शुक्रवार, 4 जून 2010

नौकरशाही में भारत ने चीन को पीछे छोड़ा

भारत में फाइलों का अम्बर रखना ब्यूरोक्रेसी की शान?
भारत के नौकरशाह अपनी लालफीताशाही में चीन को भी पीछे छोड़ चुके हैं, जिन्हें फाइलों का अम्बर लगाने में अधिक विश्वास है यानि नौकरशाह और लालफीताशाही के मामले में भारत एशिया का सबसे बड़ा नकारा देश साबित किया गया है। यह रैंकिंग एक सर्वेक्षण के दौरान सामने आई है।
हांगकांग में पॉलिटिकल एंड इकॉनॉमिक रिस्क कंसलटेंसी यानि पीईआरसी द्वारा कराये गये एक सर्वेक्षण में नौकरशाही और लालफीताशाही के मामले में भारत के बाद दूसरा देश इंडोनेशिया है जहां लालफीताशाही के चक्कर में पड़ना एक कष्टकारी अनुभव समझा जाता है। इस सर्वे के नतीजों ने एक ऐसी धारणा पर मुहर लगा दी है, जिसमें भारत को नौकरशाही और लालफीताशाही के मामले में एशिया का सासे नकारा देश करार दिया गया है। इस सर्वे में 12 देशों में नौकरशाही और लालफीताशाही का मूल्यांकन किया गया। भारत में लालफीताशाही और नौकरशाही सबसे ख़राब आंकी गई है और भारत ने लिस्ट में पहला स्थान प्राप्त किया है। लालफीताशाही के मामले में भारत ने चीन को भी पीछे छोड़ दिया है। भारत के बाद दूसरा स्थान इंडोनेशिया का आता है और फिर तीसरे स्थान पर फिलीपींस को जगह मिली है। कंसलटेसी का कहना है कि लालफीताशाही भारत और चीन में एक गंभीर समस्या है लेकिन दोनों देशों में अलग अलग राजनीतिक व्यवस्था होने की वजह से भारत में हालात ज्यादा सिरदर्द पैदा करते हैं। रैंकिंग तय करने के लिए हर देश को 1 से 10 के पैमाने पर आंका गया और जिस देश की नौकरशाही सासे सुस्त और भ्रष्ट रही उसे सबसे ज्यादा अंक मिले। इसके लिए करीब 1,500 वरिष्ठ प्रबंधकों से बात की गई। भारत ने सबसे ज्यादा 9.41 अंक पाए जाकि इंडोनेशिया 8.59 अंकों के साथ दूसरे स्थान पर रहा। चीन का स्थान पांचवा है और उसे 7.93 अंक मिले हैं। सर्वे के मुताबिक हांगकांग और सिंगापुर की लालफीताशाही और नौकरशाही बेहद सक्षम और कार्यकुशल है. सिंगापुर को सासे कम 2.53 अंक मिले हैं जाकि हांगकांग को 3.49 अंक दिए गए। भारत के बारे में अपनी टिप्पणी में पीईआरसी का मानना है कि राजनीतिक लोग सुधार लाने का वादा तो करते हैं और भारतीय नौकरशाही को नई जान देने का भरोसा दिलाते हैं, लेकिन आ तक वह ऐसा नहीं कर पाए हैं। इसका कारण माना गया कि प्रशासनिक व्यवस्था अपने आप में सत्ता केंद्र बन चुकी है। भारत की नौकरशाही से दो चार होना किसी भी भारतीय के लिए बेहद हताशाजनक अनुभव हो सकता है। पीईआरसी कंसलटेसी के सर्वेक्षण के अनुसार भारत में प्रशासनिक व्यवस्था के सत्ता केंद्र बन जाने की वजह से उन्हें सुधारे जाने के प्रयासों में मुश्किलें पेश आ रही हैं।

1 टिप्पणी:

  1. जिन्दा लोगों की तलाश! मर्जी आपकी, आग्रह हमारा!!

