ओ.पी. पाल
बहुचर्चित 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले की जांच के लिए संयुक्त संसदीय समिति का गठन करने की मांग पर अड़िग विपक्ष की एकजुटता के कारण संसद के शीतकालीन सत्र की कार्यवाही पहले दो सप्ताह नहीं चल सकी है। यदि संसद की कार्यवाही को सुचारू रूप से चलाने के लिए सत्ता पक्ष और विपक्ष में सहमति बन भी जाती है तो जाहिर सी बात है कि संसद के दोनों सदनों में देर रात तक बैठकें होंगी। मसलन ऐसी स्थिति में संसद के अधिकारियों एवं कर्मचारियों को फिर राजग शासनकाल के दौरान रहे संसदीय कार्य मंत्री प्रमोद महाजन की याद आ जाएगी, जिनके वक्त संसद के देर रात तक चलने की स्थिति में संसद के कर्मचारियों को सुविधाएं मुहैया होती थी, जो यूपीए सरकार नही दे पा रही है।
संसद के किसी भी सत्र में सरकार हंगामें या व्यवधान से बर्बाद होने वाले समय की भरपाई करने के लिए देर रात तक सदन की कार्यवाही को जारी रखता है। ऐसा प्रावधान पहले से ही है और रात्रि 10 बजे तक संसद की कार्यवाही चलाने के कई अवसरों को याद भी किया जा सकता है। संसद के शीतकालीन सत्र के पहले छह दिन बहुचर्चित 2जी स्पेक्ट्रम और अन्य भ्रष्टाचार की भेंट चढ़े हैँ जिसमे समूचा विपक्ष 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में संचार मंत्री ए. राजा के इस्तीफे के बाद अब इस मामले की जांच के लिए संयुक्त संसदीय समिति यानि जेपीसी के गठन की मांग कर रहा है। विपक्ष पहले ही अपने तीखे तेवर दिखाते हुए सरकार को ललकार चुका है कि जब तक सरकार जेपीसी का गठन नहीं करती तब तक संसद की बाधित हो रही कार्यवाही के लिए स्वयं सरकार ही जिम्मेदार होगी। ऐसे में सरकार की और से बीच का रास्ता निकालने के लिए कई प्रयास हो चुके हैं ताकि सदन की कार्यवाही सुचारू रूप से चल सके। इसके लिए स्वयं प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इस मामले में दोषियों को सजा दिलाने का आश्वासन भी दिया और विपक्ष से सदन की कार्यवाही चलने देने का यह कहकर आव्हान किया कि सरकार किसी भी राष्ट्रीय मुद्दे पर संसद में चर्चा कराने को भी तैयार है। अब सवाल है कि यदि विपक्ष की मांग पर सरकार जेपीसी का गठन भी कर देती है या फिर सत्ता पक्ष व विपक्ष में किसी प्रकार सदन चलाने की सहमति बन जाती है, तो निश्चित रूप से संसद के शीतकालीन सत्र में सरकार के एजेंडे में शामिल कामकाज को पूरा करने के लिए संसद की कार्यवाही को देर रात तक चलाना पड़ेगा ताकि बर्बाद हुए समय की भरपाई हो सके। अब सवाल उठता है कि ऐसी संभावनाओं की चर्चा संसद के गलियारों में आम रूप से भी चल रही है कि यदि किसी भी सहमति बनी तो देर रात तक चलने वाली संसद की कार्यवाही के दौरान संसद के अधिकारी, कर्मचारी, सुरक्षाकर्मी और अन्य लोगों को राजग शासन काल का वही समय याद आ जाएगा, जब रात्रि में संसद की कार्यवाही चलने पर तत्कालीन संसदीय कार्य मंत्री प्रमोद महाजन संसद के इन अधिकारियों व कर्मचारियों को खाने-पीने तथा घर तक छुडवाने की व्यवस्था को अनिवार्य रूप से अंजाम देते रहे हैं। संसद में सत्र के दौरान हरिभूमि संवाददता की संसद के कई कर्मचारियों, सुरक्षा कर्मचारियों तथा अन्य उन लोगों से बातचीत हुई जिन्हें देर रात को संसद की कार्यवाही चलने की संभावना का डर सता रहा है। संसद में सत्र के दौरान ऐसी स्थिति पर संसद में अपनी डयूटी को अंजाम देने वाले इन कर्मचारियों का यही कहना है कि राजग शासन काल में प्रमोद महाजन के जमाने में जो उन्हें सुविधाएं मिली हैं उसके इतर आज तक अन्य किसी भी पार्टी की सरकार में नही मिल पाई और न ही मौजूदा यूपीए सरकार ऐसी स्थिति में संसद में अपनी डयूटी को अंजाम देने वाले कर्मचारियों के सुख-चैन छीनने पर सहज है।
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