भारत में मुंबई हमलों के बाद शुरू हुई भारत और पाकिस्तान के बीच शुरू हुई बातचीत भला ऐसे कैसे समग्र वार्ता को बहाली के रास्ते पर ला सकेगी, जब पाकिस्तान लश्कर-ए-तैयबा के आतंकी हाफिज सईद के भारत के खिलाफ जहरीले बयानों की तुलना भारत के सचिव जीके पिल्लई के बयानो से करने पर आमदा हो। अभी दोनों देशों के बीच मंत्री स्तरीय वार्ता को खत्म हुए पूरे 24 घंटे भी नहीं हैं कि पाकिस्तान की और से तल्खी भरे बयानों से भारत को घेरने का प्रयास शुरू हो गया है। विशेषज्ञ मानते हैं कि दोनों देशों के बीच संबन्धों में सुधार में सबसे बड़ी बाधा पाकिस्तान से संचालित आतंकवाद है जिसके खात्मे के बिना दोनों देशों के बीच स्थगति समग्र वार्ता पटरी पर आना असंभव है।भारत-पाक के बीच विश्वास बहाली के उद्देश्य को लेकर भारत के विदेश मंत्री एसएम कृष्णा के नेतृत्व में पाकिस्तान से शुक्रवार को आज ही वापस लौटा तो उसके पीछे से पाकिस्तान के तीखे प्रहार शुरू हो गये जो पाकिस्तान की पुरानी नीयत है। पाकिस्तान से स्वदेश लौटते ही विदेश मंत्री एसएम कृष्णा ने पाक यात्रा के दौरान बातचीत का जिक्र करते हुए कहा कि जब तक आतंकवाद की समस्या का हल नहीं होता तब तक भारत की सभी कोशिशें बेकार हैं। कृष्णा का कहना है कि हमारी तरह पाकिस्तान भी यह तो मानता है कि दोनों देशों के बीच सामान्य संबन्धों में सबसे बड़ी रूकावट आतंकवाद है, लेकिन सवाल उठाया कि उन्हें नहीं लगता कि आश्वासन देकर भी पाकिस्तान आतंकवाद खासकर मुंबई हमले के आरोपी आतंकवादियों के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई कर पाएगा। विदेश मंत्री एस एम कृष्णा ने गृह सचिव जीके पिल्लई की तुलना जेयूडी के प्रमुख हाफिज सईद से करने के लिए पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी को आडे़ हाथों लेते हुए कहा कि दोनों के बीच कोई समानता नहीं है। भारत चाहता है कि दोनों देशों के बीच अविश्वास की खाई को खत्म किया जाए। कृष्णा ने यह भी स्पष्ट किया है कि जब तक आतंकवाद के मामले पर पाकिस्तान मुकल्लम कार्रवाई अमल में नहीं लाता तब तक दोनों देशों के बीच समग्र वार्ता शुरू करना असंभव है। मसलन कि मुंबई हमलों की जांच के मुद्दे पर भारत ने पाकिस्तान से स्पष्ट कहा कि जब तक आतंकवाद का मसला हल नहीं होता, तब तक कोई भी कवायद कारगर नहीं हो सकेगी। अब सवाल है कि पाकिस्तान को यदि समग्र वार्ता के लिए आगे बढ़ना है तो उसे आतंकवाद को खत्म करने के लिए ठोस कार्रवाई के प्रमाण देने होंगे। हालांकि भारत की तरह पाकिस्तान भी मान रहा है कि दोनों देशों के बीच हुई इस बातचीत में कोई बड़ा फैसला नहीं हो सका, लेकिन इस प्रकार बातचीत का दौर जारी रखने की सहमति अवश्य बनाई गई। विड़म्बना यह है कि जब विदेश मंत्री एसएम कृष्णा भारतीय प्रतिनिधिमंडल के साथ स्वदेश लौटे तो उसी दौरान पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी का भी तल्खी भरा बयान आया और भारत को आरोपित करने की नीयत को जगजाहिर किया। कुरैशी का तर्क रहा कि इस बातचीत के लिए भारत जहनी तौर पर तैयार नहीं था और न ही उसके पास कोई रोड मैप था। पाकिस्तान तो बातचीत को आगे बढ़ाने के लिए अपनी और से आतंकवाद को कोई अड़चन मानने को तैयार नहीं है और यहां तक कि तमाम खुलासे होने के बाद भी पाकिस्तान नहीं मानता कि पाक खुफिया एजेंसी आईएसआई का लश्करे जैसे आतंकी संगठनों के साथ कोई गठजोड़ है। विदेश मामलों के एक विशेषज्ञ का कहना है कि इस्लामाबाद में दोनों देशों के विदेश मंत्रियों के बीच हुई बातचीत के बारे में पहले से ही कहा जा रहा था कि इससे कोई उम्मीद नहीं रखनी चाहिए। पाकिस्तान की नीयत है कि वह अपने महत्वपूर्ण मुद्दों को हल कराने के लिए भारत से बातचीत करे, लेकिन वह दोनों देशों के बीच बढ़ती तल्खी की जड़ में नहीं जाना चाहता। मुंबई आतंकी हमले के बाद आतंकवाद के खात्मे के लिए पाकिस्तान के प्रति भारत के रूख में जो सख्ती है उसे बरकरार रखना चाहिए। यह कटु सत्य भी है कि दोनों देशों के बीच बढ़ते आतंकवाद की गतिविधियां हैं जिनके खिलाफ पाकिस्तान को विश्व समुदाय की भावनाओं को देखते हुए सख्त कार्रवाई करने की जरूरत है। यदि वास्तव में पाकिस्तान समग्र वार्ता को फिर से शुरू कराना चाहता है तो उसे आतंकवाद पर शिकंजा कसने की योजना बनानी चाहिए। विशेषज्ञों की माने तो जहां तक दोनों देशों के बीच अन्य मुद्दे हैं उन्हें दोनों देशों के बीच विश्वास प्रगाढ़ होने पर आसानी से हल किया जा सकता है, लेकिन इसके लिए आतंकवाद का मुद्दा पाकिस्तान को भी अत्यंत महत्वपूर्ण समझकर चलना होगा। पाकिस्तान के एक विश्लेषक प्रो. शमीम अख्तर की माने तो दोनों देशों के बीच बातचीत सफल हों या न हों, यह बात बड़ी नहीं है। इससे महत्वपूर्ण बात यह है कि वार्ताएं जारी रहनी चाहिए। जहाँ तक समस्या का संबंध है तो ये समस्याएं जीवन का हिस्सा होती हैं। आज कश्मीर समस्या है तो कल कोई और होगी। उनका कहना है कि बातचीत होती रही तो तो कोई न कोई रास्ता निकल ही आएगी।
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