ओ.पी. पाल
देश में किसी भी व्यक्ति की गिरफ्तारी के लिए पुलिस को वह सभी अधिकार मिलने जा रहे हैं जो अभी तक इसके लिए मजिस्ट्रेट आदेश जारी करके वारंट जारी करते आ रहे हैं। मसलन कि अब बिना किसी वारंट के पुलिस अधिकारी किसी की भी गिरफ्तारी करने के लिए स्वतंत्र हो जाएगी। इसके लिए केंद्र सरकार के प्रस्तावित दंड प्रक्रिया संहिता (संशोधन) विधेयक 2010 पर संसद ने अपनी मुहर लगा दी है। इस संशोधन पर कानून विशेषज्ञों और रणनीतिकारों का मानना है कि सीआरपीसी में इस संशोधन के बावजूद पुलिस में भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलने की संभावनाएं अधिक बढ़ जाएंगी।
केंद्र सरकार को मानना है कि मजिस्ट्रेट के आदेश और वारंट जारी कराने के कारण आरोपियों की गिरफ्तारी करने में विलंब होता है और तब तक आरापी न्यायालय से स्थगन आदेश हासिल कर लेता है। इसलिए इस महसूस किया जाए कि किसी भी संज्ञेय अपराध में गिरफ्तार करने की शक्तियां पुलिस अधिकारियों को दी जाएं। केंद्रीय गृहमंत्री पी. चिदंबरम ने संसद में पेश किये गये सीआरपीसी संशोधन विधेयक के उद्देश्य को स्पष्ट करते हुए माना है कि दंड प्रक्रिया संहिता (संशोधन) विधेयक 2008 के कतिपय उपबंधों के विरूद्ध वर्गो से हुए आक्षेपों को देखते हुए उक्त अधिनियम प्रवृत्त नहीं किया जा सका था, जिसमें पुलिस को बिना वारंट जारी किये गिरफ्तारी करने का प्रावधान किया गया है। उनका कहना है कि इस संबन्ध में विधि आयोग द्वारा इस मुद्दे से संबन्धित व्यक्तियों और विशेषज्ञों से विचार विमर्श करने के बाद विधि आयोग ने इस अधिनियम की धारा 41 के उपबंधों में और संशोधन करने की सिफारिश की थी। इस सिफारिश के तहत सात वर्ष तक के अधिकतम दंड के किसी भी संज्ञेय अपराध के संबन्ध में पुलिस को गिरफ्तारी करने के साथ-साथ गिरफ्तारी न करने के लिए कारणों को लेखबद्ध करना अनिवार्य बनाने का प्रावधान किया है। विधि आयोग ने दंड प्रक्रिया संहिता 1973 के 2009 में संशोधित अधिनियम स्थापित नई धारा 41क में और परिवर्तन करने का निर्णय लिया गया, जहां संशोधित धारा 41 की उपधारा (1) के खंड (ख) के अधीन ऐसे सभी मामलों जहां गिरफ्तारी अपेक्षित नहीं है में पुलिस के लिए नोटिस जारी करने को भी अनिवार्य बनाया गया है। चिदंबरम का कहना है कि विधि आयोग की सिफारिशों को स्वीकार करने के बार इस विधेयक में संशोधन करने का निर्णय लिया गया। केंद्र सरकार ने मजिस्ट्रेटों के अधिकार पुलिस अधिकारियों को देने के उद्देश्य से इस संशोधित विधेयक को संसद के दोनों सदनों में पारित तो करा लिया है, लेकिन इस बिल पर राज्यसभा में चर्चा के दौरान भाजपा के अविनाश राय खन्ना, बसपा के नरेन्द्र कुमार कश्यप, कांग्रेस के डा. ईएम नाच्चियप्पन, केएन बालगोपाल तथा एम. राम जोयस आदि सदस्यों ने आशंका जताई है कि इस विधेयक में थानाध्यक्ष को जिस प्रकार से अधिकार सौँपे गये हैं उनका दुरुपयोग होने की संभावना अधिक रहेंगी। थाना स्तर के पुलिस अधिकारियों के भ्रष्टाचार के मामलों और आरोपियों को थर्ड डिग्री का प्रयोग करके निर्दोष को भी आरोपी के दायरे में लाने जैसी घटनाएं किसी से छिपी नहीं हैं। इसलिए इस विधेयक में ऐसा प्रावधान शामिल करने की भी गुंजाइश हो सकती थी, जिससे इस कानून का दुरुपयोग न हो सके। बसपा सांसद एवं अधिवक्ता नरेन्द्र कश्यप का तो कहना है कि पुलिस को अब वारंट की जरूरत नहीं होगी तो वह जिसे चाहेगी अपनी मनमानी से गिरफ्तार करने का काम करेगी भले ही वह निर्दोष ही क्यों न हो। कश्यप ने आशंका जताई कि इस विधेयक में समाज के हर व्यक्ति को सस्ता और सुलभ न्याय दिलाने के बजाए सभी अधिकार पुलिस को सौंप दिये गये, जिससे मानवाधिकारों का हनन बढ़ने की संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकेगा। संसद में पारित इस विधेयक में सीपीआरसी के अनुच्छेद 21 कहता है कि किसी भी व्यक्ति के जीवन के अधिकार को किसी प्रकार से प्रभावित न किया जाए, लेकिन पुलिस को बिना वारंट के गिरफ्तार करने के अधिकार मिलने से यह अनुच्छेद प्रभावित नहीं होगा, इसलिए संशोधित विधेयक में ही थाने की पुलिस को दी गई इस शक्ति पर एक निगरानी अधिकारी की नियुक्ति करने का प्रावधान करना जरूरी होना चाहिए था और वहीं हिरासत में लिये जाने वाले व्यक्ति की पूरी प्रक्रिया में वीडियों व आडियो ग्राफी को अनिवार्य बनाये जाने की जरूरत थी। वरिष्ठ अधिवक्ता कमलेश कुमार शर्मा का कहना है कि बिना किसी वारंट के पुलिस को गिरफ्तार करने के दिये गये अधिकारों से पुलिस उत्पीड़न और भ्रष्टाचार जैसे मामलों में बढ़ोतरी होगी। उनका कहना है कि संशोधन के बावजूद भी दंड प्रक्रिया संहिता विधेयक के दुरुपयोग की संभावनाओं को रोकने का कोई प्रावधान न होने से आम जनता में भी पुलिस के खौप के भय की भावना पनपने की भी संभावना रहेगी।
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