बुधवार, 8 सितंबर 2010

परमाणु दायित्व बिल पर फिर बखेड़ा!

सरकार की प्रतिष्ठा पर मंडराया खतरा
ओ.पी. पाल
भारतीय जनता पार्टी द्वारा परमाणु दायित्व विधेयक में विवादास्पद संशोधन हटाए बिना बिल का समर्थन करने से इंकार कर दिये जाने के बाद एक बार फिर से केंद्र सरकार की प्रतिष्ठा फिर खतरे में पड़ती नजर आ रही है, जिसके कारण संसद में इस बिल को पारित कराने के लिए सरकार के सामने मुश्किलों का पहाड़ खड़ा होना तय है, जिसमें सरकार के सामने राज्य सभा में बिल पास करना आसन नहीं है। यूपीए सरकार के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बने परमाणु दायित्व बिल पर भाजपा के साथ विवादित संशोधन हटाए जाने के किये गये वायदे के बाद आमसहमति गई थी और पिछले सप्ताह भाजपा ने इस बिल का समर्थन करने का फैसला कर लिया था। भाजपा ने इस विवादस्पद संशोधित बिल के मसौदे का जायजा लिया तो उसे आशंकाए नजर आने लगी। मुख्य विपक्षी दल बीजेपी और वामपंथी पार्टियों ने सोमवार को बिल में किए गए सरकार के संशोधनों को नकार दिया है। भाजपा ने स्पष्ट कर दिया है कि ने इसका समर्थन करने से इनकार कर दिया है। परमाणु दायित्व बिल के विरोधियों का मानना है कि इसके मौजूदा प्रावधानों के हिसाब से हादसा हो जाने पर पीड़ितों को मुआवजा दिला पाना मुश्किल होगा। भारत में अमेरिका की कई बड़ी कंपनियों को परमाणु बिजली क्षेत्र में प्रवेश की इजाजत देने के लिए इस बिल का पास होना जरूरी है। पहले भारतीय जनता पार्टी कुछ संशोधनों की मांग कर रही थी और सरकार ने पिछले सप्ताह बिल में वे बदलाव कर दिए थे, जिसके बाद ही भाजपा ने बिल का समर्थन करने का फैसल किया था, लेकिन अब भाजपा कहना है कि बिल में किए गए बदलाव संतोषजनक नहीं है। भाजपा की माने तो बिल के प्रावधान के मुताबिक सप्लायर्स को तभी मुआवजा देना होगा, जब दुर्घटना में उनकी मंशा साबित होगी। राज्यसभा में भाजपा के उपनेता एसएस आहलुवालिया ने कहा कि उन्होंने मंशा शब्द को जोड़ दिया है, जिसमें यह समस्या होगी कि उसमें यह साबित करने का कोई आधार नहीं है जिससे यह पता चल सके कि दुर्घटना मंशा की वजह से हुई या नहीं। इसलिए यह प्रावधान उचित नहीं है। इस मुद्दे पर वामदलों की राय भी कुछ ऐसी ही है जिसके बारे में सीपीआई के राष्ट्रीय सचिव डी. राजा का मानना है कि उन्हें नहीं लगता कि सरकार ने जो बदलाव किए हैं, उनसे विपक्ष सहमत हो सकता है, जो जायज और सही तर्क नहीं है। राजा ने कहा कि यह तर्क एकदम वाहियात कहा जा सकता है कि कोई सप्लायर इसमें अपनी मंशा स्वीकार नहीं करेगा। सरकार को बिल पास कराने के लिए भाजपा के समर्थन की जरूरत है क्योंकि सरकार के पास सैद्धांतिक रूप से भाले ही बहुमत हो, लेकिन भाजपा इसे राज्यसभा में रोकने की ताकत रखती है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह खुद इस बिल को पास कराने में दिलचस्पी दिखा रहे हैं। सूत्रों के अनुसार यह भी चर्चा है कि प्रधानमंत्री कार्यालय के एक राज्य मंत्री ने विपक्षी नेताओं से बातचीत की है। वहीं दूसरी ओर कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी का कहना है कि सरकार विचार विमर्श के लिए तैयार है। उन्होंने कहा कि चूंकि आम राय नहीं बन पा रही है, इसलिए सरकार विचार विमर्श के लिए तैयार है, जो विपक्ष को भारोसा दिलाने का प्रयास करेगी। वहीं भाजपा परमाणु दायित्व विधेयक में विवादास्पद संशोधनों को फिर से शामिल कर लिए जाने पर भाजपा ने सरकार की नीयत पर सवाल उठाते हुए कहा कि अगर इन प्रावधानों को हटाया नहीं गया तो उसके लिए संसद में इसे समर्थन देना मुश्किल होगा। पार्टी प्रवक्ता राजीव प्रताप रूड़ी ने कहा कि भाजपा ने परमाणु दायित्व बिल को समर्थन देने के बारे में सरकार को कोई आश्वासन नहीं दिया है। रुडी ने सवाल किया कि सरकार लुकाछिपी का खेल खेलते हुए देश के साथ छल क्यों कर रही है? भाजपा इस बात से हैरान और स्तब्ध हैं कि विधेयक से जुड़ी संसद की स्थाई समिति की पहली बैठक में ही सरकार की ओर से विधेयक की धारा-17 में विवादास्पद संशोधन करने का प्रयास किया गया, जिसे अस्वीकार कर दिया गया था। इस प्रयास के लिए परमाणु ऊर्जा सचिव ने क्षमा तक मांगी थी। उन्होंने पार्टी की और से स्पष्ट किया कि सरकार अगर इस विवादास्पद संशोधन को नहीं हटाती है, तो भाजपा के लिए उसे संसद में समर्थन दे पाना बहुत मुश्किल होगा। आपूर्तिकर्ताओं को संरक्षण देने का कोई भी प्रयास भाजपा को अस्वीकार्य है। ऐसी स्थिति में लोकसभा में पारित परमाणु दायित्व बिल को राज्यसभा में पारित कराने के लिए केंद्र सरकार की मुश्किलें बढ़ गई हैं.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें