ओ.पी. पाल
यूपीए सरकार द्वारा पेट्रोलियम पदार्थो के दामों में वृद्धि करने को भले ही आर्थिक व्यवस्था की दृष्टि से आवश्यक करार दिया जा रहा हो, लेकिन पेट्रोलियम पदार्थो के बढ़ाए गये दामों को लेकर समूचा विपक्ष बिफरा हुआ है और विपक्षी दलों ने महंगाई के ख़िलाफ यूपीए सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है जिससे सरकार चौतरफा घिरती नजर आ रही है। विपक्षी दलों ने आम आदमी के हितों की दुहाई देने वाली यूपीए और राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी को भी निशाना बनाकर देशव्यापी आंदोलन का ऐलान कर चुकें हैं। देश का आम आदमी पहले से आवश्यक वस्तुओं पर बढ़ते दामों के कारण महंगाई की मार झेलता आ रहा है कि हाल ही में पेट्रोलियम पदार्थो के दाम बढ़ाने से महंगाई के बढ़ने की सम्भावनाओं से आम आदमी के माथे पर चिंता की लकीर नजर आने लगी है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने पेट्रोलियम मूल्यों में वृद्धि पर विपक्ष की आलोचनाओं को खारिज करते हुए आज कहा कि पेट्रोल और डीजल की कीमतों को नियंत्रणमुक्त करने जैसा सुधारवादी कदम बहुत जरूरी हो गया था। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की इस घोषणा कि पेट्रोल की तरह डीजल को भी सरकारी नियंत्रण से मुक्त किया जाएगा ने विपक्षी दलों के गुस्से का पारा बढ़ाने का काम किया है। हालांकि विपक्षी राजनीतिक दलों के महंगाई के मुद्दे पर एकजुट होते देख यूपीए सरकार तरह-तरह के तर्क देकर अपना बचाव करने का रास्ता तलाशने में जुट गई हैँ। ऐसे में विपक्षी दलों में भले ही वैचारिक मतभेद हों लेकिन राजग, वाम दलों, सपा, बीजद, जद(एस), इनेलो व अन्नाद्रमुक ने आगामी पांच जुलाई को जिस प्रकार से भारत बंद का देश व्यापी आव्हान किया है उससे कहा जा सकता है कि यूपीए सरकार के खिलाफ समूचा विपक्ष एकजुट है। महंगाई के मुद्दे पर पांच जुलाई का भारत बंद का ऐलान यूपीए सरकार की मुश्किले खड़ा करने के लिए कम नहीं है। भाजपा ने तो एक जुलाई को महंगाई विरोधी दिवस मनाते हुए राज्यों की राजधानी और प्रमुख शहरों में धरना व प्रदर्शन करने का भी ऐलान किया है। महंगाई और पेट्रोलियम पदार्थो के दामों में हुई वृद्धि पर हालांकि विपक्षी दलों ने अपने अलग-अलग ढंग से आंदोलन का बिगुल बजाने का ऐलान किया है, लेकिन पांच जुलाई की तिथि को भारत बंद का ऐलान विपक्ष को महंगाई के मुद्दे पर एकजुटता को प्रदर्शित करता है, भले ही सत्ता पक्ष में प्रमुख रूप से कांग्रेस विपक्ष को बिखरा मानकर यह तर्क दे रही है कि आम आदमी सरकार की मजबूरियों को समझ रहा है। पेट्रोलियम मंत्री मुरली देवड़ा ने विपक्ष के प्रस्तावित आंदोलन को पाखंड बताते हुए कहा कि भाजपा के नेतृत्व वाले राजग शासन ने केरोसीन के दाम में तीन गुना वृद्धि की थी। वहीं उनका कहना है कि जहां तक वाम दलों का सवाल है उन्होंने भी रसोई गैस और केरोसिन के दाम को बाजार मूल्य से जोड़ने के संयुक्त मोर्चा सरकार के फैसले का समर्थन किया था। भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी तथा राजग संयोजक एवं जद-यू प्रमुख शरद पवार ने दावा किया है कि पांच जुलाई को भारत बंद के दौरान कांग्रेस का वह भ्रम दूर कर दिया जाएगा कि विपक्ष बिखरा हुआ है। शरद यादव तो ये दावा कर रहे हैं कि मंहगाई के खिलाफ पांच जुलाई को देशव्यापी संयुक्त आंदोलन के बारे में माकपा महासचिव प्रकाश कारात, भाकपा नेता एबी बर्धन, अन्नाद्रमुक नेता जयललिता, सपा प्रमुख मुलायम सिंह, जदएस नेता एच डी देवेगौड़ा, पीएमके नेता रामदास, इंडियन नेशनल लोकदल के ओमप्रकाश चौटाला, अकाली दल के प्रकाश सिंह बादल, बीजद के नवीन पटनायक और शिव सेना के उद्धव ठाकरे से बातचीत हो चुकी है। हालांकि राजद प्रमुख लालू प्रसाद और लोजपा अध्यक्ष रामविलास पासवान ने मंहगाई के मुद्दे पर अलग दिन आंदोलन की घोषणा की है। जबकि माकपा, भाकपा, आरएसपी और फारवर्ड लाक के संयुक्त बयान में कहा गया है कि इन चार वाम दलों के अलावा अन्नाद्रमुक, तेदेपा, सपा, बीजद और जदयू-एस भी मंहगाई विरोधी आंदोलन में शामिल होंगे। समाजवादी पार्टी ने बढ़ती मंहगाई के विरोध में पांच जुलाई को देशव्यापी आम हड़ताल का समर्थन करते हुए पार्टी प्रवक्ता राजेन्द्र चौधरी ने पार्टी मुखिया मुलायम सिंह यादव के हवाले से कहा कि बढ़ती मंहगाई के विरोध में पांच जुलाई को देशव्यापी आम हड़ताल में सपा और वामपंथी दल संयुक्त रुप से हिस्सा लेंगे। दूसरी ओर राजनीतिज्ञों का मानना है कि महंगाई के खिलाफ इस आंदोलन की बहती गंगा में बसपा व रालोद भी हाथ धोने के प्रयास में हैं हालांकि उनके दलों की ओर से अभी तक भारत बंद के आव्हान की कोई पुष्टि नहीं हुई, लेकिन वैचारिक मतभेदों के बावजूद कोई भी विपक्षी दल केंद्र सरकार को महंगाई पर गरमाती राजनीति से अलग होना नहीं चाहेगा। कुछ भी हो महंगाई के मुद्दे पर कांग्रेसनीत यूपीए सरकार चौतरफा घिरती नजर आ रही है।
आर्थिक वृद्धि दर में तेजी आना तय
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष [आईएमएफ] ने जैसा अनुमान व्यक्त किया है कि भारत की आर्थिक वृद्धि दर में तेजी आएगी और यह चीन की आर्थिक वृद्धि दर के आस पास पहुंच जाएगी। आईएमएफ के प्रबंध निदेशक डोमिनिक स्ट्रास काह्न की माने तो भारत की वृद्धि दर में तेजी आने की उम्मीद है और यह पहले के मुकाबले चीन की वृद्धि दर के निकट पहुंचेगी। स्ट्रास मानते हैं कि भारत काफी बेहतर प्रदर्शन कर रहा है। हालांकि भारत को लेकर उनके मन में कुछ चिंताएं भी हैं। उन्होंने कहा कि मुद्रास्फीति विशेषकर खाद्य वस्तुओं की बढ़ती कीमतों को लेकर मुझे कुछ चिंता है। हालांकि विश्वस्तर पर भारत काफी अच्छा प्रदर्शन कर रहा है। दूसरी और भारतीय रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर सुबीर गोकर्ण का कहना है कि पिछले कुछ माह से सबसे बड़ी चिंता खाद्य मुद्रास्फीति रही है। यह अभी भी मैक्रो अर्थशास्त्र में केंद्रीय तत्व है। इसने महंगाई पर काबू के लिए मौद्रिक उपायों के मामले में सबसे बड़ी चुनौती खड़ी की है। गोकर्ण की माने तो खाद्य वस्तुओं के दाम सिर्फ कमजोर मानसून या कम बारिश की वजह से नहीं हैं। यह सिर्फ संकेतक हैं। खाद्य वस्तुओं के दाम क्यों बढ़ रहे हैं, यह एक विश्लेषण का मुद्दा है। भारतीय रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर का कहना है कि बढ़ती कीमतों की वजह यह भी है कि भारतीयों का खानपान का तरीका बदल रहा है। इस बात की काफी संभावना है कि केंद्रीय बैंक 27 जुलाई को मौद्रिक नीति की समीक्षा में प्रमुख दरों में बढ़ोतरी कर सकता है।
एक जमाना था जब लोग अपने घरों के बाहर लिखते थे-अतिथि देवो भव: फिर शुरू किया-शुभ लाभ और बाद में लिखा जाने लगा-यूं आर वेलकम अब शुरू हो गया-......से सावधान!
मंगलवार, 29 जून 2010
जी-20 सम्मेलन से बढ़ी भारत की साख!
ओ.पी. पाल भारत की यह बड़ी सफलता मानी जा रही है कि कनाडा के टोरटों में संपन्न हुए जी-20 सम्मेलन में जा यूरोपीय देशों की अर्थव्यवस्था की चर्चा हुई तो वैश्विक मंदी के दौरान जा अधिकांश देशों की अर्थव्यवस्था पटरी से उतरती नजर आई तो ऐसे में भारत ने अर्थव्यवस्था का संतुलन बनाने के लिए जो उपाय किये गये, जिसके लिए सम्मेलन में भारत की सरहाना हुई। वहीं इस सम्मेलन में भारत व कनाड़ा के बीच असैन्य परमाणु करार भी एक बड़ी उपलब्धि मानी जा रही है। भारत ने जी-20 सम्मेलन में आतंकवाद समेत विभि न्न मुद्दों को लेकर जिस मजबूती के साथ अपना पक्ष रखा, उसे विश्व के अन्य देशों का भी समर्थन प्राप्त होना भारत के उज्जवल भविष्य का संकेत कहा जा सकता है।प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह के नेतृत्व में टोरंटो के जी-20 सम्मेलन में शामिल हुए भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने जिस प्रकार से अपने पक्ष को प्रस्तुत किया है उसे सम्मेलन के हिस्सेदार देशों ने तरजीह दी है। खासकर जा सम्मेलन में विकासपरक नीतियों पर चर्चा हुई तो कुछ यूरोपीय देशों में ऋण संकट के बीच ही पटरी पर आती अर्थव्यवस्था पर जी-20 के सदस्य देशों ने सतत आर्थिक विस्तार के प्रोत्साहन कदमों और सरकारी वित्तीय अव्यवस्था से निपटने के लिए राजकोषीय घाटे को कम करने के बीच संतुलन का आव्हान किया। इस दौरान करीबा दो साल पहले जा पूरी दुनिया आर्थिक मंदी से जूझ रही थी तो ऐसे समय में भारत की आर्थिक नीतियों के कारण जिस प्रकार भारत में अर्थव्यवस्था को पटरी से उतरने से पहले ही संतुलन बनाने में सफलता मिली उसे जी-20 शिखर सम्मेलन में एक मिसाल के तौर पर लिया गया, जिसे भारत की अर्थव्यवस्था की दृष्टि से एक बड़ी उपलब्धि करार दिया जा सकता है। सम्मेलन में जारी घोषणापत्र के अनुसार अग्रणी अर्थव्यवस्था वाले देशों ने ऐसी वित्तीय योजनाओं की प्रतिबद्धता जताई है, जो 2013 तक घाटे को आधा कर देंगी और 2016 तक सरकारी कर्ज को स्थिर या कम कर देंगी। हालांकि भारत का रूख इस घोषणा पत्र के विपरीत वित्तीय क्षेत्रों की लागत में मितव्यई नियम भी शामिल करने का रहा है। इस सम्मेलन में भारत की अर्थव्यवस्था में संतुलन बनाए रखने में एक और पहलू उस समय जुड़ गया जा हाल ही में भारत सरकार ने पेट्रोलियम पदार्थो पर सब्सिडी ख़त्म करके पेट्रोलियम उत्पादों के दामों में बढ़ोतरी का जिक्र एक संकेत के रूप में घोषणा पत्र में शामिल हुआ और भारत की इस नीति की जी-20 सम्मेलन ने सराहना की। जहां तक जी-20 सम्मेलन मे भारत की सफलता का सवाल है उसमें प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अपने पक्ष को मजबूती के साथ रखा चाहे वह दुनिया के लिए खतरा ाने आतंकवाद का मुद्दा ही क्यों न रहा हो। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा से जी- 20 शिखर सम्मेलन से हुई मुलाकात के दौरान भारत की आतंकवाद जैसी चिंताओं से अवगत कराते हुए कहा कि पाकिस्तान को लश्कर-ए-तैय्यबा के सदस्य डेविड हेडली द्वारा किए गए खुलासों का महत्व समझना चाहिए और अपनी भूमि से भारत के खिलाफ चल रहे आतंकवाद को रोकने के लिए कार्रवाई करनी चाहिए। कांग्रेस प्रवक्ता एवं सांसद मनीष तिवारी ने जी-20 सम्मेलन में भारत की सफलता और 20 देशों के समूह में बढ़ती भारत की छवि का जिक्र करते हुए कहा कि अर्थव्यवस्था को लेकर कई यूरोपीय देश अभी भी गोते खा रहे हैं लेकिन भारत की अर्थव्यवस्था ने ऐसी परिस्थिति में जिस प्रकार के उपाय करके संतुलन को बिगड़ने से बचाया है वह विश्व समुदाय में एक मिसाल से कम नहीं है। मनीष तिवारी ने तीन साल के तुलनात्मक आंकड़ों से भारत की अर्थव्यवस्था की समीक्षा पेश की। भारत और कनाडा के बीच हुए असैन्य परमाणु करार को बड़ी सफलता बताते हुए तिवारी का कहना है कि यह इस बात का सबूत है कि भारत की विश्व पटल पर तेजी के साथ साख बढ़ रही है, जिसके बाद आस्ट्रेलिया जैसे कई देश भी अपनी परमाणु नीतियों में परिवर्तन करके भारत की तरफ देखने का प्रयास कर रहा है। जी-20 सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र परिषद के स्थायी सदस्य के रूप में भी एक रास्ता प्रशस्त होता नजर आया, जिसके लिए कई देशों ने भारत की सदस्यता का समर्थन करने का भी संकेत दिया। रणनीतिकारों का मानना है कि भारत ने इस सम्मेलन में जिस प्रकार से जलवायु परिवर्तन, व्यापार और अन्य मुद्दों पर अपना पक्ष रखा है उससे भारत के आर्थिक विकास की दृष्टि से भविष्य भी उज्जवल होगा।
रविवार, 27 जून 2010
सईद को क्यों बचाना चाहता है पाक!
ओ.पी. पाल
पाकिस्तान ने लश्कर-ए-तैयबा के आतंकी और जमात-उद-दावा प्रमुख हाफिज सईद की भारत के खिलाफ जहरीले प्रहार को लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता करार दिया और उसकी जहरीली जुबान पर ताला लगाने से इंकार कर दिया है। इसका मतलब साफ है कि पाकिस्तान हाफिज सईद के खिलाफ किसी भी प्रकार की कार्रवाई नहीं करना चाहता है? लेकिन सवाल है कि यदि पाकिस्तान का यही रवैया रहा तो भारत और पाकिस्तान की बातचीत आगे कैसे बढ़ सकेगी। विशेषज्ञ मानते हैं कि लोकतंत्र में सभी को अपनी बात कहने का अधिकार है, लेकिन हाफिज सईद मुंबई आतंकी हमलों का प्रमुख गुनाहगार है इसलिए उसकी इस जहरीली जुबान पर पाकिस्तान को ताला जड़ने में कोई ऐतराज नहीं होना चाहिए। मुंबई के 26/11 आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान की स्थगित बातचीत फिर से शुरू की गई है, ताकि दोनों पड़ोसी देशों में बेहतर सम्बन्ध स्थापित हो सकें। इसी मकसद से पहली सचिव स्तरीय वार्ता नई दिल्ली में 25 फरवरी को हुई थी जो बेनतीजा रही। हाल में गृहमंत्री पी. चिदम्बरम के नेतृत्व में भारतीय शिष्टमंडल इस्लामाबाद में सार्क सम्मेलन के दौरान पाकिस्तान में हैं, जिससे पहले भारत और पाकिस्तान के विदेश सचिवों क्रमश: सुश्री निरुपमा राव तथा सलमान बशीर के बीच कई मुद्दों पर दूसरी सचिव स्तरीय वार्ता हुई, लेकिन बात आतंकवाद के खिलाफ खासकर मुंबई आतंकी हमलों के दाषियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई भारत का प्रमुख एजेंडा रहा। दोनों देशों के गृहमंत्रियों के बीच हुई बैठक में भी आतंकवाद का मुद्दा छाया रहा, लेकिन जमात-उद-दावा के प्रमुख हाफिज सईद के नाम पर पाकिस्तान भारत की कोई बात सुनने को तैयार नहीं है, जो लगातार भारत के खिलाफ जहरीले भाषण देकर दोनों देशों के बीच sambandhon को आगे बढ़ाने में बाधक भी बना हुआ है। जबकि 15 जुलाई को दोनों देशों के विदेश मंत्रियों की वार्ता भी प्रस्तावित है। ऐसे में भारत की इस मांग को पाकिस्तान ने एक सिरे से खारिज कर दिया कि वह हाफिज सईद के भड़काऊ भाषणों पर रोक नहीं लगा सकता। पाकिस्तान ने अपनी असमर्थता में लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का तर्क देते हुए भारत की मांग को ठुकराया है। पाकिस्तान की शायद हाफिज सईद को बचाना एक मजबूरी बन रहा है, क्योंकि यदि पाकिस्तानी रणनीतिकारों की माने तो यदि सईद मुंबई आतंकी हमले का सच यानि अपना गुनाह कबूल करता है तो उसमें वह पूरे पाकिस्तानी सरकारी तंत्र को भी निश्चित रूप से बेनकाब करके कठघरे में खड़ा कर सकता है। पाकिस्तानी सरकार की नब्ज उसके हाथ में होने के कारण ही उसे बचाने का प्रयास किया जा रहा है यानि पाक सरकार एक झूठ को छिपाने के लिए सौ झूठ बोलने का प्रयास कर रही है ताकि 26/11 हमलों में पाकिस्तान सरकार पर कोई दाग न लग सके। एक रक्षा विशेषज्ञ का कहना है कि दरअसल पाकिस्तान आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई करने के कतई मूड़ में नहीं है, जो हमेशा आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई के नाम पर टालमटोल करता आ रहा है। लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का जिस प्रकार से पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने हवाला देकर हाफिज सईद को भड़काऊ भाषणों पर रोक लगाने से इंकार किया है, वह कतई तर्कसंगत नहीं है, क्योंकि हाफिज सईद आतंकवादी है और मुंबई हमलों में भी भारतीय अदालत द्वारा उसे दोषी करार दिया गया है। इसलिए पाकिस्तान को यदि भारत के साथ बेहतर संबंधों के लिए आगे बढ़ना है तो उसे हाफिज सईद के प्रति इतनी हमदर्दी नहीं दिखानी चाहिए और समझना चाहिए कि वह एक आतंकवादी है। इस बात की एक नहीं कई बार पुष्टि हो चुकी है कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई और सेना आतंकवादी संगठनों को हर तरह की मदद मुहैया कराती आ रही है, जिसका खुलासा अमेरिका में पकड़े गये 26/11 के मास्टर माइंड डेविड कोलमेन हेडली ने भारत की राष्ट्रीय जांच एजेंसी के समक्ष पूछताछ के दौरान भी किया है। विशेषज्ञ मानते हैँ कि पाकिस्तान हमेशा इस प्रकार की नीतियां अपनाकर भारत के खिलाफ आतंकवाद को बढ़ावा देता रहा है। पाकिस्तान द्वारा भारत की इस मांग को खारिज करने से निश्चित रूप से हाफिज सईद के हौंसले बुलंद होंगे। भारत और पाक के जानकार विशेषज्ञों का कहना है कि यह तो पहले से ही जाहिर था कि सीमापार आतंकवाद के मुद्दे को पाकिस्तान ज्यादा तरजीह नहीं देना चाहेगा, जाकि भारत का प्रमुख मुद्दा आतंकवाद ही है। इसका कारण भी साफ है कि आईएसआई और पाक सेना पर वहां की सरकार का नियंत्रण नहीं है। हाफिज सईद के खिलाफ कार्रवाई करने का तो कोई सवाल ही नहीं उठता, जिसे पाकिस्तान जमात-उद-दावा संगठन के नाम पर करीब चार करोड़ की सहायता हाल ही में दे चुका है। विशेषज्ञ मानते हैं कि हाफिज सईद को पाकिस्तान एक सच्चा देशभक्त मानता है जिसे हर तरह की सुरक्षा और सुविधा मुहैया कराई जा रही है। लेकिन सवाल यह है कि एक तरफ पाकिस्तान, भारत के साथ शांति और आपसी संबंधों को बेहतर बनाने की बात करता है, तो दूसरी तरफ वह आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई करने की बात तो कहता है लेकिन उस पर अमल करना नहीं चाहता। ऐसे में भारत और पाकिस्तान की बातचीत का आगे बढ़ना मुश्किल है जिसके लिए भारत को पाकिस्तान से ज्यादा उम्मीद करना भी बेमानी होगी।
पाकिस्तान ने लश्कर-ए-तैयबा के आतंकी और जमात-उद-दावा प्रमुख हाफिज सईद की भारत के खिलाफ जहरीले प्रहार को लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता करार दिया और उसकी जहरीली जुबान पर ताला लगाने से इंकार कर दिया है। इसका मतलब साफ है कि पाकिस्तान हाफिज सईद के खिलाफ किसी भी प्रकार की कार्रवाई नहीं करना चाहता है? लेकिन सवाल है कि यदि पाकिस्तान का यही रवैया रहा तो भारत और पाकिस्तान की बातचीत आगे कैसे बढ़ सकेगी। विशेषज्ञ मानते हैं कि लोकतंत्र में सभी को अपनी बात कहने का अधिकार है, लेकिन हाफिज सईद मुंबई आतंकी हमलों का प्रमुख गुनाहगार है इसलिए उसकी इस जहरीली जुबान पर पाकिस्तान को ताला जड़ने में कोई ऐतराज नहीं होना चाहिए। मुंबई के 26/11 आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान की स्थगित बातचीत फिर से शुरू की गई है, ताकि दोनों पड़ोसी देशों में बेहतर सम्बन्ध स्थापित हो सकें। इसी मकसद से पहली सचिव स्तरीय वार्ता नई दिल्ली में 25 फरवरी को हुई थी जो बेनतीजा रही। हाल में गृहमंत्री पी. चिदम्बरम के नेतृत्व में भारतीय शिष्टमंडल इस्लामाबाद में सार्क सम्मेलन के दौरान पाकिस्तान में हैं, जिससे पहले भारत और पाकिस्तान के विदेश सचिवों क्रमश: सुश्री निरुपमा राव तथा सलमान बशीर के बीच कई मुद्दों पर दूसरी सचिव स्तरीय वार्ता हुई, लेकिन बात आतंकवाद के खिलाफ खासकर मुंबई आतंकी हमलों के दाषियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई भारत का प्रमुख एजेंडा रहा। दोनों देशों के गृहमंत्रियों के बीच हुई बैठक में भी आतंकवाद का मुद्दा छाया रहा, लेकिन जमात-उद-दावा के प्रमुख हाफिज सईद के नाम पर पाकिस्तान भारत की कोई बात सुनने को तैयार नहीं है, जो लगातार भारत के खिलाफ जहरीले भाषण देकर दोनों देशों के बीच sambandhon को आगे बढ़ाने में बाधक भी बना हुआ है। जबकि 15 जुलाई को दोनों देशों के विदेश मंत्रियों की वार्ता भी प्रस्तावित है। ऐसे में भारत की इस मांग को पाकिस्तान ने एक सिरे से खारिज कर दिया कि वह हाफिज सईद के भड़काऊ भाषणों पर रोक नहीं लगा सकता। पाकिस्तान ने अपनी असमर्थता में लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का तर्क देते हुए भारत की मांग को ठुकराया है। पाकिस्तान की शायद हाफिज सईद को बचाना एक मजबूरी बन रहा है, क्योंकि यदि पाकिस्तानी रणनीतिकारों की माने तो यदि सईद मुंबई आतंकी हमले का सच यानि अपना गुनाह कबूल करता है तो उसमें वह पूरे पाकिस्तानी सरकारी तंत्र को भी निश्चित रूप से बेनकाब करके कठघरे में खड़ा कर सकता है। पाकिस्तानी सरकार की नब्ज उसके हाथ में होने के कारण ही उसे बचाने का प्रयास किया जा रहा है यानि पाक सरकार एक झूठ को छिपाने के लिए सौ झूठ बोलने का प्रयास कर रही है ताकि 26/11 हमलों में पाकिस्तान सरकार पर कोई दाग न लग सके। एक रक्षा विशेषज्ञ का कहना है कि दरअसल पाकिस्तान आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई करने के कतई मूड़ में नहीं है, जो हमेशा आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई के नाम पर टालमटोल करता आ रहा है। लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का जिस प्रकार से पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने हवाला देकर हाफिज सईद को भड़काऊ भाषणों पर रोक लगाने से इंकार किया है, वह कतई तर्कसंगत नहीं है, क्योंकि हाफिज सईद आतंकवादी है और मुंबई हमलों में भी भारतीय अदालत द्वारा उसे दोषी करार दिया गया है। इसलिए पाकिस्तान को यदि भारत के साथ बेहतर संबंधों के लिए आगे बढ़ना है तो उसे हाफिज सईद के प्रति इतनी हमदर्दी नहीं दिखानी चाहिए और समझना चाहिए कि वह एक आतंकवादी है। इस बात की एक नहीं कई बार पुष्टि हो चुकी है कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई और सेना आतंकवादी संगठनों को हर तरह की मदद मुहैया कराती आ रही है, जिसका खुलासा अमेरिका में पकड़े गये 26/11 के मास्टर माइंड डेविड कोलमेन हेडली ने भारत की राष्ट्रीय जांच एजेंसी के समक्ष पूछताछ के दौरान भी किया है। विशेषज्ञ मानते हैँ कि पाकिस्तान हमेशा इस प्रकार की नीतियां अपनाकर भारत के खिलाफ आतंकवाद को बढ़ावा देता रहा है। पाकिस्तान द्वारा भारत की इस मांग को खारिज करने से निश्चित रूप से हाफिज सईद के हौंसले बुलंद होंगे। भारत और पाक के जानकार विशेषज्ञों का कहना है कि यह तो पहले से ही जाहिर था कि सीमापार आतंकवाद के मुद्दे को पाकिस्तान ज्यादा तरजीह नहीं देना चाहेगा, जाकि भारत का प्रमुख मुद्दा आतंकवाद ही है। इसका कारण भी साफ है कि आईएसआई और पाक सेना पर वहां की सरकार का नियंत्रण नहीं है। हाफिज सईद के खिलाफ कार्रवाई करने का तो कोई सवाल ही नहीं उठता, जिसे पाकिस्तान जमात-उद-दावा संगठन के नाम पर करीब चार करोड़ की सहायता हाल ही में दे चुका है। विशेषज्ञ मानते हैं कि हाफिज सईद को पाकिस्तान एक सच्चा देशभक्त मानता है जिसे हर तरह की सुरक्षा और सुविधा मुहैया कराई जा रही है। लेकिन सवाल यह है कि एक तरफ पाकिस्तान, भारत के साथ शांति और आपसी संबंधों को बेहतर बनाने की बात करता है, तो दूसरी तरफ वह आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई करने की बात तो कहता है लेकिन उस पर अमल करना नहीं चाहता। ऐसे में भारत और पाकिस्तान की बातचीत का आगे बढ़ना मुश्किल है जिसके लिए भारत को पाकिस्तान से ज्यादा उम्मीद करना भी बेमानी होगी।
शनिवार, 26 जून 2010
आतंकवाद पर टिकी है बातचीत की बुनियाद!
