सोमवार, 31 जनवरी 2011

भूखों मरने के कगार पर कर्मचारी!

दीदी की तरफ देख रहे हैं कर्मचारी
ओ.पी. पाल
रेलवे बोर्ड द्वारा इंडियन कैटरिंग एंड टूरिज्म कार्पोरेशन यानि आईआरसीटीसी से खानपान का कार्य छीनने की कार्यवाही से हजारों कर्मचारियों पर बेरोजगार होने की तलवार लटक गई है, जिसमें आईआरसीटीसी के 2200 से ज्यादा सोर्स कर्मचारियों की नौकरी भी दांव पर है। रेलवे की इस नीति से आईआरसीटीसी में कार्यरत ऐसे कर्मचारियों में परिवारों के भूखों मरने की नौबत को देखते हुए सड़कों पर आने की संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता।
भारतीय रेल के यात्रियों को खाने पीने और आन लाइन टिकट बुकिंग की सेवायें प्रदान करने वाली सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी भारतीय रेल खान पान एवं पर्यटन निगम से रेलवे ने खानपान का कार्य ऐसे समय वापस ले लिया था, जब आईआरसीटी को मिनी रत्न का दर्जा लेकर गुणवत्ता का कायम रखने वाली एक कंपनी के दायरे में आ चुकी है। सबसे बड़ा आश्चर्य यह है कि आईआरसीटीसी को मिनी रत्न का दर्ज और किसी ने नहीं बल्कि वर्ष 2008 में स्वयं रेल मंत्रालय ने दिया था। इसके अलावा उत्कृष्टता के लिए भी आईआरसीटीसी कई पुरस्कार हासिल कर चुकी है। रेलवे की नीति से बेरोजगार होने की तरफ जाते आईआरसीटीसी कर्मचारियों को उम्मीद है कि रेल मंत्री ममता बनर्जी शायद उनकी समस्या को संज्ञान में ले तो उनके सामने संकट पैदा नहीं होगा। ऐसे में जिन कर्मचारियों ने रेलवे की इस नीति को चुनौती दी थी उसके लिए मध्य क्षेत्र के श्रम आयुक्त ने मामले के संज्ञान में लिया है और आईआरसीटीसी में कार्यरत करीब 2200 आउट सोर्स कर्मचारियों की दांव पर लगी नौकरी को देखते हुए आईआरसीटीसी से जवाब मांगा है। बताया जा रहा है कि नई रेलवे कैटरिंग नीति 2010 के अनुपालन और भारतीय रेलवे के कैटरिंग सेवाओं को आईआरसीटीसी से रेलवे बोर्ड द्वारा वापस लिए जाने से आउट सोर्स कर्मचारियों की नौकरी खतरे में पड़ गई है। आईआरसीटीसी अब तक करीब 115 रेलों में कैटरिंग का काम भारतीय रेलवे को सौंप चुका है और शेष रेलों को भी सौंपने की प्रक्रिया जारी है लेकिन रेलवे के पास पर्याप्त संख्या में कर्मचारी नहीं होने की वजह से यह प्रक्रिया धीमी गति से चल रही है। रेलवे बोर्ड ने कैटरिंग सेवा के संचालन के लिए आईआरसीटीसी से पूरे देश में ग्रेड सी के 1284 कर्मचारी और ग्रेड डी के 3985 कर्मचारी मांगे हैं, लेकिन उसके पास इतने कर्मचारी नहीं हैं। आईआरसीटीसी में अभी करीब 4200 कर्मचारी है जिनमें 2200 आउट सोर्स हैं। छह सौ कर्मचारी प्रतिनियुक्ति पर हैं जबकि 1100 स्थाई कर्मचारी हैं। सूत्रों के अनुसार कर्मचारियों को कैटरिंग के लिए भर्ती करने के लिए आवेदन की अंतिम तिथि पिछले सप्ताह समाप्त हो चुकी है। ऐसे में यदि रेलवे ने आईआरसीटीसी के 2200 आउट सोर्स कर्मचारियों को नजर अंदाज कर दिया तो उनके लिए अपने परिवार के पालन पोषण करने में परेशानी आ जाएगी, जिसके बाद कर्मचारियों ने जिस प्रकार अपने हक को हासिल करने के लिए कदम उठाये हैं उसके लिए वे सड़कों पर भी उतरने से पीछे नहीं हटेंगे। बताया जाता है कि रेलवे के आईआरसीटीसी में उन करीब 600 कार्यरत अधिकारियों व कर्मचारियों की रेलवे में वापसी हो चुकी है जो इस कंपनी में प्रति नियुक्ति पर आए थे। लेकिन सवाल उन दो हजार से ज्यादा कर्मचारियों का है जिनके ऊपर अभी भी तलवार लटकी हुई है।

रविवार, 16 जनवरी 2011

2जी स्पेक्ट्रम: कांग्रेस के निशाने पर कैग

रिपोर्ट पर उंगली उठाने से प्रभावित होगी जांच
ओ.पी. पाल
2जी स्पेक्ट्रम आवंटन घोटाले की सीबीआई, पीएसी, प्रवर्तन निदेशालय, आयकर विभाग, एक पूर्व न्यायाधीश समिति समेत करीब सात एजेंसियों द्वारा जांच की जा रही है और मामला सुप्रीम कोर्ट के पास भी है, तो ऐसे में संसद में पेश होने से पहले इस मुद्दे पर कैग की रिपोर्ट के लीक होने के मामले को फोकस करके कांग्रेस ने विपक्ष द्वारा की जा रही जेपीसी की मांग के मुकाबले संघर्ष को तेज करने का इरादा कर लिया है। मसलन यह कि यूपीए सरकार का नेतृत्व करने वाले दल कांग्रेस को अब संवैधानिक संस्था सीएजी भी संदेह होने लगा, जिसके लिए कांग्रेस कैग के खिलाफ विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव लाने की भी कवायद में जुट गई है।2जी स्पेक्ट्रम आवंटन में घोटाले को उजागर करने वाली नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट पर जब केंद्र सरकार का नेतृत्व करने वाली कांग्रेस पार्टी ने उंगलिया उठानी शुरू कर दी हैं तो इससे दूरसंचार मंत्री कपिल सिब्बल के बचाव के संकेत को भी बल मिला है तो वहीं इस संवैधानिक संस्था की 2जी स्पेक्ट्रम मामले पर रिपोर्ट लीक होने के मामले पर भी कांग्रेस गंभीर है। सूत्रों के अनुसार कांग्रेसी सांसद इस संवैधानिक संस्था के खिलाफ विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव पेश करने की तैयारी में जुट गये हैं। दो दिन पहले ऐसे संकेत कांग्रेस की प्रवक्ता जयंती नटराजन ने भी एक संवाददाता सम्मेलन में दिये थे और कैग रिपोर्ट पर उंगली उठाने वाले दूरसंचार मंत्री कपिल सिब्बल का साफतौर से बचाव किया था। सिब्बल के इस बयान को संसदीय लोक लेखा समिति के अध्यक्ष डा. मुरली मनोहर जोशी ने जांच प्रभावित होने की संभावना जताई थी। 2जी स्पेक्ट्रम के मामले पर पिछले सप्ताह 12 जनवरी को जारी कैग की एक विज्ञप्ति को निशाने पर लेते हुए कांग्रेस ने इसे विशेषाधिकार हनन का मामला करार दिया है। कांग्रेस का सवाल है कि संसदीय समिति के समक्ष लंबित मामले पर किसी सांसद को टिप्पणी करने से रोकने के लिए कोई संसदीय प्रक्रिया है या नहीं। कांग्रेस एक संवैधानिक संस्था द्वारा इस प्रकार विज्ञप्ति जारी करने के मामले को विशेषाधिकार का हनन बताया। हालांकि कैग जैसी संवैधानिक संस्था को कम करके आंकने को लेकर हो रहे हमले पर विपक्ष कैग का बचाव करने का प्रयास किया जा रहा है। कांग्रेस ने सिब्बल द्वारा कैग की आलोचना को बिल्कुल उचित ठहराते हुए अन्य को भी कैग पर उंगली उठाने का मौका तो दे ही दिया। यही कारण है कि योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने भी कांग्रेस तथा सत्तारूढ संप्रग के घटकों के सुर में सुर मिलाते हुए 2जी स्पेक्ट्रम की रिपोर्ट को लेकर कैग पर सवाल खड़े कर दिये। अहलूवालिया ने तो यहां तक कहा कि कितना धन जुटाया जा सकता था इस सवाल में जाना परिणामदायी नहीं होगा क्योंकि 1999 से दूरसंचार नीति में अधिकाधिक राजस्व वसूली पर जोर नहीं दिया जा रहा था। यह सर्वविदित है कि कैग ने 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन मामले में सरकारी खजाने को अनुमानित 1.76 लाख करोड़ रूपये के नुकसान की बात कही थी। दूरसंचार मंत्री कपिल सिब्बल ने भी हाल ही में इस मामले में कैग की आलोचना करते हुए उसकी प्रणाली को भारी त्रुटिपूर्ण बताया था।

चंदे से चांदी काट रहे दलों पर गाज!

चाय की दुकान में भी चल रहे हैं कार्यालय
ओ.पी. पाल
केंद्रीय चुनाव आयोग ने ऐसे राजनीतिक दलों पर शिकंजा कसने की तैयारियां कर दी है जो चंदे के बल पर चांदी काट रहे हैं। निर्वाचन आयोग ने जिस प्रकार अध्ययन कराकर खुलासा किया है उसमें चौंकाने वाले तथ्य सामने आ रहे हैं इसलिए ऐसे फर्जी राजनीतिक दलों के पंजीकरण निरस्त करने की कवायद शुरू करने पर बल दिया गया है जिनका लोकतांत्रिक चुनावों के उद्देश्यों से कोई सरोकार नहीं है।मुख्य निर्वाचन आयुक्त डा. एसवाई कुरैशी ने वैसे तो पद संभालते ही चुनाव सुधार के लिए कदम उठाने की मुहिम शुरू कर दी थी, जिनका असर बिहार चुनाव पर भी साफ तौर से नजर आया। इसी चुनाव सुधार की दिशा में निर्वाचन आयोग ने फैसला किया है कि भविष्य में उन्हीं राजनीतिक दलों को चंदे पर कर छूट का लाभ दिया जाएगा जो चुनाव में सक्रिय हिस्सेदारी करके अपनी प्रभावी शक्ति को साबित करेंगे। मुख्य निर्वाचन आयुक्त एसवाई कुरैशी के अनुसार चुनाव आयोग में पंजीकृत राजनीतिक दलों की संख्या 1200 तक पहुंच गई है, जिसके करण कुछ फर्जी दल आयकर कानून के उन प्रावधानों का उल्लंघन कर रहे हैं जिस मकसद से उनके दलों का पंजीकरण किया गया था। ऐसा एक अध्ययन के दौरान पाया गया कि जिसके बाद चुनाव आयोग समझता है कि धन शोधन करने ओर उस पैसे को शेयर बाजार में लगाने एवं आभूषण खरीदने के लिए फर्जी पार्टियां बनाई जा रही हैं। चंदे लेने और देने वाले को आयकर में छूट देने वाले नये कानून के बाद ऐसे अनेक नये राजनीतिक दल सामने आये हैं जिनका लोकतंत्र प्रणाली से कोई सरोकार नहीं है। यह चुनाव आयोग की जांच में एक चौंकाने वाला तथ्य भी सामने आया कि एक राजनीतिक दल का कार्यालय चाय की दुकान में है, तो दूसरा दल आभूषण और शेयर खरीदने में दो से तीन करोड़ रुपये खर्च कर रहा है। इसके अलावा एक पार्टी का कार्यालय तो नियत स्थान पर ही नहीं मिला। अब चुनाव आयोग ने ऐसे राजनीतिक दलों के पंजीकरण निरस्त करने की तैयारियां कर दी हैं। इसके लिए आयोग पहले ही राजनीतिक दलों के पंजीकरण से जुड़े नियमन के कानून में संशोधन करने के लिए सरकार से सिफारिश कर चुका है। मुख्य चुनाव आयुक्त का कहना है उनके विचार से राजनीतिक दलों को अपने खातों का वार्षिक लेखाजोखा प्रकाशित कराना चाहिए, विशेष तौर पर चंदे की राशि पर कर छूट का विवरण देना चाहिए, जिसके बाद ऐसा न कर पाने वाले दलों के पंजीकरण निरस्त करने में सुविधा होगी। आयोग ने चुनाव खर्च के जरिए कराये जाने पर भी विचार किया जा रहा है। निर्वाचन आयोग का मत है कि कर छूट उन दलों को ही दी जानी चाहिए जो चुनाव में हिस्सा लेते हैं और चुनाव में प्रदर्शन के आधार पर अपनी राजनीतिक स्थिति स्पष्ट करते हैं। राजनीतिक दलों के खातों में पारदर्शिता लाने के उद्देश्य से उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग ने अपनी सिफारिशों में कहा है कि सभी राजनीतिक दलों को अपने खातें की कैग या चुनाव आयोग की ओर से नियुक्त पैनल से वार्षिक आडिट करानी चाहिए। इसी प्रावधान से चुनाव की लोकतंत्र प्रणली में सुधार किया जा सकता है।

