बिहार विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज करके जिस प्रकार से बाहुबलियों और धनाढ्य विधायकों का प्रवेश विधानसभा में हुआ है, उसे देखते हुए लगता है कि दुनिया के सबसे बड़े इस लोकतांत्रिक देश में चुनाव प्रणाली में सुधार करने की तेजी से की जा रही कवायद पूरी तरह से बेअसर है। मसलन पिछले विधानसभा चुनाव की अपेक्षा बिहार विधानसभा में इस बार ऐसे विधायकों की संख्या में बढ़ोतरी हुई जिनके खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैँ। खास बात यह है कि 243 सदस्यों वाली विधानसभा में पहुंचे 141 दागियों में 116 विधायक सत्तारूढ़ गठबंधन के ही हैं, तो जाहिर सी बात है कि नीतीश कुमार का मंत्रिमंडल भी दागियों से सराबोर रहेगा।
राजनीति के बढ़ते अपराधिकरण को नियंत्रित करने की वैसे तो सभी राजनीतिक दल दुहाई देते हैं लेकिन चुनाव के समय ऐसे ही दल अपराधियों को अपने गले लगाने में पीछे नहीं रहता। बिहार चुनाव की घोषणा के बाद चुनाव में धनबल और बाहुबल की प्रथा को समाप्त करने के लिए भारत निर्वाचन आयोग ने सर्वदलीय बैठक का दौर भी चलाया, ताकि देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव की परंपरा को बढ़ावा दिया जा सके। आश्चर्यजनक बात तो यह है कि केंद्रीय निर्वाचन की इस कदम को सभी राष्ट्रीय और क्षेत्रीय राजनीतिक दलों ने अपना समर्थन तो दिया, लेकिन बिहार विधानसभा चुनाव में प्रत्याशियों के चयन में इस पर अमल करना गंवारा नहीं समझा गया। यही कारण था कि बिहार विधानसभा चुनाव में 748 अपराधी छवि वाले प्रत्याशियों ने जोर अजमाइश की। चुनाव लड़ने वाले इन दागी प्रत्याशियों में 441 प्रत्याशी तो ऐसे रहे जिनके खिलाफ हत्या, लूट, अपहरण, डकैती, हत्या का प्रयास, बलात्कार जैसे संगीन मामले लंबित चल रहे हैं। बिहार विधानसभा चुनाव के सभी छह चरणों के प्रत्याशियों की घोषणा होने के बाद नेशनल इलेक्शन वॉच के राष्ट्रीय समन्वय अनिल बैरवाल और बिहार चुनाव समन्वक अंजेश कुमार द्वारा 2097 प्रत्याशियों द्वारा दाखिल शपथपत्रों का अध्ययन करने के बाद तथ्य उजागर किये। हालांकि जनता ने ज्यादातर दागियों को नकारा है, लेकिन इसके बावजूद 141 दागी प्रत्याशी चुनाव जीतकर विधानसभा में दाखिल हो गये हैँ, जिनमें 85 विधायक ऐसे हैं जिनके खिलाफ संगीन मामले लंबित चल रहे हैं। जबकि वर्ष 2005 की विधानसभा में ऐसे दागी विधायकों की संख्या 117 थी, जिनमें संगीन मामलों में शामिल 68 विधायक थे। इस बार बिहार में जद(यू)-भाजपा गठबंधन को इन चुनावों में प्रचंड बहुमत मिला और शुक्रवार को नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री की शपथ भी ले ली, लेकिन विधानसभा में पहुंचे 141 दागियों में अधिकांश यानि 116 विधायक सत्तारूढ़ दल के ही हैँ, जिनमें जद(यू) व भाजपा के 58-58 एमएलए हैं। यदि संगीन अपराध में लिप्त विधायकों की बात करें तो उसमें जद(यू) के 43 तथा भाजपा के 29 विधायक हैं। ऐसे में जाहिर सी बात है कि नीतीश कुमार का मंत्रिमंडल भी दागियों से सराबोर रहेगा। विधानसभा में राजद के 22 विधायकों में 13, कांग्रेस के चार में तीन, लोजपा के सभी तीन, सीपीआई का एक तथा छह निर्दलीयो में पांच ऐसे विधायक हैं जिनके खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैँ। बिहार विधानसभा में पहुंचे दागियों में टॉप-10 में जद-यू के छह विधायक शामिल हैं, जिनमे नरेन्द्र कुमार पांडे के खिलाफ 23 आपराधिक मामले दर्ज हैं, जबकि इसी दल के प्रदीप कुमार व मनोरंजन सिंह के खिलाफ 18-18 आपराधिक मामले लंबित चल रहे हैं। इनके अलावा नरेन्द्र कुमार सिंह पर 15, अमरेन्द्र कुमार पांडेय पर 11, शिवजी राय पर आठ मामले लंबित हैँ। भाजपा के सतीश चन्द्र दूबे पर सात, आनंदी प्रसाद यादव पर पांच व अवनीश कुमार सिंह पर सात मामले हैँ। इनके अलावा कांग्रेस के मोहम्मद तोसीफ आलम के खिलाफ छह आपराधिक मामले लंबित हैँ।
करोड़पति विधायकों की संख्या बढ़ी
बिहार विधानसभा में इस बार 47 करोड़पति विधायक दाखिल हुए हैँ, जबकि वर्ष 2005 को गठित विधानसभा में केवल आठ करोड़पति विधायक निर्वाचित हुए थे। इन धनबल वाले विधायको में सबसे ज्यादा 27 जद-यू के विधायक शामिल हैं, जबकि भाजपा के दस, राजद के पांच और कांग्रेस के दो विधायक भी शामिल हैं।
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