ओ.पी. पाल
भले ही वैश्विक वित्तीय संकट के बाद तीव्रता से पटरी पर लौट रहे आर्थिक विकास वाले देशों की सूची में भारत भी शामिल हो,लेकिन अगले दो दशकों में युवा आबादी का विकास सामाजिक उथल-पुथल का कारण हो सकता है यानि शिक्षा के विकास के बिना आने वाले सालों में युवा आबादी देश के लिए एक अभिशाप भी बन सकती है। इस प्रकार के तथ्य हाल ही में जारी एक रिपोर्ट के तथ्यों एवं विशेषज्ञों की राय से भी सामने आ रहे हैं।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार ने इस साल अप्रैल में 14 साल की उम्र तक के बच्चों के लिए शिक्षा का अधिकार कानून पास किया है लेकिन इस पर अमल के लिए स्कूलों और शिक्षकों का अभाव है। इस कानून पर अमल के लिए 12 लाख शिक्षकों की जरूरत है लेकिन इस समय भारत में सिर्फ 7 लाख शिक्षक हैं और उनमें भी 25 फीसदी काम पर नहीं जाते। भारत में साक्षरता दर 65 प्रतिशत है जबकि चीन में यह 91 प्रतिशत और यहां तक कि केन्या में 85 प्रतिशत है। मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल 2020 तक हाई स्कूल पास करने वाले बच्चों की संख्या इस समय के 12 प्रतिशत से बढ़ाकर 20 प्रतिशत करना चाहते हैं। लेकिन ऐसा करने के लिए सैकड़ों नए कॉलेज और विश्वविद्यालय बनाने होंगे। इस मांग को पूरा करने के लिए भारत सरकार ने विदेशी विश्वविद्यालयों को भारत में कैंपस बनाने की अनुमति देने वाले कानून का मसौदा तैयार किया है। जबकि विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार स्कूल में भर्ती होने वाले बच्चों में से 39 फीसदी 10 साल की उम्र में ही पढ़ाई छोड़ देते हैं और 15 से 19 की आयु के किशोरों में सिर्फ 2 फीसदी का व्यावसायिक प्रशिक्षण मिलता है। भारतीय उद्योग महासंघ के अध्यक्ष हरि भारतीय मानते हैं कि हमारी सबसे बड़ी चुनौती स्कूल के स्तर पर है। जहां तक आबादी में हो रही वृद्धि का सवाल है उसमें हल ही में जारी डॉयचे बैंक की एक रिपोर्ट का दावा है कि अगले दो दशकों में भारत की काम करने वाली आयु की आबादी में 24 करोड़ की वृद्धि होगी, जो ब्रिटेन की कुल आबादी का चौगुना है। लेकिन एशियन डेवलपमेंट बैंक के प्रबंध निदेशक रजत नाग ने हाल ही में नई दिल्ली में निवेशकों के एक सम्मेलन में चेतावनी दी थी कि शिक्षा के बिना आबादी का यह लाभ आबादी के अभिशाप में बदल सकता है। सरकारी आंकड़ों पर नजर डाले तो भारत में 80 करोड़ आबादी 20 रुपए रोजाना से कम पर जीवन यापन कर रही है.वरिष्ठ भारतीय विश्लेषक दीपक लालवानी का कहना है, कि यदि आर्थिक लाभ सभी लोगों को शामिल करने वाले, रोजगार देने वाले और जीवन स्तर ऊंचा उठाने वाले न हों तो सामाजिक समरसता प्रभावित होगी। विशेषज्ञों के अनुसार भारत उस स्तर पर पहुंचने वाला है जहां श्रम बाजार में घुसने वाले युवा कामगारों की बड़ी संख्या बचत और निवेश के जरिए महत्वपूर्ण आर्थिक लाभ का कारण बन सकती है। चीन ने 1980 के दशक में इस स्तर पर पहुंचने के बाद आर्थिक विकास की ऊंची छलांग लगाई थी। भारत की 120 करोड़ आबादी का आधा से अधिक हिस्सा 25 साल से कम आयु का है। विशेषज्ञों की माने तो 2020 तक भारतीयों की औसत आयु 29 होगी जबकि उस समय चीन की औसत आयु 37 होगी। चीन की कामकाजी आबादी अगले पांच साल में चोटी पर होगी और उसके बाद उसका गिरना शुरू हो जाएगा, जो आंशिक रूप से उसकी एक बच्चे वाली नीति का नतीजा है। वहीं 2035 तक भारत की आबादी 150 करोड़ होगी और उसमें कामकाजी आबादी 65 फीसदी होगी, लेकिन रजत नाग मानते हैँ कि भारत को लाभ तभी मिलेगा जब उसके कामगार प्रशिक्षित हों। विशेषज्ञों के अनुसार युवा आबादी को शिक्षा देने की चुनौती बहुत भारत इस मामले में अभी तक बहुत पीछे है।
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