मंगलवार, 15 जून 2010

दावों से नहीं दवा से काबू होगी महंगाई!

ओ.पी. पाल
देश में सुरसा के मुंह की तरह बढ़ती महंगाई पर यूपीए सरकार नियंत्रण करने के लिए उपाय करने का दावा करती नहीं थक पा रही है। दोहरे अंक में पहुंची महंगाई दर में सासे बड़ा डाका महंगाई दर 16.6 प्रतिशत होने के कारण आम आदमी की जो पर पड़ने वाला है जिसे अपनी रोजमर्रा की जिंदगी जीने के लिए केवल रोटी, कपड़ा और मकान चाहिए। वहीं सरकार की और से केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने एक बार फिर से दावा किया है कि उसे पूरी उम्मीद है कि मानसून सामान्य रहने पर जुलाई के मध्य से खाने-पीने की वस्तुओं के दाम कम होने लगेंगे। सरकार के महंगाई पर काबू पाने की उम्मीदों के विपरीत विशेषज्ञों का कहना है कि महंगाई इन दावों से नहीं बल्कि ठोस उपाय और आर्थिक नीतियों को दुरस्त करके ठोस और मजबूत इलाज से ही काबू पाया जा सकता है।
पहले से ही महंगाई से त्रस्त देश के आम नागरिकों को रोटी, कपड़ा और मकान की बुनियादी जरूरत को पूरा करना मुश्किल हा रहा है और यूपीए की केंद्र सरकार लगातार यही आश्वासन देती आ रही है कि महंगाई को नियंत्रण करने के लिए सरकार के प्रयास जारी है, लेकिन यह महंगाई की दर कम होने का नाम नहीं लेती। मुद्रास्फीति की दर के 10.16 प्रतिशत का अंक छूने से यूपीए की सरकार में हलचल तो मची हुई है और शायद सरकार को समझ नहीं आ रहा है कि वह महंगाई को काबू करने के लिए कौन से ठोस उपाय करे। महंगाई के मुद्दे पर विपक्षी दलों से पहले ही घिरी यूपीए सरकार पर आलोचनात्मक हमले तेज होना स्वाभाविक है। उधर मंगलवार को वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने उम्मीद जताई है कि मानसून सामान्य रहने पर जुलाई मध्य से खाने पीने की वस्तुओं के दाम कम होने लगेंगे। मुखर्जी का कहना है कि भारतीय रिजर्व बैंक महंगाई की स्थिति पर नजर रखे हुए है। हालांकि खाद्य पदार्थो की दर में दिसंबर के मुकाबले कमी है, लेकिन सवाल इस बात का है कि दाल, सब्जी, खाद्य तेल जैसी आवश्यक वस्तुओं के दाम आसमान छू रहे हैं। महंगाई के इस दौर में पेट्रोल, डीजल के दाम बढ़ाने के प्रस्ताव पर प्रणव मुखर्जी का कहना है कि किरीट पारिख समिति की सिफारिशों पर विचार के लिये मंत्री समूह की अगली बैठक 17 जून को होगी। भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर डी. सुब्बाराव का स्पष्ट कहना है कि महंगाई दर कम करने के लिए आर्थिक विकास दर की कुर्बानी नहीं दी जा सकती, लेकिन आर्थिक संतुलन बनाने के लिए सबसे पहले महंगाई को ही नियंत्रण करने की प्राथमिकता पर जोर दिया जा रहा है। जैसा कि आरबीआई के डिप्टी गवर्नर केसी चक्रवर्ती ने संकेत दिये हैं कि दहाई के अंक में पहुंची मुद्रास्फीति से रिजर्व बैंक सतर्क हैं जिसे नियंत्रण करने के लिए मौद्रिक नीति की तिमाही समीक्षा से पहले ही कोई ठोस कदम उठाया जा सकता है। सरकार की ओर से मिल रहे इन संकेतों के बारे में स्टेट बैंक ओफ इंडिया के चेयरमैन ओ.पी. भट्ट की माने तो रिजर्व बैंक अपनी नीति में बैंकों से नकदी खींच सकता है जिससे याज दरों में बढ़ोतरी होने की संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता। यूनियन बैंक ओफ इंडिया के चेयरमैन एवं प्रबंध निदेशक एम.वी. नायर का कहना है कि मुद्रास्फीति का आंकडा तेजी से बढ रहा है, जो चिंता का सबब है। जबकि आर्थिक वृद्धि पर महंगाई का असर नहीं पडना चाहिए। केंद्र और राज्य सरकारें एक-दूसरे पर महंगाई का ठींकरा फोडने में भी पीछे नहीं रहे हैं जिसमें जमाखोरों और कालाबाजारी के खिलाफ आवश्यक अधिनियम के तहत कार्रवाई को लेकर तल्खी बढ़ती देखी गई है। महंगाई के मुद्दे पर प्रमुख विपक्षी दल भाजपा के प्रवक्ता राजीव प्रताप रूडी का कहना है कि यूपीए सरकार के दूसरे शासनकाल में भी आम आदमी इस महंगाई की समस्या से जूझ रहा है। आवश्यक वस्तुओं खासकर खाद्य पदार्थो की महंगाई दर जा 16.6 प्रतिशत पहुंच गई हो तो ऐसे में सरकार के सभी दावे खोखले साबित हो जाते है। रूडी का कहना है कि सरकार के पास लाइलाज हो चुकी महंगाई को नियंत्रित करने की कोई दवा तो नहीं है केवल दावे करके जनता को उम्मीदों का सांझा देती आ रही है। भाजपा का मानना है कि यूपीए सरकार महंगाई को लेकर एकमत नहीं है। उन्होंने तर्क दिया कि प्रधानमंत्री इस साल के अंत तक मुद्रास्फीति की दर 5-6 प्रतिशत रहने की बात कह चुके हैं, जाकि योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया कहते हैँ कि इस साल के अंत तक महंगाई दर कम होने लगेगी। इनके अलावा आर्थिक सलाहकार कुछ अन्य बात कहते हैँ तो ऐसे में सरकार के पास कोई पैमाना नहीं है जिससे यह विश्वास किया जा सके कि आने वाले दिनों में महंगाई पर नियंत्रण कर लिया जाएगा।

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