शुक्रवार, 2 जुलाई 2010

माधव के इस्तीफे से भी नहीं टला नेपाली संकट!


ओ.पी. पाल
आखिर नेपाल के प्रधानमंत्री माधव कुमार को विपक्षी माओवादियों के दबाव के सामने अपने हथियार डालने ही पड़ गये और उन्होंने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है, लेकिन नेपाल में उनके इस्तीफे के बावजूद राजनीतिक संकट टलता नजर नहीं आता। विदेश मामलों के विशेषज्ञों का मानना है कि नेपाल में राजनीतिक स्थिरता बनाने के लिए भारत को सहारा देना पड़ेगा जो पहले से ही भारत के दिशा ज्ञान पर निर्भर है। यह भी माना जा रहा है कि माधव कुमार ने राष्ट्र को संबोधन में जिस प्रकार राष्ट्रीय सरकार बनाने की संभावनाओं पर आम सहमति की बात कही है शायद ही वह नेपाल में माओवादियों के गले उतर सके।नेपाल में पिछले कई माह से सत्ता का सुख भोग चुके माओवादियों द्वारा प्रधानमंत्री माधव कुमार के इस्तीफे की मांग करके देश में एक नई राष्ट्रीय सरकार के गठन की मांग पर अड़िग थे। संवैधानिक संकट का मुख्य कारण यह भी था कि नेपाली संसद या संविधान सभा का गठन 2008 में हुआ था और दो वर्षो के कार्यकाल में उसे शांति प्रक्रिया पूरी करने और नए संविधान का प्रारूप बनाने का जिम्मा दिया गया था, लेकिन वहां की सरकार संविधान सभा अपना कार्य तय समय में पूरा करने में विफल रही। माओवादियों और उनके राजनीतिक विरोधियों के बीच गंभीर असहमतियों के कारण संविधान सभा का काम बाधित होता रहा। गत 28 मई को संविधान सभा का कार्यकाल समाप्त हो जाता और देश विधायिका के बिना होता था, लेकिन नेपाल के सांसदों ने आम सहमति से संविधान सभा का कार्यकाल एक और वर्ष के लिए आगे बढ़ा दिया। रणनीतिकार मानते हैं कि माधव कुमार के पास संसद में 22 दलों के समर्थन के साथ बहुमत था, लेकिन जिस प्रकार से माओवादियों के प्रदर्शन और आंदोलन से देश की कानून व्यवस्था और आम जनजीवन अस्त-व्यस्त होने लगा था शायद उसी स्थिति ने माधव कुमार को इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया है? माधव कुमार ने इस्तीफा देने से पहले राष्ट्र के नाम संदेश में इस बात की भी मंशा जाहिर की है कि देश में आम सहमति के लिए और मौजूदा राजनीति गतिरोध को समाप्त किया जाना जरूरी है। हालांकि उन्होंने माओवादियों से राष्ट्र की संपत्ति को लौटाने और अर्द्धसैनिक संगठन यंग कम्युनिस्ट लीग को माँग करके पूर्व लड़ाकों पर अंकुश लगाने की मांग करके राष्ट्रहित में योगदान देने पर जोर दिया है। यह भी गौरतलब है कि पिछले कई माह से माओवादी संगठन माधव कुमार से इस्तीफे की मांग कर रहे थे, जिन्होंने उनके सामने न झुकने का निर्णय लेकर पिछले महीने ही इस्तीफा देने से इनकार भी कर दिया था, लेकिन माओवादियों की संसद का बहिष्कार, सड़कों पर आंदोलन और प्रदर्शन से देश में जो स्थिति पैदा हुई उसका दबाव माधव कुमार पर कहीं अधिक पड़ा जिसके कारण उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। विदेश मामलों के विशेषज्ञ प्रशान्त दीक्षित का मानना है कि नेपाल में अलग तरह की राजनीति समस्या है, जहां अलग-अलग विचारधाराएं काम करती हैं। माओवादियों की सोच वहां की जनता के विपरीत है, लेकिन पिछले दिनों प्रचंड ने सरकार बनाई फिर भी भारत ने उनकी सरकार को सहयोग दिया, लेकिन नेपाल की समस्या अनसुलझी ही रही। दीक्षित कहते हैं कि ऐसा लगता है कि भारतीय सरकार को नेपाल को सहारा देने की जरूरत है जो भारत के दिशा ज्ञान पर पहले से ही निर्भर रहा है। नेपाल में राजनीति के बनते आ रहे नये-नये समीकरणों के कारण वहां की राजनीति समस्या बेहद पेचीदी होती जा रही है। प्रशान्त दीक्षित कहते हैँ कि माधव कुमार के इस्तीफे के बाद भी नेपाल का राजनीतिक संकट टलने वाला नहीं है। इसका कारण है कि माओवादियों की सोच है कि उनके हाथों से अधिकार छीनते जा रहे हैं, लेकिन जिस प्रकार से माधव कुमार ने अपने राष्ट्र के नाम संदेश में कहा है उससे जाहिर है कि माधव कुमार राष्ट्र की शांति के साथ ही राजनीतिक संकट का समाधान भी चाहते हैं। विशेषज्ञ मानते हैँ कि भारत-नेपाल की पुरानी कड़ी जुड़ी होने के कारण भारत सरकार को इस समय नेपाल को कहीं अधिक सहयोग की जरूरत है। विदेश मामलों के ही विशेषज्ञ कमर आगा का मानना है कि राजनीतिक संकट को दूर करके शांति प्रक्रिया के बाद ही संविधान का निर्माण संभव है। आगा का कहना है कि माओवादियों की मंशा है कि वह अपने नेतृत्व में नई सरकार के गठन को गति दें, इसी लिए वे माधव कुमार के इस्तीफे के लिए दबाव बनाने हेतु उग्र आंदोलन पर अड़िग रहे। चूंकि नेपाल की संसद और संविधान सभा का गठन 2008 में हुआ था, जिसमें सत्ता में आई माओवादी सरकार पर शांति प्रक्रिया पूरी करने और संविधान का प्रारूप बनाने का जिम्मा था, लेकिन प्रचंड उससे पहले ही हथियार डाल चुके थे, लेकिन माओवादी राष्ट्रीय सरकार अपने नेतृत्व में गठित करने के इरादे से माधव कुमार के खिलाफ असहयोग की नीति अपनाते रहे। आगा मानते हैं कि नेपाल के राजनीतिक संकट के समाधान में भारत की महत्वपूर्ण भूमिका अपेक्षित है।

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