ओ.पी. पाल
मुंबई हमले के बाद आतंकवाद पर भारत के सख्त रवैये से जाहिर बात है कि आतंकवाद की चुनौती का सामना करने के लिए भारत लगातार सख्त नजर आ रहा है। जाकि पाकिस्तान इस मुद्दे को हल्के में लेकर पाकिस्तानी आतंकवादी संगठनों की गतिविधियों पर कतई गंभीर नजर नहीं आता। यह भारत की ही सकारात्म पहल है कि पाकिस्तान के इस रूख के बावजूद उससे बातचीत का सिलसिला शुरू कर चुका है, लेकिन सवाल यह है कि पाकिस्तान आतंकवाद से स्वयं भी प्रभावित होते हुए इस मसले पर गंभीर क्यों नहीं है? खासकर 26/11 हमले के लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े आतंकियों के खिलाफ पाकिस्तान भारत की ठोस सबूतों के बावजूद कार्रवाई करने में दिलचस्पी न रखना भारत की सासे बड़ी चिंता है। आजकल गृहमंत्री पी. चिदम्बरम के नेतृत्व में भारतीय शिष्टमंडल इस्लामाबाद में हैं और पाकिस्तान से यही पूछ रहा है कि मुंबई आतंकी हमलों के आरोपियों के खिलाफ वह क्या कार्रवाही कर रहा है, लेकिन पाक के रवैये से नहीं लगता कि वह लश्कर के आतंकियों हाफिज सईद जैसे आतंकियों को सजा दिलाने में कोई सहयोग करे। पाकिस्तान दौरे पर गये गृहमंत्री पी. चिदांरम ने आतंकवाद के खिलाफ पाक को दो टूक शदों में लश्कर-ए-तैयाबा के आतंकी और जमात-उद-दावा प्रमुख हाफिज सईद समेत 26/11 के आतंकियों के खिलाफ पाकिस्तान से ठोस कार्रवाई करने की मांग करके साबित कर दिया है कि दोनों देशों के बीच शुरू हुई बातचीत की बुनियाद अभी भी आतंकवाद की कार्रवाई पर टिकी हुई है। विशेषज्ञ भी मानते हैं कि पाकिस्तान को आतंकवाद के खिलाफ ठोस कार्रवाई करके इस बात सबूत देना चाहिए कि दोनों देशों के बीच शुरू हुई बातचीत के ठोस नतीजे सामने आ सकें। इस्लामाबाद में हो रहे गृह मंत्रियों के सार्क सम्मेलन में जा भारत के गृहमंत्री पी. चिदम्बरम आतंकवाद के खिलाफ सभी दक्षिण एशियाई देशों से आतंकवाद के खिलाफ एकजुट करने का आव्हान कर रहे हों तो ऐसे में सवाल उठते हैं कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री युसूफ रजा गिलानी द्वारा भारत पर पाकिस्तान के खिलाफ अफगानिस्तान की धरती का इस्तेमाल करने का आरोप दोनों देशों की बातचीत को क्या पटरी पर चढ़ने देगा? जाकि भारत लगातार पाकिस्तान की धरती से भारत के खिलाफ संचालित आतंकवाद की जड़ों को नेस्तनाबूद करने की मांग करता आ रहा है। खासकर भारत ने मुंबई आतंकी हमले के दोषियों के खिलाफ ठोस कार्रवाई करने की मांग जोरदार तरीके से उठाई है, जिसके लिए भारत ने पाकिस्तान को ठोस सबूत के साथ पाकिस्तान को 11 दस्तावेज और आतंकियों की सूची सौँप चुका है। वहीं भारत ने पाकिस्तान को लश्कर-ए-तैयबा के पाकिस्तानी-अमेरिकी आतंकवादी डेविड हेडली से पूछताछ में उभरे तथ्यों के आधार पर मुमई हमलों में जमात-उद-दावा प्रमुख हाफिज सईद की संलिप्तता के बारे में और विस्तृत जानकारी मुहैया कराते हुए स्पष्ट कर दिया है कि सईद तथा उसके सहयोगियों के खिलाफ कार्रवाई होना दोनों मुल्कों के बीच विश्वास बहाली की दिशा में महत्वपूर्ण कदम होगा। इससे पहले भारत की विदेश सचिव निरुपमा राव तथा पाकिस्तानी विदेश सचिव सलमान बशीर के बीच नई दिल्ली और इस्लामाबाद में हुई सचिव स्तरीय वार्ता के भी कोई नतीजे नहीं निकल सके हैँ। ऐसे में सवाल उठाते हुए भारत और पाकिस्तान के जानकार मानते हैं कि भारत के खिलाफ सक्रिय पाकिस्तानी आतंकी संगठन कभी यह नहीं चाहते कि भारत और पाकिस्तान के बीच नजदीकियां बढ़ सकें, इसी कारण जब भी दोनों देशों के बीच सम्बन्ध सुधारने के लिए बातचीत के दौर शुरू हुए हैं तो पाकिस्तान की तरफ से ऐसे बयान आने शुरू हो जाते हैँ। इस्लामाबाद में सार्क सम्मेलन के दौरान भारत के गृहमंत्री पी. चिसम्ब्रम एवं भारतीय शिष्टमंडल पाकिस्तान में होते हुए तो स्वयं पाकिस्तानी प्रधानमंत्री युसूफ रजा गिलानी ने ही बलोचिस्तान में पाकिस्तान के खिलाफ भारत पर अफगानिस्तान की धरती का इस्तेमाल करने का आरोप लगा कर यह साबित कर दिया है कि पाकिस्तान कभी सुधरने वाला नहीं है। एक विशेषज्ञ का कहना है कि पाकिस्तान सरकार आतंकवाद के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई कर सके ऐसा इसलिए भी नहीं लगता कि आतंकवाद को समर्थन करती आ रही पाक खुफिया एंजेंसी आईएसआई और पाक सेना पर वहां की सरकार का नियंत्रण नहीं है। भारत पहले ही स्पष्ट कर चुका है कि दोनों देशों के बीच वार्ता का मकसद यही है कि सासे पहले पाकिस्तान मुंबई हमलों के आतंकवादियों के खिलाफ ठोस कार्रवाई और अपनी धरती से संचालित हो रहे आतंकवाद की जड़ों को समाप्त करने लिए आतंकवादी प्रशिक्षण शिविरों को नेस्तनाबूद करके विश्वास और भरोसे को कायम करे। विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत का तर्क दोनों देशों के हितों के लिए बेहतर है कि पाकिस्तान आतंकवाद के प्रति सख्त कार्रवाई करेगा तो दोनों देशों के बीच संबंधों में संभव हो सकेगी और सभी मुद्दों का हल भी आपसी बातचीत के जरिए निकाला जा सकेगा। यदि पाकिस्तान 26/11 हमलों में शामिल रहे लश्कर के मुंबई हमलों में लश्कर प्रमुख हाफिज सईद, जकीउर्रहमान लखवी उर्फ चचा तथा अबू हमजा जैसे आतंक वादियों के खिलाफ ठोस कार्रवाई करने का प्रमाण देता है तो यह वार्ता पटरी पर चढ़ सकती है। इस साके बावजूद चिदम्बरम और पाक गृहमंत्री रहमान मलिक के बीच हुई बातचीत से यही लग रहा है कि पाकिस्तान हर हालत में जमात-उद-दावा के प्रमुख हाफिज सईद को बचाने का प्रयास करेगा। पाक का यह रवैया ता अपनाया जा रहा है जा भारत उसके खिलाफ ठोस सबूत पेश कर चुका है, लेकिन पाकिस्तान आतंकवादियों के खिलाफ सौंपे जा रहे हर तर्क को काटने के मकसद से कूट राजनीति अपनाता दिख रहा है। विशेषज्ञों की माने तो ऐसे में तो किसी भी कीमत पर भारत-पाक की बा\तचीत कभी पटरी पर नहीं आ पाएगी?
गुरुवार, 24 जून 2010
आतंकवाद की चुनौती पर खरा उतरे पाक़!
ओ.पी. पाल
इस्लामाबाद में भारत और पाकिस्तान के बीच सचिव स्तरीय वार्ता को जिस प्रकार से मैत्रीपूर्ण और रचनात्मक बताया जा रहा है उसमें पाकिस्तान के सामने सासे बड़ी चुनौती यही रहेगी कि वह भारत के खिलाफ अपनी धरती से संचालित हो रहे आतंकवाद के खात्मे के लिए समग्र सोच के साथ ठोस कार्रवाई करके भारत के सामने ही नहीं बल्कि दुनिया के सामने यह विश्वास पैदा करें कि वह आतंकवाद के खिलाफ युद्ध में विश्व समुदाय के साथ है। खासकर भारत और पाकिस्तान के बीच इसी विश्वास बहाली से दोनों पडोसी देशों के बीच लंबित मुद्दों के हल के लिए बातचीत पटरी पर आने की संभावनाएं मजबूत हो सकेंगी। विशेषज्ञ मानते हैं कि आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई करने का वायदा पाकिस्तान लगातार करता आ रहा है, लेकिन उस वायदे को अभी तक पूरा नहीं कर सका है, लेकिन हालात बदले हैं तो भारत-पाक के बीच वार्ता शुरू होना दो पडोसी देशों के हित में है, लेकिन यदि पाकिस्तान वास्तव में भारत के साथ बेहतर सम्बन्ध बनाकर सभी लंबित मुद्दों का हल ढूंढना चाहता है तो उसे सासे पहले विश्वास बहाली में बाधा बने आतंकवाद के खिलाफ सकारात्मक दृष्टि से ठोस कदम उठाने की अधिक जरूरत है।भारत की सासे बड़ी चिंता सीमापार आतंकवाद की है, जिसके कारण भारत-पाक के बीच न तो बेहतर सम्बन्ध और शांति वार्ता पटरी पर चढ़ पा रही है और न ही दोनों देशों के बीच लंबित मुद्दों का हल निकल पा रहा है। मुंबई आतंकी हमलों के बाद तो भारत ने पाक से समग्र वार्ता को ही स्थगित कर दिया था, लेकिन भारत सभी मुद्दों के हल बातचीत के जरिए निकालने का पक्षधर है न कि जंग के जरिए। भले ही विश्व समुदाय खासकर अमेरिका के दबाव में पाकिस्तान ने आतंकवाद के प्रति अपना कुछ रवैया बदला हो, लेकिन भारत और पाकिस्तान के बीच तल्खी को दूर करने के लिए बातचीत का जो दौर शुरू हुआ है वह दोनों देशों के हित में है। सवाल यह उठता है कि दोनों देशों के बीच विश्वास बहाली का यह प्रयास तभी सार्थक होगा जा पाकिस्तान द्वारा भारत की शर्तो पर खरा उतरने के लिए सकारात्मक दृष्टिकोण को अपनाया जायेगा. भारत और पाकिस्तान के जानकार विशेषज्ञ कमर आगा का कहना है कि जहां तक आतंकवाद का सवाल है उसे खत्म करने के लिए पाकिस्तान में राजग के शासन काल में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और उसके बाद हुई सभी वार्ताओं में भी किया है, लेकिन इसके विपरीत सीमापार आतंकवाद नासूर के रूप में सामने आया है। शायद पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था में सहयोगी अमेरिका आदि देशों के दबाव में पाकिस्तान की थोड़ी सोच बदली हो, जिसके बाद स्वयं आतंकवाद की आग में झुलस रहे पाकिस्तान भी दोषी आतंकवादियों को सजा दिलाने की वकालत करने लगा है। कमर आगा मानते हैं कि आतंकवाद के खिलाफ पाक सरकार कोई ठोस कार्रवाई कर सके ऐसा संभव नहीं लगता क्योंकि पाक सेना की शह पर आतंकवाद पनपा है जिसके पास सरकार से ज्यादा अधिकार हैं। इसलिए पाक सरकार को पहले अपनी सेना का दृष्टिकोण भी बदलना पड़ेगा। भारत की 26/11 में मुंबई आतंकी हमलों के लश्कर-ए-तैयाबा से जुड़े दोषियो हफीज सईद, जकीउर्रहमान व अबू हमजा जैसों के खिलाफ ठोस कार्रवाई करने, पाक में चल रहे आतंकी प्रशिक्षण केंद्रों को नेस्तनाबूद करने की मांग है, जिसकी चिंताओं से भारत लगातार पाक को अवगत कराता रहा है। कमर आगा मानते हैं कि दोनों देशों की शुरू हुई वार्ता का स्वागत होना चाहिए जिसमें पहली बार विदेश मंत्रालय के साथ गृह मंत्रालय भी शामिल हुआ है। सार्क देशों में पनप रहे आतंकवाद को समाप्त करने के लिए सभी को एकजुट होकर आगे आने की जरूरत है, जिसमें पाकिस्तान की भूमिका अहम होगी। विशेषज्ञ प्रो. कलीम बहादुर की माने तो पाकिस्तान पहले भी बातचीत के दौरान बड़े-बड़े वायदे करता रहा है, लेकिन यदि इस बार नये सिरे से आरम्भ हुई बातचीत के ठोस नतीजों पर पहुंचना है तो पाकिस्तान को समग्र सोच व सकारात्मक दृष्टिकोण और पडोसियों के सांन्धों को ध्यान में रखते हुए विश्वास को कायम करना होगा। चूंकि भारत व्यापार, आर्थिक क्षेत्र, सांस्कृतिक, उद्योग आदि विभिन्न क्षेत्रों में पाक के साथ सहयोग बढ़ाने की बात कर रहा है तो जाहिर सी बात है कि पाकिस्तान को भी उसी दृष्टि से एक कदम आगे आना होगा। यदि दोनों देशों के बीच बातचीत में विश्वास की भावना प्रगाढ़ होती है तो जाहिर सी बात है कि दोनों पक्षों के बीच जम्मू एवं कश्मीर विवाद, जल विवाद और अन्य मुद्दों का हल निकालने का रास्ता भी स्वत: ही प्रशस्त हो जाएगा, लेकिन पाकिस्तान को आतंकवाद के खिलाफ विश्वासपूर्ण और निष्पक्ष तथा ठोस कार्रवाई करने की जरूरत है जो दोनों देशों के बीच विश्वास और भरोसे की खाई को चौड़ा करता आ रहा है। विशेषज्ञ मानते हैं कि भारतीय विदेश सचिव सुश्री निरुपमा राव तथा पाक विदेश सचिव सलमान बशीर के बीच हुई वार्ता अगले महीने दोनों देशों के विदेश मंत्रियों के बीच होने वाली बातचीत के प्रति भी विश्वास पैदा करने वाली है, लेकिन पाकिस्तान को अपने वायदों पर खरा उतरने की चुनौती होगी।
इस्लामाबाद में भारत और पाकिस्तान के बीच सचिव स्तरीय वार्ता को जिस प्रकार से मैत्रीपूर्ण और रचनात्मक बताया जा रहा है उसमें पाकिस्तान के सामने सासे बड़ी चुनौती यही रहेगी कि वह भारत के खिलाफ अपनी धरती से संचालित हो रहे आतंकवाद के खात्मे के लिए समग्र सोच के साथ ठोस कार्रवाई करके भारत के सामने ही नहीं बल्कि दुनिया के सामने यह विश्वास पैदा करें कि वह आतंकवाद के खिलाफ युद्ध में विश्व समुदाय के साथ है। खासकर भारत और पाकिस्तान के बीच इसी विश्वास बहाली से दोनों पडोसी देशों के बीच लंबित मुद्दों के हल के लिए बातचीत पटरी पर आने की संभावनाएं मजबूत हो सकेंगी। विशेषज्ञ मानते हैं कि आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई करने का वायदा पाकिस्तान लगातार करता आ रहा है, लेकिन उस वायदे को अभी तक पूरा नहीं कर सका है, लेकिन हालात बदले हैं तो भारत-पाक के बीच वार्ता शुरू होना दो पडोसी देशों के हित में है, लेकिन यदि पाकिस्तान वास्तव में भारत के साथ बेहतर सम्बन्ध बनाकर सभी लंबित मुद्दों का हल ढूंढना चाहता है तो उसे सासे पहले विश्वास बहाली में बाधा बने आतंकवाद के खिलाफ सकारात्मक दृष्टि से ठोस कदम उठाने की अधिक जरूरत है।भारत की सासे बड़ी चिंता सीमापार आतंकवाद की है, जिसके कारण भारत-पाक के बीच न तो बेहतर सम्बन्ध और शांति वार्ता पटरी पर चढ़ पा रही है और न ही दोनों देशों के बीच लंबित मुद्दों का हल निकल पा रहा है। मुंबई आतंकी हमलों के बाद तो भारत ने पाक से समग्र वार्ता को ही स्थगित कर दिया था, लेकिन भारत सभी मुद्दों के हल बातचीत के जरिए निकालने का पक्षधर है न कि जंग के जरिए। भले ही विश्व समुदाय खासकर अमेरिका के दबाव में पाकिस्तान ने आतंकवाद के प्रति अपना कुछ रवैया बदला हो, लेकिन भारत और पाकिस्तान के बीच तल्खी को दूर करने के लिए बातचीत का जो दौर शुरू हुआ है वह दोनों देशों के हित में है। सवाल यह उठता है कि दोनों देशों के बीच विश्वास बहाली का यह प्रयास तभी सार्थक होगा जा पाकिस्तान द्वारा भारत की शर्तो पर खरा उतरने के लिए सकारात्मक दृष्टिकोण को अपनाया जायेगा. भारत और पाकिस्तान के जानकार विशेषज्ञ कमर आगा का कहना है कि जहां तक आतंकवाद का सवाल है उसे खत्म करने के लिए पाकिस्तान में राजग के शासन काल में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और उसके बाद हुई सभी वार्ताओं में भी किया है, लेकिन इसके विपरीत सीमापार आतंकवाद नासूर के रूप में सामने आया है। शायद पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था में सहयोगी अमेरिका आदि देशों के दबाव में पाकिस्तान की थोड़ी सोच बदली हो, जिसके बाद स्वयं आतंकवाद की आग में झुलस रहे पाकिस्तान भी दोषी आतंकवादियों को सजा दिलाने की वकालत करने लगा है। कमर आगा मानते हैं कि आतंकवाद के खिलाफ पाक सरकार कोई ठोस कार्रवाई कर सके ऐसा संभव नहीं लगता क्योंकि पाक सेना की शह पर आतंकवाद पनपा है जिसके पास सरकार से ज्यादा अधिकार हैं। इसलिए पाक सरकार को पहले अपनी सेना का दृष्टिकोण भी बदलना पड़ेगा। भारत की 26/11 में मुंबई आतंकी हमलों के लश्कर-ए-तैयाबा से जुड़े दोषियो हफीज सईद, जकीउर्रहमान व अबू हमजा जैसों के खिलाफ ठोस कार्रवाई करने, पाक में चल रहे आतंकी प्रशिक्षण केंद्रों को नेस्तनाबूद करने की मांग है, जिसकी चिंताओं से भारत लगातार पाक को अवगत कराता रहा है। कमर आगा मानते हैं कि दोनों देशों की शुरू हुई वार्ता का स्वागत होना चाहिए जिसमें पहली बार विदेश मंत्रालय के साथ गृह मंत्रालय भी शामिल हुआ है। सार्क देशों में पनप रहे आतंकवाद को समाप्त करने के लिए सभी को एकजुट होकर आगे आने की जरूरत है, जिसमें पाकिस्तान की भूमिका अहम होगी। विशेषज्ञ प्रो. कलीम बहादुर की माने तो पाकिस्तान पहले भी बातचीत के दौरान बड़े-बड़े वायदे करता रहा है, लेकिन यदि इस बार नये सिरे से आरम्भ हुई बातचीत के ठोस नतीजों पर पहुंचना है तो पाकिस्तान को समग्र सोच व सकारात्मक दृष्टिकोण और पडोसियों के सांन्धों को ध्यान में रखते हुए विश्वास को कायम करना होगा। चूंकि भारत व्यापार, आर्थिक क्षेत्र, सांस्कृतिक, उद्योग आदि विभिन्न क्षेत्रों में पाक के साथ सहयोग बढ़ाने की बात कर रहा है तो जाहिर सी बात है कि पाकिस्तान को भी उसी दृष्टि से एक कदम आगे आना होगा। यदि दोनों देशों के बीच बातचीत में विश्वास की भावना प्रगाढ़ होती है तो जाहिर सी बात है कि दोनों पक्षों के बीच जम्मू एवं कश्मीर विवाद, जल विवाद और अन्य मुद्दों का हल निकालने का रास्ता भी स्वत: ही प्रशस्त हो जाएगा, लेकिन पाकिस्तान को आतंकवाद के खिलाफ विश्वासपूर्ण और निष्पक्ष तथा ठोस कार्रवाई करने की जरूरत है जो दोनों देशों के बीच विश्वास और भरोसे की खाई को चौड़ा करता आ रहा है। विशेषज्ञ मानते हैं कि भारतीय विदेश सचिव सुश्री निरुपमा राव तथा पाक विदेश सचिव सलमान बशीर के बीच हुई वार्ता अगले महीने दोनों देशों के विदेश मंत्रियों के बीच होने वाली बातचीत के प्रति भी विश्वास पैदा करने वाली है, लेकिन पाकिस्तान को अपने वायदों पर खरा उतरने की चुनौती होगी।
बुधवार, 23 जून 2010
कैसे थमेगा ऑनर किलिंग का सिलसिला!
