हर चौथे वर्ष होने वाले राष्ट्रमंडल खेल की पृष्ठभूमि क्या है और इसकी परंपरा कैसे शुरू हुई जिससे राष्ट्रमंडल खेलों का आयोजन किया जाता है। यदि एकदम साधारण शब्दों में कहा जाये तो एक तरह से राष्ट्रमंडल खेल ब्रिटेन के गुलाम रहे देशों का खेल है या कुछ यूं कहा जा सकता है कि वर्षो पहले ब्रिटेन की औपनिवेश रहे देशों के परिचायक हैं राष्ट्रमंडल खेल। यही कारण है कि राष्ट्रमंडल खलों की एक परंपरा है कि क्वीन्स बेटन रिले यानि यानी एक मशाल दौड़, जो ब्रिटेन में क्वीन एलिजाबेथ के महल बकिंघम पैलेस से वहां की महारानी की उपस्थिति में शुरू होती है और राष्ट्रमंडल देशों से होते हुए उस देश में जाती हैं जहां राष्ट्रमंडल खेलों का आयोजन हो रहा होता है।
राष्ट्रमंडल खेल दुनिया में हर चार साल में होने वाले सबसे बड़े खेलों में से एक माना गया है, जिसमें आस्ट्रेलिया, कनाडा, अफ्रीका के कुछ देश, भारत, पाकिस्तान सहित दुनिया के 54 राष्ट्रकुल देशों की टीमें हिस्सा लेती हैं। इन प्रतियोगिताओं में कुछ ऐसे भी खेल हैं जो केवल राष्ट्रकुल देशों में ही खेले जाते हैं जैसे कि लॉन बॉल्स, रगबी सेवन्स, नेट बॉल, मुक्केबाजी, निशानेबाजी, एथेलेटिक्स आदि खेलों के आयोजन नियमों से जुडे सभी काम अंतरार्ष्ट्रीय राष्ट्रमंडल खेल संघ करती है, जिसका मुख्यालय भी लंदन में है। अब सवाल उठता है कि राष्ट्रमंडल खेल होते क्यों हैं? इसकी पृष्ठभूमि में मिली जानकारियों के मुताबिक 1891 में पहली बार राष्ट्रमंडल खेलों का प्रस्ताव रखा गया था ताकि ब्रिटिश कॉलोनी के देश एक दूसरे को जान सकें। हर चौथे वर्ष में इन खेलों के आयोजन का प्रस्ताव रखा गया था, जिसका मकसद यही रहा कि इन खेलों के जरिए दुनिया के अन्य देश और वहां के लोग ब्रिटिश राज की सद्भावना के बारे में जान सके। पिछले दिनों ही द टाइम्स अखबार में रेवरेन्ड एसले कूपर के प्रकाशित एक लेख ऐसे प्रस्ताव का जिक्र किया गया कि हर चार साल में इस तरह का एक आयोजन किया जाए। इस प्रस्ताव के पारित होने के बाद वर्ष 1911 में किंग जॉर्ज पंचम के राज्याभिषेक के मौके पर पहली बार ब्रिटिश कॉलोनी के देशों की एक खेल प्रतियोगिता आयोजित की गई, जिसमें मुक्केबाजी, कुश्ती, तैराकी सहित अन्य प्रतियोगिताएं थीं। इन खेलों में उस समय आस्ट्रेलिया, कनाडा, दक्षिण अफ्रीका और ब्रिटेन ने हिस्सा लिया था। लेकिन ब्रिटिश अंपायर गेम्स नाम से पहली बार वर्ष 1930 के पहले कॉमनवेल्थ खेलों का आयोजन किया गया। फिर वर्ष 1970 में इसका नाम बदल कर ब्रिटिश कॉमनवेल्थ गेम्स किया गया। इन खेलों को लेकर चलती बहस के बाद आखिर वर्ष 1978 में इसे पहली बार राष्ट्रमंडल खेल यानि कॉमनवेल्थ गेम्स के नाम से आयोजित किया गया। हालांकि वर्ष 1930 के राष्ट्रकुल खेलों में ही पहली बार महिलाओं ने तैराकी प्रतियोगिता में हिस्सा लिया और 1934 में फिर कुछ एथलेटिक खेलों में भी महिलाओं ने हिस्सा लेना शुरू किया। धीरे-धीरे राष्ट्रमंडल खेलों में खेलो और खिलाड़ियों के वर्गो में भी विस्तार होता गया। राष्ट्रमंडल खेलों की परंपरा में क् वीन्स बेटन रिले यानि मशाल दौड़ को क्वीन एलिजाबेथ के महल बकिंघम पैलेस से महारानी की उपस्थिति में शुरू किया जाता है। यह भी एक दिगर बात है कि 1930 से 1950 के बीच एक ही व्यक्ति इस रेस का प्रतिनिधित्व करता रहा था, लेकिन फिर 1958 से एक रिले रेस होने लगी जो बकिंघम पैलेस से उद्घाटन समारोह तक होती थी। इस मशाल पर सभी खिलाड़ियों को महारानी की शुभकामनाएं होती हैं। मुश्किलों के बाद बदले खेलों के मायने
राष्ट्रमंडल खेलों की इस परंपरा में एक समय ऐसा भी आया जब द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान इन खेलों का आयोजन नहीं हो पाया था और वर्ष 1942 में कनाडा के मॉन्ट्रियाल में होने वाले खेल रद्द करना पड़ा था। उसके बाद 1986 में कुछ अफ्रीकी और कैरेबियाई देशों ने रंगभेद के खिलाफ कदम नहीं उठा पाने के विरोध में राष्ट्रमंडल खेलों का बहिष्कार किया था, लेकिन उस मुश्किल दौर के बाद से राष्ट्रमंडल खेलों का लगातार आयोजन हो रहा है। वर्ष 1998 में मलेशिया के कुआलालंपुर में हुए राष्ट्रकुल खेलों में 10 की बजाए 15 खेल शामिल किए गए। ये पहली बार था जब कुछ टीम इवेन्ट्स को राष्ट्रमंडल खेलों में शामिल किया गया। आस्ट्रेलिया और कनाडा में राष्ट्रमंडल खेल सबसे ज्यादा चार बार और न्यूजीलैंड में तीन बार आयोजित किए गए। भारत के लिए राष्ट्रकुल खेल आयोजित करने का ये पहला मौका है। इन खेलों में शामिल होने वाले देशों में एक ओर तो भारत, आस्ट्रेलिया, कनाडा जैसे बड़े देश हैं तो दूसरी ओर तुवालु और नाउरु जैसे देश भी हैं जिनके नाम दुनिया में बहुत कम लोगों ने सुने होंगे। फिलहाल मैडागास्कर, सूडान, अल्जीरिया जैसे देश हैं जो राष्ट्रकुल देशों के समूह में शामिल होना चाहते हैं जबकि वे कभी ब्रिटेन की कॉलोनी नहीं रहे हैं। अब जब 19वें राष्ट्रमंडल खेल भारत की राष्ट्रीय राजधानी में होने जा रहे हैं, तो द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से दुनिया की राजनीति का भूगोल भी बदल गया और इसी कारण राष्ट्रमंडल देशों और खेलों के मायने भी बदल चुके हैँ।
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