ओ.पी. पाल
अमेरिका के साथ होने वाली सामरिक वार्ता के लिए विदेश मंत्री एसएम कृष्णा के नेतृत्व में भारतीय शिष्टमंडल वाशिंगटन पहुंच चुका है। इस सामरिक वार्ता का उद्देश्य व्यापक स्तर पर रणनीतिक तरीके से विचार होने की सम्भावना जताई जा रही हैं। विशेषज्ञों की माने तो अमेरिका पाकिस्तान की तरह भारत को एनपीटी तथा सीटीबीटी का हिस्सा बनाने के लिए दबाव बनाने की कवायद कर रहा है। हालांकि भारत-अमेरिका की गुरुवार को होने वाली सामरिक वार्ता में अफगानिस्तान व पाकिस्तान हालात और अफगानिस्तान में भारत की भूमिका के अलावा अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच आतंकवाद के मुकाबले पर भी चर्चा होने की सम्भावना है। भारत व अमेरिका के संबंधों को नई ऊंचाई तक ले जाने की संकल्पना करते हुए विदेश मंत्री एस. एम. कृष्णा अपनी अमेरिकी समकक्ष हिलेरी क्लिंटन के साथ आ तक की पहली सामरिक वार्ता करने के लिए वाशिंगटन में बैठक करेंगे। वाशिंगटन में होने वाली इस सामरिक वार्ता में दोनों देश अफगानिस्तान-पाकिस्तान की स्थिति, अफगानिस्तान में भारत की भूमिका तथा आतंकवाद से मुकाबले में द्विपक्षीय सहयोग पर तो चर्चा करेंगे हीं, वहीं भारत के प्रतिनिधिमंडल की इच्छा है कि मुंबई के 26/11 आतंकी हमले में संलिप्त रहे डेविड कोलमेन हेडली के मुद्दे पर भी चर्चा हो, जिससे पूछताछ के लिए राष्ट्रीय जांच एजेंसी का एक दल अमेरिका में ही है। विदेश मंत्री एसएम कृष्णा के साथ भारतीय शिष्टमंडल में मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिबबल, पृथ्वी एवं विज्ञान राज्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण, विदेश सचिव निरूपमा राव के अलावा आंतरिक सुरक्षा मामलों के विदेश सचिव यूके बंसल पर्यावरण सचिव विजय शर्मा और अमेरिका में भारत की राजदूत मीरा शंकर भी शामिल है, वहीं भारत में अमेरिकी उच्चायुक्त टिमोथी रोमर भी अमेरिका पहुंच चुके हैं। इसलिए जाहिर है कि शिक्षा, व्यापार, उद्योग, सुरक्षा और परमाणु ऊर्जा सांन्धी मुद्दे भी वार्ता के एजेंडे का हिस्सा होंगे। विदेश मामलों के विशेषज्ञ मानते हैँ कि जैसा कि संयुक्त राष्ट्र पहले भारत और पाकिस्तान के अलावा इजराइल से कह चुका है कि वे बिना किसी देरी और पूर्व शर्तो के एनपीटी तथा सीटीाीटी का हिस्सा बने। इसलिए यह भी माना जा रहा है कि अमेरिका भारत को अपने भरोसे में लेकर भारत से एनपीटी और सीटबीटी पर हस्ताक्षर करने के लिए भी दबाव बनाने का प्रयास कर सकता है। विदेश मामलों के विशेषज्ञ एवं पूर्व विदेश सचिव सलमान हैदर का मानना है कि इस प्रकार की सामरिक वार्ता भी भारत और अमेरिका के बीच बेहतर संबंधों को परवान चढ़ाने के लिए आवश्यक है, लेकिन वार्ताएं बराबरी की होनी चाहिए। सलमान हैदर कहते हैँ कि अमेरिका हमेशा अपने फायदे की बातें ज्यादा करता है, जैसा कि भारत की अफगानिस्तान में भूमिका को लेकर अमेरिका अपनी नीति अपना रहा है, लेकिन ऐसा लगता है कि अफगानिस्तान में अमेरिकी नीतियों से कहीं तेज तालिबानी नीतियां हावी हो रही हैं। बुधवार को ही काबुल में राष्ट्रपति हामिद करजई की सभा में आतंकी हमले का जिक्र करते हुए विशेषज्ञ कहते हैं कि यह अमेरिका की नीति का ही जवाब है जिसे करजई को अमल में लाने से रोकने के लिए तालिबानी अपनी गतिविधियों को तेज करते जा रहे हैं। पूर्व विदेश सचिव शशांक की माने तो अमेरिका भारत और पाकिस्तान को एक तराजू में तोलने का प्रयास कर रहा है, जाकि पाकिस्तानी आतंकवाद भारत का जानी दुश्मन बना हुआ है जिसे रोकने में अमेरिका अभी तक अपनी कोई अहम भूमिका निभाने में दिलचस्पी लेता नजर नहीं आया। उन्होंने हेडली तक भारत की पहुंच का जिक्र करते हुए कहा कि भारत के सामने सामरिक वार्ता का अच्छा मौका है कि वह अमेरिका से हेडली मुद्दे पर खुलकर वार्ता करे ताकि भारत की जांच एजेंसियां उससे मुंबई हमले के बारे में खुलकर पूछताछ कर सके, लेकिन जैसा कि अमेरिका से बयान आ रहे हैं को देखते हुए ऐसा नहीं लगता कि भारत की हेडली तक पूछताछ के लिए पहुंच बनाने की राह इतनी आसान है जिसका अमेरिका आश्वासन भी दे चुका है। विशेषज्ञों का मानना है कि भारतीय शिष्टमंडल के मौजूदा अमेरिकी दौरे में उच्च स्तरीय वार्ताएं भी होनी हैं जिसमें अमेरिकी उप विदेश मंत्री विलियम बर्न्स और भारतीय विदेश सचिव निरुपमा राव के बीच वार्ता होगी। ऐसे में भारत को अपने पक्ष को मजबूती के साथ रखने की जरूरत है, जिसमें पाकिस्तान की धरती से संचालित आतंकवाद का मुद्दा भी भारत के सामने अहम है। इस सामरिक वार्ता में यही सवाल बना हुआ है कि अमेरिका के समक्ष भारत अपने पक्ष को कितनी मजबूती के साथ रख पाता है।
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