भारत-अमेरिका के बिच सामरिक वार्ता दोनों देशों के राजनीतिक और कूटनीतिक संबंधों को मजबूत करेगी ऐसी उम्मीदें की जा रही हैं, लेकिन वहीं कई मुद्दों पर अमेरिका द्वारा भारत की हो रही अनदेखी को भी एक चिंता का विषय माना जाना चाहिए क्योंकि भारत दुनिया का ऐसा दूसरा देश है जिसकी अर्थव्यवस्था में लगातार प्रगति हो रही है। विशेषज्ञ मानते हैं कि अमेरिका को भी चाहिए कि वह यदि भारत से प्रगाढ़ रिश्ते कायम करना चाहता है तो उसे भारत के हितों खासकर सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता का भी खुलकर समर्थन करने की जरूरत है, हालांकि वह अमेरिका का राजनीतिक पहलू हो सकता है। वहीं भारत को सामरिक विचारधारा के रूप में बहुमुखी दृष्टिकोण अपनाते हुए अमेरिका पर विश्वास करके आगे बढ़ने की जरूरत है। भारत और अमेरिका के बीच पहली बार हो रही सामरिक वार्ता के नतीजे सकारात्मक रूप से सामने आएंगे, तो अन्य देशों का का भी भारत के प्रति दृष्टिकोण निश्चित रूप से बदल सकता है।
वाशिंगटन में विदेशमंत्री एस.एम. कृष्णा के नेतृत्व में भारतीय शिष्टमंडल की अमेरिकी प्रशासन से होने वाली विभिन्न बैठकों और वार्ताओं में यह तो तय माना जा रहा है कि जहां अमेरिका के समक्ष भारत कई मुद्दे रखेगा तो अमेरिका भी भारत पर कई प्रकार के दबाव बनाने में पीछे नहीं रहेगा, लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि अन्य देशों के दृष्टिकोण को बदलने के लिए भारत और अमेरिका के बीच हो रही सामरिक वार्ता निश्चित रूप से सहायक सिद्ध होगी। हालांकि ओबामा प्रशासन का भारत के साथ सांन्धों को आगे बढ़ने की रणनीति उसी सिलसिले का एक हिस्सा है जो जार्ज डल्यू बुश और बिल क्लिंटन के शासनकाल में शुरू की गई थी। भारतीयों एवं भारत के उच्च नेतृत्व का दृष्टिकोण लगातार यही रहा है कि अमेरिका केवल अपने हितों की बातें करने में माहिर है उसकी झलक पहले की तरह ओबामा प्रशासन और उसके अधिकारियों के पिछले दिनों कई मुद्दों के रूप में सामने देखी गई है। विदेश मामलों के विशेषज्ञ प्रशान्त दीक्षित का मानना है कि सामरिक वार्ता भारत और अमेरिका के बीच रिश्ते मजबूत करने में एक मील का पत्थर साबित होगी, लेकिन भारत के शीर्ष नेतृत्व को बहुमुखी दृष्टिकोण से यह समझने की जरूरत है कि वह दुनिया का एक बड़ा हिस्सा है जो दुनिया में ऐसा देश बन चुका है जिसने तेजी के साथ आर्थिक प्रगति की है। यही कारण है कि अमेरिका जैसा विकसित देश भारत की ओर देख रहा है। भारत को इस चिंता का निदान करने के लिए सामरिक विचारधारा और समग्र सोच के साथ अमेरिका पर •भरोसा भी करके चलना जरूरी है। जहां तक सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता का सवाल है उसके बारे में प्रशांत दीक्षित कहते हैँ कि वह अमेरिका की राजनीति व्यवस्था का एक हिस्सा हो सकता है, लेकिन इस मुद्दे पर घोर विरोध करने वाला चीन भी अब भारत को सुरक्षा परिषद में स्थायी रूप से देखना चाहता है। उनका कहना है कि जा सूरज की पहली किरण निकलती है तो उसे उम्मीद की किरण मानकर विश्वास करने की भी आवश्यकता है। अमेरिकी विश्वविद्यालयों में प्रध्यापक रह चुके डा. निरंजन कुमार का मानना है कि भारत व अमेरिका जा सामरिक वार्ता यानि स्ट्रेटेजिक डायलॉग करके रिश्ते को प्रगाढ़ बनाने का संदेश दे रहे हैं, लेकिन अमेरिका ने कभी भारत की प्रगति को अपनाने का प्रयास नहीं किया। उनका कहना है कि पिछले दिनों वैश्विक खाद्यान्न संकट व पेट्रोल की बढ़ी कीमतों जैसे मुद्दों पर अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा और उनके अधिकारियों के बयानों में भारत और चीन जैसे विकासशील देशों को ही जिम्मेदार माना है। डा. निरंजन कुमार का कहना है कि अमेरिका ने भारत के हितों को हमेशा अनदेखा करने का प्रयास किया है। ऐसे में अमेरिका और भारत के रिश्ते बढ़ाने की यह कवायद किस नतीजे पर पहुंचेगी यह आने वाला समय ही बताएगा। डा. निरंजन कुमार तो यह भी मानते हैं कि भले ही यह सामरिक वार्ता दोनों देशों के बीच रिश्तों को प्रगाढ़ करने के सिलसिले का हिस्सा माना जा रहा हो, लेकिन जिस प्रकार अमेरिकी अधिकारियों के बयान आ रहे हैं उनसे यह कहा जा सकता है कि बुश और क्लिंटन के समय भारत और अमेरिका के बीच जो रिश्ते मजाबूत हुए थे उनमें ओबामा प्रशासन के दौरान गिरावट आई है। विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि जिस प्रकार से अमेरिकी अधिकारियों के ताजा बयान आ रहे हैं उन पर भी भारतियों को भरोसा करना चाहिए, भले ही अमेरिका एक तीर से कई निशाने साधने की रणनीति क्यों न अपनाता रहे, लेकिन भारत को सतर्क रहते हुए अपने हितों पर कुठाराघात न हो ऐसी रणनीति और कूटनीतिक नजरिया अपनाने का प्रयास जारी रखना चाहिए।
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