13, कांग्रेस के चार में तीन, लोजपा के सभी तीन, सीपीआई का एक तथा छह निर्दलीयो में पांच ऐसे विधायक हैं जिनके खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैँ। बिहार विधानसभा में पहुंचे दागियों में टॉप-10 में जद-यू के छह विधायक शामिल हैं, जिनमे नरेन्द्र कुमार पांडे के खिलाफ 23 आपराधिक मामले दर्ज हैं, जबकि इसी दल के प्रदीप कुमार व मनोरंजन सिंह के खिलाफ 18-18 आपराधिक मामले लंबित चल रहे हैं। इनके अलावा नरेन्द्र कुमार सिंह पर 15, अमरेन्द्र कुमार पांडेय पर 11, शिवजी राय पर आठ मामले लंबित हैँ। भाजपा के सतीश चन्द्र दूबे पर सात, आनंदी प्रसाद यादव पर पांच व अवनीश कुमार सिंह पर सात मामले हैँ। इनके अलावा कांग्रेस के मोहम्मद तोसीफ आलम के खिलाफ छह आपराधिक मामले लंबित हैँ।
करोड़पति विधायकों की संख्या बढ़ी
बिहार विधानसभा में इस बार 47 करोड़पति विधायक दाखिल हुए हैँ, जबकि वर्ष 2005 को गठित विधानसभा में केवल आठ करोड़पति विधायक निर्वाचित हुए थे। इन धनबल वाले विधायको में सबसे ज्यादा 27 जद-यू के विधायक शामिल हैं, जबकि भाजपा के दस, राजद के पांच और कांग्रेस के दो विधायक भी शामिल हैं।

गुरुवार, 25 नवंबर 2010

महिलाओं ने दोहराया अरसे पुराना रिकार्ड

एमएलए बनी 32 महिलाओं में दो मुस्लिम महिलाएं
ओ.पी. पाल
बिहार विधान सभा में जद-यू-भाजपा गठबंधन के प्रचंड बहुमत में महिलाओं को भी महत्व दिया गया है, जहां विधानसभा पहुंचने वाली महिलाओं की संख्या में भी अरसे बाद बढ़ोतरी हुई है। 243 सदस्यों वाली बिहार विधानसभा में इस बार 32 महिलाओं को प्रतिनिधित्व देखने को मिलेगा, जिनमें दो मुस्लिम महिलाएं भी विधायक निर्वाचित होकर आई हैं।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को बिहार के विधानसभा चुनावों में जहां 48 साल पुराना प्रचंड बहुमत मिला और वह दोबारा सत्ताा पर काबिज हुए हैं वहीं 1962 के बाद सबसे ज्यादा 32 महिलाओं को भी प्रतिनिधित्व मिला है। इन चुनावों में खास बात यह रही कि चुनाव में उतारे गए उम्मीदवारों में महिलाओं की भागीदारी सिर्फ 8.74 प्रतिशत ही थी। साढे पांच करोड़ मतदाताओं के बीच पचास प्रतिशत की हिस्सेदारी रखने वाली बिहार की महिलाओं में से बहुत कम ही पुरूषों के दबदबे वाली राज्य की राजनीति में जगह बना पाई हैं। इनमे दो मुस्लिम महिलाएं भी शामिल हैं जो जद-यू के टिकट पर राजद प्रत्याशी को हराकर विधानसभा में पहुंची हैं। इस चुनाव में जहां साहबपुर कमाल क्षेत्र से जद-यू के टिकट पर जहां परवीन अमानुल्लाह ने राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नारायण यादव को हराया, तो वहीं कल्याणपुर से इसी पार्टी की उम्मीदवार रजिया खातून ने राजद उम्मीदवार मनोज कुमार यादव को पराजित करके नीतीश की जीत में योगदान दिया है। यदि इन चुनावों में पांच मुख्य पार्टियों सत्ताधारी जेडीयू और बीजेपी, विपक्षी आरजेडी, एलजेपी और कांग्रेस के साथ वामपंथियों के उम्मीदवारों की फेहरिस्त पर नजर डाले तो कुल 90 महिलाओं को टिकट दिया गया। जेडीयू ने सबसे ज्यादा 24 और बीजेपी ने11 महिलाओं को चुनाव मैदान में उतारा। वहीं मौजूदा स्वरूप में महिला आरक्षण बिल का विरोध करने वाली आरजेडी ने छह और एलजेपी ने सात महिलाओं को अपना उम्मीदवार बनाया था। इससे जाहिर होता है कि महिलाओं की तरक्की की राह में कितने रोड़े हैं। बुधवार को आए बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों के मुताबिक सत्ताधारी जेडीयू-बीजेपी गठबंधन ने 206 सीटें जीतीं जबकि विपक्षी आरजेडी-एलजेपी गठबंधन को 25 सीटों से ही संतोष करना पडा। कांग्रेस के खाते में चार सीटें आई जबकि और झारखंड मुक्ति मोर्चा और सीपीआई को एक-एक सीट मिली है। अन्य के हिस्से 6 सीटें आई हैं। जहां तक बिहार विधानसभा में मुस्लिम विधायकों का सवाल है तो पिछली विधानसभा में 16 मुस्लिम प्रत्याशी थे, लेकिन इस चुनाव में 19 प्रत्याशी विधानसभा में अपनी जगह बनाने में सफल रहे, जिनमें 1972 के बाद पहली बार दो मुस्लिम महिलाए भी विधानसभा में बैठी नजर आएंगी, वो भी सत्ता पक्ष यानि दोनों महिलाएं जद-यू के टिकट पर जीतकर आई हैं। इससे पहले वर्ष 1972 में राज्य के विभाजन से पहले बिहार विधानसभा में दो महिला मुस्लिम विधायक विधानसभा पहुंची थीं।

...तो नहीं चला राहुल का जादू?

कांग्रेस का मुस्लिम फैक्टर भी औंधे मुहं गिरा
ओ.पी. पाल
बिहार विधानसभा के नतीजो ने बता दिया है कि राज्य में न तो कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी का ही जादू चल पाया और न ही कांग्रेस की नीतियों को बिहार की जनता ने स्वीकार किया। बिहार चुनाव ने कांग्रेस को यह भी सबक दिया है कि वह अभी अकेले दम पर बिहार में अपनी खोई हुई राजनीतिक जमीन को हासिल नहीं करने की हैसियत में नहीं है? जिस प्रकार से सत्तारूढ़ जद-यू व भाजपा गठबंधन को जनादेश मिला है उससे यह भी साफ हो गया कि बिहार में जातपात और हवाई राजनीति पर विकास के मुद्दे का जादू भारी पड़ा है।
कांग्रेस को यह अतिविश्वास था कि जिस तरह से लोकसभा चुनाव में कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी के अभियान से उत्तर प्रदेश में उम्मीद की किरण सामने आई थी, उसी तरह से बिहार में युवाओं को राजनीति में प्रोत्साहन उसकी खोई हुई राजनीति को वापस लाने में सफलता मिल सकती है। इसी रणनीति के तहत कांग्रेस पार्टी ने बिहार में अपनी चुनावी बिसात को बिछाते हुए पहली बार अकेले दम पर ही चुनाव लड़ने का फैसला किया। कांग्रेस ने चुनाव से पहले ही बिहार में कांग्रेस को पुनर्जीवित करने की रणनीति का तानाबाना बुनना शुरू कर दिया था और राज्य में युवक कांग्रेस और भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन के प्रभारी राहुल गांधी ने युवक कांग्रेस में संगठनात्मक चुनाव कराने का आधार तैयार करके अपनी प्रतिष्ठा को दांव पर ही नहीं लगाई, बल्कि उन्होंने चुनाव के दौरान ताबड़तोड़ चुनावी जनसभाओं को संबोधित किया। लेकिन इसके विपरीत राहुल गांधी का जादू इतनी बुरी तरह से औंधे मुंह गिरा कि जिन 19 प्रत्याशियों के समर्थन में उन्होंने चुनावी सभाओं को संबोधित किया उनमें से 18 सीटों पर कांग्रेस को हार का मुंह देखना पड़ा। बिहार में कांग्रेस को जमीन पर लाने के लिए कांग्रेस ने मुस्लिम-दलित कार्ड भी खेला और अधिकांश उम्मीदवार मुस्लिम वर्ग से बनाए गये, लेकिन कांग्रेस का मुस्लिम फैक्टर भी किसी काम नहीं आ सका। इसे यूं भी कहा जा सकता है कि बिहार में राजनीतिक जमीन को फिर से तैयार करने के लिए कांग्रेस की सभी रणनीतियां महंगी साबित हुई, जिसमें बिहार कांग्रेस का अध्यक्ष महबूब अली केसर के रूप में मुस्लिम चेहरा लाने के अलावा दलित चेहरे के रूप में केंद्रीय मंत्री मुकुल वासनिक को प्रभारी बनाना भी कांग्रेस का रास न आना शामिल है। इन चुनाव में कांग्रेस छह सीटों पर सिमट कर अपनी पिछली नौ सीटों को भी नहीं बचा पाई। जबकि कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और केंद्रीय मंत्रियों की चुनाव प्रचार में जान फूंकी, लेकिन इसके बावजूद बिहार में कांग्रेस की राजनीति जमीन धरातल से भी नीचे जाती दिखाई दी। इन चुनाव परिणाम को देखने से साफ है कि बिहार में कांग्रेस का झंडा लगभग उखड़ने के कगार पर है। शायद इसीलिए कांग्रेस के सचिव एवं प्रवक्ता मोहन प्रकाश भी यह कहते नजर आए कि इन चुनाव परिणाम को देखते हुए लगता है कि अगले बीस साल तक बिहार में कांग्रेस अकेले दम पर चुनाव की नैया पार नहीं लगा सकेगी। कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी का कहना है कि कांग्रेस बिहार में पार्टी की पृष्ठभूमि के पुनर्निर्माण के लिए लगातार प्रयास को जारी रखेगी। राजनीतिशास्त्र के विशेषज्ञों की माने तो केंद्र में सत्तासीन होने के बावजूद बिहार में यह नाकामी कांग्रेस के लिए एक बड़ी चुनौती है, जिसका कारण चुनाव के दौरान महाराष्ट्र में आदर्श सोसाइटी घोटाला, राष्ट्रमंडल खेल में हुआ करोड़ों का हेर-फेर और 2जी स्पेक्ट्रम में अरबों रुपए के घोटाले ने शायद लोगों के निर्णय को अंतिम क्षणों में बदल डाला, जिसने राहुल गांधी के जादू को भी बेअसर साबित कर दिया। बकौल कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी अब कांग्रेस के सामने यही चुनौती होगी कि वह बिहार में शून्य से कांग्रेस को शुरूआत करनी होगी।

हम तो डूबेंगे...., तुमको भी ले डूबेंगे...

