मंगलवार, 24 अगस्त 2010

फाइलों में रेलवे के 11 लाख स्वाहा

रेल मंत्रालय से कोलकाता जाती हैं फाइलें
ओ.पी. पाल
रेल मंत्री ममता बनर्जी रेल मंत्रालय में उपस्थित होने के बजाए पश्चिम बंगाल में अधिक समय दे रही हैं यह तो सार्वजनिक है, लेकिन लंबे समय तक रेल मंत्री ममता बनर्जी की रेल मंत्रालय में अनुपस्थिति के कारण एक साल से अधिक समय में सरकारी कोष के 11 लाख रुपए स्वाहा हो चुके हैं। रेल मंत्रालय स्थित रेल मंत्री के कार्यालय में रेल मंत्री की उपस्थिति न होने के कारण रेलवे के अधिकारियों को मंत्रालय में आने वाली फाइलों को मंजूरी दिलाने के लिए ममता के पास कोलकाता ही ले जाने को मजबूर होना पड़ रहा है। यह तो ममता बनर्जी भी संसद में सत्र के दौरान सांसदों के सवालों के जवाब में कह चुकी हैं कि वह दिल्ली में रहे या कोलकाता इससे मंत्रालय के कामकाज पर कोई असर नहीं पड़ रहा है और रेलवे की प्रस्तावित योजनाएं जो मंजूर हो चुकी हैँ उन पर भी कामकाज तेजी से चल रहा है। यह बात तो सही है लेकिन जिस रेल मंत्री ने मंत्रालय में अपना कार्य•ाार ग्रहण करते समय चाय व बिस्कुट भी अपने निजी पैसे से मंगाकर एक मिसाल कायम कर चुकी है, उसी रेल मंत्री की मंत्रालय में अनुपस्थिति के कारण फाइलों की मंजूरी पर एक साल से कुछ ज्यादा समय के दौरान सरकारी कोष से 11 लाख रुपये की निकासी हो चुकी है। यह भी दिग्गर बात है कि मंत्रालय की गोपनीय फाइलों के लिए विशेष अधिकारियों को ही फाइलों को दिल्ली से कोलकाता ले जाना पड़ता है फाइलों के संवाहक बनने वाले ऐसे अधिकारी तत्काल कार्यवाही का हवाला देकर रेल के बजाए हवाई यात्रा करके दिल्ली से कोलकाता आवागमन करने में अधिक विश्वास करते हैं। इन फाइलों को कोलकाता से दिल्ली लाने ओर ले जाने वाले रेलवे के अधिकारियों की बात करें तो उनमें पांच अधिकारियों की दिल्ली और कोलकाता के बीच भाग दौड़ करनी पड़ी हैं, जिस मद में रेलवे के 11,23,550 रुपए खर्च हुए हैं। ये पांच अधिकारी क्रमश: रेल मंत्री के आफिसर आॅन स्पेशल ड्यूटी गौतम सान्याल, निजी सचिव शांतनु बसु, कार्यकारी निदेशक (सार्वजनिक शिकायत) जेके साहा, अतिरिक्त निजी सचिव एस अशोक और एपीएस रतन मुखर्जी हैं। साहा और मुखर्जी की हवाई यात्राओं का किराया रेलवे नहीं दे सकती, लेकिन अन्य तीन अधिकारियों के विमान से एक जुलाई 2009 से 30 जून 2010 तक कोलकाता जाने और वापस आने पर 8,73,964 रुपए खर्च हुए। सूचना के अधिकार के तहत दिए गए एक जवाब में बताया गया है कि इसके अलावा रेलवे को पांचों अधिकारियों को इसी अवधि में ममता से मिलने के लिए कोलकाता जाने पर 2,49,604 रुपए की राशि टीए, डीए के तौर पर देनी पड़ी। आरटीआई कार्यकर्ता एससी अग्रवाल ने ममता बनर्जी से मिलने जाने वाले अधिकारियों और फाइलों को दिल्ली कोलकाता लाने ले जाने के खर्च का ब्यौरा मांगा था। विपक्ष ममता पर रेल मंत्रालय के बजाय अपने गृह राज्य पश्चिम बंगाल पर अधिक ध्यान देने का आरोप लगाता रहा है। बहरहाल ममता ने पिछले सप्ताह संसद में कहा कि दिल्ली में उनकी गैरमौजूदगी का उनके मंत्रालय के कामकाज पर असर नहीं पड़ा है। उनका कहना है कि उनके मंत्रालय का प्रदर्शन पिछले 50 वर्षों में शानदार रहा है। वहीं प्रधानमंत्री भी वैश्विक मंदी के दौरान मंत्रियों से खर्चो पर लगाम लगाने की बात कह चुके थे। वैसे तो ममता बनर्जी भी गरीबों की बात करके सरकारी धन को कम से कम खर्च करने की दुहाई देती हैं, लेकिन सूचना के अधिकार के तहत जो तथ्य सामने आये हैं उससे लगता है कि ममता बनर्जी की मंत्रालय से ज्यादा पश्चिम बंगाल में राजनीति करना प्राथमिकता है भले ही सरकारी कोष से मंत्रालय के कामकाज को निपटाने में लाखों का खर्च ही क्यों न हो जाए।

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