रविवार, 6 जून 2010

सोनिया की जिंदगी पर ‘द रेड साड़ी’ का बवंडर

ओ.पी. पाल

यूपीए एवं कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी की जिंदगी पर स्पेनिश लेखक जेवियर मोरो द्वारा लिखी गई पुस्तक ‘द रेड सारी’ (लाल साड़ी) अभी तक भारत में नहीं आई है, लेकिन इस पुस्तक को लेकर बवाल मचना शुरू हो गया है। इसका कारण भी साफ है कि पुस्तक में श्रीमती सोनिया गांधी की जिंदगी से जुड़े अनछुए पहलुओं का जिक्र करना कांग्रेस को कतई बर्दाश्त नहीं है? लिहाजा किताब के लेखक को एक कानूनी नोटिस भेजकर कांग्रेस ने इस पुस्तक को भारत में प्रतिबंधित करने की कवायद शुरू कर दी है। लेखक, चिंतक और आलोचकों का मानना है कि इस पुस्तक के पीछे कुछ ऐसी ताकते हो सकती है जो राजनीति के शिखर पर पहुंची सोनिया गांधी की छवि को भारतवासियों की नजर में ख़राब करना चाहती हैँ। विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि स्वतंत्र अभिव्यक्ति का यह मतलब भी नहीं है कि कोई लेखक किसी व्यक्ति की जिंदगी के बारे में उसकी बिना सहमति के उसकी आजादी का हनन करे।
स्पेनिश लेखक जेवियर की यह किताब फ्रेंच, इटालियन और डच भाषा में अनुवाद के बाद 2008 से ही बिक रही है, जिसे भारत में बेचने के लिए उसका इस पुस्तक का अंग्रेजी में अनुवाद किया जा रहा है। अखिल भारतीय कांग्रेस की अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी के बचपन से आज तक की जिंदगी के ऐसे अनछुए पहलुओं का भी इस पुस्तक में जिक्र किया गया है जो सोनिया या कांग्रेस ही नहीं बल्कि कोई भी व्यक्ति भला कैसे बर्दाश्त कर सकेगा? इसी लिहाज से कांग्रेस के प्रवक्ता एवं सुप्रद्धि अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने इस विवादित पुस्तक के लेखक जेवियर मोरो को छह माह पूर्व एक कानूनी नोटिस भरजा था। बकौल अभिषेक मनु सिंघवी इस नोटिस से बोखलाकर जेवियर मोरो इसे लेखकों को धमकाने और उनकी लेखन की स्वतंत्रता पर अंकुश करार दिया है। दूसरी ओर सिंघवी के इस नोटिस मिलने के बाद लेखक मोरो ने कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी के खिलाफ कोर्ट में जाने की तैयारी कर ली है। जेवियर मोरो का आरोप है कि सिंघवी किताब के प्रकाशकों को धमका रहे हैं वहीं लेखक का तर्क है कि जा अभी अंग्रेजी भाषा में अनुवादित किताब बाजार में आई ही नहीं है तो सिंघवी ने पुस्तक को गैरकानूनी ढंग से कैसे हासिल किया? हालांकि लेखक का यह भी दावा है कि कांग्रेस अध्यक्ष की जिंदगी पर आधारित इस किताब की कहानी काल्पनिक है, लेकिन कांग्रेस लेखक की इस दलील को मानने को तैयार नहीं है। भला कांग्रेस सोनिया गांधी जैसी शख्सियत की जिंदगी से जुड़े अनछुए और आपत्तिजनक पहलुओं को कैसे बर्दाश्त कर सकती है। मोरो को भेजे गये कानूनी नोटिस के बारे में कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि नोटिस में उन्होंने मोरो को करीब दो दर्जन ऐसे उदाहरण दिये हैं जिसमें उनके द्वारा सोनिया की जिंदगी से जुड़े कई ऐसे पहलू हैं जिसमें सोनिया का ही नहीं, बल्कि भारत और हमारी मातृभाषा हिंदी का भी अपमान किया गया है। किताब में सोनिया को इमरजेंसी से जोड़कर कांग्रेस की दुखती रग पर भी लेखक ने हाथ रखने का प्रयास किया, जिसकी यानि इमरजेंसी की छींटे कांग्रेस सोनिया के दामन पर लगना कभी बर्दाश्त नहीं करेगी। लेखक, चिंतक और आलोचक सुधीश पचौरी का कहना है कि जहां तक सोनिया की जिंदगी पर लिखी पुस्तक का विवाद है उसमें उन आपत्तिजनक अंश पर कांग्रेस को लीगल नोटिस देने का पूरा हक है, जिसमें किसी व्यक्ति के जीवन जीने की आजादी का हनन हो रहा हो। पचौरी ने प्रकाश झा की फिल्म ‘राजनीति’ का जिक्र करते हुए कहा कि वह भी सोनिया गांधी पर आधारित है लेकिन कांग्रेस की जिन अंश पर आपत्ति थी उन्हें फिल्म से हटा दिया गया है तो इस पुस्तक के लेखक जेवियर मोरो को ऐसा करने में क्या परेशानी है। एक चिंतक के रूप में सुधीश पचौरी मानते हैं कि इस पुस्तक के लिखे जाने के पीछे कुछ ऐसी ताकते छिपी हो सकती हैं जो सोनिया गांधी को शिखर पर नहीं देखना चाहती उसमें इटली में भी कुछ लोग हो सकते हैं। उनका कहना है कि ऐसे कई किताबों या फिल्म के उदाहरण हैं जिनमें से आपत्तिजनक अंशों को हटाया गया है। सुप्रसिद्ध साहित्यकार एवं लेखक डा. श्याम सिंह शशि का कहना है कि कुछ लेखक और प्रकाशक जानबूझकर इस तरह के स्टंट करते हैं ताकि उनकी पुस्तक चर्चा में आए और उन्हें आर्थिक लाभ हासिल हो सके। जेवियर मोरो को कानूनी नोटिस भेजकर कांग्रेस ने सोनिया गांधी की प्रतिष्ठा को बचाए रखने की एक कार्यवाही की है। लेखकों की स्वतंत्र अभिव्यक्ति का यह अर्थ नहीं है कि वे किसी के जीवन से खिलवाड़ करें। डा. शशि मानते हैं कि पिछले दिनों आडवाणी या जसवंत की पुस्तक हो या तस्लीमा नसरीन अथवा सलमान रश्दी की पुस्तक विवादों के घेरे में रही है, लेकिन इस प्रकार की प्रलोभन के लिए अपनाई जा रही परंपरा इस क्षेत्र के लिए उचित नहीं है।

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