कब तक रहेगा लालू-पासवान का साथ
ओ.पी. पाल
बिहार विधानसभा चुनाव नतीजों के बाद राजद-लोजपा के गठबंधन की विफलता पर यह कहावत चरितार्थ होती नजर आई कि ‘हम तो डूबेंगे सनम, तुमको भी ले डूबेगे..। यानि कांग्रेसनीत यूपीए से अलग होकर लोकसभा चुनाव की तरह बिहार विधानसभा चुनाव में भी लालू-पासवान का मिलकर चुनाव लड़ने में जहां लालू को भारी नुकसान हुआ है तो वहीं पासवान को भी घाटा उठाना पड़ा है। इन चुनाव परिणाम से तो यही लगता है कि दोनों को ही यूपीए से अलग रहना रास नहीं आ रहा है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या लालू-पासवान भविष्य में गठबंधन में रहेंगे या नहीं।
बुधवार को बिहार विधानसभा के चुनाव के परिणाम को देखकर राजद-गठबंधन बैकपुट पर नजर आया। मुस्लिम, यादव और दलित समीकरण के आधार पर गठबंधन करके चुनाव मैदान में उतरी लालू-पासवान की दोस्ती को कतई उम्मीद नहीं थी कि इन चुनाव में धर्मनिरपेक्षता या जातिवाद अथवा वंशवाद की राजनीति धरातल पर आ जाएगी, लेकिन इन सब राजनीतियों पर राज्य में विकास का मुद्दा भारी रहा जिसे चुनाव परिणाम ने साबित भी कर दिया है। राजद और लोजपा यूपीए के घटक दल थे, लेकिन वर्ष 2009 में 15वीं लोकसभा के चुनाव में अलग होकर चुनाव लड़े, जिसका नुकसान कांग्रेस को तो हुआ ही, लेकिन राजद-लोजपा गठबंधन को भी इसका लाभ नहीं मिल सका। यानि लालू की सीटे तो कम हुई थी वहीं लोजपा को तो लोकसभा में खाता खोलने का भी मौका नहीं मिला। जबकि इन बिहार विधानसभा चुनाव के परिणाम भी लालू यादव व पासवान के गठबंधन करके फिर जोर अजमाइश की, जिसमें पासवान के साथ लालू को भी गहरा झटका लगा है। हालांकि राजद-लोजपा को उम्मीद थी कि जद(यू)-भाजपा गठबंधन के मुकाबले उनका गठबंधन बिहार की राजनीति पर हावी रहेगा। राजग के विकास के मुद्दे को नकारात्मक रूप से पेश करने और नीतिश पर निजी कटाक्ष करने में भी लालू-पासवान की दोस्ती ने कोई कसर नहीं छोड़ी, वहीं कांग्रेस से दूरी बनाकर राजद-लोजपा ने केंद्र पर भी निशाने साधे और मुस्लिम, यादव तथा दलित फैक्टर के सहारे चुनाव लड़ा। उधर नीतिश ने नरेन्द्र मोदी को नहीं आने दिया तो राजद-लोजपा से मस्लिम वोट बैंक भी खिसका और पासवान के दलितो के वोट बैंक को नीतीश ने महादलित का नारा दिया तो नीतीश को उसका लाभ मिला और लालू-पासवान हाथ मलते रह गये। शायद लालू-पासवान मौजूदा राजनीति या बिहार के मिजाज को समझने में भी चूक कर गये कि जनता क्या चाहती है। वर्ष 2005 के चुनाव में बिहार विधानसभा में राजद के 54 और लोजपा के दस विधायक थे, लेकिन इस बार दोनों को ही कुल 30 सीटों पर संतोष करना पड़ा। लालू व पासवान की इस दोस्ती में यही कहावत चरितार्थ होती नजर आती है कि हम तो डूबेंगे...तुमको भी ले डूबेंगे। कुछ यूं भी कहा जा सकता है कि लालू व पासवान कितने पास हैं और कितने दूर हैँ? लालू व पासवान का साथ लालू यादव के शासनकाल में भी रहा है, लेकिन यूपीए से अलग होने पर लालू की राजनीति धरातल पर आ रही तो उससे कहीं ज्यादा नुकसान पासवान को भुगतना पड़ रहा है। शायद लालू की मजबूरी थी कि वे पासवान को अपने साथ लें, क्योंकि अगर पासवान कांग्रेस के साथ चले जाते तो लालू मुश्किल में पड़ सकते थे। लेकिन राजनीति के लाभ और हानि में पुराने दोस्तों का यह गठबंधन उन्हें अब भारी पड़ता नजर आ रहा है। अब यही सवाल उठ सकते हैं कि लालू व पासवान की दोस्ती कब तक चलेगी, जिसका बिहार की राजनीति पर भी विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। ऐसे में दोनों ही नेताओं के सामने राजनीतिक संकट गहरा गया है।

कहां गया वो कांग्रेस दबदबा

23 में से 17 कांग्रेस के बने मुख्यमंत्री
ओ.पी. पाल
कांग्रेस को बिहार चुनाव में अपनी जमीन तैयार करने के लिए भले ही मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा हो, लेकिन राज्य में कांग्रेस का ही अधिक दबदबा रहा है, जिसने 43 साल यानि सबसे ज्यादा शासन चलाया है।
आजादी के बाद से ही बिहार में कांग्रेस का वर्चस्व था, जब वर्ष 1946 में श्रीकृष्ण सिन्हा ने मुख्यमंत्री का पद संभाला तो वे वर्ष 1961 तक लगातार इस पद पर बने रहे। यदि चार छोटे गैर कांग्रेस सरकारों के कार्यकाल को छोड़ दें तो 1946 से वर्ष 1990 तक राज्य में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ही सत्तारुढ़ रही है। पहली बार पाँच मार्च 1967 से लेकर 28 जनवरी 1968 तक महामाया प्रसाद सिन्हा के मुख्यमंत्रित्व काल में जनक्रांति दल का शासन रहा। इसके बाद 22 जून 1969 से लेकर चार जुलाई 1969 तक कांग्रेस के ही एक धड़े कांग्रेस (ओ) का शासन रहा और भोला पासवान शास्त्री ने मुख्यमंत्री का पद संभाला। 22 दिसंबर 1970 से दो जून 1971 तक सोशलिस्ट पार्टी के लिए कपूर्री ठाकुर मुख्यमंत्री रहे और फिर 24 जून 1977 से 17 फरवरी 1980 तक कपूरी ठाकुर और रामसुंदर दास के मुख्यमंत्रित्व काल में जनता पार्टी का शासन रहा। बिहार को राजनीतिक रुप से काफी जागरुक माना जाता है लेकिन यह राजनीतिक रुप से सबसे अस्थिर राज्यों में से भी रहा है। शायद यही वजह है कि वर्ष 1961 में श्रीकृष्ण सिन्हा के मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद 1990 तक करीब तीस सालों में 23 बार मुख्यमंत्री बदले और पाँच बार राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा। संगठन के स्तर पर कांग्रेस पार्टी राज्य स्तर पर कमजोर होती रही और केंद्रीय नेतृत्व हावी होता चला गया, लेकिन इस बार के चुनावी नतीजो से साफ दिखता है कि बिहार की राजनीतिक लगाम कांग्रेस के हाथों से भी फिसलती रही और राज्य में जिन तीस सालों में 23 मुख्यमंत्री बदले उनमें से 17 कांग्रेस के ही थे।

जातिवाद के ठप्पे को मिटाने के संकेत

ओ.पी. पाल
बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का काम और विकास का मॉडल विधानसभा चुनावों के जरिए सत्ता में वापसी का सपना देख रहे दावेदारों पर भारी पड़ा है। चुनाव के नतीजों ने साफ कर दिया है कि राज्य के लोग पिछड़ेपन के ठप्पे से मुक्ति चाहते हैं। इस चुनाव में जहां कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी का करिश्मा बेअसर रहा, वहीं लालू की वापसी के दरवाजे बंद कर लोगों ने साफ कर दिया कि वे दागियों के हाथ में बिहार का भविष्य सौंपने को तैयार नहीं हैं। इन चुनावों सबसे ज्यादा दागी प्रत्याशियों को लालू ने चुनाव मैदान में उतारा था, जिन्हें जनता ने सबक सिखा दिया है। राज्य में कोई ढाई दशक बाद पहली बार यह चुनाव विकास के मुद्दे पर लड़ा गया। चुनावी नतीजों ने यह भी साफ कर दिया है कि बिहार अब जात पात की राजनीति से ऊपर उठ रहा है। लंबे अरसे से यहां जातिगत आधार पर ही चुनाव लड़े जाते रहे हैं, लेकिन चुनावी नतीजों ने इस मिथक तोड़ दिया है। आखिर नीतीश सरकार की इस कामयाबी का राज क्या है? इस सवाल के जवाब में लोग कहते देखे गये कि अब राज्य के लोगों में राजनीतिक जागरूकता बढ़ी है और लोग तमाम दलों और नेताओं की असलियत समझ चुके हैं। इसलिए जिसने विकास के कार्यों के जरिए उम्मीद की लौ जगाई थी, लोगों ने दोबारा उसे ही पहले के मुकाबले भारी बहुमत के साथ सत्ता सौंपी है। ऐसा लगता है कि लोग नेताओं के झूठे वादों से ऊब गए हैं। नीतीश सरकार के बीते पांच साल के काम काज को ध्यान में रखते हुए ही लोगों ने उसे सत्ता में बनाए रखा है। नीतीश की साफ सुथरी छवि भी उनके पक्ष में गई है। लालू और रामविलास पासवान के बीच गठजोड़ और बिहार के विकास के लंबे चौड़े दावों और वादों के बावजूद उनके पिछले रिकार्ड को ध्यान में रखते हुए जनता ने उनको नकार दिया। बिहार से अब यही आवाजा आ रही है कि अब सबको समझ में आ गया है कि चुनाव के दौरान सतरंगी सपने दिखाने वाले नेता जीतने के बाद राज्य और लोगों के विकास की बजाय अपने विकास में लग जाते हैं। यही कारण रहा कि इस बारी जातीय समीकरण फेल हो गए और कामकाज के आधार पर ही वोट पड़े हैं। लेकिन कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी और युवराज कहे जाने वाले महासचिव राहुल गांधी के तूफानी दौरों के बावजूद कांग्रेस को फायदे की बजाय नुकसान क्यों हुआ? इस सवाल की अलग-अलग व्याख्या की जा रही हैं। पहला तो ये कि आम लोगों में सुगबुगहाट है कि कांग्रेस का पिछला रिकार्ड अच्छा नहीं रहा। पार्टी के नेता भी सत्ता में रहते अपना विकास करने में ही जुटे रहे। कांग्रेस यदि लालू की राजद के साथ मिल कर भी लड़ती तो नतीजा बेहतर नहीं होता। हालांकि दूसरी ओर कांग्रेस के नेताओं का कहना है कि बिहार के वोटरों ने संकेत दे दिया है कि भविष्य उसी (कांग्रेस) का है। विपक्ष के बिखराव ने वोटरों के धुव्रीकरण में अहम भूमिका निभाई है। राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि बरसों बाद बिहार में मुद्दों पर आधारित चुनाव हुए हैं। जातीय समीकरणों से उठ कर लोग विकास के पक्ष में लामबंद हुए हैं। यही नहीं, कुछ साल पहले तक लालू प्रसाद का वोट बैंक समझे जाने वाले अल्पसंख्यकों ने भी नीतीश सरकार का खुल कर समर्थन किया है। इसलिए यह नतीजे बिहार की राजनीति में एक नए अध्याय की शुरूआत का संकेत हैं।

कितना चलेगा कांग्रेस व् राहुल का जादू?

