ओ.पी. पाल
संसद के सोमवार से आरंभ हो रहे मानसून सत्र में सरकार के भारी भरकम एजेंडे में 59 विधेयकों को शामिल किया गया है, जिसमें बहुचर्चित खाद्य सुरक्षा विधेयक व बहुविवादित भूमि अधिग्रहण के साथ सांप्रदायिक हिंसा निवारण जैसे विधेयक एक बार फिर से सरकार ने मानसून सत्र के एजेंडे में शामिल नहीं किया है। यह भी तय माना जा रहा है कि सरकार के एजेंडे में शामिल महिला आरक्षण बिल और नागरिक परमाणु दायित्व जैसे कुछ विवादस्पद विधेयकों को विपक्षी दलों के विरोध के सामने संसद में पारित कराना सरकार के लिए आसान नहीं है। हालांकि मानसून सत्र के दौरान विपक्ष के पास केंद्र सरकार को चौतरफा घेरने के लिए मुद्दों की कमी नहीं है।संसद के मानसून सत्र में सरकार द्वारा एजेंडे में शामिल किये गये विधेयकों में महिला आरक्षण बिल और नागरिक परमाणु दायित्व ऐसे विवादस्पद विधेयकों में शामिल है जिसका लोकसभा में विपक्षी दल लगातार विरोध करते आ रहे हैं। ऐसे में सरकार के लिए इन बिलों को पारित करना एक टेढ़ी खीर से कम नहीं है। इनमें से महिलाओं को लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं में 33 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान करने वाला विधेयक को गत नौ मार्च को राज्यसभा में किन हालातों में पारित किया गया था, यह पूरा देश जानता है। जिसका खासकर समाजवादी पार्टी (सपा) और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने कड़ा विरोध किया था। उसी तरह अब सपा और राजद लोकसभा में भी महिला आरक्षण विधेयक का विरोध करने के लिए पूरी तैयारी में हैं। यही नहीं यूपीए की घटक दल तृणमूल कांग्रेस भी महिला आरक्षण विधेयक के मौजूदा स्वरूप के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद किये हुए है, जबकि भाजपा महिला आरक्षण बिल के पक्ष में वोट करेगी, लेकिन नागरिक परमाणु दायित्व विधेयक का विरोध करने में पहले से ही भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का वाम दलों की तर्ज पर पूरी ताकत से विरोध करने का ऐलान हो चुका है। विवादास्पद परमाणु नागरिक दायित्व विधेयक, 2010 को बजट सत्र के दौरान लोकसभा में पेश किया गया था, जिसे भाजपा और वाम दलों के विरोध की आशंका के कारण संसद की स्थाई समिति ने बाद में विधेयक को वापस ले लिया। इस बिल पर विरोध करने के लिए विपक्ष का तर्क है कि भोपाल गैस त्रासदी के 25 वर्ष बाद काफी कम हर्जाने के फैसले को देखते हुए विधेयक को नहीं पेश किया जाना चाहिए। हालांकि सरकार को संसद में चौतरफा घेरने के लिए विपक्ष के पास महंगाई, आतंकवाद, नक्सलवाद, विदेश नीति, किसानों की समस्या और सरकार की नीतियों के अलावा कई ऐसे मुद्दे हैं जिनका तोड़ तलाशने के लिए यूपीए सरकार असमंजस की स्थिति में है। केंद्र सरकार ने राजनीतिक मजबूरी को देखते हुए विवादित महिला आरक्षण और सांसदों के वेतनभत्तो को बढ़ाने के लिए विधेयक को तो एजेंडे में शामिल किया है, लेकिन बहुचर्चित खाद्य सुरक्षा विधेयक, बहुविवादित भूमि अधिग्रहण और सांप्रदायिक हिंसा निवारण जैसे विधेयक को एजेंडे से बाहर ही रखा है। पिछले बजट सत्र में भी सरकारी एजेंडे में शामिल होने के बावजूद भूमि अधिग्रहण संशोधन विधेयक और पुनर्वास विधेयक पर सरकार के अंदर ही मतभेद होने के कारण इस बार उन्हें ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है। इसी सत्र में झारखंड में राष्ट्रपति शासन को मंजूरी देने और वहां की अनुपूरक अनुदान मांगों को भी पारित किया जाना है। झारखंड में पंचायती राज चुनाव के बाबत हुए संशोधनों को भी मानसून सत्र में मंजूरी लेनी होगी और इसी के साथ झारखंड में राष्ट्रपति शासन है और इसकी मंजूरी संसद से ली जानी है।
एजेंडे में शामिल प्रमुख विधेयक
केंद्र सरकार के एजेंडे में मानसून सत्र में पेश किये जाने वाले अन्य महत्वपूर्ण विधेयकों में प्रतिभूति और बीमा कानून (संशोधन और मान्यता) विधेयक, 2010, भारतीय चिकित्सा परिषद (संशोधन) विधेयक, 2010, शत्रु संपत्ति (संशोधन और मान्यता) विधेयक, 2010 संसद सदस्यों के वेतन, भत्तों और पेंशन (संशोधन) विधेयक, 2010, बीज विधेयक, 2004, परमाणु नागरिक दायित्व विधेयक, 2010, भारतीय भूपत्तन प्राधिकरण विधेयक, 2010, विदेशी योगदान (विनियमन) विधेयक, 2006, दण्ड प्रक्रिया संहिता (संशोधन) विधेयक, 2010, उड़ीसा (नाम परिवर्तन) विधेयक, 2010, खान और खनिज (विकास और विनियमन) संशोधन विधेयक, 2008, भारतीय बॉयोटेक्नोलॉजी नियामक प्राधिकरण विधेयक, 2010, अपहरण विरोधी (संशोधन) विधेयक, 2010, उपभोक्ता संरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2010, प्रत्यक्ष कर संहिता विधेयक, 2010, शस्त्र (संशोधन) विधेयक, 2010, केंद्रीय शिक्षण संस्थान (प्रवेश में आरक्षण)(संशोधन) विधेयक, 2010, प्रसार भारती (भारतीय प्रसारण निगम) संशोधन विधेयक, 2010, न्यायिक मानक और जवाबदेही विधेयक, 2010, संविधान (संशोधन) विधेयक, 2010-(उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु तीन वर्ष बढ़ाकर 62 से 65 वर्ष करना), विवाह अधिनियम (संशोधन) विधेयक, 2010, बांध सुरक्षा विधेयक, 2010, राष्ट्रीय विश्वविद्यालय विधेयक, 2010 आदि को लोकसभा में पेश किया जाना है, जबकि लोकसभा में पारित हो चुके प्रताड़ना निवारक विधेयक, 2010, ऊर्जा संरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2010 तथा वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2010 को राज्यसभा में पारित कराने के लिए यूपीए सरकार को विपक्ष से सहयोग लेने की आवश्यकता पड़ेगी, क्योंकि राज्यसभा में यूपीए सरकार बहुमत के आंकड़े से कोसो दूर है।
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