ओ.पी. पाल
राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारियों में व्यापक स्तर पर अभियान चलाने के बावजूद दिल्ली की सरकार भिखारियों को दिल्ली से बाहर करने में विफल रही है, इसलिए वैकल्पिक व्यवस्था को अंजाम देने में जुटी सरकार राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान इन भिखारियों को पार्को में कैद करने की योजना बना रही है, ताकि राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान दिल्ली की छवि खराब नहीं हो सके।
केंद्र और दिल्ली सरकार भिखारियों को लेकर चिंतित है कि राष्ट्रमंडल के दौरान भिखारियों के सड़कों पर रहने से राष्ट्रीय राजधानी की छवि खराब हो सकती है। इसी लिहाज से राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान भिखारियों और बेसहारों को सरकार ढके हुए पार्कों में 'छुपा' देने की योजना को अंजाम देने जा रही है? ताकि इन खेलों के दौरान दिल्ली आने वाले विदेशी मेहमान और अपनी जनता उन्हें न देख सके। इन पार्कों को टेंट और कॉमनवेल्थ गेम्स के बैनरों से ढंका जाएगा, ताकि बाहर से ये खूबसूरत दिखाई दें। दिल्ली सरकार के एक अधिकारी की माने तो सरकार ने ऐसे कुछ जगहों की तलाश की है जहां भिखारियों और बेसहारों को राष्ट्रमंडल खेलों के खत्म होने तक बसाया जा सकता है। इन अस्थायी शिविरों में भिखारियों को रोकने के लिए सरकार उन्हें भोजन और जरूरत की दूसरी बुनियादी चीजें मुहैया कराने पर विचार कर रही है। दिल्ली सरकार के एक अधिकारी ने यह भी कहा कि यह सुनिश्चित करने के लिए वे खुले में शौच वगैरह न करें सरकार मोबाइल टॉयलेट का भी इंतजाम करेगी। गौरतलब है कि दिल्ली सरकार ने पहले इन भिखारियों और बेघर, बेसहारा लोगों को उनके गृह राज्यों में भेजने की कोशिश की थी। लेकिन जब सरकार की यह कोशिश रंग नहीं ला पाई तो उन्हें पार्कों में बने कैंपों में 'छुपाने' की योजना बनाई गई है। सूत्रों के अनुसार सरकार की कोशिश होगी कि पार्कों को सुंदर बैनरों और कॉमनवेल्थ खेलों के बड़े आकार के शुभंकर लगाकर ढंक देंगे, जिससे ऐसे पार्क अस्थायी बसेरे बन जाएंगे।भिखारियों की संख्या पर एक नजर
दिल्ली में वर्ष 2007 में संसद में पेश आंकड़ों के मुताबिक करीब 58, 570 भिखारी हैं। दिल्ली में भीख मांगने पर बॉम्बे प्रिवेंशन आफ बेगिंग एक्ट 1959 के तहत गैरकानूनी है। समय-समय पर इस कानून के सहारे भिखारियों के खिलाफ कार्रवाई के जरिए सरकार इस समस्या को रोकने की बात करती है। केंद्र सरकार के सामाजिक न्याय एवं सशक्तीकरण मंत्रालय द्वारा भिखारियों को समाज की मुख्यधारा में शामिल करने के लिए तकनीकी और वोकेशनल शिक्षा दिलाकर रचनात्मक कामों में लगाने की योजना 1992-93 में बनाई गई थी, जिसे वर्ष 1998-99 में बंद कर दिया गया था। ऐसे में भिखारियों को छुपाने के लिए दिल्ली सरकार के सामने एक बड़ी समस्या बनी हुई है।
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