गुरुवार, 30 सितंबर 2010

राष्ट्रमंडल: गवाह नहीं बन पाएंगे कई सितारे

ओ.पी. पाल
दुनिया के कई खेल सितारे ऐसे हैं जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने प्रदर्शन से बड़े सितारों के रूप में उभरकर सामने आये हैं, लेकिन ऐसे ही कई सितारे दिल्ली में होने वाले 19वें राष्ट्रमंडल खेलों में नजर नहीं आएंगे या यूं कहें कि दर्शक इन सितारों के प्रदर्शन से वंचित रहेंगे। इनमें भारत के ही एथेंस ओलंपिक में राइफल के सटीक निशाना लगाकर रजत पदक हासिल करने वाले राज्यवर्धन राठौड़ भी शामिल हैं। जबकि जमाइका के फर्राटा धावक उसैन बोल्ट, डेविड रूदिषा, स्टेफनी राइस, शैली एन फ्रेजर आदि कई नामी खेल हस्तियां भी राष्ट्रमंडल खेलों की गवाह नहीं बन पाएंगी।
राज्यवर्धन राठौड़:
भारत के निशानेबाज राज्यवर्धन राठौड़ जो एथेंस के ओलंपिक में राइफल के सटीक निशाने से रजत पदक झटककर हाल के बरसों में एक बड़ा सितारा बन कर उभरे हैं और दुनिया भी उन्हें एक नामी निशानेबाज मे रूप में जानने लगी है, लेकिन अंतिम समय पर स्वयं राठौड़ ने अपने आपको न जाने क्यों राष्ट्रमंडल खेलों से अलग कर लिया है। इसका कारण तो कोई नहीं जानता, लेकिन बीजिंग ओलंपिक में अपने निराशाजनक प्रदर्शन से शायद वह व्यवथित हैं? लेकिन भारत या दुनिया फिर भी उन्हें बड़ा नाम मानकर चल रही है। यह भी बताया जा रहा है कि राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारी से खुद को अलग करने वाले राठौड़ पुणे में निशानेबाजी के ट्रायल से अचानक ही गायब हो गये। दूसरी ओर भारतीय निशानेबाजी संघ पहले ही साफ कर चुका था कि जो खिलाड़ी ट्रायल में हिस्सा नहीं लेंगे, उनके नाम पर विचार ही नहीं किया जाएगा और इसी नियम के आधार पर राठौड़ का नाम राष्ट्रमंडल से काट दिया गया। ऐसे में अब चीन ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतने वाले अभिनव बिंद्रा और लंदन ओलंपिक में क्वालीफाई कर चुके गगन नारंग सहित दूसरे शूटरों की लिस्ट जारी हो हो चुकी है। दूसरी ओर यह भी चर्चा है कि एक तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर राठौड़ का प्रदर्शन हाल के सालों में अच्छा नहीं रहा है और वहीं भारतीय राइफल एसोसिशन के साथ उनकी नहीं बन पा रही है, जिसकी वजह से शायद राठौड़ ने राष्ट्रमंडल खेलों से अपने आपको दूर रखने का फैसला किया है।
उसैन बोल्ट:
भारत को इस बात से निराशा जरूर हो रही है कि दिल्ली राष्ट्रमंडल खेलों में पलक झपकते ही 100 मीटर की दूरी पार करने वाले जमाइका के फर्राटा धावक उसैन बोल्ट भी हिस्सा नहीं ले रहे हैं, जिससे खेल प्रेमियों को ही नहीं, बल्कि भारत को भी निराशा है। बोल्ट ऐसे धावक हैं जो अपने ही वर्ल्ड रिकॉर्ड को बार बार तोड़ने की आदत में शुमार हो चुके है और उनकी दीवानगी भारत में भी कम नहीं है। यहां तक कि 24 साल के बोल्ट के स्वयं मास्टर बलास्टर सचिन तेंदुलकर भी दीवाने हैं। बीजिंग ओलंपिक में उसैन ने 100 मीटर, 200 मीटर और 4100 मीटर बाधा दौड़ में सोने का तमगा हासिल कर तहलका मचा दिया था। भारत को इस बात की पूरी उम्मीद थी कि राष्ट्रमंडल खेलों में बोल्ट अवश्य आएंगे, लेकिन कुछ महीनों पहले ही उसैन बोल्ट ने स्पष्ट कर दिया था कि दिल्ली के राष्ट्रमंडल खेलों से कहीं ज्यादा उनके लिए 2012 का लंदन ओलंपिक जरूरी है और वह उसी की तैयारी में व्यवस्त रहेंगे। यह भी गौरतलब है कि घायल होने की वजह से बोल्ट ने 2006 के कॉमनवेल्थ गेम्स में भी हिस्सा नहीं लिया था और उनकी गैरमौजूदगी में जमाइका के असाफा पॉवेल ने मेलबर्न कॉमनवेल्थ गेम्स में 100 मीटर रेस जीती थी। ओलंपिक से पहले होने वाली वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप को भी बोल्ट राष्ट्रमंडल खेलों से कहीं ज्यादा गंभीरता से ले रहे हैं। लिहाजा यही कारण है कि बोल्ट भी भारत में हो रहे राष्ट्रमंडल खेलों के गवाह नहीं बन पाएंगे।
डेविड रूदिषा:
दिल्ली राष्ट्रमंडल खेल आयोजकों का मानना है कि उसैन बोल्ट नहीं आएंगे तो कोई फर्क नहीं पड़ता, दूसरे दौड़ाक भी कोई कमजोर नहीं हैं, लेकिन खेल प्रेमियों को पता है कि अगर बोल्ट नाम का तूफान नहीं आया, तो दूसरा दौड़ाक शायद 10 सेकंड के अंदर 100 मीटर न भाग पाए। खेल प्रेमी अभी बोल्ट के न आने की सूचना से उभरे भी नहीं थे कि एक और बड़ा झटका तब लगा जब केन्या के कुछ ही दिन पहले बने 800 मीटर के विश्व रिकॉर्ड बनाने वाले डेविड रूदिषा ने भी दिल्ली आने से मना कर दिया। रूदिषा के अनुसार लगातार प्रतियोगिताएं में भागते आ रहे केन्या के स्टार अब कुछ आराम चाहते हैं।
स्टेफनी राइस:
राष्ट्रमंडल खेलों के लिए यह भी अच्छी खबर नहीं है कि जलपरी के नाम से मशहूर आस्ट्रेलिया की स्टार तैयार स्टेफनी राइस भी दिल्ली नहीं आ रही हैं। इसका कारण वह घायल हैं और उन्हें आपरेशन कराना पड़ रहा है। बीजिंग ओलंपिक्स में तीन सोने के तमगे हासिल करने वाली राइस को लेकर राष्ट्रमंडल आयोजन समिति बेहद उत्साहित थी, लेकिन ऐन मौके पर उन्होंने नहीं आने का फैसला किया है। 400 मीटर की तैराकी में वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाने वाली राइस अपने देश में हुए पिछले राष्ट्रमंडल खेलों में 200 मीटर का सोने का तमगा जीत चुकी हैं। हालांकि राष्ट्रमंडल खेल से बड़े खिलाड़ियों का दूर रहना कोई नई बात नहीं है।अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इन खेलों की कोई खास साख नहीं है और बड़े स्टार यहां वक्त बर्बाद करने की जगह एक साल बाद होने वाले वर्ल्ड चैंपियनशिप या दो साल बाद होने वाले ओलंपिक्स की तैयारी करना पसंद करते हैं।
शैली एन फ्रेजर:
डोप टेस्ट की पकड़ में आने के कारण जमाइका की फरार्टा महिला धावक शैली एन फ्रेजर भी राष्ट्रमंडल खेलों की गवाह नहीं बन पाएगी। 24 साल की फ्रेजर के नाम 100 मीटर का वर्ल्ड रिकॉर्ड है। उनके अलावा बोल्ट के स्थान पर जमाइका के असाफा पॉवेल भी दिल्ली नहीं आ रहे हैं। जबकि चार बार के ओलंपिक चैंपियन स्कॉटलैंड के साइकलिस्ट क्रिस होए, धावक ड्वेन चैंबर्स, इंग्लैंड की जेसिका एनिस, जमाइका के वेरोनिका कैम्पबेल ब्राउन, ट्रैक साइकिल चैंपियन विक्टोरिया पेंडेलटन और यूरोप की चैंपियन जिमनास्ट डेनियल कीटिंग भी राष्ट्रमंडल खेलों के लिए दिल्ली नहीं आ रहे हैं। वहीं ब्रिटेन के लम्बी दूरी के चैम्पियन धावक मोहम्मद फराह द्वारा भी दिल्ली राष्ट्रमंडल खेलों से अपना नाम वापस लेकर एक झटका दिया है। दुनियाभर के कई सितारों के दिल्ली न आने का कारण यह भी माना जा रहा है कि इन खेलों की तारीखें अंतर्राष्ट्रीय प्रैक्टिस की तारीखों से कई बार भिड़ रही हैं।

बड़प्पन का परिचय दें मुस्लिम समाज

ओ.पी.पाल
श्रीरामजन्म-बाबरी ढांचा विवाद में जमीन के मालिकाना हक को लेकर इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बैंच के ३० सितंबर को आने वाले फैसले को लेकर जिस प्रकार का माहौल तैयार करने का प्रयास किया जा रहा है वह सत्ता में बैठे लोगों की उपज है। यह सभी को मालूम है कि उच्च न्यायालय का जिसके पक्ष में फैसला आएगा तो दूसरा पक्ष उसे उच्चतम न्यायालय में चुनौती देगा? इसलिए अयोध्या विवाद श्रीराम की पहचान का नहीं बल्कि राष्ट्रीयता का मामला है और ऐसे में देश के मुस्लिम समाज को बड़प्पन का परिचय देते हुए यही कहना चाहिए कि अयोध्या में श्रीराम मंदिर बनाया जाए, यही इस विवाद का बेहतर हल हो सकता है।
वरिष्ठ पत्रकार राम बहादुर राय कहते हैं कि पिछले साठ साल से अदालतों की ठोकरे खाता आ रहा अयोध्या की विवादित जमीन का मामला सत्ता में बैठे लोगों की इच्छाशक्ति के अभाव का कारण है। इसके विपरीत यदि यह कहा जाए कि अदालत की नहीं बल्कि सत्ता में बैठे लोगों की ठोकरे खाने को मजबूर इस मामले का उच्च न्यायालय का फैसले का भी कोई औचित्य नहीं है तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। इसका कारण है कि अदालत के अगले सप्ताह आने वाले फैसला हिंदू या मुस्लिम किसी एक के पक्ष में जाएगा और एक दूसरे अपने खिलाफ आने वाले इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का एलान कर चुके हैं तो इसका अर्थ है कि सुप्रीम कोर्ट में भी न जाने फिर इसके अंतिम फैसले के लिए कितने सालों का इंतजार करना पड़ेगा। जहां तक इस फैसले को टालने की याचिका का सवाल है उसमें भी राजनीति की बू आ रही है। जब तक शासन में बैठे या वोट की राजनीति करने वाले लोगों में इच्छाशक्ति नहीं होगी तब तक इस प्रकरण का हल संभवन नहीं है। अयोध्या में श्रीरामजन्म भूमि विवाद के मालिकाना हक तक ही सीमित राजनीतिक लोगों को यह समझना चाहिए कि यह श्रीराम का नहीं बल्कि राष्ट्र  और आस्था तथा एक पहचान का मामला है। सुनने में तो यह भी आ रहा है कि इलाहाबाद उच्च न्यायलय की लखनऊ बेंच के जिन तीन न्यायाधीशों को यह फैसला सुनना है उनमें भी एक राय नहीं है तो ऐसे बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक वाले इस फैसले से निश्चित रूप से एक नया विवाद पैदा होने की आशंका बनी हुई है। राय का मानना है कि अदालत का फैसला क्या होगा यह तो अभी भविष्य के गर्भ में हैं लेकिन इस फैसले को लेकर सबसे अच्छी बात यह सामने आ रही है कि हिंदू या मुस्लिम दोनों पक्ष के नेता एक मर्यादा में रहते हुए हल का रूप दिखा रहे हैं। वहीं इसके विपरीत किसी एक के पक्ष में फैसला आने पर दूसरे पक्ष के सुप्रीम कोर्ट जाने के बाद फैसले का इंतजार इतना लंबा होने की संभावना बनी रहेगी कि गंगा और यमुना में पानी बहुत आ जाएगा।  आने वाले फैसले में सबसे महत्वपूर्ण यह है कि 16 जनवरी 1950 को गोपालदा विशारद की ओर से मुकदमा दायर किया गया था और श्रीराम की मूर्ति पर अदालत ने पूजा की अनुमति दी थी तो सुन्नी वक्फ बोर्ड ने 1961 में जो मालिकाना हक के लिए केस दर्ज किया था इस संबन्धी सवाल है कि क्या सुन्नी वक्फ बोर्ड का यह मुकदमा समय सीमा के भीतर हुआ था? इसका इसका फैसला याचिकाकर्ता के पक्ष में जाने की संभावना इसलिए भी पूरी तरह क्षीण है क्योंकि समय सीमा छह साल बताई गई है, लेकिन यह केस 11 साल बाद किया गया था। जहां तक विवादित स्थल पर 1928 से पहले मंदिर होने का मामला है यह इसके तथ्य सर्वविदित हैं। कुछ पक्ष इस विवाद का हल विवादित भूमि पर स्मारक या अस्पताल या स्कूल आदि के निर्माण की बात कर रहे तो वह पूरी तरह से वाहियात है, क्योंकि जो लोग ऐसा मानते हैं उन्हें यह समझना चाहिए कि यह श्रीराम जन्म स्थल का ही मामला नहीं है बल्कि दुनियाभर में श्रीराम को जो लोग मानते हैं वह आस्था और राष्ट्रीयता का सवाल भी है और कोई भी देश या समाज अपनी इस पहचान को खोकर जिंदा नहीं रह सकता। मेरा मानना है कि अयोध्या में विवादित स्थल पर नमाज होने के कोई साक्ष्य नहीं है, जबकि श्रीराम मंदिर में पूजा के साक्ष्य किसी से छुपे नहीं है। मोहम्मद आरिफ की एक कहानी में विवादित जमीन पर मंदिर बनना चाहिए जिसमें शायद इन्हीं साक्ष्यों का समावेश है। इसलिए अयोध्या में इस विवाद का सबसे खूबसूरत हल यही है कि मुसलमान इन सभी साक्ष्यों का सम्मान करते हुए यही कहें कि वहां मंदिर का ही निर्माण किया जाए। इसी में भारतीय मुसलमानों की समझदारी होगी। वे कहते हैं कि इस देश में यह विड़म्बना ही है कि जब संसद या अदालत में कोई मुद्दा आता है तो बरसाती मेंढ़कों की टर्र-टर्र बढ़ने लगती है। पिछले 60 साल से लटके इस फैसले की जब एक घड़ी आई है और उस पर भी राजनीतिक लोगों द्वारा ऐसा माहौल खड़ा करने का प्रयास किया जा रहा है कि इसके बाद एक नया विवाद जन्म ले सकता है, जो धर्मनिरपेक्षता के एकदम विपरीत है। ऐसे में राजनीतिक तबके खासकर सत्ता पक्ष के लोगों को ऐसी इच्छाशक्ति का प्रदर्शन करने की आवश्यकता है कि देश और समाज की आस्था तथा एक आदिकाल की पहचान को कायम रखा जाए।

मेलबोर्न में चूके खिलाड़ियों से सोने की अपेक्षा

ओ.पी. पाल       
राष्ट्रमंडल खेलों में भारत के उन खिलाड़ियों से भी शानदार प्रदर्शन की अपेक्षा हैं जो पिछले राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक हासिल करने से चूक गये थे और उन्हें रजत और कांस्य पदक से ही संतोष करना पड़ा था। वर्ष 2006 के मेलबोर्न में हुए 18वें राष्ट्रमंडल खेलों में हालांकि भारत के हिस्से में 22 स्वर्ण पदक आये थे और रजत तथा कांस्य पदकों समेत 50 पदक झटककर भारत चौथे स्थान पर रहा था। अब जब अपनी सरजमीं पर राष्ट्रमंडल खेल हो रहे हैं तो स्वाभाविक है कि मेजबान की कोशिश होगी कि वह पदक तालिका में अव्वल स्थान हासिल करे।
मैनचेस्टर 2002 राष्ट्रमंडल खेलों भारत की झोली में 69 पदक आए थे, जिनमें स्वर्ण पदकों की संख्या 22 थी, लेकिन रजत व कांस्य पदक हासिल करने में भारतीय खिलाड़ियों को ज्यादा मुश्किल नहीं हुआ। पहली बार 19वें राष्ट्रमंडल खेलों की मेजबानी भारत ही कर रहा है तो खिलाड़ियों से अपनी सरजमीं पर देश को कहीं ज्यादा ही अपेक्षाएं होना लाजिमी है। भारत ने 2006 के राष्ट्रमंडल खेलों में 270 सदस्यों वाले प्रतिनिधिमंडल के साथ भाग लिया था, अपने घरेलू मैदानों पर भारतीय खिलाड़ियों को कुछ कर दिखाने का सुनहरा मौका नहीं गंवाना चाहिए। 2006 में भारत को आस्ट्रेलिया, इंगलैंड और कनाडा के बाद चौथा स्थान मिला, जबकि इसकी अपेक्षा अधिक पदक हासिल करने के बाद 2002 में मैनचेस्टर में हुए खेलों में भी भारत चौथे स्थान पर ही रहा। पिछले राष्ट्रमंडल खेलों में भारत के लिए शूटिंग और वेटलिफ्टिंग पदकों की खान साबित हुए थे और इसी विधा में उसे 19 स्वर्ण पदक मिले थे, जबकि इस बार अन्य विधाओं में भी शानदार फॉर्म में चल रहे अन्य विधाओं के खिलाड़ियों से भारत को शानदार और ऐतिहासिक प्रदर्शन की उम्मीद है, जिसके लिए भारतीय दल के विभिन्न विधाओं के खिलाड़ी ताल भी ठोक रहे हैं, लेकिन यह समय ही बताएगा कि भारतीय खिलाड़ी अपनी सरजमीं पर कितना खरा उतरेंगे।
मेलबोर्न में जिन खिलाड़ियों ने पदक हासिल किये थे उनके नाम इस प्रकार हैं:-
स्वर्ण पदक विजेता
समरेश जंग, गगन नारंग, तेजस्विनी सावंत, जसपाल राणा, विवेक सिंह, रौनक पंडित, अवनीत सिद्धू, अभिनव बिंद्रा, सरोजा झुठु, सुषमा राणा, विजय कुमार, पेम्बा तमांग, अनुजा जंग, राज्यवर्धन सिंह राठौड़, युमनाम चानू, कुंजारानी देवी, गीता रानी, शरथ अचंता, टेबल टेनिस टीम, अखिल कुमार।
रजत पदक विजेता
अवनीत सिद्धू, समरेश जंग, विवेक सिंह, राज्यवर्धन सिंह राठौड़, विक्रम भटनागर, अंजलि भागवत, अनुजा जंग, पेम्बा तमांग, अभिनव बिंद्रा, मोहम्मद असदुल्लाह, विक्की बट्टा, अरुण मुरुगेसन, लाइश्रम मोनिका देवी, सिंपल कौर भुमराह, सीमा अंतील, महिला 4गुणा400 मीटर रिले टीम, विजेंदर कुमार, हरप्रीत सिंह।
कांस्य पदक विजेता
चेतन आनंद, मिश्रित टीम, अभिनव बिंद्रा, संजीव राजपूत, मानवजीत सिंह संधू, समरेश जंग, सुधीर कुमार चित्रदुर्गा, रंजीत कुमार जयसीलन, जितेंदर कुमार, वर्गीज जॉनसन।

चौंकाने वाले नतीजे दे सकते हैं एथलेटिक्स!

ओ.पी. पाल
उन्नीसवें राष्ट्रमंडल खलों में जहां टेनिस, बैडमिंटन और बॉक्सिंग, कुश्ती जैसी स्पर्धाओं में भारतीय खिलाड़ियों ने अपना शानदार प्रदर्शन करने का लक्ष्य बनाया है उसी के विपरीत एथलेटिक्स में भारत के पास स्टार खिलाड़ियों की भरमार तो नहीं है, लेकिन फिर भी भारतीय कुछ भारतीय एथलीट चौंकाने वाले नतीजे दे सकते हैं, जिसकी मेजबान देश को उम्मीदें भी लगी हुई हैँ। हालांकि यह एक कड़वी सच्चाई है कि एथलेटिक्स में भारत के पास स्टार खिलाडियों का अभाव है, लेकिन इसके बावजूद राष्ट्रमंडल खेलों में एथलेटिक्स की 45 प्रतियोगिताओं में भारत की ओर से 90 खिलाडियों की टीम मैदान में उतारी जा रही है। इनमे से 46 पुरुष और 44 महिलाएं है। पुरुषों में जहां ट्रिपल जम्प में रंजीत महेश्वरी पर सभी की निगाहें टिकी हैं, तो महिला वर्ग में भारत को जिन स्टार खिलाडियों से पदक कि उम्मीद की जा रही है उनमे धावक ही अहम हैं, इनमें से मैराथन दौड़ के लिए एकमात्र खिलाडी सुकन्या मल सिंह और दूसरी अन्य धावक कविता राउत, टीटू लुका, मंजीतकौर और प्रिंजा श्रीधरन का नाम प्रमुख है।
रंजीत महेश्वरी (ट्रिपल जम्प)
रंजीत महेश्वरी ट्रिपल जम्प में राष्ट्रीय रिकॉर्डधारक हैं। दिल्ली में एशियाई आल स्टार एथलेटिक्स मीट में रंजीत की अगुआई में ही भारतीय एथलीटों ने कड़ी चुनौती से पार पाते हुए प्रतियोगिता के अंतिम दिन 31 अगस्त को दमदार प्रदर्शन किया। इसमें रंजीत ने 16.74 मीटर की कूद के साथ स्वर्ण पदक जीता। इस प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल जीतने वाले वह पहले भारतीय हैं। इसी प्रदर्शन को देखते हुए राष्ट्रमंडल खेलों में भी रंजीत से एथलेटिक्स में पदक की काफी उम्मीदें टिकी हैं। फिलहाल बेहतर फॉर्म में चल रहे इस युवा खिलाडी ने पदक जीत कर देश का झंडा बुलंद रखने का वादा तो किया है लेकिन वह इस पर कितना खरे उतर पाते हैं ये तो समय ही बताएगा। फिलहाल इसी उम्मीदों पर खरा उतरने के लिए रंजीत पटियाला में कड़ा अभयास करने में जुटे है। पहली बार अपनी सरजमीं पर हो रहे राष्ट्रमंडल खेलों में वह अपने करियर का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने की हर संभव कोशिश में हैँ, इसके लिए उन्होंने 17.50 मीटर कूदने का लक्ष्य बनाया हुआ है। रेलवे की ओर से खेलने वाले रंजीत ने पुणे में हुई एशियाई ग्रां प्री प्रतियोगिता में भी 16.60 मी कूद कर स्वर्ण पदक प्राप्त किया था। वह वर्ष 2007 में एशियाई ग्रां प्री के दूसरे चरण में 17 मी की कूद लगाने वाले पहले भारतीय बने। एथलेटिक्स में भारत की कमजोर दावेदारी के बीच रंजीत जैसे स्टार खिलाडी का दावा मजबूत है। वह पिछले साल भी एशियाई चैम्पिन रह चुके हैं जब उन्होंने टखने की चोट के कारण 20 महीने बाद वापसी करते हुए 49वीं अंतर राज्यीय एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में स्वर्ण पदक जीतकर मीट रिकॉर्ड बनाया था। कॉमनवेल्थ खेलों में रंजीत को इंग्लैंड, आस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका के एथलीटों से चुनौती सबसे कड़ी चुनौती मिलने के आसार हैं।
प्रिंजा श्रीधरन (धावक)
एशियाई चैम्पियनशिप में देश के लिए पदक जीतने वाली प्रिंजा से कॉमनवेल्थ खेलों में महिला वर्ग में सबसे ज्यादा उम्मीद हैं। केरल के मुल्कन्म में 13 फरवरी 1982 को जन्मी प्रिंजा ने पाला के अलफोंसा कॉलेज से पढाई की लेकिन शुरू से ही खेल में रूचि होने के कारण उन्होंने खुद को पढाई के बीच भी मैदान से दूर नहीं रखा। वैसे तो प्रिंजा 10,000 मीटर दौड़ में ही हिस्सा लेती हैं लेकिन इस बार राष्ट्रमंडल खेलों में उन्हें 5000 और 10,000 दोनों वर्ग के लिए चुना गया है। यही वजह कि उनसे देश की उम्मीदे भी कुछ ज्यादा हो गई हैं। एशियन चैम्पियनशिप में देश के लिए पदक जीतने के अलावा प्रिंजा ने 2008 लंदन ओलंपिक खेलो की क्वालिफाइंग प्रतियोगिता में भी उस समय देश का नाम ऊंचा किया, जब उन्होंने रिकॉर्ड समय में 10 हजार मीटर की दूरी 32 मिनट 4.41 सेकेंड में पूरी की थी। यह उनका अब तक का सबसे अच्छा प्रदर्शन है। इतना ही नहीं यह 10 हजार मीटर दौड़ में राष्ट्रीय रिकॉर्ड भी है। खेल प्रेमियों को अपने ही देश में हो रहे राष्ट्रमंडल खेलों में भी उनसे यह रिकॉर्ड बेहतर होने की पूरी उम्मीद है। घरेलू मैदान होने के कारण उनका उत्साह भी कम नहीं है और प्रिंजा भी इसके लिए जी जान से जुटी हैं। इसकी बदौलत उन्हें बीजिंग ओलंपिक में खेलने का मौका मिला। इससे पहले भी 2006 के एशियन गेम्स में उन्होंने संतोषजनक प्रदर्शन कर 5 हजार और 10 हजार मीटर दौड़ में 5वां स्थान प्राप्त किया था। 2008 बीजिंग ओलम्पिक में उन्हें 10 हजार मीटर दौड़ में 25वें स्थान पर रहकर ही संतोष करना पड़ा। प्रिंजा अपने ही रिकॉर्ड को तोड़ कर इस मेगा खेल प्रतियोगिता में देश के लिए पदक जीतने की फिराक में है। उन्होंने पुणे में अभ्यास सत्र के दौरान देश को किसी भी सूरत में निराश न करने का भरोसा भी दिलाया है।

क्या है राष्ट्रमंडल खेलों की परम्परा!

