बुधवार, 22 दिसंबर 2010

संसद में अब वो सांसद नहीं जो....

इतिहास में पहली बार विशुद्ध रूप में दिखे
ओ.पी. पाल
संसद में अब जमीन से जुड़े सांसदों की कमी ही शायद नागरिक सुधारों व बेहतर सेवाओं को सशक्त बनाने के बजाय कमजोर हो रही है, जहां जन प्रतिनिधियों के रूप में उद्योगपति, व्यपारी, कारोबारी या फिर बिल्डर्स ही संसद में पहुंच रहे हैं जिसके कारण उनके हितों में टकराव की संभावनाओं को कम नहीं आंका जा सकता। इस प्रकार का खुलासा नेशनल सोशल वॉच नामक संस्था ने शासन तथा विकास 2010 पर जारी अपनी सिटीजन रिपोर्ट में किया है। नागरिकों को सुधारों के माध्यम से बेहतर सेवाओं की मांग करने के लिए और अधिक सशक्त बनाने के उद्देश्य से समाज के वॉचडॉग का काम करने वाली इस संस्था ने रिपोर्ट में शासन के मुख्य चार संस्थानों संसद, न्यायपालिका, कार्यकारी एवं स्थानीय सरकार का मूल्यांकन किया है। संसद के हाल ही में संपन्न हुए शीतकालीन सत्र के दौरान भारत की संसद के इतिहास में पहली सांसदों को विषुद्ध रूप से उनके कामकाज एवं प्रदर्शन के आधार देखा गया है। नेशनल सोशल वॉच के राष्ट्रीय संयोजक अमिताभ बेहर कहते हैं कि इस जारी रिपोर्ट से सांसदों को भविष्य में बेहतर प्रदर्शन के लिए प्रेरणा प्रोत्साहन मिलना चाहिए। इस जारी रिपोर्ट सांसदों के कामकाज करने की क्षमता में भी कमी आई है, जिसका कारण है कि लोकसभा में कुल सांसदों में से 25 प्रतिशत सांसद या तो उद्योगपति हैं या फिर व्यापारी, कारोबाबरी या बिल्डर्स हैं जिनके कारण उनके हितों में टकराव की संभावना कम करके नहीं आंकी जा सकती। स्थाई समितियों की सदस्यता में भी हतों में टकराव बढ़ा है यानि समितियों की प्रणालियों के कार्यकाल, स्थाई तथा वित्तीय समितियों में सदस्यों की संख्या को कम कर 20 तक लाने के लिए कड़ाई से युक्तिकरण की बेहद आवश्यकता है। इसी कारण वित्तीय संकट, मूल्य वृद्धि तथ मौसम में आ रहे बदलावों जैसे प्रमुख मामलों में राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मुख्य नीतियों के क्रियानवयन में नई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। संसद में जमीन से जुडे प्रतिनिधियों की हो रही कमी का ही कारण है कि संसद में होने वाली चर्चाओं के दौरान विभिन्न विषयों पर सांसदों में विशेषज्ञता का न होना भी एक बड़ी खामी बनी हुई है। वहीं संसद सत्र के दौरान सांसदों की उपस्थिति पर भी सवाल उठाये गये हैं। जहां तक प्रश्नकाल का सवाल है उसके लिए रिपोर्ट में एक घटना का जिक्र किया गया जब लोकसभा में वर्ष 2009 के शीतकालीन सत्र का 30 नवंबर का वह दिन बेहद चौंकाने वाला था जब लोकसभा में जिन 28 सांसदों के तारांकित सवाल सूचीबद्ध थे तो उनमें से एक भी सांसद सदन में उपस्थित नहीं था। भारतीय संसद के इतिहास मे यह पहला मौका था, जब प्रश्नकाल पूरी तरह से धाराशायी हुआ। तभी तो लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार और राज्यसभा के सभापति मोहम्मद हामिद अंसारी ने प्रश्नकाल को अत्यंत महत्वपूर्ण करार देते हुए कड़े कदम उठाते हुए नियमों में बदलाव किये ताकि प्रश्नकाल धाराशायी न हों। लेकिन इस इतिहास की हाल ही में संपन्न हुए शीतकालीन सत्र ने पूरे सत्र में प्रश्नकाल ही नहीं सभी कामकाज को धाराशायी करने का काम किया है। इस रिपोर्ट में सर्वश्रेष्ठ कार्य करने वाले सांसदों का भी खुलासा किया है जिसमें चौदवीं लोकसभा में सर्वश्रेष्ठ कार्य करने वालों की सूची में शामिल सांसद पन्द्रहवीं लोकसभा में जगह ही नहीं बना पाए। इसका कारण यही बताया गया कि दोनों सदनों में धनाढ्य सांसदों की संख्या ज्यादा बढ़ती जा रही है।

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