ओ.पी. पाल
देश में खासकर उत्तरी भारत में इज्जत के नाम पर हत्याओं सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है, हत्याओं के इसी सिलसिले में युवक-युवतियों की हत्या के इस वायरस ने राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में भी अपने पांव पसार लिये हैं। विकसित समाज की मान्यता के विपरीत परिवारजनों की इच्छा के विरूद्ध सगोत्रीय या अंतरजातीय विवाह करने वाले युवाओं व युवतियों की हो रही ऑनर किलिंग के लिए कौन जिम्मेदार है? इसी का सवाल ढूंढने की जरूरत महसूस की जा रही है ताकि ऑनर किलिंग के मामलों पर अंकुश लगाया जा सके। हालांकि ऐसी घटनाओं पर उच्चतम न्यायालय के बाद केंद्र सरकार भी गंभीर है जिसे रोकने के लिए संसद के मानसून सत्र के दौरान एक विधेयक लाने की तैयारी की जा रही है। कानून विशेषज्ञ तो मानते हैं कि इस ऑनर किलिंग को रोकने के लिए कमीशन ऑफ सती यानि प्रीवेंशन एक्ट-1987 जैसा कानून बनाया जाना चाहिए।
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में कुलदीप-मोनिका व शोभा की हत्या के रूप में इसी माह लगातार तीसरे ऑनर किलिंग की घटना ने साबित कर दिया है कि ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए जा क्रिमनल लॉ पर्याप्त न हो तो राष्ट्रीय स्तर पर कानून बनाकर उसे सख्ती से लागू किया जाए। हालांकि ऑनर किलिंग केवल भारत की ही समस्या है ऐसा नहीं है, बल्कि यह एक वैश्विक समस्या है। पिछले दिनों संयुक्त राष्ट्र संघ ने संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष नामक एक रिपोर्ट जारी की थी, जिसमें कहा गया था कि दुनिया में प्रति वर्ष 5000 से भी अधिक प्रेमी जोड़े ऑनर किलिंग के शिकार हो जाते है। कई पश्चिमी देशों में ऑनर किलिंग की घटनाएँ देखने को मिल रही हैं इसमें भारत के अलावा फ्रांस, जर्मनी, ब्रिटेन आदि देश भी शामिल हैं। यह बात दीगर है कि यहां दूसरे देशों से आने वाले समुदाय के लोग ही ऑनर किलिंग के शिकार होते है। वहीं पाकिस्तान, बंगलादेश, मिश्र, पेरू, अर्जेटीना, जॉर्डन, इजराइल, लोनान, तुर्की, सीरिया, मोरक्को, इक्वाडोर, युगांडा, स्वीडन, यमन तथा खाड़ी के देशों में ऑनर किलिंग जैसे अपराध हो रहे हैँ, जहां इज्जत के नाम पर हत्या करने वाले आरोपी पूरी तरह या आंशिक रूप से बच जाते हैं। भारत के उत्तरी राज्यों हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, राजस्थान तथा बिहार में लगातार ऑनर किलिंग का सिलसिला जारी है। हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में खाप या सर्वखाप की एक सामाजिक प्रशासन की पद्धति समाज में सामाजिक व्यवस्थाओं को बनाये रखने के लिए मनमर्जी से समाजिक मर्यादाओं को तोड़ने वाले प्रेमी जोड़ों के खिलाफ फरमान देने का सिलसिला जारी है। हालांकि भारतीय संविधान खाप पंचायतों को कानून अपने हाथ में लेने की कभी इजाजत नहीं देता। सुप्रीम कोर्ट ने भी हाल के दिनों में ऑनर किलिंग की बढ़ती घटनाओं पर एक गैर सरकारी संस्था शक्ति वाहिनी की दायर जनहित याचिका पर केंद्र तथा हरियाणा समेत आठ राज्यों की सरकार को इस मामले पर नोटिस जारी कर चुकी है। कानून विशेषज्ञ कमलेश जैन का कहना है कि ऑनर किलिंग को रोकने के लिए कमीशन ऑफ सती (प्रीवेंशन एक्ट-1987) की तर्ज पर कानून बनाने की जरूरत है, जिसमें फांसी की सजा का प्रावधान है। मॉजूदा कानून में भी ऐसे प्रावधान हैं लेकिन इसमें आरोपी साफ तौर से बचने में सफल हो जाते हैं। उनका कहना है कि किसी भी धर्मशास्त्र या अन्य किसी शास्त्रों में नहीं है कि अपनी समाज की मर्जी के बिना विवाह करने वालों की हत्या की जाए। इसलिए सरकार को प्रीवेंशन एक्ट-1987 की तर्ज पर नया कानून बनाकर ऑनर किलिंग पर लगाम लगाने की जरूरत है। ऑनर किलिंग पर कांग्रेस की राष्ट्रीय प्रवक्ता जयंती नटराजन का कहना है कि कांग्रेस ऑनर किलिंग में हत्याओं और हिंसा को एक सिरे से खारिज करती है। नटराजन का मानना है कि ऑनर किलिंग को रोकने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक सख्त कानून बनाने की जरूरत है, ताकि किसी को कानून अपने हाथ में लेने पर सख्त सजा मिल सके। ऑनर किलिंग की बढ़ती घटनाओं पर केंद्र सरकार भी गंभीर है जिसमें केंद्रीय कानून मंत्री वीरप्पा मोइली संकेत दे चुके हैं कि ‘ऑनर किलिंग’ के लिए पूरी पंचायत को दोषी ठहराने के लिए केंद्र नया कानून बनाने की तैयारी में है, जिसमें आईपीसी-सीआरपीसी में नए प्रावधान शामिल करने के लिए सरकार संसद के मानसून सत्र में विधेयक लाने के लिए मसौदा तैयार कर चुकी है। इस विधेयक में पंचायतों को मनमाने फरमान जारी करने से रोकने की भी व्यवस्था की जाएगी। प्रस्तावित कानून में मैरिज एक्ट में 30 दिन की रजिस्ट्रेशन अवधि को कम या खत्म करने के प्रस्ताव के अलावा पंचायत की बजाए खुद को निर्दोष साबित करने की जिम्मेदारी आरोपी की होगी। पूर्व आईपीएस अधिकारी एवं संयुक्त राष्ट्र में पुलिस सलाहकार रह चुकी किरण बेदी का कहना है कि ‘ऑनर किलिंग’ के नाम पर हो रही हत्याओं में सम्मान योग्य कोई बात नहीं है। श्रीमती बेदी का सवाल है कि क्या ये ऑनर किलिंग है या सीधे जाति के आधार पर हो रही हत्या है। उन्होंने इज्जत के नाम पर अपनाई जा रही इस परंपरा को मध्यकालीन मानसिकता करार दिया।
देश में खासकर उत्तरी भारत में इज्जत के नाम पर हत्याओं सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है, हत्याओं के इसी सिलसिले में युवक-युवतियों की हत्या के इस वायरस ने राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में भी अपने पांव पसार लिये हैं। विकसित समाज की मान्यता के विपरीत परिवारजनों की इच्छा के विरूद्ध सगोत्रीय या अंतरजातीय विवाह करने वाले युवाओं व युवतियों की हो रही ऑनर किलिंग के लिए कौन जिम्मेदार है? इसी का सवाल ढूंढने की जरूरत महसूस की जा रही है ताकि ऑनर किलिंग के मामलों पर अंकुश लगाया जा सके। हालांकि ऐसी घटनाओं पर उच्चतम न्यायालय के बाद केंद्र सरकार भी गंभीर है जिसे रोकने के लिए संसद के मानसून सत्र के दौरान एक विधेयक लाने की तैयारी की जा रही है। कानून विशेषज्ञ तो मानते हैं कि इस ऑनर किलिंग को रोकने के लिए कमीशन ऑफ सती यानि प्रीवेंशन एक्ट-1987 जैसा कानून बनाया जाना चाहिए।
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में कुलदीप-मोनिका व शोभा की हत्या के रूप में इसी माह लगातार तीसरे ऑनर किलिंग की घटना ने साबित कर दिया है कि ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए जा क्रिमनल लॉ पर्याप्त न हो तो राष्ट्रीय स्तर पर कानून बनाकर उसे सख्ती से लागू किया जाए। हालांकि ऑनर किलिंग केवल भारत की ही समस्या है ऐसा नहीं है, बल्कि यह एक वैश्विक समस्या है। पिछले दिनों संयुक्त राष्ट्र संघ ने संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष नामक एक रिपोर्ट जारी की थी, जिसमें कहा गया था कि दुनिया में प्रति वर्ष 5000 से भी अधिक प्रेमी जोड़े ऑनर किलिंग के शिकार हो जाते है। कई पश्चिमी देशों में ऑनर किलिंग की घटनाएँ देखने को मिल रही हैं इसमें भारत के अलावा फ्रांस, जर्मनी, ब्रिटेन आदि देश भी शामिल हैं। यह बात दीगर है कि यहां दूसरे देशों से आने वाले समुदाय के लोग ही ऑनर किलिंग के शिकार होते है। वहीं पाकिस्तान, बंगलादेश, मिश्र, पेरू, अर्जेटीना, जॉर्डन, इजराइल, लोनान, तुर्की, सीरिया, मोरक्को, इक्वाडोर, युगांडा, स्वीडन, यमन तथा खाड़ी के देशों में ऑनर किलिंग जैसे अपराध हो रहे हैँ, जहां इज्जत के नाम पर हत्या करने वाले आरोपी पूरी तरह या आंशिक रूप से बच जाते हैं। भारत के उत्तरी राज्यों हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, राजस्थान तथा बिहार में लगातार ऑनर किलिंग का सिलसिला जारी है। हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में खाप या सर्वखाप की एक सामाजिक प्रशासन की पद्धति समाज में सामाजिक व्यवस्थाओं को बनाये रखने के लिए मनमर्जी से समाजिक मर्यादाओं को तोड़ने वाले प्रेमी जोड़ों के खिलाफ फरमान देने का सिलसिला जारी है। हालांकि भारतीय संविधान खाप पंचायतों को कानून अपने हाथ में लेने की कभी इजाजत नहीं देता। सुप्रीम कोर्ट ने भी हाल के दिनों में ऑनर किलिंग की बढ़ती घटनाओं पर एक गैर सरकारी संस्था शक्ति वाहिनी की दायर जनहित याचिका पर केंद्र तथा हरियाणा समेत आठ राज्यों की सरकार को इस मामले पर नोटिस जारी कर चुकी है। कानून विशेषज्ञ कमलेश जैन का कहना है कि ऑनर किलिंग को रोकने के लिए कमीशन ऑफ सती (प्रीवेंशन एक्ट-1987) की तर्ज पर कानून बनाने की जरूरत है, जिसमें फांसी की सजा का प्रावधान है। मॉजूदा कानून में भी ऐसे प्रावधान हैं लेकिन इसमें आरोपी साफ तौर से बचने में सफल हो जाते हैं। उनका कहना है कि किसी भी धर्मशास्त्र या अन्य किसी शास्त्रों में नहीं है कि अपनी समाज की मर्जी के बिना विवाह करने वालों की हत्या की जाए। इसलिए सरकार को प्रीवेंशन एक्ट-1987 की तर्ज पर नया कानून बनाकर ऑनर किलिंग पर लगाम लगाने की जरूरत है। ऑनर किलिंग पर कांग्रेस की राष्ट्रीय प्रवक्ता जयंती नटराजन का कहना है कि कांग्रेस ऑनर किलिंग में हत्याओं और हिंसा को एक सिरे से खारिज करती है। नटराजन का मानना है कि ऑनर किलिंग को रोकने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक सख्त कानून बनाने की जरूरत है, ताकि किसी को कानून अपने हाथ में लेने पर सख्त सजा मिल सके। ऑनर किलिंग की बढ़ती घटनाओं पर केंद्र सरकार भी गंभीर है जिसमें केंद्रीय कानून मंत्री वीरप्पा मोइली संकेत दे चुके हैं कि ‘ऑनर किलिंग’ के लिए पूरी पंचायत को दोषी ठहराने के लिए केंद्र नया कानून बनाने की तैयारी में है, जिसमें आईपीसी-सीआरपीसी में नए प्रावधान शामिल करने के लिए सरकार संसद के मानसून सत्र में विधेयक लाने के लिए मसौदा तैयार कर चुकी है। इस विधेयक में पंचायतों को मनमाने फरमान जारी करने से रोकने की भी व्यवस्था की जाएगी। प्रस्तावित कानून में मैरिज एक्ट में 30 दिन की रजिस्ट्रेशन अवधि को कम या खत्म करने के प्रस्ताव के अलावा पंचायत की बजाए खुद को निर्दोष साबित करने की जिम्मेदारी आरोपी की होगी। पूर्व आईपीएस अधिकारी एवं संयुक्त राष्ट्र में पुलिस सलाहकार रह चुकी किरण बेदी का कहना है कि ‘ऑनर किलिंग’ के नाम पर हो रही हत्याओं में सम्मान योग्य कोई बात नहीं है। श्रीमती बेदी का सवाल है कि क्या ये ऑनर किलिंग है या सीधे जाति के आधार पर हो रही हत्या है। उन्होंने इज्जत के नाम पर अपनाई जा रही इस परंपरा को मध्यकालीन मानसिकता करार दिया।
मंगलवार, 22 जून 2010
भारत-पाक वार्ता में विश्वास बहाली पहला कदम!
ओ.पी. पाल
भारत और पाकिस्तान के बीच आपसी सांन्धों को सुधारने की दिशा में दोनों देशों के बीच सचिव स्तर की बातचीत 24 जून को इस्लामाबाद में होने जा रही है, जिसका पहला मकसद एक-दूसरे के प्रति विश्वास और भरोसे को बहाल करना है ताकि पडोसियों के बीच अन्य मुद्दों पर वार्ताएं करने के लिए सहमति का माहौल तैयार किया जा सके। विशेषज्ञों का मानना है कि हालांकि मुंबई हमले के बाद अभी तक पाकिस्तान ने कोई ऐसा प्रमाण नहीं दिया है कि दोनों देशों के बीच शुरू हुई बातचीत का वातावरण उत्साहवर्धक हो, लेकिन एक-दूसरे के बीच विश्वास और भरोसे की खाई को पाटने के लिए दोनों देशों के बीच बातचीत का सिलसिला चलता रहना चाहिए। बातचीत से ही एक अनुकूल वातावरण की जमीन तैयार की जा सकती है।मुंबई के 26/11 आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिसतान के बीच में बढ़ी तल्खी और आतंकवाद के प्रति पाकिस्तान के ढुलमुल रवैये के बावजूद भारत के प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह और उनके पाकिस्तानी समकक्ष युसूफ रजा गिलानी ने आपस में दोनों देशों के बीच विश्वास और भरोसे को बहाल करने का जो आधार तय किया था, उसी के तहत 24 जून को इस्लामाबाद में भारतीय विदेश सचिव सुश्री निरुपमा राव तथा पाकिस्तानी विदेश सचिव सलमान बशीर के बीच सचिव स्तरीय वार्ता होने जा रही है, जो इससे पहले 25 फरवरी 2010 को नई दिल्ली में बिना किसी नतीजे के खत्म हो गई थी। इस्लामाबाद की सचिव स्तरीय वार्ता ही अगले महीने 15 जुलाई को दोनों देशों के विदेश मंत्रियों के बीच होने वाली बातचीत का एजेंडे का आधार तय करेगी? हालांकि 26 जून को इस्लामाबाद में दक्षिणी एशियाई देशों के गृहमंत्रियों के सम्मेलन में भारत के गृहमंत्री पी. चिदम्बरम भी हिस्सा लेने के लिए पाकिस्तान जा रहे हैं। माना जा रहा है कि गृह मंत्रियों के दक्षेस सम्मेलन में विशेषकर आतंकवाद का मुद्दा रहेगा जिसके लिए भारत पहले से ही पाकिस्तान से आतंकवादी संगठनों के खिलाफ ठोस कार्रवाई करने की मांग करता आ रहा है। बहरहाल भारत और पाकिस्तान के बीच होने वाली वार्ता के नतीजों पर कोई भविष्यवाणी नहीं की जा सकती, लेकिन विदेश मामलों के विशेषज्ञ वेद प्रताप वैदिक का मानना है कि दोनों देशों के बीच संबंधों को लेकर एक बेहतर माहौल बने इसके लिए वार्ताएं होती रहनी चाहिए। जहां तक सीमाओं पर घुसपैठ और संघर्ष विराम का उल्लंघन या आतंकवादी घटनाओं का सवाल है उन पर अंकुश लग सके ऐसा संभव नहीं है। सचिव स्तरीय वार्ता को लेकर श्री वैदिक का कहना है कि इस वार्ता का कोई ठोस नतीजा निकलेगा या नहीं यह कहना मुश्किल है, क्यों कि मुंबई हमले के बाद अभी तक पाकिस्तान कोई ऐसा प्रमाण नहीं दे पाया है जिससे यह कहा जा सके कि दोनों देशों के बीच वातावरण उत्साहजनक है। आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान का ढुलमुल रवैया, अफगानिस्तान के विकास में भारत की सहयोग की नीतियों पर आपत्ति जताना और यहां तक कि चीन से परमाणु करार करके पाकिस्तान में परमाणु संयंत्र स्थापित कराने की पाकिस्तान की मंशा से कहीं तक भी यह नहीं लगता कि पाकिस्तान और भारत के बीच बातचीत के ठोस परिणाम सामने आएंगे। लेकिन दोनों देशों के बीच लंबित मुद्दों पर सहमति बनाने और आपसी संबंधों को बेहतर बनाने के लिए इस प्रकार की वार्ताएं जारी रखना जरूरी है। भारत और पाकिस्तान के जानकार विशेषज्ञ प्रो. कलीम बहादुर मानते हैं कि दोनों देशों के बीच बातचीत करने का मकसद यही है कि विश्वास तथा भरोसे की खाई को भरा जा सके। उनका कहना है कि वार्ता के दौरान पाकिस्तान कश्मीर व जल जैसे मुद्दे को उठाने का प्रयास जरूर करेगा, जाकि इससे पहले दोनों देशों के बीच तल्खी का कारण बने आतंकवाद की समस्या पर पाकिस्तान को भरोसा कायम करने की जरूरत है। विश्वास कायम होने के बाद दोनों देश मानवीय और अन्य सभी मुद्दों को एक-दूसरे के समक्ष स्प्ष्ट करने के बाद उनके हल ढूंढ सकते हैं। प्रो. बहादुर का मानना है कि पाकिस्तान के पुरानी आदतों को देखते हुए ऐसा नहीं लगता सचिव स्तरीय वार्ता का कोई नतीजा सामने आएगा, लेकिन यदि वातावरण तैयार हो जाए तो दोनों देशों के हित में ही होगा, हालांकि भारत को पाकिस्तान से ज्यादा नतीजों की उम्मीद नहीं रखनी चाहिए कि वह सकारात्मक कदम बढ़ाने के सामने आए। विशेषज्ञों की माने तो पाकिस्तान आतंकवाद के मुद्दे पर कभी भी गंभीर नजर नहीं आया, जो दुनिया के लिए खतरा बना हुआ है। भारत को इस बात का ध्यान रखने की जरूरत है कि वह वार्ता के दौरान आतंकवाद के मुद्दे को ही मुख्य फोकस में रखे और पाकिस्तान को इस बात का अहसास कराए कि आतंकवाद उनके लिए ही नहीं बल्कि पाकिस्तान के लिए भी खतरा है।
भारत और पाकिस्तान के बीच आपसी सांन्धों को सुधारने की दिशा में दोनों देशों के बीच सचिव स्तर की बातचीत 24 जून को इस्लामाबाद में होने जा रही है, जिसका पहला मकसद एक-दूसरे के प्रति विश्वास और भरोसे को बहाल करना है ताकि पडोसियों के बीच अन्य मुद्दों पर वार्ताएं करने के लिए सहमति का माहौल तैयार किया जा सके। विशेषज्ञों का मानना है कि हालांकि मुंबई हमले के बाद अभी तक पाकिस्तान ने कोई ऐसा प्रमाण नहीं दिया है कि दोनों देशों के बीच शुरू हुई बातचीत का वातावरण उत्साहवर्धक हो, लेकिन एक-दूसरे के बीच विश्वास और भरोसे की खाई को पाटने के लिए दोनों देशों के बीच बातचीत का सिलसिला चलता रहना चाहिए। बातचीत से ही एक अनुकूल वातावरण की जमीन तैयार की जा सकती है।मुंबई के 26/11 आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिसतान के बीच में बढ़ी तल्खी और आतंकवाद के प्रति पाकिस्तान के ढुलमुल रवैये के बावजूद भारत के प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह और उनके पाकिस्तानी समकक्ष युसूफ रजा गिलानी ने आपस में दोनों देशों के बीच विश्वास और भरोसे को बहाल करने का जो आधार तय किया था, उसी के तहत 24 जून को इस्लामाबाद में भारतीय विदेश सचिव सुश्री निरुपमा राव तथा पाकिस्तानी विदेश सचिव सलमान बशीर के बीच सचिव स्तरीय वार्ता होने जा रही है, जो इससे पहले 25 फरवरी 2010 को नई दिल्ली में बिना किसी नतीजे के खत्म हो गई थी। इस्लामाबाद की सचिव स्तरीय वार्ता ही अगले महीने 15 जुलाई को दोनों देशों के विदेश मंत्रियों के बीच होने वाली बातचीत का एजेंडे का आधार तय करेगी? हालांकि 26 जून को इस्लामाबाद में दक्षिणी एशियाई देशों के गृहमंत्रियों के सम्मेलन में भारत के गृहमंत्री पी. चिदम्बरम भी हिस्सा लेने के लिए पाकिस्तान जा रहे हैं। माना जा रहा है कि गृह मंत्रियों के दक्षेस सम्मेलन में विशेषकर आतंकवाद का मुद्दा रहेगा जिसके लिए भारत पहले से ही पाकिस्तान से आतंकवादी संगठनों के खिलाफ ठोस कार्रवाई करने की मांग करता आ रहा है। बहरहाल भारत और पाकिस्तान के बीच होने वाली वार्ता के नतीजों पर कोई भविष्यवाणी नहीं की जा सकती, लेकिन विदेश मामलों के विशेषज्ञ वेद प्रताप वैदिक का मानना है कि दोनों देशों के बीच संबंधों को लेकर एक बेहतर माहौल बने इसके लिए वार्ताएं होती रहनी चाहिए। जहां तक सीमाओं पर घुसपैठ और संघर्ष विराम का उल्लंघन या आतंकवादी घटनाओं का सवाल है उन पर अंकुश लग सके ऐसा संभव नहीं है। सचिव स्तरीय वार्ता को लेकर श्री वैदिक का कहना है कि इस वार्ता का कोई ठोस नतीजा निकलेगा या नहीं यह कहना मुश्किल है, क्यों कि मुंबई हमले के बाद अभी तक पाकिस्तान कोई ऐसा प्रमाण नहीं दे पाया है जिससे यह कहा जा सके कि दोनों देशों के बीच वातावरण उत्साहजनक है। आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान का ढुलमुल रवैया, अफगानिस्तान के विकास में भारत की सहयोग की नीतियों पर आपत्ति जताना और यहां तक कि चीन से परमाणु करार करके पाकिस्तान में परमाणु संयंत्र स्थापित कराने की पाकिस्तान की मंशा से कहीं तक भी यह नहीं लगता कि पाकिस्तान और भारत के बीच बातचीत के ठोस परिणाम सामने आएंगे। लेकिन दोनों देशों के बीच लंबित मुद्दों पर सहमति बनाने और आपसी संबंधों को बेहतर बनाने के लिए इस प्रकार की वार्ताएं जारी रखना जरूरी है। भारत और पाकिस्तान के जानकार विशेषज्ञ प्रो. कलीम बहादुर मानते हैं कि दोनों देशों के बीच बातचीत करने का मकसद यही है कि विश्वास तथा भरोसे की खाई को भरा जा सके। उनका कहना है कि वार्ता के दौरान पाकिस्तान कश्मीर व जल जैसे मुद्दे को उठाने का प्रयास जरूर करेगा, जाकि इससे पहले दोनों देशों के बीच तल्खी का कारण बने आतंकवाद की समस्या पर पाकिस्तान को भरोसा कायम करने की जरूरत है। विश्वास कायम होने के बाद दोनों देश मानवीय और अन्य सभी मुद्दों को एक-दूसरे के समक्ष स्प्ष्ट करने के बाद उनके हल ढूंढ सकते हैं। प्रो. बहादुर का मानना है कि पाकिस्तान के पुरानी आदतों को देखते हुए ऐसा नहीं लगता सचिव स्तरीय वार्ता का कोई नतीजा सामने आएगा, लेकिन यदि वातावरण तैयार हो जाए तो दोनों देशों के हित में ही होगा, हालांकि भारत को पाकिस्तान से ज्यादा नतीजों की उम्मीद नहीं रखनी चाहिए कि वह सकारात्मक कदम बढ़ाने के सामने आए। विशेषज्ञों की माने तो पाकिस्तान आतंकवाद के मुद्दे पर कभी भी गंभीर नजर नहीं आया, जो दुनिया के लिए खतरा बना हुआ है। भारत को इस बात का ध्यान रखने की जरूरत है कि वह वार्ता के दौरान आतंकवाद के मुद्दे को ही मुख्य फोकस में रखे और पाकिस्तान को इस बात का अहसास कराए कि आतंकवाद उनके लिए ही नहीं बल्कि पाकिस्तान के लिए भी खतरा है।
सोमवार, 21 जून 2010
गैस पीड़ितों के जख्मों पर पहले क्यों नहीं लगा मरहम!
