हरियाणा के हिसार जिले के मिर्चपुर कांड की आग अभी ठंडी भी नहीं हो पाई कि राज्य के पलवल जिले के भिदुकी गांव में पंचायती चुनाव के दौरान दबंगों की राजनीति का मुकाबला करने वाले दलितों के घरों में तोड़फोड और आगजनी के साथ मारपीट की भयावह घटना ने एक बार फिर दलित अत्याचार के मामलों सच सामने ला दिया है। कहीं न कहीं देश में दलितों के अत्याचार को रोकने में अनुसूचित जाति एवं जनजाति (अत्याचार निवारण) कानून भि बेअसर साबित होता नजर आ रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि आजादी के बाद भी सरकार दलितों को अत्याचारों से निजात नहीं दिला सकी है, जिसका सासे बड़ा कारण प्रशासनिक और पुलिस व्यवस्था में राजनीतिक हस्तक्षेप के रूप में सामने आया है। देश की सामाजिक व्यवस्था को दुरस्त करने के लिए आजादी के बाद से सत्ता में आए राजनीतिक दलों की सरकारों ने बड़े-बड़े वादे तो किये लेकिन उन्हें देश व समाज के सामाने प्रस्तुत करने का कभी प्रयास नहीं किया। अगर किया होता तो इस तरह की घटनाओं की पुनरावृति नहीं होती। मिर्चपुर और पलवल की घटनाओं ने कई वर्ष पहले हरियाणा के गोहाना कांड की यादों को ताजा कर दिया। विशेषज्ञ मानते हैं कि ग्रामीण इलाकों में आज भी दलितों को दबाने की राजनीति दांग करते आ रहे हैँ जिन्हें प्रशासनिक और पुलिस व्यवस्था में बढ़ते हस्तक्षेप का भी खुलेआम सहारा मिल रहा है। इंडियन जस्टिस पार्टी के प्रमुख एवं दलित नेता डा. उदित राज का कहना है कि हरियाणा में तो दलितों पर अत्याचार की घटनाएं कुछ ज्यादा ही बढ़ने लगी है, जिसका कारण खाप पंचायतों का वर्चस्व बढ़ना है। डा. उदित राज यह भी मान रहे हैं कि इन दलित अत्याचार की घटनाओं के बढ़ने का सासे बड़ा कारण यह भी है कि सत्तारूढ़ दल अधिकारियों की तैनाती में समरसता कायम करने का कोई प्रयास नहीं करते। डा. उदित राज का कहना है कि जिस क्षेत्र में भी ऐसी घटनाएं हुई हैं तो देखने में आया है कि वहां दलित विरोधी अधिकारी तैनात पाए गये हैं, वहीं ऐसे अधिकारी अपने उच्चाधिकारियों और सरकार को भी गलत सूचनाएं देकर दबंगों के हौंसले को बढ़ाने में मदद करने में भी पीछे नहीं हटते और आरोपियों को केवल बचाने का धर्म निभाने का प्रयास करते हैं। चाहे गोहाना कांड रहा हो या पिछले अप्रैल में मिर्चपुर अग्निकांड अथवा ताजा पलवल के भिदुकी गांव की घटना ही क्यों न हो, पुलिस अधिकारी मामलें को दबाने का प्रयास ही करते नजर आए हैं। उन्होंने दलितों के वोट राजनीति करने वाले राजनीति दलों को भी ऐसी घटनाओं के लिए जिम्मेदार करार दिया। वरिष्ठ अधिवक्ता एवं विधि विशेषज्ञ कमलेश जैन का कहना है कि अनुसूचित जाति एवं जनजाति (अत्याचार निवारण) कानून 1989 तथा नियमावली 1955 की प्रस्तावना यह भी कहती है कि अनुसूचित जाति एवं जनजाति को उच्च वर्गो के अत्याचारों से बचाने के लिए इस कानून का निर्माण किया गया है। ऐसे मामलों में ट्रायल और पीड़ित को राहत तथा पुनर्वास के लिए विशेष अदालतों का गठन करना भी शामिल है। विधि विशेषज्ञ कमलेश जैन की माने तो यह कानून ऐसा बनाया गया है कि दलितों की मुश्किलें इससे आसान होने के बजाए कई गुना बढ़ती नजर आती हैं। दलित कानून के अंतर्गत दलितों की एक मुश्किल यह भी है कि उन्हें अपनी जाति में कुशल वकील नहीं मिल पाते, ऐसे में तकनीक कानूनी पेंच उलझे होने के कारण दलितों को न्याय नहीं मिल पाता। राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष बूटा सिंह का कहना है कि दलित अत्याचार के मामले आयोग में आने पर आयोग ऐसे मामलों की जांच परख करने के बाद सरकार से उसमें उचित कार्रवाई करने को कहना है। दलित अत्याचार के हरियाणा में हुए हाल ही में हुए मिर्चपुर और भिदुकी गांव की ही घटना नहीं हैं ऐसे मामलों की लम्बी फेहरिस्त है, जिनमें प्रशासनिक और पुलिस अधिकारियों के स्तर पर ठोस कार्रवाई नहीं की जाती। बूटा सिंह के अनुसार दलित अत्याचार में यूपी सबसे पहले और बिहार दूसरे तथा मध्य प्रदेश तीसरे स्थान पर है, लेकिन दलित अत्याचार में हरियाणा, पंजाब, गुजरात व तमिलनाडु जैसे राज्य पीछे नहीं है। विशेषज्ञो का सवाल है कि देश में दलितों के अत्याचार की घटनाएं का तक होती रहेंगी, इसके लिए केंद्र सरकार को कानून और व्यवस्था को सख्त करने की जरूरत है.