बताएंगे बिहार चुनाव नतीजे
ओ.पी. पाल
बिहार विधानसभा चुनाव का बुधवार को परिणाम आ रहा है जिसके नतीजों से तय हो जाएगा कि पहली बार अकेले दम पर चुनाव में उतरी कांग्रेस बिहार के लोगों में कितना असर छोड़ पाई है। साथ ही यह भी तय हो जाएगा कि कांग्रेस और राहुल गांधी का युवाओं को राजनीति में बढ़ावा देने के लिए चलाया गया जादू चल पाया है या नहीं?
कांग्रेस पार्टी ने बिहार विधानसभा चुनाव में अकेले दम पर ही अपनी पुरानी राजनीतिक जमीन को हासिल करने के लिए कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी के युवाओं को राजनीति में आगे बढ़ाने की रणनीति को अधिक बढ़ावा दिया और ज्यादातर मुस्लिमों को अपना उम्मीदवार बनाया। वहीं राज्य में युवक कांग्रेस और भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन के प्रभारी राहुल गांधी ने युवक कांग्रेस में संगठनात्मक चुनाव कराने का आधार तैयार करके अपनी प्रतिष्ठा को दांव पर लगाने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी, तो वहीं कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी भी इन चुनाव में प्रचार करने बिहार के दौरे पर गई। दूसरी ओर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और अन्य केंद्रीय मंत्रियों ने धरातल पर पड़ी कांग्रेस की जमीन तैयार करने के लिए चुनाव में जान फूंकने का काम किया। कांग्रेस केसाथ गठबंधन से अलग हुए राजद-लोजपा के वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए कांग्रेस ने पहले ही अपनी रणनीति बनाकर महबूब अली केसर को प्रदेशाध्यक्ष बनाकर अपने इरादे जाहिर कर दिये थे। वहीं दलितों को आकर्षित करने के लिए केंद्रीय मंत्री मुकुल वासनिक को राज्य का प्रभारी भी बनाया। यानि राजद के लालू यादव के एम और लोजपा के राम विलास पासवान को उनकी हैसियत दिखाने का कांग्रेस ने पूरा इंतजाम करके मुस्लिम-दलित समीकरण के बूते पर पहली बार अकेले दम पर चुनाव लड़ा। इन चुनावों के आने वाले नतीजे यह तय करेंगे कि बिहार में युवाओं को कांग्रेस में तरजीह देने का जादू चला है या नहीं? राष्ट्रीय राजनीति की दशा करने के लिए भी कांग्रेस की बिहार विधान चुनाव में प्रतिष्ठा दांव पर है।
वैसे तो कांग्रेस ने वर्ष 2009 में हुए 15वीं लोकसभा चुनाव में ही राजद-लोजपा से नाता तोड़कर चुनाव लड़ा था, हालांकि इसका लाभ न तो कांग्रेस और न ही राजद व लोजपा को मिल पाया था। कांग्रेस तो इन चुनावों में यह दावा करती रही है कि इन चुनावों मे जितना उत्साहजनक माहौल उसके पक्ष में है ऐसा पिछले 15 सालों में भी देखने को नहीं मिला। जहां तक राज्य में कांग्रेस के जनाधार का सवाल है वहां इससे पहले अक्तूबर 2005 में हुए चुनावों में कांग्रेस को 9 सीटों और छह फीसदी मतों से ही संतोष करना पड़ा था। वर्ष 2005 में हुए दोनों विधानसभा चुनाव कांग्रेस के लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण थे क्योंकि 243 सीटों में से कांग्रेस ने फरवरी में 84 और अक्तूबर नवंबर में 51 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे। इसके विपरीत कांग्रेस इस बार सभी सीटों पर चुनाव लड़ रही है। यह नहीं कांग्रेस बिहार में वर्ष 1952 से लगातार तीन विधानसभा चुनावों में सफलत रही और वर्ष 1952 में २३९ सीटें, वर्ष 1957 में 210 सीटें और वर्ष 1967 में १९५ सीटें हासिल कर सत्ता में रही है। जबकि वर्ष 1969 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 118 सीटें मिली, लेकिन उसने अन्य दलों के साथ सत्ता को अपने पास रखा और उसके बाद दो झटको के बाद वर्ष 1980 व वर्ष 1985 के चुनाव में अपनी ताकत दिखाई। 15 साल तक बिहार में राजद के लालू को समर्थन दे रही कांग्रेस अकेले दम पर चुनाव लड़कर क्या हासिल करेगी इसका पता आज आने वाले चुनाव के नतीजे साफ कर देंगे।

लालू-पासवान उभरेंगे या डूबेंगे

राजद-लोजपा की दोस्ती दांव पर
ओ.पी. पाल
बिहार विधानसभा की 243 सीटों पर हुए चुनाव को लेकर वैसे तो सभी प्रमुख दल अपनी-अपनी जीत के दावे कर रहे हैं, लेकिन चुनावों के बाद आए एक सर्वेक्षण ने लालू-पासवान की दोस्ती को हाशिये पर दिखाकर उनकी बेचैनी को बढ़ा दिया है। कुछ भी हो बुधवार को आने वाले चुनाव के नतीजे यह तय करेंगे कि लालू यादव और पासवान की दोस्ती उभरेगी या फिर डूब जाएगी?
बिहार में राजद-लोजपा गठबंधन ने अपना मुकाबला सत्तारूढ़ जद-यू गठबंधन से माना है, लेकिन यूपीए से अलग हुए लालू व पासवान के राजनीतिक नुकसान लोकसभा चुनाव में ही नजर आ गया था। बिहार में 15 साल तक शासन करने वाले लालू प्रसाद यादव अपनी बड़बोलेपन की कमजोरी से जिस प्रकार से पासवान के साथ राज्य में अपने जनाधार को पाने की उम्मीद लगा रहे थे, उनकी वह उम्मीद इन चुनाव में बनी रहेगी या फिर वे हाशिए पर होंगे। यह तो आने वाले चुनाव नतीजे ही तय करेंगे। लेकिन जिस प्रकार से चुनावी सर्वेक्षण ने नीतिश की वापसी के संकेत दिये हैं उससे लालू-पासवान की बेचैनी अधिक बढ़ गई है। लोकसभा चुनाव के समय ही यूपीए से अलग होकर चुनाव लड़ने वाले राजद-लोजपा ने बिहार विधानसभा चुनाव में बड़ी ही उम्मीद से एक बड़ा और उत्साह के साथ दांव खेला है। लालू-पासवान गठबंधन में लोजपा को राजद ने 243 में 78 सीटें दी हैं। राजद का बिहार में माई यानि मुस्लिम और यादव समीकरण रहा है जिसके आधार पर राजद ने कांग्रेस व अन्य दलों के समर्थन से 15 साल तक शासन किया, लेकिन इस समीकरण में राजग व कांग्रेस ने भी सेंध लगा रखी है। यदि बुधवार २४ नवंबर को आने वाले चुनाव नतीजों में राजद-लोजपा की राजनीतिक स्थिति पिछले लोकसभा चुनाव की तरह ही रही और जैसा माना जा रहा है के अनुसार नीतिश की वापसी हो गई तो जाहिर सी बात है कि राजद-लोजपा की धर्मनिरपेक्ष की रणनीति का जादू पर विकास की लहर को भारी माना जाएगा। यह तो चुनाव नतीजे ही तय करेंगे कि लालू-पासवान की दोस्ती मजबूत होकर सामने आएगी या फिर इस गठबंधन की नैया डूबती नजर आएगी। लालू यादव 1990 में पहली बिहार के मुख्यमंत्री बने और 2004 में एनडीए की करारी हार के बाद लालू यूपीए सरकार में रेलमंत्री बने। नेतृत्व क्षमता के साथ उनकी पिछड़ों और मुसलमानों में भी अच्छी खासी पैठ है। जबकि लोक जनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष राम विलास पासवान अब तक आठ बार लोकसभा सदस्य और पांच विभिन्न प्रधानमंत्रियों की सरकार में मंत्री रह चुके हैं। सबसे अधिक मतों से जीत हासिल करने का रिकार्ड भी पासवान के नाम है, लेकिन पिछले लोकसभा चुनाव में उन्हे करारी हार का मुहं देखना पड़ा था। इन चुनाव में लालू-पासवान के गठजोड़ को यदि शिकस्त मिली तो इस गठबंधन के भविष्य पर भी अंधकार के बादल मंडरा सकते हैँ।

मंगलवार, 23 नवंबर 2010

...तो रात को भी चलेगा संसद का सदन

 प्रमोद महाजन की व्यवस्था याद आएगी!
ओ.पी. पाल
बहुचर्चित 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले की जांच के लिए संयुक्त संसदीय समिति का गठन करने की मांग पर अड़िग विपक्ष की एकजुटता के कारण संसद के शीतकालीन सत्र की कार्यवाही पहले दो सप्ताह नहीं चल सकी है। यदि संसद की कार्यवाही को सुचारू रूप से चलाने के लिए सत्ता पक्ष और विपक्ष में सहमति बन भी जाती है तो जाहिर सी बात है कि संसद के दोनों सदनों में देर रात तक बैठकें होंगी। मसलन ऐसी स्थिति में संसद के अधिकारियों एवं कर्मचारियों को फिर राजग शासनकाल के दौरान रहे संसदीय कार्य मंत्री प्रमोद महाजन की याद आ जाएगी, जिनके वक्त संसद के देर रात तक चलने की स्थिति में संसद के कर्मचारियों को सुविधाएं मुहैया होती थी, जो यूपीए सरकार नही दे पा रही है।
संसद के किसी भी सत्र में सरकार हंगामें या व्यवधान से बर्बाद होने वाले समय की भरपाई करने के लिए देर रात तक सदन की कार्यवाही को जारी रखता है। ऐसा प्रावधान पहले से ही है और रात्रि 10 बजे तक संसद की कार्यवाही चलाने के कई अवसरों को याद भी किया जा सकता है। संसद के शीतकालीन सत्र के पहले छह दिन बहुचर्चित 2जी स्पेक्ट्रम और अन्य भ्रष्टाचार की भेंट चढ़े हैँ जिसमे समूचा विपक्ष 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में संचार मंत्री ए. राजा के इस्तीफे के बाद अब इस मामले की जांच के लिए संयुक्त संसदीय समिति यानि जेपीसी के गठन की मांग कर रहा है। विपक्ष पहले ही अपने तीखे तेवर दिखाते हुए सरकार को ललकार चुका है कि जब तक सरकार जेपीसी का गठन नहीं करती तब तक संसद की बाधित हो रही कार्यवाही के लिए स्वयं सरकार ही जिम्मेदार होगी। ऐसे में सरकार की और से बीच का रास्ता निकालने के लिए कई प्रयास हो चुके हैं ताकि सदन की कार्यवाही सुचारू रूप से चल सके। इसके लिए स्वयं प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इस मामले में दोषियों को सजा दिलाने का आश्वासन भी दिया और विपक्ष से सदन की कार्यवाही चलने देने का यह कहकर आव्हान किया कि सरकार किसी भी राष्ट्रीय मुद्दे पर संसद में चर्चा कराने को भी तैयार है। अब सवाल है कि यदि विपक्ष की मांग पर सरकार जेपीसी का गठन भी कर देती है या फिर सत्ता पक्ष व विपक्ष में किसी प्रकार सदन चलाने की सहमति बन जाती है, तो निश्चित रूप से संसद के शीतकालीन सत्र में सरकार के एजेंडे में शामिल कामकाज को पूरा करने के लिए संसद की कार्यवाही को देर रात तक चलाना पड़ेगा ताकि बर्बाद हुए समय की भरपाई हो सके। अब सवाल उठता है कि ऐसी संभावनाओं की चर्चा संसद के गलियारों में आम रूप से भी चल रही है कि यदि किसी भी सहमति बनी तो देर रात तक चलने वाली संसद की कार्यवाही के दौरान संसद के अधिकारी, कर्मचारी, सुरक्षाकर्मी और अन्य लोगों को राजग शासन काल का वही समय याद आ जाएगा, जब रात्रि में संसद की कार्यवाही चलने पर तत्कालीन संसदीय कार्य मंत्री प्रमोद महाजन संसद के इन अधिकारियों व कर्मचारियों को खाने-पीने तथा घर तक छुडवाने की व्यवस्था को अनिवार्य रूप से अंजाम देते रहे हैं। संसद में सत्र के दौरान हरिभूमि संवाददता की संसद के कई कर्मचारियों, सुरक्षा कर्मचारियों तथा अन्य उन लोगों से बातचीत हुई जिन्हें देर रात को संसद की कार्यवाही चलने की संभावना का डर सता रहा है। संसद में सत्र के दौरान ऐसी स्थिति पर संसद में अपनी डयूटी को अंजाम देने वाले इन कर्मचारियों का यही कहना है कि राजग शासन काल में प्रमोद महाजन के जमाने में जो उन्हें सुविधाएं मिली हैं उसके इतर आज तक अन्य किसी भी पार्टी की सरकार में नही मिल पाई और न ही मौजूदा यूपीए सरकार ऐसी स्थिति में संसद में अपनी डयूटी को अंजाम देने वाले कर्मचारियों के सुख-चैन छीनने पर सहज है।

