रविवार, 20 जून 2010

राज्यसभा में भी बढ़ने लगा दागियों का ग्राफ!

ओ.पी. पाल
भारतीय संसद के उच्च सदन राज्यसभा के द्विवार्षिक चुनाव में 55 सीटों के लिए हुए चुनाव में निर्वाचित हुए उम्मीदवारों में 14 सांसदों के खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैं जिनसे यह साबित होने लगा है कि राजनीतिक दल लोकसभा की तरह राज्यसभा में राजनीति का अपराधीकरण करने में सक्रिय हो गये हैं। यही नहीं इन 14 दागियों में पांच सांसदों पर तो हत्या, हत्या का प्रयास, धोखाधड़ी और जालसाजी के अलावा भ्रष्टाचार जैसे संगीन मामले लंबित हैं। देश में बढ़ते राजनीति के अपराधीकरण से यही कहा जा सकता है कि आ उच्च सदन यानि राज्यसभा बुद्धिजीवियों का सदन नहीं रहा।राज्यसभा के द्विवार्षिक चुनाव 2010 में 12 राज्यों की 55 सीटों के लिए दो चरणों में चुनाव संपन्न कराए गये हैं, जिनमें 14 ऐसे सदस्य निर्वाचित हुए जिनके खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैं, इनमें कांग्रेस के 16 में तीन, भाजपा के 11 में दो, राकांपा के सभी दो, बसपा के सात में एक, सपा का दो में एक, शिवसेना का एक, जद-यू के दो में एक, राजद का एक, तेदपा का दो में एक तथा तीन निर्दलीयों में एक सांसद शामिल हैँ। इनमें से छह सांसदों के खिलाफ हत्या, हत्या का प्रयास, लूट, धोखाधडी और जालसाजी, हत्या का प्रयास, अपहरण, भ्रष्टाचार जैसे संगीन मामले दर्ज हैं। देश में प्रशासनिक सुधार और चुनाव सुधार की दुहाई देने वाले राजनैतिक दलों ने संसद के उच्च सदन राज्यसभा में दागियों का दामन थामना शुरू कर दिया है, जो अभी तक लोकसभा के चुनाव में ही देखा जाता रहा है। यानि कहा जा सकता है कि अपराध को राजनीति से दूर करके राजनीति को अपराधियों से दूर रखने का दम भरने वाली सभी राजनीतिक पार्टियां अपराधियों को अधिक तरजीह देती आ रही है, जिसका परिणाम है कि बुद्धिजीवियों की जगह आ राज्यसभा में दागियों की संख्या बढ़ने लगी है। कांग्रेस व भाजपा जैसे बड़े दल भी अपराधियों को गले लगाने में पीछे नहीं हैं बल्कि उन्हें संसद के दोनों सदनों लोकसभा और राज्यसभा में लाने का काम कर रहे हैं। नेशनल इलेक्शन वॉच एवं एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स जैसी संस्थाएं पिछले कई सालों से राजनीतिक दलों के चुनाव मैदान में आने वाले प्रत्याशियों पर अपना काम कर रही है जिनकी रिपोर्ट में राजनीति का अपराधीकरण तेजी के साथ बढ़ रहा है। द्विवार्षिक चुनाव में कांग्रेस के दागी तीन सांसदों में राजस्थान से आनन्द शर्मा, आंध्र प्रदेश से वी. हनुमंत व महाराष्ट्र से अविनाश पांडेय शामिल हैं, जाकि भाजपा के छत्तीसगढ़ से नन्द किशोर साय तथा यूपी से मुख्तार अब्बास नकवी दागदार सांसदों की सूची में शामिल हो गये हैं। इसी प्रकार राकांपा के महाराष्ट्र से निर्वाचित होकर आये तारिक अनवर व ईश्वर लाल जैन के खिलाफ भी आपराधिक मामले लंबित हैँ। इनके अलावा यूपी से बसपा के प्रो. एसपीएस बघेल, सपा के रशीद मसूद, बिहार से जद-यू के उपेन्द्र प्रसाद सिंह कुशवाह तथा राजद के रामकृपाल, शिवसेना के महाराष्ट्र से संजय राउत, आन्ध्र प्रदेश से तेदपा की गुंडु सुधा रानी तथा कर्नाटक से निर्दलीय सांसद विजय माल्या दागियों में शामिल हैं। जिन पांच सांसदों पर संगीन अपराधों में मामले दर्ज हैं उनमें शिवसेना के संजय राउत, तेदपा की गुंडु सुधा रानी, कांग्रेस के वी. हनुमंत राव, भाजपा के नन्द किशोर साय तथा बसपा के प्रो. एसपी सिंह बघेल शामिल हैँ। राज्यसभा में बढ़ते अपराधियों के ग्राफ पर यदि नजर डाले तो इस समय 245 सदस्यों में से 41 सांसद आपराधिक प्रवृत्ति के मौजूद हैं। इन चुनाव से पहले यह संख्या 37 थी, जिसमें से कांग्रेस के संतोष बरगोडिया, जद-यू के डा. एजाज अली, राजद के सुभाष यादव तथा सपा के कमाल अख्तर और भगवती सिंह तथा एडीएमके के टीटीवी दीनाकरण का कार्यकाल समाप्त हो गया है, लेकिन इन्हीं संख्या में से संजय राउत, नंद किशोर साय, हनुमंत राव व तारिक अनवर ने फिर से निर्वाचित होकर वापसी की है। जब कि जहां छह दागियों की विदाई हुई है तो 10 दागी उम्मीदवार नये सांसदों के रूप में निर्वाचित होकर सदन में आए हैं। इस प्रकार राज्यसभा में कुल दागी सांसदों में कांग्रेस के 10, भाजपा आठ, बसपा के पांच, सपा के चार, सीपीएम के चार, शिवसेना के चार, जद-यू के तीन, सीपीआई के तीन, राजद का एक, तेदपा का एक सदस्य दागियों की फेहरिस्त में शामिल है।
