रविवार, 5 दिसंबर 2010

संसद में गतिरोध बनाम जेपीसी!

विपक्ष पर कोई भी दांव खोल सकती है सरकार
ओ.पी. पाल
बहुचर्चित 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन घोटाले पर आखिर कांग्रेसनीत सरकार संयुक्त संसदीय समिति का गठन नहीं करेगी? इस सवाल का जवाब यही है कि संसद में पिछला इतिहास इस बात का गवाह रहा कि बोफोर्स कांड पर 45 दिनों तक ठप रही संसद की कार्यवाही के बावजूद विपक्ष के शोर शराबे के बाद ही ना..ना.. करते सत्तारूढ़ सरकार जेपीसी गठित करने पर राजी हुई थी। बोफोर्स कांड ही नहीं ऐसे कई मामले रहे, जिसमें जेपीसी का गठन करना पड़ा, लेकिन संसद के शीतकालीन सत्र के पहले 16 दिन की दोनों सदनों में ठप रही कार्यवाही को सुचारू करने के लिए यूपीए सरकार कौन सा दांव खोलती है इसी का पूरे देश को इंतजार है।
संसद के शीतकालीन सत्र शुरू होने से यूपीए सरकार जानती थी कि 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले, आदर्श सोसायटी तथा राष्ट्रमंडल खेलों में भ्रष्टाचार के मुद्दे पर विपक्ष उसे घेरने की तैयारी कर चुका है। विपक्ष ने इस हमले से बचने के लिए संसद के शीतकालीन सत्र शुरू होने के बाद 2जी स्पेक्ट्रम पर कैग की रिपोर्ट में खुलासे पर गंभीर सरकार ने केंद्रीय संचार मंत्री ए. राजा से इस्तीफा ले लिया था, लेकिन इतने पर ही विपक्ष संतुष्ट नहीं था, जिसमें संयुक्त संसदीय समिति का गठन करने की मांग पर समूचा विपक्ष ऐसा एकजुट हुआ कि कांगे्रसनीत यूपीए सरकार के सभी दांव विपक्ष की एकता को तोड़ने में विफल साबित हो रहे हैं। जहां तक विपक्ष की जेपीसी की मांग है उसे देश की जनता को भी समर्थन मिल रहा है जिसमें पौने दो लाख करोड़ रुपये के घपले का सवाल है। इसलिए विपक्ष को भी बल मिला हुआ है। जेपीसी की मांग को लेकर प्रमुख विपक्षी दल के साथ एकजुट अन्य दल को भी इस बात का भय है कि यदि वे पीछे हटे तो उनके दल की राजनीति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा जो बिहार के विधानसभा चुनाव के नतीजों से जाहिर हो चुका है। यूपीए सरकार द्वारा जेपीसी के गठन से इंकार करने का अडियल रवैया भी विपक्ष के पक्ष में जा रहा है। यह यूपीए भी समझ रहा है जिसके लिए कई सर्वदलीय बैठक बुलाकर सरकार ने बीच का रास्ता निकालने का भी प्रयास किया। राजनीतिकार मानते हैं कि विपक्ष की एकता को तोड़ने के लिए यूपीए सरकार सदन में जिस प्रकार शोरशराबे में कुछ काम कराने का प्रयास कर रही है वह इस समस्या का हल नहीं है और ऐसे में सदन में विपक्ष के कोई मायने नहीं होते। राजनीतिक विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि संसद में कई ऐसे मामले उठे जिनके लिए जेपीसी की मांग को लेकर विपक्ष के हंगामे के बाद ही सरकार जेपीसी बनाने पर मजबूर हुई है और उन पिछले मामलों की अपेक्षा 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला अत्यंत महत्वपूर्ण है। संसद के मौजूदा सत्र में जेपीसी की मांग को लेकर 16 दिन की कार्यवाही ठप रही है और अभी शीतकालीन सत्र 13 दिसांर तक चलना है, लेकिन विपक्ष के जेपीसी की मांग पर अड़िग होने के मुकाबले यूपीए सरकार भी जेपीसी के गठन न करने की जिद पर अड़ी हुई है। जिस तरह का सत्तारूढ़ सरकार और विपक्ष की एकजुटता के बीच घमासान चल रहा है उसे देखते हुए नहीं लगता कि संसद के सदन अगले दिनों में भी कार्यवाही के लिए शांत रहेंगे? और यह कहना तो उचित नहीं होगा कि इस हंगामे से संसद की बाधित कार्यवाही के मामले में पिछले इतिहास को दोहराएगी, क्योंकि पिछला इतिहास तो इसी बात का गवाह है कि शोर शराबे के बाद सरकार जेपीसी का गठन करने पर मजबूर हुई है। जहां तक संसद में जेपीसी पर शोर शराबे का सवाल है उसमें सासे ज्यादा दिन 45 दिनों तक बोफोर्स घोटाला मामले में चले शोर शराबे और व्यवधान के बाद सरकार ने जेपीसी की घोषणा की थी। इसी प्रकार हर्षद मेहता से जुड़े प्रतिभूति एवं बैंक घोटाला मामले में जेपीसी की मांग को लेकर 17 दिन तक संसद की कार्यवाही बाधित रही, तो केतन पारिख से जुड़े शेयर घोटाला मामले में जेपीसी की मांग पर 15 दिन तक संसद की कार्यवाही बाधित होने के बाद जेपीसी बनानी पड़ी है। जेपीसी को लेकर ठप संसद के ठप रहने के इतिहास में और भी कई पृष्ठ हैं जिनमें तत्कालीन संचार मंत्री सुखराम के मामले में एक पखवाड़े से ज्यादा दिन तक संसद की कार्यवाही विपक्ष के हंगामे की भेट चढ़े हैं। इन सभी मामलों में शोर शराबे के बाद सरकार को जेपीसी का गठन करना पड़ा है, लेकिन मौजूदा संसद सत्र में यूपीए सरकार का नेतृत्व कर रही कांग्रेस पार्टी केवल विपक्ष से संसद चलने की अपील कर रही है या फिर वह विपक्ष की एकता को तोड़ने के दांव तलाश रही है। अब देखना है कि अगले दिनों में कांग्रेसनीत यूपीए विपक्ष के खिलाफ कौन सा दांव खोलती है या फिर जेपीसी का गठन करने को तैयार होती है?

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