जाति जनगणना कराने पर सरकार ने लगाई मुहर
ओ.पी. पाल
आखिर केंद्र सरकार ने विभिन्न राजनीतिक दलों की चली आ रही मांगों पर गौर करते हुए जातिगत आधारित जनगणना कराने की प्रक्रिया को हरी झंडी दे दी है। जातिगत आधारित जनगणना कराने के प्रस्ताव को गुरुवार को यहां केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में मंजूरी प्रदान कर दी है। भारत में 1931 के बाद से यह ऐसा पहला मौका होगा जब जाति के आधार पर आबादी गिनी जाएगी।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में गुरुवार को हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में जाति आधारित जनगणना कराने को मंजूरी दी गई है। बैठक में इस प्रस्ताव पर लगाई गई मुहर के बाद केंद्रीय गृह मंत्री पी चिदंबरम ने संवाददाताओं को संबोधित करते हुए कहा कि जाति आधारित जनगणना वर्तमान में चल रही सामान्य जनगणना की प्रक्रिया से स्वतंत्र होगी जो वर्ष 2011 यानि अगले साल जून से शुरू होकर सितंबर तक चलेगी। चिदंबरम ने उम्मीद जताई कि कैबिनेट के इस फैसले से सभी पक्ष संतुष्ट होंगे। सपा, बसपा, और जद-यू जाति आधारित जनगणना के लिए सरकार पर दबाव बनाए हुए थे। उधर मुख्य सत्ता धारी पार्टी कांग्रेस और मुख्य विपक्षी दल भाजपा में इस बारे में नेताओं के बीच आमराय नहीं थी। उन्होंने बैठक के इस फैसले की जानकारी देते हुए कहा कि सरकार के इस फैसले से सामान्य जनगणना और बायोमीट्रिक प्रक्रिया प्रभावित नहीं होगी। चिदंबरम ने कहा कि आबादी की गणना के बाद जाति आधारित जनगणना चरणबद्ध ढंग से संचालित होगी। यह प्रक्रिया अगले साल मार्च तक पूरी कर ली जाएगी। इससे पहले जाति आधारित जनगणना 1931 में हुई थी। आजादी के बाद इस तरह की जनगणना नहीं कराने का नीतिगत फैसला लिया गया था। चिदंबरम जाति आधारित जनगणना को आबादी की गणना के साथ मिलाने के सवाल पर मौन रहे। समझा जाता है कि इस मुद्दे पर गठित मंत्रीसमूह के सुझावों पर विचार के बाद सरकार ने यह फैसला किया है। जातिगत आधारित जनगणना के बारे मेंं वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं से भी विचार-विमर्श किया था। जाति आधारित जनगणना की मांग कर रहे राजनीतिक दलों के संदर्भ में गृह मंत्री ने कहा कि इसमें हर नजरिए को शामिल किया गया है और समयसारिणी तैयार की गई है। उन्होंने उम्मीद जताई कि यह संतोषजनक व्यवस्था होगी। राजद, सपा और जद-यू जैसी पार्टियों ने इस मुद्दे पर संसद के बजट सत्र और मानसून सत्र के दौरान कार्यवाही बाधित की थी। ये पार्टियां जाति आधारित जनगणना की मांग कर रही थीं। गौरतलब है कि वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी ने हाल ही में संपन्न हुए संसद के मानसून सत्र के दौरान लोकसभा को बताया था कि सभी राजनीतिक दलों ने जनगणना में जाति को शामिल करने के मुद्दे पर सहमति दे दी है और अब इस मुद्दे पर कोई आशंका पालने की आवश्यकता नहीं है। चिदंबरम ने कहा कि जाति आधारित आंकडे़ एकत्र करने के लिए कानून मंत्रालय के साथ सलाह मशविरा कर एक उचित कानूनी ढांचा तैयार किया जाएगा। इस प्रक्रिया में अतिरिक्त लागत आएगी, जिसका आकलन अलग बैठक में किया जाएगा। भारत के महापंजीयक और जनगणना आयुक्त जाति आधारित जनगणना का कामकाज देखेंगे। केन्द्र सरकार एक विशेषज्ञ समूह का गठन करेगी। महापंजीयक और जनगणना आयुक्त जाति और जनजातियों का ब्यौरा विशेषज्ञ समूह को सौंपेंगे। वहीं कहा गया कि अनुसूचित जाति एवं जनजाति के अलावा 2011 की जनगणना में जाति को भी शामिल करने की संसद के भीतर और बाहर उठी मांग के आलोक में गृह मंत्रालय ने मई 2010 में केन्द्रीय मंत्रिमंडल को इस संबंध में एक नोट सौंपा था। हालांकि भारत में पहली बार 1872 में जनगणना हुई थी और उस वक्त भी लोगों से उनकी जाति पूछी गई थी। भारत में जातिगत भेदभाव गैरकानूनी है लेकिन फिर भी गांवों में ये प्रथा जारी है। भारत में आम जनगणना इसी अप्रैल में शुरू की गई है। इसके अलावा भारत के हर नागरिक को अलग पहचान पत्र देने की बात है, जिसके लिए उनकी तस्वीर और अंगुलियों के निशान (बायोमैट्रिक्स) जमा किए जाएंगे, लेकिन यह काम जनगणना से अलग किया जाएगा। जनगणना में करीब 20 लाख 50 हजार अधिकारी भारत की 1.2 अरब आबादी को धर्म, लिंग, नौकरी और शिक्षा के आधार पर गिना जाता है।
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