जांच समिति की रिपोर्ट में दोषी करार
ओ.पी. पाल
राज्यसभा की जांच समिति की रिपोर्ट में भ्रष्टाचार के दोषी पाये गये न्यायमूर्ति सौमित्र सेन के खिलाफ महाभियोग चलना तय माना जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश सुदर्शन रेड्डी की अध्यक्षता वाली राज्यसभा की तीन सदस्य समिति की संसद में पेश की गई जांच रिपोर्ट की एक प्रति गुरुवार को राज्यसभा सचिवालय ने न्यायमूर्ति सौमित्र सेन को भेज दी है। इस रिपोर्ट पर संसद में चर्चा होना अभी शेष है जो इसी सत्र में होना तय है।
संसद के दोनों सदनों में बुधवार को पेश की गई इस रिपोर्ट में न्यायाधीश सेन को भ्रष्टाचार और गलतबयानी करने का दोषी पाया गया है। संसद में पेश की गई जांच रिपोर्ट के बाद ऐसे संकेत हैं कि संसद में इसी सत्र में कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग प्रक्रिया शुरू हो सकती है। इस प्रक्रिया में अगला कदम महाभियोग के प्रस्ताव पर विचार करना और चर्चा करना है। संसद में इस तरह की चर्चा है कि प्रस्ताव पर विचार और चर्चा राज्यसभा में 29 नवंबर को हो सकती है। उच्च सदन राज्यसभा में यह चर्चा उन नियमों के तहत होगी जिनके तहत मतदान जरूरी है। न्यायमूर्ति सेन को सदन के सामने खुद हाजिर होकर या फिर अपने वकील के जरिये बचाव करने का मौका दिया जायेगा। इस पर अंतिम फैसला राज्यसभा की कार्य मंत्रणा समिति को करना है। राज्यसभा के नियमों के अनुसार प्रस्तावक के इस प्रस्ताव को पेश करने के तुरंत बाद न्यायमूर्ति सेन या उनके वकील अपनी बात रख सकते हैं, जिसके बाद सेन या उनके वकील को सदन से बाहर चले जाना जरूरी होगा। यदि सदन में बहुमत से महाभियोग चलाने का प्रस्ताव पारित हो जाता है तो न्यायमूर्ति सेन देश के इतिहास में ऐसे पहले न्यायाधीश हो सकते हैं जिन्हें उनके पद से महाभियोग के जरिये हटाया जायेगा, लेकिन इसके लिए महाभियोग प्रक्रिया को बहुमत का समर्थन मिलना आवश्यक है। गौरतलब है कि वर्ष 1994 में उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के पद से सेवानिवृत्त हो चुके न्यायमूर्ति वी. रामास्वामी के खिलाफ सबसे पहले इस तरह की पहल की गयी थी, लेकिन उनके विरूद्ध महाभियोग प्रस्ताव कांग्रेस के मतदान के दौरान अनुपस्थित रहने के चलते पारित नहीं हो सका। न्यायमूर्ति सौमित्र सेन के खिलाफ महाभियोग चलाने का यह मुद्दा उच्च सदन की कार्य मंत्रणा समिति की बैठक में भी उठा तो राज्यसभा के 57 सदस्यों ने सभापति हामिद अंसारी को न्यायमूर्ति सेन को हटाने के संबंध में 20 फरवरी 2009 को एक प्रस्ताव सौंपा था। गौरतलब है कि जांच समिति ने न्यायमूर्ति सेन को कोष में बड़ी राशि के साथ अनियमितता करने औरा इस संबन्ध में गलत तथ्य तथा गलत बयान देने का दोषी पाया है। समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि न्यायमूर्ति सेन पर आरोप है कि उन्होंने कलकत्ता उच्च न्यायालय की ओर से बतौर रिसीवर नियुक्त होने के बाद यह अपराध किया है।
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