देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरे का नासूर बनती जा रही नक्सलवाद की समस्या से निपटने के लिए प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने एक बार फिर से विकास कार्यक्रमों के कार्यान्वयन के मामले में राज्य सरकारों से सहयोग की अपेक्षा की है। प्रधानमंत्री के इस आग्रह का तात्पर्य सीधा है कि यदि राज्य सरकार केंद्र की योजनाओं में सहयोग करें तो नक्सलवाद की समस्या से निपटा जा सकता है। इससे पहले नक्सलवाद प्रभावित राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बैठक में भी केंद्र सरकार राज्यों को दलील दे चुकी है। सवाल है कि केंद्र सरकार योजनाएं तो बना रही है, लेकिन नक्सलवाद की जड़ों को खत्म करने के लिए सरकार की कोई भी योजना कारगर साबित नहीं हो पा रही है, बल्कि देखा गया है कि जब भी नक्सलवाद के खिलाफ सरकार कदम बढ़ाने का ऐलान करती है तो नक्सलवाद का फन किसी घटना के रूप में बढ़ता नजर आता है और केंद्र सरकार हमेशा योजना की विफलता का ठींकरा राज्यों पर फोड़ती नजर आई है।राष्ट्रीय विकास परिषद की बैठक में भी हमेशा की तरह केंद्र सरकार ने राज्यों के मुख्यमंत्रियों को सहयोग की अपेक्षा के बहाने दलील देने का प्रयास किया है कि नक्सलवाद जैसी विकट समस्या के समाधान में राज्य सरकारों का वह सहयोग नहीं मिल पा रहा है जिसकी जरूरत है। प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने एनडीसी की बैठक में योजना आयोग से नक्सलवाद प्रभावित राज्यों के लिए समग्र विकास कार्यक्रम बनाने का हवाला देते हुए फिर दोहराया है कि राज्यों की सरकारों के पूर्ण सहयोग के बिना नक्सलवाद की समस्या से निपटना संभव नहीं है। प्रधानमंत्री के कहने का संकेत है कि नक्सल प्रभावित इलाकों में विकास की योजनाओं को राज्य सरकार कार्यान्वित कराने में प्राथमिकता से काम करें, तो गरीब और कमजोर तबके के लोग खासकर युवा वर्ग नक्सलवाद का रूख न करें ओर उनके इलाकों में विकास कार्य हो तथा युवाओं को रोजगार संबन्धी योजनाओं का लाभ मिले, तो नक्सलवाद की चुनौतियों से कहीं हद तक निपटने में सफलता मिल सकती है। केंद्र सरकार हमेशा यह तो दोहराती है कि वामपंथी नक्सलवाद देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा है, जिससे निपटने में सरकार सक्षम है, लेकिन केंद्र सरकार की नक्सलवाद की समस्या से निपटने के लिए बनाई गई अभी तक की कोई योजना सफल नहीं हो पाई, बल्कि नक्सलवादियों ने सरकार को उसका जवाब उसी दौरान हिंसक वारदात करके दिया है। दस दिन पहले ही राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में नक्सलवाद से प्रभावित राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बैठक में भी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने नक्सलवाद की समस्या से निपटने के लिए केंद्र सरकार की बनाई जा रही योजनाओं का खाका दिया था। इसमें केंद्र सरकार ने नक्सल रोधी एकीकृत कमान की योजना शुरू करने का आवश्वासन दिया था। हालांकि केंद्र सरकार ने खासकर नक्सलवाद से प्रभावित चार राज्यों छत्तीसगढ़, झारखंड, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल की राजधानियों में शीघ्र ही नक्सल रोधी एकीकृत कमान तैनात करने की प्रक्रिया को तेजी के साथ शुरू करने की भी बात कही है, लेकिन प्रधानमंत्री ने आज राष्ट्रिया विकास परिषद की बैठक में नक्सलवाद प्रभावित राज्यों में इस समस्या से निपटने के लिए दो मोर्चो की बात कही है, जिसमें वन अधिकार कानून का कार्यान्वयन और पंचायती राज संस्थाओं को मजबूत करने के अलावा इन इलाकों में विकास कार्यक्रमों के लिए अतिरिक्त संसाधन मुहैया करवाना शामिल है। नक्सलवाद पर विशेषज्ञ पहले भी सरकार की दोहरी नीति को नक्सलवाद की समस्या से निपटने के फार्मूले को कारगर नहीं मानते। क्योंकि नक्सलवादियों के खिलाफ सुरक्षा बलों की कार्रवाई और विकास कार्यक्रमों का कार्यान्वयन पर सरकार पहले भी विफल रही है। ऐसे में सवाल यही उठता है कि केंद्र सरकार क्या इन योजनाओं के जरिए नक्सलवाद की चुनौतियों का सामना करने में सफल हो जाएगी? जहां तक नक्सलवाद के खिलाफ एकीकृत कमान की तैनाती का सवाल है उसके लिए सरकार जम्मू-कश्मीर और असम की तर्ज पर अभियान चलाने की योजना बना रही है। इस एकीकृत कमानों की कमान संबन्धित राज्यों के मुख्य सचिवों को सौँपी गई है, जिसमें राज्य के पुलिस महानिदेशक, राज्य के विकास आयुक्त, राज्य पुलिस और सीआरपीएफ के नक्सल विरोधी अभियानों के महानिरीक्षक, गुप्तचर ब्यूरो का एक अधिकारी, राज्य खुफिया विभाग का एक अधिकारी और सेना से अवकाश प्राप्त जनरल रैंक का एक अधिकारी शामिल किये जा रहे हैं। गृहमंत्री पी. चिदंबरम का तो यहां तक कहना है कि नक्सल प्रभावित राज्यों में सीआरपीएफ, बीएसएफ, पुलिस और आईटीबीपी द्वारा नक्सलवाद के खिलाफ चलाए जाने वाले अभियानों की जिम्मेदारी और शक्तियां एकीकृत कमान के पास ही होंगी। केंद्र सरकार की इन योजनाओं से यही कहा जा सकता है कि नक्सलवाद के खिलाफ सुरक्षा बलों के अभियान और विकास कार्यक्रम की दोहरी नीति सरकार नक्सलवाद की समस्या का समाधान तलाश रही है।
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