शनिवार, 15 जनवरी 2011

अंदरूनी झगड़ो की राजनीति में उलझा तेलंगाना

ओ.पी. पाल
छोंटे राज्यो के गठन का पक्ष तो हरेक राजनीतिक दल करता आ रहा है, लेकिन वायदे करने के बावजूद सत्ता में आते ही वह जनता की भावनाओं को समझना तो दूर अपने वायदे को भी ताक पर रख देते हैं। तेलंगाना की मांग इसी राजनीति के चक्रव्यूह में फंसी है। इसी मुद्दे पर राष्ट्रीय लोकदल के प्रमुख चौधरी अजित सिंह से हुई बातचीत के अंश इस प्रकार हैं-

तेलंगन पर श्रीकृष्ण समिति की रिपोर्ट और सिफारिशों पर आपकी क्या टिप्पणी है? इससे कोई नतीजा निकलता दिख रहा है?
देखिये श्रीकृष्ण समिति की रिपोर्ट पर सभी का मानना है कि जो घोषणा गृह मंत्री ने की थी कि तेलंगाना बनाने की प्रक्रिया शुरू हो गई। इस पर जो प्रतिक्रिया हुई वह ज्यादातर कांग्रेस के अंदरूनी झगड़ो का परिणाम थी, यही मामले की लटकाने को लटकाने के लिए किया गया, इसलिए कहा जा सकता है कि फिलहाल इसका नतीजा निकलता तो कतई नहीं दिख रहा है।
यह माना जा रहा है कि मामले को ठंडा करने और लटकाने की मंशा से ही यह समिति गठित की गई थी। कांग्रेस आंध्र की अंदरूरनी राजनीति में फंस गई है?
मैं कह ही चुका हूं कि श्रीकृष्ण समिति का गठन ही मामले को लटकाने के लिए किया गया था, जिसमें कांग्रेस की आपसी खींचतान वाली राजनीति सबसे बड़ी बाधा बनी रही और आगे भी यही स्थिति नजर आ रही है। जबकि तेलंगाना की मांग कोई नहीं नहीं है यह बहुत पुरानी है जब आंध्र प्रदेश बना था तभी से इसकी मांग उठ रही है। इसके लिए कई बड़े और हिंसक आंदोलन भी हुए। चुनाव के दौरान भी वहां की जनता अपनी मंशा जता चुकी है। 2004 के लोकसभा चुनाव में यूपीए गठबंधन के साझा न्यूनतम कार्यक्रम में भी तेलंगाना बनाने का वादा किया गया, लेकिन जनता की भावनाओं को कांग्रेस अब समझना भी नहीं चाहती वहां गांव-गांव में 9-10 साल बच्चे भी तेलंगाना की बात करते हैं।
दिसंबर 2009 में गृहमंत्री ने अलग तेलंगाना का ऐलान कर दिया था। इसके बाद केंद्र सरकार और कांग्रेस ने यू-टर्न ले लिया। क्या इससे हालात और पेचीदा नहीं हो गये हैं?
बिल्कुल तेलंगाना में हिंसक आंदोलनों के दबाव में कानून व्यवस्था को बिगड़ते देख गृह मंत्री ने तेलंगाना बनाने की प्रक्रिया को शुरू करने की घोषणा की थी, पर जो प्रतिक्रियाएं देखने को मिली वे सब कांग्रेस के आपसी मतभेद और अंदरूनी कलह के कारण हुई, जिसके कारण कांग्रेस इस मामले को लटकाने के लिए तरह-तरह की बातें कर रही है। श्रीकृष्ण समिति की रिपोर्ट में दिये गये छह विकल्पों से भी नहीं लगता कि केंद्र सरकार या कांग्रेस तेलंगाना बनाने के लिए गंभीर है। सरकार यह भी जानती है कि तेलंगाना को लेकर आंध्र प्रदेश में अभी भी अस्थिरता बनी हुई है। ऐसा लगता है कि कांग्रेसनीत सरकार जो भी प्रक्रियाओं को अंजाम दे रही है वह सब मामले को टालने का संकेत है।
ऐसा नहीं लगता कि छोटे राज्यों के मसले पर राजनीति स्वार्थो की भेंट चढ़ रहे हैं? केंद्र और राज्यों में सत्तारूढ़ दल अपने नफे-नुकसान की सोचकर फैसले करते हैं?
जहां तक आंध्रा का सवाल है यदि केंद्र सरकार एक-दो साल पहले ही तेलंगाना बना देती तो शायद आज जिन प्रतिक्रियाओं का सामना करना पड़ रहा है वो सामने न आता। इससे छोटे राज्यों के मामलों पर स्वार्थ की राजनीति स्वाभाविक ही है। यदि आप उत्तर प्रदेश की बात करें तो बुन्देलखंड के लिए कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने समन्वय समिति बनवाई थी और कांग्रेस के कानपुर अधिवेशन में भी राज्य के पुनर्गठन की मांग उठी जिसे कांग्रेस ने प्रस्ताव में भी शामिल किया। जब प्रधानमंत्री बनारस गये तो वे भी इस पर अपनी सहमति जता चुके थे। वहीं देखिये यूपी की मुख्यमंत्री मायावती ने भी छोटे राज्यों का पक्ष लिया और प्रधानमंत्री को कई बार चिट्ठियां भी लिखी, लेकिन अब कांग्रेस या कोई सत्तारूढ़ दल इस मसले पर बोलने को भी तैयार नहीं है।
एक सवाल यह भी पूछा जाता है कि आखिर कितने राज्य बनाए जाएं और इसका आधार क्या हो? क्या नए राज्य बनानेके लिए कोई पैरामीटर होने चाहिए?
छोटे राज्य बनाने का मामला नया नहीं है यह बहुत पुराना है। छोटे राज्यों को बनाने के लिए राज्य पुनर्गठन जो डेटा देता है वह भी सभी जानते हैं। यूपीए जैसे दुनिया के बड़े राज्यों में छठे नंबर पर है जहां अलग-अलग विकास और आर्थिक परिस्थितियों है लोगों की भाषाएं भी अलग हो जाती हैं। जहां तक छोटे राज्यों का आधार और पैरामीटर की बात है तो इन्हीं कारणों को देखकर छोटे राज्यों को बनाने की नीतियां बनाए जाने की जरूरत है।
यह सुझाव भी आया है कि राज्य पुनर्गठन आयोग बनाकर पता लगाया जाए कि वास्तव में कितने और राज्यों की जरूरत है?
राज्य पुनर्गठन आयोग बनाये भी गये हैं और बनाये जाने की जरूरत भी समझी जाती है लेकिन प्रशासनिक या विकास की दृष्टि आंकड़ प्रस्तुत किये जाते हैं, जबकि छोटे राज्यो को वहां के विकास और आर्थित परिस्थितियों के आधार पर बनाया जाना जरूरी है। यदि यूपी में हरित प्रदेश की ही बात करें तो वह देश के कई राज्यों से भी बड़ा हो सकता है।
बड़े राज्यों में किस तरह की प्रशासनिक व राजनीतिक मुश्किलें आप महसूस कर रहे हैं?
पूर्वांचल में छोटे-छोटे राज्य बनाए गये हैं उन्हें प्रशासनिक व राजनीतिक दृष्टि से नहीं बल्कि वहां के लोगों की समस्याओं के समाधान को दृष्टिगत रखते हुए बने, यूपी जैसे बड़े राज्य की स्थिति सबके सामने है, जहां हर क्षेत्र की समस्या अलग-अलग है और प्रशासनिक तथा राजनीतिक कठिनाईयों को देखते हुए सभी महसूस करते हैं कि छोटे राज्य बनने चाहिए।
क्या छोटे राज्य विकास की गारंटी है? झारखंड सहित कुछ राज्य अस्थिर राजनीति और भ्रष्टाचार के पर्याय नहीं बन गये हैं?
विकास के लिए तो मैं छोटे राज्यों की गारंटी की बात नहीं करता, लेकिन छोटे राज्यों में बड़े राज्यों की अपेक्षा विकास की संभावनांए अधिक महसूस की जा सकती है। विकास के लिए प्रशासनिक, राजनीतिक और जनता के बीच संवाद जरूरी है जो छोटे राज्यों में अधिक कारगर हो सकता है। जो भी छोटे राज्य बने हैं उनमें राजनीतिक और भ्रष्टाचार एक सोच समझने की जरूरत पैदा करने का संकेत देती है।
आप इस तर्क से कितना सहमत हैं कि छोटे राज्यों की संख्या बढ़ने से केंद्र कमजोर होगा या राष्ट्र की एकता और अखंडता पर इसका असर पड़ सकता है?
केंद्र कमजोर होने का तो कोई सवाल नहीं है यहां तो राज्यों की बात की जानी चाहिए। राज्य भी एक विशाल देश का ही हिस्सा है जिसके कारण मैं नहीं मानता कि इसका असर राष्ट्र की एकता या अखंडता पर पड़ेगा।
आप हरित प्रदेश के लिए आंदोलन चलाते रहे हैं। एक समय मायावती ने भी यूपी को चार भागों में बांटने पर सहमति दी थी। फिर पेंच कहां है?
हरित प्रदेश में पेंच यही है कि सत्तारूढ़ सरकार प्रजातंत्र में जनता की राय पर मुद्दे उठाने का कोई प्रयास नहीं करती। हरित प्रदेश के लिए आंदोलन भी हुए और सपा को छोडकर सभी राजनीतिक दल भी सहमत हैं, यहां तक कि मायावती भी छोटे राज्यों पक्षधर होने का दावा करती हैं, लेकिन आज तक यूपी सरकार ने केंद्र को हरित प्रदेश का प्रस्ताव तक नहीं भेजा। केंद्र सरकार भी तभी चेतती है जब कानून व्यवस्था बिगड़ने की संभावना नजर आती है।

