बुधवार, 8 सितंबर 2010

अंग्रेजी कानून से नहीं होगा किसानों का भला!

अजित ने तैयार किया भूमि अधिग्रहण अधिनियम का मसौदा
ओ.पी. पाल
सार्वजनिक उद्देश्य के लिए किसानों की भूमि के प्रयोग के लिए बने संशोधित भूमि अधिग्रहण कानून के बावजूद केंद्र सरकार आज तक अंग्रेजी शासन के पुराने ढर्रे पर चलती नजर आ रही है। इसी का नतीजा है कि आज देश में चलाई जा रही एसईजैड जैसी तमाम औद्योगिक परियोजनाओं के नाम पर किसानों की जमीन कोड़ियों के दाम पर अधिग्रहित की जा रही है। ऐसे में किसानों की ओर से विरोध होना स्वाभाविक है, लेकिन सरकार मौन है। हालिया विवाद यूपी के यमुना एक्सप्रेस-वे के निर्माण को लेकर है जिस पर राज्य से लेकर केंद्र तक की सरकार पशोपेश में है। यह मुश्किल यहीं खत्म नहीं होती नहीं दिख रही क्योंकि बृहस्पतिवार 26 अगस्त को उत्तर प्रदेश के तमाम किसान संसद घेराव का आन्दोलन कर चुकें हैं. जिसमें राष्ट्रीय लोकदल ने किसानों के आंदोलन की अगुवाई की और इस विरोध को भाजपा, वामदल व् अन्य दलों ने भी समर्थन दिया. करने का फैसला किया है। रालोद प्रमुख चौधरी अजित सिंह ने किसानों के हितों की सुरक्षा की दृष्टि से प्रस्तावित नये भूमि अधिग्रहण अधिनियम का प्रारूप तैयार किया है। यह बात राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष चौधरी अजित सिंह ने हरिभूमि से बातचीत के दौरान कहा कि अंग्रेजी हकूमत ने निजी संपत्ति और भूमि के अनिवार्य अधिग्रहण के घोषित लक्ष्य के साथ सार्वजनिक उद्देश् क लिए भूमि अधिग्रहण 1894 पारित किया था, जिसे आजादी के बाद भारत सरकार ने अंगीकार किया, हालांकि इस अधिनियम में कई संशोधन किये गये लेकिन मुआवजे के निर्धारण के लिए केंद्र सरकार आज भी उसी कानून को किसानों की भूमि अधिग्रहण करने के लिए औजार के रूप में इस्तेमाल कर रही है। उनका कहना है कि अंग्रेजी हकूमत के इस कानून में सार्वजनिक उद्देश्य की परिभाषा अस्पष्ट और व्यापक है जिसके कारण राज्य की सरकारों द्वारा अधिग्रहित भूमि पर निजी व्यक्तियों अथवा सरकारी एजेंसियों द्वारा विशिष्ट लाभ के उद्देश्य से किये गये कार्यकलाप निजी हितों के संवर्धन में बार-बार दुरुपयोग किया जा रहा है। चौधरी अजित सिंह ने मुआवजे निर्धारण के मूल आधार को त्रुटिपूर्ण बताते हुए सवाल उठाये कि कानून के अनुसार किसानों की भूमि का सार्वजनिक उद्देश्य के लिए अधिग्रहण किया जा सकता है, लेकिन देखने में आ रहा है कि निजी कंपनियों के हितों के लिए भी किसानों की जमीन का उपयोग किया जा रहा है और वह भी कोड़ियों के दामों पर। अंग्रेजी हकूमत के भूमि अधिग्रहण संबन्धी कानून में इतनी गंभीर खामियां हैं जिसके प्रावधान भूमिधारक किसानों के प्रतिकूल हैँ। यूपी के ग्रेटर नोएडा से आगरा तक बन रहे यमुना एक्सप्रेस-वे के लिए किसानों की अधिग्रहित की गई भूमि के मुआवजे को लेकर ताजा विवाद और किसानों के आंदोलन के बारे में पूछे जाने पर