ओ.पी. पाल
भोपाल गैस त्रासदी पर बने मंत्रि समूह ने केंद्र सरकार से जो सिफारिशें करने का फैसला किया है उसी मांग को लेकर गैस पीड़ित पिछले साढ़े 25 साल से आंदोलनरत हैं। इस कांड पर यदि पहली बार गठित किये गये जीओएम किसी ठोस नतीजे पर पहुंचने के लिए गंभीर होता तो शायद कांग्रेस की इस मुद्दे पर जो फजीहत हो रही है वह न होती और पीड़ितों को राहत भी मिल जाती। ऐसे में सवाल है कि अदालत के फैसले के बाद चौतरफा घिरता देख कांग्रेस ने अपना दामन बचाने के लिए इस मुद्दे पर कहीं ज्यादा ही तेजी से सजगता दिखाई है। विशेषज्ञ मानते हैं कि जीओएम यानि मंत्रि समूह की केंद्र सरकार को की जा रही सिफारिशों को लागू करने के लिए •भी सरकार को ऐसी ही तीव्रता दिखाने की जरूरत है, वहीं दोषियों को सख्त सजा दिलाने के साथ उन राजनीतिज्ञो को भी कटघरे में लाकर खड़ा करने की जरूरत है जो इस मामले में दोषियों को बचाने के प्रयास में जुटे रहे।दुनिया की सासे बड़ी औद्योगिक त्रासदी के रूप में साढ़े 25 साल पहले भोपाल गैस कांड में गत सात जून को आए अदालत के फैसले ने लाखों गैस पीड़ितों के जख्मों को जिस प्रकार हरा कर दिया था तो उस पर राष्टÑीय ही नहीं बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बहस तो छिड़नी ही थी, खासकर यूनियन कार्बाइड के प्रमुख एवं अमेरिकी नागरिक वॉरेन एंडरसन का साफ बचकर चला जाना तत्कालीन कांग्रेस की केंद्र और राज्य सरकार को कटघरे में खड़ा करता नजर आया। इस फैसले के बाद प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने आनन फानन में केंद्रीय गृहमंत्री पी. चिदांरम की अध्यक्षता में एक नौ सदस्यीय मंत्री समूह का गठन कर दिया। भोपाल गैस कांड पर लीपापोती करने, दोषियों को बचाने के प्रयास, मामलों को हल्की धाराओं में दर्ज कराने और मुख्य आरोपी वॉरेन एंडरसन को बचाकर उसे भगाने जैसे सभी आरोपों में कांग्रेस चौतरफा घिरती नजर आई, क्योंकि हादसे के दौरान केंद्र में राजीव गांधी और मध्य प्रदेश में अर्जुन सिंह की सरकार थी। विशेषज्ञ प्रो. एसके शर्मा का मानना है कि अदालत के फैसले के बाद कांग्रेस का अपना दामन बचाने के लिए ही जीओएम गठित करके उससे तेजी से अपनी रिपोर्ट तैयार करने की केंद्र सरकार द्वारा हिदायत दी गई। तीन दिन की लगातार हुई बैठकों में जीओएम ने भोपाल गैस पीड़ितों के हित में जो नतीजे निकालें हैं उनमें भी कांग्रेस कटघरे में आने से नहीं बच सकती। शर्मा कहते हैं कि भोपाल गैस कांड पर केंद्र सरकार ने जा पहली बार मंत्री समूह बनाया था तो वह 17 साल में 17 बैठकें करने के बावजूद किसी नतीजे पर नहीं पहुंचा और उसके बाद 2008 में इस जीओएम का पुनर्गठन किया लेकिन पीड़ितों के जख्मों पर मरहम नहीं लग सका। सवाल उठता है कि यदि कांग्रेसनीत केंद्र सरकार द्वारा गठित जीओएम ने केंद्र सरकार से भोपाल कांड पर जो सिफारिशें करने का निर्णय लिया है वह निर्णय कांग्रेस नीत सरकार के इससे पहले गठित दो जीओएम क्यों नहीं ले सके? इससे साफ जाहिर है कि इससे पहले गठित जीओएम पीड़ितों के हितों को नजरअंदाज करके हादसे के दोषियों और उन्हें बचाने वाले राजनीतिज्ञों की करतूतों पर पर्दा डालने के लिए लीपापोती ही करते रहे हैं। शायद पहले दो जीओएम को उस समय अहसास नहीं होगा कि अदालत का फैसला भविष्य में आग उगल सकता है? विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि 2/3 दिसांर 1984 को हुए इस हादसे पर जीओएम की सिफारिशों को भी उतनी तेजी से ही सरकार को लागू करने की जरूरत है जितनी तेजी से चिदांरम के नेतृत्व वाले जीओएम ने पीड़ितों को राहत देने और दोषियों को सख्त सजा दिलाने के लिए सिफारिशों का खाका तैयार किया है। जहां तक मौजूदा जीओएम की सिफारिशों का सवाल है उसमें पीड़ितों को राहत देने के लिए 1500 करोड़ का पैकेज की सिफारिश के साथ ही मुख्य रूप से वॉरेने एंडरसन के प्रत्यर्पण के नये सिरे से प्रयास करने पर भी बल दिया गया है। इससे भी महत्वपूर्ण सिफारिश यूनियन कार्बाइड के रासायनिक विषैले कचरे को साइट से साफ करने की है। दरअसल भोपाल गैस के पीड़ित पिछले साढ़े 25 साल से सिफारिश में शामिल निर्णयों की मांग को लेकर आंदोलन करने के लिए सड़कों पर हैं। यदि इस प्रकार की कार्रवाई पहले से ही कर ली जाती तो अदालत के फैसले के बाद कांग्रेस की जो किरकीरी हुई है शायद इसकी नौबत कभी न आती और गैस पीड़ितों को भी राहत मिल सकती थी। विशेषज्ञों का तो यहां तक कहना है कि यदि कांग्रेस को अपने दामन पर लगे दाग को साफ करना है कि तो सरकार को यूनियन कार्बाइड से जुड़े लोगों को सजा दिलाने के साथ ही दोषियों को बचाने के लिए लीपापोती करने वाले राजनीतिज्ञों को भी कटघरे में खड़ा करने की जरूरत है।
रविवार, 20 जून 2010
राज्यसभा में भी बढ़ने लगा दागियों का ग्राफ!
ओ.पी. पाल
भारतीय संसद के उच्च सदन राज्यसभा के द्विवार्षिक चुनाव में 55 सीटों के लिए हुए चुनाव में निर्वाचित हुए उम्मीदवारों में 14 सांसदों के खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैं जिनसे यह साबित होने लगा है कि राजनीतिक दल लोकसभा की तरह राज्यसभा में राजनीति का अपराधीकरण करने में सक्रिय हो गये हैं। यही नहीं इन 14 दागियों में पांच सांसदों पर तो हत्या, हत्या का प्रयास, धोखाधड़ी और जालसाजी के अलावा भ्रष्टाचार जैसे संगीन मामले लंबित हैं। देश में बढ़ते राजनीति के अपराधीकरण से यही कहा जा सकता है कि आ उच्च सदन यानि राज्यसभा बुद्धिजीवियों का सदन नहीं रहा।राज्यसभा के द्विवार्षिक चुनाव 2010 में 12 राज्यों की 55 सीटों के लिए दो चरणों में चुनाव संपन्न कराए गये हैं, जिनमें 14 ऐसे सदस्य निर्वाचित हुए जिनके खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैं, इनमें कांग्रेस के 16 में तीन, भाजपा के 11 में दो, राकांपा के सभी दो, बसपा के सात में एक, सपा का दो में एक, शिवसेना का एक, जद-यू के दो में एक, राजद का एक, तेदपा का दो में एक तथा तीन निर्दलीयों में एक सांसद शामिल हैँ। इनमें से छह सांसदों के खिलाफ हत्या, हत्या का प्रयास, लूट, धोखाधडी और जालसाजी, हत्या का प्रयास, अपहरण, भ्रष्टाचार जैसे संगीन मामले दर्ज हैं। देश में प्रशासनिक सुधार और चुनाव सुधार की दुहाई देने वाले राजनैतिक दलों ने संसद के उच्च सदन राज्यसभा में दागियों का दामन थामना शुरू कर दिया है, जो अभी तक लोकसभा के चुनाव में ही देखा जाता रहा है। यानि कहा जा सकता है कि अपराध को राजनीति से दूर करके राजनीति को अपराधियों से दूर रखने का दम भरने वाली सभी राजनीतिक पार्टियां अपराधियों को अधिक तरजीह देती आ रही है, जिसका परिणाम है कि बुद्धिजीवियों की जगह आ राज्यसभा में दागियों की संख्या बढ़ने लगी है। कांग्रेस व भाजपा जैसे बड़े दल भी अपराधियों को गले लगाने में पीछे नहीं हैं बल्कि उन्हें संसद के दोनों सदनों लोकसभा और राज्यसभा में लाने का काम कर रहे हैं। नेशनल इलेक्शन वॉच एवं एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स जैसी संस्थाएं पिछले कई सालों से राजनीतिक दलों के चुनाव मैदान में आने वाले प्रत्याशियों पर अपना काम कर रही है जिनकी रिपोर्ट में राजनीति का अपराधीकरण तेजी के साथ बढ़ रहा है। द्विवार्षिक चुनाव में कांग्रेस के दागी तीन सांसदों में राजस्थान से आनन्द शर्मा, आंध्र प्रदेश से वी. हनुमंत व महाराष्ट्र से अविनाश पांडेय शामिल हैं, जाकि भाजपा के छत्तीसगढ़ से नन्द किशोर साय तथा यूपी से मुख्तार अब्बास नकवी दागदार सांसदों की सूची में शामिल हो गये हैं। इसी प्रकार राकांपा के महाराष्ट्र से निर्वाचित होकर आये तारिक अनवर व ईश्वर लाल जैन के खिलाफ भी आपराधिक मामले लंबित हैँ। इनके अलावा यूपी से बसपा के प्रो. एसपीएस बघेल, सपा के रशीद मसूद, बिहार से जद-यू के उपेन्द्र प्रसाद सिंह कुशवाह तथा राजद के रामकृपाल, शिवसेना के महाराष्ट्र से संजय राउत, आन्ध्र प्रदेश से तेदपा की गुंडु सुधा रानी तथा कर्नाटक से निर्दलीय सांसद विजय माल्या दागियों में शामिल हैं। जिन पांच सांसदों पर संगीन अपराधों में मामले दर्ज हैं उनमें शिवसेना के संजय राउत, तेदपा की गुंडु सुधा रानी, कांग्रेस के वी. हनुमंत राव, भाजपा के नन्द किशोर साय तथा बसपा के प्रो. एसपी सिंह बघेल शामिल हैँ। राज्यसभा में बढ़ते अपराधियों के ग्राफ पर यदि नजर डाले तो इस समय 245 सदस्यों में से 41 सांसद आपराधिक प्रवृत्ति के मौजूद हैं। इन चुनाव से पहले यह संख्या 37 थी, जिसमें से कांग्रेस के संतोष बरगोडिया, जद-यू के डा. एजाज अली, राजद के सुभाष यादव तथा सपा के कमाल अख्तर और भगवती सिंह तथा एडीएमके के टीटीवी दीनाकरण का कार्यकाल समाप्त हो गया है, लेकिन इन्हीं संख्या में से संजय राउत, नंद किशोर साय, हनुमंत राव व तारिक अनवर ने फिर से निर्वाचित होकर वापसी की है। जब कि जहां छह दागियों की विदाई हुई है तो 10 दागी उम्मीदवार नये सांसदों के रूप में निर्वाचित होकर सदन में आए हैं। इस प्रकार राज्यसभा में कुल दागी सांसदों में कांग्रेस के 10, भाजपा आठ, बसपा के पांच, सपा के चार, सीपीएम के चार, शिवसेना के चार, जद-यू के तीन, सीपीआई के तीन, राजद का एक, तेदपा का एक सदस्य दागियों की फेहरिस्त में शामिल है।
राज्यसभा: बहुमत का आंकड़ा नहीं छू सकी यूपीए
राज्यसभा के द्विवार्षिक चुनाव में प्रतिष्ठा को दांव पर लगाने के बावजूद कांग्रेस सर्वाधिक सीटों पर जीत हासिल करके भी यूपीए बहुमत के आंकड़े से कोसो दूर रह गया है। कांग्रेस ने हाल ही में संपन्न हुए राज्यसभा की 55 सीटों के चुनाव में उच्च सदन में बहुमत का आंकड़ा छूने के लिए सभी प्रयास करने के बावजूद 16 सीटों पर जीत हासिल की है। भारतीय संसद के उच्च सदन में यूपीए का आंकड़ा बढ़ाने का सपना कांग्रेस पूरा नहीं कर सकी और वह बहुमत के आंकडे से अभी कोसो दूर है। राज्यसभा चुनावों के परिणाम पर नजर डालें तो उच्च सदन में बहुमत से दूर होने के कारण संप्रग को सुधार कार्यक्रमों सहित कई महत्वपूर्ण मुद्दों और विधेयकों में आम सहमति के लिए ही विवश होना पड़ सकता है। 245 सदस्यीय राज्यसभा में 55 सीटों पर हुए चुनावों के बाद भी संप्रग की सीटें लगभग वहीं की वहीं रह गई हैं। हालांकि कांग्रेस को जरूर इस चुनाव से कुछ नुकसान उठाना पड़ा है, क्योंकि उसकी सीटें 71 से घटकर 69 पर आ गई हैं। लेकिन कांग्रेस अम्बिका सोनी, जयराम रमेश व आनंद शर्मा सहित कई केंद्रीय मंत्रियों को फिर से राज्यसभा में लाने में कामयाब रही। कांग्रेस के इस नुकसान के पीछे काफी हद तक उसकी सहयोगी पार्टियां जिम्मेदार मानी जा रही हैं। दक्षिण भारत की प्रमुख पार्टी और यूपीए की सहयोगी द्रमुक के खाते में तीन अतिरिक्त सीटें चली गई हैं और उसके पास आ ऊपरी सदन में सात सदस्य हो गए हैं। शरद पवार के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के पास छह राज्यसभा सांसद और ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस और जम्मू-कश्मीर की नेशनल कांफ्रेंस के पास दो-दो राज्यसभा सांसद हैं। राज्यसभा में 46 सदस्यों वाली भाजपा लगभग अपनी सभी दस सीटें बचाने में कामयब हो गई है। जहां एक ओर उसने कर्नाटक और राजस्थान में प्रभावशाली जीत दर्ज करने में सफलता पाई है, वहीं झारखण्ड में उसे मायूसी हाथ लगी। इस चुनाव से अगर सबसे जबरदस्त झटका तो इन चुनाव में सपा को लगा है, जिसकी संख्या घटकर सीधे दस सांसदों से घटकर पांच पर आ गई है। यूपीए को बहार से समर्थन दे रही समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल जैसी पार्टियां कुछ मुद्दों को लेकर काफी सख्त रुख अपनाए रहीं। जहां इन दलों ने यूपीए को महिला आरक्षण विधेयक पर नाकों चने चावा दिया, वहीं जाति आधारित जनगणना पर यह विजेता के तौर पर उभरीं। राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस ने आंध्र प्रदेश में अभि नय की दुनिया से राजनीति में आए चिरंजीवी की पार्टी प्रजा राज्यम से समझौता किया था और राज्य में सिर्फ चार उम्मीदवार मैदान में खड़े किए थे। कर्नाटक में कांग्रेस ने जनता दल-एस के साथ गठजोड़ का प्रयास किया था, वह सफल नहीं हुआ जिसके चलते उसके खाते में सिर्फ एक सीट आई और वह अपने महासचिव बीके हरिप्रसाद को दोबारा ऊपरी सदन नहीं पहुंचा सकी। इस चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी विजय माल्या जद-एस के समर्थन से जीत गए। राजस्थान में राज्यसभा के लिए हुए मतदान में भाजपा जहां प्रसिद्ध अधिवक्ता राम जेठमलानी को जिताने में कामयाब रही, वहीं कांग्रेस समर्थित संतोष बगरोडिया की हार से राज्य में सत्तारुढ़ दल को जोरदार झटका लगा। हालांकि भाजपा को झारखण्ड में इसी तरह का झटका लगा, जहां विधायकों की क्रास वोटिंग ने उसके प्रत्याशी अजय मारू के ऊपरी सदन पहुंचने के सपने को तार-तार कर दिया।
भारतीय संसद के उच्च सदन राज्यसभा के द्विवार्षिक चुनाव में 55 सीटों के लिए हुए चुनाव में निर्वाचित हुए उम्मीदवारों में 14 सांसदों के खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैं जिनसे यह साबित होने लगा है कि राजनीतिक दल लोकसभा की तरह राज्यसभा में राजनीति का अपराधीकरण करने में सक्रिय हो गये हैं। यही नहीं इन 14 दागियों में पांच सांसदों पर तो हत्या, हत्या का प्रयास, धोखाधड़ी और जालसाजी के अलावा भ्रष्टाचार जैसे संगीन मामले लंबित हैं। देश में बढ़ते राजनीति के अपराधीकरण से यही कहा जा सकता है कि आ उच्च सदन यानि राज्यसभा बुद्धिजीवियों का सदन नहीं रहा।राज्यसभा के द्विवार्षिक चुनाव 2010 में 12 राज्यों की 55 सीटों के लिए दो चरणों में चुनाव संपन्न कराए गये हैं, जिनमें 14 ऐसे सदस्य निर्वाचित हुए जिनके खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैं, इनमें कांग्रेस के 16 में तीन, भाजपा के 11 में दो, राकांपा के सभी दो, बसपा के सात में एक, सपा का दो में एक, शिवसेना का एक, जद-यू के दो में एक, राजद का एक, तेदपा का दो में एक तथा तीन निर्दलीयों में एक सांसद शामिल हैँ। इनमें से छह सांसदों के खिलाफ हत्या, हत्या का प्रयास, लूट, धोखाधडी और जालसाजी, हत्या का प्रयास, अपहरण, भ्रष्टाचार जैसे संगीन मामले दर्ज हैं। देश में प्रशासनिक सुधार और चुनाव सुधार की दुहाई देने वाले राजनैतिक दलों ने संसद के उच्च सदन राज्यसभा में दागियों का दामन थामना शुरू कर दिया है, जो अभी तक लोकसभा के चुनाव में ही देखा जाता रहा है। यानि कहा जा सकता है कि अपराध को राजनीति से दूर करके राजनीति को अपराधियों से दूर रखने का दम भरने वाली सभी राजनीतिक पार्टियां अपराधियों को अधिक तरजीह देती आ रही है, जिसका परिणाम है कि बुद्धिजीवियों की जगह आ राज्यसभा में दागियों की संख्या बढ़ने लगी है। कांग्रेस व भाजपा जैसे बड़े दल भी अपराधियों को गले लगाने में पीछे नहीं हैं बल्कि उन्हें संसद के दोनों सदनों लोकसभा और राज्यसभा में लाने का काम कर रहे हैं। नेशनल इलेक्शन वॉच एवं एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स जैसी संस्थाएं पिछले कई सालों से राजनीतिक दलों के चुनाव मैदान में आने वाले प्रत्याशियों पर अपना काम कर रही है जिनकी रिपोर्ट में राजनीति का अपराधीकरण तेजी के साथ बढ़ रहा है। द्विवार्षिक चुनाव में कांग्रेस के दागी तीन सांसदों में राजस्थान से आनन्द शर्मा, आंध्र प्रदेश से वी. हनुमंत व महाराष्ट्र से अविनाश पांडेय शामिल हैं, जाकि भाजपा के छत्तीसगढ़ से नन्द किशोर साय तथा यूपी से मुख्तार अब्बास नकवी दागदार सांसदों की सूची में शामिल हो गये हैं। इसी प्रकार राकांपा के महाराष्ट्र से निर्वाचित होकर आये तारिक अनवर व ईश्वर लाल जैन के खिलाफ भी आपराधिक मामले लंबित हैँ। इनके अलावा यूपी से बसपा के प्रो. एसपीएस बघेल, सपा के रशीद मसूद, बिहार से जद-यू के उपेन्द्र प्रसाद सिंह कुशवाह तथा राजद के रामकृपाल, शिवसेना के महाराष्ट्र से संजय राउत, आन्ध्र प्रदेश से तेदपा की गुंडु सुधा रानी तथा कर्नाटक से निर्दलीय सांसद विजय माल्या दागियों में शामिल हैं। जिन पांच सांसदों पर संगीन अपराधों में मामले दर्ज हैं उनमें शिवसेना के संजय राउत, तेदपा की गुंडु सुधा रानी, कांग्रेस के वी. हनुमंत राव, भाजपा के नन्द किशोर साय तथा बसपा के प्रो. एसपी सिंह बघेल शामिल हैँ। राज्यसभा में बढ़ते अपराधियों के ग्राफ पर यदि नजर डाले तो इस समय 245 सदस्यों में से 41 सांसद आपराधिक प्रवृत्ति के मौजूद हैं। इन चुनाव से पहले यह संख्या 37 थी, जिसमें से कांग्रेस के संतोष बरगोडिया, जद-यू के डा. एजाज अली, राजद के सुभाष यादव तथा सपा के कमाल अख्तर और भगवती सिंह तथा एडीएमके के टीटीवी दीनाकरण का कार्यकाल समाप्त हो गया है, लेकिन इन्हीं संख्या में से संजय राउत, नंद किशोर साय, हनुमंत राव व तारिक अनवर ने फिर से निर्वाचित होकर वापसी की है। जब कि जहां छह दागियों की विदाई हुई है तो 10 दागी उम्मीदवार नये सांसदों के रूप में निर्वाचित होकर सदन में आए हैं। इस प्रकार राज्यसभा में कुल दागी सांसदों में कांग्रेस के 10, भाजपा आठ, बसपा के पांच, सपा के चार, सीपीएम के चार, शिवसेना के चार, जद-यू के तीन, सीपीआई के तीन, राजद का एक, तेदपा का एक सदस्य दागियों की फेहरिस्त में शामिल है।
राज्यसभा: बहुमत का आंकड़ा नहीं छू सकी यूपीए
राज्यसभा के द्विवार्षिक चुनाव में प्रतिष्ठा को दांव पर लगाने के बावजूद कांग्रेस सर्वाधिक सीटों पर जीत हासिल करके भी यूपीए बहुमत के आंकड़े से कोसो दूर रह गया है। कांग्रेस ने हाल ही में संपन्न हुए राज्यसभा की 55 सीटों के चुनाव में उच्च सदन में बहुमत का आंकड़ा छूने के लिए सभी प्रयास करने के बावजूद 16 सीटों पर जीत हासिल की है। भारतीय संसद के उच्च सदन में यूपीए का आंकड़ा बढ़ाने का सपना कांग्रेस पूरा नहीं कर सकी और वह बहुमत के आंकडे से अभी कोसो दूर है। राज्यसभा चुनावों के परिणाम पर नजर डालें तो उच्च सदन में बहुमत से दूर होने के कारण संप्रग को सुधार कार्यक्रमों सहित कई महत्वपूर्ण मुद्दों और विधेयकों में आम सहमति के लिए ही विवश होना पड़ सकता है। 245 सदस्यीय राज्यसभा में 55 सीटों पर हुए चुनावों के बाद भी संप्रग की सीटें लगभग वहीं की वहीं रह गई हैं। हालांकि कांग्रेस को जरूर इस चुनाव से कुछ नुकसान उठाना पड़ा है, क्योंकि उसकी सीटें 71 से घटकर 69 पर आ गई हैं। लेकिन कांग्रेस अम्बिका सोनी, जयराम रमेश व आनंद शर्मा सहित कई केंद्रीय मंत्रियों को फिर से राज्यसभा में लाने में कामयाब रही। कांग्रेस के इस नुकसान के पीछे काफी हद तक उसकी सहयोगी पार्टियां जिम्मेदार मानी जा रही हैं। दक्षिण भारत की प्रमुख पार्टी और यूपीए की सहयोगी द्रमुक के खाते में तीन अतिरिक्त सीटें चली गई हैं और उसके पास आ ऊपरी सदन में सात सदस्य हो गए हैं। शरद पवार के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के पास छह राज्यसभा सांसद और ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस और जम्मू-कश्मीर की नेशनल कांफ्रेंस के पास दो-दो राज्यसभा सांसद हैं। राज्यसभा में 46 सदस्यों वाली भाजपा लगभग अपनी सभी दस सीटें बचाने में कामयब हो गई है। जहां एक ओर उसने कर्नाटक और राजस्थान में प्रभावशाली जीत दर्ज करने में सफलता पाई है, वहीं झारखण्ड में उसे मायूसी हाथ लगी। इस चुनाव से अगर सबसे जबरदस्त झटका तो इन चुनाव में सपा को लगा है, जिसकी संख्या घटकर सीधे दस सांसदों से घटकर पांच पर आ गई है। यूपीए को बहार से समर्थन दे रही समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल जैसी पार्टियां कुछ मुद्दों को लेकर काफी सख्त रुख अपनाए रहीं। जहां इन दलों ने यूपीए को महिला आरक्षण विधेयक पर नाकों चने चावा दिया, वहीं जाति आधारित जनगणना पर यह विजेता के तौर पर उभरीं। राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस ने आंध्र प्रदेश में अभि नय की दुनिया से राजनीति में आए चिरंजीवी की पार्टी प्रजा राज्यम से समझौता किया था और राज्य में सिर्फ चार उम्मीदवार मैदान में खड़े किए थे। कर्नाटक में कांग्रेस ने जनता दल-एस के साथ गठजोड़ का प्रयास किया था, वह सफल नहीं हुआ जिसके चलते उसके खाते में सिर्फ एक सीट आई और वह अपने महासचिव बीके हरिप्रसाद को दोबारा ऊपरी सदन नहीं पहुंचा सकी। इस चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी विजय माल्या जद-एस के समर्थन से जीत गए। राजस्थान में राज्यसभा के लिए हुए मतदान में भाजपा जहां प्रसिद्ध अधिवक्ता राम जेठमलानी को जिताने में कामयाब रही, वहीं कांग्रेस समर्थित संतोष बगरोडिया की हार से राज्य में सत्तारुढ़ दल को जोरदार झटका लगा। हालांकि भाजपा को झारखण्ड में इसी तरह का झटका लगा, जहां विधायकों की क्रास वोटिंग ने उसके प्रत्याशी अजय मारू के ऊपरी सदन पहुंचने के सपने को तार-तार कर दिया।
गुरुवार, 17 जून 2010
आतंकवादियों को मदद का एक और सबूत!
