ओ.पी. पाल
देश में खासकर उत्तरी भारत में इज्जत के नाम पर हत्याओं सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है, हत्याओं के इसी सिलसिले में युवक-युवतियों की हत्या के इस वायरस ने राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में भी अपने पांव पसार लिये हैं। विकसित समाज की मान्यता के विपरीत परिवारजनों की इच्छा के विरूद्ध सगोत्रीय या अंतरजातीय विवाह करने वाले युवाओं व युवतियों की हो रही ऑनर किलिंग के लिए कौन जिम्मेदार है? इसी का सवाल ढूंढने की जरूरत महसूस की जा रही है ताकि ऑनर किलिंग के मामलों पर अंकुश लगाया जा सके। हालांकि ऐसी घटनाओं पर उच्चतम न्यायालय के बाद केंद्र सरकार भी गंभीर है जिसे रोकने के लिए संसद के मानसून सत्र के दौरान एक विधेयक लाने की तैयारी की जा रही है। कानून विशेषज्ञ तो मानते हैं कि इस ऑनर किलिंग को रोकने के लिए कमीशन ऑफ सती यानि प्रीवेंशन एक्ट-1987 जैसा कानून बनाया जाना चाहिए।
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में कुलदीप-मोनिका व शोभा की हत्या के रूप में इसी माह लगातार तीसरे ऑनर किलिंग की घटना ने साबित कर दिया है कि ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए जा क्रिमनल लॉ पर्याप्त न हो तो राष्ट्रीय स्तर पर कानून बनाकर उसे सख्ती से लागू किया जाए। हालांकि ऑनर किलिंग केवल भारत की ही समस्या है ऐसा नहीं है, बल्कि यह एक वैश्विक समस्या है। पिछले दिनों संयुक्त राष्ट्र संघ ने संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष नामक एक रिपोर्ट जारी की थी, जिसमें कहा गया था कि दुनिया में प्रति वर्ष 5000 से भी अधिक प्रेमी जोड़े ऑनर किलिंग के शिकार हो जाते है। कई पश्चिमी देशों में ऑनर किलिंग की घटनाएँ देखने को मिल रही हैं इसमें भारत के अलावा फ्रांस, जर्मनी, ब्रिटेन आदि देश भी शामिल हैं। यह बात दीगर है कि यहां दूसरे देशों से आने वाले समुदाय के लोग ही ऑनर किलिंग के शिकार होते है। वहीं पाकिस्तान, बंगलादेश, मिश्र, पेरू, अर्जेटीना, जॉर्डन, इजराइल, लोनान, तुर्की, सीरिया, मोरक्को, इक्वाडोर, युगांडा, स्वीडन, यमन तथा खाड़ी के देशों में ऑनर किलिंग जैसे अपराध हो रहे हैँ, जहां इज्जत के नाम पर हत्या करने वाले आरोपी पूरी तरह या आंशिक रूप से बच जाते हैं। भारत के उत्तरी राज्यों हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, राजस्थान तथा बिहार में लगातार ऑनर किलिंग का सिलसिला जारी है। हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में खाप या सर्वखाप की एक सामाजिक प्रशासन की पद्धति समाज में सामाजिक व्यवस्थाओं को बनाये रखने के लिए मनमर्जी से समाजिक मर्यादाओं को तोड़ने वाले प्रेमी जोड़ों के खिलाफ फरमान देने का सिलसिला जारी है। हालांकि भारतीय संविधान खाप पंचायतों को कानून अपने हाथ में लेने की कभी इजाजत नहीं देता। सुप्रीम कोर्ट ने भी हाल के दिनों में ऑनर किलिंग की बढ़ती घटनाओं पर एक गैर सरकारी संस्था शक्ति वाहिनी की दायर जनहित याचिका पर केंद्र तथा हरियाणा समेत आठ राज्यों की सरकार को इस मामले पर नोटिस जारी कर चुकी है। कानून विशेषज्ञ कमलेश जैन का कहना है कि ऑनर किलिंग को रोकने के लिए कमीशन ऑफ सती (प्रीवेंशन एक्ट-1987) की तर्ज पर कानून बनाने की जरूरत है, जिसमें फांसी की सजा का प्रावधान है। मॉजूदा कानून में भी ऐसे प्रावधान हैं लेकिन इसमें आरोपी साफ तौर से बचने में सफल हो जाते हैं। उनका कहना है कि किसी भी धर्मशास्त्र या अन्य किसी शास्त्रों में नहीं है कि अपनी समाज की मर्जी के बिना विवाह करने वालों की हत्या की जाए। इसलिए सरकार को प्रीवेंशन एक्ट-1987 की तर्ज पर नया कानून बनाकर ऑनर किलिंग पर लगाम लगाने की जरूरत है। ऑनर किलिंग पर कांग्रेस की राष्ट्रीय प्रवक्ता जयंती नटराजन का कहना है कि कांग्रेस ऑनर किलिंग में हत्याओं और हिंसा को एक सिरे से खारिज करती है। नटराजन का मानना है कि ऑनर किलिंग को रोकने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक सख्त कानून बनाने की जरूरत है, ताकि किसी को कानून अपने हाथ में लेने पर सख्त सजा मिल सके। ऑनर किलिंग की बढ़ती घटनाओं पर केंद्र सरकार भी गंभीर है जिसमें केंद्रीय कानून मंत्री वीरप्पा मोइली संकेत दे चुके हैं कि ‘ऑनर किलिंग’ के लिए पूरी पंचायत को दोषी ठहराने के लिए केंद्र नया कानून बनाने की तैयारी में है, जिसमें आईपीसी-सीआरपीसी में नए प्रावधान शामिल करने के लिए सरकार संसद के मानसून सत्र में विधेयक लाने के लिए मसौदा तैयार कर चुकी है। इस विधेयक में पंचायतों को मनमाने फरमान जारी करने से रोकने की भी व्यवस्था की जाएगी। प्रस्तावित कानून में मैरिज एक्ट में 30 दिन की रजिस्ट्रेशन अवधि को कम या खत्म करने के प्रस्ताव के अलावा पंचायत की बजाए खुद को निर्दोष साबित करने की जिम्मेदारी आरोपी की होगी। पूर्व आईपीएस अधिकारी एवं संयुक्त राष्ट्र में पुलिस सलाहकार रह चुकी किरण बेदी का कहना है कि ‘ऑनर किलिंग’ के नाम पर हो रही हत्याओं में सम्मान योग्य कोई बात नहीं है। श्रीमती बेदी का सवाल है कि क्या ये ऑनर किलिंग है या सीधे जाति के आधार पर हो रही हत्या है। उन्होंने इज्जत के नाम पर अपनाई जा रही इस परंपरा को मध्यकालीन मानसिकता करार दिया।
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