रविवार, 1 अगस्त 2010

राष्ट्रमंडल:दामन बचाने में जुटी सरकार!

ओ.पी. पाल
आगामी तीन से 14 अक्टूबर तक राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में होने वाले राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारियों में परत दर परत खुलती जा रही पोल से केंद्र व दिल्ली सरकार के साथ आयोजन समिति भी हलकान है। खेलों की तैयारियों के लिए निर्माण का कार्य अभी तक पूरा भी नहीं हुआ कि केन्द्रीय सतर्कता आयोग द्वारा सरकार को सौँपी गई रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि खेलों की तैयारियों के निर्माण में करोड़ों रुपये का खेल खेला जा चुका है। अब सरकार केवल यह कहकर अपना दामन बचाने का प्रयास कर रही है कि आयोग की रिपोर्ट पर निश्चित रूप से कार्रवाई होगी और भ्रष्टाचार में लिप्त कोई भी दोषी बच नहीं पाएगा। दूसरी ओर निर्माण में खामियों का ठींकरा मीडिया के सिर फोड़कर सरकार यह भी दावा करने में पीछे नहीं है कि स्टेडियमों में कोई गड़बड़ी नहीं है। ऐसे में सवाल उठते हैं कि राष्ट्रमंडल खेलों को लेकर दांव पर लगी प्रतिष्ठा को सरकार बचा पाएगी या फिर देश की नाक कटवाएगी?
राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारियों पर सवालिया निशान किसी और ने नहीं बल्कि सत्तारूढ़ कांग्रेस के ही लोगों ने लगाने शुरू किये थे। ऐसा लगता है कि देश के सम्मान का सवाल बन चुके राष्ट्रमंडल खेलों को लेकर कांग्रेस, केंद्र व दिल्ली सरकार और फिर आयोजन समिति से जुड़े लोगों में समन्वय नहीं है। केंद्रीय खेल मंत्री रह चुके कांग्रेस के ही सांसद मणिशंकर अय्यर ने एक बार नहीं कई बार राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारियों पर सवालिया निशान खड़े करके अपनी ही सरकार को कटघरे में लाने का प्रयास किया, जिसमें उनके एक बयान के बाद केंद्रीय सतर्कता आयोग की रिपोर्ट ने आग में घी डालने का काम कर दिया। इस रिपोर्ट में राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारियों के तहत निर्माण कार्यो की गुणवत्ता और खामियों को उजागर करते हुए करोड़ों रुपये के घोटाला भी उजागर किया गया है, जिसको लेकर केंद्र सरकार, दिल्ली सरकार और आयोजन समिति तथा इन खेलों से जुड़ी एजेंसियां हलकान की स्थिति में पहुंच गई है। दरअसल कांग्रेसनीत केंद्र या दिल्ली सरकार का अपने ही दल के लोगों की जुबान पर नियंत्रण करना कठिन हो रहा है। विशेषज्ञ ही नहीं विपक्षी राजनीतिक दल भी चाहते हैं कि राष्ट्रमंडल खेलों की सफलता से भारत की प्रतिष्ठा बढ़ेगी, जिसको तार-तार करने का प्रयास के लिए स्वयं सरकार भी जिम्मेदार है। सरकार को चाहिए था कि यदि सीवीसी की रिपोर्ट खेलों के बाद सार्वजनिक की जाती और कांग्रेस अपने दल के सांसदों या अन्य नेताओं की जुबान को बंद रखने की हिदायत देने का काम करती। जब बात निकलती है तो दूर तक जाती है यानि राष्ट्रमंडल खेलों से पहले जो कुछ गडबड़झाला या बयानबाजी हो रही है उससे खेलों में हिस्सा लेने वाले देशों के भी कान खड़े हो रहे हैं, जिनके किसी भी विपरीत निर्णय से देश की प्रतिष्ठा मिट्टी में मिल सकती है। सीवीसी की रिपोर्ट पर रविवार को केंद्रीय शहरी विकास मंत्री एस जयपाल रेड्डी ने जांच में दोषी पाये जाने वाले लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की बात कही है। रेड्डी ने राष्ट्रमंडल खेलों के लिए जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम परिसर के अंदर भारोत्तोलन आडिटोरियम के उद्घाटन के दौरान अनियमितताओं के मामले को गंभीरता से लेने की बात भी कही है। रेड्डी यह कहने से भी नहीं चूके कि मीडिया की भी भूमिका इन मामलों में सकारात्मक नहीं है, जिससे देश का खुशनुमा माहौल खराब और आलोचनात्मक बनता जा रहा है। उधर केंद्रीय खेल मंत्री एमएस गिल ने तो यहां तक दावा कर दिया है कि राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारियों के लिए नवनिर्मित स्टेडियमों में कोई गड़बड़ी नहीं है, जो भी अनियममिताओं और गड़बड़ियों को गलत तरीके से उजागर किया जा रहा है वह सब मीडिया की देन है। सरकार को खेलों की तैयारियों को लेकर उठते सवालों का हल निकालने के लिए मीडिया के सिर ठींकरा फोड़ने के बजाए अपनी सरकारी एजेंसियों पर लगाम लगाने पर ध्यान देना चाहिए। सवाल है कि जब कोई गड़बड़ी या अनियमितता नहीं है तो सरकार निर्माण कार्यो की जांच कराने की तैयारियों में क्यों उलझी हई है? खेल मंत्री एमएस गिल तो राष्ट्रमंडल खेलों में लग रहे भ्रष्टाचार के आरोपों के मामलों में उचित कारर्वाई होने की बात करते हुए यह भी कहते नजर आए कि सरकार को खेलों से संबंधित सभी अनुबंधों को संसद में पेश करना चाहिए। आयोजन समिति के प्रमुख सुरेश कलमाडी तो खामिया उजागर करने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने की भी चेतावनी देकर मीडिया की और संकेत कर चुके हैं। मसलन यह कि एक तरफ तो सरकार तैयारियों में पारदर्शिता बरतने और सीवीसी की रिपोर्ट में भ्रष्टाचार के हुए खुलासे वाली रिपोर्ट में दोषियों को न बख्शने की बात ताल ठोक कर कह रही है और दूसरी तरफ स्टेडियम या अन्य खेल स्थल के निर्माण में किसी गड़बड़ी होने से इंकार करती है तो इसका तात्पर्य यही हो सकता है कि राष्ट्रमंडल खेलों को लेकर सरकार इस तरह की विरोधाभासी बयानों से अपना दामन बचाने का ही प्रयास कर रही है।

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