धोखाधड़ी में घिरे रेलवे सतर्कता प्रमुख

अधिकारी को फर्जी दस्तावेजों से फंसाने का आरोप
ओ.पी. पाल
राष्ट्रमंडल खेलों मे हुई अनियमितताओं की जांच करने वालों में शामिल रेलवे सतर्कता विभाग के प्रमुख वी. रामाचन्द्रन स्वयं धोखाधड़ी के आरोप में फंसते नजर आ रहे हैं। सीवीसी पद पर रह चुके रामाचन्द्रन पर आरोप है कि उन्होंने एक अधिकारी को फंसाने के लिए सिर्फ एक झूठा आरोप पत्र ही तैयार नहीं किया, बल्कि फर्जी दस्तावेजों के जरिए उक्त अधिकारी को अदालत में भी घसीटने में कामयाब रहे।देश में आजकल घोटालों और भ्रष्टाचार की चर्चाओं के दौर में जब चौतरफा बवाल मचा है तो भ्रष्टाचार पर निगरानी रखने वाले संवैधानिक संगठनों के प्रमुखों पर ही भ्रष्टाचार और धोखाधड़ी के मामले सामने आने लगे हैं। अभी केंद्रीय सतर्कता आयोग के प्रमुख पीजे थॉमस की नियुक्ति को लेकर घिरी केंद्र सरकार का मामला गूंज ही रहा था कि ऐसा ही एक नाम वी.रामाचन्द्रन का सामने आ गया जो भ्रष्टाचार के मामलों पर निगरानी के लिए रेलवे सतर्कता विभाग के प्रमुख हैं और वे सीवीसी भी रह चुके हैं। सूत्रों के अनुसार रेलवे विजिलेंस के प्रमुख रामाचन्द्रन पर आरोप है कि उन्होंने एक अधिकारी को फंसाने के लिए ना सिर्फ झूठी चार्जशीट तैयार की, बल्कि फर्जी दस्तावेजों का सहारा लेकर रामचंद्रन अधिकारी को कोर्ट में घसीट ले गए हैं। सबसे बड़ी आश्चर्य की बात यह भी है कि रामाचन्द्रन कुछ समय पहले तक राष्ट्रमंडल खेल घोटाले की जांच में भी लगाये गये थे। रेलवे सतर्कता विभाग के प्रमुख के खिलाफ धोखाधड़ी का मामला उस समय उजागर हुआ, जब आरटीआई के जरिये पता चला कि रेलवे के ही एक अधिकारी डी.के. श्रीवास्तव को फंसाने के लिये रामचन्द्रन ने फर्जी कागजात का सहारा लिया। डीके श्रीवास्तव के खिलाफ आरोप था कि इन्होंने रेलवे द्वारा अधिकृत कंपनियों से पेंट की खरीदारी नहीं की। इसी आधार पर उनके खिलाफ चार्जशीट करने की मंजूरी ली गई लेकिन आरोप पत्र में इस बात का जिक्र ही नहीं था। आखिरकार श्रीवास्तव ने आरटीआई के तहत इस बात का पता लगाया कि पेंट की खरीद के लिए कोई अधिकृत कंपनी थी ही नहीं। इस मामले की जांच कर रहे महाप्रबंधक ने भी अपनी रिपोर्ट में लिखा कि चूंकि श्रीवास्तव भारतीय सप्लाई सर्विस कैडर से बाहर के अधिकारी थे, लिहाजा जानबूझकर उन्हें फंसाने की कोशिश की गई। एक ही दिन में उनके खिलाफ विजिलेंस के 14 मामले दर्ज किए गए थे और इसमें से कुछ मामलों में तो किसी और ने नहीं यूपीएससी तक ने टिप्पणी की थी कि उन्हें जानबूझकर फंसाया जा रहा है। श्रीवास्तव ने अपनी शिकायत रेल मंत्री ममता बनर्जी और रेलवे बोर्ड के बड़े अधिकारियों तक को भेजी, लेकिन किसी ने भी कोई कार्रवाई नहीं की।

शुक्रवार, 14 जनवरी 2011

एवरेस्ट फतह कर नया रिकार्ड बनायेगा नरेन्द्र

पांच साल पहले ही हासिल हो जाता गौरव....
ओ.पी. पाल
हरियाणा ने खेल के क्षेत्र में देश को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर गौरवान्वित किया है और आने वाले समय में हरियाणा देश के लिए ऐसा पहला रिकार्ड बनाएगा जिसमें कुरुक्षेत्र के युवक नरेन्द्र सिंह के रूप में कोई भारतीय अकेले ही माउंट एवरेस्ट की चोटी पर तिरंगा लहराएगा। हालांकि हरियाणा देश के लिए यह गौरव पांच साल पहले ही हासिल कर सकता था यदि हरियाणा सरकार अंतिम क्षणों में अपने हाथ वापस न खिंचती? जी हां... आगामी मार्च में माउंट एवरेस्ट की चोटी को फतह करने जा रहे हरियाणा के लाल नरेन्द्र सिंह हरियाणा का नाम रोशन करने के लिए अत्यंत उत्साहित हैं जिसका नाम हिमालयन साइकिलिंग में राष्ट्रीय रिकार्ड बनाने पर लिमका बुक में भी नाम दर्ज है।हरियाणा की ऐतिहासिक भूमि कुरूक्षेत्र के बीबीपुर गांव निवासी बलबीर सिंह के 30 वर्षीय पुत्र नरेन्द्र सिंह भी देश के लिए पर्वतारोही संतोष यादव व ममता सौढ़ा के बाद ईको एवरेस्ट अभियान को फतेह करने के लिए पिछले दस साल से जी तोड़ मेहनत कर रहा है जो सहारा गु्रप में पर्वतारोहियों को प्रशिक्षण देने के लिए स्ट्रेक्टर के पद पर कार्यरत है। पर्वतारोही के रूप में अपना नाम एक नये रिकार्ड के रूप में दर्ज कराने सपना संजोय आगामी मार्च माह में नेपाल में शिविर में हिस्सा लेने के बाद माउंट एवरेस्ट की चोटी पर झंडा फहराने के लिए चढ़ाई शुरू करेगा, जिससे 15 मार्च को नई दिल्ली से कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा सौंप कर रवाना करेंगे। बातचीत ले दौरान इस साहसी युवक नरेन्द्र सिंह ने बताया कि इससे पहले वह वर्ष 2004 में श्रीनगर से नेपाल, भूटान होते हुए अरुणाचल प्रदेश में संपन्न हुई 5 हजार किमी की हिमालयन साईकिलिंग रेस को 40 दिन में पूरा करके अपना नाम लिमका बुक में दर्ज करा चुका है। इसके बाद वर्ष 2006 में उसे माउंट एवरेस्ट की चोटी फतेह करने का मौका मिला और हरियाणा की हुड्डा सरकार के आश्वासन के साथ सभी तैयारियां पूरी कर ली गई थी, लेकिन नेपाल रवाना होने से मात्र छह दिन पूर्व ही हरियाणा सरकार ने खजाना खाली होने का हवाला देते हुए उसके सपने को तोड़ दिया, वरना अपने देश और हरियाणा के लिए यह गौरवशाली रिकार्ड तभी बन जाता। राज्य सरकार द्वारा आर्थिक सहायता से अपने हाथ वापस खींच लेने पर संभालखा (पानीपत) के समाजसेवी हवा सिंह छोकर ने उसका हौंसला बढ़ाया और इसके लिए हर सहायता देना शुरू किया, तो उसे फिर अपने अधूरे सपने को पूरा करने का मौका मिला और सभी तैयारियां पूरी हो गई है जिसके लिए उसका प्रशिक्षण चल रहा जिसमें उसे तीन बार एवरेस्ट की चोटी फतह कर चुके बीएसएफ के जवान नवराज के अलावा पर्वतारोही सतेन्द्र राणा उसकी तैयारियों में जुटे हुए हैं। इसके लिए जद-यू के लोकसभा सांसद कैप्टन जय नारायण प्रसाद निषाद ने नरेन्द्र सिंह के हौंसले को बढ़ाते हुए मंत्रालयों तथा अन्य कारपोरेट जगत को भी पत्र लिखे हैँ। इस संबन्ध में निषाद ने कहा कि एक अभियान में कम से कम 25 लाख रुपये का खर्च आता है, जिसको बढ़ावा देने के लिए अन्य खेलों की तरह केंद्र सरकार को नीति बनाने की जरूरत है और प्रायोजकों को भी आगे आकर एडवेंचर स्पोर्ट्स को प्रोत्साहन देना चाहिए। भारत के लिए पर्वतारोहण में एक नया रिकार्ड दर्ज कराने के लिए आत्मविश्वास के साथ नरेन्द्र सिंह का कहना है कि यह पहली बार होगा कि कोई भारतीय अकेले ही माउंट एवरेस्ट पर तिरंगा लहराएगा।

गुरुवार, 13 जनवरी 2011

महंगाई पर माथापच्ची भी बेअसर

खाद्य पदार्थो पर महंगाई डायन का कब्जा
ओ.पी. पाल
महंगाई के मुद्दे पर यूपीए में आपसी टकराव के सामने सरकार द्वारा महंगाई को काबू करने के लिए की जा रही माथापच्ची केबावजूद नहीं लगता कि महंगाई की मार से बेहाल देश की जनता को कोई राहत मिल जाएगी। सरकार महंगाई को नियंत्रण करने के लिए किसी तोड़ को नहीं तलाश पाई है, शायद यही कारण था कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में भी महंगाई पर कोई चर्चा नहीं हो पाई।दरअसल इन दिनों महंगाई अपने चरम पर है, जिसे रोकने के लिए पिछले तीन दिन से कांग्रेसनीत केंद्र सरकार लगातार माथापच्ची कर रही है, लेकिन यूपीए घटक के मंत्रियों में महंगाई को लेकर उजागर हो रहे तकरार ही शायद सरकार को किसी ठोस उपाय तक पहुंचने में बाधक बना हुआ है। गुरुवार को केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में भी महंगाई के मुद्दे पर कोई चर्चा न होना उस संकेत को मजबूत कर रहा है कि यूपीए घटक दलों के मंत्रियों के बीच किसी भी ठोस तरीके पर आम सहमति नहीं बन पा रही है। राहुल गांधी के महंगाई पर कथित तौर पर आये बयान से राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने कांग्रेस पर निशाना साधा है तो प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस को कोसने में कसर नहीं छोड़ रहे हैं। प्याज के दामों समेत सभी खाद्य पदार्थो के दामों में लगातार बेतहाशा बढो़तरी हो रही है और मनमोहन सरकार महंगाई डायन से छुटकारा पाने की जुगत में लगातार उपायों को तलाशने की गरज से माथापच्ची में व्यस्त है, लेकिन पिछले तीन दिन से लगातार केंद्र सरकार के मंत्रियों की अलग-अलग बैठकों में महंगाई पर काबू पाने के लिए सरकार किसी ठोस नतीजे पर पहुंचने में पूरी तरह विफल रही। इसका कारण साफ है कि कृषि मंत्री शरद पवार यूपीए घटक दल राकांपा प्रमुख हैं, जिन्हें महंगाई के लिए कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने तो कथिततौर पर जिम्मेदार ठहराया है, वहीं महंगाई के मुद्दे पर जब प्रधानमंत्री के आवास पर केंद्र के वरिष्ठ मंत्रियों की बैठक के दौरान कृषि मंत्री शरद पवार तथा वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी के बीच हुए तकरार ने भी यही साबित किया है कि महंगाई को रोकने के लिए गठबंधन की यूपीए सरकार में केंद्रीय मंत्रियों की भी किसी उपाय पर आम सहमति नहीं बन पा रही है। हालांकि केंद्रीय मंत्रियों ने महंगाई का ठींकरा राज्यों के सिर फोड़ने के प्रयास में यह तो कहा कि यदि राज्य सरकारें जमाखोरों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करें महंगाई पर नियंत्रण पाया जा सकता है। यह भी कहा जा रहा है कि केंद्र सरकार राज्य सरकारों को जमाखोरों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने का अनुरोध करेगी। केंद्रीय मंत्रियों का मानना है प्याज समेत सब्जियों के आसमान छूते दामों पर तभी रोक लग सकती है जब राज्य सरकारें जमाखोरी व मंडी माफिया के खिलाफ प्रभावी कार्रवाई करने के लिए सख्ती दिखाये। केंद्र सरकार द्वारा महंगाई पर काबू पाने के उपाय तलाशने के लिए की जा रही कवायद के बावजूद बढ़ती कीमतों ने विपक्ष को आलोचना करने का मौका तो दे ही दिया, वहीं लगता है कि प्याज के आंसू रो रहे लोगों के लिए भी फिलहाल राहत की कोई उम्मीद नहीं नजर नहीं आ रही है। सरकार तो महंगाई पर काबू नहीं पा रही है, लेकिन प्याज ही नहीं बल्कि तेल, चीनी और खाद्य पदार्थो को महंगाई डायन ने अपने कब्जे में जरूर कर लिया है। कैबिनेट की बैठक से लोगों को उम्मीद थी कि सरकार महंगाई पर काबू करने के लिए किसी ठोस कदम का ऐलान करेगी लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। हालांकि प्रणव मुखर्जी लगातार सरकार के बचाव में महंगाई को काबू करने के लिए लगातार देश को भरोसा दिलाते नजर आ रहे हैं।

बुधवार, 12 जनवरी 2011

खुशी बांटना ही श्वेता का मकसद

ओ.पी. पाल
ऋषि मुनि, योगाचार्य और चिकित्सकों के अलावा वैज्ञानिको के शोध में ही नहीं, बल्कि वेदों में भी कहा गया है कि खुश रहने से तन-मन दोनों ही स्वच्छ और स्वस्थ रहते हैं और मानव की व्यवहार से भाग्य का भी निर्धारण होता है। दुनिया में खुशी बांटने के मकसद से हरियाणा की बेटी श्वेता सेठी शर्मा विदेश में प्रवासी होते हुए भी भारत से ही इस अभियान को शुरू करने का हौंसला बनाये हुए है, जिसका मानना है कि बच्चे से लेकर वृद्ध व्यक्ति और भिखारी से लेकर अमीरों तक खुशी बांटना उसका मकसद है।नौवें प्रवासी भारतीय दिवस के मौके पर हाल ही में संपन्न हुए सम्मेलन में हांगकांग से यहां हिस्सा लेने आई श्वेता सेठी शर्मा के विचारो सम्मेलन में सभी वर्गो और विशेषज्ञों, वैज्ञानिकों तथा राजनीतिज्ञों ने भी स्वागत किया है। दुनिया में खुश रहने के लिए वह हर किसी को खुश रहने की सलाह देती है। श्वेता का मानना है कि खुश रहने से ही वैश्विक और निजी समस्याओं का समाधान संभव है। मध्य प्रदेश के जबलपुर में जन्मी श्वेता सेठी शर्मा के माता-पिता उसके बचपनकाल में ही हरियाणा के गुड़गांव में आकर बस गये, जहां श्वेता सेठी ने आर्मी पब्लिक स्कूल में अपनी स्कूली पढ़ाई की और वह बाद में परिवार के साथ हांगकांग में चली गई, जिसकी उच्च शिक्षा-दीक्षा विदेश में ही पूरी हुई। हरिभूमि संवाददाता से बातचीत के दौरान पिछले 20 साल से हांगकांग में रह रही प्रवासी भारतीय श्वेता सेठी शर्मा ने बताया कि वह प्रवासी सम्मेलन में पहली बार आई हैं और उसका मुख्य मकसद दुनियाभर में खुशी बांटने की है जिसके लिए हांगकांग स्थित एक संस्था में वह एक चीफ हैपीनेस आफिसर के रूप में कार्य कर रही है। वह खासकर भारतीय संस्कृति से इतना लगाव रखती है कि वह यहां भिखारियों के चेहरे पर भी एक मुस्कान देखती है। उनका मानना है कि जीवन मूल्यों पर केंद्रीत शिक्षा प्रदान करने की उसके मन में इच्छा है जिसकी शुरूआत वह इंडिया से ही करना चाहती हैं। भारत में वह यह प्रदर्शन करना चाहती है कि वह पिछले 20 साल से हांगकांग में कैसे खुश रहती है उसी अनुभव को बांटने के लिए वह खासकर गांवों-कस्बों में जाकर बच्चों, युवाओं और वृद्धों को मन की शांति और खुश रखने के लिए स्कूल आॅफ हैपीनेस, जिसमें स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता और इसके लिए प्रोत्सान करना कि खुश रहना भी एक कला है। इस अभियान में श्वेता सेठी शर्मा पूर्वी और पश्चिमी सभ्यता को मिक्स करने का भी प्रसास कर रही हैं कि हमेशा सकारात्मक सोच हरेक के मन में हो। उनका मानना है कि दुनियाभर में भारतीय संस्कृति को बहुत ही सकारात्मक रूप से पाया जाता है, लेकिन यहां की खबरे नकारात्मक पेश हो रही है, जिनसे निजात पाने के लिए खुश रहने के नुस्खों का अमल करना जरूरी है। भ्रष्टाचार व घोटालों के मुद्दे पर उनका कहना था कि दुनियाभर मे हर इंसान एक-दूसरे के साथ खुशी बांटता है तो ऐसी समस्याएं स्वत: ही दूर हो जाएंगी। उन्होंने इस बात को भी माना कि इंसान के व्यवहार को दुनिया के लिए उपयोगी बनाने के लिए शोधकर्ताओं ने भी सिद्ध किया है कि खुश रहने से ही जीवन मूल्यों को हासिल किया जा सकता है। श्वेता सेठी शर्मा ने बताया कि उसके पति राहुल शर्मा हांगकांग में उसके इस अभियान में उनका सहयोग कर रहे हैँ जिनके माता-पिता भी गुडगांव में ही रहते हैं। उनका मानना है कि विदेशों में रहते हुए भी भारतवंशी अपनी मातृभूमि और संस्कृति को कभी नहीं भूलना चाहेंगे, बल्कि दुनियाभर में भारत की सकारात्मक छवि को प्रकट करने में पीछे नहीं हैं। इस सम्मेलन में सोनीपत के मूल निवासी कर्मवीर दहिया जो न्यूयार्क में वकालत करते हैं ने भी इसी प्रकार के विचार प्रकट किये।

बंटवारे की याद कर छलकते हैं आंसू...

ओ.पी. पाल
देश की आजादी के लिए महात्मा गांधी के अंहिसा और शांति के मूल्यों को दुनियाभर में जीवंत रखने के लिए विदेशों में रहे रहे भारतवंशियों की सक्रीय भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। खासकर कनाडा के मोंट्रीयल शहर में बसे सूरज सदन जिन्होंने जीवंत स्कैच और चित्रकारी के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी अलग ही पहचान बनाई है जिनका मकसद बस दुनियाभर में चित्रकारी के जरिए महात्मा गांधी शांति और अहिंसा के संदेश का प्रसार करना है, लेकिन आज भी सूरज सदन की आंखों में बंटवारे के समय की विभीषिका याद आते ही आंसू छलक जाते हैं।आजादी के बाद वर्ष 1970 से मोंट्रियल शहर कनाडा में बसे 70 वर्षीय प्रवासी भारतीय सूरज सदन जब आठ साल के थे तो उन्हें गांधी जी के दर्शन हुए थे और इसी से प्रेरित होकर सूरज सदन ने महात्मा गांधी व कस्तूरबा गांधी का संयुक्त चित्र बनाया और इसी चित्र को भारत सरकार ने 1969 में जारी डाक टिकट पर जारी किया। इसी वर्ष में फ्रांस ने गांधी जी की 100वीं जयंती पर पेरिस में प्रदर्शनी लगाई तो सूरज को अपने चित्रों की प्रदर्शनी लगाने के लिए आमंत्रित किया गया, इस प्रदर्शनी ने सूरज सदन के गांधी दर्शन को जीवंत किया। नौवें प्रवासी भारतीय दिवस पर राष्ट्रीय राजधानी में प्रदर्शनी के लिए दिये गये स्टाल पर सूरज सदन ने पेरिस में लगी इस प्रदर्शनी के बारे में बताया कि वहां उन्हें एक कनाडाई दूतावास का एक अधिकारी मिला और जो मेरे से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने मुझे कनाडा में बसने का न्यौता दिया और वह 1970 से ही कनाडा के मोंट्रियल शहर में अपने परिवार के साथ रह रहे हैं। उन्होंने वहीं से न्यूयार्क, लंदन, मोंट्रियल, चेन्नई, क्यूबा, वाशिंगटन, लार्डस, पेरिस आदि दर्जनों देशों में चित्र प्रदर्शनी लगाई तथा गांधी जी के संदेश को प्रसारित कर रहे हैँ जिनके साथ अब उनके बच्चें में इस मुहिम में जुटे हुए हैं। उन्होंने बताया कि उनकी पत्नी फ्रेंचाईज है और वह स्वयं भी हिंदी, उर्दू, अंग्रेजी, फ्रेंचाईज तथा पंजाबी भाषाओं में निपुण हैं, सूरज सदन ने मोंट्रियल में फाउंडेशन इंटरनेशनल महात्मा गांधी बनाई हुई है। सूरज सदन ने इस प्रकार की चित्रकारी की प्रेरणा का जिक्र करते हुए कहा कि 1956 में बाल दिवस के मौके पर उन्होंने 14 साल की उम्र में पंडित जवाहरलाल नेहरू से मुलाकात की तथा उन्हें उनका चित्र बनाकर भेंट किया, लेकिन अखबार में छपे फोटो से बनाये गये फोटो भेंट करने पर उन्हें एक तरह से फटकारा तथा हौंसला दिया कि यदि वह जीवंत फोटो बनाओगे तो आप दूसरा जीवन बनाएंगे। तभी उन्होंने अपने सचिव से आटोग्राफ करके अपना फोटो दिलाया। गांधी से आठ साल की उम्र मं उनकी मुलाकात तब हुई जब वे दिल्ली के किंग्सवे कैंप में बंटवारे के बाद शरणार्थियों से मिलने आए, वे भी शरणार्थियों में से एक थे। उन्होंने हरिभूमि संवावदाता को बताया कि नेहरू जी के बाद उनकी मुलाकात तत्कालीन राष्टÑपति राजेन्द्र प्रसाद और जाकिर हसैन से भी हुई जिन्होंने अपने आटोग्राफ युक्त फोटो देकर उन्हें इस चित्रकारी के लिए प्रोत्साहित किया। डा. राजेन्द्र प्रसाद ने तो उन्हें स्कैच और कला स्कूल में प्रशिक्षण के लिए भी उन्हें मदद प्रदान की। अभी तक सूरज महात्मा गांधी, नेल्सन मंडेला, जवाहरलाल नेहरू, राजेन्द्र प्रसाद, जाकिर हुसैन, दलाई लामा, हिलेरी किलंटन जैसी सैकड़ो अंतर्राष्ट्रीय हस्तियों के स्कैच चित्र बनाकर अपनी कला का लोहा मनवा चुके हैँ। गांधी जी के इस अनुयायी जहां अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी अलग पहचान बना चुके हैं वहीं जब वह आजादी के बाद बंटवारे के समय हुए गदर की याद करते हैं तो उनकी आंखों में आंसू आ जाते हैं जो पाकिस्तान के हिस्से में गये क्वेटा से नंगे पैर चलकर भारत आये थे, लेकिन उन्हें भारत जैसी संस्कृति और सभ्यता वाले देश को आजादी दिलाने वाले महापुरुषों और आजादी की लड़ाई का नेतृत्व करने वाले महात्मा गांधी के शांति, अहिंसा तथा सत्य-निष्ठा और सभी आदर के उच्चतम मूल्यों को दुनियाभर के कोने-कोने तक पहुंचाने की हसरत रखते हैँ।