राज्यसभा: बहुमत का आंकड़ा नहीं छू सकी यूपीए
राज्यसभा के द्विवार्षिक चुनाव में प्रतिष्ठा को दांव पर लगाने के बावजूद कांग्रेस सर्वाधिक सीटों पर जीत हासिल करके भी यूपीए बहुमत के आंकड़े से कोसो दूर रह गया है। कांग्रेस ने हाल ही में संपन्न हुए राज्यसभा की 55 सीटों के चुनाव में उच्च सदन में बहुमत का आंकड़ा छूने के लिए सभी प्रयास करने के बावजूद 16 सीटों पर जीत हासिल की है। भारतीय संसद के उच्च सदन में यूपीए का आंकड़ा बढ़ाने का सपना कांग्रेस पूरा नहीं कर सकी और वह बहुमत के आंकडे से अभी कोसो दूर है। राज्यसभा चुनावों के परिणाम पर नजर डालें तो उच्च सदन में बहुमत से दूर होने के कारण संप्रग को सुधार कार्यक्रमों सहित कई महत्वपूर्ण मुद्दों और विधेयकों में आम सहमति के लिए ही विवश होना पड़ सकता है। 245 सदस्यीय राज्यसभा में 55 सीटों पर हुए चुनावों के बाद भी संप्रग की सीटें लगभग वहीं की वहीं रह गई हैं। हालांकि कांग्रेस को जरूर इस चुनाव से कुछ नुकसान उठाना पड़ा है, क्योंकि उसकी सीटें 71 से घटकर 69 पर आ गई हैं। लेकिन कांग्रेस अम्बिका सोनी, जयराम रमेश व आनंद शर्मा सहित कई केंद्रीय मंत्रियों को फिर से राज्यसभा में लाने में कामयाब रही। कांग्रेस के इस नुकसान के पीछे काफी हद तक उसकी सहयोगी पार्टियां जिम्मेदार मानी जा रही हैं। दक्षिण भारत की प्रमुख पार्टी और यूपीए की सहयोगी द्रमुक के खाते में तीन अतिरिक्त सीटें चली गई हैं और उसके पास आ ऊपरी सदन में सात सदस्य हो गए हैं। शरद पवार के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के पास छह राज्यसभा सांसद और ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस और जम्मू-कश्मीर की नेशनल कांफ्रेंस के पास दो-दो राज्यसभा सांसद हैं। राज्यसभा में 46 सदस्यों वाली भाजपा लगभग अपनी सभी दस सीटें बचाने में कामयब हो गई है। जहां एक ओर उसने कर्नाटक और राजस्थान में प्रभावशाली जीत दर्ज करने में सफलता पाई है, वहीं झारखण्ड में उसे मायूसी हाथ लगी। इस चुनाव से अगर सबसे जबरदस्त झटका तो इन चुनाव में सपा को लगा है, जिसकी संख्या घटकर सीधे दस सांसदों से घटकर पांच पर आ गई है। यूपीए को बहार से समर्थन दे रही समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल जैसी पार्टियां कुछ मुद्दों को लेकर काफी सख्त रुख अपनाए रहीं। जहां इन दलों ने यूपीए को महिला आरक्षण विधेयक पर नाकों चने चावा दिया, वहीं जाति आधारित जनगणना पर यह विजेता के तौर पर उभरीं। राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस ने आंध्र प्रदेश में अभि नय की दुनिया से राजनीति में आए चिरंजीवी की पार्टी प्रजा राज्यम से समझौता किया था और राज्य में सिर्फ चार उम्मीदवार मैदान में खड़े किए थे। कर्नाटक में कांग्रेस ने जनता दल-एस के साथ गठजोड़ का प्रयास किया था, वह सफल नहीं हुआ जिसके चलते उसके खाते में सिर्फ एक सीट आई और वह अपने महासचिव बीके हरिप्रसाद को दोबारा ऊपरी सदन नहीं पहुंचा सकी। इस चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी विजय माल्या जद-एस के समर्थन से जीत गए। राजस्थान में राज्यसभा के लिए हुए मतदान में भाजपा जहां प्रसिद्ध अधिवक्ता राम जेठमलानी को जिताने में कामयाब रही, वहीं कांग्रेस समर्थित संतोष बगरोडिया की हार से राज्य में सत्तारुढ़ दल को जोरदार झटका लगा। हालांकि भाजपा को झारखण्ड में इसी तरह का झटका लगा, जहां विधायकों की क्रास वोटिंग ने उसके प्रत्याशी अजय मारू के ऊपरी सदन पहुंचने के सपने को तार-तार कर दिया।

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