मंगलवार, 22 जून 2010

भारत-पाक वार्ता में विश्वास बहाली पहला कदम!

ओ.पी. पाल
भारत और पाकिस्तान के बीच आपसी सांन्धों को सुधारने की दिशा में दोनों देशों के बीच सचिव स्तर की बातचीत 24 जून को इस्लामाबाद में होने जा रही है, जिसका पहला मकसद एक-दूसरे के प्रति विश्वास और भरोसे को बहाल करना है ताकि पडोसियों के बीच अन्य मुद्दों पर वार्ताएं करने के लिए सहमति का माहौल तैयार किया जा सके। विशेषज्ञों का मानना है कि हालांकि मुंबई हमले के बाद अभी तक पाकिस्तान ने कोई ऐसा प्रमाण नहीं दिया है कि दोनों देशों के बीच शुरू हुई बातचीत का वातावरण उत्साहवर्धक हो, लेकिन एक-दूसरे के बीच विश्वास और भरोसे की खाई को पाटने के लिए दोनों देशों के बीच बातचीत का सिलसिला चलता रहना चाहिए। बातचीत से ही एक अनुकूल वातावरण की जमीन तैयार की जा सकती है।मुंबई के 26/11 आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिसतान के बीच में बढ़ी तल्खी और आतंकवाद के प्रति पाकिस्तान के ढुलमुल रवैये के बावजूद भारत के प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह और उनके पाकिस्तानी समकक्ष युसूफ रजा गिलानी ने आपस में दोनों देशों के बीच विश्वास और भरोसे को बहाल करने का जो आधार तय किया था, उसी के तहत 24 जून को इस्लामाबाद में भारतीय विदेश सचिव सुश्री निरुपमा राव तथा पाकिस्तानी विदेश सचिव सलमान बशीर के बीच सचिव स्तरीय वार्ता होने जा रही है, जो इससे पहले 25 फरवरी 2010 को नई दिल्ली में बिना किसी नतीजे के खत्म हो गई थी। इस्लामाबाद की सचिव स्तरीय वार्ता ही अगले महीने 15 जुलाई को दोनों देशों के विदेश मंत्रियों के बीच होने वाली बातचीत का एजेंडे का आधार तय करेगी? हालांकि 26 जून को इस्लामाबाद में दक्षिणी एशियाई देशों के गृहमंत्रियों के सम्मेलन में भारत के गृहमंत्री पी. चिदम्बरम भी हिस्सा लेने के लिए पाकिस्तान जा रहे हैं। माना जा रहा है कि गृह मंत्रियों के दक्षेस सम्मेलन में विशेषकर आतंकवाद का मुद्दा रहेगा जिसके लिए भारत पहले से ही पाकिस्तान से आतंकवादी संगठनों के खिलाफ ठोस कार्रवाई करने की मांग करता आ रहा है। बहरहाल भारत और पाकिस्तान के बीच होने वाली वार्ता के नतीजों पर कोई भविष्यवाणी नहीं की जा सकती, लेकिन विदेश मामलों के विशेषज्ञ वेद प्रताप वैदिक का मानना है कि दोनों देशों के बीच संबंधों को लेकर एक बेहतर माहौल बने इसके लिए वार्ताएं होती रहनी चाहिए। जहां तक सीमाओं पर घुसपैठ और संघर्ष विराम का उल्लंघन या आतंकवादी घटनाओं का सवाल है उन पर अंकुश लग सके ऐसा संभव नहीं है। सचिव स्तरीय वार्ता को लेकर श्री वैदिक का कहना है कि इस वार्ता का कोई ठोस नतीजा निकलेगा या नहीं यह कहना मुश्किल है, क्यों कि मुंबई हमले के बाद अभी तक पाकिस्तान कोई ऐसा प्रमाण नहीं दे पाया है जिससे यह कहा जा सके कि दोनों देशों के बीच वातावरण उत्साहजनक है। आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान का ढुलमुल रवैया, अफगानिस्तान के विकास में भारत की सहयोग की नीतियों पर आपत्ति जताना और यहां तक कि चीन से परमाणु करार करके पाकिस्तान में परमाणु संयंत्र स्थापित कराने की पाकिस्तान की मंशा से कहीं तक भी यह नहीं लगता कि पाकिस्तान और भारत के बीच बातचीत के ठोस परिणाम सामने आएंगे। लेकिन दोनों देशों के बीच लंबित मुद्दों पर सहमति बनाने और आपसी संबंधों को बेहतर बनाने के लिए इस प्रकार की वार्ताएं जारी रखना जरूरी है। भारत और पाकिस्तान के जानकार विशेषज्ञ प्रो. कलीम बहादुर मानते हैं कि दोनों देशों के बीच बातचीत करने का मकसद यही है कि विश्वास तथा भरोसे की खाई को भरा जा सके। उनका कहना है कि वार्ता के दौरान पाकिस्तान कश्मीर व जल जैसे मुद्दे को उठाने का प्रयास जरूर करेगा, जाकि इससे पहले दोनों देशों के बीच तल्खी का कारण बने आतंकवाद की समस्या पर पाकिस्तान को भरोसा कायम करने की जरूरत है। विश्वास कायम होने के बाद दोनों देश मानवीय और अन्य सभी मुद्दों को एक-दूसरे के समक्ष स्प्ष्ट करने के बाद उनके हल ढूंढ सकते हैं। प्रो. बहादुर का मानना है कि पाकिस्तान के पुरानी आदतों को देखते हुए ऐसा नहीं लगता सचिव स्तरीय वार्ता का कोई नतीजा सामने आएगा, लेकिन यदि वातावरण तैयार हो जाए तो दोनों देशों के हित में ही होगा, हालांकि भारत को पाकिस्तान से ज्यादा नतीजों की उम्मीद नहीं रखनी चाहिए कि वह सकारात्मक कदम बढ़ाने के सामने आए। विशेषज्ञों की माने तो पाकिस्तान आतंकवाद के मुद्दे पर कभी भी गंभीर नजर नहीं आया, जो दुनिया के लिए खतरा बना हुआ है। भारत को इस बात का ध्यान रखने की जरूरत है कि वह वार्ता के दौरान आतंकवाद के मुद्दे को ही मुख्य फोकस में रखे और पाकिस्तान को इस बात का अहसास कराए कि आतंकवाद उनके लिए ही नहीं बल्कि पाकिस्तान के लिए भी खतरा है।

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