भ्रष्टाचार के मुद्दे पर नहीं थम रहा वाकयुद्ध

आर-पार की तरफ बढ़ती भाजपा व कांग्रेस की लड़ाई
ओ.पी. पाल
भारतीय जनता पार्टी की गुहावटी में संपन्न हुई राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में जिस एजेंडे पर जोर दिया गया उसमें भ्रष्टाचार के मुद्दे पर लिए गये फैसलों और राजनीतिक प्रस्तावों को देखते हुए यहीं संभावना है कि घोटोलों और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर सरकार तथा विपक्ष के बीच चल रहे गतिरोध कम होने के बजाए और बढ़कर सामने आएगा। हालांकि कांग्रेस भी भ्रष्टाचार के मुद्दे पर सरकार को बचाने के लिए जोर शोर से अभियान में जुट गई है।भ्रष्टाचार का ऐसा मुद्दा बन गया है जिसके सामने राजनीतिक दलों को एक-दूसरे दल को घेरने की रणनीति पर काम करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा था। इस मुद्दे पर विपक्ष से घिरी कांग्रेसनीत सरकार को फजीहत से बाहर निकालने के लिए कांग्रेस के पिछले महीने हुए महाधिवेशन मे भी विपक्ष खासकर भाजपा पर निशाना साधते हुए प्रस्ताव पारित किये गये और भाषणों में भी भाजपा ही निशाने पर रही। वही स्थिति गुहावटी में संपन्न हुई भाजपा राष्ट्रीय कार्यकारिणी में देखने को मिली। कांग्रेस को घेरने के इरादे से ही भाजपा ने गुहावटी में भाषणबाजी की और राजनीतिक व आर्थिक प्रस्तावों में भी सीधे कांग्रेस को ही निशाने पर रखा, जिसमें भाजपा का साफ एजेंडा है कि 2014 में केंद्र में सत्ता हासिल करना। इसके लिए भाजपा ने राजग शासनकाल की तुलना यूपीए के शासनकाल से की। कांग्रेस और भाजपा दोनो ही अपने अधिवेशनों में एक-दूसरे शासन की बखियां उखेड़ते दिखे। भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक से इस बात का स्पष्ट संकेत मिले हैँ कि भ्रष्टाचार को फोकस में लेकर महंगाई और अन्य मुद्दों पर आने वाले दिनों में सरकार और विपक्ष के बीच टकराव और बढ़ने की संभावना है जबकि संसद का बजट सत्र अब ज्यादा दूर नहीं है। बिहार विधानसभा चुनाव में अप्रत्याशित सफलता और बोफोर्स दलाली मामले में आयकर अपीलीय प्राधिकरण (आईटीएटी) के रुख से पूर्वोत्तर में पहली बार आयोजित अपनी कार्यकारिणी की बैठक में भाजपा काफी उत्साहित नजर आयी है। पार्टी ने कांग्रेस पर निशाना साधने के लिए अपने तरकश से सारे तीर निकाल लिए हैं और कहा है कि दलाली का यह जाल ‘सोनिया गांधी के दरवाजे तक फैला है। ‘आईटीएटी के कारण बोफोर्स मुद्दे के फिर उछल जाने से भाजपा को कांग्रेस की घेराबंदी को और कसने का मौका मिल गया है। पहली बार वह कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को बोफोर्स दलाली के मुद्दे से सीधा जोड़ रही है। भाजपा कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व की बेदाग छवि पर सवाल उठा रही है। भ्रष्टाचार के मामलों में संप्रग को घेरने की मुख्य विपक्षी दल की रणनीति की यह अगली कड़ी नजर आ रही है। साफ है कि भाजपा कार्यकारिणी में पारित राजनीतिक प्रस्ताव में भी कांग्रेस और उसकी ‘पहले परिवार‘ पर निशाना साधा गया है और संप्रग का 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन, आदर्श हाउसिंग सोसायटी और राष्ट्रमंडल खेल के साथ जिक्र किया गया है। कांग्रेस के पिछले महीने हुए महाधिवेशन और गुहावटी में रविवार को ही संपन्न हुई भाजपा राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में सबसे बड़ी बात यही देखने को मिली है कि जिस प्रकार से भाजपा ने अपने राजनीतिक प्रस्ताव में वामदलों समेत किसी भी गैर कांग्रेस दलों पर निशाना नहीं साधा है उसी प्रकार कांग्रेस ने भी महाधिवेशन में अपने राजनीति प्रस्ताव में भाजपा को ही कोसा था। यानि कुछ यूं भी कहा जा सकता है कि कांग्रेस और भाजपा एक दूसरे पर पलटवार करने से आने वाले समय में ऐसा अखाड़ तैयार हो रहा है जिसमें आर-पार की कुश्ती होगी? संभावना यही नजर आ रही है कि भ्रष्टाचार के मुद्दे खासकर 23जी स्पेक्ट्रम पर इन्हीं दोनों दलों के बीच वाकयुद्ध तेजी पकड़ेगा और इसके चलते ही संसद का बजट सत्र आ जाएगा जिसमें गतिरोध कम होने के बजाए बढ़ने के आसार सामने आ सकते है।

दुनियाभर में बुलंदियों पर भारतीय संस्कृति!

नौवां प्रवासी भारतीय दिवस
ओ.पी. पाल
भारतीय संस्कृति को संजोये भारतवंशी विदेशों में रहते हुए भी यही कहते हैं कि ‘सारे जहां से हिन्दुस्तां हमारा...’ खटे-मीठे अनुभवों के साथ संपन्न हुए नौंवे प्रवासी भारतीय दिवस सम्मेलन इसी परंपरागत कहावत को चरितार्थ करता है, जिसमें प्रवासी भारतीयों के प्रधानमंत्री ने नागरिकता और भारतवंशी कार्ड का विलय करने का भरोसा दिलाया जिसके तहत पासपोर्ट धारक भारतीय प्रवासियों को वीजा की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। वहीं इस सम्मेलन में भारत सरकार ने प्रवासियों के मताधिकार की प्रगति का रास्ता भी सुलभ कराने का भरोसा दिलाया, जिसकी प्रक्रिया चुनाव आयोग में विचाराधीन है। मकसद यही कि भारत सरकार अपने रिश्तों को परदेश में बसे लोगों से बेहतर बनाने की परंपरा को बढ़ाने में जुटी हुई है।
रविवार को यहां विज्ञान भवन में संपन्न हुए तीन दिवसीय प्रवासी भारतीय दिवस का समापन राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल के संबोधन के साथ संपन्न हुआ, जहां राष्ट्रपति ने केंद्र सरकार की प्रवासी भारतीयों के लिए उठाये जा रहे कदमों को उनके लिए भारतीय संस्कृति को यादगार बनाये रखने की दिशा में अहम बताया। इस मौके पर राष्ट्रपति ने विदेशों में प्रवास कर रहे कई भारतवंशियों को देश के विकास में उत्कृष्ट भूमिका निभाने के लिए सम्मानित भी किया। यह नौंवा मौका है जब भारत ने विदेशों में रह रहे भारतवंशियों को एक मंच दिया और उनसे भारत के विकास में महत्वपूर्ण योगदान देने की अपेक्षा की गई। पिछले साल संपन्न हुए आठवें प्रवासी भारतीय दिवस के मौके पर जहां सरकार ने खाड़ी के देशों में आर्थिक मंदी की वजह से नौकरी से निकाले जा रहे भारतीय श्रमिकों के स्वदेश में पुनर्वास के लिए कोष बनाने की घोषणा की थी और भारतवंशियों को स्वदेश लौटने के लिए आर्थिक मदद भी दी तो वहीं इस वैश्विक मंदी के बावजूद भारत की आर्थिक स्थिति को पटरी पर लाने का दावा कर चुकी केंद्र की सरकार ने इस बाद उन्हें मताधिकार देने तथा वीजा की समस्या से निदान दिलाने का भरोसा दिलाया, ताकि अप्रवासी भारतीय देश में अपनी कारोबारी दखल को बढ़ा सकें। सरकार ने इस सम्मेलन में यह भी स्वीकार किया है कि वैश्विक मंदी से भारत को उबारने में अप्रवासी भारतीयों के योगदान को भी भुलाया नहीं जा सकेगा। वहीं समापन भाषण में राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने प्रवासियों द्वारा विदेशों में भी भारतीय संस्कृति को जीवित रखने के लिए उनकी पीठ थपथपाई। सम्मेलन में हमेशा की तरह इस बार भी 'एनगेजिंग विद डायस्पोरा' यानी विदेश में बसे भारतीय लोगों के साथ संवाद शीर्षक के साथ आयोजित इस शीर्ष स्तरीय सम्मेलन में तीन क्षेत्रों शिक्षा,स्वास्थ्य तथा ज्ञान-विज्ञान, निवेश और पूर्वोत्तर राज्यों के विकास पर विस्तार से चर्चा रही, वहीं राज्यों ने भी अप्रवासियों को राज्यों में निवेश करने का आव्हान करते हुए उनसे बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के लिए उनसे हिस्सेदार बनने की अपील की है। सम्मेलन में प्रवासी भारतीय दिवस के लिए दुनिया के पचास से अधिक देशों के विभिन्न क्षेत्रों में सक्रिय 1500 प्रतिनिधियो ने हिस्सेदारी की कैबिनेट मंत्रियों,मुख्यमंत्रियों और अनेक वरिष्ठ अधिकारियों के अलावा वैज्ञानिकों एवं अन्य विशेषज्ञों के साथ विचार-विमर्श किया।

भारत को समझने की उत्सुक नई पीढ़ी!

