ओ.पी. पाल
राजनीति में बढ़ते अपराधीकरण इसी बात से लगाया जा सकता है कि बाहुबल और धनबल को राजनीति से दूर रखने की दुहाई देने वाले राजनीतिक दलों ने भी बिहार विधानसभा चुनाव में आपराधिक छवि वाले उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारने में कोई कसर नहीं छोड़ी और इन चुनावों में 748 विभिन्न दलों के प्रत्याशी विधानसभा में जाने के लिए अपनी किस्मत आजमा रहे हैं, जिसमें राजद ने ऐसे सबसे ज्यादा 91 लोगों को अपना उम्मीदवार बनाया है। इन दागियों में 441 प्रत्याशी ऐसे हैँ जिनके खिलाफ लूट, हत्या, बलात्कार, अपहरण, हत्या का प्रयास जैसे जघन्य अपराध लंबित है। बिहार की इस राजनीतिक तस्वीर को देखने से लगता है कि केंद्रीय चुनाव आयोग द्वारा स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव की परंपरा को बढ़ावा देने की हो रही कवायद राजनीतिक दलों के लिए कोई मायने ही नहीं रखती।
केंद्रीय निर्वाचन आयोग ने निष्पक्ष और स्वच्छ चुनाव की परंपरा को बढ़ावा देने के लिए बिहार विधानसभा चुनाव से पहले ही सर्वदलीय नेताओं की बैठक करके विचार विमर्श कर चुका है। सबसे बड़ी आश्चर्यजनक बात है कि आयोग के साथ बैठक में कोई भी दल ऐसा नहीं था जिसने चुनावों में बाहुबल और धनबल का विरोध न किया हो, लेकिन इसके विपरीत किसी भी दल ने बिहार विधानसभा के छह चरणों में जारी चुनाव में बाहुबल और धनबल से तनिक भी परहेज करना गंवारा नहीं समझा और और ऐसा लगता है कि जैसे 242 सदस्यों वाली बिहार विधानसभा को दागियों का सदन बनाने का प्रयास किया जा रहा हो। चुनाव में उम्मीदवारों का उनके द्वारा नामांकन पत्र दाखिल करते समय दिये जाने वाले शपथपत्रों का सर्वे करने वाली गैर सरकारी संगठन एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफोर्म्स और नेशनल इलेक्शन वॉच ने बिहार विधानसभा के सभी छह चरणों में विभिन्न राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों का जो अध्ययन किया है उससे जो तथ्य सामने आये हैँ उससे तो यही लगता है कि राजनीतिक दलों के लिए केंद्रीय चुनाव आयोग की जारी कवायद कोई मायने नहीं रखती। बिहार विधानसभा चुनाव के सभी छह चरणों के प्रत्याशियों की घोषणा होने के बाद नेशनल इलेक्शन वॉच के राष्ट्रीय समन्वय अनिल बैरवाल और बिहार चुनाव समन्वक अंजेश कुमार द्वारा जारी तथ्यों को देखें तो पता चलता है कि जिन 2097 उम्मीदवारों के शपथपत्रों का सर्वे किया गया है उसमें 748 दागियों में आपराधिक छवि के लोगों को गले लगाने में लालू यादव के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनता दल है जिसने अपने 165 उम्मीदवारों में 91 आपराधिक प्रत्याशियों को विधानभा में भेजने का दांव खेला है। इसके बाद कांग्रेस पार्टी और बहुजन समाज पार्टी है, इन्होंने क्रमश: 232 व 227 में से 87-87 ऐसे ही दागी प्रत्याशियों को उम्मीदवार बनाया है जिनके सिर पर आपराधिक मुकदमें चल रहे हैं। सत्तारूढ़ जनतादल (यू) ने 140 में 76, भाजपा ने 99 में 64 तथा लोजपा ने 72 में ऐसे 40 उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारा है, जिनके खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैँ। 748 दागी उम्मीदवारों में से 441 उम्मीदवारों के खिलाफ जघन्य अपराध अदालतों में विचाराधीन चल रहे हैं। शेष प्रत्याशी अन्य दलों व निर्दलीय शामिल है जो दागियों की सूची में हैँ। जिन उम्मीदवारों के खिलाफ संगीन अपराध लंबित हैं उनमें राजद के 41 प्रतिशत, जदयू के 56 प्रतिशत, भाजपा के 80 प्रतिशत, कांग्रेस के 35 प्रतिशत, बसपा के 42 प्रतिशत तथा लोजपा के 75 प्रतिशत उम्मीदवार शामिल हैं। जहां तक धनबल का सवाल है उसमें कांग्रेस सबसे ऊपर है जिसने 53 करोड़पतियों को टिकट दिया है, जबकि राजद ने 47, जदयू ने 35, लोजपा व भाजपा ने 14-14, बसपा ने 13 राकांपा ने पांच तथा सपा व जद-एस ने तीन-तीन धनपतियों को अपना उम्मीदवार बनाया है, जबकि 19 करोड़पति निर्दलीय रूप से भी अपनी किस्मत आजमा रहे हैं।
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