ओ.पी. पाल
राष्ट्रमंडल खेलों मे हुई अनियमितताओं की जांच करने वालों में शामिल रेलवे सतर्कता विभाग के प्रमुख वी. रामाचन्द्रन स्वयं धोखाधड़ी के आरोप में फंसते नजर आ रहे हैं। सीवीसी पद पर रह चुके रामाचन्द्रन पर आरोप है कि उन्होंने एक अधिकारी को फंसाने के लिए सिर्फ एक झूठा आरोप पत्र ही तैयार नहीं किया, बल्कि फर्जी दस्तावेजों के जरिए उक्त अधिकारी को अदालत में भी घसीटने में कामयाब रहे।देश में आजकल घोटालों और भ्रष्टाचार की चर्चाओं के दौर में जब चौतरफा बवाल मचा है तो भ्रष्टाचार पर निगरानी रखने वाले संवैधानिक संगठनों के प्रमुखों पर ही भ्रष्टाचार और धोखाधड़ी के मामले सामने आने लगे हैं। अभी केंद्रीय सतर्कता आयोग के प्रमुख पीजे थॉमस की नियुक्ति को लेकर घिरी केंद्र सरकार का मामला गूंज ही रहा था कि ऐसा ही एक नाम वी.रामाचन्द्रन का सामने आ गया जो भ्रष्टाचार के मामलों पर निगरानी के लिए रेलवे सतर्कता विभाग के प्रमुख हैं और वे सीवीसी भी रह चुके हैं। सूत्रों के अनुसार रेलवे विजिलेंस के प्रमुख रामाचन्द्रन पर आरोप है कि उन्होंने एक अधिकारी को फंसाने के लिए ना सिर्फ झूठी चार्जशीट तैयार की, बल्कि फर्जी दस्तावेजों का सहारा लेकर रामचंद्रन अधिकारी को कोर्ट में घसीट ले गए हैं। सबसे बड़ी आश्चर्य की बात यह भी है कि रामाचन्द्रन कुछ समय पहले तक राष्ट्रमंडल खेल घोटाले की जांच में भी लगाये गये थे। रेलवे सतर्कता विभाग के प्रमुख के खिलाफ धोखाधड़ी का मामला उस समय उजागर हुआ, जब आरटीआई के जरिये पता चला कि रेलवे के ही एक अधिकारी डी.के. श्रीवास्तव को फंसाने के लिये रामचन्द्रन ने फर्जी कागजात का सहारा लिया। डीके श्रीवास्तव के खिलाफ आरोप था कि इन्होंने रेलवे द्वारा अधिकृत कंपनियों से पेंट की खरीदारी नहीं की। इसी आधार पर उनके खिलाफ चार्जशीट करने की मंजूरी ली गई लेकिन आरोप पत्र में इस बात का जिक्र ही नहीं था। आखिरकार श्रीवास्तव ने आरटीआई के तहत इस बात का पता लगाया कि पेंट की खरीद के लिए कोई अधिकृत कंपनी थी ही नहीं। इस मामले की जांच कर रहे महाप्रबंधक ने भी अपनी रिपोर्ट में लिखा कि चूंकि श्रीवास्तव भारतीय सप्लाई सर्विस कैडर से बाहर के अधिकारी थे, लिहाजा जानबूझकर उन्हें फंसाने की कोशिश की गई। एक ही दिन में उनके खिलाफ विजिलेंस के 14 मामले दर्ज किए गए थे और इसमें से कुछ मामलों में तो किसी और ने नहीं यूपीएससी तक ने टिप्पणी की थी कि उन्हें जानबूझकर फंसाया जा रहा है। श्रीवास्तव ने अपनी शिकायत रेल मंत्री ममता बनर्जी और रेलवे बोर्ड के बड़े अधिकारियों तक को भेजी, लेकिन किसी ने भी कोई कार्रवाई नहीं की।
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