    काले अंग्रेजों के विरुद्ध जारी संघर्ष को आगे बढाने के लिये, यह टिप्पणी प्रदर्शित होती रहे, आपका इतना सहयोग मिल सके तो भी कम नहीं होगा।
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    उक्त शीर्षक पढकर अटपटा जरूर लग रहा होगा, लेकिन सच में इस देश को कुछ जिन्दा लोगों की तलाश है। सागर की तलाश में हम सिर्फ सिर्फ बूंद मात्र हैं, लेकिन सागर बूंद को नकार नहीं सकता। बूंद के बिना सागर को कोई फर्क नहीं पडता हो, लेकिन बूंद का सागर के बिना कोई अस्तित्व नहीं है।

    आग्रह है कि बूंद से सागर में मिलन की दुरूह राह में आप सहित प्रत्येक संवेदनशील व्यक्ति का सहयोग जरूरी है। यदि यह टिप्पणी प्रदर्शित होगी तो निश्चय ही विचार की यात्रा में आप भी सारथी बन जायेंगे।

    हम ऐसे कुछ जिन्दा लोगों की तलाश में हैं, जिनके दिल में भगत सिंह जैसा जज्बा तो हो, लेकिन इस जज्बे की आग से अपने आपको जलने से बचाने की समझ भी हो, क्योंकि जोश में भगत सिंह ने यही नासमझी की थी। जिसका दुःख आने वाली पीढियों को सदैव सताता रहेगा। गौरे अंग्रेजों के खिलाफ भगत सिंह, सुभाष चन्द्र बोस, असफाकउल्लाह खाँ, चन्द्र शेखर आजाद जैसे असंख्य आजादी के दीवानों की भांति अलख जगाने वाले समर्पित और जिन्दादिल लोगों की आज के काले अंग्रेजों के आतंक के खिलाफ बुद्धिमतापूर्ण तरीके से लडने हेतु तलाश है।

    इस देश में कानून का संरक्षण प्राप्त गुण्डों का राज कायम हो चुका है। सरकार द्वारा देश का विकास एवं उत्थान करने व जवाबदेह प्रशासनिक ढांचा खडा करने के लिये, हमसे हजारों तरीकों से टेक्स वूसला जाता है, लेकिन राजनेताओं के साथ-साथ अफसरशाही ने इस देश को खोखला और लोकतन्त्र को पंगु बना दिया गया है।

    अफसर, जिन्हें संविधान में लोक सेवक (जनता के नौकर) कहा गया है, हकीकत में जनता के स्वामी बन बैठे हैं। सरकारी धन को डकारना और जनता पर अत्याचार करना इन्होंने कानूनी अधिकार समझ लिया है। कुछ स्वार्थी लोग इनका साथ देकर देश की अस्सी प्रतिशत जनता का कदम-कदम पर शोषण एवं तिरस्कार कर रहे हैं।

    अतः हमें समझना होगा कि आज देश में भूख, चोरी, डकैती, मिलावट, जासूसी, नक्सलवाद, कालाबाजारी, मंहगाई आदि जो कुछ भी गैर-कानूनी ताण्डव हो रहा है, उसका सबसे बडा कारण है, भ्रष्ट एवं बेलगाम अफसरशाही द्वारा सत्ता का मनमाना दुरुपयोग करके भी कानून के शिकंजे बच निकलना।

    शहीद-ए-आजम भगत सिंह के आदर्शों को सामने रखकर 1993 में स्थापित-ष्भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थानष् (बास)-के 17 राज्यों में सेवारत 4300 से अधिक रजिस्टर्ड आजीवन सदस्यों की ओर से दूसरा सवाल-

    सरकारी कुर्सी पर बैठकर, भेदभाव, मनमानी, भ्रष्टाचार, अत्याचार, शोषण और गैर-कानूनी काम करने वाले लोक सेवकों को भारतीय दण्ड विधानों के तहत कठोर सजा नहीं मिलने के कारण आम व्यक्ति की प्रगति में रुकावट एवं देश की एकता, शान्ति, सम्प्रभुता और धर्म-निरपेक्षता को लगातार खतरा पैदा हो रहा है! हम हमारे इन नौकरों (लोक सेवकों) को यों हीं कब तक सहते रहेंगे?

    जो भी व्यक्ति स्वेच्छा से इस जनान्दोलन से जुडना चाहें, उसका स्वागत है और निःशुल्क सदस्यता फार्म प्राप्ति हेतु लिखें :-
    डॉ. पुरुषोत्तम मीणा, राष्ट्रीय अध्यक्ष
    भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)
    राष्ट्रीय अध्यक्ष का कार्यालय
    7, तँवर कॉलोनी, खातीपुरा रोड, जयपुर-302006 (राजस्थान)
    फोन : 0141-2222225 (सायं : 7 से 8) मो. 098285-02666
    E-mail : dr.purushottammeena@yahoo.in

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