ओ.पी. पाल
पाकिस्तान आतंकवादी संगठनों से किस प्रकार से प्रोत्साहन दे रहा है यह सबूत पाकिस्तान के पंजाब प्रांत सरकार ने आतंकवादी संगठन जमात-उद-दावा और उससे जुड़ी संस्थाओं को अरों रुपये की आर्थिक मदद देकर दे ही दिया है। भारत के खिलाफ लश्कर-ए-तैयाब जैसे पाकिस्तानी आंतकी संगठन किस प्रकार के ताने-बाने बुन रहा है इसका सिलसिला मुंबई के 26/11 आतंकी हमले के बाद भी नहीं रूक रहा है। विशेषज्ञों की माने तो मुंबई आतंकी हमले के बाद भारत द्वारा लश्करे से जुड़े हाफिज सईद के दोषी होने के सबूत दिये जाने के बावजूद पाकिस्तान की सरकार उसे हर तरह की मदद देने में जुटी हुर्ई, तो ऐसे में भारत को आतंकवाद के खिलाफ सख्त कदम उठाने के लिए पाकिस्तान से होने वाली प्रस्तावित वार्ता में खुले मन से बातचीत करने की जरूरत है।मुंबई के आतंकी हमले में प्रमुख आरोपी रहे हाफिज सईद को पहले तो पाकिस्तान की अदालत ने निर्दोष करार दे दिया जिसने लश्कर-ए-तैयाब से जुड़े होने के साथ जमात-उद-दावा संगठन खड़ा कर लिया है। पाकिस्तान में तो यह संगठन सामाजिक और जेहादी है, लेकिन जिस प्रकार से हाफिज सईद के तेवर भारत के खिलाफ तीखे हैं और जमात-उद-दावा प्रमुख के रूप में वह कई बार भारत को युद्ध जैसी धमकियां भी दे चुका है, लेकिन पाकिस्तान इसे खुदा से कम नहीं आंक रहा है। इससे तो यही माना जा रहा है जा हाल ही में पाकिस्तान के पंजाब प्रांत की सरकार ने आतंकी संगठन जमात-उद-दावा और उससे जुड़ी संस्थाओं को पिछले वित्तीय वर्ष में 8.277 करोड़ डालर यानि करीब तीन अरा 85 करोड़ रुपये की आर्थिक मदद दी है। सईद को दी गई सरकारी मदद इस बात को भी प्रमाणित कर रही है कि पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ भी सईद के भक्त हैं, क्योंकि पजाब प्रांत में उन्ही की पार्टी पीएमएल-एन की सरकार है। इस सहायता को पंजाब प्रांत के कानून मंत्री राना सनाउल्लाह ने स्वीकार किया है कि जमात को धन मुहैया कराया गया। एक पूर्व रक्षा अधिकारी का कहना है कि लश्कर-ए-तैयबा और जमात-उद-दावा एक ही है जिसका प्रमुख हाफिज सईद मुंबई के आंतकवादी हमले का आरोपी भी है और जकीउर्ररहमान लखवी, अबू हमजा जैसे 20 दोषी करार पाकिस्तान के आंतकवादियों में हाफिज सईद का नाम भी शामिल है। हाफिज के खिलाफ भारत पहले से ही पाकिस्तान से कार्रवाई करने की मांग करता आ रहा है। रक्षा अधिकारी का मानना है कि भारत और पाकिस्तान की प्रस्तावित वार्ता में भारत आतंकवाद के मुद्दे के अलावा कोई और मुद्दा एजेंडे में शामिल न करें और हाफिज सईद जैसे भारत के दोषियों के प्रत्यर्पण के लिए भी प्रयास करें। लेकिन पाकिस्तान द्वारा जिस प्रकार से हाफिज सईद को प्रोत्साहित किया जा रहा है उससे नहीं लगता कि पाकिस्तान सरकार भारत की किसी भी प्रमाणिकता को स्वीकार करे। हालांकि मुंबई पर 26/11 आतंकी हमले के आरोपी के रूप में भारत ने लश्कर-ए-तैयबा के आतंकी हाफिज सईद के खिलाफ सबूत जुटाने के लिए भारत ने सईद की आवाज के नमूने मांगने के संकेत दिये हैं. जो पाकिस्तान से हमले के दौरान आतंकवादियों को दिशा निर्देश दे रहा था। भारत और पाकिस्तान के जानकार विशेषज्ञ अफसर करीम की माने तो सार्क देशों के 26 जून को गृह मंत्रियों की इस्लामाबाद में होने वाली बैठक के दौरान भारत के गृह मंत्री पी. चिदांरम पाकिस्तान को मुंबई आतंकी हमले में दोषी करार आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई के मुद्दे को प्राथमिकता देनी चाहिए। पाकिस्तान जमात-उद-दावा का प्रमुख बन चुका लश्करे का आतंकवादी हाफिज सईद के खिलाफ किसी प्रकार की कार्रवाई करने को तैयार नहीं है। इसके लिए भारत को विश्व समुदाय का समर्थन हासिल करके इसी मकसद से पाकिस्तान से बातचीत करने की जरूरत है कि पाकिस्तान पहले आतंकवादी संगठनों को नेस्तनाबूद करे और मुंबई के दोषी आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई करें, तभी अन्य मुद्दों पर बातचीत आगे बढ़ाने पर विचार किया जाए। एक विशेषज्ञ मानते हैं कि हाफिज सईद के प्रति जिस प्रकार का पाकिस्तान उदारता का रवैया अपना रहा है उससे नहीं लगता कि पाकिस्तान मुंबई के दोषी आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई करने को तैयार हो। यह पाकिस्तान की नीयती रही है कि अपनी बगल में छुरी लेकर चलता है और हमेशा पीठ पर हमला करता है। इसलिए भारत को चाहिए कि वह अमेरिका की नीति का अनुसरण करने के बजाए अपने विवेक और भारतीय कूटनीतिक रणनीतियों के तहत सतर्कता बरतते हुए पाकिस्तान के साथ बातचीत करे। यदि पाकिस्तान आतंकवाद के मुद्दे पर कोई कार्रवाई नहीं करता तो भारत को सीमापार आतंकवाद की चुनौती से निपटने के लिए एक बार पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए स्वयं कार्यवाही को अंजाम देने का समय नहीं गंवाना चाहिए।
बुधवार, 16 जून 2010
राज्यसभा चुनाव: दांव पर है कांग्रेस-भाजपा की प्रतिष्ठा!
ओ.पी. पाल
राज्यसभा के द्विवर्षीय चुनावों में होने वाले मतदान में कांग्रेस पार्टी के सामने संसद के उच्च सदन में अपनी संख्या बढ़ाने की चुनौती से जूझना पड़ रहा है। गुरुवार को राजस्थान, कर्नाटक, उड़ीसा, बिहार और झारखंड में गुरुवार यानि 17 जून को हो रहे राज्यसभा की 19 सीटों के लिए चुनाव में कांग्रेस की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है, जिसके लिए कांग्रेस ने व्हिप भी जारी कर दिया है। संसद की ऊपरी सदन राज्यसभा की 12 राज्यों में 49 सीटों के लिए गत 31 मई को विधि और न्याय मंत्रालय के विधायी विभाग द्वारा जारी की गई अधिसूचना के अनुसार 17 जून को मतदान की तिथि तय की गई थी, जिनमें से राजस्थान, कर्नाटक, उड़ीसा, बिहार और झारखंड को छोड़कर शेष सभी राज्यों में नामांकन पत्र वापसी का समय समाप्त होते ही दस जून को 30 उम्मीदवार निर्विरोध घोषित कर दिये गये थे, जिनमें सर्वाधिक सात सीटों पर कांग्रेस काबिज हुई, जबकि उत्तर प्रदेश की 11 में से सात सीटों पर निर्विरोध चुने गये उम्मीदवारों ने सात सीटें ही बसपा की झोली में डाली। भाजपा ने पांच सीटों पर कब्ज़ा किया है। इसके अलावा तमिलनाडु में डीएमके ने तीन, सपा, राकांपा व अन्नाद्रमुक ने दो-दो सीटें कब्ज़ाई हैं। शिरोमणी अकाली दल और शिवसेना को एक-एक सीट से संतोष करना पड़ा है। आ शेष पांच राज्यों की 19 सीटों के लिए आज गुरुवार को मतदान होना है, जिसमें कांग्रेस की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। अभी तक राज्यसभा में 237 सीटों में से कांग्रेस की केवल 71 सीट हैं जिसके बाद भाजपा का 46 सीटों पर कब्ज़ा है। राज्यसभा में यदि संप्रग और राजग की दृष्टि से देखें तो संप्रग पर राजग के सदस्य हावी हैं। इसलिए कांग्रेस को निर्दलीय प्रत्याशियों को अपना समर्थन देकर उच्च सदन में अपने पक्ष को मजबूत करने की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। राजस्थान में चार सीटों के लिए कांग्रेस ने अपने अधिकृत प्रत्याशियों के रूप में केंद्रीय मंत्री आनन्द शर्मा तथा अश्क अली टांक को चुनाव मैदान में उतारा है, जाकि भाजपा ने वीपी सिंह को अपना प्रत्याशी बनाया और भाजपा के समर्थन पर ही पूर्व केंद्रीय मंत्री रहे राम जेठमलानी निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में है। राजस्थान में कांग्रेस के सांसद संतोष बगरोडिया ने अंतिम क्षणों में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में नामांकन दाखिल करके पहले ही तय कर दिया था कि यहां संघर्ष की स्थिति ानेगी, क्योंकि किसी ने भी अपना नामांकन वापस नहीं लिया। वैसे देखें तो यहां भाजपा ने भी कांग्रेस खासकर केंद्रीय मंत्री आनंद शर्मा के लिए मुश्किलें खड़ी करने की रणनीति को अंजाम दिया है। कर्नाटक की चार सीटों के लिए कांग्रेस ने आस्कर फर्नांडीज और टीवी मारूथी को अधिकृत प्रत्याशी बानाया है, जबकि भाजपा के प्रत्याशी के रूप में एम. वेंकैया नायडू और अयानूर मंजूनाथा चुनाव मैदान में हैं। यहां शराब व्यवसायी विजय माल्या निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं जिन्हें भाजपा अपने प्रत्याशियों के अलावा शेष बची 33 वोटों का समर्थन दे रही है, वहीं जद-एस का भी उन्हें समर्थन मिल रहा है। ऐसे में कांग्रेस के सामने अपने दूसरे प्रत्याशी को जीताने की चुनौती है। बिहार में पांच सीटों के लिए हो रहे चुनाव में कर्नाटक के एक बाड़े व्यवसायी एमवी उदय ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में पर्चा दाखिल करके चुनाव को मुकाबलें में लाकर खड़ा कर दिया, समझा जा रहा है कि भाजपा इस प्रत्याशी का समर्थन करेगी, जो पार्टी प्रत्याशी राजीव प्रताप रूडी को जीताने के बाद वोट बचते हैं वह निर्दलीय प्रत्याशी की झोली में जाएंगे। लोजपा-गठांधन के प्रत्याशियों के रूप में यहां प्रमुख राम विलास पासवान तथा राजद के रामकृपाल यादव चुनाव लड़ रहे हैं। सत्तारूढ जद-यू के प्रत्याशी के रूप में यहां आरसीपी सिन्हा और उपेन्द्र कुशवाह अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। जहां तक निर्दलीय प्रत्याशी एमवी उदय का सवाल है वह तीन बसपाई, दो कांग्रेसी और कुछ निर्दलीयों के समर्थन का भी दावा कर रहे हैं। बिहार में भाजपा के प्रत्याशी राजीव प्रताप रूडी हैँ, जिन्हे जीताने के बाद पार्टी की बची 45 वोट भी कांग्रेस के मंसूबो पर पानी फेर सकती हैं। जहां तक उड़ीसा की तीन राज्यसभा सीटों पर होने वाले चुनाव का सवाल है, यहां कांग्रेस ने व्हिप जारी करके निर्दलीय प्रत्याशी तारा रंजन पटनायक को मतदान करने का फैसला कर लिया है। 147 सदस्यों वाली विधानसभा में कांग्रेस के 27 एमएलए हैं। बीजद अपनी 103 मतों से पार्टी के तीनों उम्मीदवारों शशि भूषण बेहरा, वैष्णव परीदा तथा प्यारी मोहन माहपात्रा को जिताने के लिए पूरी ताकत झोंकी हुई हैँ, जहां भाजपा ने चुनाव से दूर रहने का निर्णय लिया है। झारखंड की दो सीटों पर भी घमासान में कांग्रेस पसोपेश में है, जहां भाजपा के अजय मारू और कांग्रेस के धीरज साहू के अलावा झामुमो के केडी सिंह के बीच कांटे का मुकाबला होना मन जा रहा है.कुल मिलकर देखा जाये तो इस चुनाव में कांग्रेस और भाजपा दोनों ही अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही हैं.
मंगलवार, 15 जून 2010
दावों से नहीं दवा से काबू होगी महंगाई!
