गुरुवार, 25 नवंबर 2010

लालू-पासवान उभरेंगे या डूबेंगे

राजद-लोजपा की दोस्ती दांव पर
ओ.पी. पाल
बिहार विधानसभा की 243 सीटों पर हुए चुनाव को लेकर वैसे तो सभी प्रमुख दल अपनी-अपनी जीत के दावे कर रहे हैं, लेकिन चुनावों के बाद आए एक सर्वेक्षण ने लालू-पासवान की दोस्ती को हाशिये पर दिखाकर उनकी बेचैनी को बढ़ा दिया है। कुछ भी हो बुधवार को आने वाले चुनाव के नतीजे यह तय करेंगे कि लालू यादव और पासवान की दोस्ती उभरेगी या फिर डूब जाएगी?
बिहार में राजद-लोजपा गठबंधन ने अपना मुकाबला सत्तारूढ़ जद-यू गठबंधन से माना है, लेकिन यूपीए से अलग हुए लालू व पासवान के राजनीतिक नुकसान लोकसभा चुनाव में ही नजर आ गया था। बिहार में 15 साल तक शासन करने वाले लालू प्रसाद यादव अपनी बड़बोलेपन की कमजोरी से जिस प्रकार से पासवान के साथ राज्य में अपने जनाधार को पाने की उम्मीद लगा रहे थे, उनकी वह उम्मीद इन चुनाव में बनी रहेगी या फिर वे हाशिए पर होंगे। यह तो आने वाले चुनाव नतीजे ही तय करेंगे। लेकिन जिस प्रकार से चुनावी सर्वेक्षण ने नीतिश की वापसी के संकेत दिये हैं उससे लालू-पासवान की बेचैनी अधिक बढ़ गई है। लोकसभा चुनाव के समय ही यूपीए से अलग होकर चुनाव लड़ने वाले राजद-लोजपा ने बिहार विधानसभा चुनाव में बड़ी ही उम्मीद से एक बड़ा और उत्साह के साथ दांव खेला है। लालू-पासवान गठबंधन में लोजपा को राजद ने 243 में 78 सीटें दी हैं। राजद का बिहार में माई यानि मुस्लिम और यादव समीकरण रहा है जिसके आधार पर राजद ने कांग्रेस व अन्य दलों के समर्थन से 15 साल तक शासन किया, लेकिन इस समीकरण में राजग व कांग्रेस ने भी सेंध लगा रखी है। यदि बुधवार २४ नवंबर को आने वाले चुनाव नतीजों में राजद-लोजपा की राजनीतिक स्थिति पिछले लोकसभा चुनाव की तरह ही रही और जैसा माना जा रहा है के अनुसार नीतिश की वापसी हो गई तो जाहिर सी बात है कि राजद-लोजपा की धर्मनिरपेक्ष की रणनीति का जादू पर विकास की लहर को भारी माना जाएगा। यह तो चुनाव नतीजे ही तय करेंगे कि लालू-पासवान की दोस्ती मजबूत होकर सामने आएगी या फिर इस गठबंधन की नैया डूबती नजर आएगी। लालू यादव 1990 में पहली बिहार के मुख्यमंत्री बने और 2004 में एनडीए की करारी हार के बाद लालू यूपीए सरकार में रेलमंत्री बने। नेतृत्व क्षमता के साथ उनकी पिछड़ों और मुसलमानों में भी अच्छी खासी पैठ है। जबकि लोक जनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष राम विलास पासवान अब तक आठ बार लोकसभा सदस्य और पांच विभिन्न प्रधानमंत्रियों की सरकार में मंत्री रह चुके हैं। सबसे अधिक मतों से जीत हासिल करने का रिकार्ड भी पासवान के नाम है, लेकिन पिछले लोकसभा चुनाव में उन्हे करारी हार का मुहं देखना पड़ा था। इन चुनाव में लालू-पासवान के गठजोड़ को यदि शिकस्त मिली तो इस गठबंधन के भविष्य पर भी अंधकार के बादल मंडरा सकते हैँ।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें