सोमवार, 6 दिसंबर 2010

थॉमस बने केंद्र सरकार के गले की फांस!

सीवीसी को हटाने के लिए सरकार के पास
महाभियोग योग का ही एक मात्र तरीका
ओ.पी. पाल
केंद्र की यूपीए सरकार भ्रष्टाचार और घोटालों के मुद्दे पर संसद में पहले ही विपक्ष से घिरी हुई है तो केंद्रीय सतर्कता आयोग के आयुक्त की नियुक्ति को लेकर जवाब तलबी के लिए मिले सुप्रीम कोर्ट के नोटिस ने उसकी मुश्किलों को और बढ़ा दिया है। दूसरी और सीवीसी पीजे थॉमस केंद्र सरकार की बात को कोई तरजीह देने को तैयार नहीं हैं और उनके सीवीसी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा न देने के मामले ने यीपीए सरकार के सिरदर्द को और बढ़ा दिया है। यानि पीजे थॉमस केंद्र सरकार के गले की फांस बनते नजर आ रहे हैं।
देश में भ्रष्टाचार और घोटालों के कारण लगातार फजीहत झेलती आ रही कंग्रेसनीत यूपीए सरकार यदि लोकसभा में विपक्ष की नेता श्रीमती सुषमा स्वराज की बात मान लेती तो शायद भ्रष्टाचार की जांच करने वाली केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) के अध्यक्ष पीजे थॉमस को लेकर केंद्र सरकार के ऊपर उंगलिया न उठती और ना ही सरकार को सुप्रीम कोर्ट के कड़े रुख के चलते एक बार फिर से शर्मसार होना पड़ता। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को एक ऐसे व्यक्ति को सीवीसी के अध्यक्ष पद पर नियुक्त करने के लिए जवाब मांगने के लिए अदालत में पेश होकर सफाई देने के लिए नोटिस जारी किया, जिसके खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले चले हों। ऐसी टिप्पणी करते हुए पहले ही अदालत यह दलील दे चुकी है कि भ्रष्टाचार का हिस्सा रहा व्यक्ति भला भ्रष्टाचार के खिलाफ कैसे जांच कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने आज सोमवार को केंद्र सरकार के अलावा सीवीसी आयुक्त पीजे थॉमस को भी नोटिस भेजा और अदालत में हाजिर होकर अपने ऊपर लगे आरोपों की सफाई पेश करने के लिए कहा है। गत सात सितंबर को सीवीसी प्रमुख के पद पर केंद्र सरकार ने 1973 बैच के केरल कैडर के भारतीय प्रशासनिक अधिकरी पीजे थॉमस की नियुक्ति की थी। सीवीसी जैेसी संस्था के आयुक्त पद के लिए बनी चयन समिति में लोकसभा की प्रतिपक्ष नेता श्रीमती सुषमा स्वराज भी एक सदस्य के रूप में शामिल है। चयन समिति में जब सीवीसी प्रमुख की नियुक्ति के लिए पी.जे. थॉमस के नाम का प्रस्ताव आया तो उसे सीवीसी बनाए जाने का सुषमा स्वराज ने कड़ा विरोध करते हुए आरोप लगाए थे कि एक दागी पृष्ठभूमि वाले व्यक्ति को भ्रष्टाचार पर नजर रखने वाले इस महत्वपूण्र आयोग का प्रमुख नहीं बनाया जाना चाहिए। इस संबन्ध में भाजपा ने राष्टÑपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल से भी आग्रह किया था कि वह इस पद के लिए थॉमस के नियुक्ति पत्र पर हस्ताक्षर न करें। यही नहीं थॉमस को सीवीसी बनाए जाने के तीन सदस्य चयन समिति के बहुमत के फैसले से खुद को अलग करते हुए सुषमा स्वराज ने अपने असहमति नोट में आरोप लगाय है कि थॉमस 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले पर पर्दा डालने में शामिल रहे हैं जिसे सीवीसी नहीं बनाया जा सकता। उस दौरान तो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने स्वयं भी भाजपा के विरोध को खारिज करते हुए कहा था कि सीवीसी के लिए जिन तीन नामों का सुझाव आया है उनमें पीजे थॉमस ही सर्वश्रेष्ठ हैं। थॉमस के सीवीसी का पद ग्रहण करने के बाद केंद्र सरकार को लगे ग्रहण से निश्चित केंद्र सरकार को इस बात का पश्चतावा होगा कि काश! वह भाजपा के विरोध पर गंभीरता से गौर कर लेती तो आज यह फजीहत न होती। यही नहीं थॉमस केरल में भी एक भ्रष्टाचार के मामले के आरोपी बताये जा रहे हैं। सूत्रों के अनुसार सीवीसी की नियुक्ति पर जब उच्चतम न्यायालय ने कड़ा रूख अपनाया तो पिछले सप्ताह कांग्रेस कोर ग्रुप तथा सरकार ने अलग-अलग बैठक करके थॉमस को सीवीसी पद से इस्तीफा देने को कहा था, जिसमें थॉमस ने विचार करने की हामी भर ली थी, लेकिन बाद में थॉमस ने ताल ठोककर मीडिया के समक्ष कहा था कि वह सीवीसी हैं-सीवीसी रहेंगे और वे इस पद से इस्तीफा देने नहीं जा रहे हैं। ‘अब पछताए क्या होत..जब चिड़िया चुग गई खेत’ वाली कहावत केंद्र सरकार के लिए चरितार्थ होती सामने आई। जब थॉमस इस्तीफा न देने की जिद पर अड़िग हो तो ऐसे में उन्हें हटाने के दो ही तरीके बचते हैं, जिसमें सुप्रीम कोर्ट में पीयूसीएल की ओर से पैरवी कर रहे वकील प्रशांत भूषण के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट थॉमस की नियुक्ति रद्द करने का आदेश देकर उन्हें हटा सकता है। यदि ऐसा नहीं हुआ तो उन्हें हटाने का एक मात्र तरीका उन पर महाभियोग चलाना होगा। संविधान की धारा १२४ (४) में सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों को हटाने के लिए महाभियोग की प्रक्रिया का जिक्र है। किसी संवैधानिक पद पर काबिज शख्स को हटाने के लिए महाभियोग की प्रक्रिया अपनाने का प्रावधान संविधान में है। थॉमस की सीवीसी के तौर पर नियुक्ति को चुनौती देने वाली जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में आखिरी फैसले के लिए अगले साल २७ जनवरी की तारीख तय की है, लेकिन पीजे थॉमस ऐसे समय केंद्र सरकार के गले की फांस बन चुके हैं जब कांग्रेसनीत यूपीए सरकार पहले ही भ्रष्टाचार और घोटालों के मुद्दे पर विपक्ष की एकजुटता से घिरी हुई है।

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