मिर्चपुर कांड पर हुड्डा दामन बचाने में कामयाबहरियाणा के मिर्चपुर कांड में राज्य के मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा अपनी सरकार और कांग्रेस की प्रतिष्ठा को कायम रखने में सफल होते नजर आ रहे हैं। इसका कारण है कि मिर्चपुर कांड के पीड़ित दलित परिवार मंगलवार को सरकार के आश्वासन पर नई दिल्ली से वापस मिर्चपुर रवाना हो गये हैं, वहीं जिस हुड्डा सरकार और कांग्रेस पार्टी के विरोध में ये परिवार नई दिल्ली में डेरा ड़ाले हुए थे वहीं वापस मिर्चपुर जाने से पहले कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी, महासचिव राहुल गांधी और मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा के कसीदे पढ़ते नजर आए।हरियाणा के हिसार जिले में मिर्चपुर में गत 24 अप्रैल को मामूली विवाद पर दांगों द्वारा दलितों के घरों को आग लगाए जाने से पिता-पुत्री की मौत के कारण घटना ने इतना तूल पकड़ा कि प्रशासन और पुलिस महकमा भी दबंगों के सामने बेबस नजर आने लगा था। ऐसे में पीड़ित परिवारों का पलायन होना कोई नई बात नहीं थी, जो भय के कारण नई दिल्ली स्थित मंदिर मार्ग पर आकर डेरा डाल चुके थे। मिर्चपुर कांड में जहां हरियाणा उच्च न्यायालय ने हरियाणा सरकार को नोटिस जारी किया था तो वहीं सुप्रीम कोर्ट ने भी फटकार लगाई थी। अदालत के आदेश पर जा पिछले सप्ताह हिसार के डीसी दलित परिवारों को मनाने के लिए मंदिर मार्ग आए तो उन्हें दलितों ने धकिया ही नहीं, बल्कि उनके साथ हाथापाई तक की नौबत सामने आई। इस मामले पर कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी ने मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा को बुलाकर उन्हें दलितों को सुरक्षा और उनके नष्ट हुए मकानो के बदले पुनर्वास की उसी गांव में व्यवस्था करने की हिदायत दी थी। हरियाणा सरकार ने गांव में दलितों के घर बनाने का काम भी शुरू कर दिया और गांव में अमन-चैन भाई चारे के लिए भी माहौल बनाने की कवायद की गई। इससे पहले घटना के बाद कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी और केंद्रीय शहरी आवास एवं गरीबी उपशमन मंत्री कुमारी सैलजा भी मिर्चपुर पहुंची थी। जाकि राज्य सरकार को कोई प्रतिनिधि उस दौरान घटना का जाएजा लेने तक नहीं पहुंच सका था तो मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा और उनकी सरकार पर स्वयं कांग्रेस पार्टी के जिम्मेदार लोग भी उंगली उठाते नजर आए। इन साके बावजूद मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ने मिर्चपुर कांड के मामले में जिस प्रकार की कार्रवाई शुरू की उससे विरोधियों की राजनीतिक अरमान भी आंसुओं में बहते नजर आए। शायद यही कारण था कि आठ जून को पीड़ितों ने मिर्चपुर गांव वापस लौटने से पहले यहां पत्रकारों से वार्ता की और मृतक ताराचंद की पत्नी कमला और पुत्र रविन्द्र ने कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी, महासचिव राहुल गांधी तथा मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा की तारीफों में कसीदे पढ़े और कहा कि इनके कारण ही उन्हें फिर से गांव में भाईचारे के लिए वापस जाने का मौका मिल रहा है, जहां वायदे के अनुसार सरकार ने मकान बनाने का काम भी शुरू कर दिया है। उन्होंने एक केंद्रीय मंत्री पर दलितों को गुमराह करने का भी आरोप लगाया, जिन्होंने गांव से दिल्ली में डेरा डालने के लिए उकसाया था और फिर उनकी सुध भी नहीं ली। बहरहाल मिर्चपुर की घटना पर मुख्यमंत्री अपना और राज्य सरकार का दामन बचाने में सफल होते नजर आए हैं।
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