ओ.पी. पाल
हर चौथे वर्ष होने वाले राष्ट्रमंडल खेल की पृष्ठभूमि क्या है और इसकी परंपरा कैसे शुरू हुई जिससे राष्ट्रमंडल खेलों का आयोजन किया जाता है। यदि एकदम साधारण शब्दों में कहा जाये तो एक तरह से राष्ट्रमंडल खेल ब्रिटेन के गुलाम रहे देशों का खेल है या कुछ यूं कहा जा सकता है कि वर्षो पहले ब्रिटेन की औपनिवेश रहे देशों के परिचायक हैं राष्ट्रमंडल खेल। यही कारण है कि राष्ट्रमंडल खलों की एक परंपरा है कि क्वीन्स बेटन रिले यानि यानी एक मशाल दौड़, जो ब्रिटेन में क्वीन एलिजाबेथ के महल बकिंघम पैलेस से वहां की महारानी की उपस्थिति में शुरू होती है और राष्ट्रमंडल देशों से होते हुए उस देश में जाती हैं जहां राष्ट्रमंडल खेलों का आयोजन हो रहा होता है।
राष्ट्रमंडल खेल दुनिया में हर चार साल में होने वाले सबसे बड़े खेलों में से एक माना गया है, जिसमें आस्ट्रेलिया, कनाडा, अफ्रीका के कुछ देश, भारत, पाकिस्तान सहित दुनिया के 54 राष्ट्रकुल देशों की टीमें हिस्सा लेती हैं। इन प्रतियोगिताओं में कुछ ऐसे भी खेल हैं जो केवल राष्ट्रकुल देशों में ही खेले जाते हैं जैसे कि लॉन बॉल्स, रगबी सेवन्स, नेट बॉल, मुक्केबाजी, निशानेबाजी, एथेलेटिक्स आदि खेलों के आयोजन नियमों से जुडे सभी काम अंतरार्ष्ट्रीय राष्ट्रमंडल खेल संघ करती है, जिसका मुख्यालय भी लंदन में है। अब सवाल उठता है कि राष्ट्रमंडल खेल होते क्यों हैं? इसकी पृष्ठभूमि में मिली जानकारियों के मुताबिक 1891 में पहली बार राष्ट्रमंडल खेलों का प्रस्ताव रखा गया था ताकि ब्रिटिश कॉलोनी के देश एक दूसरे को जान सकें। हर चौथे वर्ष में इन खेलों के आयोजन का प्रस्ताव रखा गया था, जिसका मकसद यही रहा कि इन खेलों के जरिए दुनिया के अन्य देश और वहां के लोग ब्रिटिश राज की सद्भावना के बारे में जान सके। पिछले दिनों ही द टाइम्स अखबार में रेवरेन्ड एसले कूपर के प्रकाशित एक लेख ऐसे प्रस्ताव का जिक्र किया गया कि हर चार साल में इस तरह का एक आयोजन किया जाए। इस प्रस्ताव के पारित होने के बाद वर्ष 1911 में किंग जॉर्ज पंचम के राज्याभिषेक के मौके पर पहली बार ब्रिटिश कॉलोनी के देशों की एक खेल प्रतियोगिता आयोजित की गई, जिसमें मुक्केबाजी, कुश्ती, तैराकी सहित अन्य प्रतियोगिताएं थीं। इन खेलों में उस समय आस्ट्रेलिया, कनाडा, दक्षिण अफ्रीका और ब्रिटेन ने हिस्सा लिया था। लेकिन ब्रिटिश अंपायर गेम्स नाम से पहली बार वर्ष 1930 के पहले कॉमनवेल्थ खेलों का आयोजन किया गया। फिर वर्ष 1970 में इसका नाम बदल कर ब्रिटिश कॉमनवेल्थ गेम्स किया गया। इन खेलों को लेकर चलती बहस के बाद आखिर वर्ष 1978 में इसे पहली बार राष्ट्रमंडल खेल यानि कॉमनवेल्थ गेम्स के नाम से आयोजित किया गया। हालांकि वर्ष 1930 के राष्ट्रकुल खेलों में ही पहली बार महिलाओं ने तैराकी प्रतियोगिता में हिस्सा लिया और 1934 में फिर कुछ एथलेटिक खेलों में भी महिलाओं ने हिस्सा लेना शुरू किया। धीरे-धीरे राष्ट्रमंडल खेलों में खेलो और खिलाड़ियों के वर्गो में भी विस्तार होता गया। राष्ट्रमंडल खेलों की परंपरा में क् वीन्स बेटन रिले यानि मशाल दौड़ को क्वीन एलिजाबेथ के महल बकिंघम पैलेस से महारानी की उपस्थिति में शुरू किया जाता है। यह भी एक दिगर बात है कि 1930 से 1950 के बीच एक ही व्यक्ति इस रेस का प्रतिनिधित्व करता रहा था, लेकिन फिर 1958 से एक रिले रेस होने लगी जो बकिंघम पैलेस से उद्घाटन समारोह तक होती थी। इस मशाल पर सभी खिलाड़ियों को महारानी की शुभकामनाएं होती हैं।
मुश्किलों के बाद बदले खेलों के मायने
राष्ट्रमंडल खेलों की इस परंपरा में एक समय ऐसा भी आया जब द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान इन खेलों का आयोजन नहीं हो पाया था और वर्ष 1942 में कनाडा के मॉन्ट्रियाल में होने वाले खेल रद्द करना पड़ा था। उसके बाद 1986 में कुछ अफ्रीकी और कैरेबियाई देशों ने रंगभेद के खिलाफ कदम नहीं उठा पाने के विरोध में राष्ट्रमंडल खेलों का बहिष्कार किया था, लेकिन उस मुश्किल दौर के बाद से राष्ट्रमंडल खेलों का लगातार आयोजन हो रहा है। वर्ष 1998 में मलेशिया के कुआलालंपुर में हुए राष्ट्रकुल खेलों में 10 की बजाए 15 खेल शामिल किए गए। ये पहली बार था जब कुछ टीम इवेन्ट्स को राष्ट्रमंडल खेलों में शामिल किया गया। आस्ट्रेलिया और कनाडा में राष्ट्रमंडल खेल सबसे ज्यादा चार बार और न्यूजीलैंड में तीन बार आयोजित किए गए। भारत के लिए राष्ट्रकुल खेल आयोजित करने का ये पहला मौका है। इन खेलों में शामिल होने वाले देशों में एक ओर तो भारत, आस्ट्रेलिया, कनाडा जैसे बड़े देश हैं तो दूसरी ओर तुवालु और नाउरु जैसे देश भी हैं जिनके नाम दुनिया में बहुत कम लोगों ने सुने होंगे। फिलहाल मैडागास्कर, सूडान, अल्जीरिया जैसे देश हैं जो राष्ट्रकुल देशों के समूह में शामिल होना चाहते हैं जबकि वे कभी ब्रिटेन की कॉलोनी नहीं रहे हैं। अब जब 19वें राष्ट्रमंडल खेल भारत की राष्ट्रीय राजधानी में होने जा रहे हैं, तो द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से दुनिया की राजनीति का भूगोल भी बदल गया और इसी कारण राष्ट्रमंडल देशों और खेलों के मायने भी बदल चुके हैँ।

निशानेबाजों का सोने पर होगा निशाना

ओ.पी. पाल
राष्ट्रमंडल खेलो में दमदार भारतीय निशानेबाजों की टीम में अभिनव बिंद्रा की अगुवाई में चुनौती पेश करेगी। वहीं उनके साथ गगन नारंग, मानवजीत सिंह संधू और कई दूसरे निशानेबाज भी पदकों पर निशाना लगाएंगे। बिंद्रा और नारंग 10 मीटर एयर राइफल प्रतियोगिता में भारत की नुमाइंदगी करेंगे। वैसे नारंग 50 मीटर प्रोन और 50 मीटर 3 पॉजिशन मुकाबलों में भी पदक की होड़ में शामिल रहेंगे। नारंग अकेले ऐसे खिलाड़ी है जो तीन राइफल प्रतियोगिताओं में हिस्सा ले रहे हैं। भारतीय राष्ट्रीय राइफल संघ का कहना है कि उसने बेहतरीन टीम चुनी है जिसका आधार निशानेबाजों की मौजूदा फॉर्म और काबलियत है।
हालांकि पदक के दावेदार माने जा रहे भारत के निशानेबाज संजीव राजपूत तबीयत ठीक न होने की वजह से उम्मीद के मुताबिक प्रदर्शन नहीं कर पाए और कॉमनवेल्थ खेलों के लिए बनी टीम में उन्हें जगह नहीं मिली, लेकिन एशियाई खेलों के लिए उन्हें टीम में रखा गया है, जो 12 से 27 नवंबर तक चीन के कुआंगछू शहर में होंगे। 2006 के कॉमनवेल्थ खेलो में पांच स्वर्ण, एक रजत और एक कांस्य पदक जीत कर गोल्डफिंगर के नाम से मशहूर होने वाले पिस्टल निशानेबाज समरेश जंग दिल्ली राष्ट्रमंडल के लिए सिर्फ स्टैंडर्ड पिस्टल इवेंट के लिए ही क्वॉलिफाई कर पाए हैं। डबल ट्रैप इवेंट में एथेंस ओलंपिक में रजत पदक जीतने वाले राज्यवर्धन सिंह राठौड़ की कमी अवश्य खलेगी। उन्होंने चयन नीति का विरोध करते हुए ट्रायल में ही हिस्सा नहीं लिया। उनकी जगह उभरते हुए निशानेबाज अशेर नूरिया को लिया गया है। ट्रैप इवेंट के लिए उम्मीद पूर्व वर्ल्ड चैंपियन मानवजीत सिंह संधू को भी रखा गया है। वह राष्ट्रमंडल खेलों के अलावा एशियाई खेलों में भी भारत का प्रतिनिधित्व करेंगे। महिला निशानेबाजों की टीम में तेजस्वनी सावंत को प्रमुखता से जगह मिली है, जो भारत की पहली महिला निशानेबाज हैं जिन्होंने हाल ही में जर्मनी के म्यूनिख शहर में 50 मीटर राइफल प्रोन एयर राइफल प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीत कर वर्ल्ड चैंपियन का खिताब जीता है। उन्हें कॉमनवेल्थ खेलों और एशियाई खेलों, दोनों के लिए टीम में रखा गया है।
राष्ट्रमंडल खेलों के लिए भारतीय निशानेबाजों की टीम इस तरह है:-
पुरूष राइफल: अभिनव बिंद्रा, हरिओम सिंह, गगन नारंग, इमरान हसन खान।
पुरूष पिस्टल: दीपक शर्मा, ओंकार सिंह, विजय कुमार, गुरप्रीत सिंह, समरेश जंग, सीके चौधरी, हरप्रीत सिंह।
पुरूष शॉटगन: मानवजीत सिंह संधू, मानशेर सिंह, मैराज अहमद खान, एडी पीपल्स, रोन्जोन सोढी, अशेर नोरिया।
महिला राइफल: सुमा शिरूर, कविता यादव, मीना कुमारी, तेजस्विनी सावंत, लज्जा गोस्वामी।
महिला पिस्टल: अनीसा सैय्यद, राही सरनोबात, हीना सिद्धू, अन्नुराज सिंह।
महिला शॉटगन: सीमा तोमर, श्रेयसी सिंह।

राहुल की अग्नि परीक्षा होंगे बिहार चुनाव!

ओ.पी. पाल
कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी को जिस प्रकार से पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान उत्तर प्रदेश में अग्नि परीक्षा से गुजरना पड़ा था, उसी प्रकार अगले माह बिहार विधानसभा चुनाव भी उनके लिए एक ओर अग्नि परीक्षा साबित होंगे। यही नहीं बिहार विधानसभा चुनाव कांग्रेस के लिए एक प्रतिष्ठा का सवाल भी बने हुए हैं, जहां से कांग्रेस की देश में उसके वजूद को नई दिशा और दशा मिलने की उम्मीदें लगाई जा रही हैं।
कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने बिहार विधानसभा चुनाव की घोषणा होने से पहले ही बिहार में युवा शक्ति को ऊर्जा देने के लिए उसी प्रकार मिशन शुरू किया जिस प्रकार से उन्होंने लोकसभा चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को मजबूत करने के लिए एक अभियान चलाया था। राहुल ने बिहार में कांग्रेस पाटी्र के मामलों में सक्रियता से भाग ले रहे हैं। युवक कांग्रेस और भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन के प्रभारी राहुल ने युवक कांग्रेस में संगठनात्मक चुनाव कराने का आधार तैयार करने के लिए इस वर्ष की शुरूआत में बिहार में कई बैठकें की हैं। इस महीने की शुरूआत में उन्होंने राज्य में फिर बैठकें कर कई मुद्दे उठाए और युवाओं, किसानों तथा समाज के अन्य वर्गों को लामबंद करने के लिए विकास के मुद्दे पर ध्यान केंद्रित किया। युवक कांग्रेस के लिए संगठन के चुनाव बिहार में सफल रहे हैं। यह भी माना जा रहा है कि कांग्रेस पार्टी बिहार में राहुल मिशन को हवा देगी यानि युवाओं को उम्मीदवारी के लिए मैदान में उतार सकती है। बिहार विधानसभा चुनाव को एक नजरिए से कांग्रेस युवराज राहुल गांधी के लिए अग्नि परीक्षा माना जा रहा है, जहां राजद और लोजपा से अलग होकर कांग्रेस ने अपने बलबूते पर विधानसभा चुनाव में आने का निर्णय लिया है। पार्टी सूत्रों की माने तो बिहार में कांग्रेस पार्टी युवक कांग्रेस के निर्वाचित सदस्यों को पार्टी की ओर से उस स्थिति में उम्मीदवार बनाने की योजना बना रही है जहां कांग्रेस जीतने की स्थिति में होगी। कांग्रेस का यह प्रयोग पिछले लोकसभा चुनाव में राहुल की युवाओं को टिकट देने का सक्रियता से सफल भी रहा है। उसे देखते हुए संभावना है कि इस अनुभव को कांग्रेस बिहार में भी भुनाने का प्रयास करेगी। ऐसी संभावनाएं भी पार्टी सूत्र बता रहे हैं कि बिहार के लिए राहुल का चुनावी कार्यक्रम जहां अब भी तैयार होना है, वहीं पार्टी नेताओं के समर्थन से वह कई रैलियां करेंगे ताकि कार्यकतार्ओं का उत्साह बढ़ा सकें और राज्य में पार्टी की पुरानी शान को वापस ला सकें। राहुल गांधी के बिहार में पार्टी में सक्रियता के कारण ही हाशिए पर रही कांग्रेस उस स्थिति में खड़ी हैं जहां बीते 20 वर्ष से राजनीतिक परिदृश्य में कांग्रेस के पास अब हर पंचायत में युवक कांग्रेस के सदस्य हैं। हर पंचायत में युवक कांग्रेस के दो निर्वाचित प्रतिनिधि हैं। इसी तरह विधानसभा तथा लोकसभा स्तर पर भी दो-दो प्रतिनिधि हैं जो राज्य में पार्टी के पथ प्रदर्शक की तरह हैं। बिहार में पार्टी में संगठन की दृष्टि से कांग्रेस का ढांचा मौजूदा स्थिति में तैयार है, जिसके तहत राज्य स्तर पर भी पार्टी के पदाधिकारी मौजूद हैं जो कांग्रेस का ग्राफ सुधारने की दिशा में काम कर रहे हैं। कांग्रेस को यह भी उम्मीद है कि राहुल के मिशन से बिहार में पार्टी में नई जान फूंकने में मदद मिलेगी। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री सलमान खुर्शीद का कहना है कि बिहार में बीमार कांग्रेस को एक अच्छा डॉक्टर मिला है जिसने सही दवा दी और कांग्रेस में ऊर्जा नजर आने लगी है। मसलन बिहार में राहुल गांधी के दौरे के बाद वहां लोगों के नजरिए में परिवर्तन नजर आया है। कांग्रेस प्रवक्ता डा. शकील अहमद भी मानते हैं कि राहुल गांधी के बिहार दौरे ने कांग्रेस की जमीन को बढ़ाया है और निश्चित रूप से विधानसभा चुनाव में अकेले दम पर चुनाव लड़ रही कांग्रेस पार्टी एक शक्ति के रूप में उभरकर सामने आएगी। आगामी 21 अक्टूबर से छह चरणों में होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की प्रतिष्ठा इसलिए भी दांव पर लगी है कि वहां राजद व लोजपा से गठबंधन तोड़ने के बाद संगठनात्मक ढांचे में भी काफी परिवर्तन किया गया है, जिसके कारण पार्टी की ज्यादा से ज्यादा सीटों पर नजर लगी हुई है। इसका कारण भी साफ है कि चुनाव की घोषणा से पहले ही बीते दो महीने में एक दर्जन से अधिक केंद्रीय मंत्रियों का दौरा करा कर प्रयास शुरू कर दिए हैं। चुनाव को देखते हुए अधिक केंद्रीय मंत्रियों के राज्य में जाने की संभावना है।

पार्कों में कैद रहेंगे दिल्ली के भिखारी!

राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान छवि बचाने में जुटी सरकार
ओ.पी. पाल
राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारियों में व्यापक स्तर पर अभियान चलाने के बावजूद दिल्ली की सरकार भिखारियों को दिल्ली से बाहर करने में विफल रही है, इसलिए वैकल्पिक व्यवस्था को अंजाम देने में जुटी सरकार राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान इन भिखारियों को पार्को में कैद करने की योजना बना रही है, ताकि राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान दिल्‍ली की छवि खराब नहीं हो सके।
केंद्र और दिल्ली सरकार भिखारियों को लेकर चिंतित है कि राष्ट्रमंडल के दौरान भिखारियों के सड़कों पर रहने से राष्ट्रीय राजधानी की छवि खराब हो सकती है। इसी लिहाज से राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान भिखारियों और बेसहारों को सरकार ढके हुए पार्कों में 'छुपा' देने की योजना को अंजाम देने जा रही है? ताकि इन खेलों के दौरान दिल्ली आने वाले विदेशी मेहमान और अपनी जनता उन्हें न देख सके। इन पार्कों को टेंट और कॉमनवेल्थ गेम्स के बैनरों से ढंका जाएगा, ताकि बाहर से ये खूबसूरत दिखाई दें। दिल्ली सरकार के एक अधिकारी की माने तो सरकार ने ऐसे कुछ जगहों की तलाश की है जहां भिखारियों और बेसहारों को राष्ट्रमंडल खेलों के खत्म होने तक बसाया जा सकता है। इन अस्थायी शिविरों में भिखारियों को रोकने के लिए सरकार उन्हें भोजन और जरूरत की दूसरी बुनियादी चीजें मुहैया कराने पर विचार कर रही है। दिल्ली सरकार के एक अधिकारी ने यह भी कहा कि यह सुनिश्चित करने के लिए वे खुले में शौच वगैरह न करें सरकार मोबाइल टॉयलेट का भी इंतजाम करेगी। गौरतलब है कि दिल्ली सरकार ने पहले इन भिखारियों और बेघर, बेसहारा लोगों को उनके गृह राज्यों में भेजने की कोशिश की थी। लेकिन जब सरकार की यह कोशिश रंग नहीं ला पाई तो उन्हें पार्कों में बने कैंपों में 'छुपाने' की योजना बनाई गई है। सूत्रों के अनुसार सरकार की कोशिश होगी कि पार्कों को सुंदर बैनरों और कॉमनवेल्थ खेलों के बड़े आकार के शुभंकर लगाकर ढंक देंगे, जिससे ऐसे पार्क अस्थायी बसेरे बन जाएंगे।
भिखारियों की संख्या पर एक नजर
दिल्ली में वर्ष 2007 में संसद में पेश आंकड़ों के मुताबिक करीब 58, 570 भिखारी हैं। दिल्ली में भीख मांगने पर बॉम्बे प्रिवेंशन आफ बेगिंग एक्ट 1959 के तहत गैरकानूनी है। समय-समय पर इस कानून के सहारे भिखारियों के खिलाफ कार्रवाई के जरिए सरकार इस समस्या को रोकने की बात करती है। केंद्र सरकार के सामाजिक न्याय एवं सशक्तीकरण मंत्रालय द्वारा भिखारियों को समाज की मुख्यधारा में शामिल करने के लिए तकनीकी और वोकेशनल शिक्षा दिलाकर रचनात्मक कामों में लगाने की योजना 1992-93 में बनाई गई थी, जिसे वर्ष 1998-99 में बंद कर दिया गया था। ऐसे में भिखारियों को छुपाने के लिए दिल्ली सरकार के सामने एक बड़ी समस्या बनी हुई है।

गुरुवार, 23 सितंबर 2010

अब जनगणना में पूछी जाएगी जाति

जाति जनगणना कराने पर सरकार ने लगाई मुहर
ओ.पी. पाल
आखिर केंद्र सरकार ने विभिन्न राजनीतिक दलों की चली आ रही मांगों पर गौर करते हुए जातिगत आधारित जनगणना कराने की प्रक्रिया को हरी झंडी दे दी है। जातिगत आधारित जनगणना कराने के प्रस्ताव को गुरुवार को यहां केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में मंजूरी प्रदान कर दी है। भारत में 1931 के बाद से यह ऐसा पहला मौका होगा जब जाति के आधार पर आबादी गिनी जाएगी।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में गुरुवार को हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में जाति आधारित जनगणना कराने को मंजूरी दी गई है। बैठक में इस प्रस्ताव पर लगाई गई मुहर के बाद केंद्रीय गृह मंत्री पी चिदंबरम ने संवाददाताओं को संबोधित करते हुए कहा कि जाति आधारित जनगणना वर्तमान में चल रही सामान्य जनगणना की प्रक्रिया से स्वतंत्र होगी जो वर्ष 2011 यानि अगले साल जून से शुरू होकर सितंबर तक चलेगी। चिदंबरम ने उम्मीद जताई कि कैबिनेट के इस फैसले से सभी पक्ष संतुष्ट होंगे। सपा, बसपा, और जद-यू जाति आधारित जनगणना के लिए सरकार पर दबाव बनाए हुए थे। उधर मुख्य सत्ता धारी पार्टी कांग्रेस और मुख्य विपक्षी दल भाजपा में इस बारे में नेताओं के बीच आमराय नहीं थी। उन्होंने बैठक के इस फैसले की जानकारी देते हुए कहा कि सरकार के इस फैसले से सामान्य जनगणना और बायोमीट्रिक प्रक्रिया प्रभावित नहीं होगी। चिदंबरम ने कहा कि आबादी की गणना के बाद जाति आधारित जनगणना चरणबद्ध ढंग से संचालित होगी। यह प्रक्रिया अगले साल मार्च तक पूरी कर ली जाएगी। इससे पहले जाति आधारित जनगणना 1931 में हुई थी। आजादी के बाद इस तरह की जनगणना नहीं कराने का नीतिगत फैसला लिया गया था। चिदंबरम जाति आधारित जनगणना को आबादी की गणना के साथ मिलाने के सवाल पर मौन रहे। समझा जाता है कि इस मुद्दे पर गठित मंत्रीसमूह के सुझावों पर विचार के बाद सरकार ने यह फैसला किया है। जातिगत आधारित जनगणना के बारे मेंं वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं से भी विचार-विमर्श किया था। जाति आधारित जनगणना की मांग कर रहे राजनीतिक दलों के संदर्भ में गृह मंत्री ने कहा कि इसमें हर नजरिए को शामिल किया गया है और समयसारिणी तैयार की गई है। उन्होंने उम्मीद जताई कि यह संतोषजनक व्यवस्था होगी। राजद, सपा और जद-यू जैसी पार्टियों ने इस मुद्दे पर संसद के बजट सत्र और मानसून सत्र के दौरान कार्यवाही बाधित की थी। ये पार्टियां जाति आधारित जनगणना की मांग कर रही थीं। गौरतलब है कि वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी ने हाल ही में संपन्न हुए संसद के मानसून सत्र के दौरान लोकसभा को बताया था कि सभी राजनीतिक दलों ने जनगणना में जाति को शामिल करने के मुद्दे पर सहमति दे दी है और अब इस मुद्दे पर कोई आशंका पालने की आवश्यकता नहीं है। चिदंबरम ने कहा कि जाति आधारित आंकडे़ एकत्र करने के लिए कानून मंत्रालय के साथ सलाह मशविरा कर एक उचित कानूनी ढांचा तैयार किया जाएगा। इस प्रक्रिया में अतिरिक्त लागत आएगी, जिसका आकलन अलग बैठक में किया जाएगा। भारत के महापंजीयक और जनगणना आयुक्त जाति आधारित जनगणना का कामकाज देखेंगे। केन्द्र सरकार एक विशेषज्ञ समूह का गठन करेगी। महापंजीयक और जनगणना आयुक्त जाति और जनजातियों का ब्यौरा विशेषज्ञ समूह को सौंपेंगे। वहीं कहा गया कि अनुसूचित जाति एवं जनजाति के अलावा 2011 की जनगणना में जाति को भी शामिल करने की संसद के भीतर और बाहर उठी मांग के आलोक में गृह मंत्रालय ने मई 2010 में केन्द्रीय मंत्रिमंडल को इस संबंध में एक नोट सौंपा था। हालांकि भारत में पहली बार 1872 में जनगणना हुई थी और उस वक्त भी लोगों से उनकी जाति पूछी गई थी। भारत में जातिगत भेदभाव गैरकानूनी है लेकिन फिर भी गांवों में ये प्रथा जारी है। भारत में आम जनगणना इसी अप्रैल में शुरू की गई है। इसके अलावा भारत के हर नागरिक को अलग पहचान पत्र देने की बात है, जिसके लिए उनकी तस्वीर और अंगुलियों के निशान (बायोमैट्रिक्स) जमा किए जाएंगे, लेकिन यह काम जनगणना से अलग किया जाएगा। जनगणना में करीब 20 लाख 50 हजार अधिकारी भारत की 1.2 अरब आबादी को धर्म, लिंग, नौकरी और शिक्षा के आधार पर गिना जाता है।

जातीय गणना विनाशकारी कदम?

सरकार के फैसले से छिड़ी बहस
ओ.पी. पाल
केंद्र सरकार द्वारा जातिगत आधारित जनगणना कराने के प्रस्ताव को दी गई मंजूरी से देश में एक नई बहस छिड़ती नजर आ रही है, जिसके विरोध में कुछ राजनेताओं के अलावा समाजसेवी, धर्मगुरू, विधिशास्त्री, कूटनीतिज्ञ भी सरकार के इस फैसले को सवालों के कटघरे में खड़ा करने लगे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि जातिगत आधारित जनगणना से राजनीतिक दल अपने वोट बैंक की राजनीति करके अपना हित साधना चाहते हैं, जो देश के लिए एक विनाशकारी साबित हो सकता है।
मेरी जाति हिंदुस्तानी नाम से आंदोलन चलाने वाले संगठन सबल भारत ने केंद्रीय मंत्रिमंडल के इस फैसले की कड़ी भर्त्सना की है कि अगले साल सरकार अलग से जातीय जनगणना करवाएगी। सबल भारत के राष्ट्रीय संयोजक डॉ. वेदप्रताप वैदिक ने सभी देशवासियों से अपील की है कि वे सरकार के इस फैसले को पूरी तरह से नकार दें और यदि वह जातीय जन-गणना करवाए तो वे जाति का खाना खाली छोड़ दें या उसमें लिखवाएं मेरी जाति हिंदुस्तानी। डॉ. वैदिक ने कहा है कि इस फैसले से देश में जातिवाद का जहर बड़े जोरों से फैलेगा। यह देश की एकता के लिए विनाशकारी सिद्ध होगा। जातीय जनगणना पर यदि यह सरकार 40-50 अरब रू. खर्च करेगी तो वह जनता के पैसे की निर्मम बबार्दी होगी। सरकार के इस राष्ट्रघाती फैसले का विरोध करने के लिए सबल भारत राष्ट्रव्यापी आंदोलन चलाने का भी ऐलान किया है। पिछले तीन-चार माह में सबल भारत की ओर से जातीय गणना के विरोध में अनेक सभाएं, प्रदर्शन, धरनों और उपवासों का आयोजन करता आ रहा है जिसका समर्थन देश के अनेक जाने-माने राजनेता, समाजसेवी, धर्मगुरू, विधिशास्त्री, कूटनीतिज्ञ आदि कर रहे हैं। डा. वैदिक का मानना है यदि देश की गरीबी दूर करनी है तो जातियों के आंकड़े इकट्ठे करने की बजाय गरीबों के आंकड़ों और कारणों की खोज की जानी चाहिए। यही वैज्ञानिक जनगणना होगी। सरकार के इस फैसले से पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी और बलराम जाखड़, पूर्व मंत्री वसंत साठे और जगमोहन, भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जे.एस. वर्मा, प्रसिद्ध वकील राम जेठमलानी और फली नारीमन, पूर्व लोकसभा महासचिव डॉ. सुभाष कश्यप, धर्मगुरू सत्यनारायण गोयनका, बाबा रामदेव और डॉ. प्रणव पंड्या भी किसी तरह से सहमत नहीं हैं। वरिष्ठ आलोचक डा. नामवर सिंह का कहना है कि स्वार्थी राजनीतिक पार्टियां व्यक्तिगत हित के लिए जातिगत जनगणना चाहती हैं, ताकि आने वाले चुनाव में जाति की राजनीति कर सकें और क्षेत्रवाद के आधार पर उम्मीदवार खड़ा कर सकें। उन्होंने कहा कि पार्टियों की इस आंकड़ेबाजी से न सिर्फ देश का सामाजिक ढांचा छिन्न-भिन्न होगा, बल्कि लोगों में जात-पात की भावना भी बढ़ जाएगी। इस विनाशकारी फैसलें को मंजूरी देकर सरकार ने देश को गर्त में ले जाने की नीति को बढ़ावा दिया है। डा. नामवर सिंह का मानना है कि यह समस्या साहित्य की नहीं बल्कि राजनीति की है। राजनीतिक पार्टियां अपने हित के लिए जाति के आधार पर जनगणना कराना चाहती हैं ताकि उनके पास किसी भी क्षेत्र में जाति को लेकर आंकड़े मौजूद हो सकें। उन्होंने कहा कि हमेशा से समाज के दुष्चक्रों को समाप्त करने का काम संत और साहित्यकार करते रहे हैं और इस बार भी उन्हें ही इसका दूरगामी परिणाम लोगों को समझाना होगा। समाजसेवी कृष्ण दत्त पालीवाल का कहना है कि यह जनगणना पूरी तरह से राष्ट्रवाद के विरोध में है।

हर तीसरा भारतीय पूरी तरह भ्रष्ट?

