सोमवार, 2 अगस्त 2010

राज्यसभा में तो विपक्ष का ही सहारा!

ओ.पी. पाल
संसद के मानसून सत्र में महंगाई के मुद्दे पर गतिरोध खत्म करने के लिए तो सरकार ने विपक्ष के साथ आम सहमति बना ली है, लेकिन खासकर राज्यसभा में तो सरकार को एजेंडे में शामिल बिलों को पारित कराने के लिए विपक्ष का ही सहारा लेना पड़ेगा, क्योंकि राज्यसभा भी में यूपीए अल्पमत में है। ऐसे में यूपीए सरकार विपक्ष को ज्यादा नाराज भी करने का प्रयास नहीं कर सकती, जिसे कई महत्वपूर्ण बिलों को पारित कराने के लिए आमसहमति बनाने की जरूरत पड़ेगी।
पिछले सप्ताह के चारों दिन संसद के दोनों सदनों में विपक्ष के महंगाई के मुद्दे पर मत विभाजन के साथ चर्चा कराने की जिद के सामने एक भी दिन सुचारू रूप से कार्यवाही नहीं चल सकी। विपक्ष महंगाई के मुद्दे पर लोकसभा में नियम 184 और राज्यसभा में नियम 168 के तहत चर्चा की मांग पर अड़िग था। यदि सरकार संसद में इस गतिरोध को समाप्त करने के लिए बीच का रास्ता न निकालती तो संसद के दोनों सदनों में और भी अधिक समय बर्बादी की भेंट चढ़ जाता। सरकार ने महंगाई के मुद्दे पर तो आम सहमति बनाकर विपक्ष को मना लिया है, लेकिन अभी विपक्ष के सामने कई महत्वपूर्ण मुद्दे हैं जिनके लिए सरकार को विपक्ष के पास बार-बार आना पड़ सकता है। खासकर राज्यसभा में तो महत्वपूर्ण बिलों को पारित कराने के लिए यूपीए सरकार को विपक्ष का सहारा लेना ही पड़ेगा। इसका कारण है कि राज्यसभा के लिए हाल में ही संपन्न हुए द्विवार्षिक चुनाव में अधिकतर सीट जीत जाने के बावजूद कांग्रेस के नेतृत्व वाला सत्तारूढ़ गठबंधन यूपीए उच्च सदन में अभी भी अल्पमत में है। मसलन कि आर्थिक सुधारों सहित अपने अन्य एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए उसे अन्य छोटे दलों के रहमो-करम का सहारा लेना होगा। यदि राज्यसभा में दलगत सीटों पर नजर डाली जाए तो दो सौ पैंतालीस सदस्यीय सदन के लिए कुछ दिन पहले 55 सीटों के लिए हुए द्विवार्षिक चुनाव में कांग्रेस और सरकार में शामिल अन्य दलों की झोली में अधिकतर सीट गई, लेकिन इसके बावजूद कांग्रेस सदस्यों की संख्या 70 को पार नहीं कर पाई। जबकि दूसरी ओर मुख्य विपक्षी दल भाजपा की संख्या 47 से बढ़कर 49 हो गई है। उच्च सदन में तीसरे स्थान की पार्टी बसपा है जिसके 18 सदस्य हैं। वहीं माकपा के सदस्यों की गिनती 16 से घट कर 15 पर आ गई है। सदन में दस सदस्य मनोनीत है जो सत्तारूढ के पक्ष में ही माने जाते हैं। यूपीए के घटक दल तृणमूल के दो, राकांपा की सात, एआईएडीएमके तथा सीपीआई के पांच-पांच सदस्य हैं। जबकि डीएमके व जद-यू के पास सात-सात सदस्यों का आंकड़ा है। राजद की चार व लोजपा की दो सीटें हैं। राज्यसभा में कुल मिलाकर स्थिति यह है कि यूपीए पर विपक्ष भारी है और एक तरीके से वह अल्पमत में हैं। मानसून सत्र में सरकार के एजेंडे में शामिल 59 विधेयकों में से कुछ ऐसे विधेयक हैं जिन पर सरकार की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। इसमें लोकसभा में पारित हो चुके प्रताड़ना निवारक विधेयक 2010, ऊर्जा संरक्षण (संशोधन) विधेयक तथा वक्फ (संशोधन) विधेयक से भी महत्वपूर्ण नागरिक परमाणु दायित्व विधेयक है, जिसमें महिला आरक्षण विधेयक की तरह ही सरकार को विपक्ष खासकर भाजपा के साथ तालमेल करना पड़ेगा। सरकार के सामने इस सत्र के पहले चार दिनों में जाया हुए समय को भी कवर करने की चुनौती है, ताकि संसद में एजेंडे के अनुरूप लक्षित काम हो सके। दरअसल परमाणु दायित्व विधेयक बिल पर भाजपा व वामदल समेत करीब समूचा विपक्ष विरोध करता आ रहा है और सरकार की मंशा इसी सत्र में इस विधेयक को पारित करने की है, जिसके लिए महंगाई के मुद्दे की तर्ज पर ही सरकार को विपक्ष के साथ आम सहमति बनाने की चुनौती का सामना करना पड़ेगा। यह भी तय माना जा रहा है कि राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारी में उजागर हुए भ्रष्टाचार के मुद्दे पर भी सरकार को विपक्ष के सामने दो-चार होना पड़ेगा, भले ही नियम 169 के तहत कैग की रिपोर्ट पर संसद में इस मुद्दे पर चर्चा न होती हो, लेकिन विपक्ष राष्ट्रमंडल खेलों में अनियमितताओं को दूसरे रूप में नोटिस देकर सदन में बहस कराने की मांग कर सकते हैँ। इसलिए यह कहना बेमानी होगा कि सरकार को विभिन्न मुद्दों पर विपक्ष की घेराबंदी से मुक्ति मिल गई हो। इस सत्र में अभी यूपीए सरकार को घेरने के लिए विपक्ष के पास मुद्दों की कमी नहीं है, जो यूपीए सरकार के लिए चुनौती से कम नहीं है।

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