गुरुवार, 25 नवंबर 2010

कहां गया वो कांग्रेस दबदबा

23 में से 17 कांग्रेस के बने मुख्यमंत्री
ओ.पी. पाल
कांग्रेस को बिहार चुनाव में अपनी जमीन तैयार करने के लिए भले ही मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा हो, लेकिन राज्य में कांग्रेस का ही अधिक दबदबा रहा है, जिसने 43 साल यानि सबसे ज्यादा शासन चलाया है।
आजादी के बाद से ही बिहार में कांग्रेस का वर्चस्व था, जब वर्ष 1946 में श्रीकृष्ण सिन्हा ने मुख्यमंत्री का पद संभाला तो वे वर्ष 1961 तक लगातार इस पद पर बने रहे। यदि चार छोटे गैर कांग्रेस सरकारों के कार्यकाल को छोड़ दें तो 1946 से वर्ष 1990 तक राज्य में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ही सत्तारुढ़ रही है। पहली बार पाँच मार्च 1967 से लेकर 28 जनवरी 1968 तक महामाया प्रसाद सिन्हा के मुख्यमंत्रित्व काल में जनक्रांति दल का शासन रहा। इसके बाद 22 जून 1969 से लेकर चार जुलाई 1969 तक कांग्रेस के ही एक धड़े कांग्रेस (ओ) का शासन रहा और भोला पासवान शास्त्री ने मुख्यमंत्री का पद संभाला। 22 दिसंबर 1970 से दो जून 1971 तक सोशलिस्ट पार्टी के लिए कपूर्री ठाकुर मुख्यमंत्री रहे और फिर 24 जून 1977 से 17 फरवरी 1980 तक कपूरी ठाकुर और रामसुंदर दास के मुख्यमंत्रित्व काल में जनता पार्टी का शासन रहा। बिहार को राजनीतिक रुप से काफी जागरुक माना जाता है लेकिन यह राजनीतिक रुप से सबसे अस्थिर राज्यों में से भी रहा है। शायद यही वजह है कि वर्ष 1961 में श्रीकृष्ण सिन्हा के मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद 1990 तक करीब तीस सालों में 23 बार मुख्यमंत्री बदले और पाँच बार राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा। संगठन के स्तर पर कांग्रेस पार्टी राज्य स्तर पर कमजोर होती रही और केंद्रीय नेतृत्व हावी होता चला गया, लेकिन इस बार के चुनावी नतीजो से साफ दिखता है कि बिहार की राजनीतिक लगाम कांग्रेस के हाथों से भी फिसलती रही और राज्य में जिन तीस सालों में 23 मुख्यमंत्री बदले उनमें से 17 कांग्रेस के ही थे।

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