हरियाणा पवैलियन में सौर ऊर्जा

अंतर्राष्ट्रीय मेले की थीम में आगे
ओ.पी. पाल
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेले की थीम सौर ऊर्जा की वैकल्पिक व्यवस्था और तकनीकी जानकारी को हरियाणा पवैलियन में जिस प्रकार से प्रदर्शित किया गया है उसमें जीवन के पांच तत्वों अग्नि, वायु, जल, आकाश और पृथ्वी के मिश्रण का फोकस है। वहीं हरियाणा की संस्कृति तथा राज्य में हर क्षेत्र में विकास को विस्तारित जानकारी के साथ संजोया गया है। राष्ट्रमंडल खेलों में दो तिहाई पदक हरियाणा के जिन खिलाड़ियों ने बटोरे हैं उनके फोटो भी पवैलियन में फोकस किये गये हैं। यही कारण है कि अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेले में हरियाणा पवैलियन दर्शकों को आकर्षित कर रहा है।
यहां प्रगति मैदान में चल रहे अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेले में हरियाणा पवैलियन को सजीव आकार दिया गया है, जिसमें मेले की थीम ऊर्जा की बचत में सौर ऊर्जा के वैकल्पिक उपयोग तथा उसकी तकनीकी जानकारी को प्रमुख रूप से दर्शाया गया है यानि हरियाणा पवैलियन के बाहर ही प्रवेश द्वार तथा निकास द्वार तक सौर ऊर्जा को तकनीकी जानकारी के साथ उपकरणों से सजाया गया है, तो वहीं हरियाणा की संस्कृति की झलक भी इस बाहरी साजसज्जा में नजर आ रही है, जिसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क परिवहन और स्वच्छ जल व स्वच्छ ग्रामीण की झलक शामिल है। पवैलियन में प्रवेश करते ही हरियाणा राज्य की सरकार की उपलब्धियों के साथ शिक्षा, स्वास्थ्य, सिंचाई, कृषि, विज्ञान प्रौद्योगिकी, औद्योगिक विकास, सामाजिक, आर्थिक, आवास, सड़क और अन्य विकास की झलकियां सचित्र विवरण के साथ प्रदर्शित की गई हैँ। वहीं हरियाणा हार्टिकल्चर पंचकूला ने एक स्टाल के जरिए मेले में आने वाले दर्शकों को हार्टिकल्चर और आधुनिक बीज की जानकारी देने की व्यवस्था की है। सौर ऊर्जा और तकनीकी जानकारी के अलावा राष्ट्रमंडल खेलों में जिन हरियाणा के 32 खिलाड़ियों ने स्वर्ण पदक हासिल किये हैं उनके चित्रों को मुख्य फोकस में रखकर यह संदेश दिया है कि सरकार हरियाणा में खेल नीति को कितनी मजबूती से बढ़ावा दे रही है उसी का नतीजा है कि राष्ट्रमंडल खेलों में भारत के हिस्से में आए 101 पदकों में दो तिहाई हिस्सेदारी हरियाणा के खिलाड़ियों की है। वहीं पर्वतारोहण में हरियाणा की ममता सौदा के चित्र को विशेष स्थान दिया गया है जिसने एवरेस्ट की चोटी फतह करके राज्य को एक नई पहचान दी है। पवैलियन में प्रतिदिन सेमीनार आयोजित किये जा रहे हैं जिनमें ऊर्जा संरक्षण, उसकी खपत कम करने की उन्नत तकनीक, परिवहन में ऊर्जा की बचत, स्वच्छ व ऊर्जा खपत कम करने वाले उपकरणों की जानकारी, उनकी सेवाओं की संभावनाएं, बिजली यंत्रों का ऊर्जा बचत के लिए आधुनिकीकरण, ऊंची इमारतों में ऊजा रोधी उपकरणों का प्रयोग तथा ऊर्जा बचत करने वाले उपकरणों की उपयोगिता जैसे विषय रखे गये हैं जिसमें इस विषय के विशेषज्ञ अपना मत रख रहे हैं। हरियाणा पवैलियन में हरियाणा की कला और शिल्पकला तथा देहात की परंपरा को भी हरियाणा के उत्पाद दर्शा रहे हैं। पवैलियन के अधिकारी सुरेश शर्मा का कहना है कि इस पवैलियन में हरियाणा सरकार ने ऊर्जा की खपत को कम करने के लिए सौर ऊर्जा को वैकल्पिक तौर पर उपयोग करने में जो उपलब्धि हासिल की है उसके यमुनानगर, खेदड के प्लांट को भी दिखाया है तो वहीं फरीदाबाद व गुडगांव तक मैट्रो रेल सेवा को प्रदर्शित किया गया है। इसी प्रकार हरियाणा के विकास के साथ सामाजिक विकास की योजनाओं का भी प्रदर्शन किया गया है।

शुक्रवार, 19 नवंबर 2010

बिहार विस में जाने की जुगत में 748 दागी

ओ.पी. पाल
राजनीति में बढ़ते अपराधीकरण इसी बात से लगाया जा सकता है कि बाहुबल और धनबल को राजनीति से दूर रखने की दुहाई देने वाले राजनीतिक दलों ने भी बिहार विधानसभा चुनाव में आपराधिक छवि वाले उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारने में कोई कसर नहीं छोड़ी और इन चुनावों में 748 विभिन्न दलों के प्रत्याशी विधानसभा में जाने के लिए अपनी किस्मत आजमा रहे हैं, जिसमें राजद ने ऐसे सबसे ज्यादा 91 लोगों को अपना उम्मीदवार बनाया है। इन दागियों में 441 प्रत्याशी ऐसे हैँ जिनके खिलाफ लूट, हत्या, बलात्कार, अपहरण, हत्या का प्रयास जैसे जघन्य अपराध लंबित है। बिहार की इस राजनीतिक तस्वीर को देखने से लगता है कि केंद्रीय चुनाव आयोग द्वारा स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव की परंपरा को बढ़ावा देने की हो रही कवायद राजनीतिक दलों के लिए कोई मायने ही नहीं रखती।
केंद्रीय निर्वाचन आयोग ने निष्पक्ष और स्वच्छ चुनाव की परंपरा को बढ़ावा देने के लिए बिहार विधानसभा चुनाव से पहले ही सर्वदलीय नेताओं की बैठक करके विचार विमर्श कर चुका है। सबसे बड़ी आश्चर्यजनक बात है कि आयोग के साथ बैठक में कोई भी दल ऐसा नहीं था जिसने चुनावों में बाहुबल और धनबल का विरोध न किया हो, लेकिन इसके विपरीत किसी भी दल ने बिहार विधानसभा के छह चरणों में जारी चुनाव में बाहुबल और धनबल से तनिक भी परहेज करना गंवारा नहीं समझा और और ऐसा लगता है कि जैसे 242 सदस्यों वाली बिहार विधानसभा को दागियों का सदन बनाने का प्रयास किया जा रहा हो। चुनाव में उम्मीदवारों का उनके द्वारा नामांकन पत्र दाखिल करते समय दिये जाने वाले शपथपत्रों का सर्वे करने वाली गैर सरकारी संगठन एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफोर्म्स और नेशनल इलेक्शन वॉच ने बिहार विधानसभा के सभी छह चरणों में विभिन्न राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों का जो अध्ययन किया है उससे जो तथ्य सामने आये हैँ उससे तो यही लगता है कि राजनीतिक दलों के लिए केंद्रीय चुनाव आयोग की जारी कवायद कोई मायने नहीं रखती। बिहार विधानसभा चुनाव के सभी छह चरणों के प्रत्याशियों की घोषणा होने के बाद नेशनल इलेक्शन वॉच के राष्ट्रीय समन्वय अनिल बैरवाल और बिहार चुनाव समन्वक अंजेश कुमार द्वारा जारी तथ्यों को देखें तो पता चलता है कि जिन 2097 उम्मीदवारों के शपथपत्रों का सर्वे किया गया है उसमें 748 दागियों में आपराधिक छवि के लोगों को गले लगाने में लालू यादव के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनता दल है जिसने अपने 165 उम्मीदवारों में 91 आपराधिक प्रत्याशियों को विधानभा में भेजने का दांव खेला है। इसके बाद कांग्रेस पार्टी और बहुजन समाज पार्टी है, इन्होंने क्रमश: 232 व 227 में से 87-87 ऐसे ही दागी प्रत्याशियों को उम्मीदवार बनाया है जिनके सिर पर आपराधिक मुकदमें चल रहे हैं। सत्तारूढ़ जनतादल (यू) ने 140 में 76, भाजपा ने 99 में 64 तथा लोजपा ने 72 में ऐसे 40 उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारा है, जिनके खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैँ। 748 दागी उम्मीदवारों में से 441 उम्मीदवारों के खिलाफ जघन्य अपराध अदालतों में विचाराधीन चल रहे हैं। शेष प्रत्याशी अन्य दलों व निर्दलीय शामिल है जो दागियों की सूची में हैँ। जिन उम्मीदवारों के खिलाफ संगीन अपराध लंबित हैं उनमें राजद के 41 प्रतिशत, जदयू के 56 प्रतिशत, भाजपा के 80 प्रतिशत, कांग्रेस के 35 प्रतिशत, बसपा के 42 प्रतिशत तथा लोजपा के 75 प्रतिशत उम्मीदवार शामिल हैं। जहां तक धनबल का सवाल है उसमें कांग्रेस सबसे ऊपर है जिसने 53 करोड़पतियों को टिकट दिया है, जबकि राजद ने 47, जदयू ने 35, लोजपा व भाजपा ने 14-14, बसपा ने 13 राकांपा ने पांच तथा सपा व जद-एस ने तीन-तीन धनपतियों को अपना उम्मीदवार बनाया है, जबकि 19 करोड़पति निर्दलीय रूप से भी अपनी किस्मत आजमा रहे हैं।

अब एड्स से बचाएगा रेलवे!

अभियान में तैयार किया जादू का खेल
ओ.पी. पाल
भारतीय रेलवे पर लगभग पन्द्रह लाख कर्मचारी हैं जिन्हें इस एड्स जैसी बीमारी से बचाने के लिए उत्तर रेलवे ने कमर कस ली है। उत्तर रेलवे ने रेलवे कर्मचारियों में एड्स के प्रति जागरूकता अभियान शुरू करते हुए संगोष्ठियों में जादू का खेल तैयार किया है। लम्बे समय तक अपने परिवार से दूर रहकर कार्य करने वाले रेल कर्मचारियों जैसे रेलवे सुरक्षा बल के जवान, रेलवे ड्राइवर, गार्ड इत्यादि को इस बीमारी की सम्भावना बहुत अधिक रहती है। थोड़ी सी सावधानी बरतकर इस खतरे को टाला जा सकता है। सामूहिक सामाजिक जिम्मेदारी के एक अंग के रूप में उत्तर रेलवे ने दिल्ली क्षेत्र के सभी बड़े रेलवे स्टेशनों, जिनमें नई दिल्ली, दिल्ली जंक्शन, हजरत निजामुद्दीन, गाजियाबाद शामिल हैं, तथा प्रधान कार्यालय में भी संगोष्ठियों और सूचनाओं के आदान प्रदान से इस दिशा में उल्लेखनीय प्रयास किए हैं। इसके लिए रेलवे संगोष्ठियों के सत्रों में एड्स की बीमारी से ग्रस्त लोगों के साथ रेल कर्मचारियों से बातचीत की जाएगी, वही एड्स के फैलने वाले माध्यमों को केन्द्र में रखते हुए तथा इससे बचाव के तरीकों को ध्यान में रखकर जादू का खेल तैयार किया गया है के तहत नुक्कड नाटक का प्रदर्शन किया जाएगा। इसके अलावा इन सत्रों के आयोजन स्थल पर एड्स जागरूकता सम्बन्धी पोस्टर तथा इच्छुक कर्मचारियों के एड्स परीक्षण की सुविधा भी उपलब्ध कराई जाएगी। इन सत्रों में अब तक लगभग 300 कर्मचारियों ने एड्स सम्बन्धी जांच कराई। यह कार्यक्रम अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के एक गैर सरकारी संगठन इंडिया केयर्स द्वारा एड्स हैल्थ केयर फाउण्डेशन के सहयोग से आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम को इस तरह से डिजाइन किया गया कि इसे देखने वाली भारी भीड़ एड्स विषय पर आधारित नुक्कड़ नाटक के माध्यम से जागरूक हो सके। इस सत्र में शामिल होने वाले लोगों को 5000 से अधिक निरोध वितरित किए गए। इन सत्रों को मिलने वाली भारी सफलता को देखते हुए उत्तर रेलवे ने आरपीएफ बैरकों और कुछ अन्य कार्यालयों के पास निरोध वितरित करने वाली मशीनें लगाने का निर्णय किया है। उत्तर रेलवे अपने कर्मचारियों एवं उनके परिजनों को विभिन्न बीमारियों एवं उनके प्रभावों से बचाने के लिए हर संभव सहायता करने के लिए प्रतिबद्ध है।

रविवार, 14 नवंबर 2010

यूपीए की मुश्किलें बढ़ाता राजा हटाओ अभियान!