सीवीसी के निर्वतमान आयुक्त सिन्हा ने किया खुलासा
ओ.पी. पाल
भारत में हरेक तीन आदमी में एक भारतीय पूरी तरह से भ्रष्ट है, लेकिन भ्रष्टाचार के इस चक्रव्यूह में आम आदमी पिसता आ रहा है यह तो किसी से छिपा नहीं है। केंद्रीय सतर्कता आयोग के आयुक्त पद से सेवानिवृत्त होने के बाद जिस प्रकार से प्रत्यूष सिन्हा ने भारत में एक तिहाई लोगों को भ्रष्ट करार दिया है इससे उन्होंने दुनियाभर में भ्रष्टाचार पर नजर रखने वाली संस्था ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के सर्वे की पुष्टि करने का प्रयास किया है जिसने पिछले दिनों अपनी एक रिपोर्ट में भारत को दुनियाभर के भ्रष्ट देशों की सूची में 84वें स्थान पर रखा था।
अमेरिकी संस्था ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल ने पिछले दिनों भारत को 84वें पायदान पर रखते हुए दस में से केवल 3.4 अंक दिये थे। इससे कहीं ज्यादा भ्रष्ट पाकिस्तान को करार दिया गया था। यह बात जाहिर है कि भ्रष्टाचार ही देश के विकास में बाधक है, जिसमें आम आदमी पिसता आ रहा है। इसी संस्था की तर्ज पर केंद्रीय सतर्कता आयोग के आयुक्त पद से दो दिन पहले ही रिटायर हुए प्रत्यूष सिन्हा ने तो भारत में 33 प्रतिशत लोगों को भ्रष्ट बताते हुए यहां तक कह दिया है कि ऐसा लगता है कि भविष्य में भ्रष्टाचार का यह 33 प्रतिशत पैमाना 50 प्रतिशत होने के कगार पर है। सिन्हा भ्रष्टाचार की वजह बढ़ती दौलत को मानते हैं। सिन्हा का कहना है कि उन्होंने ऐसे पद पर काम किया है जिसे कोई श्रेय नहीं देता, लेकिन सबसे ज्यादा परेशानी इस बात को देखकर होती है कि लोग ज्यादा से ज्यादा भ्रष्ट और भोगवादी हो रहे हैं। सिन्हा कहते हैं कि वे अपने बचपन को याद करते हैं तो उस वक्त भ्रष्ट व्यक्ति को नीची नजर से देखा जाता था और कम से कम उन्हें समाज में बुरा तो माना जाता था। बिडम्बना यह है कि आज यह बात नहीं है। समाज में ऐसे लोगों को ज्यादा से ज्यादा स्वीकार किया जा रहा है। अमेरिकी संस्था ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल ने भ्रष्ट देशों की सूची में भारत को 84वें पायदान पर रखा गया है, जबकि इस सूची में 9.4 अंकों के साथ न्यूजीलैंड में सबसे कम भ्रष्टाचार है। इस रिपोर्ट में 1.1 अंकों के साथ सोमालिया दुनिया का सबसे भ्रष्ट देश बताया गया है। कई गैर सरकारी संगठनों की तरफ से जारी होने वाली रिपोर्टों के मुताबिक हर साल लाखों गरीब भारतीय परिवार बुनियादी सुविधाएं पाने के लिए अधिकारियों को भारी रिश्वत देने को मजबूर होते हैं। सिन्हा का कहना है कि लगभग 30 प्रतिशत भारतीय ऐसे होंगे जो बिल्कुल ही भ्रष्ट हैं, जबकि बहुत से लोग ऐसे हैं जो भ्रष्ट होने के कगार पर हैं। यदि आज के भारत में किसी के पास पैसा है तो उसका सब सम्मान करते हैं। इस बात से किसी को मतलब नहीं है कि उसके पास पैसा कहां से आया। दिल्ली में होने वाले राष्टÑमंडल खेलों में पिछले दिनों घोटाले के आरोप लगे हैं। इससे पहले टैक्स चोरी के मामले में आईपीएल भी छानबीन के दायरे में रहा है। हालांकि भारत को गैरकानूनी सट्टेबाजी का बड़ा अड्डा समझा जाने लगा है। यह बात भी दिगर है कि एक भारतीय सट्टेबाज के खुलासे के बाद ही इन दिनों पाकिस्तानी क्रिकेट टीम स्पॉट फिक्सिंग के संगीन आरोपों से घिरी है। प्रत्यूष सिन्हा ऐसे समय भ्रष्टाचार पर बोले हैं जब उनके स्थान पर केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) के नए प्रमुख पीजे थॉमस की नियुक्ति को लेकर विवाद उठा है। देश में केन्द्रीय सतर्कता आयोग एकमात्र ऐसी संस्था है जिस पर केन्द्र सरकार के महकमों में व्याप्त भ्रष्टाचार की जांच करने के अलावा सीबीआई और आयकर विभाग जैसी एजेंसियों के कामकाज पर भी नजर रखने का जिम्मा है। जहां तक पीजे थॉमस को इस संस्था का प्रमुख नियुक्त करने का सवाल है उसका प्रमुख विपक्षी दल भाजपा पूरी तरह से विरोध करती रही है। भाजपा का आरोप है कि थॉमस पर केरल में हुए पॉम आॅयल घोटाले का आरोप लगा हुआ है। इसके अलावा 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में भी उनकी भूमिका संदिग्ध हो सकती है। दूसरी ओर केंद्र सरकार ने भाजपा की दलील को खारिज करते हुए बुधवार को कहा कि थॉमस का स्पेक्ट्रम घोटाले से कोई वास्ता नहीं है। आश्चर्यजनक बात है कि थॉमस की जिस पद पर नियुक्ति की गई है उस चयन समिति में प्रधानमंत्री मनमोहन व गृहमंत्री पी. चिदंबरम के अलावा तीसरे सदस्य के रूप में लोकसभा में विपक्ष की नेता श्रीमती सुषमा स्वराज भी एक हैं। सरकार का दावा है कि चयन समिति की बैठक में सुषमा इस बात से सहमत हुईं कि नियुक्ति से पहले हुई जांच में थामस को दोषमुक्त पाया गया है और उन पर कोई दाग नहीं है। सरकार का तर्क है कि थॉमस स्पेक्ट्रम घोटाले के काफी समय बाद दूरसंचार मंत्रालय में आए थे, इसलिए स्पेक्ट्रम घोटाले में उनकी कोई भूमिका नहंी है। कुछ भी हो भ्रष्टाचार के मामले पर पहले से ही छिड़ी बहस को सीवीसी के निर्वतमान आयुक्त प्रत्यूष सिन्हा ने हवा देकर इस मामले को गरमा दिया है।

चीन व पाक के जासूसों की घुसपैठ!

खुफिया तंत्र के खुलासे से रक्षा मंत्रालय सतर्क
ओ.पी. पाल
चीन और पाकिस्तान की खुफिया एजेंसियों द्वारा भारत की रक्षा संबन्धी जानकारियां लेने के लिए हैंकिंग का सहारा लिये जाने पर जब भारत ने सतर्कता बरतते हुए हैंकिंग रोकने के ठोस उपाय किये तो इन दुश्मन देशों ने अपने जासूसों की सेंध भारत के रक्षा तंत्र में घुसा दिये हैं, जिसके लिए भारतीय खुफिया तंत्र ने भारत के रक्षा प्रतिष्ठानों को सतर्क रहने के लिए अलर्ट किया है।
भारतीय खुफिया एजेंसी इंटेलीजेंस ब्यूरो ने चीन और पाकिस्तान जैसे देशों की खुफिया एजेंसियों के जासूसों की भारत में खासकर रक्षा तंत्र एवं रक्षा प्रतिष्ठानों में घुसपैठ के बारे में अलर्ट जारी करते हुए सकर्तता बरतने की सलाह दी है। सूत्रों के अनुसार दुश्मन देशों की खुफिया एजेंसियां भारत के रक्षा प्रतिष्ठानों से डेटा और सूचनाओं को पेन ड्राइव, रिमूवेबल हार्ड डिस्क, सीडी, वीसीडी के जरिए चुरा रही हैं। इसके लिए चीन और पाकिस्तान जैसे देशों ने भारत की सुरक्षा एजेंसियां हैकिंग का सहारा लेती आ रही थी, लेकिन भारत ने इसे रोकने के लिए तकनीकी कदम उठाये तो उसे देखते हुए चीन और पाकिस्तान ने अब अहम सूचनाओं को हासिल करने के लिए अपनी रणनीति में बदलाव किया है। ऐसे में दुश्मन देशों की खुफिया एजेंसियां कंप्यूटर नेटवर्क से डेटा या डॉक्युमेंट सीधे कॉपी या स्टोर करवा रही हैं। भारत की खुफिया तंत्र द्वारा किये गये खुलासे में यह भी कहा गया है कि दुश्मन देश के खुफिया अधिकारी भारत के रक्षा तंत्र में काम कर रहे 'अपने खास लोगों' के जरिए कंप्यूटर नेटवर्क से खास डेटा, सूचना हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं। इस अलर्ट के बाद हालांकि रक्षा मंत्री एके एंटोनी ने एक आदेश के जरिए कंप्यूटर स्टोरेज डिवाइस के इस्तेमाल को लेकर बनी नीति की समीक्षा करने का फैसला लिया है। रक्षा मंत्रालय, आर्मी, नेवी और एयरफोर्स को जारी इस अलर्ट में यह भी कहा है कि हाल के कुछ सालों में रक्षा प्रतिष्ठानों से डेटा या डॉक्युमेंट के पेन ड्राइव या फिर दूसरी डिजीटल स्टोरेज डिवाइसों के जरिए चोरी होने या कॉपी होने की घटनाएं बढ़ गई हैं। यह भारत के लिए चिंता का विषय है कि पाकिस्तान और चीन अपने कई जासूसों के जरिए भारत से जुड़ी अहम सूचनाएं हासिल कर रहे हैं। इस प्रकार की जासूसी इस बात से भी साबित हो रही है कि गत 22 अप्रैल को दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने पाकिस्तान में मौजूद भारतीय हाई कमिशन के प्रेस एंड इन्फर्मेशन विंग में सेकेंड सेक्रेटरी के रूप में काम कर रही माधुरी गुप्ता को जासूसी के आरोप में गिरफ्तार कर लिया था। खुफिया एजेंसी का खुलासा और जारी अलर्ट इस लिहाज से भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है कि गत कल ही यानि छह सितंबर को लुधियाना पुलिस ने एक और पाकिस्तानी जासूस को गिरफ्तार किया। यह जासूस पाकिस्तान की एजेंसी आईएसआई के लिए काम करता है। इस जासूस के कब्जे से हाथ से बने नक्शे, सैन्य ठिकानों की तस्वीरें, महत्वपूर्ण दस्तावेज व अन्य सामान भी बरामद हुआ है। इससे पहले भी लुधियाना पुलिस जासूसी के आरोप में पाकिस्तानी नागरिक निजाम बख्श उर्फ संदीप सिंह को गिरफ्तार कर चुकी थी। वहीं गत 21 अगस्त को जालंधर में मोहम्मद आलम नाम के पाकिस्तानी जासूस की गिरफ्तारी के बाद खुलासा हुआ था कि आरोपी ने ठाकुर अमर दास के नाम पर ड्राइविंग लाइसेंस, पासपोर्ट और पैनकार्ड बनाया है। इससे पहले भी वर्ष 2005 में शहीम सद्दीक नामक जैसे पाकिस्तानी एजेंट भारत में घुसपैठ के मामले में सामने आ चुके हैं। पाक खुफिया एजेंसी आईएसआई के एजेंटों की डेढ़ दशक पूर्व भारत में घुसपैठ ही आतंकवादियों की गतिविधियों का रूप लेकर एक संकट बनी थी, यह बात किसी से छिपी नहीं है। जिस प्रकार खुफिया तंत्र ने रक्षा तंत्र में चीन और पाक जासूसों की घुसपैठ का खुलासा किया है उससे केंद्र सरकार की नींद उड़ी हुई है जिसके बाद रक्षा मंत्रालय ने कंप्यूटर सटोरेज डिवाइस के इस्तेमाल को लेकर बनी नीति की समीक्षा करके उसे और मजबूत बनाने पर विचार किया है।

कांग्रेस के सामने प्रदेश अध्यक्षों के चुनाव चुनौती!

राज्यों में गुटबाजी बन रही है सबसे बड़ी बाधा
ओ.पी. पाल
सोनिया गांधी को राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर निर्वाचित करने के बाद अब कांग्रेस के लिए राज्यों में प्रदेश अध्यक्षों के चुनाव को कराने की चुनौती है। जिन राज्यों में निकट भविष्य में चुनाव होने हैं वहां संगठनात्मक चुनाव को कराने के लिए कांग्रेस ने कमर कस ली है, जहां पार्टी को कांग्रेस की अंदरूनी गुटबाजी से भी निपटने के लिए दो-दो चार होना पड़ रहा है।
कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए चुनाव संपन्न होने के बाद अब पार्टी का ध्यान उन राज्यों में प्रदेश कांग्रेस प्रमुख के निर्वाचन पर है जहां विधानसभा चुनाव होने वाले हैं उनमें कांग्रेस के लिए बिहार सबसे महत्वपूर्ण राज्य हैं, जहाँ चुनाव का एलान हो गया है । इसके अलावा अगले वर्ष केरल, तमिलनाड़ु, पुडुचेरी, पश्चिम बंगाल और असम में विधानसभा चुनाव भी कांग्रेस के सामने हैं। वहीं, वर्ष 2012 में उत्तर प्रदेश और पंजाब में चुनाव होने हैं। पार्टी नेताओं को यह अपेक्षा है कि जिन राज्यों में कांग्रेस किसी क्षेत्रीय दल के बाद दूसरे स्थान पर है, वहां प्रदेश अध्यक्ष उप मुख्यमंत्री सहित अन्य अहम पदों की उम्मीद कर सकते हैं। पश्चिम बंगाल में कांग्रेस ने घोषणा की है कि वह तृणमूल कांग्रेस के साथ चुनाव लड़ेगी। वहां ममता बनर्जी को मुख्यमंत्री पद का दावेदार माना जा रहा है। अन्य व्यस्तताओं के चलते वरिष्ठ नेता प्रणव मुखर्जी के प्रदेश प्रमुख पद से हटने के बाद अब मानस भुइयां वहां प्रदेश अध्यक्ष हैं। असम में कांग्रेस सत्ता में है, जहां तरुण गोगोई को पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी ने 9 वर्ष पहले मुख्यमंत्री पद दिया था। तब गोगोई ने बतौर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पार्टी को चुनावी जीत दिलाई थी। वाम शासित केरल में इस तरह की अटकलें हैं कि रमेश चेन्नितला ही प्रदेश अध्यक्ष बने रहेंगे। पूर्व मुख्यमंत्री ओमन चांडी कांग्रेस विधायक दल के नेता हैं और एके एंटनी के केंद्र की राजनीति में आ जाने के बाद अब उन्हें ही प्रदेश कांग्रेस का सबसे वरिष्ठ नेता माना जाता है। कांग्रेस के सूत्रों की माने तो कांग्रेस में इस तरह के उदाहरण रहे हैं जब प्रदेश कांग्रेस अध्यक्षों को सोनिया ने मुख्यमंत्री बनने का मौका दिया है। दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित एक दशक पहले प्रदेश पार्टी प्रमुख ही थीं। इसी तरह अशोक गहलोत भी मुख्यमंत्री बनने के समय राजस्थान प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष थे। आंध्र प्रदेश के वाईएसआर रेड्डी, कर्नाटक के एसएम कृष्णा, हरियाणा के भूपेन्द्र सिंह हुड्डा, पंजाब के अमरिंदर सिंह और जम्मू-कश्मीर के गुलाम नबी आजाद भी इसी श्रेणी में आते हैं। पंजाब प्रदेश कांग्रेस प्रमुख पद के मजबूत दावेदार अमरिंदर सिंह ने पहले ही कहा है कि इस पद पर चुनाव का फैसला सोनिया गांधी पर छोड़ दिया जाना चाहिये।

शनिवार, 11 सितंबर 2010

चीन ने फिर बढ़ाई भारत की चिंता!

सीमा पर हजारों सैनिकों के साथ तैनात की मिसाईलें

ओ.पी. पाल
चीन ने भारत के साथ लगी सीमा पर मिसाइलों की तैनाती, गिलगिट में हजारों सैनिक तैनात करके एक बड़े युद्ध अभ्यास की तैयारियों को अंजाम देकर भारत के लिए खतरे की घंटी बजा दी है? हाल ही में वीजा विवाद के बाद भारत और चीन के बीच रोका गया सैन्य सहयोग को देखते हुए चीन का आतंकवाद के खिलाफ सैन्य अभ्यास के नाम पर युद्ध अभ्यास भारत के लिए खतरे के संकेत बताए जा रहे हैं।भारत ने चीनी सेना के इस युद्ध अभ्यास की तैयारियों को चिंता का विषय मानते हुए हालांकि चीन से लगी अपनी सीमाओं पर सतर्कता बरतने की नीति को तेज करने पर जोर दिया है। इसका कारण साफ है कि भारत से लगती करीब चार हजार किलोमीटर की सीमा रेखा के पास चीन ने लंबी दूरी तक मार करने वाली कई मिसाइलों की तैनाती पहले ही कर दी है। इसके अलावा जम्मू-कश्मीर से सटे गिलगिट इलाके में भी करीब 15 हजार चीनी सैनिक डटे हुए हैं। यह बात भी किसी से छिपी नहीं है कि चीन की युद्ध संबंधी मंशा का अंदाजा इसी बता से लगाया जा सकता है कि कुछ दिनों पहले चीन के सरकारी अखबार 'पीपल्स डेली' ने एक सर्वे में यह पूछा था कि क्या चीन को भारत से युद्ध लड़ना चाहिए। जिसके जवाब में लोगों ने मिलीजुली प्रतिक्रिया दी थी। ऐसे में माना जा रहा है कि चीन सैन्य मोर्चे पर अपनी तैयारियों के अलावा देश में युद्ध के लिए जनमत को तैयार करने और उसे टटोलने का काम कर रहा है। चीन के मंसूबे साफ हैं और भारत को समय रहते चौकन्ना होने की जरूरत है। ऐसी स्थिति में भारत हमेशा चीन पर विश्वास जताते हुए यही कहता रहा है कि चीन से भारत के हर क्षेत्र में आपसी सहयोग में बढ़ोतरी हो रही है और भारत को चीन से कोई खतरा नहीं है, लेकिन वीजा के मामले पर बढ़ी तल्खी से टूटा सैन्य सहयोग इस बात को जाहिर कर रहा है कि पाकिस्तान से नजदीकियां बढ़ा रहे चीन के भारत के प्रति मंसूबे खतरे से कम नहीं हैं। भारत के साथ लगी सीमा पर मिसाइलों को तैनाती, गिलगिट में हजारों की तादाद में सैन्य जमावड़े के बाद चीनी सेना सितंबर में एक बड़े युद्ध अभ्यास में हिस्सा लेने की तैयारी इस बात का संकेत जरूर कर रही है कि चीन ने इस तैयारी से भारत के लिए खतरे की घंटी बजा दी है। चीन ने अपनी सैन्य गतिविधियां तेज करते हुए 'पीस मिशन 2010' के नाम पर अपने करीब एक हजार सैनिकों को 9 सितंबर से 25 सितंबर, 2010 तक कजाकिस्तान के अलमाटी और ओटार शहर में युद्ध के अभ्यास के लिए भेजने का फैसला किया है। हालांकि चीन ने इस युद्ध अभ्यास को 'आतंकवाद के खिलाफ सैनिक अभ्यास' की संज्ञा दी है।
चीन के रक्षा मंत्रालय से आ रही खबरो में कहा जा रहा है कि कि 'पीस मिशन 2010'के तहत 'एंटी-टेरर मिलिट्री एक्सरसाइज' में चीन, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, रूस और तजाकिस्तान के करीब 5 हजार सैनिक अभ्यास करेंगे। इनमें मिलिट्री, एयरफोर्स और नेवी के जवान शामिल होंगे। इसके अलावा चीन की नौसेना पीले सागर में सैन्य अभ्यास शुरू करेगी। एक रिपोर्ट के अनुसार चीनी नौसेना आगामी बुधवार से शनिवार तक चीन और कोरियाई प्रायद्वीप के बीच पीले सागर में सैन्य अभ्यास करेगा, जिसमे जहाज में लगे हथियारों से गोलीबारी का प्रशिक्षण दिया जाएगा। यह भी माना जा रहा है कि आतंकवाद के खिलाफ मिलिट्री एक्सरसाइज की आड़ में चीन युद्ध से जुड़ी अपनी तैयारियों को अंतिम रूप देगा। हाल के कुछ दिनों में भारत और चीन के रिश्तों में भारतीय सेना के वरिष्ठ अफसर को चीन की यात्रा के लिए वीजा जारी न किए जाने पर कड़वाहट आ गई है। हालांकि भारत के साथ वीजा विवाद को कम करने के उद्देश्य से चीन के विशेषज्ञों का कहना है कि दोनों देशों के बीच सैन्य संबंध बहुत मजबूत हैं और ऐसी घटनाओं से इन संबंधों पर कोई असर नहीं पड़ेगा। यही बात वीजा विवाद के बाद भारत के रक्षा मंत्री एके एंटोनी ने कही थी। भारतीय विशेषज्ञों का मानना है कि भले ही दोनों देश इस कडवाहट को भुलाने के लिए इस प्रकार दावे कर रहे हों, लेकिन भारत को चीन से पूरी तरह चौकन्ना रहने की जरूरत है, क्योंकि इससे पहले चीन की हरकतों से भारत की भावनाएं एक बार नहीं कई बार आहत हुई हैँ। भारत को इसलिए भी चौकस रहने की जरूरत है कि पाकिस्तान भी चीन की गोद में बैठा हुआ है, जो भारत के खिलाफ चीन पर आंख मूंदकर विश्वास कर अपनी नजदीकियों को परवान चढ़ा रहा है।

सोनिया का कांग्रेस अध्यक्ष बनना तय

यूपी के चुनाव को लेकर केंद्रीय नेतृत्व हलकान
ओ.पी. पाल
कांग्रेस के संगठनात्मक चुनाव की जारी प्रक्रिया में राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के लिए यूपीए अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी संभवत: एक सितंबर को अपना नामांकन दाखिल करेंगी और उनके मुकाबले कोई अन्य उम्मीदवार सामने आए इसकी संभावनाएं पूरी तरह से क्षीण मानी जा रही है, जिसके कारण श्रीमती सोनिया गांधी का कांग्रेस का लगातार चौथी बार अध्यक्ष बनना तय माना जा रहा है जो कांग्रेस के लिए एक रिकार्ड होगा। वहीं केंद्रीय नेतृत्व यूपी के संगठनात्मक चुनाव को लेकर हलकान नजर आ रहा है जहां गुटबाजी से राहुल मिशन को भी पलीता लगाने का प्रयास किया जा रहा है।
कांग्रेस के संविधान के अनुसार तीन दिन पहले ही कांग्रेस संगठन के चुनाव की प्रक्रिया शुरू करने के लिए अधिसूचना जारी की गई थी, जिसमें राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के लिए नामांकन पत्र दाखिल करने की अंतिम तारीख दो सितंबर है और संभावना है कि श्रीमती सोनिया एक सितंबर को ही दो सेट में अपना नामांकन दाखिल करेंगी? कांग्रेस के सूत्रों ने बताया कि श्रीमती गांधी के नामांकन में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, लोकसभा के नेता प्रणव मुखर्जी और कांग्रेस युवराज समेत कई शीर्ष कांग्रेस नेता उनके नाम का प्रस्ताव करेंगे। नामांकन वापस लेने की अंतिम तिथि दस सितंबर है, लेकिन नामांकन भरने की अंतिम तिथि यानि दो सितंबर को ही यह तय हो जाएगा कि अध्यक्ष पद के लिए चुनाव होगा या नहीं। हालांकि इन संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता कि सोनिया गांधी के सामने कोई कांग्रेस नेता अपना नामांकन दाखिल करें, ऐसे में श्रीमती सोनिया गांधी को दो सितंबर को ही निर्विरोध कांग्रेस अध्यक्ष घोषित कर दिया जाएगा। कांग्रेस अध्यक्ष बनते ही श्रीमती सोनिया गांधी कांग्रेस की बागडौर संभालने वाली ऐसी लगातार चौथी नेता होगी जो लगातार चौथी बार कांग्रेस अध्यक्ष होंगी। केन्द्र में सत्तारुढ़ संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की भी अध्यक्ष सोनिया ने गठबंधन के रास्ते से कांग्रेस को सत्ता की बागडोर मिलना सुनिश्चित कराया है। पार्टी के करीब आठ साल तक सत्ता से दूर रहने के बाद सोनिया ने वर्ष 2004 में हुए चुनाव में कांग्रेस नीत संप्रग को जीत दिलाई थी। कांग्रेस की ओर से सत्ता में साझेदारी किए जाने का वह पहला अनुभव था और वर्ष 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में जीत के बाद वह एक बार फिर गठबंधन सरकार का नेतृत्व कर रही है। वर्ष 1998 में सीताराम केसरी के स्थान पर कांग्रेस अध्यक्ष बनाई गईं सोनिया ने सबसे ज्यादा वक्त तक इस पार्टी की अगुवाई करने का रिकार्ड बनाया है। गौरतलब है कि कांग्रेस कार्यसमिति की हाल में हुई बैठक में तय किए गए चुनाव कार्यक्रम के मुताबिक नामांकन पत्रों की जांच तीन सितम्बर को की जाएगी। नाम वापसी की आखिरी तारीख 10 सितम्बर होगी और जरूरत पड़ने पर सत्रह सितम्बर को चुनाव होगा। मतों की गिनती 21 सितम्बर को होगी। विभिन्न राज्यों में कांग्रेस की इकाइयों के चुनाव का भी यही कार्यक्रम है। कांग्रेस ने राज्यों में भी संगठनात्मक चुनाव के लिए सदस्य अ•िायान चलाया हुआ है, जिसमें कांग्रेस युवराज यानि कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी युवा शक्ति को संगठित करने के लिए विभिन्न राज्यों में अपने दौरे कर रहे हैं। कांग्रेस के सामने फिलहाल बिहार राज्य में होने वाले विधानसभा चुनाव हैं जिनकी तैयारियों के लिए पहले ही वहां राज्य ईकाई का गठन कर दिया गया है। उत्तर प्रदेश भी कांग्रेस के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं जहां कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी अधिक दिलचस्पी ले रहे हैं ताकि कांग्रेस की मजबूत जमीन तैयार की जा सके। राहुल गांधी की यूपी में चल रहे मिशन को राज्य में कांग्रेस के संगठनात्मक चुनावों में जिला और ब्लाक स्तर पर कांग्रेस नेताओं की गुटबाजी खुलकर सामने आ रही है, जिससे राहुल मिशन को पलीता लगता भी नजर आ रहा है। सूत्रों के अनुसार हालांकि राहुल गांधी यूपी में संगठनात्मक चुनाव को लेकर उपजे विवादों की जांच अपने स्तर से भी कर रहे हैं, लेकिन केंद्रीय नेतृत्व राज्य के संगठनात्मक चुनाव के लिए तैनात चुनाव अधिकारियों को दिशानिर्देश जारी कर चुका है। यह भी जानकारी मिल रही है कि कांग्रेस महासचिव व संगठनात्मक चुनावों के प्रमुख आस्कर फर्नांडीज को मिले शिकायतों के पुलिंदे पर यूपी के संगठनात्मक चुनाव की सियासत दिल्ली में कांग्रेस मुख्यालय तक पहुंचनी शुरू हो जाएगी। जाहिर सी बात है कि उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव मिशन-2012 की तैयारियों में लगी कांग्रेस को संगठनात्मक चुनाव में नाकों चने चबाने पड़ रहे हैं, जिससे केंद्रीय नेतृत्व का हलकान होना स्वाभाविक है।

बुधवार, 8 सितंबर 2010

...तो बिना वारंट गिरफ्तारी करेगी पुलिस

संशोधन के बावजूद कानून के दुरुपयोग की आशंकाएं बढ़ी करेगी
ओ.पी. पाल
देश में किसी भी व्यक्ति की गिरफ्तारी के लिए पुलिस को वह सभी अधिकार मिलने जा रहे हैं जो अभी तक इसके लिए मजिस्ट्रेट आदेश जारी करके वारंट जारी करते आ रहे हैं। मसलन कि अब बिना किसी वारंट के पुलिस अधिकारी किसी की भी गिरफ्तारी करने के लिए स्वतंत्र हो जाएगी। इसके लिए केंद्र सरकार के प्रस्तावित दंड प्रक्रिया संहिता (संशोधन) विधेयक 2010 पर संसद ने अपनी मुहर लगा दी है। इस संशोधन पर कानून विशेषज्ञों और रणनीतिकारों का मानना है कि सीआरपीसी में इस संशोधन के बावजूद पुलिस में भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलने की संभावनाएं अधिक बढ़ जाएंगी।
केंद्र सरकार को मानना है कि मजिस्ट्रेट के आदेश और वारंट जारी कराने के कारण आरोपियों की गिरफ्तारी करने में विलंब होता है और तब तक आरापी न्यायालय से स्थगन आदेश हासिल कर लेता है। इसलिए इस महसूस किया जाए कि किसी भी संज्ञेय अपराध में गिरफ्तार करने की शक्तियां पुलिस अधिकारियों को दी जाएं। केंद्रीय गृहमंत्री पी. चिदंबरम ने संसद में पेश किये गये सीआरपीसी संशोधन विधेयक के उद्देश्य को स्पष्ट करते हुए माना है कि दंड प्रक्रिया संहिता (संशोधन) विधेयक 2008 के कतिपय उपबंधों के विरूद्ध वर्गो से हुए आक्षेपों को देखते हुए उक्त अधिनियम प्रवृत्त नहीं किया जा सका था, जिसमें पुलिस को बिना वारंट जारी किये गिरफ्तारी करने का प्रावधान किया गया है। उनका कहना है कि इस संबन्ध में विधि आयोग द्वारा इस मुद्दे से संबन्धित व्यक्तियों और विशेषज्ञों से विचार विमर्श करने के बाद विधि आयोग ने इस अधिनियम की धारा 41 के उपबंधों में और संशोधन करने की सिफारिश की थी। इस सिफारिश के तहत सात वर्ष तक के अधिकतम दंड के किसी भी संज्ञेय अपराध के संबन्ध में पुलिस को गिरफ्तारी करने के साथ-साथ गिरफ्तारी न करने के लिए कारणों को लेखबद्ध करना अनिवार्य बनाने का प्रावधान किया है। विधि आयोग ने दंड प्रक्रिया संहिता 1973 के 2009 में संशोधित अधिनियम स्थापित नई धारा 41क में और परिवर्तन करने का निर्णय लिया गया, जहां संशोधित धारा 41 की उपधारा (1) के खंड (ख) के अधीन ऐसे सभी मामलों जहां गिरफ्तारी अपेक्षित नहीं है में पुलिस के लिए नोटिस जारी करने को भी अनिवार्य बनाया गया है। चिदंबरम का कहना है कि विधि आयोग की सिफारिशों को स्वीकार करने के बार इस विधेयक में संशोधन करने का निर्णय लिया गया। केंद्र सरकार ने मजिस्ट्रेटों के अधिकार पुलिस अधिकारियों को देने के उद्देश्य से इस संशोधित विधेयक को संसद के दोनों सदनों में पारित तो करा लिया है, लेकिन इस बिल पर राज्यसभा में चर्चा के दौरान भाजपा के अविनाश राय खन्ना, बसपा के नरेन्द्र कुमार कश्यप, कांग्रेस के डा. ईएम नाच्चियप्पन, केएन बालगोपाल तथा एम. राम जोयस आदि सदस्यों ने आशंका जताई है कि इस विधेयक में थानाध्यक्ष को जिस प्रकार से अधिकार सौँपे गये हैं उनका दुरुपयोग होने की संभावना अधिक रहेंगी। थाना स्तर के पुलिस अधिकारियों के भ्रष्टाचार के मामलों और आरोपियों को थर्ड डिग्री का प्रयोग करके निर्दोष को भी आरोपी के दायरे में लाने जैसी घटनाएं किसी से छिपी नहीं हैं। इसलिए इस विधेयक में ऐसा प्रावधान शामिल करने की भी गुंजाइश हो सकती थी, जिससे इस कानून का दुरुपयोग न हो सके। बसपा सांसद एवं अधिवक्ता नरेन्द्र कश्यप का तो कहना है कि पुलिस को अब वारंट की जरूरत नहीं होगी तो वह जिसे चाहेगी अपनी मनमानी से गिरफ्तार करने का काम करेगी भले ही वह निर्दोष ही क्यों न हो। कश्यप ने आशंका जताई कि इस विधेयक में समाज के हर व्यक्ति को सस्ता और सुलभ न्याय दिलाने के बजाए सभी अधिकार पुलिस को सौंप दिये गये, जिससे मानवाधिकारों का हनन बढ़ने की संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकेगा। संसद में पारित इस विधेयक में सीपीआरसी के अनुच्छेद 21 कहता है कि किसी भी व्यक्ति के जीवन के अधिकार को किसी प्रकार से प्रभावित न किया जाए, लेकिन पुलिस को बिना वारंट के गिरफ्तार करने के अधिकार मिलने से यह अनुच्छेद प्रभावित नहीं होगा, इसलिए संशोधित विधेयक में ही थाने की पुलिस को दी गई इस शक्ति पर एक निगरानी अधिकारी की नियुक्ति करने का प्रावधान करना जरूरी होना चाहिए था और वहीं हिरासत में लिये जाने वाले व्यक्ति की पूरी प्रक्रिया में वीडियों व आडियो ग्राफी को अनिवार्य बनाये जाने की जरूरत थी। वरिष्ठ अधिवक्ता कमलेश कुमार शर्मा का कहना है कि बिना किसी वारंट के पुलिस को गिरफ्तार करने के दिये गये अधिकारों से पुलिस उत्पीड़न और भ्रष्टाचार जैसे मामलों में बढ़ोतरी होगी। उनका कहना है कि संशोधन के बावजूद भी दंड प्रक्रिया संहिता विधेयक के दुरुपयोग की संभावनाओं को रोकने का कोई प्रावधान न होने से आम जनता में भी पुलिस के खौप के भय की भावना पनपने की भी संभावना रहेगी।

भारत-चीन ‘हैंड इन हैंड’ सैन्य अभ्यास खटाई में?

ओ.पी. पाल
पाकिस्तान से नजीदीकी बढ़ाने दिलचस्पी दिखा रहे चीन ने एक बार फिर भारत के साथ संबन्धों को तनाव के माहौल मे लाकर खड़ा कर दिया है। जम्मू-कश्मीर में तैनात जनरल रैंक के एक वरिष्ठ सैन्य अधिकारी को पाक की राह पर चलते हुए चीन ने वीजा देने से इंकार करके एक बार फिर भारत के अंदरूनी मामलों में दखल देने की नीति को दोहराया है। हालांकि चीन की इस हरकत से व्यथित भारत ने भी अपनी कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए चीन के तीन सैन्य अधिकारियों को भारत की यात्रा की अनुमति देने से अस्थाई तौर पर रोक लगा दी है। इस ताज विवाद के कारण भारत-चीन के बीच फिलहाल ‘हैंड इन हैंड’ नामक सैन्य अभ्यास खटाई में पड़ गया है। राजनीतिज्ञों और विशेषज्ञों ने चीन की हरकत की निंदा करते हुए इसे दो देशों के करार का उल्लंघन भी करार दिया है।
ऐसे समय जब जम्मू-कश्मीर के हालात सही नहीं हैं और सीमापार पाक से कश्मीर घाटी की हिंसा की आग में घी डालने का काम किया जा रहा है तो ऐसे में चीन ने जम्मू कश्मीर में आर्मी कंमाडर जनरल बीएस जसवाल को वीजा देने से इनकार कर दिया क्योंकि वह संवेदनशील जम्मू कश्मीर से हैं, इसलिए उन्हें विशेष वीजा की जरूरत है। जनरल जसवाल दोनों देशों के बीच होने वाले सैन्य आदान प्रदान कार्यक्रम के तहत चीन जाने वाले थे। चीन की इस हरकत से व्यथित भारत ने अपनी कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए चीन के दो सैन्य अधिकारियों को भारत की यात्रा की अनुमति देने से अस्थाई तौर पर इनकार कर दिया है। दोनों सैन्य अधिकारियों को नेशनल डिफेंस कॉलेज में प्रशिक्षण प्राप्त करने आना था। भारत ने यात्रा को तब तक रोक दिया जब तक यह मामला सुलझ नहीं जाता। सूत्रों के अनुसार जनरल रैंक के अधिकारियों की चीन यात्रा के बारे में दोनों देशों के बीच जनवरी में रक्षा क्षेत्र पर हुई सालाना बातचीत के दौरान सहमति बनी थी। हालांकि उस समय यह तय नहीं किया गया था कि भारत से चीन किसे भेजा जाएगा। इस ताजा विवाद से जहां भारत और चीन के बीच ताजा कूटनीतिक विवाद के चलते दोनों देशों ने आपसी सैन्य सहयोग पर अवरोध खड़ा हो गया है यानि एक प्रकार से आपसी सैन्य सहयोग को रोक दिया गया है। वहीं दूसरी ओर केंद्रीय रक्षा मंत्री एके रक्षा मंत्री ए. के. एंटनी ने भारत द्वारा चीन के साथ रक्षा संबंध तोड़े जाने से इंकार किया है। एंटनी ने कहा का मानना है कि यह घटना संबंध तोड़ने का सवाल नहीं है। जबकि भारत में विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विष्णु प्रकाश का कहना है कि चूंकि हम चीन के साथ आदान प्रदान को महत्व देते हैं तो एक दूसरे की चिंताओं पर भी संवेदनशीलता होनी चाहिए। भारतीय विदेश मंत्रालय ने यह तो स्वीकार किया है कि चीन के पाकिस्तान को सहयोग के कारण भारत और चीन के बीच तनाव बनना स्वाभाविक है। तनाव का एक कारण अरुणाचल के साथ लगी सीमा भी है, जहां भारत में रहने वाले दलाई लामा के कारण भी चीन की भावें तनी रहती हैं। भारत और चीन के बीच बहुत सीमित सैनिक सहयोग है। सिर्फ जनरल रैंक के सैन्य अधिकारियों के आने जाने और कभी-कभार होने वाले सैनिक अभ्यास ही इसे जारी रखे हुए हैं। वार्षिक द्विपक्षीय सैन्य अभ्यास के लिए भारत अगले साल सैन्य अधिकारी चीन भेजने वाला है। इस सैनिक अभ्यास का नाम हैंड इन हैंड है, जो खटाई में पड़ता नजर आ रहा है। भाजपा के सांसद तरुण विजय का कहना है कि सैन्य अभ्यास के आदान-प्रदान कार्यक्रम में दोनों देशों के बीच वीजा को लेकर आई तल्खी इस बात का प्रमाण है कि भारत की विदेश नीतियों में व्यापक खामियां हैं। उनका कहना है कि राष्ट्रीय ध्वज से चीन कितनी नफरत करता है यह सर्वविदित है। पिछले साल अक्टूबर में चीन ने अरुणाचल प्रदेश में नरेगा के तहत बनाई जा रही सड़क को रूकवाकर भारत के अंदरूनी मामलों में दखल दी थी और फिर चीनी सेना ने अरुणाचल प्रदेश में निशान बनाने की हरकत की, इसके बावजूद भी भारत सरकार चीन के प्रति अपनी विदेश नीति को सख्त करने की जरूरत महसूस नहीं कर पा रही है। जम्मू-कश्मीर और अरुणाचल भारत के अभिन्न अंग हैं जिसमें चीन की घुसपैठ और दखलनंदाजी करने के कारनामों की कड़ी भर्त्सना की जानी चाहिए। कांग्रेस के प्रवक्ता मनीष तिवारी का कहना है कि भारत हमेशा से कहता आया है कि वह चीन के साथ सौहार्द्रपूर्ण रिश्ते चाहता है लेकिन ये रिश्ते आपसी सम्मान पर आधारित होने चाहिए जिसमें दोनों देश एक दूसरे की संवेदनाओं को ध्यान रखें। उन्होंने कहा कि अगर इस आधार का एकतरफा तौर पर उल्लंघन किया जाता है तो देश में उसकी तीखी से तीखी प्रतिक्रिया एकदम जायज है। तिवारी ने उम्मीद जताई कि विदेश मंत्रालय चीन के इस आचरण पर वाजिब जवाब देगा। चीन के इस आचरण की भाजपा के प्रवक्ता प्रकाश जावेडकर ने कहा कि हमें चीन के इस कदम की कड़ी से कड़ी निंदा करनी चाहिए। विदेश मंत्रालय और सरकार इस बारे में चीन को अपनी नाराजगी से तुरंत अगवत कराएं। यह सैन्य अधिकारी का नहीं, बल्कि राष्ट्र का अपमान है। उन्होंने कहा कि चीन हमेशा से अरुणाचल प्रदेश में गड़बड़ी को हवा देता आ रहा है और अब कश्मीर की स्थिति से लाभ उठाना चाहता है। राजनीतिकार और विदेश मामलों के विशेषज्ञ चीन की बढ़ती इन हरकतों के पीछे उसके पाक से बढ़ते रिश्तों को बड़ा कारण मानकर चल रहे हैं, जिसके लिए भारत सरकार को विदेश नीति की समीक्षा करने की आवश्यकता है।

अंग्रेजी कानून से नहीं होगा किसानों का भला!

अजित ने तैयार किया भूमि अधिग्रहण अधिनियम का मसौदा
ओ.पी. पाल
सार्वजनिक उद्देश्य के लिए किसानों की भूमि के प्रयोग के लिए बने संशोधित भूमि अधिग्रहण कानून के बावजूद केंद्र सरकार आज तक अंग्रेजी शासन के पुराने ढर्रे पर चलती नजर आ रही है। इसी का नतीजा है कि आज देश में चलाई जा रही एसईजैड जैसी तमाम औद्योगिक परियोजनाओं के नाम पर किसानों की जमीन कोड़ियों के दाम पर अधिग्रहित की जा रही है। ऐसे में किसानों की ओर से विरोध होना स्वाभाविक है, लेकिन सरकार मौन है। हालिया विवाद यूपी के यमुना एक्सप्रेस-वे के निर्माण को लेकर है जिस पर राज्य से लेकर केंद्र तक की सरकार पशोपेश में है। यह मुश्किल यहीं खत्म नहीं होती नहीं दिख रही क्योंकि बृहस्पतिवार 26 अगस्त को उत्तर प्रदेश के तमाम किसान संसद घेराव का आन्दोलन कर चुकें हैं. जिसमें राष्ट्रीय लोकदल ने किसानों के आंदोलन की अगुवाई की और इस विरोध को भाजपा, वामदल व् अन्य दलों ने भी समर्थन दिया. करने का फैसला किया है। रालोद प्रमुख चौधरी अजित सिंह ने किसानों के हितों की सुरक्षा की दृष्टि से प्रस्तावित नये भूमि अधिग्रहण अधिनियम का प्रारूप तैयार किया है। यह बात राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष चौधरी अजित सिंह ने हरिभूमि से बातचीत के दौरान कहा कि अंग्रेजी हकूमत ने निजी संपत्ति और भूमि के अनिवार्य अधिग्रहण के घोषित लक्ष्य के साथ सार्वजनिक उद्देश् क लिए भूमि अधिग्रहण 1894 पारित किया था, जिसे आजादी के बाद भारत सरकार ने अंगीकार किया, हालांकि इस अधिनियम में कई संशोधन किये गये लेकिन मुआवजे के निर्धारण के लिए केंद्र सरकार आज भी उसी कानून को किसानों की भूमि अधिग्रहण करने के लिए औजार के रूप में इस्तेमाल कर रही है। उनका कहना है कि अंग्रेजी हकूमत के इस कानून में सार्वजनिक उद्देश्य की परिभाषा अस्पष्ट और व्यापक है जिसके कारण राज्य की सरकारों द्वारा अधिग्रहित भूमि पर निजी व्यक्तियों अथवा सरकारी एजेंसियों द्वारा विशिष्ट लाभ के उद्देश्य से किये गये कार्यकलाप निजी हितों के संवर्धन में बार-बार दुरुपयोग किया जा रहा है। चौधरी अजित सिंह ने मुआवजे निर्धारण के मूल आधार को त्रुटिपूर्ण बताते हुए सवाल उठाये कि कानून के अनुसार किसानों की भूमि का सार्वजनिक उद्देश्य के लिए अधिग्रहण किया जा सकता है, लेकिन देखने में आ रहा है कि निजी कंपनियों के हितों के लिए भी किसानों की जमीन का उपयोग किया जा रहा है और वह भी कोड़ियों के दामों पर। अंग्रेजी हकूमत के भूमि अधिग्रहण संबन्धी कानून में इतनी गंभीर खामियां हैं जिसके प्रावधान भूमिधारक किसानों के प्रतिकूल हैँ। यूपी के ग्रेटर नोएडा से आगरा तक बन रहे यमुना एक्सप्रेस-वे के लिए किसानों की अधिग्रहित की गई भूमि के मुआवजे को लेकर ताजा विवाद और किसानों के आंदोलन के बारे में पूछे जाने पर चौधरी अजित सिंह ने कहा कि उत्तर प्रदेश की सरकार अंग्रेजी हकूमत के कानून में खामियों का फायदा उठाकर किसानों के मामले में दोहरा मापदंड अपना रही है। सार्वजनिक उद्देश्य से परे यूपी सरकार एक्सप्रेस-वे के अलावा उसके दोनों और करीब दस किलोमीटर तक की जमीन का अधिग्रहण करने पर आमदा है जो इस बात का प्रमाण है कि वह सार्वजनिक उद्देश्य के लिए नहीं, बल्कि निजी कंपनियों को औद्योगिक विकास के नाम पर करना चाहती है, जो किसानों के हितों पर कुठाराघात है। इसी प्रकार अन्य राज्यों की सरकारों की भी किसानों की जमीन पर नजर है। रालोद प्रमुख अजित सिंह ने कहा कि अंग्रेजी हकूमत के कानून को ढ़ोती आ रही केंद्र सरकार को चाहिए कि मौजूदा आर्थिक विकास और मानवाधिकारों के बदलते परिदृश्य में यह कानून भूमि धारकों और किसानों की भूमि अधिग्रहण करने का औजार ही न बना रहे इसके लिए सार्वजनिक उद्देश्य की परिभाषा को स्पष्ट करते हुए सरकार के प्रस्तावित नये भूमि अधिग्रहण अधिनियम को तैयार करना जरूरी है, ताकि किसान भूमि अधिग्रहण के बाद मजदूर न बन सके। रालोद नेता ने बताया कि प्रस्तावित नये कानून से किसानों के हितों की रक्षा हो सके इसलिए उन्होंने के लिए उन्होंने महत्वपूर्ण बिंदुओं को उजागर किया है जिसमें सार्वजनिक उद्देश्य की धारणा को पुन: परिभाषित करने का सुझाव देते हुए कहा कि प्रस्तावित परिभाषा आम जनता के हित में उन परियोजनाओं को शामिल किया गया है, जिनका अधिकतम वित्त पोषण केंद्र राज्य सरकार द्वारा होता है। नये प्रस्तावित भूमि अधिग्रहण अधिनियम के बारे में चौ. अजित सिंह ने कहा कि इसमें कंपनियों के लिए भूमि अधिग्रहण से संबन्धित मौजूदा अधिनियम के संपूर्ण भाग का लोप किये जाने का प्रस्ताव है, ताकि लाभ के लिए तथा व्यवसायिक उद्देश्य हेतु भूमि अधिग्रहण हेतु कानून का दुरुपयोग न हो सके। चौधरी अजित सिंह ने सार्वजनिक उद्देश्य हेतु भूमि अधिग्रहण से पूर्व सामाजिक प्रभाव के मूल्यांकन को अनिवार्य बताते हुए कहा कि विस्थापित किसानों या परिवारों पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव तथा उनके समुचित पुनर्वास का ध्यान भी रखा जाना जरूरी है। उन्होंने नये कानून के प्रारूप में अधिग्रहण के प्रारंभिक स्तर पर ही सभी भूमि धारकों को नोटिस जारी करने का प्रावधान करने, भूमि के बाजार मूल्य के निर्धारण हेतु एक नई धारा 11 को जोड़ने, भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया में विलंब के बचाव की दृष्टि से समयसीमा तय करने, अविलम्बनीय खंड के तहत विशेष शक्तियों के दुरुपयोग को रोकने, भूमि अधिग्रहण मुआवजा विवाद निपटान प्राधिकरण स्थापित करने तथा अधिग्रहित उद्देश्य के लिए भूमि का उपयोग सुनिश्चित करने जैसे प्रावधान को जोड़ते हुए महत्वपूर्ण नौ बिंदुओं के साथ प्रस्तावित नये कानून का प्रारूप तैयार किया है।

परमाणु दायित्व बिल पर फिर बखेड़ा!

सरकार की प्रतिष्ठा पर मंडराया खतरा
ओ.पी. पाल
भारतीय जनता पार्टी द्वारा परमाणु दायित्व विधेयक में विवादास्पद संशोधन हटाए बिना बिल का समर्थन करने से इंकार कर दिये जाने के बाद एक बार फिर से केंद्र सरकार की प्रतिष्ठा फिर खतरे में पड़ती नजर आ रही है, जिसके कारण संसद में इस बिल को पारित कराने के लिए सरकार के सामने मुश्किलों का पहाड़ खड़ा होना तय है, जिसमें सरकार के सामने राज्य सभा में बिल पास करना आसन नहीं है। यूपीए सरकार के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बने परमाणु दायित्व बिल पर भाजपा के साथ विवादित संशोधन हटाए जाने के किये गये वायदे के बाद आमसहमति गई थी और पिछले सप्ताह भाजपा ने इस बिल का समर्थन करने का फैसला कर लिया था। भाजपा ने इस विवादस्पद संशोधित बिल के मसौदे का जायजा लिया तो उसे आशंकाए नजर आने लगी। मुख्य विपक्षी दल बीजेपी और वामपंथी पार्टियों ने सोमवार को बिल में किए गए सरकार के संशोधनों को नकार दिया है। भाजपा ने स्पष्ट कर दिया है कि ने इसका समर्थन करने से इनकार कर दिया है। परमाणु दायित्व बिल के विरोधियों का मानना है कि इसके मौजूदा प्रावधानों के हिसाब से हादसा हो जाने पर पीड़ितों को मुआवजा दिला पाना मुश्किल होगा। भारत में अमेरिका की कई बड़ी कंपनियों को परमाणु बिजली क्षेत्र में प्रवेश की इजाजत देने के लिए इस बिल का पास होना जरूरी है। पहले भारतीय जनता पार्टी कुछ संशोधनों की मांग कर रही थी और सरकार ने पिछले सप्ताह बिल में वे बदलाव कर दिए थे, जिसके बाद ही भाजपा ने बिल का समर्थन करने का फैसल किया था, लेकिन अब भाजपा कहना है कि बिल में किए गए बदलाव संतोषजनक नहीं है। भाजपा की माने तो बिल के प्रावधान के मुताबिक सप्लायर्स को तभी मुआवजा देना होगा, जब दुर्घटना में उनकी मंशा साबित होगी। राज्यसभा में भाजपा के उपनेता एसएस आहलुवालिया ने कहा कि उन्होंने मंशा शब्द को जोड़ दिया है, जिसमें यह समस्या होगी कि उसमें यह साबित करने का कोई आधार नहीं है जिससे यह पता चल सके कि दुर्घटना मंशा की वजह से हुई या नहीं। इसलिए यह प्रावधान उचित नहीं है। इस मुद्दे पर वामदलों की राय भी कुछ ऐसी ही है जिसके बारे में सीपीआई के राष्ट्रीय सचिव डी. राजा का मानना है कि उन्हें नहीं लगता कि सरकार ने जो बदलाव किए हैं, उनसे विपक्ष सहमत हो सकता है, जो जायज और सही तर्क नहीं है। राजा ने कहा कि यह तर्क एकदम वाहियात कहा जा सकता है कि कोई सप्लायर इसमें अपनी मंशा स्वीकार नहीं करेगा। सरकार को बिल पास कराने के लिए भाजपा के समर्थन की जरूरत है क्योंकि सरकार के पास सैद्धांतिक रूप से भाले ही बहुमत हो, लेकिन भाजपा इसे राज्यसभा में रोकने की ताकत रखती है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह खुद इस बिल को पास कराने में दिलचस्पी दिखा रहे हैं। सूत्रों के अनुसार यह भी चर्चा है कि प्रधानमंत्री कार्यालय के एक राज्य मंत्री ने विपक्षी नेताओं से बातचीत की है। वहीं दूसरी ओर कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी का कहना है कि सरकार विचार विमर्श के लिए तैयार है। उन्होंने कहा कि चूंकि आम राय नहीं बन पा रही है, इसलिए सरकार विचार विमर्श के लिए तैयार है, जो विपक्ष को भारोसा दिलाने का प्रयास करेगी। वहीं भाजपा परमाणु दायित्व विधेयक में विवादास्पद संशोधनों को फिर से शामिल कर लिए जाने पर भाजपा ने सरकार की नीयत पर सवाल उठाते हुए कहा कि अगर इन प्रावधानों को हटाया नहीं गया तो उसके लिए संसद में इसे समर्थन देना मुश्किल होगा। पार्टी प्रवक्ता राजीव प्रताप रूड़ी ने कहा कि भाजपा ने परमाणु दायित्व बिल को समर्थन देने के बारे में सरकार को कोई आश्वासन नहीं दिया है। रुडी ने सवाल किया कि सरकार लुकाछिपी का खेल खेलते हुए देश के साथ छल क्यों कर रही है? भाजपा इस बात से हैरान और स्तब्ध हैं कि विधेयक से जुड़ी संसद की स्थाई समिति की पहली बैठक में ही सरकार की ओर से विधेयक की धारा-17 में विवादास्पद संशोधन करने का प्रयास किया गया, जिसे अस्वीकार कर दिया गया था। इस प्रयास के लिए परमाणु ऊर्जा सचिव ने क्षमा तक मांगी थी। उन्होंने पार्टी की और से स्पष्ट किया कि सरकार अगर इस विवादास्पद संशोधन को नहीं हटाती है, तो भाजपा के लिए उसे संसद में समर्थन दे पाना बहुत मुश्किल होगा। आपूर्तिकर्ताओं को संरक्षण देने का कोई भी प्रयास भाजपा को अस्वीकार्य है। ऐसी स्थिति में लोकसभा में पारित परमाणु दायित्व बिल को राज्यसभा में पारित कराने के लिए केंद्र सरकार की मुश्किलें बढ़ गई हैं.