चौधरी अजित सिंह ने कहा कि उत्तर प्रदेश की सरकार अंग्रेजी हकूमत के कानून में खामियों का फायदा उठाकर किसानों के मामले में दोहरा मापदंड अपना रही है। सार्वजनिक उद्देश्य से परे यूपी सरकार एक्सप्रेस-वे के अलावा उसके दोनों और करीब दस किलोमीटर तक की जमीन का अधिग्रहण करने पर आमदा है जो इस बात का प्रमाण है कि वह सार्वजनिक उद्देश्य के लिए नहीं, बल्कि निजी कंपनियों को औद्योगिक विकास के नाम पर करना चाहती है, जो किसानों के हितों पर कुठाराघात है। इसी प्रकार अन्य राज्यों की सरकारों की भी किसानों की जमीन पर नजर है। रालोद प्रमुख अजित सिंह ने कहा कि अंग्रेजी हकूमत के कानून को ढ़ोती आ रही केंद्र सरकार को चाहिए कि मौजूदा आर्थिक विकास और मानवाधिकारों के बदलते परिदृश्य में यह कानून भूमि धारकों और किसानों की भूमि अधिग्रहण करने का औजार ही न बना रहे इसके लिए सार्वजनिक उद्देश्य की परिभाषा को स्पष्ट करते हुए सरकार के प्रस्तावित नये भूमि अधिग्रहण अधिनियम को तैयार करना जरूरी है, ताकि किसान भूमि अधिग्रहण के बाद मजदूर न बन सके। रालोद नेता ने बताया कि प्रस्तावित नये कानून से किसानों के हितों की रक्षा हो सके इसलिए उन्होंने के लिए उन्होंने महत्वपूर्ण बिंदुओं को उजागर किया है जिसमें सार्वजनिक उद्देश्य की धारणा को पुन: परिभाषित करने का सुझाव देते हुए कहा कि प्रस्तावित परिभाषा आम जनता के हित में उन परियोजनाओं को शामिल किया गया है, जिनका अधिकतम वित्त पोषण केंद्र राज्य सरकार द्वारा होता है। नये प्रस्तावित भूमि अधिग्रहण अधिनियम के बारे में चौ. अजित सिंह ने कहा कि इसमें कंपनियों के लिए भूमि अधिग्रहण से संबन्धित मौजूदा अधिनियम के संपूर्ण भाग का लोप किये जाने का प्रस्ताव है, ताकि लाभ के लिए तथा व्यवसायिक उद्देश्य हेतु भूमि अधिग्रहण हेतु कानून का दुरुपयोग न हो सके। चौधरी अजित सिंह ने सार्वजनिक उद्देश्य हेतु भूमि अधिग्रहण से पूर्व सामाजिक प्रभाव के मूल्यांकन को अनिवार्य बताते हुए कहा कि विस्थापित किसानों या परिवारों पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव तथा उनके समुचित पुनर्वास का ध्यान भी रखा जाना जरूरी है। उन्होंने नये कानून के प्रारूप में अधिग्रहण के प्रारंभिक स्तर पर ही सभी भूमि धारकों को नोटिस जारी करने का प्रावधान करने, भूमि के बाजार मूल्य के निर्धारण हेतु एक नई धारा 11 को जोड़ने, भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया में विलंब के बचाव की दृष्टि से समयसीमा तय करने, अविलम्बनीय खंड के तहत विशेष शक्तियों के दुरुपयोग को रोकने, भूमि अधिग्रहण मुआवजा विवाद निपटान प्राधिकरण स्थापित करने तथा अधिग्रहित उद्देश्य के लिए भूमि का उपयोग सुनिश्चित करने जैसे प्रावधान को जोड़ते हुए महत्वपूर्ण नौ बिंदुओं के साथ प्रस्तावित नये कानून का प्रारूप तैयार किया है।

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