ओ.पी. पाल
भले ही केंद्र सरकार रेल सुरक्षा और संरक्षा के लिए ठोस एवं अत्याधुनिक तकनीक के इस्तेमाल करने का दावा करती रहे, लेकिन जिस प्रकार देश में लगातार रेल हादसे बढ़ते जा रहे हैं उससे नहीं कहा जा सकता कि रेलवे देश में विश्वस्तरीय रेल संचालन के संकल्प में कामयाब हो जाएगा? इन रेल हादसों को देखते हुए यदि यह कहा जाए कि भारत एक रेल हादसों का देश है तो कोई अतिश्योक्ति भी नहीं होगी। वहीं लाख प्रयासों के बावजूद इन भयंकर रेल हाससों से तो उलट रेलवे प्रचालन की सभी आधुनिक प्रणालियों और दुर्घटनाओं को रोकने के लिए रेलवे के सभी इंतजामों पर सवालिया निशान लग जाता है?
यूपीए सरकार में तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी के रेल मंत्री बनने के बाद एक दर्जन से ज्यादा बड़े रेल हादसे हो चुके हैं, जिसके कारण विपक्ष और उनके विरोधियों को उनके कामकाज पर भी उंगली उठाने का मौका मिल रहा है, लेकिन सवाल है कि जिस प्रकार से रेल मंत्री बनने के बाद रेल बजट में भी कुमारी ममता बनर्जी ने रेलवे सुरक्षा और संरक्षा को अपनी पहली प्राथमिकता होने की घोषणा करते हुए रेलपथ नवीकरण, सिग्नलों का आधुनिकीकरण के साथ डिजिटल अल्ट्रासोनिक फ्लो डिटेक्टिंग मशीनो तथा व्हील इम्पैक्ट लोड डिटेक्टर जैसे विभिन्न सरंक्षा उपकरण के प्रयोग करने करने पर जोर दिया था। यही नहीं रेलवे विभाग द्वारा निरंतर टक्कररोधी उपकरण को विकसित करके उसके प्रयोग करने का भी दावा किया जाता रहा है। रेलवे संरक्षा से जुड़े एक अधिकारी का कहना है कि रेलवे ने टक्कररोधी उपकरण का चीन, रूस, दक्षिण अफ्रीका और सिंगापुर से पेटेंट भी करा लिया है, जिसे देशभर के रेलमार्ग पर प्रयोग करने का काम शुरू हो गया है। लेकिन सवाल उठता है कि रेलवे के इतने इंतजामों के बावजूद भारत में रेल दुर्घटनाओं में कमी आने के बजाए बढ़ोती जा रही हैँ। इन हादसों को रेल मंत्री ममता बनर्जी के कार्यकाल का दुर्भाग्य कहें या रेलवे प्रचालन की खामियां, इसका जवाब स्वयं ममता बनर्जी के पास भी नहीं है। हां इतना जरूर होता है कि रेल दुर्घटना होने पर हादसे के शिकार लोगों को मुआवजा देने की घोषणा और दुर्घटना की जांच के आदेश जारी करने में सरकार तनिक भी देर नहीं लगाती। जहां तक जांच का सवाल है उसमें भी शायद ही आज तक कोई नतीजा निकलकर सामने आया हो? रेल सरंक्षा और सुरक्षा तथा रेल हादसों की जांच के नतीजों पर कैग भी रेलवे पर उंगलियां उठा चुका है। इसके बावजूद रेलवे ने संरक्षा और सुरक्षा के मामले में अपनी नीतियों में सुधार करने का प्रयास नहीं किया जिसकी कैग भी सिफारिश कर चुका है। रेलवे बोर्ड के एक पूर्व चेयरमैन का कहना है कि यदि सरकार को दुनिया क सबसे बड़े रेल नेटवर्क को विश्वस्तरीय बनाना है तो इसके लिए रेलवे की हर योजना को उसी मानक पर लागू करने की जरूरत है जिसकी अभी तकनीक रूप से कमी महसूस की जा रही है। यदि वीरभूमि जिले में सेंथिया रेलवे स्टेशन पर हुए ताजा रेल हादसे की बात करें तो उसमें साफतौर से प्रथम दृष्टया देखा जा सकता है कि या तो सिग्नल प्रणाली दोषपूर्ण थी या उत्तरबंगा एक्सप्रेस के चालक ने सिग्नल पर ध्यान नहीं दिया। क्योंकि स्वयं रेलमंत्री ममता बनर्जी भी इस रेल हादसे में किसी तोड़फोड़ या नक्सली साजिश से इंकार कर यह कह रही हैं कि घटना की जांच की जाएगी और दोषियों को दंडित किया जाएगा। इससे कहा जा सकता है कि मानवीय गलतियों पर ध्यान दिया जाना जरूरी है। जब हम रेलवे को विश्वस्तरीय बनाने की कवायद में लगे हों तो रेल हादसों को रोकने के लिए ठोस एवं अत्याधुनिक उपायों को तकनीकी रूप से मजबूत करना होगा। अन्यथा भारतीय रेल नेटवर्क की विश्व में तो छवि खराब होगी ही, वहीं रेल यात्रियों काभी रेलवे की योजनाओं से विश्वास उठने लगेगा। इन रेल हादसों को रोकने के लिए सरकार क्या ठोस कदम उठा रही है यह सवाल आम आदमी के मन में कौंधना स्वाभाविक है। रेलवे का यह भी मानना है कि रेल हादसे के कारण के लिए जांच की जा रही है, लेकिन हादसों पर राजनीति करना उचित नहीं है।
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