ओ.पी. पाल
देश में सुरसा के मुंह की तरह बढ़ती महंगाई पर यूपीए सरकार नियंत्रण करने के लिए उपाय करने का दावा करती नहीं थक पा रही है। दोहरे अंक में पहुंची महंगाई दर में सासे बड़ा डाका महंगाई दर 16.6 प्रतिशत होने के कारण आम आदमी की जो पर पड़ने वाला है जिसे अपनी रोजमर्रा की जिंदगी जीने के लिए केवल रोटी, कपड़ा और मकान चाहिए। वहीं सरकार की और से केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने एक बार फिर से दावा किया है कि उसे पूरी उम्मीद है कि मानसून सामान्य रहने पर जुलाई के मध्य से खाने-पीने की वस्तुओं के दाम कम होने लगेंगे। सरकार के महंगाई पर काबू पाने की उम्मीदों के विपरीत विशेषज्ञों का कहना है कि महंगाई इन दावों से नहीं बल्कि ठोस उपाय और आर्थिक नीतियों को दुरस्त करके ठोस और मजबूत इलाज से ही काबू पाया जा सकता है।
पहले से ही महंगाई से त्रस्त देश के आम नागरिकों को रोटी, कपड़ा और मकान की बुनियादी जरूरत को पूरा करना मुश्किल हा रहा है और यूपीए की केंद्र सरकार लगातार यही आश्वासन देती आ रही है कि महंगाई को नियंत्रण करने के लिए सरकार के प्रयास जारी है, लेकिन यह महंगाई की दर कम होने का नाम नहीं लेती। मुद्रास्फीति की दर के 10.16 प्रतिशत का अंक छूने से यूपीए की सरकार में हलचल तो मची हुई है और शायद सरकार को समझ नहीं आ रहा है कि वह महंगाई को काबू करने के लिए कौन से ठोस उपाय करे। महंगाई के मुद्दे पर विपक्षी दलों से पहले ही घिरी यूपीए सरकार पर आलोचनात्मक हमले तेज होना स्वाभाविक है। उधर मंगलवार को वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने उम्मीद जताई है कि मानसून सामान्य रहने पर जुलाई मध्य से खाने पीने की वस्तुओं के दाम कम होने लगेंगे। मुखर्जी का कहना है कि भारतीय रिजर्व बैंक महंगाई की स्थिति पर नजर रखे हुए है। हालांकि खाद्य पदार्थो की दर में दिसंबर के मुकाबले कमी है, लेकिन सवाल इस बात का है कि दाल, सब्जी, खाद्य तेल जैसी आवश्यक वस्तुओं के दाम आसमान छू रहे हैं। महंगाई के इस दौर में पेट्रोल, डीजल के दाम बढ़ाने के प्रस्ताव पर प्रणव मुखर्जी का कहना है कि किरीट पारिख समिति की सिफारिशों पर विचार के लिये मंत्री समूह की अगली बैठक 17 जून को होगी। भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर डी. सुब्बाराव का स्पष्ट कहना है कि महंगाई दर कम करने के लिए आर्थिक विकास दर की कुर्बानी नहीं दी जा सकती, लेकिन आर्थिक संतुलन बनाने के लिए सबसे पहले महंगाई को ही नियंत्रण करने की प्राथमिकता पर जोर दिया जा रहा है। जैसा कि आरबीआई के डिप्टी गवर्नर केसी चक्रवर्ती ने संकेत दिये हैं कि दहाई के अंक में पहुंची मुद्रास्फीति से रिजर्व बैंक सतर्क हैं जिसे नियंत्रण करने के लिए मौद्रिक नीति की तिमाही समीक्षा से पहले ही कोई ठोस कदम उठाया जा सकता है। सरकार की ओर से मिल रहे इन संकेतों के बारे में स्टेट बैंक ओफ इंडिया के चेयरमैन ओ.पी. भट्ट की माने तो रिजर्व बैंक अपनी नीति में बैंकों से नकदी खींच सकता है जिससे याज दरों में बढ़ोतरी होने की संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता। यूनियन बैंक ओफ इंडिया के चेयरमैन एवं प्रबंध निदेशक एम.वी. नायर का कहना है कि मुद्रास्फीति का आंकडा तेजी से बढ रहा है, जो चिंता का सबब है। जबकि आर्थिक वृद्धि पर महंगाई का असर नहीं पडना चाहिए। केंद्र और राज्य सरकारें एक-दूसरे पर महंगाई का ठींकरा फोडने में भी पीछे नहीं रहे हैं जिसमें जमाखोरों और कालाबाजारी के खिलाफ आवश्यक अधिनियम के तहत कार्रवाई को लेकर तल्खी बढ़ती देखी गई है। महंगाई के मुद्दे पर प्रमुख विपक्षी दल भाजपा के प्रवक्ता राजीव प्रताप रूडी का कहना है कि यूपीए सरकार के दूसरे शासनकाल में भी आम आदमी इस महंगाई की समस्या से जूझ रहा है। आवश्यक वस्तुओं खासकर खाद्य पदार्थो की महंगाई दर जा 16.6 प्रतिशत पहुंच गई हो तो ऐसे में सरकार के सभी दावे खोखले साबित हो जाते है। रूडी का कहना है कि सरकार के पास लाइलाज हो चुकी महंगाई को नियंत्रित करने की कोई दवा तो नहीं है केवल दावे करके जनता को उम्मीदों का सांझा देती आ रही है। भाजपा का मानना है कि यूपीए सरकार महंगाई को लेकर एकमत नहीं है। उन्होंने तर्क दिया कि प्रधानमंत्री इस साल के अंत तक मुद्रास्फीति की दर 5-6 प्रतिशत रहने की बात कह चुके हैं, जाकि योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया कहते हैँ कि इस साल के अंत तक महंगाई दर कम होने लगेगी। इनके अलावा आर्थिक सलाहकार कुछ अन्य बात कहते हैँ तो ऐसे में सरकार के पास कोई पैमाना नहीं है जिससे यह विश्वास किया जा सके कि आने वाले दिनों में महंगाई पर नियंत्रण कर लिया जाएगा।
देश में सुरसा के मुंह की तरह बढ़ती महंगाई पर यूपीए सरकार नियंत्रण करने के लिए उपाय करने का दावा करती नहीं थक पा रही है। दोहरे अंक में पहुंची महंगाई दर में सासे बड़ा डाका महंगाई दर 16.6 प्रतिशत होने के कारण आम आदमी की जो पर पड़ने वाला है जिसे अपनी रोजमर्रा की जिंदगी जीने के लिए केवल रोटी, कपड़ा और मकान चाहिए। वहीं सरकार की और से केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने एक बार फिर से दावा किया है कि उसे पूरी उम्मीद है कि मानसून सामान्य रहने पर जुलाई के मध्य से खाने-पीने की वस्तुओं के दाम कम होने लगेंगे। सरकार के महंगाई पर काबू पाने की उम्मीदों के विपरीत विशेषज्ञों का कहना है कि महंगाई इन दावों से नहीं बल्कि ठोस उपाय और आर्थिक नीतियों को दुरस्त करके ठोस और मजबूत इलाज से ही काबू पाया जा सकता है।
पहले से ही महंगाई से त्रस्त देश के आम नागरिकों को रोटी, कपड़ा और मकान की बुनियादी जरूरत को पूरा करना मुश्किल हा रहा है और यूपीए की केंद्र सरकार लगातार यही आश्वासन देती आ रही है कि महंगाई को नियंत्रण करने के लिए सरकार के प्रयास जारी है, लेकिन यह महंगाई की दर कम होने का नाम नहीं लेती। मुद्रास्फीति की दर के 10.16 प्रतिशत का अंक छूने से यूपीए की सरकार में हलचल तो मची हुई है और शायद सरकार को समझ नहीं आ रहा है कि वह महंगाई को काबू करने के लिए कौन से ठोस उपाय करे। महंगाई के मुद्दे पर विपक्षी दलों से पहले ही घिरी यूपीए सरकार पर आलोचनात्मक हमले तेज होना स्वाभाविक है। उधर मंगलवार को वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने उम्मीद जताई है कि मानसून सामान्य रहने पर जुलाई मध्य से खाने पीने की वस्तुओं के दाम कम होने लगेंगे। मुखर्जी का कहना है कि भारतीय रिजर्व बैंक महंगाई की स्थिति पर नजर रखे हुए है। हालांकि खाद्य पदार्थो की दर में दिसंबर के मुकाबले कमी है, लेकिन सवाल इस बात का है कि दाल, सब्जी, खाद्य तेल जैसी आवश्यक वस्तुओं के दाम आसमान छू रहे हैं। महंगाई के इस दौर में पेट्रोल, डीजल के दाम बढ़ाने के प्रस्ताव पर प्रणव मुखर्जी का कहना है कि किरीट पारिख समिति की सिफारिशों पर विचार के लिये मंत्री समूह की अगली बैठक 17 जून को होगी। भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर डी. सुब्बाराव का स्पष्ट कहना है कि महंगाई दर कम करने के लिए आर्थिक विकास दर की कुर्बानी नहीं दी जा सकती, लेकिन आर्थिक संतुलन बनाने के लिए सबसे पहले महंगाई को ही नियंत्रण करने की प्राथमिकता पर जोर दिया जा रहा है। जैसा कि आरबीआई के डिप्टी गवर्नर केसी चक्रवर्ती ने संकेत दिये हैं कि दहाई के अंक में पहुंची मुद्रास्फीति से रिजर्व बैंक सतर्क हैं जिसे नियंत्रण करने के लिए मौद्रिक नीति की तिमाही समीक्षा से पहले ही कोई ठोस कदम उठाया जा सकता है। सरकार की ओर से मिल रहे इन संकेतों के बारे में स्टेट बैंक ओफ इंडिया के चेयरमैन ओ.पी. भट्ट की माने तो रिजर्व बैंक अपनी नीति में बैंकों से नकदी खींच सकता है जिससे याज दरों में बढ़ोतरी होने की संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता। यूनियन बैंक ओफ इंडिया के चेयरमैन एवं प्रबंध निदेशक एम.वी. नायर का कहना है कि मुद्रास्फीति का आंकडा तेजी से बढ रहा है, जो चिंता का सबब है। जबकि आर्थिक वृद्धि पर महंगाई का असर नहीं पडना चाहिए। केंद्र और राज्य सरकारें एक-दूसरे पर महंगाई का ठींकरा फोडने में भी पीछे नहीं रहे हैं जिसमें जमाखोरों और कालाबाजारी के खिलाफ आवश्यक अधिनियम के तहत कार्रवाई को लेकर तल्खी बढ़ती देखी गई है। महंगाई के मुद्दे पर प्रमुख विपक्षी दल भाजपा के प्रवक्ता राजीव प्रताप रूडी का कहना है कि यूपीए सरकार के दूसरे शासनकाल में भी आम आदमी इस महंगाई की समस्या से जूझ रहा है। आवश्यक वस्तुओं खासकर खाद्य पदार्थो की महंगाई दर जा 16.6 प्रतिशत पहुंच गई हो तो ऐसे में सरकार के सभी दावे खोखले साबित हो जाते है। रूडी का कहना है कि सरकार के पास लाइलाज हो चुकी महंगाई को नियंत्रित करने की कोई दवा तो नहीं है केवल दावे करके जनता को उम्मीदों का सांझा देती आ रही है। भाजपा का मानना है कि यूपीए सरकार महंगाई को लेकर एकमत नहीं है। उन्होंने तर्क दिया कि प्रधानमंत्री इस साल के अंत तक मुद्रास्फीति की दर 5-6 प्रतिशत रहने की बात कह चुके हैं, जाकि योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया कहते हैँ कि इस साल के अंत तक महंगाई दर कम होने लगेगी। इनके अलावा आर्थिक सलाहकार कुछ अन्य बात कहते हैँ तो ऐसे में सरकार के पास कोई पैमाना नहीं है जिससे यह विश्वास किया जा सके कि आने वाले दिनों में महंगाई पर नियंत्रण कर लिया जाएगा।
आतंकवाद व आईएसआई पर पाक का एक और झूठ!
ओ.पी. पाल
भारत में सबसे बड़े आतंकी हमले के रूप में 26/11 के मुंबई हमले के बाद यह बात दुनिया जान चुकी है कि पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई आतंकवादी संगठनों से कितनी गहरी पैठ बनाए हुए है, जिसके सम्बन्ध अब तालिबान से होने की पुष्टि भी हो चुकी है। आतंकवादी संगठनों से आईएसआई और पाक सेना के अधिकारियों के सम्बन्ध को लेकर पाकिस्तान लगातार झूठ पर झूठ बोलता आ रहा है। आईएसआई के तालिबान से रिश्तों की खारो को खारिज करते हुए पाकिस्तान ने एक ताजा झूठ ऐसे समय बोला है जा पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने तालिबानी नेता मुल्ला अदुल गनी बरदार सहित 50 तालिबानियों से हाल ही में एक जेल में मुलाकात की और उन्हें अपनी सरकार का समर्थन देने तथा उनकी रिहाई कराने का आश्वासन दिया है। विशेषज्ञ मानते हैं कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई ही आतंकवाद व तालिबान की असली जड़ है, जिसे अपने दोहरे खेल खेलने के लिए पाकिस्तान कभी यह बात स्वीकार नहीं करेगा कि पाक सेना और आईएसआई की आतंकवादी संगठनों से रिश्ते हैं। हाल ही में जारी एक शोध रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है जिसमें पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी इंटर सर्विसेज इंटेलीजेंस एजेंसी यानि आईएसआई की आधिकारिक नीति में आतंकवादी संगठन तालिबान को समर्थन देने की बात कही गई है जो न केवल तालिबान को धन और प्रशिक्षण मुहैया कराती है, बल्कि इसका प्रतिनिधित्व भी तालिबानी नेतृत्व में मौजूद है। विश्व के एक प्रतिष्ठित संस्थान लंदन स्कूल आफ इकोनॉमिक्स के ताजा शोध में हुए इस खुलासे स्पष्ट किया गया है कि पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने इस साल की शुरुआत में जेलों का दौरा कर वहां बाद तालिबान नेताओं से मुलाकात की थी और इस मुलाकात के दौरान जरदारी ने इन आतंकवादियों को उनकी रिहाई के बारे में आश्वासन दिया और आतंकवादी कार्रवाई में मदद की बात भी कही थी। इससे सहज ही पता लग जाता है कि पाकिस्तान सरकार में उच्चतम स्तर पर भी तालिबान को समर्थन हासिल है। अनेक तालिबान कमांडरों, पूर्ववर्ती तालिबान सरकार में ऊंचे पद पर रहे लोगों और अफगान एवं पश्चिमी सुरक्षा अधिकारियों के साक्षात्कार के बाद तैयार की गई इस रिपोर्ट की माने तो पाकिस्तान वास्तव में बहुत उच्च स्तर पर एक दोहरा खेल खेल रहा है। इससे पहले भी अमेरिका के ज्वाइंट चीफ आफ स्टाफ एडमिरल माइक मुलेन और अमेरिकी सेंट्रल कमांड के जनरल डेविड पेट्राउस संकेत दे चुके हैं कि आईएसआई के कुछ तत्व तालिबान और अलकायदा का समर्थन कर रहे हैं। इस शोध रिपोर्ट के लेखक और हॉवर्ड विश्वविद्यालय के फैलो मैट वाल्डमैन का कहना है कि यह बात साबित हो रही है कि आतंकवाद और तालिबनन के मुद्दे पर पाकिस्तान सरकार दोहरा रवैया अपना रही है। तालिबान और आईएसआई के रिश्तों की बात को खारिज करते हुए पाकिस्तान ने कहा कि इस प्रकार की बेबुनियाद रिपोर्ट के जरिए पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी और सेना को बदनाम करने का प्रयास किया जा रहा है। लेकिन पाकिस्तान ने इस बात का जिक्र नहीं किया कि राष्ट्रपति जरदारी ने जेल में बाद तालिबानी नेताओं से मुलाकात की है या नहीं। आतंकवाद के जानकार विशेषज्ञ जनरल मेजर अफसर करीम का कहना है कि यह बात सही है कि आईएसआई व सेना के आतंकवादी संगठनों और तालिबानी संगठनों से गहरे रिश्ते हैं, लेकिन इस प्रकार के रिश्तों को पाक अपने दोहरे खेल के सामने कभी स्वीकार नहीं करेगा। अफसर करीम का मानना है कि अमेरिका की तालिबान के खिलाफ चल रही लड़ाई में पाकिस्तान अमेरिका को कभी जीतने भी नहीं देगा और झूठ पर झूठ बोलकर पाक अमेरिका के सामने उसके अभियान में सहयोगी होने का नाटक करता रहेगा। भारत-पाक संबंधों के जानकार मानते हैं कि यह बात तो पहले से ही जगजाहिर है कि खासकर भारत के खिलाफ आईएसआई और सेना ऐसे आतंकवादी तैयार कर रहे हैं जो दहशतगर्दी फैला सके, जिन्हें पाकिस्तान जेहादी बताता नहीं थकता। जहां तक तालिबान के आईएसआई के रिश्तों का सवाल है उससे इंकार नहीं किया जा सकता, क्योंकि तालिबान भी आतंकवाद का ही दूसरा रूप है। एक विशेषज्ञ का कहना है कि मुंबई हमलों के बाद लश्कर-ए-तैयबा के अमेरिकी खुफिया एजेंसी के हाथो पकड़े गये डेविड कोलमेन हेडली और तहव्वुर हुसैन राणा पूछताछ में यह स्वीकार कर चुके हैं कि उनके आईएसआई और पाक सेना अधिकारियों के अलावा राजनयिकों से भी सम्बन्ध रहे हैं तो पकिस्तान एक झूठ को छिपाने के लिए कितने झूठ बोलता रहेगा।
कांग्रेस हाई कमान ने नेताओं की जुबां पर जड़े ताले
ओ.पी. पाल
कांग्रेस पार्टी हाईकमान ने भोपाल गैस कांड के फैसले पर हो रही पार्टी की फजीहत को देखते हुए पार्टी के सदस्यों को हिदायत दी है कि कोई भी कांग्रेस नेता या सदस्य इस फैसले पर कुछ न बोले। मध्य प्रदेश के भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड में गत 2/3 दिसांर 84 को रिसी जहरीली गैस के कारण दस हजार से ज्यादा लोग मौत के मुहं में समा गये थे और 25 हजार से ज्यादा विकलांगता की जिंदगी जीने को मजबूर हो रहे हैं। पिछले सप्ताह निचली अदालत के 25 साल बाद आए फैसले ने भोपाल गैस त्रासदी के जख्मों को और भी हरा कर दिया, जिसमें खासकर मुख्य आरोपी अमेरिकी नागरिक वॉरेन एंडरसन को गिरफ्तारी के कुछ देर बाद ही जमानत पर छोड़ने और उसे भारत से भगाने के मामले पर कांग्रेस चौतरफा घिरी हुई है। यही नहीं कांग्रेस पार्टी के नेता भी अपनी ही पार्टी की तत्कालीन मध्य प्रदेश सरकार के मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह को निशाना बनाने में कोई चूक नहीं कर रहे हैं। इसलिए शायद कांग्रेस हाई कमान ने केंद्र सरकार द्वारा गृहमंत्री पी. चिदांरम की अध्यक्षता में गठित जीओएम का हवाला देकर पीड़ितों के गुस्से और विपक्ष के निशाने को कम करने का प्रयास किया जा रहा है। कांग्रेस के नेताओं की ओर से इस मामले पर हो रही बयानाबाजी से व्यथित कांग्रेस हाईकमान ने ऐसी स्थिति में पार्टी के हर किसी नेता और सदस्य के मुहं पर ताला जड़ने का निर्णय लिया। कांग्रेस हाईकमान ने भोपाल गैस कांड पर किरकिरी झेलने के बाद अपने नेताओं को मुंह बंद रखने के निर्देश दिए है कि वो भोपाल गैस हादसे और उस पर हुए फैसले पर कुछ न बोलें। ये भी कहा गया है कि इस मसले पर सिर्फ पार्टी प्रवक्ता ही बोलेंगे क्योंकि उन्हें पार्टी की लाइन मालूम है। गौरतलब है कि भोपाल गैस कांड पर फैसला आते ही सवाल उठा कि आखिर इसका मुख्य गुनहगार वॉरेन एंडरसन मध्यप्रदेश सरकार द्वारा गिरफ्तार होने के बावजूद तुरंत कैसे रिहा हो गया और कैसे वापस अपने देश अमेरिका चला गया। उंगलियां पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह पर उठीं। अर्जुन सिंह के बचाव में आए दिग्विजय सिंह और कहा कि एंडरसन से जुड़े फैसले राज्य ने नहीं बल्कि केंद्र ने लिए थे। इशारा राजीव गांधी की कैबिनेट पर था। राजीव को बचाने के लिए सत्यव्रत चतुर्वेदी सामने आए और कहा कि जो भी किया वो अर्जुन सिंह ने किया। आर के धवन भी ठीकरा अर्जुन पर फोड़ते दिखे। पार्टी को डर है कि कही अर्जुन पर ज्यादा दबाव पड़ा और उन्होंने मुंह खोल दिया तो राजीव गांधी पर उंगलियां उठेंगी। यही नहीं पार्टी की अंदरूनी कलह भी इस मुद्दे पर सामने आ गई है और सत्यव्रत चतुर्वेदी व दिग्विजय सिंह के बीच के मतभेद जाहिर हो गए हैं। पार्टी आ और किरकिरी नहीं चाहती इसलिए सभी नेताओं को आदेश दिए गए हैं कि वो इस मुद्दे पर अपना मुंह बंद रखें और जो कहना है वो कांग्रेस प्रवक्ता कहेंगे। हाईकमान ने अपने नेताओं की जुबां तो बंद करने का फैसला कर लिया है, लेकिन विपक्ष के निशानों से कांग्रेस घिरने से नहीं बच सकेगी।
रविवार, 13 जून 2010
अब आस्ट्रेलिया ने उड़ाई भारतीयों की खिल्ली!
ओ.पी. पाल
भारत में होने वाले 19वें राष्ट्रमंडल खेलों में हिस्सा लेने के लिए प्रशिक्षण लेने के लिए आस्ट्रेलिया जाने वाली भारतीय लॉन बॉल टीम के खिलाड़ियों को वीजा देने से इंकार करके आस्ट्रेलियाई उच्चायोग ने भी कनाडाई उच्चायोग की तरह भारत की खिल्लियां उड़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। कनाडा ने तो खुफिया तंत्र और भारतीय सुरक्षा बलों पर लांछन लगाए थे, लेकिन आस्ट्रेलिया ने तो भारत की गरीबी का ही मजाक उड़ाते हुए लॉन बॉल के 16 खिलाड़ियों की टीम को वीजा देने से साफ इंकार कर दिया है। ऐसे में भारतीयों के जहन में एक ही सवाल उठना स्वाभाविक है कि विदेशी उच्चायोग वीजा देने के लिए ऐसे तर्क क्यों पेश करते हैं जिसमें भारत का सीधा अपमान हो रहा हो। विशेषज्ञों की माने तो यह भारत की कमजोर विदेश नीति का परिणाम है कि कोई भी भारतीयों के प्रति आपत्तिजनक टिप्पणियां करने की हिम्मत जुटा रहा है। सरकार को चाहिए कि विदेश नीति को सुदृढ़ करके ऐसी घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए उचित कदम उठाये। भारत की राजधानी दिल्ली में इस साल अक्टूबर में होने वाले राष्ट्रमंडल खेलों से पहले भारतीय लॉन बॉल टीम के 16 खिलाड़ियों और एक प्रशिक्षक को शनिवार को एक प्रशिक्षण कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए सिडनी पहुंचना था, जहां भारतीय टीम को पश्चिमी सिडनी के सेंट पार्क बाउलिंग क्लब ने आमंत्रित किया था। सासे दिलचस्प बात यह भी है कि इस टीम का कोच आस्ट्रेलियाई है। इसके बावजूद राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली स्थित आस्ट्रेलियाई अधिकारियों ने यह कहते हुए वीजा देने से इनकार कर दिया कि खिलाड़ियों की वित्तीय स्थिति आस्ट्रेलिया में रहने के अनुकूल नहीं है। इस प्रकार की टिप्पणियों से भारतीय बाउलिंग टीम के खिलाड़ियों को शर्मिन्दगी उठाने के लिए मजाबूर होना पड़ा है। आस्ट्रेलियाई इमिग्रेशन अधिकारियों ने वीजा न देने के लिए इस प्रकार की टिप्पणी इसलिए भी आपत्तिजनक मानी जा रही है क्योंकि भारतीय बाउलिंग टीम का आस्ट्रेलिया में प्रशिक्षण देने के लिए पूरा खर्च भारत सरकार उठा रही है, तो फिर आस्ट्रेलियाई अधिकारियों को आपत्तिजनक टिप्पणियां करने का अधिकार किसने दिया? ऐसे सवाल खेल विशेषज्ञों ने भी उठाये हैं। यह भी किसी से छिपा नहीं है कि पिछले सालों में आस्ट्रेलिया में भारतीय छात्रों पर नस्लीय हमले दुनिया के सामने हैं कि आस्ट्रेलियाईयों का भारतीयों के प्रति कैसा रवैया रहा है। भारत की लॉन बॉल टीम के कोच आस्ट्रेलियाई नागरिक रिचर्ड गेल का स्वयं कहना है कि टीम की ट्रेनिंग का खर्चा भारत सरकार उठा रही है, जिसके लिए खिलाड़ियों के वीजा आवेदन खारिज नहीं करने चाहिए थे। रिचर्ड गेल का सिडनी में ट्रेनिंग देने वाले क्लब के मैनेजर पॉल गर्डलर के हवाले से कहना है कि खिलाड़ियों को राष्ट्रमंडल खेलों में हिस्सा लेने के लिए ट्रेनिंग दी जानी थी। कोच का तो यहां तक कहना है कि भारत के सासे अच्छे खिलाड़ियों में से ज्यादातर बहुत गरीब परिवारों से आते हैं और वीजा न देकर उन्हें वापस गर्त में धकेला जा रहा है। कोच गेल ने आस्ट्रेलियाई अधिकारियों के इस रवैये को भारतीयों की प्रताड़ना का मामला करार दिया है। इसी साल फरवरी में भारत में हुए लॉन बॉल की एक प्रतियोगिता में आठ देशों के खिलाड़ी आए थे, जिनमे आस्ट्रेलिया की भी एक टीम थी। मैनेजर और कोच दोनों ही मानते हैं कि इन खिलाड़ियों को वीजा दिया जाना चाहिए था। विदेश मामलों के विशेषज्ञों का कहना है कि वीजा देना या न देना आस्ट्रेलिया सरकार की अपनी नीति हो सकती है, लेकिन भारतीयों को बेइज्जत करने का उन्हें कोई अधिकार नहीं है। इसलिए भारत सरकार को संजीदा तरीके से इस मामले में ठोस कार्रवाई की जानी चाहिए। खेल विशेषज्ञ मानते हैं कि खिलाड़ियों को प्रोत्साहित करने के लिए भी भारत सरकार इस नये खेल का खर्च उठा रही है तो आस्ट्रेलिया को उन्हें वीजा देने में कोई ऐतराज नहीं होना चाहिए था। इस टीम के राष्ट्रमंडल खेलों में भाग लेने का जो सपना था उसे तोड़ने के लिए आस्ट्रेलिया जिम्मेदार है, जिसके लिए भारत को ऐतराज करके टीम के खिलाड़ियों को वीजा दिलाने के लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत है। गौरतलब है कि इससे पहले दिल्ली स्थित कनाडाई उच्चायोग के अधिकारियों द्वारा सशस्त्र सुरक्षा बल के जवान और आईबी अधिकारी को अत्यंत ही आपत्तिजनक टिप्पणियां करके वीजा देने से इंकार कर दिया था, हालांकि भारत द्वारा ऐतराज जताये जाने पर कनाडा सरकार ने खेद भी जताया था, लेकिन इस प्रकार खेद जताने से भारत की प्रतिष्ठा पर आने वाली आंच को कम नहीं किया जा सकता। विदेशी उच्चायोग के अधिकारियों द्वारा लगातार भारत का अपमान करने के जारी प्रयास पर एक पूर्व रक्षा अधिकारी का कहना है कि सरकार विदेश नीति को मजाबूत करके इस प्रकार की घटनाओं को रोकने के लिए ठोस कदम उठाये अन्यथा अन्य देश भी इसी प्रकार भारतीयों को लांछित करते रहेंगे।
जी-20 में पीएम को 84 दंगों की चुनौती!
ओ.पी. पाल
प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह इसी माह जी-20 देशों के सम्मेलन में शामिल होने के लिए कनाडा के टोरंटो जाएंगे, लेकिन उससे पहले ही कनाडा में रहने वाले सिख समुदाय के एक कट्टरवादी संगठन ने 1984 के सिख विरोधी दंगे को लेकर कनाडाई विदेश मंत्रालय को लेकर जो अर्जी दी है उससे देखते हुए प्रधानमंत्री को चुनौती का सामना करना पड़ सकता है। दरअसल इसी माह टोरंटो में जी-20 देशों का सम्मेलन होने जा रहा है जिसमें अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों को लेकर प्रस्तावों पर चर्चा होगी। विशेषज्ञों का मानना है कि कनाड़ा में भारतीय सिख समुदाय भारी संख्या में है जो 84 दंगों के दर्द को प्रधानमंत्री के समक्ष रखना चाहते हैं, जिनका मकसद सिर्फ दोषियों को सजा दिलाना है। हालांकि विदेश यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री के सामने किसी चुनौती को पेश करना प्रवासी •ाारतीयों के हित में नहीं है।
पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देशभर में भड़के 1984 के सिख विरोधी दंगों की जांच में लगातार आ रहे नये तथ्यों और आरोपियों को सजा न मिलने से सिख समुदाय लगातार संघर्षरत है, जिसमें कांग्रेस के सज्जन कुमार और जगदीश टाइटलर को सजा दिलाने के लिए सिख संगठन लगातार आज तक आंदोलनरत हैं। सिख प्रधानमंत्री बनाने के बाद सिख समुदाय को न्याय की उम्मीद जगी थी, लेकिन सीबीआई द्वारा पूर्व मंत्री जगदीश टाइटलर को क्लीनचिट दिये जाने पर सिखों में गुस्सा है। 15वीं लोकसभा चुनाव के दौरान चौरासी दंगों के तथाकथित आरोपी जगदीश टाइटलर व सज्जन कुमार को सिखों के आंदोलन के कारण कांग्रेस हाईकमान को चुनाव मैदान से हटाना पड़ गया था। चौरासी सिख विरोधी दंगों की आंच अमेरिका तक हैं जिनके दो-तीन गवाह अमेरिका और कनाडा में जाकर बस चुके हैं, जिनके बयान को लेकर सीबीआई दल अमेरिका की सैर भी कर चुकी है। दरअसल चौरासी सिख विरोधी दंगों की जारी सीबीआई जांच और न्यायिक प्रक्रिया के बावजूद सिख न्याय की आस लगाए हुए हैं। इसी का कारण है कि जा कनाडा में भारी संख्या में बसे सिख परिवारों को यह जानकारी मिली कि प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह टोरंटो में होने वाले जी-20 देशों के सम्मेलन में आ रहे हैं तो सिख संगठनों ने अपने दर्द का अहसास कराने के लिए इस दौरान डा. मनमोहन सिंह तक पहुंच बनाने की कौशिश की है। इसके लिए सिख संगठनों ने करीब दस हजार हस्ताक्षर करके एक अर्जी कनाडा के विदेश मंत्रालय को सौँपी है। इस अर्जी के बारे में बताया गया है कि कनाडा में रहने वाले भारतीय समुदाय के एक बड़े हिस्से के रूप में एक कट्टरपंथी सिख संगठन ने कनाडा की सरकार के सामने वर्ष 1984 में दिल्ली में हुए सिख विरोधी दंगों को हिंसा की सुनियोजित कार्रवाई करार देने के लिये एक अर्जी पेश की है। कनाडा में सिख समुदाय के ही दूसरे गुट ने इस कदम का विरोध करने का फैसला करते हुए सिख संगठन के इस कदम को ‘बचकाना और विभाजनकारी‘ करार देते हुए समुदाय के नेताओं ने इस अभियान को भारत विरोधी और टोरंटो में रह रहे भारतीयों में फूट डालने वाला बताया है। कनाडा के विदेश मंत्री के संसदीय सचिव दीपक ओबराय ने कहा कि वर्ष 1984 में निर्दोष सिखों के साथ जो भी हुआ वह त्रासद था और उसके दोषी लोगों को बख्शा नहीं जाना चाहिये। उन्होंने कहा कि भारत की सरकार दोषी लोगों को सजा दिलाने के प्रयास कर रही है, लेकिन यहां के सिख संगठन द्वारा कनाडा सरकार के सामने रखी गई अर्जी बचकाना और विभाजनकारी कदम है। वे लोग भारतीय-कनाडाई समुदाय को नुकसान पहुंचाना चाहते हैं। ओबराय का कहना है कि दुनिया के सासे सम्मानित सिख भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इस मुद्दे पर बयान दिये हैं और भारत की सरकार इस मुद्दे काम कर रही है, लेकिन ये लोग भारत को बाँटने के लिये कनाडा को इस्तेमाल करना चाहते हैं। करीब 10 हजार लोगों द्वारा हस्ताक्षरित वह अर्जी जी-20 देशों के सम्मेलन के सिलसिले में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की यात्रा से पहले कनाडा के विदेश मंत्रालय की समिति के समक्ष पेश की गई है।
शनिवार, 12 जून 2010
एंडरसन को भगाने के लिए जिम्मेदार कौन?
ओ.पी. पाल
भोपाल गैस त्रासदी के अदालती फैसले के बाद मुख्य आरोपी यूनियन कार्बाइड के चेयरमैन वॉरेन एंडरसन को किसके आदेश पर गिरफ्तारी के बाद रिहा किया गया और उसे सम्मान पूर्वक देश छोड़ने का मौका दिया गया। इसी सवाल का जवाब तलाशने के लिए देशभर में राजनीतिक बहस तेज हो गई है। एंडरसन के मुद्दे पर तत्कालीन केंद्र और मध्य प्रदेश की कांग्रेस सरकार को जिम्मेदार माना जा रहा है? लेकिन कांग्रेस ने स्पष्ट रूप से इस बात से इंकार कर दिया कि भोपाल गैस कांड या मुख्य आरोपी एंडरसन को भगाने में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की कोई भूमिका थी।
गैस कांड मुद्दे पर अपनो से भी घिरे अर्जुन सिंह
भोपाल गैस कांड के लिए जिम्मेदार यूनियन कार्बाइड के पूर्व प्रमुख वारेन एंडरसन के भारत से भागने के मुद्दे पर मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री हमलों से घिरते जा रहे हैं और दो प्रमुख कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह तथा आरके धवन ने कहा है कि उन्हें बताना चाहिए कि ऐसा कैसे हुआ। मध्य प्रदेश के भोपाल की यूनियन कार्बाइड से गत 2/3 दिसंबर 84 को रिसी गैस से दस हजार से अधिक लोग मारे गये थे और 25 हजार से अधिक विकलांग हुए, वहीं उनकी आने वाली पीढ़ियां भी इस गैस के प्रभाव से जूझ रही हैं। ऐसे में मुख्य आरोपी वॉरेन एंडरसन के देश से भागने के पीछे अमेरिकी दबाव की आशंका जता कर विवाद खड़ा हो रहा है। घटना के समय मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी जिसमें मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह थे। इस विवाद के तूल पकड़ने पर जहां तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह भाजपा के निशाने पर हैं, वहीं अपनी ही कांग्रेस पार्टी के नेताओं से भी वह पूरी तरह से घिरते नजर आ रहे हैं, लेकिन उनकी खामोशी एक पहेली बनी हुई, जिसमें एक बड़ी ताकत भी हो सकती है। इस विवाद में भाजपा के साथ अर्जुन सिंह पर निशाना साधते हुए कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव एवं मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय ने भी कहा कि इस भयावह घटना के समय उन्होंने मध्य प्रदेश मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया था और वह लोकसभा चुनाव के लिए प्रचार कर रहे थे। इसलिए उन्हें उन घटनाओं के बारे में कुछ नहीं पता है जिसके तहत दिसमर 1984 में वारेन एंडरसन को जमानत मिली थी और उन्हें रिहा कर दिया गया था। अपनी पत्नी का इलाज कराने अमेरिका गए कांग्रेस महासचिव ने आज एक ई-मेल संदेश में कहा कि‘ बयान में ही उन्होंने साफ कर दिया था कि वह प्रचार कर रहा था और वह एंडरसन की जमानत और रिहाई से जुड़े घटनाक्रम के बारे में नहीं जानते। इस लिहाज से दिग्विजय ने कहा कि इस बारे में सारे सवालों का जवाब उस वक्त के मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह और तीन अन्य लोग दे सकते हैं। उन्होंने कहा कि ये तीन लोग हैं मध्य प्रदेश के तत्कालीन प्रमुख सचिव ब्रह्म स्वरूप, भोपाल के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक स्वराजपुरी और तत्कालीन कलेक्टर मोती सिंह हैं, जिनमें से ब्रह्म स्वरूप का निधन हो चुका है। वहीं दिग्विजय के सुर में सुर मिलाते हुए राजीव गांधी के निजी सचिव रह चुके आर.के. धवन ने कहा कि अर्जुन सिंह ही ऐसे अकेले आदमी हैं जो इन सभी सवालों का जवाब दे सकते हैं कि एंडरसन कैसे देश के बाहर गया। इस मामले में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के बचाव में धवन ने कहा कि वह नहीं मानते कि पूर्व प्रधानमंत्री को घटनाक्रम की जानकारी होगी या उन्होंने एंडरसन को हवाई अड्डे पर विमान उपलध कराने को कहा होगा जिससे वह भोपाल से गए। उधर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी अर्जुन सिंह पर हमला बोला और अर्जुन सिंह से उन हालात के बारे में जवाब मांगा है, जिनके तहत वारेन एंडरसन भागने में सफल रहा था। वहीं मध्य प्रदेश के तत्कालीन गृह सचिव केएस शर्मा का दावा है कि यूनियन कार्बाइड के पूर्व प्रमुख वारेन एंडरसन की रिहाई का आदेश संभवत: तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह की तरफ से आया था। शर्मा ने कहा कि शुरुआत से ही पूरे मामले को लेकर कुछ नरमी बरती जा रही थी अन्यथा एंडरसन को हिरासत के दौरान ‘रेस्ट हाउस’ में नहीं रखा जाता। ऐसे जघन्य अपराध के आरोपी को उसी दिन रिहा करने का मतलब है कि अत्यंत अधिक दबाव रहा होगा। शर्मा ने कहा कि गृह सचिव होने के बावजूद उन्हें अंधेरे में रखा गया और एंडरसन की रिहाई के बारे में सूचित नहीं किया गया। उन्होंने एंडरसन को रेस्ट हाउस में रखने के सरकार के फैसले और उन्हें जमानत देने के फैसले को अवैध करार दिया है। ऐसे में विपक्षी दलों के साथ ही अर्जुन सिंह अपनी पार्टी के नेताओं से भी एंडरसन के मुद्दे पर चौतरफा घिरते नजर आ रहे हैं जो अभी तक अपने प्रति हो रही टिप्पणियों और लग रहे आरोपों पर पूरी तरह से चुप्पी साधे हुए हैं।
भोपाल गैस त्रासदी के अदालती फैसले के बाद मुख्य आरोपी यूनियन कार्बाइड के चेयरमैन वॉरेन एंडरसन को किसके आदेश पर गिरफ्तारी के बाद रिहा किया गया और उसे सम्मान पूर्वक देश छोड़ने का मौका दिया गया। इसी सवाल का जवाब तलाशने के लिए देशभर में राजनीतिक बहस तेज हो गई है। एंडरसन के मुद्दे पर तत्कालीन केंद्र और मध्य प्रदेश की कांग्रेस सरकार को जिम्मेदार माना जा रहा है? लेकिन कांग्रेस ने स्पष्ट रूप से इस बात से इंकार कर दिया कि भोपाल गैस कांड या मुख्य आरोपी एंडरसन को भगाने में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की कोई भूमिका थी।
देश की ही नहीं बल्कि दुनिया की सासे बड़ी औद्योगिक घटना के रूप में हुए भोपाल गैस कांड की पीड़ा को तीन दिन पहले अदालत के फैसलें ने और बढ़ा दिया है और अदालत के करीब साढ़े 25 साल बाद आए फैसले में मुख्य आरोपी और यूनियन कार्बाइड के चेयमैन वॉरेन एंडरसन का साफ बचकर निकलना तत्कालीन केंद्र और राज्य की सरकार को कटघरे में खड़ा कर रहा है। इस कांड में पुलिस ने एंडरसन को गिरफ्तार भी किया गया और उसे ससम्मान तरीके से जमानत देकर देश से भगा दिया गया। कांग्रेस सरकारें इस लिए भी संदेह के घेरे में है कि उसने कभी अमेरिका से एंडरसन को भारत लाने के लिए कभी प्रत्यर्पण का प्रयास ही नहीं किया। यही मुद्दा भोपाल के लाखों पीड़ितों के जख्मों को और बढ़ा गया है। जिस गैस त्रासदी में दस हजार से लोगों की जाने गई हों तो उसमें मामूली धाराओं में मुकदमा दर्ज करना भी तत्कालीन राज्य सरकार को संदेह में ला रही है। एंडरसन को छोड़ने और उसे भारत से भगाने पर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने तत्कालीन मध्य प्रदेश को एक पत्र लिखकर उनसे इसके लिए पूरे देश से माफी मांगने को कहा है। चौहान ने अर्जुन सिंह से उस व्यक्ति के नाम का खुलासा करने की मांग भी की है जिसके आदेश पर एंडरसन को गिरफ्तारी के कुछ देर बाद ही छोड़ दिया गया था। इस प्रकार से मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह जहां भाजपा के निशाने पर हैं वहीं उनकी कांग्रेस पार्टी का तीर भी उन्हीं पर सधा हुआ है। जहां तक केंद्र सरकार में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी का इस मामले से सांन्ध होने का मामला है उसके लिए शुक्रवार को कांग्रेस पार्टी की प्रवक्ता एवं राज्यसभा सदस्य श्रीमती जयंती नटराजन ने स्पष्ट किया है कि एंडरसन को छोड़ने या उसे देश से भगाने में स्व. राजीव गांधी की कोई भूमिका नहीं थी, लेकिन अर्जुन सिंह अभी तक इस मामले में चुप्पी साधे हुए हैं। इस कांड के अदालती फैसले पर तो हर कोई स्तध है यहां तक की पूर्व राष्ट्रपति ऐपीजे अदुल कलाम ने भी कहा कि इतनी बड़ी त्रासदी के फैसले से वे स्वयं को दुखी महसूस कर रहे हैं, तो पीडितों के दिलों का हाल तो न जाने कितना दुखी होगा। जहां तक इस मामले में केंद्र सरकार द्वारा जीओएम यानि ग्रुप आफ मिनिस्टर्स बनाने का ऐलान किया गया है यह कोई नई घोषणा नहीं है। भोपाल गैस कांड पर इससे पहले भी दो बार जीओएम बनाया जा चुका है, लेकिन पीड़ितों को झांसे के अलावा कुछ भी हासिल नहीं हो सका। हादसे की जिम्मेदार यूनियन कार्बाइड के चेयरमैन वॉरेन एंडरसन के प्रत्यर्पण की कोशिश का जिम्मा भी जीओएम का था। 17 साल में जीओएम की कम से कम 17 बेनतीजा बैठकें हुईं। फिर से वर्ष 2008 में इस जीओएम का पुनर्गठन किया गया और आ फिर केंद्रीय गृहमंत्री पी. चिदांरम की अध्यक्षता में नया जीओएम बनाया गया, लेकिन इन दोनों नेताओं को लेकर पीड़ितों का गुस्सा सातवें आसमान पर है जिसका कारण है कि दोनों नेताओं पर यूनियन कार्बाइड को खरीदने वाली कंपनी के हितैषी होने का आरोप है। राजीव गांधी की केंद्र सरकार में सूचना एवं प्रसारण मंत्री रहे बसंत साठे का मानना है कि तत्कालीन केंद्र सरकार के दबाव में ही एंडरसन की रिहाई हुई थी और उसे भारत से बाहर जाने में भी पूरी मदद दी गई। साठे का कहना है कि एंडरसन की रिहाई पूरी तरह से गैरकानूनी थी, शायद यही कारण था कि इस कांड की जांच कर रही एजेंसी भी 18 साल तक एंडरसन तक नहीं पहुंच सकी। यदि साठे की बात को सच माना जाये तो अर्जुन सिंह के साथ केंद्र सरकार भी एंडरसन को बचाने के लिए जिम्मेदार है। इस मामले पर कांग्रेस अपनी प्रतिद्वंद्वी भाजपा के निशाने पर है। दिग्विजय सिंह और सत्यव्रत चतुर्वेदी जैसे कांग्रेस नेताओं के एंडरसन के देश से भागने के मामले में दिए गए कथित विरोधाभासी बयानों को भी भाजपा ने जनता को भ्रमित करने वाला करार दिया है, बल्कि भाजपा तो अर्जुन से से इस मामले की सच्चाई को सामने लाने की मांग कर रही है। यही कारण है कि भाजपा ने हादसे के मुख्य आरोपी एंडरसन के बहाने बोफोर्स दलाली के आरोपी क्वात्रोची से लेकर परमाणु दायित्व विधेयक तक के मुद्दों को उठाकर सरकार पर अमेरिका परस्त होने का आरोप तक जड़ दिया है।
भोपाल गैस कांड के लिए जिम्मेदार यूनियन कार्बाइड के पूर्व प्रमुख वारेन एंडरसन के भारत से भागने के मुद्दे पर मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री हमलों से घिरते जा रहे हैं और दो प्रमुख कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह तथा आरके धवन ने कहा है कि उन्हें बताना चाहिए कि ऐसा कैसे हुआ। मध्य प्रदेश के भोपाल की यूनियन कार्बाइड से गत 2/3 दिसंबर 84 को रिसी गैस से दस हजार से अधिक लोग मारे गये थे और 25 हजार से अधिक विकलांग हुए, वहीं उनकी आने वाली पीढ़ियां भी इस गैस के प्रभाव से जूझ रही हैं। ऐसे में मुख्य आरोपी वॉरेन एंडरसन के देश से भागने के पीछे अमेरिकी दबाव की आशंका जता कर विवाद खड़ा हो रहा है। घटना के समय मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी जिसमें मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह थे। इस विवाद के तूल पकड़ने पर जहां तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह भाजपा के निशाने पर हैं, वहीं अपनी ही कांग्रेस पार्टी के नेताओं से भी वह पूरी तरह से घिरते नजर आ रहे हैं, लेकिन उनकी खामोशी एक पहेली बनी हुई, जिसमें एक बड़ी ताकत भी हो सकती है। इस विवाद में भाजपा के साथ अर्जुन सिंह पर निशाना साधते हुए कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव एवं मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय ने भी कहा कि इस भयावह घटना के समय उन्होंने मध्य प्रदेश मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया था और वह लोकसभा चुनाव के लिए प्रचार कर रहे थे। इसलिए उन्हें उन घटनाओं के बारे में कुछ नहीं पता है जिसके तहत दिसमर 1984 में वारेन एंडरसन को जमानत मिली थी और उन्हें रिहा कर दिया गया था। अपनी पत्नी का इलाज कराने अमेरिका गए कांग्रेस महासचिव ने आज एक ई-मेल संदेश में कहा कि‘ बयान में ही उन्होंने साफ कर दिया था कि वह प्रचार कर रहा था और वह एंडरसन की जमानत और रिहाई से जुड़े घटनाक्रम के बारे में नहीं जानते। इस लिहाज से दिग्विजय ने कहा कि इस बारे में सारे सवालों का जवाब उस वक्त के मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह और तीन अन्य लोग दे सकते हैं। उन्होंने कहा कि ये तीन लोग हैं मध्य प्रदेश के तत्कालीन प्रमुख सचिव ब्रह्म स्वरूप, भोपाल के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक स्वराजपुरी और तत्कालीन कलेक्टर मोती सिंह हैं, जिनमें से ब्रह्म स्वरूप का निधन हो चुका है। वहीं दिग्विजय के सुर में सुर मिलाते हुए राजीव गांधी के निजी सचिव रह चुके आर.के. धवन ने कहा कि अर्जुन सिंह ही ऐसे अकेले आदमी हैं जो इन सभी सवालों का जवाब दे सकते हैं कि एंडरसन कैसे देश के बाहर गया। इस मामले में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के बचाव में धवन ने कहा कि वह नहीं मानते कि पूर्व प्रधानमंत्री को घटनाक्रम की जानकारी होगी या उन्होंने एंडरसन को हवाई अड्डे पर विमान उपलध कराने को कहा होगा जिससे वह भोपाल से गए। उधर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी अर्जुन सिंह पर हमला बोला और अर्जुन सिंह से उन हालात के बारे में जवाब मांगा है, जिनके तहत वारेन एंडरसन भागने में सफल रहा था। वहीं मध्य प्रदेश के तत्कालीन गृह सचिव केएस शर्मा का दावा है कि यूनियन कार्बाइड के पूर्व प्रमुख वारेन एंडरसन की रिहाई का आदेश संभवत: तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह की तरफ से आया था। शर्मा ने कहा कि शुरुआत से ही पूरे मामले को लेकर कुछ नरमी बरती जा रही थी अन्यथा एंडरसन को हिरासत के दौरान ‘रेस्ट हाउस’ में नहीं रखा जाता। ऐसे जघन्य अपराध के आरोपी को उसी दिन रिहा करने का मतलब है कि अत्यंत अधिक दबाव रहा होगा। शर्मा ने कहा कि गृह सचिव होने के बावजूद उन्हें अंधेरे में रखा गया और एंडरसन की रिहाई के बारे में सूचित नहीं किया गया। उन्होंने एंडरसन को रेस्ट हाउस में रखने के सरकार के फैसले और उन्हें जमानत देने के फैसले को अवैध करार दिया है। ऐसे में विपक्षी दलों के साथ ही अर्जुन सिंह अपनी पार्टी के नेताओं से भी एंडरसन के मुद्दे पर चौतरफा घिरते नजर आ रहे हैं जो अभी तक अपने प्रति हो रही टिप्पणियों और लग रहे आरोपों पर पूरी तरह से चुप्पी साधे हुए हैं।
शुक्रवार, 11 जून 2010
...तो यही है मुंबई हमलों का सच!