पूर्व दूरसंचार सचिव के खुलासे से विपक्ष मजबूत
ओ.पी. पाल
देश के बहुचर्चित 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में कैग की रिपोर्ट में दोषी बताए गये दूरसंचार मंत्री ए. राजा को हटाने के लिए केंद्र सरकार पर बनाए जा रहे विपक्ष के दबाव को पूर्व दूरसंचार सचिव के खुलासे से बल मिला है। जिसे देखते हुए कल सोमवार से संसद में दूरसंचार मंत्री ए. राजा को हटाने की मांग के लिए विपक्ष द्वारा चलाया जा रहा अभियान यूपीए सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है।
केंद्रीय दूरसंचार मंत्रालय द्वारा 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन संबंधी नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट संसद के इसी सत्र में पेश होनी है, लेकिन कैग की इस रिपोर्ट में दूरसंचार मंत्री ए. राजा को दोषी मान लिये जाने को लेकर विपक्ष राजा को हटाने के लिए सरकार पर दबाव बनाने का अभियान चला रहा है जिसके अगले सप्ताह और अधिक जोर पकड़े जाने की संभावना है। संसद के शीतकालीन सत्र के पहले तीन दिन भ्रष्टाचार और 2जी स्पेक्ट्रम तथा आदर्श सोसायटी घोटाले की भेट चढ़ चुके हैँ। सूत्रों के अनुसार वित्त मंत्रालय ने भी इस 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले से संबन्धित एक रिपोर्ट राष्ट्रपति को भी भेजी है, जबकि कैग रिपोर्ट को संसद में पेश की जाएगी। भाजपा के नेतृत्व में करीब समूचा विपक्ष कैग की 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन संबंधी इस रिपोर्ट के आधार पर राजा को पद से हटाने की मांग कर रहा है। ए. राजा को हटाने की मांग पर यूपीए सरकार और विपक्ष आमने सामने है। कैग की रिपोर्ट के मुताबिक आवंटन में सरकार को लगभग 1.76 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है, जिसे संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान पहले दिन से ही गूंज रहा है। जहां कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि दूरसंचार मंत्रालय ने 2जी स्पेक्ट्रम की कीमत कम लगाकर उसे 2008 में नए लोगों को बेचा है, जबकि आवंटन की कीमतें वास्तविक नहीं थीं। इस आवंटन के कारण सरकार को लगभग 176700 करोड़ रुपये के राजस्व का नुकसान पहुंचा है। इस मामले में ए. राजा यह तर्क देते नहीं थक रहे कि इस आवंटन में उन्होंने वही नीतियां अपनाईं हैं, जो उनके पूर्ववर्तियों की थीं। कैग की रिपोर्ट के अलावा केंद्रीय दूरसंचार मंत्री ए. राजा के लिए एक नई मुश्किल उस समय खड़ी हो गई जब दूरसंचार विभाग के पूर्व सचिव डी.एस. माथुर ने राजा के खिलाफ सनसनीखेज खुलासे किए हैं। माथुर का कहना है कि उन्होंने 2जी स्पेक्ट्रम के आवंटन के लिए आखिरी तारीख बढ़ाने के राजा के फैसले पर अपनी रजामंदी नहीं दी थी, लेकिन राजा ने उनसे आखिरी तारीख बढ़ाने के लिए दबाव बनाया। डीएस माथुर का यहां तक दावा है कि उन्होंने बिना किसी पारदर्शी नीति के स्पेक्ट्रम के लिए लाइसेंस देने की दूरसंचार मंत्री राजा के प्रयास का अपने स्तर पर विरोध भी किया, लेकिन राजा ने इस मामले से संबन्धित संयुक्त सचिव को चेतावनी दी कि वह लाइसेंस से जुड़ी किसी भी फाइल पर दस्तखत नहीं करेंगे, इसलिए उनके (राजा) सामने ये फाइलें न लाई जाएं। माथुर का यह भी कहना है कि मई 2007 में दूर संचारमंत्री के रूप में ए राजा ने उनसे 500 नए लाइसेंस जारी करने की बात कही थी, जिस पर माथुर ने कहा था कि स्पेक्ट्रम न होने की वजह से यह संभव नहीं है। दूसरी ओर कैग ने नुकसान के लिए सीधे तौर पर राजा को जवाबदेह ठहराया है। माथुर के इस खुलासे से विपक्ष के राजा हटाओ अभियान को बल मिला है और सोमवार से यह मामला अधिक जोरशोर से गूंजने की सम्भावना है।

ए. राजा को लेकर असमंजस में कांग्रेस!

विपक्ष के कड़े तेवर, द्रमुक प्रमुख बचाव में कूदे
ओ.पी. पाल
बहुचर्चित 2-जी स्पेक्ट्रम आवंटन घोटाले को लेकर कांग्रेसनीत केंद्र सरकार पर बढ़ते विपक्ष के दबाव और अन्नाद्रमुक की प्रमुख जयललिता के कांग्रेस को समर्थन देने के प्रस्ताव के बाद केंद्रीय संचार मंत्री ए. राजा के मुद्दे पर असमंजस की स्थिति में है। हालांकि ए. राजा को केंद्रीय मंत्रिमंडल से हटाने का फैसला प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को करना है। दूसरी ओर जहां ए. राजा ने इस्तीफा देने की संभावनाओं से इंकार किया है तो वहीं द्रमुक प्रमुख करुणानिधि भी राजा के बचाव में आगे आ गये हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि कैग की रिपोर्ट में भी स्पेक्ट्रम आवंटन में अनियमितताओं की पुष्टि हो जाने के बाद कांग्रेस ए. राजा का कब तक कवच बनी रहेगी?
संप्रग सरकार में 2-जी स्पेक्ट्रम घोटाले को लेकर द्रमुक नेता एवं केंद्रीय संचार मंत्री ए. राजा को हटाने के मुद्दे पर जिस प्रकार संसद के शीतकालीन सत्र में विपक्ष कड़े तेवरों के साथ अड़िग है, तो तमिलनाडु में द्रमुक की विरोधी पार्टी अन्नाद्रमुक की मुखिया जयललिता भी केंद्र सरकार पर खासकर कांग्रेस पर ए. राजा को हटाने के लिए पूरा दबाव बनाने का प्रयास कर रही है। जयललिता ने तो यहां तक प्रस्ताव रखा है कि ए. राजा को हटाने से यदि यूपीए सरकार से द्रमुक अपना समर्थन वापस लेती है तो वह यूपीए को समर्थन देने को तैयार है। इस प्रस्ताव के बावजूद भी तक कांग्रेस ए. राजा के बचाव में अपने रूख को सख्त बनाए हुए है। लोकसभा में हालांकि अन्नाद्रमुक के सांसदों की संख्या द्रमुक सांसदों से आधी है, लेकिन जयललिता ने कांग्रेस को इस प्रस्ताव में द्रमुक द्वारा समर्थन वापस लेने पर उसके 18 सांसदों की भरपाई करने का भी विश्वास दिलाया है। एक ओर सरकार पर ए. राजा को हटाने के लिए विपक्ष का दबाव है तो दूसरी ओर द्रमुक प्रमुख के बचाव के लिए सरकार पर बनाये जा रहे दबाव को कम करने के लिए जयललिता ने सरकार को स्थिर करने का फार्मूला कांग्रेस के सामने पेश कर दिया है। ऐसी स्थिति में अगले साल फरवरी-मार्च में तमिलनाडु में होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर कांग्रेस भी इसलिए असमंजस में है कि तमिलनाडु में वह अकेले दम पर चुनाव में हिस्सा नहीं ले सकती, वहीं विधानसभा चुनावों में दलित राजनीति के तहत करुणानिधि भी राजा के बचाव में केंद्र सरकार खासकर कांग्रेस पर दबाव बना रहे हैँ। मसलन यह कि ए. राजा को हटाने और बचाव को लेकर दो तरफा बने दबाव को लेकर यूपीए का नेतृत्व कर रही कांग्रेस पार्टी असमंजस की स्थिति में फंसी हुई है। कांग्रेस ए. राजा के बचाव में कैग की रिपोर्ट को अभियोग मानने को तैयार नहीं है। विधि मंत्री एम वीरप्पा मोइली ने विपक्ष के दावे को खारिज करते हुए कहा कि 2-जी स्पेक्ट्रम आवंटन पर नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक यानि कैग की रिपोर्ट को दूरसंचार मंत्री ए. राजा के खिलाफ अभियोग पत्र नहीं माना जा सकता, क्योंकि कैग एक संवैधानिक निकाय है। वहीं कांग्रेस के महासचिव जनार्दन द्विवेदी कह चुके हैँ कि अभी तो कैग की रिपोर्ट को संसद में पेश किया जाना है जिसके बाद इस प्रकरण में कार्यवाही की प्रक्रिया शुरू हो सकेगी। इसलिए ए. राजा के इस्तीफा देने का कोई सवाल ही नहीं उठता। वहीं स्वयं केंद्रीय संचार मंत्री ए. राजा ने कहा कि उन्होंने 2जी स्पेक्ट्रम का आवंटन नियमों के तहत किया है जिसे वे अदालत में साबित कर देंगे, इसलिए इस्तीफा देने का कोई सवाल ही नहीं उठता। वहीं राजा के बचाव में उनकी पार्टी के मुखिया करुणानिधि भी आ गये हैं जिन्होंने तर्क दिया कि मंत्रालय में पूर्ववर्तियो की ओर से अपनाई गई प्रक्रिया का नियमों के अनुसार पालन किया गया है। बहुचर्चित स्पेक्ट्रम घोटाले में ए. राजा को लेकर कांग्रेस की स्थिति असमंजस में कही जा सकती है। भाजपा ने इस मामले के दोषी ए. राजा के समर्थन को कांग्रेस का निर्लज समर्थन करार देते हुए प्रधानमंत्री से ही पांच सवाल पूछे हैं और राजा को हटाने तक विपक्ष ने अपना कड़ा तेवर जारी रखने का भी ऐलान किया है।

सौमित्र सेन के खिलाफ महाभियोग चलेगा?

जांच समिति की रिपोर्ट में दोषी करार 
ओ.पी. पाल
राज्यसभा की जांच समिति की रिपोर्ट में भ्रष्टाचार के दोषी पाये गये न्यायमूर्ति सौमित्र सेन के खिलाफ महाभियोग चलना तय माना जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश सुदर्शन रेड्डी की अध्यक्षता वाली राज्यसभा की तीन सदस्य समिति की संसद में पेश की गई जांच रिपोर्ट की एक प्रति गुरुवार को राज्यसभा सचिवालय ने न्यायमूर्ति सौमित्र सेन को भेज दी है। इस रिपोर्ट पर संसद में चर्चा होना अभी शेष है जो इसी सत्र में होना तय है।
संसद के दोनों सदनों में बुधवार को पेश की गई इस रिपोर्ट में न्यायाधीश सेन को भ्रष्टाचार और गलतबयानी करने का दोषी पाया गया है। संसद में पेश की गई जांच रिपोर्ट के बाद ऐसे संकेत हैं कि संसद में इसी सत्र में कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग प्रक्रिया शुरू हो सकती है। इस प्रक्रिया में अगला कदम महाभियोग के प्रस्ताव पर विचार करना और चर्चा करना है। संसद में इस तरह की चर्चा है कि प्रस्ताव पर विचार और चर्चा राज्यसभा में 29 नवंबर को हो सकती है। उच्च सदन राज्यसभा में यह चर्चा उन नियमों के तहत होगी जिनके तहत मतदान जरूरी है। न्यायमूर्ति सेन को सदन के सामने खुद हाजिर होकर या फिर अपने वकील के जरिये बचाव करने का मौका दिया जायेगा। इस पर अंतिम फैसला राज्यसभा की कार्य मंत्रणा समिति को करना है। राज्यसभा के नियमों के अनुसार प्रस्तावक के इस प्रस्ताव को पेश करने के तुरंत बाद न्यायमूर्ति सेन या उनके वकील अपनी बात रख सकते हैं, जिसके बाद सेन या उनके वकील को सदन से बाहर चले जाना जरूरी होगा। यदि सदन में बहुमत से महाभियोग चलाने का प्रस्ताव पारित हो जाता है तो न्यायमूर्ति सेन देश के इतिहास में ऐसे पहले न्यायाधीश हो सकते हैं जिन्हें उनके पद से महाभियोग के जरिये हटाया जायेगा, लेकिन इसके लिए महाभियोग प्रक्रिया को बहुमत का समर्थन मिलना आवश्यक है। गौरतलब है कि वर्ष 1994 में उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के पद से सेवानिवृत्त हो चुके न्यायमूर्ति वी. रामास्वामी के खिलाफ सबसे पहले इस तरह की पहल की गयी थी, लेकिन उनके विरूद्ध महाभियोग प्रस्ताव कांग्रेस के मतदान के दौरान अनुपस्थित रहने के चलते पारित नहीं हो सका। न्यायमूर्ति सौमित्र सेन के खिलाफ महाभियोग चलाने का यह मुद्दा उच्च सदन की कार्य मंत्रणा समिति की बैठक में भी उठा तो राज्यसभा के 57 सदस्यों ने सभापति हामिद अंसारी को न्यायमूर्ति सेन को हटाने के संबंध में 20 फरवरी 2009 को एक प्रस्ताव सौंपा था। गौरतलब है कि जांच समिति ने न्यायमूर्ति सेन को कोष में बड़ी राशि के साथ अनियमितता करने औरा इस संबन्ध में गलत तथ्य तथा गलत बयान देने का दोषी पाया है। समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि न्यायमूर्ति सेन पर आरोप है कि उन्होंने कलकत्ता उच्च न्यायालय की ओर से बतौर रिसीवर नियुक्त होने के बाद यह अपराध किया है।

गुरुवार, 11 नवंबर 2010

ओबामा से ज्यादा सुर्खियों में रही मिशेल!

