शनिवार, 10 जुलाई 2010

भारत-पाक़ वार्ता के बीच कसीदगी का प्रयास!


ओ.पी. पाल      
कश्मीर घाटी में अलगाववादी संगठनों का प्रदर्शन शायद भारत-पाक के बीच अगले सप्ताह इस्लामाबाद में होने वाली बातचीत के मुद्दे को बदलने के मकसद से की जा रही है। जम्मू-कश्मीर में हिंसा फैलाने के लिए कश्मीरी अलगाववादी संगठनों को सीमापार यानि पाकिस्तान से धन मुहैया होने की आशंका को स्वयं अलगाववादी संगठनों के लोग ही पुष्ट करते जा रहे हैं। केंद्र सरकार ने अलगाववादी नेताओं के बीच हुई बातचीत को ट्रेस करके अलगाववादी संगठनों के इरादे भांप लिये हैं। जाहिर है कि अलगाववादियों की मंशा को लेकर केंद्र सरकार चिंतित है। क्योंकि हालात बिगड़ने पर लम्बे समय से ठंडे बस्ते में रहा कश्मीर का मुद्दा एक बार फिर से दुनिया भर में चर्चित हो सकता है। फिर इसका प्रभाव •भारत-पाक वार्ता पर पड़ सकता है। रणनीतिकार भी मानते हैं कि जब भारत और पाकिस्तान के बीच संबंधों को सुधारने के प्रयास किये जाते हैं तो जम्मू-कश्मीर हिंसक प्रदर्शन करके अलगाववादी संगठन कानून व्यवस्था को चौपट करने पर तुल जाते हैँ, जिन्हें सीमापार से पूरा समर्थन मिलता रहा है।केंद्र सरकार के सामने आंतरिक सुरक्षा को लेकर इस समय सासे ज्वलंत समस्या जम्मू-कश्मीर में अलगाववादियों के हिंसक प्रदर्शन है जिसके कारण जम्मू-कश्मीर के आम नागरिकों को कर्फ्यू के कारण घरों में कैद रहने को मजबूर होना पड़ रहा है। जाकि हुरिर्यत कांफ्रेंस जैसे अलगावादी संगठनों का मकसद है कि कश्मीर घाटी में प्रदर्शन के दौरान हिंसा में जितने ज्यादा से ज्यादा लोग मारे जाएंगे उतना ही अधिक उन्हें फायदा होगा। यह बात गृहमंत्रालय द्वारा ट्रेस की गई अलगावादी संगठनों के दो नेताओं के बीच टेलीफोन पर हुई बात से पुष्ट हुई है। मामले को गंभीर बनाने के लिए इस बातचीत में एक प्रमुख अलगाववादी संगठन हुर्रियत नेता सैयद अली शाह गिलानी के दो सदस्यों के बीच हुई बातचीत के ट्रांसक्रिप्ट गृह मंत्रालय के पास हैं। इस ट्रांसक्रिप्ट के मुताबिक एक नेता गुलाम अहमद डार अपने दूसरे साथी शब्बीर अहमद वानी बात कर रहा है जिसमें हिंसक प्रदर्शन करके मौत का खेल खेलने का भी जिक्र है ताकि हालात जितने खराब होंगे उतनी ही तेजी से कश्मीर का मुद्दा दुनिया के सामने आएगा और इसी माह भारत-पाक के बीच होने वाली बातचीत में कश्मीर मुद्दा प्रमुख रूप से एजेंडे पर आ सके। इस बातचीत को ट्रेस करने के दौरान हालात खराब करने के लिए पैसा लेने की बात के सबूत भी गृह मंत्रालय के पास हैं। इससे जाहिर है कि पाकिस्तान के लश्कर-ए-तैयबा जैसे आतंकी संगठन कश्मीर के अलगाववादी संगठनों को पहले की तरह पैसे के बल पर अपना हथियार बना रहे हैं जिन्हें भारतऔर पाकिस्तान के संबंधों में सुधार कतई बर्दाश्त नहीं है। विशेषज्ञ कुलदीप नैयर की माने तो इस्लामाबाद में भारत-पाकिस्तान के बीच जितनी सकारात्मक वार्ता हुई, उसके परिप्रेक्ष्य में कश्मीर की त्रासद घटनाएं संयोग मात्र ही नहीं माना जाना चाहिए। यह भी सवाल है कि कश्मीर में उसी समय उबाल क्यों आता है जब भारत और पाकिस्तान के बीच संबंधों में सुधार होता प्रतीत होता है? यह भी तथ्य सामाने आएं हैँ कि कश्मीर में उग्रवादी तभी प्रहार करते हैं, जा भारत और पाकिस्तान के बीच किसी सीमा तक समीकरण बनने के बाद सद्भभावना का वातावरण बनने लगता है। भारत-समर्थक तत्व अप्रासंगिक हो गए हैं। परंपरागत हो चुके इन सभी पहलुओं के बावजूद केंद्र तथा राज्य की सरकार कश्मीर घाटी की हिंसा को रोकने के लिए कोई अग्रिम रणनीति बनाने में कामयाब नहीं रही है। भारत-पाक मामलों के जानकार कमर आगा की माने तो यह जगजाहिर है कि भारत और पाक के बीच बातचीत का दौर से पहले कश्मीर सुलगने लगता है, लेकिन इस बार के हालात कुछ अलग ही दिखाई दे रहे हैं, जब अलगाववादी संगठनों के समर्थन में जम्मू-कश्मीर की आम जनता नहीं है, जो कश्मीर में ही रहना चाहती है और हुर्रियत जैसे संगठनों की मंशा साफतौर से जान चुकी है। आगा मानते हैं कि भारत और पाकिस्तान के विदेश मंत्रियों के बीच 15 जुलाई को होने वाली बातचीत में प्र्रमुख मुद्दा आतंकवाद होगा यह अलगाववादी संगठन और पाक में बैठे उनके समर्थक आतंकवादी संगठन भी जानते हैं। इसलिए लश्कर जैसे संगठन ने इस बातचीत का रूख मोड़ने की नीयत से कश्मीर में अलगाववाद की आग को तेज करने का प्रयास किया है ताकि इस बातचीत में कश्मीर मुद्दे पर सबसे पहले बातचीत हो सके। भारत-पाक के बीच होने वाली वार्ता के मद्देनजर केंद्र सरकार भी कश्मीर घाटी में भड़की हिंसा के प्रति गभीर है जिसके लिए जहां सरकार ने सुरक्षा सांन्धी केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में जरूरत पड़ने पर कश्मीर घाटी में सेना का प्रयोग करने तक का फैसला कर लिया। वहीं केंद्र सरकार का नेतृत्व कर रही कांग्रेस पार्टी की सुप्रीमो श्रीमती सोनिया गांधी ने भी जम्मू-कश्मीर में बिगड़ते हालात को लेकर कल शाम कांग्रेस कोर कमेटी की बैठक बूलाकर चिंता के साथ गंभीर चर्चा की। ऐसे में सवाल उठता है कि भारत-पाक वार्ता से पहले केंद्र व राज्य सरकार जम्मू-कश्मीर को क्या शांत करने में सफल होंगे?

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