ओ.पी. पाल
केंद्र सरकार द्वारा जातिगत आधारित जनगणना कराने के प्रस्ताव को दी गई मंजूरी से देश में एक नई बहस छिड़ती नजर आ रही है, जिसके विरोध में कुछ राजनेताओं के अलावा समाजसेवी, धर्मगुरू, विधिशास्त्री, कूटनीतिज्ञ भी सरकार के इस फैसले को सवालों के कटघरे में खड़ा करने लगे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि जातिगत आधारित जनगणना से राजनीतिक दल अपने वोट बैंक की राजनीति करके अपना हित साधना चाहते हैं, जो देश के लिए एक विनाशकारी साबित हो सकता है।
मेरी जाति हिंदुस्तानी नाम से आंदोलन चलाने वाले संगठन सबल भारत ने केंद्रीय मंत्रिमंडल के इस फैसले की कड़ी भर्त्सना की है कि अगले साल सरकार अलग से जातीय जनगणना करवाएगी। सबल भारत के राष्ट्रीय संयोजक डॉ. वेदप्रताप वैदिक ने सभी देशवासियों से अपील की है कि वे सरकार के इस फैसले को पूरी तरह से नकार दें और यदि वह जातीय जन-गणना करवाए तो वे जाति का खाना खाली छोड़ दें या उसमें लिखवाएं मेरी जाति हिंदुस्तानी। डॉ. वैदिक ने कहा है कि इस फैसले से देश में जातिवाद का जहर बड़े जोरों से फैलेगा। यह देश की एकता के लिए विनाशकारी सिद्ध होगा। जातीय जनगणना पर यदि यह सरकार 40-50 अरब रू. खर्च करेगी तो वह जनता के पैसे की निर्मम बबार्दी होगी। सरकार के इस राष्ट्रघाती फैसले का विरोध करने के लिए सबल भारत राष्ट्रव्यापी आंदोलन चलाने का भी ऐलान किया है। पिछले तीन-चार माह में सबल भारत की ओर से जातीय गणना के विरोध में अनेक सभाएं, प्रदर्शन, धरनों और उपवासों का आयोजन करता आ रहा है जिसका समर्थन देश के अनेक जाने-माने राजनेता, समाजसेवी, धर्मगुरू, विधिशास्त्री, कूटनीतिज्ञ आदि कर रहे हैं। डा. वैदिक का मानना है यदि देश की गरीबी दूर करनी है तो जातियों के आंकड़े इकट्ठे करने की बजाय गरीबों के आंकड़ों और कारणों की खोज की जानी चाहिए। यही वैज्ञानिक जनगणना होगी। सरकार के इस फैसले से पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी और बलराम जाखड़, पूर्व मंत्री वसंत साठे और जगमोहन, भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जे.एस. वर्मा, प्रसिद्ध वकील राम जेठमलानी और फली नारीमन, पूर्व लोकसभा महासचिव डॉ. सुभाष कश्यप, धर्मगुरू सत्यनारायण गोयनका, बाबा रामदेव और डॉ. प्रणव पंड्या भी किसी तरह से सहमत नहीं हैं। वरिष्ठ आलोचक डा. नामवर सिंह का कहना है कि स्वार्थी राजनीतिक पार्टियां व्यक्तिगत हित के लिए जातिगत जनगणना चाहती हैं, ताकि आने वाले चुनाव में जाति की राजनीति कर सकें और क्षेत्रवाद के आधार पर उम्मीदवार खड़ा कर सकें। उन्होंने कहा कि पार्टियों की इस आंकड़ेबाजी से न सिर्फ देश का सामाजिक ढांचा छिन्न-भिन्न होगा, बल्कि लोगों में जात-पात की भावना भी बढ़ जाएगी। इस विनाशकारी फैसलें को मंजूरी देकर सरकार ने देश को गर्त में ले जाने की नीति को बढ़ावा दिया है। डा. नामवर सिंह का मानना है कि यह समस्या साहित्य की नहीं बल्कि राजनीति की है। राजनीतिक पार्टियां अपने हित के लिए जाति के आधार पर जनगणना कराना चाहती हैं ताकि उनके पास किसी भी क्षेत्र में जाति को लेकर आंकड़े मौजूद हो सकें। उन्होंने कहा कि हमेशा से समाज के दुष्चक्रों को समाप्त करने का काम संत और साहित्यकार करते रहे हैं और इस बार भी उन्हें ही इसका दूरगामी परिणाम लोगों को समझाना होगा। समाजसेवी कृष्ण दत्त पालीवाल का कहना है कि यह जनगणना पूरी तरह से राष्ट्रवाद के विरोध में है।
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