शनिवार, 1 जनवरी 2011

घोटालों से चर्चित रहा वर्ष 2010

अंतर्राष्ट्रीय  स्तर पर बढ़ती साख पर भी लगा बट्टा
ओ.पी. पाल
देश के लिए नई उम्मीदों को लेकर वर्ष 2011 शुरू हो गया है लेकिन बीता वर्ष 2010 कई बहुचर्चित घोटालों के कारण देश की छवि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी कलंकित कर गया, जिसमें एक करोड़ नहीं, बल्कि दो लाख करोड़ से भी ज्यादा वित्तीय घोटालों ने भारत की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ती हुई साख पर बट्टा लगाने का काम किया है। चाहे राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन में हुई अनियमितता या फिर 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन घोटाला अथवा आईपीएल तथा आदर्श सोसायटी घोटाला ही क्यों न हो, सभी में देश को नई पहचान के तौर पर कलंक ही मिला है। बहुचर्चित 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन घोटाले में कैग की रिपोर्ट में सरकार को हुए 1.76 लाख करोड़ रुपये के खुलासे ने तो साबित कर दिया है कि यह आजाद भारत का सबसे बड़ा घोटाला है जिसने संसद में भी एक काला इतिहास लिख दिया जिसकी जांच के लिए विपक्ष की संयुक्त संसदीय समिति के गठन की मांग के सामने संसद का पूरा शीतकालीन सत्र ही बिना कामकाज के संपन्न हुआ है। पिछले दिनों ट्रांसपरेंसी इंटरनेशन की जारी एक रिपोर्ट वर्ष 2010 के दौरान चर्चा में आए घोटालों और भ्रष्टाचार के मामलों पर सटीक ही बैठते नजर आते हैं जिसमें दुनिया के सबसे भ्रष्ट देशों में भारत को नौंवे स्थान पर आंका गया है। इस रिपोर्ट में तो यहां तक कहा गया है कि बीते साल में 54 प्रतिशत भारतीयों ने अपना काम करवाने के लिए रिश्वत दी। इसी साल के दौरानं 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन, राष्ट्रमंडल खेल आयोजन घोटाला, आईपीएल, आदर्श सोसायटी घोटाले ने भारत की इस छवि को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कलंकित किया है। विशेषज्ञ तो मानते हैं कि बीते साल में इन सभी घोटालों में दो लाख करोड़ से भी ज्यादा वित्तीय घोटाला हुआ है। इतने बड़े आर्थिक घोटाले की राशि से तो भारत के विकास के पहिये देश की साख को नई पहचान देने के लिए पंख ही लगा देते, लेकिन नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की संसद में पेश की गई रिपोर्ट ने तो संचार क्रांति को ही दागदार साबित कर दिया। यानि 2जी स्पेक्ट्रम का आवंटन घोटाले में 1.76 लाख करोड़ रुपये के अनुमानित राजस्व के नुकसान से सरकार की मुश्किलें भी बढ़ी हैँ। भले ही इस घोटाले के चलते दूरसंचार मंत्री पद से ए. राजा को इस्तीफा देना पड़ा हो, लेकिन यह घोटाला संचार क्रांति के भविष्य पर भी सवाल खड़े कर गया है। रक्षा के क्षेत्र में भी आदर्श सोसायटी घोटाले ने एक कलंक लगा दिया जिसमें कारगिल के शहीदों को छला गया है, हालांकि इस मामले में महाराष्ट्र  के मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण को अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी। देश की छवि इससे ज्यादा भला क्या खराब होगी, जब खेलों के खेल में भी भ्रष्टाचार और बड़े पैमाने पर अनियमितताएं सामने आई हों। देश को क्रिकेट मक्का बनाने की कवायद में आईपीएल का घोटाला हो या फिर अंतर्राष्ट्रीय खेल प्रतियोगिता के रूप में राष्ट्रमंडल खेलों की मेजबानी जिसमें भारत की फजीहत हुई है। आईपीएल के करीब 1500 करोड़ के घोेटाले में जहां प्रमुख ललित मोदी सामने आए हैं तो राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन में करीब आठ करोड़ के घोटाले में आयोजन समिति के अध्यक्ष सुरेश कलमाड़ी घोटालों की प्रमुख धुरी रहे। यही नहीं इस बीते साल में भ्रष्टाचार और घोटालों की जांच करने वाली संवैधानिक एजेंसियां भी सवालो के घेरे में सामने आई हैं जिसके कारण सीधे यूपीए सरकार कठघरे में खड़ी हुई है। मामला राष्ट्रमंडल खेलों में अनियमितताओं को उजाकर करने वाली केंद्रीय सतर्कता आयोग का है जिसके प्रमुख पद पर ऐसे व्यक्ति की नियुक्ति करके केंद्र सरकार स्वयं मुश्किल में फंसी हुई जो स्वयं भ्रष्टाचार के मामले में आरोपित रहा है। बीते साल में ही भारतीय चिकित्सा परिषद के चेयरमैन केतन देसाई और अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष बूटा सिंह के सुपुत्र भ्रष्टाचार के आरोप में पकड़े गये हैं। सीवीसी पद पर नियुक्त किये गये पीजे थॉमस पर सुप्रीम कोर्ट टिप्पणी कर चुका है। इसी प्रकार माने तो इसी साल के अंत में भारत की सबसे बड़ी जांच एजेंसी सीबीआई भी चर्चित आरुषी हत्याकांड की जांच में विफल होने पर आजकल चर्चाओं का केंद्र बनी हुई है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें