सोमवार, 23 अगस्त 2010

परमाणु दायित्व बिल का रास्ता साफ

ओबामा की यात्रा सरकार का मकसद
ओ.पी. पाल
अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की आगामी प्रस्तावित भारत यात्रा से पहले यूपीए सरकार परमाणु दायित्व विधेयक को जल्द से जल्द संसद के दोनों सदनों में पारित कराना चाहती है, जिसमें प्रमुख विपक्षी दल भाजपा को संतुष्ट करके इस विधेयक पर उसका समर्थन हासिल कर लिया है। भाजपा के इस विधेयक को समर्थन से बड़ी बाधा हटते ही संसद के दोनों सदनों में संसदीय स्थायी समिति की विवादास्पद परमाणु दायित्व विधेयक संबन्धी रिपोर्ट से साफ संकेत हैं कि सरकार इस विधेयक को संसद के इसी सत्र में इस विधेयक को पारित करा लेगी।
संसद के मानसून सत्र के एजेंडे में परमाणु दायित्व विधेयक का विरोध करती आ रही भाजपा और वामदल आदि विपक्षी दलों के कारण यह बिल यूपीए की सरकार के लिए एक प्रतिष्ठा का सवाल बना हुआ था, लेकिन यूपीए सरकार ने इस विधेयक के मसौदे में जो संशोधन किये हैं उनसे प्रमुख विपक्षी दल भाजपा संतुष्ट नजर आई था इस बिल का समर्थन करने का निर्णय ले लिया। हालांकि राजद और लोजपा ने भाजपा के इस समर्थन को परमाणु करार में भाजपा और कांग्रेस डील की संज्ञा देकर संसद के दोनों सदनों में हंगामा भी किया। जहां तक वामदलों का सवाल है वह चाहती है कि देश में परमाणु हादसे की स्थिति में मुआवजे की अधिकतम राशि 500 करोड़ से बढ़ाकर दस हजार करोड़ की जाए, यही कारण है कि फारवर्ड ब्लाक के वरूण मुखर्जी और माकपा के समन पाठक ने संसदीय समिति की सिफारिशों पर असहमति जताते हुए टिप्पणी दर्ज कराई है, जिसका हवाला समिति की रिपोर्ट में भी दिया गया है। लेकिन संसदीय समिति द्वारा 1500 करोड़ रुपये और तीन माह के भीतर इसका निस्तारण करने जैसी सिफारिशों को केंद्र सरकार ने स्वीकार कर लिया है। यह भी माना जा रहा है कि सरकार वामदलों को भी इस दिशा में मनाने का प्रयास कर रही है ताकि इस विधेयक को पारित कराने में उसे किसी प्रकार के राजनीतिक गतिरोध का सामना न करना पड़े। हालांकि सबसे बड़ा गतिरोध प्रमुख विपक्षी दल भाजपा से था जो समाप्त हो गया है। इस बड़े राजनीतिक गतिरोध के समाप्त होते ही दोनों सदनों में राज्यसभा की विभाग संबन्धी विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी, पर्यावरण और वन संबन्धी संसदीय स्थायी समिति के अध्यक्ष डा. टी. सुब्बारामी रेड्डी ने परमाणु दायित्व विधेयक के बारे में एक रिपोर्ट संसद के दोनों सदनों में पेश कर दी है, जिसमें कई ऐसी महत्वपूर्ण सिफारिशों को सरकार ने स्वीकार भी कर लिया है, जिस पर इस विधेयक को पारित कराने का रास्ता साफ हो गया है। यह विधेयक केवल केन्द्र सरकार स्वयं या इसकी ओर से स्थापित किसी प्राधिकरण या निगम या परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1962 में परिभाषित किसी सरकारी कंपनी के माध्यम से उनके स्वामित्व और नियंत्रण वाले परमाणु संयंत्रों पर ही लागू होगा। समिति ने विधेयक में दिए गए मुआवजे के दावे की दस वर्ष की अवधि को भी कम बताते हुए इसे 20 वर्ष करने की सिफारिश की है। परमाणु विधेयक को भाजपा के समर्थन के बारे में भाजपा का कहना है कि इस विधेयक के पहले प्रारूप पर पार्टी को आपत्ति थी लेकिन अब सरकार ने हमारे सुझावों को इसमें शामिल किया है और यह विधेयक पीड़ित समर्थक बन गया है। भाजपा प्रवक्ता गोपीनाथ मुंडे का मानना है कि यह विधेयक पीड़ितों के हित में होगा और इसमें मुआवजे की राशि बढ़ाई गई है, वहीं इसमें अमेरिका के किसी प्रावधान को लागू नहीं किया गया है, बल्कि सरकार के साथ-साथ आपरेटरों और आपूर्तिकर्ताओं को जवाब देह बना दिया जाएगा। वहीं असैन्य परमाणु दायित्व विधेयक के बारे में संसद में रिपोर्ट पेश करने वाले संसदीय समिति के अध्यक्ष डा. टी. सुब्बारामी रेड़डी ने स्प्ष्ट कर दिया है कि किसी भी असैन्य परमाणु ऊर्जा संयंत्र पर आतंकवादी हमला होने या प्राकृतिक आपदा होने पर नुकसान की भरपाई करने का दायित्व आपरेटर का नहीं होगा, जो विधेयक के एक उपबंध में स्पष्ट किया गया है। इस विधेकय में यह भी प्रावधान साफतौर से शामिल है कि यदि कोई असैन्य परमाणु संयंत्र आतंकवादी हमले, प्राकृतिक आपदा आने या गृह युद्ध छिड़ जाने का शिकार होता है तो ऐसे में होने वाले नुकसान की भरपाई का दायित्व प्रत्यक्ष तौर पर सरकार का होगा। दूसरी ओर केंद्र सरकार चाहती है कि भारत-अमेरिका परामाणु करार को देखते हुए परमाणु दायित्व विधेयक को पारित करार इस संबन्धी सभी औपचारिकताएं अमेरिका के राष्ट्रपाति बराक ओबामा की आगामी नवंबर माह में प्रस्तावित यात्रा से पहले ही पूरे कर लिये जाएं। इसलिए सरकार इस बिल को संसद के इसी सत्र में पारित कराना चाहती है, जिसके लिए उसकी दांव पर लगी प्रतिष्ठा को भाजपा के समर्थन ने बचाते हुए उसके लिए रास्ता प्रशस्त कर दिया है।

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