ओ.पी. पाल
भारत को समझने के लिए प्रवासी भारतीय दिवस समारोह में शिरकत करने आए करीब एक दर्जन देशों के युवा और छात्र- छात्राओं के दिल में भी भारतीय संस्कृति को संजोने के लिए जगह है। इसी दल के युवाओं का मानना है कि वह देश के विभिन्न सांस्कृतिक, पर्यटन और अन्य प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों को देखकर भारत को समझने की इच्छा रखते हैं जिसके लिए भारत सरकार ने भी उन्हें जो मौका दिया है वे उसे गंवाना नहीं चाहेंगे।भारत सरकार ने विदेशों में बसे भारतीयों की उस युवा पीढ़ी को भी दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश के रूप में भारत की संस्कृति और सभ्यता को समझने का मौका दिया है इसी दृष्टि से नौवें प्रवासी सम्मेलन में करीब एक दर्जन देशों के युवा और छात्र-छात्राओं का दल भी भारत को समझने के लिए विभिन्न शहरों का दौरा कर रहा है। फिजी, आस्ट्रेलिया, दक्षिया अफ्रीका, कनाडा, न्यूजीलैँड, जिम्बाब्वे, पेरू, इजराइल, टोरेंटो, अमेरिका, ब्रिटेन अदि एक दर्जन देशों के छात्र-छात्राओं के दल का भारत में नेतृत्व प्रवासी भारतीय मामलों के मंत्रालय के अधिकारी जुबैर कर रहे हैं। इस दल में फिजी से आई आंध्र प्रदेश की मूल निवासी रोजलिन नायडू ने हरिभूमि संवाददाता से बातचीत में कहा कि इस दल में शामिल 35 सदस्य भारतवंशी तो हैं लेकिन वे पहली बार भारत आये हैं जिन्हें अभी इस लोकतांत्रिक देश को समझने की जरूरत है। नायडू कहती हैं कि हम समाचार पत्रों व टीवी पर ही भारत के बारे में सुनते आए हैं, लेकिन उन्हें भारत सरकार ने इंडिया को समझने का जो मौका दिया है उसे वे किसी भी कीमत पर गंवाना नहीं चाहेंगे। इसी प्रकार से फिजी से ही आंचल, रोनिज व विनीत के अलावा आस्टेलिया से गौरी, दक्षिण अफ्रीका से जयन्दन व सनम, पेरू से जयंती व कनाडा से आई एंड्यि भी भारत आकर प्रफ्फुलित नजर आये।

अप्रवासी भारतीयों में भी नजर आई टीस

प्रवासी सम्मेलन भी भ्रष्टाचार के मुद्दे से अछूता नहीं
ओ.पी. पाल
भारतीय प्रवासी दिवस सम्मेलन के जरिए जहां सरकार देश के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने की कवायद करते हुए अप्रवासियों से देश में अधिक से अधिक निवेश करने पर जोर दे रही है, वहीं देश में भ्रष्टाचार और घोटालों के चलते अप्रवासी भारतीय सतर्कता बरतने का प्रयास कर रहे है। यही कारण है कि प्रवासी सम्मेलन भी भ्रष्टाचार और घोटाले के मुद्दे से अछूता नहीं रहा और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने स्वयं ही यह कहकर प्रवासियों की शंका को दूर करने का प्रयास किया है कि सरकार प्रशासनिक प्रक्रिया में और अधिक पारदर्शिता तथा निगरानी सुनिश्चित करने के लिए अनेक उपाय करके बदलाव लाने के लिए कटिबद्ध है।प्रवासी भारतीयों की देश के बुनियादी ढांचे और विकास में भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिए प्रत्येक वर्ष यहां आयोजित प्रवासी भारतीय दिवस सम्मेलनों में उन्हें अधिक से अधिक निवेश करने का पास फेंका जाता है, लेकिन पिछले सालों में देश में खासकर 2जी स्पेक्ट्रम, राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन और आदर्श सोसायटी में भ्रष्टाचार और घोटालों ने देश की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जिस प्रकार छवि को कलकित किया है उससे विदेशों में रह रहे भारतवंशी भी पूरी तरह सहमे हुए लगते हैं। प्रवासी भारतीयों की इसी शंका को भांपते हुए शायद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अपने संबोधन में घोटालों और भ्रष्टाचार के मुद्दों पर इशारे ही इशारे में इंगित करते हुए सम्मेलन में दुनियाभर के विभिन्न देशों से आए डेढ़ हजार से ज्यादा अप्रवासी भारतीयों को यह विभिन्न घोटालों की आलोचना करते हुए यह भरोसा दिलाया है कि सरकार प्रशासनिक प्रक्रिया में और अधिक पारदर्शिता तथा निगरानी सुनिश्चित करने के लिए चरणबद्ध तरीके से बदलाव लाने के प्रयास कर रही है। भारतीय लोकतंत्र और प्रणालियों मजबूत एवं जीवंत करार देते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि इसके समाधान तथा सुधार के लिए उनकी अपनी प्रक्रियाएं जिनके दूरगामी परिवर्तनों के लिए आम सहमति बनाने की जरूरत है जो प्रशासन और हमारे विधि एवं निर्वाचन तंत्रों में आवश्यक हो सकते हैं। उन्होंने देश की प्रगति के बारे में भारत वंशियों को यह भी अवगत कराया कि आर्थिक मंदी से उबरने में वैश्विक परिदृश्य की अनिश्चितता के बावजूद देश में प्रगति हो रही है और अगले साल वृद्धि दर नौ से दस फीसदी रहने का अनुमान है। हर साल की तरह केंद्र सरकार के अलावा राज्य सरकार भी प्रवासियों को अपने-अपने राज्यों में निवेश की असीम संभावनाएं बताते हुए उनसे निवेश की अपील करते हैं, लेकिन सवाल है कि भ्रष्टाचार और घोटालों के भय से इन भारतवंशियों की सुरक्षा की गारंटी की शंका का बुनियादी समाधान कैसे होगा? यही शंका खासकर प्रवासी कारोबारियों के मन को कौंधती नजर आ रही है। हालांकि कुछ अप्रवासी भारतीयों ने अपनी मातृभूमि से लगाव की बात कहते हुए देश में सभी क्षेत्रों में सुधार की जरूरत पर बल दिया।

भ्रष्टाचार के खिलाफ सोनिया गंभीर!

विवेकाधीन अधिकारों को त्यागें केंद्रीय मंत्री व मुख्यमंत्री
ओ.पी. पाल
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी भ्रष्टाचार को लेकर पार्टी की हो रही फजीहत से बाहर निकलने के लिए इतनी गंभीर हैं कि उन्होंने केंद्रीय मंत्रियों और राज्यों के मुख्य मंत्रियों से विवेकाधीन अधिकारों को त्यागने के लिए फरमान जारी करके उन्हें भ्रष्टाचार के खिलाफ कांग्रेस के अभियान को तेज करने के निर्देश दिये हैं।कांग्रेस महासचिवों की शनिवार को हुई बैठक में कांग्रेस प्रमुख सोनिया ने उन्हें भ्रष्टाचार के मुद्दे पर राजग के खिलाफ प्रखंड स्तर पर अभियान चलाने के लिए तैयारियां शुरू करने का निर्देश दिया। पार्टी महासचिवों के साथ करीब एक घंटे से ज्यादा समय तक चली इस बैठक में सोनिया ने उनसे यह सुनिश्चित करने को कहा कि राज्यों में कांग्रेसजनों द्वारा सादगी और मितव्ययता का निश्चित रूप से पालन किया जाए। बैठक में सोनिया ने विभिन्न राज्यों के प्रभारी महासचिवों को यह भी निर्देश दिया कि जिन राज्यों में पार्टी की सरकार है, वहां प्रदेश कांग्रेस कमेटी और सरकार के बीच बेहतर तालमेल के लिए वे कदम उठाएं। इसके अलावा जहां कांग्रेस विपक्ष में है, वहां कांग्रेस विधायक दल और प्रदेश कांग्रेस कमेटी के बीच बेहतर तालमेल कायम करने के लिए भी उपाय किए जाएं। सोनिया ने जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं वहां चुनाव की तैयारियों की भी समीक्षा की। उन्होंने पार्टी का चिंतन शिविर आयोजित करने की योजना के बारे में भी चर्चा की। सूत्रों के अनुसार इस बैठक में सोनिया ने अपने महासचिवों को यह भी सुनिश्चित करने को कहा है कि राज्यों में आयोजित होने वाले पार्टी के कार्यक्रमों में सादगी की मिसाल कायम करें, ताकि सरकार में बैठे पार्टी नेताओं के जीवन में सादगी की झलक पैदा हो सके। उन्होंने महासचिवों से केंद्र की महत्वाकांक्षी परियोजनाओं के क्रियान्वयन पर नजर रखने के लिए राज्यों में निगरानी समिति गठित करने के लिए काम शुरू करने को भी कहा है। हालांकि केंद्रीय मंत्रियों और राज्यों के मुख्य मंत्रियों को सोनिया ने गत 19 दिसंबर को पार्टी महाधिवेशन में ही इस आशय के पत्र वितरित करा दिये थे, जिसमें भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए सोनिया गांधी ने चार सूत्री कार्य योजना को रेखांकित किया था। सोनिया ने कहा कि इस बात के पर्याप्त सबूत हैं कि सभी विवेकाधीन अधिकारों और खासकर भूमि आवंटन के अधिकारों से भ्रष्टाचार पनपता है। सोनिया चाहती हैं कि सभी कांग्रेसी मुख्यमंत्री और केंद्र तथा राज्यों में मंत्री अधिकारों की समीक्षा कर और उन्हें त्यागकर उदाहरण पेश किया जाये। कांग्रेस के पिछले महीने सम्पन्न हुए महाधिवेशन में पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी ने प्रदेश स्तर पर समन्वय समिति और निगरानी समिति गठित करने, जनता को संप्रग सरकार की उपलब्धियों से अवगत कराने और भाजपा के दोहरे मापदंडों को बेनकाब करने के लिए देशव्यापी जनजागरण अभियान चलाने की भी घोषणा की थी और कहा था कि प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में कम से कम एक सभा आयोजित की जानी चाहिए। उन्होंने हरेक प्रदेश कांग्रेस कमेटी से साल में कम से कम एक बार प्रतिनिधि सम्मेलन आयोजित करने के लिए भी कहा था। गौरतलब है कि कांग्रेस महाधिवेशन में ही पार्टी के युवा नेता राहुल गांधी ने कांग्रेस नेताओं की जवाबदेही को जरूरी बताया था ताकि भ्रष्ट लोगों को कड़ी सजा मिलना सुनिश्चित किया जा सके। सूत्रों ने बताया कि सोनिया गाँधी महाधिवेशन में तय किए गए कार्यक्रमों को लागू करने को लेकर काफी गंभीर हैं और चाहती हैं कि इन कार्यक्रमों की समीक्षा समय-समय पर होती रहे।

बुधवार, 5 जनवरी 2011

श्रीकृष्ण रिपोर्ट पर चर्चा से पहले गरमाई राजनीति

तेलंगाना मुद्दे पर सर्वदलीय बैठक
ओ.पी. पाल
आंध्र प्रदेश मे पृथक राज्य के रूप में तेलंगाना के गठन के लिए गृह मंत्रालय को सौँपी गई श्रीकृष्णा रिपोर्ट पर विचारकरने के लिए गुरुवार को सर्वदलीय बैठक बुलाई गई है, लेकिन इस बैठक से पहले ही आंध्र प्रदेश में राजनीति गर्माने लगी है, जिसमें तेलंगाना राष्ट्र समिति और भारतीय जनता पार्टी ने हिस्सा न लेने का निर्णय लिया तो वहीं बुधवार को आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन. किरण कुमार ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात की।
आंध्र प्रदेश का विभाजन कर अलग तेलंगाना राज्य के गठन के विभिन्न पहलुओं पर रोशनी डालने वाली जस्टिस श्रीकृष्ण कमेटी की रिपोर्ट पर चर्चा के लिए केंद्रीय गृह मंत्री पी. चिदंबरम ने गुरुवार को नई दिल्ली में एक सर्वदलीय बैठक बुलाई है। इस बैठक में तेलंगाना मुद्दे पर गठित श्रीकृष्णा समिति की रिपोर्ट की सिफारिशों का खुलासा किया जाएगा तथा चिंदबरम इस संबंध में सभी राजनीतिक दलों का समर्थन हासिल करने की कोशिश करेंगे। लेकिन तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) और भाजपा पहले ही इस बैठक में हिस्सा न लेने का ऐलान कर चुकी हैं। यहां तक हुआ कि टीआरएस ने बैठक में हिस्सा लेने के लिए चिदंबरम की तरफ से की गई ताजा अपील को भी खारिज कर दिया है। सूत्रों के अनुसार चिदंबरम ने दूसरा पत्र भेजा, लेकिन टीआरएस का कहना है कि उन्होंने हमारी इन आपत्तियों का जवाब नहीं दिया है कि एक ही पार्टी को अलग अलग राय नहीं देनी चाहिए। चिदंबरम ने पत्र में कहा है कि पांच पार्टियों ने पिछले साल जनवरी में इसी तरह की एक बैठक में एक जैसी राय दी थी, लेकिन विवाद इस बात पर है कि तीन पार्टियों ने अलग अलग राय रखी। चिदंबरम ने इस बैठक में आंध्र प्रदेश की आठ मान्यता प्राप्त पार्टियों को आमंत्रित किया है जिसका टीआरएस इसलिए बहिष्कार कर रही है कि केंद्र सरकार जानबूझ कर पार्टियों में अलग अलग सुझावों को बढ़ावा देने की कोशिश कर रही है क्योंकि सभी पार्टियों से दो प्रतिनिधि बुलाए गए हैं। टीआरएस की मांग है कि केंद्र सरकार बजट सत्र में एक विधेयक पेश कर अलग तेलंगाना राज्य बनाने का मार्ग प्रशस्त करे, भले श्रीकृष्ण कमेटी की सिफारिशें कुछ भी हों। दूसरी ओर आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन. किरन कुमार रेड्डी ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात की। समझा जाता है कि इस बैठक के दौरान राज्य में तेलंगाना राज्य की मांग से पैदा राजनीतिक स्थिति पर चर्चा हुई। रेड्डी सर्वदलीय बैठक में हिस्सा लेने के लिए बुधवार को ही दिल्ली पहुंच गए हैं। तेलंगाना के मुद्दे पर समूचेआंध्र प्रदेश को बेसब्री से श्रीकृष्ण कमेटी की रिपोर्ट की सिफारिशों के खुलासे का इंतजार है। इसमें संयुक्त आंध्र प्रदेश या फिर विभाजन कर अलग तेलंगाना राज्य बनाने से जुड़े पहुलओं का विस्तार से विश्लेषण किया गया है। पिछले साल जब केंद्र सरकार ने इस मुद्दे सभी पार्टियों से सलाह मशविरा करने का फैसला किया तो तेलंगाना क्षेत्र में हिंसा भड़क उठी थी। बैठक में आंध्रप्रदेश के आठ मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों कांग्रेस, तेलगु देशम पार्टी, तेलंगाना राष्ट्र समिति, मजलिसे इत्तहादुल मुसलिमीन, प्रजा राज्यम पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के नेताओं को आमंत्रित किया गया है, जिसमें हर दल के दो-दो सदस्य शामिल होंगे।

गरीब मंत्रियों की मनमोहन सरकार

पांच अमीर हुए तो 32 केंद्रीय मंत्रियों पर पड़ी गरीबी की मार
ओ.पी. पाल
देश में जिस प्रकार भ्रष्टाचार और घोटालों ने यूपीए सरकार के सामने समस्या पैदा कर रखी है और माना जा रहा है कि केंद्र सरकार में मंत्रियों की सम्पत्ति में बढ़ोतरी हो रही है, लेकिन यह आकलन एकदम उलट है जब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के निर्देश पर केंद्रीय मंत्रियों ने अपनी संपत्ति की घोषणा की तो ऐसे चौंकाने वाले तथ्य सामने आए कि अमीर होने के बजाए केंद्रीय मंत्रिमंडल के ज्यादातर सदस्य गरीब होते जा रहे हैँ?मनमोहन सरकार के कैबिनेट मंत्रियों ने वर्ष 2010 में अपनी संपत्ति की घोषणा की तो हर कोई चौंक रहा है जिसमें करीब 32 केंद्रीय मंत्रियों के ऊपर गरीबी मंडराती नजर आई यानि वर्ष 2009 के मुकाबले उनकी आय में कमी आई है। जबकि भ्रष्टाचार और घोटालों से घिरी यूपीए सरकार के प्रति ऐसी चर्चाए आम हैं कि केंद्रीय मंत्री लगातार अमीर हो रहे हैं। पीएमओ के निर्देश पर अपनी सम्पत्ति को सार्वजनिक करने वाले केंद्रीय मंत्रियों पर भी सवाल उठने लगे हैँ कि उनकी आय में कमी कैसे हो सकती है? पीएमओ द्वारा गत 31 मार्च, 2010 को खत्म हुए वित्त वर्ष तक मंत्रियों द्वारा अपनी संपत्ति के दिये गये ब्यौरे को सार्वजनिक किया है। इस ब्यौरे के अनुसार सत्ता संभालने के सालभर के भीतर ही 32 में से 20 कैबिनेट मंत्रियों की संपत्ति में गिरावट आई है यानि उनकी आय कम हुई। इन 20 मंत्रियों ने इस अवधि में पिछले साल की अपेक्षा 62 करोड़ रुपए की संपत्ति गंवाई है। जबकि पांच मंत्री अमीर होते नजर आए जिनमें संसदीय कार्य मंत्री पवन कुमार बंसल की संपत्ति व आय में तेजी से बढ़ोतरी हुई। इनके अलावा एक साल में अमीर होने वाले केंद्रीय मंत्रियों में सामाजिक न्याय मंत्री मुकुल वासनिक, स्वास्थ्य मंत्री गुलामनबी आजाद, रेल मंत्री ममता बनर्जी और रक्षा मंत्री एके एंटनी की भी संपत्ति सालभर में बढ़ी है। जबकि पांच मंत्रियों मुरली देवड़ा, एमएस गिल, जीके वासन, आनंद शर्मा और अंबिका सोनी सने अपनी संपत्ति और आय का ब्यौरा पीएमओ को मिला ही नहीं। पीएमओ के अनुसार शहरी विकास मंत्री एस जयपाल रेड्डी की संपत्ति की सूची में सिर्फ दायित्वों का जिक्र किया है। जिन मंत्रियों की संपत्ति व आय में कमी आई है उनमें वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी अपनी संपत्ति में एक करोड़ रुपये की गिरावट आई है। इनसे कहीं ज्यादा पांच करोड़ रुपये की संपत्ति गंवाने वालों में मानव संसाधन, विज्ञान और टेक्नालॉजी, अर्थ साइंस और टेलीकॉम जैसे दमदार विभाग संभालने वाले कपिल सिब्बल शामिल है। वित्त मंत्री रह चुके गृहमंत्री पी. चिदंबरम को गरीबी ने कहीं ज्यादा जकड़ लिया है जिनकी संपत्ति व आय में एक साल में को गृह मंत्री के रूप में शायद ज्यादा काम करना पड़ रहा है। इसी वजह से सालभर में उनकी संपत्ति में सोलह करोड़ रुपए से ज्यादा की कमी दर्शाई गई है। अन्य जिन केंद्रीय मंत्रियों की संपत्ति व आय में कमी आई है उनमें विदेश मंत्री एसएम कृष्णा, विधि मंत्री वीरप्पा मोइली, भूतल परिवहन मंत्री कमलनाथ, नवीन और अक्षय ऊर्जा मंत्री फारुख अब्दुल्ला, स्टील मंत्री वीरभद्र सिंह, भारी उद्योग मंत्री विलासराव देशमुख, रसायन और उर्वरक मंत्री एमके अझागिरी, कृषि मंत्री शरद पवार, कपड़ा मंत्री दयानिधि मारन, ग्रामीण विकास मंत्री सीपी जोशी, पर्यटन मंत्री कुमारी सैलजा, बिजली मंत्री सुशील कुमार शिंदे, रोजगार और श्रम मंत्री मल्लिकाजरुन खड़गे, प्रवासी मामलों के मंत्री वायलार रवि, जनजातीय मंत्री कांतिलाल भूरिया, के अलावा बीके हांडिक और सुबोधकांत सहाय शामिल है। पीएमओ के इस खुलासे ने गरीबी दिशा में जाते मंत्रियों के आंकड़ों पर भी सवालिया निशान लगा रहे है?

मंगलवार, 4 जनवरी 2011

सुरेश कलमाड़ी पर सीबीआई का शिकंजा

सबूत नष्ट करने संबन्धी मुकदमा दर्ज करने की तैयारी
ओ.पी. पाल
सीबीआई द्वारा राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारियों के दौरान हुए घोटाले की जाँच में कांग्रेस सांसद सुरेश कलमाड़ी की मुश्किलें बढ़ने लगी है, जिसमें सीबीआई छापों के दौरान आयोजन समिति के कार्यालय से गायब पाये गये जरूरी दस्तावेजों और फाइलों को लेकर जांच एजेंसी गंभीर है और सबूत नष्ट करने संबन्धी मामलों मे शीघ्र ही आयोजन समिति अध्यक्ष और अन्य के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने की तैयारी में है। राष्ट्रमंडल खेलों में हुए आर्थिक घोटाले की जांच कर रही सीबीआई ने पिछले दिनों आयोजन समिति के अध्यक्ष एवं कांग्रेस सांसद सुरेश कलमाडी के आवास और कार्यालयों समेत कई ठिकानों पर छापे मारे थे। इस कार्यवाही के दौरान आयोजन समिति के कार्यालय से राष्टÑमंडल खेलों से जुड़े कई महत्वपूर्ण दस्तावेज और फाइलें गायब पाई गई थी। सूत्रों के अनुसार सीबीआई गायब दस्तावेजों को सबूतों को नष्ट करने का अपराध मान रही है। जांच एजेंसी के सूत्रों के अनुसार आयोजन समिति के दफ्तर से गायब हुए अहम दस्तावेजों और फाइलों के मद्देनजर सीबीआई सबूत नष्ट करने का मामला दर्ज करने पर विचार कर रही है। सीबीआई के एक अधिकारी का कहना है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 201 के तहत एजेंसी सबूत नष्ट करने या उनमें हेराफेरी करने का मामला दर्ज कर सकती है। अधिकारी ने कहा कि इस मामले के हर पहलू का अध्ययन किया जा रहा है और इस पर जल्द ही कार्रवाई होगी। सीबीआई की जाँच में यह पता चला है कि आयोजन समिति द्वारा दिए गए ठेकों के निविदा संबंधी कागजात, विभिन्न मदों में किए गए बजट के आवंटन से संबंधित तथा खेल परिसरों और खेल गांव की साज-सज्जा से संबंधित दस्तावेज भी गायब पाये गये हैं। सूत्रों का कहना है कि अभी तक की सीबीआई की जाँच में यह बात सामने आई है कि आयोजन समिति के दफ्तर से कुछ कागजात जान-बूझकर गायब किए गए या नष्ट किए गए। सूत्रों का कहना है कि खेलों के आयोजन से पहले दिए गए ठेकों और कंपनियों से संबंधित दस्तावेज आयोजन समिति के दफ्तर में नहीं हैं। बताया जा रहा है कि सीबीआई की जाँच में यह बात सामने आई है कि आयोजन समिति के अध्यक्ष के इशारे पर दस्तावेजों और फाइलों को या तो नष्ट कर दिया गया या कहीं और स्थानांतरित कर दिया गया। इस सिलसिले में सीबीआई सुरेश कलमाडी के बेहद नजदीकी माने जाने वाले स्क्वॉश फेडरेशन आफ इंडिया के अध्यक्ष तथा रॉ के पूर्व अधिकारी वीके रत्नाकर राव की भूमिका की भी जाँच की जा रही है। राव राष्ट्रमंडल खेलों के सुरक्षा सलाहकार के पद पर तैनात थे। बताया जा रहा है कि राव के जरिए से कलमाडी ने कुछ महत्वपूर्ण कागजात अमेरिका के मिनेसोटा राज्य में रहने वाले एक रिश्तेदार के यहां भेज दिया है। पिछले दिनों कलमाडी के दिल्ली, पुणो तथा मुंबई स्थित आवासों पर की गई तलाशी के दौरान सीबीआई को कुछ ऐसे सबूत मिले हैं, जिनसे यह पता चलता है कि एक सोची-समझी साजिश के तहत राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन से संबंधित रिकॉर्ड हटाए गए।

