ओ.पी. पाल
यदि सरकार ने पिछले तेरह साल से चल रही कवायद को अंजाम देते हुए राज्यसभा की प्रवर समिति की सिफारिशों को स्वीकार किया तो यातना निवारण विधेयक 2010 देश में होने वाली यातनाओं को रोकने में भारत को एक बड़ी कामयाबी मिल जाएगी।सबसे ज्यादा यातनाओं और मानवाधिकार के उल्लंघन की शिकायतें पुलिस के खिलाफ आती हैं। इस यातना निवारण विधेयक में संशोधन के लिए जो जिन प्रावधानों को कानून में शामिल करने की सिफारिश की गई है उसमें पुलिस हिरासत में प्रताड़ना की वजह से होने वाली मौत के दोषियों को आजीवन कारावास और मृत्युदंड की कठोर सजा के साथ ही कम से कम एक लाख रुपये के जुर्माने का प्रावधान किया गया है।
पुलिस हिरासत या अन्य संस्थानों में प्रताड़ना के दोषियों के खिलाफ सख्त सजा का प्रावधान करने के लिए राज्यसभा की प्रवर समिति के अध्यक्ष अश्विनी कुमार ने सदन में मंगलवार को यातना निवारण विधेयक 2010 की जांच रिपोर्ट अपनी कई महत्वपूर्ण सिफारिशों के साथ अपनी रिपोर्ट पेश की है। समिति द्वारा केंद्र सरकार से इस विधेयक में की गई सिफारिशों में सबसे महत्वपूर्ण सिफारिश यह है कि विधेयक में हिरासत में यातना के कारण मौत के दोषी पाये जाने वाले अधिकारी या व्यक्ति को मृत्युदंड देने का प्रावधान किया जाए। हालांक समिति ने झूठी शिकयतों की जांच का प्रावधान करने की सिफारिश है ताकि कोई निर्दोष अधिकारी या अन्य कोई इस कानून के शिकंजे में न फंस सके। यही नहीं दोषियों को कठोर सजा के साथ कम से कम एक लाख रुपये का जुर्माना देने का भी प्रावधान है। राज्यसभा की प्रवर समिति के अध्यक्ष अश्वनी का कहना है कि उन्हें उम्मीद है कि सरकार समिति की सिफारिशों को मंजूर करके विधेयक में संशोधन करके उसे पारित कराएगी, ताकि देश में चल रहे मानवाधिकार उल्लंघन और यातना के दौर का खात्मा हो सके। देशभर में पुलिस हिरासत में मौत होने के आंकड़े लगातार बढ़ने से केंद्र सरकार पिछले तेरह साल से यातना निवारण विधेयक में संशोधन करके कड़े प्रावधान करने की कवायद करती रही। देश में होने वाली मानव यातनाओं और मानवाधिकारों के उल्लंघन पर संयुक्त राष्ट ने भी चिंता जाहिर करते हुए भारत से सख्त कानून लागू करने का सुझाव दिया था। इसके लिए यूपीए सरकार ने यातना निवारण विधेयक 2010 का मसौदा तैयार करके उसे लोकसभा में इसी साल बजट सत्र के दौरान 26 अप्रैल को पुर:स्थापित किया था। इस विधेयक को राज्यसभा में 31 अगस्त को स्वीकृति के प्रस्ताव पर विधेयक की जांच करने और इस संबन्ध में की जिसे लोकसभा में 6 मई 2010 को पारित भी कर दिया गया, लेकिन उच्च सदन इस विधेयक में सख्त सजा के प्रावधान न होने के कारण हुए विरोध के कारण इसे पेश नहीं किया जा सका था। सभापति मोहम्मद हामिद अंसारी ने 31 अगस्त 2010 को इस विधेयक की जांच के लिए इसे राज्यसभा की 13 सदस्यीय प्रवर समिति को सौँप दिया था। प्रवरण समिति ने जांच करने के लिए तिहाड़ जेल में भी कैदियों से बातचीत की और अन्य पक्षों के भी विचार सुनने के बाद बिल में कड़ी सजा के प्रावधान करने की सिफारिश की है। इस प्रताड़ना निवारण विधेयक में समिति ने सरकारी शिक्षण संस्थाओं, सरकारी कंपनियों और संगठनों के कर्मचारी को लोक सेवकों के दायरे में लाने की भी सिफारिश की है। रिपोर्ट में सरकारी शिक्षण संस्थाओं, सरकारी कंपनियों और संगठनों के कर्मचारियों को शामिल करने के लिए लोक सेवकों की परिभाषा का विस्तार करने, प्रताड़ना के लिए कड़ी सजा का प्रावधान करने की और हिरासत में प्रताड़ना के कारण होने वाली मौत के लिए उम्रकैद या मृत्यु दंड की सिफारिश की गई है। वहीं सिफारिशों में महिलाओं के खिलाफ यौन दुर्व्यवहार और बच्चों को प्रताड़ना को संकेतात्मक विधेयक की सूची में जोड़ा गया है। संशोधित विधेयक में आरोपी के खिलाफ मुकदमा चलाने की पूर्व अनुमति लेने का प्रावधान यथावत है। इस प्रस्तावित कानून भारत को प्रताड़ना की रोकथाम पर संयुक्त राष्ट्र समझौते की अभिपुष्टि करने में मदद करेगा। इस समझौते पर 1997 को हस्ताक्षर किए गए थे। यह विधेयक सशस्त्र बलों पर लागू होगा और प्रताड़ना की शिकायत मिलने पर सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम पर भी प्रभावी होगा।
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