बुधवार, 12 जनवरी 2011

बंटवारे की याद कर छलकते हैं आंसू...

ओ.पी. पाल
देश की आजादी के लिए महात्मा गांधी के अंहिसा और शांति के मूल्यों को दुनियाभर में जीवंत रखने के लिए विदेशों में रहे रहे भारतवंशियों की सक्रीय भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। खासकर कनाडा के मोंट्रीयल शहर में बसे सूरज सदन जिन्होंने जीवंत स्कैच और चित्रकारी के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी अलग ही पहचान बनाई है जिनका मकसद बस दुनियाभर में चित्रकारी के जरिए महात्मा गांधी शांति और अहिंसा के संदेश का प्रसार करना है, लेकिन आज भी सूरज सदन की आंखों में बंटवारे के समय की विभीषिका याद आते ही आंसू छलक जाते हैं।आजादी के बाद वर्ष 1970 से मोंट्रियल शहर कनाडा में बसे 70 वर्षीय प्रवासी भारतीय सूरज सदन जब आठ साल के थे तो उन्हें गांधी जी के दर्शन हुए थे और इसी से प्रेरित होकर सूरज सदन ने महात्मा गांधी व कस्तूरबा गांधी का संयुक्त चित्र बनाया और इसी चित्र को भारत सरकार ने 1969 में जारी डाक टिकट पर जारी किया। इसी वर्ष में फ्रांस ने गांधी जी की 100वीं जयंती पर पेरिस में प्रदर्शनी लगाई तो सूरज को अपने चित्रों की प्रदर्शनी लगाने के लिए आमंत्रित किया गया, इस प्रदर्शनी ने सूरज सदन के गांधी दर्शन को जीवंत किया। नौवें प्रवासी भारतीय दिवस पर राष्ट्रीय राजधानी में प्रदर्शनी के लिए दिये गये स्टाल पर सूरज सदन ने पेरिस में लगी इस प्रदर्शनी के बारे में बताया कि वहां उन्हें एक कनाडाई दूतावास का एक अधिकारी मिला और जो मेरे से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने मुझे कनाडा में बसने का न्यौता दिया और वह 1970 से ही कनाडा के मोंट्रियल शहर में अपने परिवार के साथ रह रहे हैं। उन्होंने वहीं से न्यूयार्क, लंदन, मोंट्रियल, चेन्नई, क्यूबा, वाशिंगटन, लार्डस, पेरिस आदि दर्जनों देशों में चित्र प्रदर्शनी लगाई तथा गांधी जी के संदेश को प्रसारित कर रहे हैँ जिनके साथ अब उनके बच्चें में इस मुहिम में जुटे हुए हैं। उन्होंने बताया कि उनकी पत्नी फ्रेंचाईज है और वह स्वयं भी हिंदी, उर्दू, अंग्रेजी, फ्रेंचाईज तथा पंजाबी भाषाओं में निपुण हैं, सूरज सदन ने मोंट्रियल में फाउंडेशन इंटरनेशनल महात्मा गांधी बनाई हुई है। सूरज सदन ने इस प्रकार की चित्रकारी की प्रेरणा का जिक्र करते हुए कहा कि 1956 में बाल दिवस के मौके पर उन्होंने 14 साल की उम्र में पंडित जवाहरलाल नेहरू से मुलाकात की तथा उन्हें उनका चित्र बनाकर भेंट किया, लेकिन अखबार में छपे फोटो से बनाये गये फोटो भेंट करने पर उन्हें एक तरह से फटकारा तथा हौंसला दिया कि यदि वह जीवंत फोटो बनाओगे तो आप दूसरा जीवन बनाएंगे। तभी उन्होंने अपने सचिव से आटोग्राफ करके अपना फोटो दिलाया। गांधी से आठ साल की उम्र मं उनकी मुलाकात तब हुई जब वे दिल्ली के किंग्सवे कैंप में बंटवारे के बाद शरणार्थियों से मिलने आए, वे भी शरणार्थियों में से एक थे। उन्होंने हरिभूमि संवावदाता को बताया कि नेहरू जी के बाद उनकी मुलाकात तत्कालीन राष्टÑपति राजेन्द्र प्रसाद और जाकिर हसैन से भी हुई जिन्होंने अपने आटोग्राफ युक्त फोटो देकर उन्हें इस चित्रकारी के लिए प्रोत्साहित किया। डा. राजेन्द्र प्रसाद ने तो उन्हें स्कैच और कला स्कूल में प्रशिक्षण के लिए भी उन्हें मदद प्रदान की। अभी तक सूरज महात्मा गांधी, नेल्सन मंडेला, जवाहरलाल नेहरू, राजेन्द्र प्रसाद, जाकिर हुसैन, दलाई लामा, हिलेरी किलंटन जैसी सैकड़ो अंतर्राष्ट्रीय हस्तियों के स्कैच चित्र बनाकर अपनी कला का लोहा मनवा चुके हैँ। गांधी जी के इस अनुयायी जहां अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी अलग पहचान बना चुके हैं वहीं जब वह आजादी के बाद बंटवारे के समय हुए गदर की याद करते हैं तो उनकी आंखों में आंसू आ जाते हैं जो पाकिस्तान के हिस्से में गये क्वेटा से नंगे पैर चलकर भारत आये थे, लेकिन उन्हें भारत जैसी संस्कृति और सभ्यता वाले देश को आजादी दिलाने वाले महापुरुषों और आजादी की लड़ाई का नेतृत्व करने वाले महात्मा गांधी के शांति, अहिंसा तथा सत्य-निष्ठा और सभी आदर के उच्चतम मूल्यों को दुनियाभर के कोने-कोने तक पहुंचाने की हसरत रखते हैँ।

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