रविवार, 2 जनवरी 2011

अवैध घुसपैठ कराने से बाज नहीं आ रहा पाक

परमाणु ठिकानों की सूचियों के आदान-प्रदान के मायने नहीं
ओ.पी. पाल
भारत और पाकिस्तान ने नए साल के मौके पर अपने परमाणु संस्थानों की सूची की अदला बदली की है तो भारतीय सेना ने नियंत्रण रेखा पर पाकिस्तान की ओर से आतंकवादियों के एक दल की घुसपैठ की कोशिश को विफल करने का दावा किया है। विशेषज्ञों की माने तो ऐसे में इस संधि के तहत परमाणु संस्थानों की जानकारियों के आदान प्रदान के कोई मायने नहीं रखता, जब पाक की ओर से अवैध घुसपैठ करने की गतिविधियां जारी हों।
भारत और पाकिस्तान ने नए साल के मौके पर अपने परमाणु संस्थानों की सूची की जानकारी एक दूसरे को एक संधि के तहत दी है, लेकिन पाकिस्तान की नीयत हमेशा भारत के प्रति ऐसी संधियों का उल्लंघन करने की रही है। भारत-पाक संबन्धों के जानकार प्रो. कलीम बहादुर की माने तो पाकिस्तान की भारत के प्रति नीयत ठीक नहीं है, जो भारत के साथ दोस्ती का हाथ भी बढ़ाना चाहता है और दूसरी ओर भारत के खिलाफ आतंकवादी संगठनों के जरिए अशांति फैलाने की कोशिशों को भी हवा दे रहा है। जहां तक दोनों देशों के बीच परमाणु ठिकानों की सूचनाओं के आदान प्रदान करने का संबन्ध है वह दोनों देशों के बीच हुई संधि का एक हिस्सा है लेकिन इसमें पाक की नीयत को देखते हुए यह भी नहीं कहा जा सकता कि पाक की ओर से भारत को दी जाने वाली पाक के परमाणु ठिकानों की जानकारी सही हो? विशेषज्ञ मानते हैं कि चीन के साथ गठजोड़ करके पाक गुपचुप तरीके से अपने परमाणु ठिकानों का जो विस्तार कर रहा है उसके सामने इस संधि के कोई मायने नहीं है। नये साल पर परमाणु ठिकानों की जानकारियों का आदान प्रदान करने के दौरान दूसरी ओर पाक की हरकत सामने है। जिसमें जहां एक और दोनों देश परमाणु ठिकानों की सूची का आदान प्रदान कर रहे थे तो दूसरी ओर जम्मू और कश्मीर के पूंच जिले में नियंत्रण रेखा पर पाकिस्तान की ओर से आतंकवादियों के एक दल द्वारा भारत में घुसपैठ करने की कोशिश की जा रही थी जिसे भारतीय सेना ने विफल करने का दावा किया है। भारतीय सेना ने कहा है कि जम्मू और कश्मीर के पुंछ जिले में बालाकोट सेक्टर में कांगड़ा गली इलाके में नियंत्रण रेखा पर गश्त के दौरान जवानों ने रात साढ़े नौ बजे उग्रपंथियों की गतिविधियां देखी। सैनिक जवानों ने आतंकवादियों को चुनौती दी और उन पर गोलियां चलाईं। सेना ने कहा है कि पाकिस्तानी पक्ष से भी गोलियां चलीं। दोनों ओर से एक घंटे तक गोलीबारी हुई। बाद में सैनिकों ने एक पाकिस्तानी गाइड को पकड़ लिया जिसकी शिनाख्त पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर के केराले गांव के 50 वर्षीय मोहम्मद सगीर के रूप में हुई है। सेना ने कहा है कि सेना की इस कार्यवाही के बाद आतंकवादी भाग गए। इलाके में व्यापक खोज अभियान चलाया जा रहा है और पाकिस्तानी गाइड से पूछताछ की जा रही है। भारत और पाकिस्तान ने राजनयिक चैनल के जरिए नई दिल्ली और इस्लामाबाद में लगातार 20वीं बार अपने परमाणु संस्थानों की सूची एक दूसरे को दी। भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा है कि सूचियों की अदला बदली परमाणु संस्थानों पर हमले पर रोक की संधि के तहत की गई है। 31 दिसंबर 1988 में हस्ताक्षरित यह संधि 27 जनवरी 1991 से प्रभावी हुई थी। इसके तहत दोनों देश हर साल के पहले दिन अपने परमाणु संस्थानों के बारे में दूसरे को बताते हैं। इस संधि को दोनों देशों के बीच भरोसा बनाने का सबसे महत्वपूर्ण कदम माना जाता है। पिछले सालों में पारस्परिक रिश्तों के बिगड़ने के बावजूद इस संधि को हमेशा पूरा किया गया है।

शनिवार, 1 जनवरी 2011

घोटालों से चर्चित रहा वर्ष 2010

अंतर्राष्ट्रीय  स्तर पर बढ़ती साख पर भी लगा बट्टा
ओ.पी. पाल
देश के लिए नई उम्मीदों को लेकर वर्ष 2011 शुरू हो गया है लेकिन बीता वर्ष 2010 कई बहुचर्चित घोटालों के कारण देश की छवि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी कलंकित कर गया, जिसमें एक करोड़ नहीं, बल्कि दो लाख करोड़ से भी ज्यादा वित्तीय घोटालों ने भारत की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ती हुई साख पर बट्टा लगाने का काम किया है। चाहे राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन में हुई अनियमितता या फिर 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन घोटाला अथवा आईपीएल तथा आदर्श सोसायटी घोटाला ही क्यों न हो, सभी में देश को नई पहचान के तौर पर कलंक ही मिला है। बहुचर्चित 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन घोटाले में कैग की रिपोर्ट में सरकार को हुए 1.76 लाख करोड़ रुपये के खुलासे ने तो साबित कर दिया है कि यह आजाद भारत का सबसे बड़ा घोटाला है जिसने संसद में भी एक काला इतिहास लिख दिया जिसकी जांच के लिए विपक्ष की संयुक्त संसदीय समिति के गठन की मांग के सामने संसद का पूरा शीतकालीन सत्र ही बिना कामकाज के संपन्न हुआ है। पिछले दिनों ट्रांसपरेंसी इंटरनेशन की जारी एक रिपोर्ट वर्ष 2010 के दौरान चर्चा में आए घोटालों और भ्रष्टाचार के मामलों पर सटीक ही बैठते नजर आते हैं जिसमें दुनिया के सबसे भ्रष्ट देशों में भारत को नौंवे स्थान पर आंका गया है। इस रिपोर्ट में तो यहां तक कहा गया है कि बीते साल में 54 प्रतिशत भारतीयों ने अपना काम करवाने के लिए रिश्वत दी। इसी साल के दौरानं 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन, राष्ट्रमंडल खेल आयोजन घोटाला, आईपीएल, आदर्श सोसायटी घोटाले ने भारत की इस छवि को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कलंकित किया है। विशेषज्ञ तो मानते हैं कि बीते साल में इन सभी घोटालों में दो लाख करोड़ से भी ज्यादा वित्तीय घोटाला हुआ है। इतने बड़े आर्थिक घोटाले की राशि से तो भारत के विकास के पहिये देश की साख को नई पहचान देने के लिए पंख ही लगा देते, लेकिन नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की संसद में पेश की गई रिपोर्ट ने तो संचार क्रांति को ही दागदार साबित कर दिया। यानि 2जी स्पेक्ट्रम का आवंटन घोटाले में 1.76 लाख करोड़ रुपये के अनुमानित राजस्व के नुकसान से सरकार की मुश्किलें भी बढ़ी हैँ। भले ही इस घोटाले के चलते दूरसंचार मंत्री पद से ए. राजा को इस्तीफा देना पड़ा हो, लेकिन यह घोटाला संचार क्रांति के भविष्य पर भी सवाल खड़े कर गया है। रक्षा के क्षेत्र में भी आदर्श सोसायटी घोटाले ने एक कलंक लगा दिया जिसमें कारगिल के शहीदों को छला गया है, हालांकि इस मामले में महाराष्ट्र  के मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण को अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी। देश की छवि इससे ज्यादा भला क्या खराब होगी, जब खेलों के खेल में भी भ्रष्टाचार और बड़े पैमाने पर अनियमितताएं सामने आई हों। देश को क्रिकेट मक्का बनाने की कवायद में आईपीएल का घोटाला हो या फिर अंतर्राष्ट्रीय खेल प्रतियोगिता के रूप में राष्ट्रमंडल खेलों की मेजबानी जिसमें भारत की फजीहत हुई है। आईपीएल के करीब 1500 करोड़ के घोेटाले में जहां प्रमुख ललित मोदी सामने आए हैं तो राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन में करीब आठ करोड़ के घोटाले में आयोजन समिति के अध्यक्ष सुरेश कलमाड़ी घोटालों की प्रमुख धुरी रहे। यही नहीं इस बीते साल में भ्रष्टाचार और घोटालों की जांच करने वाली संवैधानिक एजेंसियां भी सवालो के घेरे में सामने आई हैं जिसके कारण सीधे यूपीए सरकार कठघरे में खड़ी हुई है। मामला राष्ट्रमंडल खेलों में अनियमितताओं को उजाकर करने वाली केंद्रीय सतर्कता आयोग का है जिसके प्रमुख पद पर ऐसे व्यक्ति की नियुक्ति करके केंद्र सरकार स्वयं मुश्किल में फंसी हुई जो स्वयं भ्रष्टाचार के मामले में आरोपित रहा है। बीते साल में ही भारतीय चिकित्सा परिषद के चेयरमैन केतन देसाई और अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष बूटा सिंह के सुपुत्र भ्रष्टाचार के आरोप में पकड़े गये हैं। सीवीसी पद पर नियुक्त किये गये पीजे थॉमस पर सुप्रीम कोर्ट टिप्पणी कर चुका है। इसी प्रकार माने तो इसी साल के अंत में भारत की सबसे बड़ी जांच एजेंसी सीबीआई भी चर्चित आरुषी हत्याकांड की जांच में विफल होने पर आजकल चर्चाओं का केंद्र बनी हुई है।