ओ.पी. पाल
भले ही अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा दुनिया के सबसे ताकतवर शख्स के रूप में जाने जाते हैं और उनके नाम पर स्वत: ही हलचल पैदा हो जाती हैं, लेकिन उनकी भारत यात्रा के दौरान स्थिति बिल्कुल उलट नजर आई। कारण यहां बराक की जगह उनकी पत्नी मिशेल ओबामा ने ज्यादा सुर्खियां बटोरी। वो जहां परिवारिक माहौल में भारतीयों के साथ घुली-मिलती नजर आई। वहीं उन्होंने भारतीयों के साथ अपने निजी जीवन को भी साझा करने में कोई परहेज नहीं किया।
भारत की तीन दिन की यात्रा पर रहे अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा और उनकी पत्नी मिशेल ओबामा वैसे तो दोनों ही भारतीयों के साथ सहज माहौल में दिखे, लेकिन मिशेल ओबामा कुछ ज्यादा ही सुर्खियों में रही यानि अपने पति से ज्यादा उन्होंने भारतीयों को कहीं अधिक प्रभावित किया। मुंबई प्रवास के दौरान जब अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा भारतीय व्यापारियों के साथ बैठक में गुणा भाग करने में व्यस्त थे तो उनकी पत्नी मिशेल ओबामा हिंदी गानों पर स्कूली बच्चों के साथ आमिर खान की फिल्म के गीत रंग दे बसंती पर डांस करती नजर आई। यहां तक कि मिशेल ने बच्चों को नई ऊंचाइयां छूने का मंत्र देते हुए अपने बचपन की कहानी बताकर बचपन को याद किया। जब एक बच्ची अमेरिका की प्रथम महिला से मिलकर अपना सपना पूरा होने की बात कही तो मिशेल ओबामा ने कहा कि नहीं आप (बच्चे) मेरा सपना हैं कहकर एक मिसाल छोड़ी। अपने बच्चों के साथ काफी वक्त भारत में बिता चुकीं मिशेल ओबामा ने दिल्ली के क्राफ्ट्स म्यूजियम में कुछ बच्चों से मुलाकात की तो वहां बच्चों ने उनसे पूछा कि जब उनका बराक ओबामा से झगड़ा होता है तो कौन झुकता है। इस सवाल के जवाब में मिशेल ने मुस्कुराते हुए कि वह हमेशा तब तक इंतजार करती हैँ जब तक दुनिया के ताकतवर राष्ट्रपति उनसे माफी नहीं मांग लेते। क्योंकि वह एक महिला है। मिशेल ओबामा ने अपने इस दौरे में भारतीयों को काफी प्रभावित किया है। भारत दौरे में बराक ओबामा से ज्यादा सुर्खियां बटोरने का भारतीय मीडिया में छाई रही मिशेल एक सबूत है जिसमें बराक के बजाय ज्यादा धूम मिशेल ओबामा की रही। एक अंग्रेजी अखबार की खबर ने तो साफ जाहिर कर दिया कि बराक के बजाए मिशेल का जादू भारतीयों में ज्यादा चला। मिशेल ओबामा ने बच्चों के साथ ही अधिक समय बिताया है। मुंबई के सेंट जेवियर्स कॉलेज में छात्रों के बीच समय बिताने वाली ओबामा दंपति के भाषणों के दौरान बोलने की कला में दो बार ग्रौमी अर्वार्ड हासिल करने वाले बराक ओबामा ने स्वयं कहा कि मिशेल उनसे कहीं ज्यादा अच्छी वक्ता हैं जिसके लिए वह उन्हें बहुत छेडती है। दिल्ली के राष्ट्रीय हस्तशिल्प एवं शिल्पकला संग्राहलय में भी मिशेल ने घंटो ऐसे बिताए जैसे वह भारतीय ही हों, जहां बच्चो के साथ खुल मिलकर उनसे बातें ही नहीं की, बल्कि खरीददारी करने में भी कसर नहीं छोड़ी। हिंदी के शब्दों का भी कई मौकों पर मिशेल ओबामा ने प्रयोग करने अपनी छाप भारतीयों पर छोड़ी। ओबामा दंपत्ति के भारत दौरे में कई ऐसे अन्य मौके भी आए जहां मिशेल ओबामा ने अपना प्रभाव छोड़ा है। यानि कुछ यूं कहा जा सकता है कि बराक से कहीं ज्यादा सुर्खियां बटोरने में मिशेल ओबामा आगे रही।

गिर ही गई कलमाडी व चव्हाण पर गाज

ओ.पी. पाल
अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के भारत छोडते ही कांग्रेस हाईकमान ने राष्ट्रमंडल खेलों में भ्रष्टाचार और मुंबई में आदर्श सोसायटी घोटाले से जुड़े राष्ट्रमंडल खेल आयोजन समिति के अध्यक्ष सुरेश कलमाडी और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण पर कार्यवाही रूपी तलवार चलाते हुए उनसे इस्तीफे ले लिये। इन दोनों नेताओं पर भ्रष्टाचार के मामले में यह गाज गिरी है।
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण मुंबई में आदर्श सोसायटी के आवंटन में हुए कथित घोटाले से जुड़े हैँ तो सुरेश कलमाड़ी का नाम राष्टÑमंडल खेलों की तैयारी में हुए भ्रष्टाचार के साथ जुड़ा रहा है। इन दोनों मामलों को लेकर कांग्रेस की अच्छी खासी फजीहत हो रही थी, लेकिन पहले राष्टÑमंडल खेलों का आयोजन करना और फिर अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की भारत यात्रा को लेकर कांग्रेस चाहते हुए भी इन दोनों नेताओं के खिलाफ कोई कार्यवाही अमल में नहीं ला सकी, लेकिन बराक ओबामा के भारत छोड़कर इंडोनेशिया रवाना होने के कुछ घंटे बाद ही कांग्रेस हाईकमान ने पार्टी की साख बचाने के प्रयास में इन दोनों नेताओं पर ऐसी गाज गिराई कि सुरेश कलमाड़ी को कांग्रेस संसदीय दल के सचिव पद तथा अशोक चव्हाण को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने का आदेश दिया। दोनों नेताओं ने कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी के इस आदेश का पालन करते हुए अपने-अपने इस्तीफे दे दिये हैं। कांग्रेस के महासचिव एवं मीडिया प्रभारी जनार्दन द्विवेदी के अनुसार राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन में भारी पैमाने पर भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते सुरेश कलमाडी से इस्तीफा देने को कहा गया और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कलमाड़ी का इस्तीफा स्वीकार कर लिया है। समझा जा रहा है कि कांग्रेस हाईकमान ने कलमाडी और चव्हाण का अब और बचाव न करने का फैसला कर दोनों को इस्तीफा लेना ही बेहतर समझा। हालांकि चव्हाण पहले ही अपने इस्तीफे की पेशकश कर चुके हैं,लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा का मुंबई दौरा पहले से निर्धारित था इसलिए अब तक उनका बचाव किया गया। जहां सुरेश कलमाडी के संसदीय दल के सचिव पद से दिये गये इस्तीफे को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने मंजूर कर लिया है, वहीं दूसरी ओर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने वाले अशोक चव्हाण की अर्जी को स्वीकार करते हुए महाराष्ट्र के राज्यपाल के. शंकरनारायणन ने उन्हें नए मुख्यमंत्री के शपथ लेने तक अपने पद पर काम करने को कहा है।
गौरतलब है कि सुरेश कलमाड़ी राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारी में हुए व्यापक भ्रष्टाचार के कारण कांग्रेस की किरकीरी का कारण बने तो महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण मुंबई के कोलाबा इलाके में आदर्श आवासीय सोसायटी की योजना के तहत कारगिल शहीदों की विधवाओं एवं परिजनों के लिए बनाए गये फ्लैटों के आवंटन में हुए कथित घोटाले में चर्चा में आए, जिसमें उनके परिजनों को भी फ्लैट आवंटित किये गये थे। इन दोनों मामलों पर कांग्रेस पार्टी की साख को बट्टा लग रहा था, जिसमें विपक्ष के हमलों से बचने के लिए कांग्रेस हाई कमान ने तेजी से कार्यवाही करते हुए इन दोनों नेताओं के खिलाफ यह कार्यवाही की है। हालांकि इन मामलों की जांच वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी और रक्षा मंत्री एके एंटोनी की समिति कर रही है, लेकिन विपक्षी दल इपर राजनीति फायदा उठाने का मौका तलाश ही रहे थे कि कांग्रेस ने दोनों नेताओं पर गाज गिराकर विपक्ष के तेवरों को नरम कर दिया है। हालांकि राष्ट्रमंडल खेलों में हुए भ्रष्टाचार को लेकर विपक्षी दलों ने दिल्ली की मुख्यमंत्री श्रीमती शीला दीक्षित, केंद्रीय शहरी विकास मंत्री एस. जयपाल रेड्डी, खेल मंत्री एमएस गिल तथा सूचना एवं प्रसारण मंत्री श्रीमती अंबिका सोनी पर भी विपक्षी दलों का निशाना है, जिनके इस्तीफे की विपक्षी दल पहले ही मांग कर चुके हैं।

