गुरुवार, 25 नवंबर 2010

कितना चलेगा कांग्रेस व् राहुल का जादू?

बताएंगे बिहार चुनाव नतीजे
ओ.पी. पाल
बिहार विधानसभा चुनाव का बुधवार को परिणाम आ रहा है जिसके नतीजों से तय हो जाएगा कि पहली बार अकेले दम पर चुनाव में उतरी कांग्रेस बिहार के लोगों में कितना असर छोड़ पाई है। साथ ही यह भी तय हो जाएगा कि कांग्रेस और राहुल गांधी का युवाओं को राजनीति में बढ़ावा देने के लिए चलाया गया जादू चल पाया है या नहीं?
कांग्रेस पार्टी ने बिहार विधानसभा चुनाव में अकेले दम पर ही अपनी पुरानी राजनीतिक जमीन को हासिल करने के लिए कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी के युवाओं को राजनीति में आगे बढ़ाने की रणनीति को अधिक बढ़ावा दिया और ज्यादातर मुस्लिमों को अपना उम्मीदवार बनाया। वहीं राज्य में युवक कांग्रेस और भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन के प्रभारी राहुल गांधी ने युवक कांग्रेस में संगठनात्मक चुनाव कराने का आधार तैयार करके अपनी प्रतिष्ठा को दांव पर लगाने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी, तो वहीं कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी भी इन चुनाव में प्रचार करने बिहार के दौरे पर गई। दूसरी ओर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और अन्य केंद्रीय मंत्रियों ने धरातल पर पड़ी कांग्रेस की जमीन तैयार करने के लिए चुनाव में जान फूंकने का काम किया। कांग्रेस केसाथ गठबंधन से अलग हुए राजद-लोजपा के वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए कांग्रेस ने पहले ही अपनी रणनीति बनाकर महबूब अली केसर को प्रदेशाध्यक्ष बनाकर अपने इरादे जाहिर कर दिये थे। वहीं दलितों को आकर्षित करने के लिए केंद्रीय मंत्री मुकुल वासनिक को राज्य का प्रभारी भी बनाया। यानि राजद के लालू यादव के एम और लोजपा के राम विलास पासवान को उनकी हैसियत दिखाने का कांग्रेस ने पूरा इंतजाम करके मुस्लिम-दलित समीकरण के बूते पर पहली बार अकेले दम पर चुनाव लड़ा। इन चुनावों के आने वाले नतीजे यह तय करेंगे कि बिहार में युवाओं को कांग्रेस में तरजीह देने का जादू चला है या नहीं? राष्ट्रीय राजनीति की दशा करने के लिए भी कांग्रेस की बिहार विधान चुनाव में प्रतिष्ठा दांव पर है।
वैसे तो कांग्रेस ने वर्ष 2009 में हुए 15वीं लोकसभा चुनाव में ही राजद-लोजपा से नाता तोड़कर चुनाव लड़ा था, हालांकि इसका लाभ न तो कांग्रेस और न ही राजद व लोजपा को मिल पाया था। कांग्रेस तो इन चुनावों में यह दावा करती रही है कि इन चुनावों मे जितना उत्साहजनक माहौल उसके पक्ष में है ऐसा पिछले 15 सालों में भी देखने को नहीं मिला। जहां तक राज्य में कांग्रेस के जनाधार का सवाल है वहां इससे पहले अक्तूबर 2005 में हुए चुनावों में कांग्रेस को 9 सीटों और छह फीसदी मतों से ही संतोष करना पड़ा था। वर्ष 2005 में हुए दोनों विधानसभा चुनाव कांग्रेस के लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण थे क्योंकि 243 सीटों में से कांग्रेस ने फरवरी में 84 और अक्तूबर नवंबर में 51 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे। इसके विपरीत कांग्रेस इस बार सभी सीटों पर चुनाव लड़ रही है। यह नहीं कांग्रेस बिहार में वर्ष 1952 से लगातार तीन विधानसभा चुनावों में सफलत रही और वर्ष 1952 में २३९ सीटें, वर्ष 1957 में 210 सीटें और वर्ष 1967 में १९५ सीटें हासिल कर सत्ता में रही है। जबकि वर्ष 1969 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 118 सीटें मिली, लेकिन उसने अन्य दलों के साथ सत्ता को अपने पास रखा और उसके बाद दो झटको के बाद वर्ष 1980 व वर्ष 1985 के चुनाव में अपनी ताकत दिखाई। 15 साल तक बिहार में राजद के लालू को समर्थन दे रही कांग्रेस अकेले दम पर चुनाव लड़कर क्या हासिल करेगी इसका पता आज आने वाले चुनाव के नतीजे साफ कर देंगे।

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