प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह इसी माह जी-20 देशों के सम्मेलन में शामिल होने के लिए कनाडा के टोरंटो जाएंगे, लेकिन उससे पहले ही कनाडा में रहने वाले सिख समुदाय के एक कट्टरवादी संगठन ने 1984 के सिख विरोधी दंगे को लेकर कनाडाई विदेश मंत्रालय को लेकर जो अर्जी दी है उससे देखते हुए प्रधानमंत्री को चुनौती का सामना करना पड़ सकता है। दरअसल इसी माह टोरंटो में जी-20 देशों का सम्मेलन होने जा रहा है जिसमें अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों को लेकर प्रस्तावों पर चर्चा होगी। विशेषज्ञों का मानना है कि कनाड़ा में भारतीय सिख समुदाय भारी संख्या में है जो 84 दंगों के दर्द को प्रधानमंत्री के समक्ष रखना चाहते हैं, जिनका मकसद सिर्फ दोषियों को सजा दिलाना है। हालांकि विदेश यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री के सामने किसी चुनौती को पेश करना प्रवासी •ाारतीयों के हित में नहीं है।
पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देशभर में भड़के 1984 के सिख विरोधी दंगों की जांच में लगातार आ रहे नये तथ्यों और आरोपियों को सजा न मिलने से सिख समुदाय लगातार संघर्षरत है, जिसमें कांग्रेस के सज्जन कुमार और जगदीश टाइटलर को सजा दिलाने के लिए सिख संगठन लगातार आज तक आंदोलनरत हैं। सिख प्रधानमंत्री बनाने के बाद सिख समुदाय को न्याय की उम्मीद जगी थी, लेकिन सीबीआई द्वारा पूर्व मंत्री जगदीश टाइटलर को क्लीनचिट दिये जाने पर सिखों में गुस्सा है। 15वीं लोकसभा चुनाव के दौरान चौरासी दंगों के तथाकथित आरोपी जगदीश टाइटलर व सज्जन कुमार को सिखों के आंदोलन के कारण कांग्रेस हाईकमान को चुनाव मैदान से हटाना पड़ गया था। चौरासी सिख विरोधी दंगों की आंच अमेरिका तक हैं जिनके दो-तीन गवाह अमेरिका और कनाडा में जाकर बस चुके हैं, जिनके बयान को लेकर सीबीआई दल अमेरिका की सैर भी कर चुकी है। दरअसल चौरासी सिख विरोधी दंगों की जारी सीबीआई जांच और न्यायिक प्रक्रिया के बावजूद सिख न्याय की आस लगाए हुए हैं। इसी का कारण है कि जा कनाडा में भारी संख्या में बसे सिख परिवारों को यह जानकारी मिली कि प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह टोरंटो में होने वाले जी-20 देशों के सम्मेलन में आ रहे हैं तो सिख संगठनों ने अपने दर्द का अहसास कराने के लिए इस दौरान डा. मनमोहन सिंह तक पहुंच बनाने की कौशिश की है। इसके लिए सिख संगठनों ने करीब दस हजार हस्ताक्षर करके एक अर्जी कनाडा के विदेश मंत्रालय को सौँपी है। इस अर्जी के बारे में बताया गया है कि कनाडा में रहने वाले भारतीय समुदाय के एक बड़े हिस्से के रूप में एक कट्टरपंथी सिख संगठन ने कनाडा की सरकार के सामने वर्ष 1984 में दिल्ली में हुए सिख विरोधी दंगों को हिंसा की सुनियोजित कार्रवाई करार देने के लिये एक अर्जी पेश की है। कनाडा में सिख समुदाय के ही दूसरे गुट ने इस कदम का विरोध करने का फैसला करते हुए सिख संगठन के इस कदम को ‘बचकाना और विभाजनकारी‘ करार देते हुए समुदाय के नेताओं ने इस अभियान को भारत विरोधी और टोरंटो में रह रहे भारतीयों में फूट डालने वाला बताया है। कनाडा के विदेश मंत्री के संसदीय सचिव दीपक ओबराय ने कहा कि वर्ष 1984 में निर्दोष सिखों के साथ जो भी हुआ वह त्रासद था और उसके दोषी लोगों को बख्शा नहीं जाना चाहिये। उन्होंने कहा कि भारत की सरकार दोषी लोगों को सजा दिलाने के प्रयास कर रही है, लेकिन यहां के सिख संगठन द्वारा कनाडा सरकार के सामने रखी गई अर्जी बचकाना और विभाजनकारी कदम है। वे लोग भारतीय-कनाडाई समुदाय को नुकसान पहुंचाना चाहते हैं। ओबराय का कहना है कि दुनिया के सासे सम्मानित सिख भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इस मुद्दे पर बयान दिये हैं और भारत की सरकार इस मुद्दे काम कर रही है, लेकिन ये लोग भारत को बाँटने के लिये कनाडा को इस्तेमाल करना चाहते हैं। करीब 10 हजार लोगों द्वारा हस्ताक्षरित वह अर्जी जी-20 देशों के सम्मेलन के सिलसिले में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की यात्रा से पहले कनाडा के विदेश मंत्रालय की समिति के समक्ष पेश की गई है।
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