ओ.पी. पाल
भारतीय सुरक्षा बलों की सीमापार आतंकवादियों के खिलाफ नाकेबंदी और कड़े बन्दोंबस्त को चुनौती देने के लिए पाकिस्तान में आतंकवादी संगठन प्रशिक्षण के तौर-तरीकों को बदलकर अपने नापाक मंसूबो को अंजाम देने के लिए कमर कस रहे हैं। मुंबई आतंकी हमले के बाद सीमापार आतंकवादियों की घुसपैठ को रोकने के लिए सरकार द्वारा बरती जा रही चौकसी में भारतीय सुरक्षा बल भी सीमाओं पर कड़ी चौकसी बनाकर पूरी तरह से चौकस हैं। भारतीय सुरक्षा बलों को चुनौती देने के लिए पाकिस्तानी लश्कर-ए-तैयबा जैसे आतंकी संगठनों ने प्रशिक्षण के तौरतरीकों में बदलाव करके ट्रेनिंग के नए पाठ्यक्रम तैयार करने शुरू कर दिये हैं इस बात का खुलसा भारत के खुफिया तंत्र कर चुके हैं। उच्च खुफिया सूत्रों के मुताबिक आतंक के आका आतंकियों की ट्रेनिंग को नए सिरे से सख्त बनाने में लगे हैं। आतंकवादियों को प्रशिक्षण के लिए भर्ती के दौरान हर आतंकी को उसकी क्षमता के अनुसार खास मिशन तैयार किया जा रहा है और हर आतंकी सदस्य के लिए अनिवार्य बुनियादी प्रशिक्षण के अलावा भी विशेष प्रशिक्षण दिया जाएगा जिसके लिए विशेष प्रशिक्षण केंद्र बनाया गया है। यह भी जानकारी मिल रही है कि आईएसआई और सेना के कुछ अधिकारी आतंकी संगठनों को हर तरह की मदद करने में पीछे नहीं हैं खासकर भारत के खिलाफ जेहाद के नाम पर आतंकी संगठनों को पाक खुफिया एजेंसी पूरी तरह से संलिप्त है। खुफिया विभाग के अनुसार आतंकियों के प्रशिक्षण कार्यक्रम को कुछ इसी तरह का नाम दिया है जिस प्रकार से शिक्षा संस्थानों में खास कोर्स का अध्ययन और प्रशिक्षण कराया जाता है। आतंकी संगठनों द्वारा यह प्रशिक्षण खास उद्देश्य को ध्यान में रखकर तैयार किए जा रहे हैं। जिनमें युवाओं को भर्ती करके उनके प्रशिक्षण को बैच और सेमेस्टर में बांटा गया है। यह प्रशिक्षण कार्यक्रम ज्यादा उद्देश्योन्मुख और चयनात्मक बन गया है। सूत्रों के अनुसार इसका संपूर्ण ध्यान कमांडर तैयार करने पर केंद्रित है, ताकि सुरक्षा बलों को हराया जा सके। पुरानी ट्रेनिंग से अलग पूर्व में आतंकियों को हथियारों और विस्फोटों, घुसपैठ और सामूहिक नरसंहार के लिए के लिए दो स्तरीय प्रशिक्षण दिया जाता था, लेकिन नये प्रशिक्षण कार्यक्रम में उन युवाओं को एडवांस प्रशिक्षण दिया जाएगा, जो अपनी बोद्धिक और शारीरिक फिटनेस का परिचय देंगे। यह ट्रेनिंग बुनियादी रूप से तासीस कोर्स से शुरू होगी। यह धार्मिक होने के साथ आगे के प्रशिक्षण की जानकारी देगी। इस कोर्स की अवधि एक महीना होगी। हांलांकि लश्कर-ए-तैयबा की कोशिश इस प्रशिक्षण को 21 दिन में पूरा करने की है, इसके बाद तीन महीने का (अल राद) कोर्स की ट्रेनिंग शुरू होगी। इस चरण का एक महत्वपूर्ण पहलू प्रचार के माध्यम से आतंकी की विचारधारा को बदलना है। सात सेमेस्टर सभी आतंकियों को उपर्युक्त दो चरणों का प्रशिक्षण दिया जाता है, लेकिन इससे अलावा खास मिशन को ध्यान में रखते हुए आतंकियों को सैन्य ट्रेनिंग के रूप में विशेष प्रशिक्षण के लिए समूहों में विभाजित कर दिया जाता है। जिस प्रकार से मुंबई हमले के लिए कसाब जैसे आतंकी समूह को खास तौर पर मैरिन (समुद्री) आपरेशन के लिए तैयार किया गया था, जो सासे कठिन सैन्य प्रशिक्षण है। तीसरा चरण गुरिल्ला उन लोगों के लिए तैयार किया गया है जिन्हें समुद्र, जंगल, जमीन या शहरी परिदृश्य में अपना जौहर दिखाना होगा। यही इस खास प्रशिक्षण का उद्देश्य होगा। यह भी बताया गया है कि इसके बाद आतंकियों को अन्य एडवांस कोर्स करना होगा। इसमें आधुनिक हथियारों को चलाना सिखाया जाता है। खुफिया सूत्रो की माने तो यह प्रशिक्षण गुप्त रखा जाता है। यह समूह बहुत छोटे होते हैं जहां प्रत्येक आतंकी को उसके बेहतरीन कौशल के लिए प्रशिक्षित किया जाता है। इस चरण में हर आतंकी बम लगाने और सुरक्षा बलों से निपटने के अलावा प्रशिक्षित शूटर बन जाता है। ट्रेनिंग का छठा और सांतवा चरण सासे कठिन है, जिसे भारतीय सुरक्षा एंजेंसियां भी सबसे खतरनाक मानती हैं। इस चरण में हवाई लक्ष्य के साथ बातचीत का कौशल सिखाया जाता है। बहरहाल भारतीय सुरक्षा बल भी आतंकवादियों की हर चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए तैयार हैं।
भारत की राष्ट्रीय जांच एजेंसी की पूछताछ में मुंबई के 26/11 आतंकी डेविड कोलमेन हेडली द्वारा इन हमलों में पाक सेना अधिकारियों और खुफिया एजेंसी आईएसआई का हाथ होने का खुलासा कोई नई बात नहीं है, इस बात को भारत डेढ़ दशक से कहता आ रहा है। मुंबई हमले के बाद तो अमेरिका और अन्य देशों ने भी पाकिस्तान में आतंकवाद के केंद्रों की पैठ बनाने में आईएसआई को असली जड़ माना है। अब जब अमेरिका में लश्कर-ए-तैयबा के आतंकी डेविड कोलमेन हेडली ने भी भारत की राष्ट्रीय जांच एजेंसी से पूछताछ में भारत के खिलाफ सीमापार आतंकवाद के एक बड़े सच का खुलासा कर दिया है तो पाकिस्तान को भी सकारात्मक नीति से आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई करके विश्व समुदाय का विश्वास हासिल करने की जरूरत है। विशेषज्ञों की माने तो जेहाद के नाम पर आतंकी संगठनों की असली जड़ पाक खुफिया एजेंसी आईएसआई ही है। आईएसआई के आतंकी संगठनों से गहरी पैठ के कारण पाकिस्तान सरकार भी अपने ही देश में आतंकवादी घटनाओं के बावजूद आतंकी संगठनों पर कोई भी कार्रवाई करने में असमर्थ साबित हो रही है। भारत की राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने मुंबई आतंकी हमले के मास्टर माइंड माने जाने वाले डेविड कोलमेन हेडली से पूछताछ करके जो जानकारी हासिल की है उनमें भी मुंबई हमलों के उसी सच का खुलासा हुआ है जिसके लिए भारत ने पाकिस्तान को आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए दस्तावेज सौंप रखे हैं, लेकिन पाकिस्तान की नीयत में इतना खोट है कि वह भारत द्वारा सौंपे गये उन दस्तावेजों को किसी प्रकार का सबूत मानने को तैयार नहीं है। मुंबई हमले के सच को जिस प्रकार से भारत ने पाकिस्तान के समक्ष अपने डॉजियरों में बताया है वह हेडली से पूछताछ के बाद हुए खुलासे से भी मेल खा रहा है जिसमें पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई और पाक सेना के अधिकारियों मेजर समीर अली, मेजर हारून और मेजर इकाबाल की करतूत हमले की साजिश में करतूत भी शामिल है। यह भी किसी से छिपा नहीं है कि पाकिस्तान भारत के खिलाफ आतंकवाद के माध्यम से अपरोक्ष युद्घ लड़ रहा है। पाकिस्तान की नीति में ही आतंकवाद को प्रश्रय हासिल है और वहां आतंकवादियों को प्रशिक्षित करने के लिए चल रहे सैकड़ों प्रशिक्षण शिविरों में पाकिस्तानी सेना और आईएसआई अपना पूरा योगदान देती है। हां, अब जबकि हेडली ने अमेरिका में पूछताछ के दौरान यह खुलासा किया है, इसलिए इस खुलासे का महत्व काफी बढ़ जाता है। पिछले अनुभव यह बात साफ कर देते हैं कि भारत सरकार इस मसले पर अंतर्राष्ट्रीय मंच पर पाकिस्तान को घेरने में पूरी तरह सफल नहीं रही है और दुनिया भर में आतंकवादी घटनाओं की जड़ पाकिस्तान में होने के कई खुलासों के बावजूद अमेरिका सहित पश्चिमी देश पाकिस्तान पर कड़ा दबाव नहीं डालते। अमेरिका की हालत तो यह है कि वह आतंकवाद के खात्मे के लिए दुनिया भर से मिली रकम का पाकिस्तान पर दुरुपयोग का भी आरोप लगाता है, लेकिन अमेरिका अगले ही पल इस मद में मिलने वाली आर्थिक मदद भी पहले की तुलना में बढ़ा देता है। जाहिर है कि अमेरिका और पश्चिमी देश आतंकवाद के नाम पर दोहरा खेल खेल रहे हैं। पाकिस्तान के जाने माने विद्वान एवं साउथ एशिया सेंटर द अटलांटिक काउंसिल आॅफ यूनाईटेड स्टेट के निदेशक शुजा नवाज भी बहुत पहले इस बात को कह चुके हैं कि आईएसआई और लश्कर तैयबा जैसे आतंकवादियों के बीच इतने गहरे सम्बन्ध हैं कि आतंकी संगठनों को धन और संसाधनों की कोई कमी नहीं आने देते। विशेषज्ञों का कहना है कि भारत पहले से ही कहता आ रहा है कि भारत के खिलाफ आतंकी हमलों के लिए आईएसआई और सेना के अधिकारियों द्वारा आतंकवादियों को आर्थिक और हथियारों तथा खुफिया सूचनाओं यानि हर तरह की मदद करता आ रहा है जो आतंकवादियों को प्रशिक्षण दिलाने में भी पूरा सहयोग करते आ रहे है। हेडली ने जैसा कि खुलासा किया है कि आईएसआई ने ही आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयाबा के साथ मिलकर मुंबई हमले की पाकिस्तान में साजिश रची थी और आतंकवादियों को दिशा निर्देश भी दिये थे। विधि विशेषज्ञ कमलेश जैन का कहना है कि इतने सनसनीखेज खुलासे के बाद भी भारत सरकार 26/11 के आतंकियों को कटघरे में लाकर खड़ा कर सके ऐसा नहीं लगता। उन्होंने भोपाल गैस त्रासदी के गुनाहगार वॉरेन एंडसरसन का जिक्र करते हुए कहा कि अमेरिकी नागरिक होने के नाते आरोपी एंडसरसन को राष्ट्रीय अतिथि की तरह देश से रवाना किया गया। ऐसा लगता है कि अमेरिका और पाकिस्तान के बिच भारत पीस रहा है कभी दबाव में तो कभी मजबूरी में चाहते हुए भी भारत कदम आगे नहीं बढ़ा पाता। कमलेश जैन यहभी मानती हैं कि भारत के खिलाफ नीयत में खोट को देखते हुए यह भी जरूरी नहीं कि हेडली के आरोपों को पाकिस्तान स्वीकार ही कर ले। भारत ही नहीं दुनिया के अन्य देश भी जानते हैं कि पाकिस्तान ही आतंकवाक का मुख्य केंद्र है जिसे अमेरिका भी मानता है, लेकिन अमेरिका की नीतियों के कारण भारत की सरकारभी दबाव में पाकिस्तान के खिलाफ वह कार्रवाई नहीं करती जिसकी आतंकवाद के नासूर को खत्म करने के लिए करने की जरूरत है। भारत व पाक सांन्धों के जानकार विशेषज्ञों का मानना है कि यह तो अमेरिका और पाकिस्तान भी जानता है कि आतंकवादी संगठनों को आईएसआई और सेना के मेजर स्तर के अधिकारियों की खुलकर मदद मिल रही है, लेकिन सवाल है कि पाकिस्तान सरकार का आईएसआई पर सीधा नियंत्रण नहीं है जो पाक सेना के अधीन है। ऐसे में राजनीतिक व रणनीतिक दृष्टि से पाकिस्तान चाहकर भी आतंकवादी संगठनों के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर पा रहा है। विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत को चाहिए कि अगले महीने होने वाली वार्ता में आतंकवाद के अलावा कोई बातचीत न की जाए। यदि पाकिस्तान आतंकवादी संगठनों के खिलाफ कार्रवाई करने का सबूत दे तो तभी अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों पर पाक से वार्ता हो। एक विशेषज्ञ तो यहां तक कहते हैं कि भारत को पाक की इस कूटनीति को समझते हुए उसे साक सिखाने का माकूल समय है।
आतंकवादियों ने बदला प्रशिक्षण का स्वरूप!भारतीय सुरक्षा बलों की सीमापार आतंकवादियों के खिलाफ नाकेबंदी और कड़े बन्दोंबस्त को चुनौती देने के लिए पाकिस्तान में आतंकवादी संगठन प्रशिक्षण के तौर-तरीकों को बदलकर अपने नापाक मंसूबो को अंजाम देने के लिए कमर कस रहे हैं। मुंबई आतंकी हमले के बाद सीमापार आतंकवादियों की घुसपैठ को रोकने के लिए सरकार द्वारा बरती जा रही चौकसी में भारतीय सुरक्षा बल भी सीमाओं पर कड़ी चौकसी बनाकर पूरी तरह से चौकस हैं। भारतीय सुरक्षा बलों को चुनौती देने के लिए पाकिस्तानी लश्कर-ए-तैयबा जैसे आतंकी संगठनों ने प्रशिक्षण के तौरतरीकों में बदलाव करके ट्रेनिंग के नए पाठ्यक्रम तैयार करने शुरू कर दिये हैं इस बात का खुलसा भारत के खुफिया तंत्र कर चुके हैं। उच्च खुफिया सूत्रों के मुताबिक आतंक के आका आतंकियों की ट्रेनिंग को नए सिरे से सख्त बनाने में लगे हैं। आतंकवादियों को प्रशिक्षण के लिए भर्ती के दौरान हर आतंकी को उसकी क्षमता के अनुसार खास मिशन तैयार किया जा रहा है और हर आतंकी सदस्य के लिए अनिवार्य बुनियादी प्रशिक्षण के अलावा भी विशेष प्रशिक्षण दिया जाएगा जिसके लिए विशेष प्रशिक्षण केंद्र बनाया गया है। यह भी जानकारी मिल रही है कि आईएसआई और सेना के कुछ अधिकारी आतंकी संगठनों को हर तरह की मदद करने में पीछे नहीं हैं खासकर भारत के खिलाफ जेहाद के नाम पर आतंकी संगठनों को पाक खुफिया एजेंसी पूरी तरह से संलिप्त है। खुफिया विभाग के अनुसार आतंकियों के प्रशिक्षण कार्यक्रम को कुछ इसी तरह का नाम दिया है जिस प्रकार से शिक्षा संस्थानों में खास कोर्स का अध्ययन और प्रशिक्षण कराया जाता है। आतंकी संगठनों द्वारा यह प्रशिक्षण खास उद्देश्य को ध्यान में रखकर तैयार किए जा रहे हैं। जिनमें युवाओं को भर्ती करके उनके प्रशिक्षण को बैच और सेमेस्टर में बांटा गया है। यह प्रशिक्षण कार्यक्रम ज्यादा उद्देश्योन्मुख और चयनात्मक बन गया है। सूत्रों के अनुसार इसका संपूर्ण ध्यान कमांडर तैयार करने पर केंद्रित है, ताकि सुरक्षा बलों को हराया जा सके। पुरानी ट्रेनिंग से अलग पूर्व में आतंकियों को हथियारों और विस्फोटों, घुसपैठ और सामूहिक नरसंहार के लिए के लिए दो स्तरीय प्रशिक्षण दिया जाता था, लेकिन नये प्रशिक्षण कार्यक्रम में उन युवाओं को एडवांस प्रशिक्षण दिया जाएगा, जो अपनी बोद्धिक और शारीरिक फिटनेस का परिचय देंगे। यह ट्रेनिंग बुनियादी रूप से तासीस कोर्स से शुरू होगी। यह धार्मिक होने के साथ आगे के प्रशिक्षण की जानकारी देगी। इस कोर्स की अवधि एक महीना होगी। हांलांकि लश्कर-ए-तैयबा की कोशिश इस प्रशिक्षण को 21 दिन में पूरा करने की है, इसके बाद तीन महीने का (अल राद) कोर्स की ट्रेनिंग शुरू होगी। इस चरण का एक महत्वपूर्ण पहलू प्रचार के माध्यम से आतंकी की विचारधारा को बदलना है। सात सेमेस्टर सभी आतंकियों को उपर्युक्त दो चरणों का प्रशिक्षण दिया जाता है, लेकिन इससे अलावा खास मिशन को ध्यान में रखते हुए आतंकियों को सैन्य ट्रेनिंग के रूप में विशेष प्रशिक्षण के लिए समूहों में विभाजित कर दिया जाता है। जिस प्रकार से मुंबई हमले के लिए कसाब जैसे आतंकी समूह को खास तौर पर मैरिन (समुद्री) आपरेशन के लिए तैयार किया गया था, जो सासे कठिन सैन्य प्रशिक्षण है। तीसरा चरण गुरिल्ला उन लोगों के लिए तैयार किया गया है जिन्हें समुद्र, जंगल, जमीन या शहरी परिदृश्य में अपना जौहर दिखाना होगा। यही इस खास प्रशिक्षण का उद्देश्य होगा। यह भी बताया गया है कि इसके बाद आतंकियों को अन्य एडवांस कोर्स करना होगा। इसमें आधुनिक हथियारों को चलाना सिखाया जाता है। खुफिया सूत्रो की माने तो यह प्रशिक्षण गुप्त रखा जाता है। यह समूह बहुत छोटे होते हैं जहां प्रत्येक आतंकी को उसके बेहतरीन कौशल के लिए प्रशिक्षित किया जाता है। इस चरण में हर आतंकी बम लगाने और सुरक्षा बलों से निपटने के अलावा प्रशिक्षित शूटर बन जाता है। ट्रेनिंग का छठा और सांतवा चरण सासे कठिन है, जिसे भारतीय सुरक्षा एंजेंसियां भी सबसे खतरनाक मानती हैं। इस चरण में हवाई लक्ष्य के साथ बातचीत का कौशल सिखाया जाता है। बहरहाल भारतीय सुरक्षा बल भी आतंकवादियों की हर चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए तैयार हैं।
बुधवार, 9 जून 2010
कश्मीरियों का विश्वास खोते अलगाववादी संगठन!
ओ.पी. पाल
जम्मू-कश्मीर में हिंसा के हिमायती हुर्रियत जैसे अलगाववादी संगठन बार-बार सरकार के वार्ता प्रस्ताव को ठुकराते आ रहे हैं जिनके सरकार से वार्ता की टेबल पर न आने का कारण शायद इन संगठनों का जनता के प्रति अपना विश्वास खोना माना जा रहा है। अलगाववादी संगठनों को नो के दशक के बाद कश्मीर लगातार प्रभाव घटता नजर आ रहा है जिसका गवाह बीस के दशक में हुए दो विधानसभा व दो लोकसभा चुनाव भी बने हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि जम्मू-कश्मीर में अमन-चैन के घोर विरोधी और नकारात्मक दृष्टिकोण रखने वाले अलगाववादी संगठनों की वार्ता में कोई दिलचस्पी नहीं है,जो कश्मीर में पटरी पर लौट रहे जन-जीवन से शायद इतना बौखलाए हुए हैं कि वे सरकार से ऐसी मांगे पूरी करने का बहाना बना रहे हैं जिनके पूरा होते ही कश्मीरी जनता फिर से अलगाववाद के चक्रव्यूह में फंस जाएगी।
प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह की हाल में संपन्न हुई जम्मू-कश्मीर की दो दिवसीय यात्रा के एजेंडे में राज्य में कश्मीरी अलगाववादियों के दोनों संगठनों हुर्रियत कांफ्रेंस और मुजफ्फराबाद स्थित यूनाइटेड जिहाद काउंसिल से प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की वार्ता का प्रस्ताव भी शामिल था, लेकिन इस प्रस्ताव को अलगाववादी संगठनों ने ठुकरा दिया है। यही रवैया इन संगठनों ने पिछले दिनों केंद्रीय गृहमंत्री पी. चिदांरम के कश्मीर दौरे के समय अपनाया था। विशेषज्ञों की माने तो कश्मीर में सरकार द्वारा विकास को दी जा रही तरजीह के कारण राज्य की जनता का विश्वास सरकार के पक्ष में है और अलगाववादी संगठन जनता का विश्वास लगातार खोते जा रहे हैं। हुर्रियत कांफ्रेंस जैसे संगठनों के पास कभी विकास का मुद्दा तो रहा नहीं और जनता भी उनकी नीतियों को जान रही है तो ऐसे में सरकार से वार्ता करने के लिए हुर्रियत कान्फ्रेंस और यूनाइटेड जिहाद काउंसिल हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं। अलगाववादी संगठनों के कश्मीर में घटते प्रभाव के बारे में विशेषज्ञों का तर्क है कि वर्ष 2000 तक राज्य में अलगाववादी संगठनों का बोलबाला था जिनकी एक आवाज पर कश्मीर की जनता उनका साथ देती थी और चुनाव के दौरान बहिष्कार जैसे मुद्दे पर ये संगठन सरकार के खिलाफ सफल रहे, लेकिन गत 2003 के विधानसभा और 2004 के लोकसभा चुनाव में देखने को मिला कि कश्मीर की जनता अलगाववादी संगठनों के चुनाव बहिष्कार की घोषणा को नजरअंदाज करती नजर आई। वर्ष 2008 के विधानसभा और 2009 के लोकसभा चुनाव में तो हुर्रियत कान्फ्रेंस और यूनाइटेड जिहाद काउंसिल बैकपुट पर नजर आई जिसमें इन संगठनों ने चुनाव का बहिष्कार करने का ऐलान किया, लेकिन कश्मीर की जनता ने मतदान के दौरान पिछले सभी रिकार्ड तोड़कर शायद यह संदेश दिया कि सरकार द्वारा कराए जा रहे विकास के सामने अलगाववाद कोई मायने नहीं रखता। इन चुनावों में अलगाववादी संगठनों के नेताओं ने भी अपनी किस्मत आजमाई और सभी ने अपनी जमानते जत कराई। विशेषज्ञ डा. श्याम सिंह शशि मानते हैं कि पंजाब की तरह जम्मू-कश्मीर की स्थिति भी तेजी के साथ सुधर रही है और पर्यटक भी भरपूर संख्या में कश्मीर जैसे पर्यटक स्थलों पर बेखौफ जा रहे हैं। सरकार ने यदि इसी प्रकार से विकास कार्यो को जारी रखा तो अलगाववादी संगठन स्वत: ही घुटने टेकने को मजाूर हो जाएंगे। हुर्रियत कान्फ्रेस का नेतृत्व कर रहे मीर वाइज उमर फारूख ने सरकार से वार्ता का प्रस्ताव को पहले अपनी मांगों को पूरा करने का बहाना करके ठुकराया है। भारत-पाकिस्तान के मामलों के जानकार विशेषज्ञ कमर आगा का मानना है कि कश्मीर के अलगाववादी संगठन जो कई गुटों में बंट चुके हैं की दिलचस्पी राज्य में अमन-चैन बनाने की नहीं है। यही कारण है कि हुर्रियत कांफ्रेंस जैसे संगठन सरकार से वार्ता भी नहीं करना चाहते। श्री आगा मानते हैं कि इन संगठनों को पाकिस्तानी आतंकी संगठनों का भी समर्थन मिला हुआ है इसलिए इन संगठनों ने कश्मीर मे जेहाद को अंजाम देना शुरू किया जो हमेशा विकास में बाधक बने हुए हैं, हालांकि कश्मीर में विकास हो रहा है और सरकार पैकेज भी दे रही है। राज्य में नकारात्मक गतिविधियों के कारण अलगाववादी संगठनों ने धीरे-धीरे जनता का विश्वास भी खो दिया है। जाहिर सी बात है कि सरकार इन संगठनों से वार्ता में कश्मीर के अमन-चैन और विकास की बात करेगी इसलिए भी ये संगठन वार्ता से दूर भाग रहे हैं। आगा मानते हैं कि कश्मीर के अलगाववादी संगठनों ने किसी भी सकारात्मक दृष्टि से कोई काम नहीं किया और केवल उसी नजरिए पर अपनी गतिविधियों से राजनीति कर रहे हैं जो पाकिस्तान का नजरिया है। ऐसे में जरूरत है कि भारत को कश्मीर में रचनात्मक और विकास कार्यो से जनता में अपनी पैठ बनाये रखनी है ताकि कश्मीर में पूर्ण रूप से शांति और आपसी सद्भाव कायम किया जा सके। यही संदेश प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने भी अपनी कश्मीर यात्रा के दौरान दिया है।
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