भ्रष्टाचार मुद्दे पर सरकार घेरने को तैयार विपक्ष

संसद का शीतकालीन सत्र
ओ.पी. पाल
संसद का शीतकालीन सत्र मंगलवार को जैसे ही शुरू होगा तो विपक्ष यूपीए सरकार को खासकर भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों को लेकर उसे घेरने के लिए तैयार होगा, जबकि कांग्रेसनीत यूपीए सरकार ने भी विपक्ष का मुकाबला करने के लिए अपनी खास रणनीति तैयार की है। इसलिए संसद के इस सत्र की शुरूआत हंगामेदार होने की संभावना है।
संसद के मंगलवार से शुरू हो रहे शीतकालीन सत्र में भ्रष्टाचार का मुद्दा छाया रहेगा और एकजुट विपक्ष राष्ट्रमंडल खेलों में भ्रष्टाचार, 2जी-स्पेक्ट्रम एवं आदर्श हाउसिंग सोसाइटी सहित विभिन्न घोटालों को सदन में उठाएगा। इस दौरान सत्ता पक्ष तथा विपक्ष के बीच तीखी नोकझोंक और हंगामे के आसार हैं। प्रमुख विपक्षी दल भाजपा ने जहां धमकी दी है कि यदि घोटाले में शामिल लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई नहीं होती तो वह सदन नहीं चलने देगी वहीं कांग्रेस ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े कुछ लोगों के कथित तौर पर आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होने के मुद्दे पर विपक्ष पर हमले की रणनीति बनायी है। आदर्श हाउसिंग घोटाला विपक्ष के लिए कांग्रेस के नेतृत्व वाली संप्रग सरकार पर हमला करने के लिए हथियार बन गया है। इसमें महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण भी कथित रूप से शामिल है। विपक्ष सदन में क्या रुख अपनाएगा, यह अभी स्पष्ट नहीं है लेकिन भाजपा के नेतृत्व वाले राजग और वाम दलों ने इस बात के संकेत दे दिये हैं कि घोटालों को लेकर वे सरकार की घेराबंदी करेंगे। दूसरी ओर संसद सत्र के दौरान विपक्ष का सामना करने के लिए कांग्रेस ने भी अपनी रणनीति तैयार कर ली है, ताकि विपक्ष को मुहंतोड़ जवाब दिया जा सके। इससे पहले मानसून सत्र के पहले उसने विपक्ष के महंगाई और राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारियों में विलंब के मुद्दे पर कांग्रेस ने अमित शाह प्रकरण के जरिए चुनौती का सामना किया था। सूत्रों के अनुसार वहीं इस बार प्रमुख विपक्षी दल भाजपा की ओर से आदर्श हाउसिंग सोसायटी घोटाले और राष्ट्रमंडल खेलों में हुए कथित भ्रष्टाचार के मुद्दे का सामना करने के लिए कांग्रेस राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर सीधा निशाना साधकर अपना बचाव करने की तैयारी में है। पिछले सप्ताह ही संपन्न हुई एआईसीसी की बैठक में कांग्रेस के इरादे साफ नजर आ गये थे कि वह संसद सत्र में विपक्ष के मुद्दों के लिए कौन सा हथियार प्रयोग करेगा। लेकिन भाजपा भी इस बात को लेकर पूरी तरह से सजग है कि कांग्रेस भ्रष्टाचार व घोटाले के मुद्दे पर अपना बचाव संघ के नेताओं को आतंकवाद से जोड़ने वाले हथियार को सामने लाएगी, इसलिए भाजपा पहले से ही कांग्रेस को संघ के नेताओं को आतंकवाद से जोड़ने का मामला संसद में उठाकर सरकार को घेरेगी। कांग्रेस को यह भलीभाति अहसास है कि अयोध्या मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आए फैसले से भाजपा और संघ परिवार लाभ लेने का प्रयास करेंगे इसीलिए भगवा आतंकवाद का मुद्दा उछाल दिया गया है। अब वह संघ जोकि सरकार को घेरे रहने में कोई कसर नहीं छोड़ता वह अपने बचाव में उतर आया है और देशव्यापी धरने के माध्यम से यह संदेश देना चाहता है कि उसे बदनाम करने की साजिश की जा रही है। हालांकि इस मुद्दे पर भाजपा को समूचे विपक्ष का साथ मिलना संभव नहीं है, लेकिन वह अन्य मुद्दों पर विपक्ष को एकजुट करने का प्रयास जरूरत कर रही है। हालांकि सरकार को घेरने के लिए विपक्ष के पास भ्रष्टाचारव घोटालों के अलावा महंगाई और किसानों के मुद्दे भी हैं, जिस पर विपक्ष की एकजुटता संभव है। हालांकि संसद के शीतकालीन सत्र का पहले दिन प्रश्नकाल होने की संभावनाएं क्षीण हैं और पहला दिन भ्रष्टाचारऔर घोटालों पर एकजुट विपक्ष के हंगामें की भेंट चढ़ना तय माना जा रहा है।

अधिकांश ने सराहा ओबामा का भाषण

ओ.पी. पाल
सोमवार को संसद भवन के केंद्रीय कक्ष में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा द्वारा दिए गए भाषण को उन राजनीतिक दलों ने भी सराहा जो ओबामा की यात्रा पर सवालिया निशान लगाने की जुगत में थे। मुख्य विपक्षी दल भाजपा ने ही नहीं, बल्कि सपा, लोजपा आदि दलों के नेताओं ने भी ओबामा के भाषण की तारीफ की।
भारतीय संसद के दोनों सदनों के सांसदों को केंद्रीय कक्ष में संबोंधित करते हुए अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा के लगभग हरेक बिंदुओं का जिक्र आते ही समूचा सदन तालियों से गूंजता नजर आया। सभी दलों के सांसदों ने अमेरिकी राष्ट्रपति के भाषण को गंभीरता से सुना, जो उस हर मुद्दे को छू गये जिसकी राजनीतिक दलों को अपेक्षा थी। शायद यही कारण रहा कि ओबामा के भाषण से ऐसे राजनीतिक दल भी खुश नजर आए जो ओबामा की यात्रा को लेकर लाल-पीला हो रहे थे। ओबामा के संसद में दिये गये भाषण को मुख्य विपक्षी दल भाजपा समेत लगभग सभी दलों ने जहां भारत के विकास की दृष्टि से सकारात्मक करा दिया है। हालांकि वाम दलों ने गरीबी उन्मूलन का जिक्र नहीं होने के आधार पर इस भाषणा को महज शब्दों की बाजीगरी बताया। मुख्य विपक्षी दल भाजपा के वरिष्ठ नेता राजनाथ सिंह ने ओबामा के संबोधन पर प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए कहा कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता के दावे का समर्थन कर ओबामा ने बहुत बड़ी बात कही है। उन्होंने इस बात पर विशेष रूप से संतोष जाहिर किया कि पाकिस्तान को भी अमेरिकी राष्ट्रपति ने साफ संदेश दिया कि उसकी धरती से पैदा होने वाला आतंकवाद अस्वीकार्य है। राजनाथ ने इसे भारत के लिए अच्छा संकेत बताया। भाजपा के वरिष्ठ नेता शाहनवाज हुसैन ने कहा कि ओबामा का भाषण पूरी तरह भारतीयता के रंग में रंगा हुआ था। उन्होंने कहा कि ओबामा ने न केवल भारत बल्कि पूरे विश्व के लिए शांति की बात की है जो वास्तव में प्रशंसनीय है। समाजवादी पार्टी के मोहन सिंह ने कहा कि ओबामा का यह भाषण भारत की अपेक्षाओं के बहुत नजदीक था। उन्होंने कहा कि विश्व की दो महत्वपूर्ण लोकतांत्रिक शक्तियां बराबरी के भाव से विश्व शांति के लिए काम करने की प्रतिबद्धता जता रही हैं तो यह अपने आप में काफी मायने रखता है। उन्होंने कहा कि भारत के लिए गौरव की बात यह है कि अमेरिका जैसे बड़े देश के राष्ट्रपति ने पहली बार भारत को बराबरी का दर्जा दिया है। बिजनेस से दोनों देशों के साक्षा हित जुड़े हैं लेकिन जिस मानवीय दृष्टिकोण का ओबामा ने परिचय दिया, वह सराहनीय है। लोक जनशक्ति पार्टी के रामविलास पासवान ने ओबामा के भाषण पर प्रसन्नता जाहिर करते हुए कहा कि उन्होंने महात्मा गांधी, बाबा अम्बेडकर और दलितों की बात कर भारतीयों के दिलों को छुआ है। राजद के वरिष्ठ नेता जाबिर हुसैन ने कहा कि ओबामा ने पूरे विश्व के लिए शांति स्थापना का जो विचार पेश किया, वह एक सकारात्मक विचार था और किसी एक पक्ष के बजाय उन्होंने संतुलित दृष्टिकोण को अपनाया। इसी पार्टी के वरिष्ठ नेता डी राजा ने कहा कि सुरक्षा परिषद में भारत के स्थायी सदस्यता के दावे का समर्थन करने की बात तो कही है लेकिन उसमें भी उन्होंने शर्त लगाई है। उन्होंने कहा कि इसलिए ओबामा के संबोधन से भारत को कोई बहुत अधिक खुश होने की जरूरत नहीं है। कम्युनिस्ट पार्टी के गुरुदास दासगुप्ता ने ओबामा के संबोधन को पूरी तरह खारिज करते हुए कहा कि इसमें गरीबी और बेरोजगारी हटाने के बारे में कुछ नहीं कहा गया है। उन्होंने कहा कि ओबामा मानवीय गरिमा की बात तो करते हैं लेकिन गरीबी और बेरोजगारी के बारे में कुछ नहीं बोलते।

हुमायूं के मकबरा देख प्रफ्फुलित ओबामा दम्पत्ति

ओ.पी. पाल
दिल्ली पहुंचे अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा और उनकी पत्नी मिशेल ओबामा ने भारत की सांस्कृतिक धरोहर और ऐतिहासिक विरासत हुमायूं के मकबरे को देखने के बाद इसे एक चमत्कार तो बताया ही है, वहीं इसे आगरा के ताजमहल का प्रतीक करार देते हुए ओबामा दम्पत्ति बेहद प्रफ्फुलित नजर आये।
मुंबई की यात्रा करने के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा और उनकी पत्नी मिशेल ओबामा जैसे ही नई दिल्ली आये तो उन्होने पहले 16वीं सदी में दूसरे मुगल बादशाह की याद में उनकी बेगम द्वारा बनवाये गये हुमांयू के मकबरे को देखने गये। यह ऐतिहासिक स्मारक वैश्विक धरोहर में शामिल है। भारतीय उप महाद्वीप में यह पहला बागों वाला मकबरा है। इसे हुमायूं की विधवा हामिदा बानो ने 1562 में बनवाया था, जिसका डिजाइन ईरान के वास्तुकार मिरक मिर्जा ने तैयार किया था। यह मकबरा हुमायूं के निधन के एक दशक बाद बना था। इस मकबरे को देखने के बाद ओबामा और उनकी पत्नी मिशेल ऐसी गद्गद नजर आई कि उन्होंने इस मकबरे को आगरा के ताजमहल का प्रतीक बताते हुए इसे एक चमत्कार भी बताया। ओबामा दम्पति के दिल्ली में अपने इस दौरे की शुरूआत 16वीं शताब्दी की इस बेमिसाल इमारत को देखने के साथ करने से ही जाहिर है कि वह इसे देखने के लिए कितने उत्साहित थे। हुमांयू के मकबरे के मुख्य इमारत में प्रवेश करते हुए ओबामा के मुख से निकला कि आश्चर्यजनक और जैसे ही जैसे ओबामा दम्पति आगे बढ़ते गये तो उन्होंने इस ऐतिहासिक इमारत के चमत्कार को स्वीकारा और इसकी तुलना आगरा के ताजमहल से की। उन्होंने माना कि ऐसी इमारत को यदि बनाया जाये तो बेहद कितना कठिन होगा। उन्होंने मकबरे की इमारत को बनाने वाले वास्तुकारों की क्षमता का भी अनुमान लगाया। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली को आधुनिक शहर की संज्ञा देते हुए ओबामा ने कहा कि भारत की राष्ट्रीय राजधानी की जडें सभ्यता से जुड़ी विरासत में शाहतन हैं। ओबामा ने इस मकबरे को देखकर माना कि हुमायूं के मकबरे से ही प्रेरित होकर वास्तुकारों ने ताजमहल जैसे दुनिया के सातवें अजूबे के निर्माण का रास्ता तैयार किया होगा। ओबामा अमेरिका के पहले ऐसे राष्ट्रपति हैं, जो हुमायूं का मकबरा देखने गए। इसी इमारत की वास्तु के तर्ज पर 17वीं सदी में ताजमहल का निर्माण किया गया था। उसके बाद भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के अधीक्षण पुरातत्वविद (दिल्ली) के के मुहम्मद ओबामा दंपत्ति को मकबरा दिखाने ले गए। उन्होंने उन्हें इस इमारत से जुडी सभी जानकारियां भी दीं। मुहम्मद उन्हें इमारत के इतिहास की जानकारी देने के बाद मकबरे को घेरे हुए हरे भरे उद्यान में ले गए। दक्षिण दिल्ली के निजामुद्दीन में लाल पत्थरों से बनी इस इमारत का हाल ही में आगा खान सांस्कृतिक ट्रस्ट और एएसआई ने जीर्णोद्धार किया है। इमारत के प्रवेश द्वार पर ओबामा का स्वागत एएसआई के महानिदेशक गौतम सेनगुप्ता और अन्य अधिकारियों ने किया। सफेद शर्ट, काली पतलून और टाई पहने ओबामा और उनकी पत्नी ने मकबरे से जुड़ी जानकारियों को ध्यान से सुना। उन्होंने इस इमारत के विविध पहलुओं से जुड़ी जानकारियां भी हासिल कीं। ओबामा और मिशेल ने उन 14 बच्चों से भी मुलाकात की, जो इमारत में काम करने वाले मजदूरों के हैं। इन बच्चों ने ओबामा दंपत्ति ने हाथ मिलाया। ये बच्चे चार से दस साल उम्र के थे और उनके साथ उनके माता पिता भी ओबामा से मिलने आए थे। ओबामा और मिशेल ने इन बच्चों को कुछ तोहफे दिए। ओबामा ताज देखने नहीं जा रहे हैं, जहां पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन सन 2000 में अपनी भारत यात्रा के दौरान गए थे। अमेरिकी राष्ट्रपति की सुरक्षा के लिहाज से मकबरे और उसके आसपास के इलाके को किले में तब्दील कर दिया गया था।

राष्ट्रमंडल खेल से बढ़ी सीवीसी की ताकत!

