गुरुवार, 24 जून 2010

आतंकवाद की चुनौती पर खरा उतरे पाक़!

ओ.पी. पाल
इस्लामाबाद में भारत और पाकिस्तान के बीच सचिव स्तरीय वार्ता को जिस प्रकार से मैत्रीपूर्ण और रचनात्मक बताया जा रहा है उसमें पाकिस्तान के सामने सासे बड़ी चुनौती यही रहेगी कि वह भारत के खिलाफ अपनी धरती से संचालित हो रहे आतंकवाद के खात्मे के लिए समग्र सोच के साथ ठोस कार्रवाई करके भारत के सामने ही नहीं बल्कि दुनिया के सामने यह विश्वास पैदा करें कि वह आतंकवाद के खिलाफ युद्ध में विश्व समुदाय के साथ है। खासकर भारत और पाकिस्तान के बीच इसी विश्वास बहाली से दोनों पडोसी देशों के बीच लंबित मुद्दों के हल के लिए बातचीत पटरी पर आने की संभावनाएं मजबूत हो सकेंगी। विशेषज्ञ मानते हैं कि आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई करने का वायदा पाकिस्तान लगातार करता आ रहा है, लेकिन उस वायदे को अभी तक पूरा नहीं कर सका है, लेकिन हालात बदले हैं तो भारत-पाक के बीच वार्ता शुरू होना दो पडोसी देशों के हित में है, लेकिन यदि पाकिस्तान वास्तव में भारत के साथ बेहतर सम्बन्ध बनाकर सभी लंबित मुद्दों का हल ढूंढना चाहता है तो उसे सासे पहले विश्वास बहाली में बाधा बने आतंकवाद के खिलाफ सकारात्मक दृष्टि से ठोस कदम उठाने की अधिक जरूरत है।भारत की सासे बड़ी चिंता सीमापार आतंकवाद की है, जिसके कारण भारत-पाक के बीच न तो बेहतर सम्बन्ध और शांति वार्ता पटरी पर चढ़ पा रही है और न ही दोनों देशों के बीच लंबित मुद्दों का हल निकल पा रहा है। मुंबई आतंकी हमलों के बाद तो भारत ने पाक से समग्र वार्ता को ही स्थगित कर दिया था, लेकिन भारत सभी मुद्दों के हल बातचीत के जरिए निकालने का पक्षधर है न कि जंग के जरिए। भले ही विश्व समुदाय खासकर अमेरिका के दबाव में पाकिस्तान ने आतंकवाद के प्रति अपना कुछ रवैया बदला हो, लेकिन भारत और पाकिस्तान के बीच तल्खी को दूर करने के लिए बातचीत का जो दौर शुरू हुआ है वह दोनों देशों के हित में है। सवाल यह उठता है कि दोनों देशों के बीच विश्वास बहाली का यह प्रयास तभी सार्थक होगा जा पाकिस्तान द्वारा भारत की शर्तो पर खरा उतरने के लिए सकारात्मक दृष्टिकोण को अपनाया जायेगा. भारत और पाकिस्तान के जानकार विशेषज्ञ कमर आगा का कहना है कि जहां तक आतंकवाद का सवाल है उसे खत्म करने के लिए पाकिस्तान में राजग के शासन काल में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और उसके बाद हुई सभी वार्ताओं में भी किया है, लेकिन इसके विपरीत सीमापार आतंकवाद नासूर के रूप में सामने आया है। शायद पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था में सहयोगी अमेरिका आदि देशों के दबाव में पाकिस्तान की थोड़ी सोच बदली हो, जिसके बाद स्वयं आतंकवाद की आग में झुलस रहे पाकिस्तान भी दोषी आतंकवादियों को सजा दिलाने की वकालत करने लगा है। कमर आगा मानते हैं कि आतंकवाद के खिलाफ पाक सरकार कोई ठोस कार्रवाई कर सके ऐसा संभव नहीं लगता क्योंकि पाक सेना की शह पर आतंकवाद पनपा है जिसके पास सरकार से ज्यादा अधिकार हैं। इसलिए पाक सरकार को पहले अपनी सेना का दृष्टिकोण भी बदलना पड़ेगा। भारत की 26/11 में मुंबई आतंकी हमलों के लश्कर-ए-तैयाबा से जुड़े दोषियो हफीज सईद, जकीउर्रहमान व अबू हमजा जैसों के खिलाफ ठोस कार्रवाई करने, पाक में चल रहे आतंकी प्रशिक्षण केंद्रों को नेस्तनाबूद करने की मांग है, जिसकी चिंताओं से भारत लगातार पाक को अवगत कराता रहा है। कमर आगा मानते हैं कि दोनों देशों की शुरू हुई वार्ता का स्वागत होना चाहिए जिसमें पहली बार विदेश मंत्रालय के साथ गृह मंत्रालय भी शामिल हुआ है। सार्क देशों में पनप रहे आतंकवाद को समाप्त करने के लिए सभी को एकजुट होकर आगे आने की जरूरत है, जिसमें पाकिस्तान की भूमिका अहम होगी। विशेषज्ञ प्रो. कलीम बहादुर की माने तो पाकिस्तान पहले भी बातचीत के दौरान बड़े-बड़े वायदे करता रहा है, लेकिन यदि इस बार नये सिरे से आरम्भ हुई बातचीत के ठोस नतीजों पर पहुंचना है तो पाकिस्तान को समग्र सोच व सकारात्मक दृष्टिकोण और पडोसियों के सांन्धों को ध्यान में रखते हुए विश्वास को कायम करना होगा। चूंकि भारत व्यापार, आर्थिक क्षेत्र, सांस्कृतिक, उद्योग आदि विभिन्न क्षेत्रों में पाक के साथ सहयोग बढ़ाने की बात कर रहा है तो जाहिर सी बात है कि पाकिस्तान को भी उसी दृष्टि से एक कदम आगे आना होगा। यदि दोनों देशों के बीच बातचीत में विश्वास की भावना प्रगाढ़ होती है तो जाहिर सी बात है कि दोनों पक्षों के बीच जम्मू एवं कश्मीर विवाद, जल विवाद और अन्य मुद्दों का हल निकालने का रास्ता भी स्वत: ही प्रशस्त हो जाएगा, लेकिन पाकिस्तान को आतंकवाद के खिलाफ विश्वासपूर्ण और निष्पक्ष तथा ठोस कार्रवाई करने की जरूरत है जो दोनों देशों के बीच विश्वास और भरोसे की खाई को चौड़ा करता आ रहा है। विशेषज्ञ मानते हैं कि भारतीय विदेश सचिव सुश्री निरुपमा राव तथा पाक विदेश सचिव सलमान बशीर के बीच हुई वार्ता अगले महीने दोनों देशों के विदेश मंत्रियों के बीच होने वाली बातचीत के प्रति भी विश्वास पैदा करने वाली है, लेकिन पाकिस्तान को अपने वायदों पर खरा उतरने की चुनौती होगी।

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