हेल्पलाइन पर शिकायतों की भरमार
ओ.पी. पाल
राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारियो में हुई अनियमितताओं को उजागर करने वाले केंद्रीय सतर्कता आयोग यानि सीवीसी इतनी लोकप्रिय साबित हुई कि आयोग द्वारा शुरू की गई हेल्पलाइन पर बेताहाशा शिकायतें आनी शुरू हो गई हैँ।
19वें राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारियों में कथित रूप से हुए भ्रष्टाचार का मामला देश में ही नहीं बल्कि दुनियाभर में सुर्खियों में रहा है, जिसका जिक्र आते ही इस भ्रष्टाचार को उजागर करने वाले केंद्रीय सतर्कता आयोग का नाम आना लाजमी है। भ्रष्टाचार निरोधी संस्था के रूप में कार्य कर रहे केंद्रीय सतर्कता आयोग ने दो सप्ताह पहले ही लोगों की प्रतिक्रियाएं और शिकायतें सुनने के लिए एक हेल्पलाइन की शुरूआत की। करीब 11 दिन पहले शुरू हुई इस टोल फ्री हेल्पलाइन का जैसे लोगों को बेसब्री से इंतजार था इस बात से तो यही जाहिर हो रहा है कि इस नई हेल्पलाइन के टोलफ्री टेलीफोन नंबरों पर इतनी कॉलें आ रही हैं शायद ही किसी अन्य विभागों की हेल्पलाइन पर इतनी कालें आती हों। इसका अर्थ यह लगाया जा सकता है कि भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए लोगों में जागरूकता बढ़ रही है। आयोग के सूत्रों के अनुसार करीब 11 दिन पहले राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के लिये शुरू की गयी भ्रष्टाचार निरोधी हेल्पलाइन पर शिकायत करने वाले लोगों की ओर से ढेरों कॉल किये जा रहे हैं। केंद्रीय सतर्कता आयोग के अनुसार लोगों की ओर से काफी प्रतिक्रिया आयी है। हमारी लाइनों पर दिन भर में ढेरों कॉल किये जा रहे हैं। हेल्पलाइन पर दिन में औसतन 250 से 300 कॉल आते हैं। अनियमितताओं का सामना कर रहे असंतुष्ट लोग सीवीसी की ओर से शुरू किये गये टोल फ्री नंबर 1800-1 1-0180 और 011-24651000 पर फोन कर रहे हैं, ताकि सरकारी कर्मियों को अनुचित तौर पर फायदा पहुंचाने या उन्हें खुश करने की मांग के कारण किसी काम को बेवजह लंबित करने से जुड़ी समस्याएं न आ पायें। सीवीसी की यह हेल्पलाइन सुबह 10 से शाम पांच बजे तक चालू रहती है, लेकिन जिस प्रकार बड़ी संख्या में शिकायती कॉले आ रही है उससे लगता है कि लोग जागरूक हुए हैं और सीवीसी के प्रति उनका विश्वास बना हुआ है, जिसने राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारियो में हुए भ्रष्टाचार को उजागर करके केंद्र व दिल्ली सरकार के अलावा राष्ट्रमंडल खेलों की आयोजन समिति को मुश्किल में डाला हुआ है। उन्होंने कहा कि हमारी ओर से यह सेवा शुरू किये बमुश्किल 10 दिन हुए हैं और इसे लेकर प्रतिक्रिया उत्साहजनक रही है। इस नयी पहल का विवरण देते हुए अधिक कोई भी हेल्पलाइन नंबर पर फोन कर उसके साथ हुई नाइंसाफी या प्रताड़ना की शिकायत कर सकता है। वह सीधे मुख्य सतर्कता कार्यालय या संबंधित विभाग से संपर्क कर सकता है। आयोग के सूत्रों का कहना है कि मुख्य सतर्कता अधिकारी फोन करने वाले सभी विवरण ले लेता है और यह जांच करता है कि समस्या वास्तविक है या नहीं। इसके अनुरूप ही जरूरी कार्रवाई की जाती है। उन्होंने कहा कि इस तरह का कॉल सेंटर स्थापित करने के पीछे लक्ष्य भ्रष्टाचार पर नजर रखने के अलावा बेवजह का खलल पैदा किये बिना काम पूरा करना है। लोग केंद्र सरकार के मंत्रालयों और एमसीडी, एनडीएमसी तथा डीडीए जैसे विभागों और सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों में रिश्वतखोरी तथा अन्य समस्याओं के बारे में अपनी शिकायतें कर सकते हैं।

धैर्य रखें...नंबर आ जाएगा: सोनिया

सोनिया को सौंपी सदस्यों के चयन की जिम्मेदारी
ओ.पी. पाल
एआईसीसी की बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को जब एक प्रस्ताव के तहत राष्ट्रीय कांग्रेस कार्यसमिति और अन्य समितियों के सदस्यों का चयन की जिम्मेदारी सौंपी गई तो उन्होंने कहा कि कांग्रेसजनों ने उनके ऊपर भरोसा जताया है तो इस चयन में कुछ लोगों को घाटा उठाने के लिए भी तैयार रहना चाहिए। सोनिया के इन शब्दों पर तालकटोरा में मौजूद देशभर के हजारों कार्यकर्ताओं ने तालिया बजाकर उनकी इस बात का स्वागत किया।
एआईसीसी के सदस्यों की यहां तालकटोरा स्टेडियम में हुई बैठक में सोनिया को सर्वसम्मति से ये अधिकार दिए जाने पर उन्होंने अपने समापन भाषण में कहा कि फिर से उनके ऊपर एक और बड़ी जिम्मेदारी आपने सौंप दी गई है। कांग्रेस की राष्ट्रीय कार्य समिति और दूसरी समितियों के सदस्यों के चयन की जिम्मेदारी को उन्होंने एक चुनौती पूर्ण जिम्मेदारी बताया और कहा कि यह काम जितना आसान दिखता है उतना आसान नहीं है। उन्होंने कहा कि यह तय है कि कहीं न कहीं किसी न किसी को शिकायत रह जाएगी कि उसकी उपेक्षा की गई है, लेकिन उन्हें विश्वास है कि कांग्रेस कार्यकर्ता धैर्यवान हैं और कांग्रेस ऐसी पार्टी है कि किसी भी कार्यकर्ता के धैर्य को टूटने नहीं देती और कभी न कभी ऐसे र्धर्यवान को जिम्मेदारी सौंप दी जाती है। लेकिप जब सभी कार्यकर्ताओं ने उन (सोनिया) पर भरोसा किया है तो किसी न किसी को तो घाटा उठाने के लिए तैयार रहना चाहिए। सोनिया ने सदस्यों के ठहाकों के बीच अपनी बात जारी रखते हुए कहा कि वैसे कांग्रेस में धीरज रखने से नंबर कभी न कभी आ ही जाता है। धैर्य रखे तो नंबर आ ही जाएगा। उन्होंने कहा कि चूंकि यह बैठक संगठन से जुड़े मुद्दों पर आधारित है, इसलिए इसे संक्षिप्त रखा गया है और अगले महीने होने वाले पार्टी के महाधिवेशन में सभी मुद्दों और सभी प्रस्तावों पर विस्तार से चर्चा की जाएगी। कांग्रेस अध्यक्ष ने इस बात पर गर्व जताया कि हमारी राय एक है, हमारे सुर एक हैं और हमारे कदम एक दिशा में बढ़ते हैं। यही हमारी असली ताकत है।

घोटालों पर खामोश रहे कांग्रेसी नेता

विपक्षी दलों को मिला मुद्दा
ओ.पी. पाल
अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की बैठक में कांग्रेस सुप्रीमो और अन्य वक्ताओं ने विपक्षी दलों पर तो हमले बोले, लेकिन राष्ट्रमंडल खेलों, आदर्श आवासीय सोसायटी, 2जी स्पेक्ट्रम और अन्य घोटालों पर सभी कांग्रेसी नेता पूरी तरह से खामोश रहे जबकि उनके साथ मंच पर इन घोटालों से जुड़े कांग्रेसी भी बैठे हुए थे। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह व फिर कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी तथा वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी भी इन घोटालों पर पूरी तरह से चुप्पी साधते दिखाई दिये।
यहां तालकटोरा इंडोर स्टेडियम में आयोजित एआईसीसी की बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी व प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह आदि वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं के साथ एआईसीसी के वे सदस्य भी मौजूद थे जिनका घोटालों में नाम आ रहा है और उनके कारण देश की नाक भी कटी है तो कांग्रेस पार्टी बदनाम हुई, लेकिन एआईसीसी की मंगलवार को हुई इस बैठक में किसी भी वक्ता ने इन घोटालों का तनिक भी जिक्र नहीं किया। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अधिवेशन में अध्यक्ष सोनिया गांधी ने तमाम मुद्दों पर अपनी राय रखी लेकिन भ्रष्टाचार के बारे में एक शब्द भी नहीं कहा। सोनिया तो सोनिया, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और महासचिव राहुल गांधी ने भी इस मुद्दे पर चुप्पी साधे रखी। हां स्वयं कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी व कांग्रेस महासचिव सरीखे कांग्रेसी नेताओं ने विपक्षी दलों और संगठनों पर तीखे प्रहार करने में कोई कमी नहीं छोड़ी, बल्कि कांग्रेस की जमकर तारीफ की। कांग्रेसी नेताओं ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तथा उससे जुड़े संगठनों का नाम लेते हुए यहां तक कहा कि इन संगठनों के लोग आतंकवाद में संलिप्त हैं, तो वहीं भाजपा का नाम लिए बिना इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ के पिछले महीने आए हालिया फैसले पर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने यहां तक कहा कि बाबरी मस्जिद विध्वंस करने वालों को माफ नहीं करना चाहिए। एआईसीसी की बैठक में जहां कांग्रेस ने संघ पर निशाना साधा, वहीं मुंबई में आदर्श हाउसिंग सोसायटी घोटाले के मामले से वह बचती नजर आयी। जबकि इस विवाद से घिरे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण और राष्ट्रमंडल खेलों में भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे सुरेश कलमाडी भी बैठक में मौजूद थे। सोनिया ने यह भी कहा कि कांग्रेस और उसके नेतृत्व वाली सरकारें राजनीतिक फायदे के लिये धर्म का दुरुपयोग करने वाले दलों का पुरजोर विरोध करेगी। ये हाल तब है कि राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारियों में हुए घोटाले, आदर्श हाउसिंग घोटाला और 2जी स्पैक्ट्रम जैसे मामले में उसके नेता और सरकार कटघरे में है। जाहिर सी बात है कि कांग्रेस की इस चुप्पी पर विपक्षी दल बीजेपी एवं अन्य पार्टियां मुद्दा बनाने में पीछे नहीं रहेंगी। भाजपा ने तो अधिवेशन में आरएसएस पर हमले को कांग्रेस की असल मुद्दों से ध्यान भटकाने की रणनीति करार दिया है। आगामी संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान विपक्षी दल कांग्रेसनीत केंद्र सरकार को घेरने की रणनीति भी बना रहे हैं जिसमें कांग्रेस की इस बैठक में घोटालों पर कांग्रेस की चुप्पी भी शामिल रहेगी।